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शनिवार, 15 अगस्त 2015

हिमाचल यात्रा-07(धर्मशाला से दिल्ली वापसी)

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20june2015,sunday
कल रात कांगडा देवी के दर्शन कर हम रात को ही धर्मशाला पहुचं गए थे।
सुबह जल्द ही आंखे खुल गई। समय देखा तो सुबह के 4:45 बज रहे थे। मुझे छोड बाकी सभी सोऐ हुए थे। मै ऊठ कर कमरे की बॉलकनी मे आया। कमरे के बाहर का मौसम सर्द था। बाहर अभी अंधेरा ही था ओर पूरा धर्मशाला लाईट से टिमटिमाता सा दिख रहा था। मेने कमरे में आकर आयुष व पियुष को जगाया। उन्होने मेरे जगाते ही बिस्तर छोड दिया। वो दोनो मेरे साथ बॉलकनी मे आ गए। बाहर आते ही दोनो कहने लगे की यहां पर तो बहुत सर्द हवा चल रही है। थोडी ही देर बाद अंधेरा हल्का हल्का छटने लगा। ओर वह नजारा हमको दिखलाई दिया जिसको देखना हम चाहते थे। धौलाधार पहाड़ी की ऊंची चोटीयो पर जमी बर्फ चांदी की तरह चमक रही थी आसपास सब जगह हल्का,अंधेरा छाया हुआ था। बस धौलाधार ही अपनी बांहे फैलाए चमक रहा था। यह नजारा इतना अच्छा लग रहा था की,मै शायद ही इस अद्धभूत दृश्य का वर्णन कर पाऊ। मेने पियुष से कहा की जल्दी से कैमरा ले आ,पर उसको कैमरा तो नही मिला लेकिन वह मोबाइल जरूर लेता आया। ओर इस दृश्य के फोटो खिंच लिए लेकिन फोटो मे वह बात नजर नही आई,जो आंखो से दिख रही थी।
जल्द ही हल्की,हल्की बारिश चालू हो गई ओर धौलाधर का वह अद्धभूत दृश्य बादलो मे कही छुप गया।
जब सब ऊठ गए तो सब फोटो देखकर बाहर आए पर सबको निराशा ही मिली। हम सब सुबह के दैनिक कार्यो को निपटा कर पठानकोट की तरह चल पडे। हम चाहते थे की मैक्लोर्डगंज जाए,पर आज योग दिवस व दलाई लामा जी का जन्मदिन था,जिस वजह से यहां पर बहुत भीड भाड हो रही थी। इसलिए मैक्लोर्डगंज कभी ओर आने का खुद से वादा कर, हम धर्मशाला से लगभग सुबह के 7 बजे पठानकोट वाले रास्ते पर चल पडे।धर्मशाला से 14 दूरी पर एक छोटा सा नगर है गगल, जहां पर हमने अपनी गाडी भी ठीक कराई थी। यहां पर हम एक चाय की दुकान पर रूके ओर चाय,बिस्किट व चिप्स का नाश्ता किया। यहां चाय की दुकान पर T.V चल रहा था। जिसमे हमारे माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी राजपथ पर योग दिवस पर योग कर रहे थे। इनको देखते देखते व चाय खत्म करने के बाद हम लोग यहां से चल पडे।
यहां रास्ते में हमे लीची के बहुत से पेड दिखलाई दिये,यहां लगभग हर घर व हर खेत मे लीची लगी हुई थी। एक जगह मेने एक पेड से लीची तोडने की नाकाम कोशिश भी की।
गगल से आगे चलने पर शाहपुर नामक एक  जगह आई जहां से एक रास्ता दायें हाथ से कट कर चम्बा व डलहौजी को चला जाता है।
लेकिन हमे पठानकोट जाना था इसलिए हमे इसी रोड पर सीधे चलना था।यह रास्ता बड़ा ही सुन्दर है, घुमावदार सडक,सडक के दोनो तरफ फैली हरीयाली ही हरीयाली है। इस रोड पर बाग बहुत है,जिसमे फिलहाल लीची,आम व नाशपाती ही हमे दिखलाई दी। सडक के कभी दांयी तो कभी बांये एक नदी(चक्की नदी) चलती रहती है। अभी बारिश की वजह से इसमे बहुत पानी बह रहा था। रास्ते मे कई मन्दिर आए। लेकिन हम रूक ना सके बस चलते रहे। आगे जाकर नूरपूर नामक एक कस्बा पड़ता है जहां,पर हिमाचल प्रदेश सरकार का लकडी (पेडो की लकडी)का गोदाम है। यहां पर बहुत सारी लकडी रखी हुई थी जिन्हे देखकर ऐसा लगता है जैसे सारा जंगल ही काट डाला हो। नूरपुर से थोडा चलते ही बांये तरफ एक रोड व्यास नदी पर बने महाराणा प्रताप बांध की तरफ चला जाता है।
हम इस रोड पर सीधे चलते रहे ओर कुछ ही देर बाद पठानकोट पहुचं गए।
धर्मशाला:-धर्मशाला कांगडा जिले में एक खूबसूरत पर्वतीय पर्यटन स्थल है। यह दो भागो में बटा है एक पुराना धर्मशाला ओर एक नया धर्मशाला जिसे मैक्लोर्डगंज भी कहते है। इन दोनो के बीच की दूरी मात्र 10km ही है। मैक्लोर्डगंज(लगभग 2000 मीटर),धर्मशाला(लगभग1250मीटर) से काफी ऊंचाई पर बसा है। यहां से धौलाधार पर्वत रेंज का काफी सुंदर दृश्य दिखता है। यहां पर काफी मन्दिर भी है तथा बौद्ध धर्म के अनुयायी जो तिब्बत से है ओर मैक्लोर्डगंज में बस गए है। यहां पर बौद्ध धर्म के गुरू(लामा) दलाई लामा जी भी निवास करते है। यहां पर बहुत सारे बौद्ध मन्दिर भी है। यह जगह ट्रैकिंग करने वालो के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। यहां पर धर्मकोट जिसे छोटा छोटा इस्रायल भी कहते है वहा से त्रियुड नामक जगह तक पैदल ट्रैकिंग कर जाया जाता है।
हमने पठानकोट पहुचं कर गाड़ी मे डीजल भरवाया ओर एक ढाबे पर गाड़ी लगा दी। समय देखा तो 11 बज रहे थे। सभी ने परांठे खाने की इक्छा जाहिर की इसलिए चाय संग आलू के परांठे बोल दिये। साथ मे पंचरंगा अचार के तो क्या कहने। पराठे खाने के बाद हम दिल्ली के लिए निकल पडे। मैने रास्ते में एक खास चीज देखी की पूरे पंजाब में ज्यादात्तर सभी मकानो पर ईट व सिमेंट से बनी शानदार कलाकृतियों को देखा। किसी के घर पर हवाईजाहज बना था तो किसी के घर पर कार तो किसी के घर पर फौज का टैंक रखा था। किसी ने बहुत बड़ा पहलवान वजन ऊठाए बनाया हुआ था तो किसी ने पक्षी राज बाज। यह सब देखने मे बडे सुन्दर व दिलचस्प लग रहे थे। पर यह समझ नही आया की यहां के लोग ऐसी कलाकृतियां क्यो बनवाते है।
हम लोग दिन के 3बजे करनाल स्थित कर्ण झील पहुंचे। यह एक बडी झील है ओर पर्यटको को समय बिताने की सर्वोत्तम जगह भी है। यहां पर कुछ समय बिता कर हम लोग शाम को 7बजे दिल्ली अपने घर पहुचं गए।
यात्रा समाप्त.......
कर्ण झील:- कर्ण झील का नाम महान योद्धा और महाभारत में दानवीर व सूर्य पुत्र
के नाम से प्रसिद्ध कर्ण पर रखा गया, यह झील करनाल शहर के बाहर व 
शहर से सिर्फ 13-15 मिनट की दूरी पर
है। संयोग से, करनाल शहर खुद भी कर्ण के नाम पर है।
शास्त्रों के अनुसार प्रसिद्ध योद्धा कर्ण यहां पर नहाने आते थे। यह राज्य उन्हे दुर्योधन द्वारा मिला था। यहीं पर कर्ण ने इसी ताल में
नहाने के बाद अपना प्रसिद्ध सुरक्षात्मक कवच भगवान इंद्र को
दान कर दिया था, जो अर्जुन के पिता थे और अर्जुन शक्ति के
मामले में उनका प्रतिद्वंद्वी थे।
कर्ण झील एक पर्यटक स्थल है और सिर्फ
करनाल जिले में ही नहीं बल्कि पूरे
हरियाणा में प्रसिद्ध। एक विशेष पर्यटन विशेषता है कि यह ग्रैंड
ट्रंक रोड के राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 1 के किनारे पर
स्थित है और आसानी से कारों और पर्यटकों
की वॉल्वो बसों का ध्यान आकर्षित करता है। इसलिए
यहां ज्यादातर समय में भीड़ बनी
रहती है।
सुबह सुबह यह नजारा दिख रहा था,धौलाधार पर्वत का जो शानदार था।
सुबह 6बजे का दृश्य धर्मशाला का
मै सचिन त्यागी
बारिश के बाद चमकती सडके
सडक से दिखता धौलाधार पर्वत श्रंखला की पहाडिया 
गगल के पास 
चक्की नदी
चक्की नदी
लीची के पेड जहां हमने लीची तोडने की कोशिश की थी
मेढ़क के बच्चे
एक जर्जर पुल
नूरपुर
पठानकोट के पास खूबसूरत ढाबा 
जय भोले नाथ 
कर्ण झील (करनाल)
पैडल बोट 
मोटर बोट
बत्तखे झील के किनारे 

सोमवार, 3 अगस्त 2015

हिमाचल यात्रा-06(कांगडा देवी,ब्रजेश्वरी माता)

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19 जून शाम 7 बजे हम गगल से गाड़ी ठीक करा कर सीधे कांगडा देवी माता ब्रजेश्वरी देवी पहुचे। मन्दिर से पहले ही बाजार चालू हो जाता है। शुरूआती बाजार में तो हर तरह की दुकानें  है। पर मन्दिर के पास ज्यादातर दुकानें प्रसाद व पूजा की वस्तुएँ की है।हमने  मन्दिर के निकट ही एक दुकान से प्रसाद ले लिया ओर मन्दिर के मुख्य दरवाजे की तरफ चल पडे।
अब हल्का हल्का अंधेरा हो चला था। मन्दिर व बाहर बाजार रौशनी से उजागर हो चुके थे। जब हम मन्दिर के नजदीक पहुँचे तब हमारे कानो में मन्दिर से आती घन्टीयों व आरती की मन्द व सुरीली ध्वनि पडी। जिसे सुनकर हर किसी का मन प्रसन्न हो ऊठे। हम सभी मन्दिर की बांयी तरफ लगी लाईन मे लग गए । काफी लम्बी लाईन थी कम से कम पांच छ: सौ भक्त तो होगे ही। मै ओर आयुष कुछ देर लाईन में लगने के बाद, आस पास के मन्दिर देखने के लिए, मन्दिर परिसर मे घुम ही रहे थे की देखा की मन्दिर के दाहिने तरफ भी दर्शनो के लिए लाईन लगी हुई है। जिसमे भीड बिल्कुल नही थी अगर गिनती करते तो मुश्किल से सौ ही लोग होते। मै जाकर उस लाईन में लग गया ओर आयुष को बोल दिया की तुम जाकर उन्हें भी बुला ला। थोडी ही देर बाद सब के सब वहां उस लाईन मे लग गए साथ मे ओर बहुत से लोग भी उसी लाईन मे लग गए। यह लाईन भी दुसरी लाईन जितनी लम्बी हो गई। पर हम आगे ही थे इसलिए हमे कोई तकलीफ नही हो रही थी।
"मै एक बार तकरीबन 15 वर्ष पहले भी यहां पर आ चुका हु। तब तो मुझे लाईन में लगने की जरूरत ही नही पडी। क्योकीं मै एक दवाई की कम्पनी के द्वारा यहां पर जागरण में आया था। जितनी बार दर्शन कर सकते थे वो भी बिना किसी रोक टोक के।"
कुछ ही समय बाद माता को भोग लग गया ओर मन्दिर में माता के दर्शन चालू हो गए । हम सब अपनी बारी के लिए लाईन मे धिमे धिमे चलते रहे। माता का मन्दिर काफी भव्य व विशाल बना है। यहां पर मन्दिर के समक्ष ही तीन चार पीतल के शेर माता के मुख्य कक्ष (गर्भ ग्रह)के सामने खडे है जिन पर लाईट पड रही थी ओर वह बहुत ही शानदार दिख रहे थे। य़हा पर हमने एक ऐसा पत्थर भी देखा जिस पर सिक्के चिपक रहे थे । जैसे वो पत्थर कोई चुम्बक हो ऐसा मेने हरिद्वार मे मंसा देवी मन्दिर पर भी देखा था।
आगे चल कर दोनो लाईन एक हो जाती है। हम ने माता के भवन मे प्रवेश किया यहां पर माता पिंडी रूप में विराजमान है,जिनका श्रंगार सिंदूर, मक्खन व फूलो से होता है, माता का यह रूप बड़ा ही दर्शनीय है। माता के दर्शन करने पर हमारा मन,मस्तिष्क पवित्र व शांत हो जाता है। बस माता को देखते रहना ही चाहता है। जब तक कोई पंडित वहां से ना हटाए । माता के दर्शन करते समय आयुष ने मन्दिर में फोटो खिंच लिए,तब वहा तैनात गार्ड ने आयुष को फोन जेब में रखने की हिदायत दी।
हम सभी बारी बारी से माता के दर्शन कर आए। तभी एक व्यक्ति ने फूलो से भरा टोकरा पियुष को देते हुए कहा की आप इन फूलो को भवन में दे आए। वह एक बार ओर मन्दिर में चला गया ओर वहां पर फूल दे कर आ गया।
हम सब दर्शन करने के बाद मन्दिर में बने अन्य मन्दिर देखने लगे। यहां पर अन्य सभी भगवानो के मन्दिर बने है। यहां पर कुछ माता की झांकी भी बनी है जैसे ध्यानू भक्त द्वारा अपना शिश काटकर माता को भेटं करना। इसके पीछे भी एक कहानी है,की..
"माता का एक बड़ा भक्त हुआ नाम था ध्यानू भक्त। जिसने माता के सामने दो बार अपना शिश काटकर भेंट किया पर माता ने उसका शिश हर बार धड से जोड दिया साथ में उसकी हर मनोकामना भी पूर्ण की। एक बार उसके गांव व आसपास के क्षेत्र (आगरा)मे बहुत दिन से बारिश नही हुई । सब जगह सुखा पड गया तब ध्यानू भक्त ने यही मन्दिर पर माता को तीसरी बार अपना शिश भेंट किया। माता ने उसकी यह भेंट स्वीकार की ओर उसके गांव में बारिश भी हो गई तब से उत्तर प्रदेश के लोग पीले वस्त्र पहन कर माता के यहां पर जात देने आते है। ओर नगरकोट माता को अपनी कुल देवी मान कर पूजा करते है"
हम लोग मन्दिर में दर्शन करने के बाद वापिस गाड़ी की तरफ चल पडे। समय लगभग 9:10 हो रहा था। हम बाजार से होते हुए जा रहे थे। रास्ते मे कुछ दुकानों से खरीदारी भी की। तभी हमे पता चला की की माता का भवन रात को 9:30 पर बंद हो जाता है क्योंकि यह समय माता का निंद्रा का होता है फिर सुबह ही भवन के कपाट खुलते है। मेने दुकान वाले से पूछा की उन लोगो का क्या होगा जो अब भी लाईन में लगे है तब उसने बताया की वह लोग वही मन्दिर या आसपास की धर्मशाला या होटल में ठहर जाएगे ओर सुबह ही दर्शन कर पाएगे। यह सुनकर मेने मन ही मन मे सोचा की अगर पहली लाईन मे ही लगे रहते तो कल सुबह ही माता के दर्शन हो पाते पर माता ने हमे जल्द ही दर्शनों के लिए बुला लिया।
यहां से हम सीधे गाड़ी पर पहुँचे । मेने सुझाव दिया की आज हम यही कही होटल लेकर ठहर जाते है ओर कल सुबह दिल्ली के लिए प्रस्थान कर देगे। क्योकीं कल हमे दिल्ली जरूर पहुँचना था वो इसलिए की अमरीष जी की 21जून सुबह 7बजे की फ्लाईट थी वह कही अपने काम से जा रहेथे। यह सुझाव  अमरीष जी को भी ठीक लगा पर नेहा ने एक सुझाव दिया की क्यो नही हम यहां से 14 दूरी पर स्थित धर्मशाला रूक जाए। फिर कल सुबह हम मैकलोर्डगंज घुम लेगें ओर दोपहर में दिल्ली के लिए चल पडेगे। लगभग सबको यह सुझाव ठीक लगा। इसलिए हम लगभग रात के दस बजे धर्मशाला के लिए चल पडे। कांगडा से धर्मशाला की दूरी मात्र 14km ही है। रास्ते मे एक रेस्टोरेंट पर खाने के लिए रूके पर वहा पर जबरदस्त भीड को देखकर हम वहा से तुरंत ही चल पडे।
कुछ ही मिनटों में हम धर्मशाला के मेन मार्किट में पहुचं गए। यहां पर कई सारे छोटे बडे होटल थे। हम तकरीबन रात के 10:40 पर धर्मशाला पहुंचे थे। शायद इसलिए सभी  दुकाने बंद हो चुकी थी। मार्किट मे पूरी तरह सन्नाटा फैला हुआ था। यहां पर हमने बहुत से होटल देखे पर सब के सब भरे हुए थे। लगभग सब होटल वालो ने यही हिदायत दी की आप कांगडा ही वापिस लोट जाओ नही तो चामुंडा देवी चले जाओ,वहा पर ही रूकने की जगह मिल सकती है। यहां पर ओर मैकलोर्डगंज में तो शायद ही जगह मिले आपको।
यह सुनकर हम थोडे निराश हो गए। फिर भी हमने ऊपर जाते रास्ते पर चल पडे। हम गलती से रिहायशी कालोनी में पहुचं गए। यहां पर घर ही घर थे पर कुछ गेस्ट हाऊस भी थे लेकिन सब के सब भरे हुए थे कोई सा भी खाली नही था।जब हम निराश होकर गाड़ी में बैठे ही थे की मेने वहां पर एक लोकल व्यक्ति से रात बिताने के लिए रूम के बारे में पुंछा तो उसने एक इशारे से बताया की वहां उस घर पर चले जाओ शायद वहां पर आपको एक रूम मिल जाए। उसने बताया की जब सीजन मे यहां पर भीड बहुत हो जाती है,तब यहां के लोकल लोग अपने घरो को होम स्टे के रूप मे पर्यटको को रूकने के लिए दे देते है। उसके अनुसार बताए घर मे पहुचें ओर हमे एक बड़ा कमरा रात बिताने के लिए मिल गय़ा। हम कमरे पर समान रख कर मेन रोड पर एक रेस्टोरेंट पर पहुंचे। यहां पर बहुत तगडा जाम लगा था । यह जाम था पर्यटको का जो ऊपर मैकलोर्डगंज जा रहे थे। खैर हम जाम से होते हुए रेस्टोरेंट पहुचं ही गए।रात के 12 बजे से ऊपर का समय हो रहा था भूख से ज्यादा थकान व निंद्रा हावी हो रही थी। यहां से खाना खाकर हम सीधे कमरे पर पहुंचे। अमरीष जी तो लेटते ही सो गए। हमारे कमरे के साईड वाले कमरे मे दिल्ली का ही एक परिवार रूका था। उनसे पता चला की वह 18 जून को धर्मशाला पहुचे थे पर उन्हे कल रात कोई रूम नही मिला ओर उन्होने पूरी रात गाड़ी मे ही बिताई फिर आज सुबह से ही यहां पर इतना जाम था की हमे धर्मशाला से मैकलोर्डगंज पहुंचने में चार घंटे लग गए। जब की मैकलोर्डगंज यहां से केवल10km ही दूर है। उन्होंने बताया की कल अर्थात् 20जून को दलाईलामा का जन्मदिन है ओर साथ मे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस भी है इसलिए यहां व ऊपर मैक्लोर्डगंज में काफी भीड है।
यह सुनकर मै मन ही मन मे सोचने लगा की शायद ही हम मैक्लोर्डगंज जा पाएगे। क्योकीं मेने रूम से बाहर बॉलकनी में आकर देखा की मेन रोड पर अब भी गाड़ियों की लाईट चमक रही थी। यह सोचकर की कल की कल देखेगे अपने बिस्तर पर आकर सो गया................
ब्रजेश्वरी देवी,नगरकोट माता या कांगडा देवी:- कांगडा देवी मां ब्रजेश्वरी देवी को नगरकोट माता के नाम से भी जाना जाता है। यह मन्दिर कांगडा जिले मे स्थित है। यह मन्दिर माता के 51 शक्ति पीठो में से एक है। शक्ति पीठ माता के उन मन्दिरो को कहा जाता है जहां पर माता सती के शरीर के अंग व आभूषण गिरे थे। ओर वहा पर पींडी रूप मे माता को पूजा जाता है। नगरकोट माता ब्रजेश्वरी देवी मन्दिर मे माता सती के शरीर के अंग के रूप मे माता के स्तन गिरे थे। इसलिए यहां पर माता को पीन्डी रूप में पूजा जाता है। यह मन्दिर कांगडा जिले मे सबसे प्राचीन व भव्य मन्दिरो में आता हैं । जब की इस मन्दिर पर कई मुस्लिम शासको ने आक्रमण कर इस मन्दिर को लूटा व ध्वस्त किया । एक बार (1905)यह मन्दिर बहुत तेज आए भूकंप मे पूरी तरह ध्वस्त हो गया था। तब  इसका दोबारा निर्माण कराया था। मौजूदा मन्दिर लगभग 100 साल पूराना है।
अब कुछ फोटो देखे जाए इस यात्रा के...
प्रवेश द्वार
मां ब्रजेश्वरी मन्दिर (कांगडा)
मन्दिर का पिछला भाग दृश्य
मन्दिर मे स्थित वटवृक्ष 
माता का भवन सामने से ऐसा दिखता है।
एक फोटो मेरा भी माता के  भवन पर
माता की सवारी
पत्थर पर सिक्के चिपके हुए
माता का मुख्य कक्ष जहां पर पिंडी रूप मे पूजा होती है।
पीयुष माता के भवन मे फूलो की टोकरी ले जाता हुआ।
मन्दिर परिसर 
ध्यानू भगत अपना शिश काटकर माता को भेंट करते हुए।