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गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

मेरी गंगोत्री यात्रा

हम यमुनोत्री यात्रा कर आगे उत्तरकाशी में रुकें। हमने यहां goibbo app की मदद से पहले ही एक होटल बुक करा लिया था। लेकिन वह होटल हमे काफी ढूंढने पर भी नही मिला, गूगल मैप से भी ढूंढा तब भी लोकेशन गलत ही बता रहा था। हमने काफी बार फ़ोन भी किया तब भी फ़ोन उठाया नही गया फिर मैंने दूसरे नम्बर से फ़ोन किया तब उन्होंने फ़ोन उठाया लेकिन रूम बुक होने से साफ इंकार कर दिया जबकि हमने goibbo को पैसे भी दे दिए थे। हमारे लगभग 2 घंटे उधर ऐसे ही खराब हो चुके थे। फिर हमने goibbo पर शिकायत कर दी और उत्तरकाशी से कुछ आगे गंगा किनारे एक होटल शिव गंगा व्यू में रूम ले लिया। कुछ देर बाद goibbo की तरफ से एक कॉल आयी और उन्होंने इस प्रकरण के लिए माफी भी मांगी तथा मेरे पैसे भी रिफंड करने का आश्वासन दिया।
यमुनोत्री यात्रा को पढने के लिए यहाँ पर क्लीक करे ....
 
गंगोत्री धाम ,उत्तराखंड 

30 मई 2019
अगली सुबह जल्दी ही आँखे खुल गयी क्योंकि रात जिस होटल में हम ठहरे थे, वह भागीरथी नदी(गंगा) के किनारे था और नदी की तरफ से आता जल का शोर सुबह सुबह बड़ा ही सुरीला लग रहा था। बाकी उठने में रही सही कसर प्रकृति के अलार्म ने पूरी कर दी थी? जी हां मैं बात कर रहा हूँ, उन पक्षियों जो कि सुबह से ही रूम के आस पास उड़ते हुए चहक रहे थे। कल रात हम नदी के किनारे जिन पत्थरों पर बैठे थे वो भी अब पानी मे डूब चुके थे इसका मतलब यह था कि आज नदी में पानी बढ़ गया था। होटल से सुबह के कई मनमोहक नज़ारे दिख रहे थे। सुंदर दृश्य जैसे बहता हुआ जल, पक्षियों की चहचहाना, सामने पहाड़ आदि यह सभी आनंद को दोगुना कर रहे थे और कल जो हमारे साथ goibbo होटल वाला प्रकरण हुआ उसे भी अब हम भुला चुके थे।
देवांग रूम की खिड़की से बाहर की तरफ देखता हुआ
भागीरथी नदी ,उत्तरकाशी

गंगोत्री के लिए प्रस्थान
सुबह होटल में ही नाश्ता किया, होटल की सर्विस भी अच्छी लगी और लगभग 7 बजे हम गंगोत्री यात्रा पर निकल पड़े। कुछ किलोमीटर चलने पर ही हमे एक चौकी पर रोक लिया गया, यहाँ पर चार धाम यात्री पंजीकरण भी हो रहा था लेकिन हमसे सिर्फ कार के कागज व कितने यात्री है साथ मे मेरा फ़ोन नम्बर लिया गया। अब हम यहाँ से आगे चल पड़े। सुबह- सुबह भी सड़क पर काफी गाड़िया जाती हुई दिख रही थी कुछ ही समय मे हम मनेरी पहुँच गए। मनेरी में भागीरथी नदी पर एक डेम बना है जिससे बिजली बनाई जाती है। मनेरी में देखने के लिए एक खेड़ी नाम से झरना भी है। मनेरी से तक़रीबन आठ किलोमीटर चलने पर सड़क मार्ग पर व गंगा किनारे एक बड़ा आश्रम बना है। जिसमे शिव आदि देवताओं की बड़ी बड़ी प्रतिमाएं लगी हुई थी। यहां पर लोग रुक कर फ़ोटो आदि ले रहे थे। यह पायलट बाबा का आश्रम नाम से प्रसिद्ध है। हम यहाँ नही रुके और मैं रास्तो के फोटो भी नही ले पा रहा था क्योंकि कार मैं ही चला रहा था। पायलट बाबा के आश्रम से 9km आगे चलने पर भटवारी नाम का कस्बा आता है। यहाँ पर कुछ होटल व दुकानें देखने को मिली। भटवारी से एक रास्ता बरशु के लिए चला जाता है। बरशु से ही आगे दायरा बुग्याल के लिए ट्रैकिंग की जाती है।
भटवारी से 16 km आगे गंगनानी जगह पड़ती है। यहाँ पर हमें काफी जाम मिला। गंगनानी से कुछ किलोमीटर पहले ही लोगो ने अपनी कार, बस आदि रोड के साइड में खड़ी की हुई थी इसलिए ट्रैफिक थोड़ा स्लो चल रहा था हमे लगभग आधा घंटा गंगनानी को पार करने में लग गया। हम गंगनानी जरूर रुकते लेकिन भीड़ व जाम की वजह से आते वक्त देखंगे यह डिसाइड हुआ। वैसे गंगनानी में गर्म पानी के कुंड है साथ मे एक दो मंदिर भी है। इसलिए यात्री गंगनानी जाते है। उत्तरकाशी से गंगनानी तक हम भागीरथी के किनारे किनारे बनी सड़क पर ही चल रहे थे। यह रास्ता बहुत सुंदरता समेटे हुए है। दूर तक फैली घाटी, नदी, जंगल पूरे रास्ते आपका साथ नही छोड़ते है। गंगनानी से कुछ आगे चलकर नदी का रास्ता छोड़ हमे ऊंचाई वाला व बहुत से मोड़ो वाले रास्ते पर चलना होता है। अब हम उसी रास्ते पर चल रहे थे। यह पहाड़ी ऊंचाई वाला रास्ता सुक्खी टॉप तक जाता है फिर हमे वापिस ऐसे ही रास्ते से नीचे भी उतरना होता है। इसका मतलब घाटी के बीच यह पहाड़ आ जाता है जिसको हमे पार कर फिर से घाटी में उतरना होता है। सुक्खी टॉप पहुँचने व वहाँ से उतरने तक हमे बहुत लंबा जाम मिला। लेकिन सुक्खी टॉप पर पहुँच कर और उधर से दिखती गंगा घाटी का सुंदर दृश्य सारी निराशा को दूर कर देता है। ऊंचे ऊंचे पहाड़ बीच से बहती गंगा नदी और दूर आखिरी में दिखते हिम शिखर। यह दृश्य हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित कर रहे थे। सुक्खी टॉप से उतरने के बाद हम एक बार फिर भागीरथी नदी के साथ साथ चल रहे थे। लगभग 15 किलोमीटर आगे चलने पर देवदार के घने जंगल के बीच से एक रास्ता बाँये तरफ अलग चला जाता है यह रास्ता हर्षिल के लिए जाता है। हर्षिल वैली अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। एक पुरानी फ़िल्म राम तेरी गंगा मैली जिसे राजकपूर साहब ने बनाया था उसकी ज्यादातर शूटिंग भी यहाँ हर्षिल में ही हुई थी। साथ में हर्षिल वैली अपने सेब के लिए भी जानी जाती है।
सुक्खी टॉप पर लगा वाहनों का ट्रेफिक जाम

यह रास्ते कितने खूबसूरत है 
टॉप से दिखती हिमालय की पर्वत श्रेणी
सुक्खी टॉप से दिखती गंगा की घाटी 

चूंकि हमे गंगोत्री जाना था इसलिए हम आगे बढ़ गए। थोड़ी दूर चलते ही सड़क पर बहुत पानी बह रहा था साथ मे कई जगह से पानी आ रहा था। ट्रेफिक भी रुका हुआ था। एक तरफ का ही ट्रैफिक चल रहा था। इसी जगह पर थोड़ा पैदल चल कर एक वाटरफॉल भी है जिसको मंदाकिनी वाटर फॉल कहते है। अब मेरी तरफ वाला ट्रैफिक चल पड़ा था और मैंने इस उबड़ खाबड़ वाले रास्ते को बड़ी सावधानी से पार किया। कुछ आगे चलने पर बाँये तरफ नदी के दूसरी तरफ थोड़ा ऊँचाई पर एक सफेद मंदिर दिख रहा था। मैंने आगे एक जगह गाड़ी रोकी इस जगह का नाम धराली या धरली था इधर मेरे पूछने पर एक व्यक्ति ने बताया कि यह मंदिर जो आप देख रहे हो वह मुखबा गांव में है और जब शीतकालीन समय में गंगोत्री धाम के कपाट बंद हो जाते है तब यहाँ पर ही माँ गंगा की पूजा होती है। धराली से 14 किलोमीटर आगे चलने पर भैरोघाटी शुरू हो जाती है एक ब्रिज(भैरो ब्रिज) जो भागीरथी पर ही बना है उसको पार करते ही दाँये तरफ बाबा भैरो नाथ का प्राचीन मंदिर बना है, कहते है कि गंगोत्री धाम के साथ यहाँ भी दर्शन करने चाहिए। भैरो मंदिर से गंगोत्री धाम तक कि दूरी लगभग आठ किलोमीटर ही रह जाती है और यह आठ किलोमीटर का रास्ता बेहद खूबसूरत है। वैसे तो सुक्खी टॉप से ही गगनचुंबी हिमालय की चोटियों के बीच बीच में नयनाभिराम दर्शन होते रहते है लेकिन इस सड़क से हिमालय की चोटियां काफी नजदीक दिखती रहती है और अगर आपके हाथ में कैमरा है तब आप रुक कर जरूर इनका फोटो लेंगे।

धराली
मुकबा गाँव का गंगा मंदिर जहां पर शीतकाल में गंगा माँ की पूजा होती है 

गंगोत्री पहुँच गए..
कुछ ही समय बाद हम गंगोत्री धाम की पार्किंग में पहुँच गए, यहां से किसी भी वाहन को आगे जाने की इजाज़त नही थी। वैसे सीज़न के बाद आगे तक जाया जा सकता है। पार्किंग से 500 मीटर आगे एक बाजार चालू हो जाता है जिसमे दोनो तरफ दुकानें व कुछ भोजनालय भी बने है। ऐसी ही एक दुकान से हमने चाय व समोसे खाये। हमे लगभग 6 घंटे लगे उत्तरकाशी से गंगोत्री तक पहुँचने में क्योंकि हम लगभग 2 घंटे जाम में भी फंसे रहे थे। यही से एक रास्ता कुछ नीचे सूर्यकुंड की तरफ भी चला जाता है लेकिन पहले मंदिर दर्शन करेंगे फिर अन्य जगहों को देखेंगे। इसलिए हम पहले सीधा भागीरथी (गंगा) के घाट पर पहुँचे। इधर काफी लोग स्नान कर रहे थे। नदी का जल बहुत ठंडा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अगर हम नहाए तो यहां पर ही जम जायंगे। मैंने बड़ी मुश्किल से अपना पैर जल में रखा थोड़ी ही देर में पैर ठंड की वजह से सुन्न सा पड़ गया लेकिन स्नान तो करना ही था इसलिए दो तीन मग्गे शुरू में अपने ऊपर डाला और हर हर गंगे बोल कर नदी में एक डुबकी लगा ही दी और बाहर आ गया फिर मैंने अपने बेटे को भी गंगा स्नान कराया। महिलाओं के लिए घाट पर कपड़े बदलने की व्यवस्था थी। स्नान करने के बाद हमने गंगा पूजा की और गंगोत्री मंदिर की तरफ चल पड़े। एक दुकान से प्रसाद भी ले लिया और कुछ सीढ़ियों को चढ़ते हुए मंदिर पहुँच गए।
गंगोत्री पहुचं गए उधर लगा एक बोर्ड जिस पर मंदिर की समय सारणी लिखी है 
गंगोत्री का बाज़ार 

हम पहले सीधा गंगा घाट पर पहुचें
गंगा जी में स्नान के बाद 
घाट से मंदिर तक कुछ सीढियों को चढ़ना होता है 
और पहुँच गए गंगोत्री धाम 

मंदिर पर पहुँचने पर देखा कि दर्शन के लिए तो बहुत लम्बी लाइन लगी है यदि लाइन में लगते है, तो कम से कम 2 घंटे से पहले नंबर नही आएगा। लेकिन जो यात्री जल्दी दर्शन करना चाहते है, उनके लिए विशेष दर्शनों(vip) की भी व्यवस्था है। उसके लिए 2100 रुपयों की पर्ची कटानी पड़ती है। एक पर्ची पर अधिकतम 6 लोग ही दर्शन कर सकते है। मैं भी vip दर्शन पर्ची काउंटर पर गया। उधर एक परिवार मिला जिसमे सिर्फ 4 लोग ही थे और हम 2 थे इसलिए हमने मिलकर एक ही पर्ची कटवा ली। जिसके लिए मैंने अपने 2 बंदों के हिसाब से उन्हें पैसे दे दिए। लगभग 10 मिनट बाद हमारा नम्बर आ गया और हमने मंदिर में प्रवेश किया। माँ गंगा को मन से नमस्कार किया, प्रसाद भी चढ़ाया और मंदिर के एक कोने में थोड़े समय के लिए बैठे रहे। कुछ समय बाद हम गंगोत्री मंदिर के अलावा अन्य मंदिर भी गए। फिर हम भागीरथी तपस्या शिला भी देखने के लिए गए, जिस शिला पर बैठ कर श्री राम के पूर्वज राजा भागीरथी ने शिव की कठोर तपस्या की और गंगा को अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए धरती पर लाये। यहां बैठे पंडित जी ने बताया कि सर्वप्रथम गंगा जी यही पर उतरी थी इसलिए इस जगह का नाम गंगोत्री पड़ा। कई हज़ार साल पहले गंगोत्री ग्लेशियर(गौमुख) यही तक था जो अब खिसकने के कारण 19 किलोमीटर पीछे हो गया है। जिसको आज गौमुख बोलते है।

मैं सचिन त्यागी अपने परिवार सहित गंगोत्री धाम पर 
अब चलते है भगीरथी तपस्या शिला देखने 
भगीरथी शिला 
भागीरथी शिला देखने के पश्चात हमने गंगा किनारे एक होटल में खाना खाया और आगे सूर्यकुंडगौरीकुंड देखने के लिए चल पड़े। सबसे पहले सूर्यकुंड आता है, सूर्यकुंड को पहली ही नज़र से देखना बेहद ही रोमांचित करने वाला अहसास होता है। सूर्यकुंड के खास तरह के पत्थरों व उन पर जल के कटाव के निशानों में से पूरी भागीरथी नदी को एक धारा के रूप में निकलते देखना बड़ा ही अच्छा लगता है। यहां पर नदी बहुत शोर करती हुई और गहराई में बहती है। कहा जाता है कि राजा भगीरथ ने इस जगह पर सूर्य को जल अर्पित किया था इसलिए आज भी गंगा नदी सूर्य को नमस्कार करती हुई सी प्रतीत होती दिखती है। सूर्य कुंड से कुछ दूरी के फासले पर ही गौरीकुंड है। गौरीकुंड कोई कुंड नही है लेकिन यहाँ पर गंगा नदी बहुत नीचे गहराई में बहती दिखती है कहा जाता है कि जब गंगा धरती पर बड़े वेग से उतरी तब शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में बांध लिया और अपनी एक जटा यही गौरीकुंड में खोली जिससे गंगा आराम से धरती पर उतरी।

गंगोत्री का सुन्दर दर्शय
खाने की प्रतिक्षा करते हुए 
एक पुल पर देवांग 
सूर्यकुण्ड
गौरीकुंड के रास्ते पर 
गौरीकुंड 

गंगोत्री धाम के बारे में..
गंगोत्री उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्तिथ है। गंगोत्री धाम समुन्द्र तल से 3140 मीटर की ऊंचाई पर स्तिथ है। पुराणों व अन्य धार्मिक ग्रंथों में इस धाम की महिमा वर्णित है। राजा भगीरथ ने इसी जगह पर 5500 वर्षो तक तपस्या कर गंगा मैया को नदी के रूप में उतरने के लिए प्रसन्न किया था। हर साल गंगोत्री मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खोले जाते है तथा कार्तिक के महिने में दीपावली के दिन बंद कर दिए जाते है। फिर शीत काल मे गंगा जी की पूजा मुखबा गांव में की जाती है। गंगोत्री मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18 वी शताब्दी के शुरूआत में किया गया था तथा वर्तमान मंदिर का पुननिर्माण जयपुर के राजघराने द्वारा किया गया। गंगोत्री के आसपास से आसमान छूते पर्वत मेरू, सुमेरु, शिवलिंग, सुदर्शन, चतुर्भुज आदि अनेक बहुत से पर्वत व चोटियों दिखती है। साथ ही यह देवदार, भोज वृक्ष के जंगल के बीच स्तिथ एक सुंदर घाटी है। गंगोत्री से ही गौमुख व तपोवन की ट्रेकिंग की शुरुआत होती है। गंगोत्री में यात्रियों को रुकने के लिए बहुत से होटल व धर्मशाला है।
गंगोत्री धाम से हम शाम के 5 बजे वापिस चल पड़े। हमने सोचा कि आज हर्षिल या धराली रुकेंगे। हम भैरो घाटी स्तिथ भैरो मंदिर भी गए। फिर हम हर्षिल गए। काफी होटल देखे लेकिन यहा कही भी होटल नही मिला इसलिए हर्षिल से वापिस उत्तरकाशी की तरफ चल पड़े। बीच मे एक दो जगह कुछ होटल देखे भी लेकिन कही पसंद नही आता तो कही रूम फुल मिलते। सुक्खी टॉप पर भी होटल का पता किया लेकिन वहां भी सभी रूम फुल मिले। गंगनानी से पहले बहुत लंबा जाम मिला हम एक ही जगह पर लगभग एक घंटे से अधिक समय तक रुकें रहे। लग रहा था जैसे यह जाम अब नही खुलेगा और हमे रात सड़क पर ही गुजारनी पडेगी। अब रात भी हो चुकी थी। फिर जाम खुला और हम लगभग रात के 10:30 पर गंगनानी पहुँचे और थोड़ा आगे जाकर एक होटल में रूम लेकर सो गए।

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सोमवार, 27 अप्रैल 2020

मेरी यमुनोत्री यात्रा

पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कि मैं अपनी फैमिली के संग यमुनोत्री यात्रा के लिए दिल्ली से चलकर जानकीचट्टी पहुँच गया क्योंकि जानकीचट्टी से ही यमनोत्री मंदिर के लिए पैदल यात्रा आरंभ होती है। अब आगे पढ़े ...
 
यमुनोत्री धाम 

जानकीचट्टी से यमुनोत्री धाम की यात्रा

29 मई 2019

मैंने घोड़े वाले को कल ही बोल दिया था कि आज सुबह 4:30 बजे तक आ जाना क्योंकि हम यात्रा जल्दी ही स्टार्ट करेंगे इसलिए हम सुबह जल्दी ही उठ कर व फ्रेश होकर 4:30 तक तैयार हो चुके थे। मैं होटल से बाहर आ गया और घोड़े वाले को फ़ोन मिलाया। लेकिन उसने फ़ोन ही रिसीव नही किया। होटल से बाहर निकलने पर ही पता चला कि बाहर काफी ठंडी हवा चल रही थी और काफी सर्दी भी हो रही थी। इसलिए मैं तुरंत ही होटल के अंदर चला गया मैंने फिर घोड़े वाले को फोन किया और उसने फ़ोन उठा भी लिया। और उसने बताया कि उस के पास घोड़े कम है इसलिए वह सात बजे तक ही आ पाएगा।  इसलिए मैंने उसको आने के लिए मना कर दिया। फिर हम होटल के बाहर एक चाय की दुकान पर पहुँचे और गर्मा गर्म चाय और साथ में बिस्किट खाने लगे। चाय की दुकान पर ही एक घोड़े वाला चाय पी रहा था। उसने कहा कि मंदिर चलोगे क्या? मैंने बोला बताओ क्या लोगे? उसने कहा कि 1400 रुपए दे देना। मैंने कहा कि तुम ज्यादा मांग रहे हो और मेरी किसी अन्य से बात एक हजार रुपए में हो रखी है। फिर वह लास्ट 1100 रुपए पर आ गया। मैंने कहा ठीक है तुम घोड़े ले आओ। वह 5 बजे घोड़े लेकर हमारे पास आ गया और हम घोड़े पर सवार होकर 5:15 पर यमनोत्रीधाम के लिए निकल चले। 

अब पूरा उजाला हो चुका था और काफी लोग यात्रा प्रारंभ भी कर चुके थे। घोड़े वाले ने बताया की घोड़े से यह यात्रा 4 से 5 घंटे में हो जाती है और पैदल यात्रा में एक से दो घंटे अधिक का समय लग जाता है। उसने यह भी कहा कि सुबह सुबह ही जाना अच्छा होता है। क्योंकि जब भीड़ भी कम मिलती है और दर्शन भी बिना किसी असुविधा के आराम से हो जाते है। हम ऐसे ही बातें करते हुए जा रहे थे। मैंने एक बैग भी ले लिया था जिसमे एक गर्म चादर और रेनकोट व कुछ खाने-पीने का सामान रख लिया था । यदि आप भी अगर यमनोत्री आएं तो ध्यान रखियेगा की पहाड़ो पर बारिश कभी भी हो जाती है यह आमतौर पर दोपहर बाद ही होती है इसलिए रेनकोट या छाता अपने पास हमेशा होना चाहिए।
यात्रा शुरू हो गयी 
हरे भरे वृक्षों को देखते चलो 

हम अभी लगभग आधा किलोमीटर ही चले होंगे कि हमें एक जगह रुकना पड़ा यहां पर घोड़े वालों को 120 रुपये प्रति सवारी की पर्ची कटवानी होती है। वह पर्ची कटवाने के बाद हम आगे चल पड़े। मंदिर तक पूरा रास्ता पक्का बना हुआ है, लेकिन यह कंही कंही काफी चढ़ाई वाला रास्ता भी है। बीच-बीच में सीढियों पर भी चलना होता है।इन सीढियों पर चढ़ते वक्त मैं यही सोच रहा था कि वापिसी में घोड़ा इनपर से कैसे उतरेगा कहीं वो हमें गिरा ना दे। रास्ते पर एक दो जगह पहाड़ की तरफ कुछ पत्थर आगे बाहर की तरफ निकले हुए थे जिनसे पैदल चलने वाले यात्रियों को तो कोई दिक्कत नहीं होती लेकिन जो घोड़े पर चलते हैं वह कभी-कभी इनसे टकरा भी जानते हैं इसलिए घोड़े वाले ने हमे पहले से ही सतर्क कर दिया था इसलिए हम थोड़ा झुक कर बैठे हुए थे। यमुना नदी हमारे दाएं हाथ की तरफ बहती हुई चल रही थी अब वह काफी नीचे बहती दिख रही थी। पानी के तेज प्रवाह की वजह से काफी तेज शोर भी आ रहा था। यमुनोत्री धाम तक यह रास्ता बड़ा ही रोमांचित करने वाला है। रास्ते से गगनचुंबी बर्फ से ढँके पर्वत दिखते रहते है इन्हें देखना बड़ा ही मनभावन व आनंदित करने वाला है। और आसपास के जंगल भी यात्रियों को अपनी तरफ सम्मोहित करते है। यह घाटी बहुत खूबसूरत है।

रास्ते में जंगल देखने को मिलता रहता है .
रास्ता व दूर से दिखती हुई बर्फ की चोटियाँ

तभी मेरे घोड़े वाला जोर से चिल्लाते हुए बोला नदी के दूसरी तरफ पहाड़ी पर जंगल में देखो भालू दिख रहा है। मैंने देखा तो मुझे नहीं दिखाई दिया लेकिन फिर ध्यान से देखने पर मुझे भालू दिखाई पड़ा लेकिन वह क्षणभर के लिए ही दिखाई दिया और घने जंगल मे चला गया। मैंने घोड़े वाले से पूछा क्या जंगली जानवर यहां पर आ जाते हैं? तो उसने कहा कि भाई जी.. यात्रा के दौरान तो रास्ते पर कभी देखे नहीं है लेकिन ऊपर जंगल में तो जानवर है ही और आज जैसे अभी आपने देखा उतने ही दूर रहते है। 
बुरांस के फूल 

हमने एक पुल को पार किया अब सीढ़िया एक दम खड़ी जाती हुई दिख रही थी। इन पर चढ़ने के बाद एक मंदिर आया जो भैरव बाबा का मंदिर था। हमने इनको प्रणाम किया और आगे बढ़ गए। थोड़ा आगे कुछ दुकानें बनी हुई थी यहां पर घोड़े वाले ने हमें उतार दिया और बोला कि घोड़ा इधर कुछ रेस्ट करेगा और आप भी चाय नाश्ता करना चाहो तो कर सकते हैं। हम एक दुकान पर बैठ गए यहां गरमा गरम समोसे बन रहे थे हमने चाय और समोसे का नाश्ता किया। नाश्ता करने के बाद हम सीधा यमुनोत्री मंदिर से कुछ पहले उतर गए अब यहां से आगे पैदल ही जाना है आगे कुछ दुकानें भी लगी हुई थी। ज्यादातर दुकानें प्रसाद की ही थी इन्ही में से एक दुकान से हमने प्रसाद लिया। प्रसाद में हमें चावल की पोटली भी मिली जिस पोटली में कुछ चावल बंधे हुए थे। जिसे हमें सूर्य कुंड में रखना था और चावल के उबलने के बाद प्रसाद रूप में वापस ले जाना था। हमने एक लोहे का पुल पार किया और यमुनोत्री मंदिर के निकट गौरीकुंड पर पहुँचे। सर्वप्रथम यात्रीगण गौरीकुण्ड में स्नान करते है और फिर युमना मंदिर जाते है। गौरीकुण्ड का पानी काफी गर्म होता है। यहां दो कुंड बने है एक महिलाओं के लिए तो दूसरा पुरुषों के लिए। पानी को छू कर देखा तो पानी काफी गर्म था। इस पानी मे सल्फर की मात्रा ज्यादा होती है इसलिए ज्यादा देर पानी में नहाना भी नहीं चाहिए। मैंने भी तीन-चार डुबकी मारी और बाहर आ गया । 
कुछ दुकाने और सबसे पीछे यमुनोत्री धाम 
एक पुल पार करना है बस 
और पहुँच गये यमुनोत्री धाम 
सबसे पहले यात्री गौरीकुंडके गर्म पानी में स्नान करते है और यात्रा की थकान को समाप्त करते है फिर मंदिर जाते है .

अब माँ यमनोत्री के दर्शन करने के लिए थोड़ा सा ऊपर कुछ सीढियों को चढ़ते ही मुख्य मंदिर पर पहुंच गया।यहां पर बहुत सारे पंडित पंडित बैठे हुए थे। उन्ही में से एक मेरे पास आये और बोले कि मैं आपकी पूजा करवा देता हूं। हमने पूछा कि आप की दक्षिणा क्या होगी तब उन्होंने कहा कि जो इक्छा हो वही दे देना। फिर उन्होंने हमे सर्वप्रथम दिव्य शिला का पूजन कराया. हमने देखा की शिला से एक गर्म पानी की धार उबाले मारती हुई व आवाज करती हुई निकल रही थी। कहा जाता है कि यह माता युमना ही है जो दिव्य शिला से निकल रही है  दिव्य शिला के पास ही सूर्यकुंड है बोला जाता है कि भगवान सूर्य के तेज के कारण ही इस कुंड का जल इतना गर्म है। हमने भी चावल की एक पोटली प्रसाद के रूप में इस कुंड में डाल दी और कुछ ही देर में यह चावल पक भी गए। यहाँ पर सभी यात्री ऐसे ही पोटली में चावल को पका रहे थे। सूर्यकुण्ड के नजदीक ही यमुना जी का मंदिर है। मंदिर के अंदर माँ यमुना की मूर्ति काले रंग के पत्थर से बनी है। मंदिर में प्रसाद चढ़ाने व माँ यमुना के दर्शन करने के पश्चात हम मंदिर से बाहर आ गए और पूजा कराने वाले पंडित जी को भी दक्षिणा दे दी. अब हम मंदिर के पास यमुना नदी के नजदीक गए और एक बोतल में यमुना का जल भी भरा जिसे हम अपने साथ अपने घर लेकर जायंगे यमुना का जल बहुत साफ़ व ठंडा था इतना ठंडा की लग रहा था की मेरा हाथ सुन्न ना पड़ जाये  हमने कुछ समय और मंदिर के आस पास व्यतीत किया और फिर वापिस लौट चले। वापिसी में हमे रास्ते में काफी भीड़ मिली और एक दो जगह तो कुछ देर रुकना भी पड़ा फिर भी हम सुबह के लगभग 10 बजे तक वापिस जानकीचट्टी स्तिथ आ गए और होटल पहुँच कर अपनी कार में बैठ कर आगे गंगोत्री धाम यात्रा पर निकल गए। हम बरकोट से धरासू बैंड पहुंचे और फिर आगे उत्तरकाशी रुक गए 

दिव्यशिला


सूर्य देव की प्रतिमा
सूर्य कुण्ड जहां हमने चावल पकाए थे .
मैं परिवार सहित यमुनोत्री धाम पर 
पास में ही एक ग्लेशियर

यमुनोत्री के बारे में
उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में यमुनोत्री धाम स्तिथ है। और यह उत्तराखंड के चार धामो में से एक है। यह मंदिर सूर्य पुत्री यमुना जी को समर्पित है। यमुनोत्री समुंद तल से करीब 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्तिथ है और यह बन्दरपूँछ पर्वत पर स्तिथ हिमखंड(ग्लेशियरों) से निकलती है। यह कलिंद पर्वत से निकली है और भगवान सूर्य का एक नाम कलिंद भी है और यमुना जी सूर्य देव की पुत्री भी है इसलिए यमुना जी को कालन्दी भी कहा गया है । यमुना जी यमराज व शनिदेव की बहन भी है।
यमुनोत्री मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खोले जाते है तथा कार्तिक के महिने में यम द्वितीय (दीपावली) के दिन बंद कर दिए जाते है। फिर शीत काल मे यमुना जी की पूजा खरसाली गांव में होती है। यमुनोत्री मंदिर का निर्माण टिहरी के राजा महाराजा प्रतापशाह ने सन 1884 में करवाया था। यमुनोत्री धाम से जुड़ी कुछ कथाएं भी सुनी जाती है।

यमुनोत्री की कथा
1- एक कथा के अनुसार यहां पर एक मुनि आसित निवास किया करते थे उनको ही दर्शन देने के लिए युमना जी नदी के रूप में धरती पर आयी थी।
2- दूसरी कथा के अनुसार सूर्य देव की पत्नी छाया को यमराज व यमुना संतान रूप में पैदा हुए। यमुना जी नदी के रूप में पृथ्वी पर उतरी और यमराज जी को यमलोक मिला। एक बार यमुना जी ने भाई यमराज से एक वर मांगा की जो व्यक्ति यमुना में स्नान कर लेगा उसे यमराज अकाल मृत्यु नही देंगे। कहते है यह वरदान माँ यमुना ने अपने भाई यम से भाई दूज के दिन माँगा था। ऐसा मानना की जो यमुना में स्नान कर लेता है उसको अकाल मृत्यु नहीं आती है इसलिए यात्री यमुना में स्नान भी करते है और यमुना जी के साथ साथ यमराज की भी पूजा अर्चना करते है।

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