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शनिवार, 22 मार्च 2014

Kashmir trip-3,मेरी कश्मीर यात्रा

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आज सुबह 01-01-13 को हम जल्द ही ऊठ गए. बाहर का नजारा देखने के लिए खिडकी से पर्दा हटाया तो देखा खिडकी के शीशे पर अन्दर की तरफ हल्की सी बर्फ सी जम गई थी जैसे फ्रिजर मे जमी होती है.
अतुल ने चाय का अॉर्डर कर दिया.जब तक चाय नही आई हम तीनो खिडकी पर ही जमे रहे.बाहर का नजारा था ही इतना शानदार की खिडकी से हटने को मन ही नही कर रहा था.बाहर फैली सफेद बर्फ की चादर बहुत सुन्दर लग रही थी.बाहर लोग चलते चलते फिसलते तो हम बडे हसतें.घोडे वाले अपने घोडो को तैयार कर रहे थे.इतने मे चाय आ गई. वेटर ने हमे बताया की आप होटल के बाहर रास्ते पर सीधे सीधे चले जाना आप गंडौला तक पहुंच जाएगे नही तो आपको घोडे वाले वही तक ले जाने के 300 रू मांगेगे.हमने उस वेटर को 50 रू० टिप मे दे दिए.नाश्ता करने के बाद हम होटल से बाहर आ गए हमने अपने कपडो के बैग वही रखवा दिए ओर बोला की इन बैगो को हम जाते वक्त ले जाएगे.
होटल से बाहर आए ओर कुछ दूर ही चले थे की घोडे वालो ने घेर लिया.पर हमने बैठने से मना कर दिया ओर आगे चल दिए.आज मौसम साफ था धुप निकल रही थी पर ठण्ड कम होने का नाम नही ले रही थी.चलते रहे एक जगह शोर्टकट भी मार दिया पर हमारे पैर घुटनो से ऊपर तक बर्फ मे फसं गए फिर कोई शार्टकट नही मारा.आगे चलकर एक गंडौला का टिकेट घर आया.तीन टिकेट ले लिए गए शायद 120 रू० का एक था.टिकेट लेने के बाद सेना के जवान सभी यात्रीयो की तलाशी ले रहे थे.वहा से गुजरते हुए हम लोहे की सीढियों तक पहुंचे. उन पर बर्फ पडी हुई थी जिस कारण फिसलन हो रही थी.उन्हे पार करते हुए हम एक केबल कार (ट्राली) मे बैठ गए ओर ऊपर की तरफ चल पडे.जैसे जैसे हम ऊपर जा रहे थे बर्फ भी उतनी ही अधिक होती जा रही थी.यहा से बहुत शानदार नजारै दिख रहे थे.ट्राली से नीचे देखा तो कुछ घर पूरी तरह से बर्फ से ढंक चुुके थे शायद उनमे कोई रहता नही होगा.बर्फ हटाने वाली गाडी ऊपर की ओर रास्ता बनाती जा रही थी.आखिरकार हम ऊपर पहुंच ही गए.
यहां पर बहुत तेज व ठन्डी हवांए चल रही थी.ऊपर एक मैदान था ओर चारो तरफ बहुत बडी मात्रा मे बर्फ पडी थी.जिसपर कुछ लोगो ने यात्रीयो के लिए बोर्ड स्केटिग व स्कीईग की सुविधा दे रखी थी.वे आपको स्कीईग करना सीखा रहे थे.कुछ दुकाने भी थी जहां पर चॉकलेट,चिप्स,कोल्डड्रिक आदि मिल रहा था पर बहुत महगां.मैने एक 20 वाली चॉकलेट खरीदी तो उसने 30 की दी.
अब काफी लोग यहां आ चुके थे.कोई आपस मे बर्फ के गोले मार रहे थे तो कुछ लोग बर्फ मे लेट कर फोटो खिचवां रहे थे.यहा पर कुछ विदेशी प्रर्यटक भी आए हुए थे वे सब स्कीईग का समान लिए हुए थे ओर देखते ही देखते पहाडी से नीचे की ओर स्कीईग करते चले गए.हमे भी यहां काफी समय हो गया था इसलिए हम भी गंडौला से वापस गुलमर्ग आ गए.
नीचे आने के बाद हम एक पहाडी के ऊपर चढ़ गए. देखा की वहा पर काफी लोग स्कीईग कर रहे है.गौरव व अतुल भी स्कीईग करना चाहते थे तो एक स्कीईग वाले को पकडा.पैसे तय किए प्रतिव्यक्ति 300 रू० ओर वो दोनो पहाडी की ढलान से नीचे जाने लगे मै वही ऊपर बैठा रहा ओर उन्हे देख रहाथा.गौरव व अतुल बहुत बार धडाम से बर्फ पर गिरे व लगे रहे.पास ही मै एक महिला भी स्कीईग करने चली ही थी की गिर पडी ओर पैर मे मोच आने के कारण फिर स्कीईग नही की.थोडी देर बाद गौरव व अतुल ऊपर आये बहुत थके हुए थे हमने भी स्कीईग करते हुए फोटो खिचवाए ओर वहा से नीचे  आ गए.रास्ते मे बर्फ के गोले एक दूसरे पर मारे. खुब मस्ती की.
होटल से बैग लेकर हमने वही एक दुकान पर मैगी खाई ओर टगंमर्ग वाली एक टैक्सी मे बैठ गए.टैक्सी ने हमे टगंमर्ग उतार दिया जहा हमने अपने शुज लिए और श्रीनगर की तरफ जाने वाली टैक्सी का इन्तजार करने लगे.थोडी देर बाद एक टैक्सी आई हम उसकी बीच वाली सीट पर बैठ गए.हमने देखा यह तो वही टैक्सी थी जिससे हम गुलमर्ग से आए थे.टैक्सी वाले ने भी हमे पहचान लिया था.रास्ते मे खुब मजाक करते हुए हम चल रहे थे.कुछ कश्मीरी भी टैक्सी मे बैठे थे जो हमारी बातो का लुफ्त ले रहे थे.तभी एक स्टाप पर एक कश्मीरी लडकी जो बहुत सुन्दर थी गौरव के पास बैठ गई गौरव मन ही मन बडा खुश हो रहा था.लगभग शाम के 4 बजे हम श्रीनगर पहुंच गए.जहां से हम सीधे डलगेट पहुंचे. अतुल का भाई अपनी ड्युटी पर तैनात था.हमने आज बोटहाऊस मे रूकने के लिए उस से  कहां.उसने एक फौजी से कुछ कहा वो हमे एक दुकान पर ले गया.उस दुकान का मालिक से हमे मिलवाया ओर बताया की ये हमारे गेस्ट है इनको आज एक बोटहाऊस मे रूकवाना है.वह दुकानदार यही काम करता था साथ मे एयर टिकेट व बस/टैक्सी भी दिलाता था. वह हमे अपनी गाडी से  डल झील पर बने स्टैन्ड न०11 पर लेकर आया ओर हमे वही एक बोटहाऊस मे रूकवा दिया.1500 रू हमने बोटहाऊस वाले को दे दिए.थोडी देर वही आराम किया.
अतुल को अपने घर फोन करना था इसलिए वह बाहर मार्किट मे जा रहा था.(वहा पर रिलांयस का नैटवर्क नही था).हमने उस से कुछ फल लाने को कह दिया.अतुल के जाने के बाद हम कल का कार्यक्रम बनाने लगे की हमे कहा चलना चाहिए. हमने निर्णय लिया की कल पहलगांव चलेगे.
थोडे समय बाद अतुल आया हमने उसे कल का कार्यक्रम बतलाया पर उसने कहा की कल वह तो दिल्ली के लिए निकलेगा.हमने कहा सब ठीक तो है उसने कहा सब ठीक है पर मै कल ही निकलुगा.
हम सब बाहर मार्किट मे आ गए ओर उसी दुकनदार को फोन लगाया ओर कहा की कल की दिल्ली के लिए प्लेन से टिकेट बुक करा दे.पर उसने कहा की दिल्ली मे कोहरा होने के कारण फ्लाईट कैन्सील हो गई है ओर टिकेट बुक भी नही हो रही है.हम फौजीयो से मिले ओर बताया की कल हम जा रहे है
वहा से आटो मे बैठ कर डल झील के पास ही लक्ष्मी होटल पर उतर गए.वही पर खाना खाया  ओर शिकारे मे बैठ कर अपनी हाऊसबोट मे आ गए.पहलगांव की यात्रा शुरू होने से पहले ही समाप्त हो गई.
रात को सोने के बाद सुबह 6बजे फ्रैश होकर हम आटो पकड कर श्रीनगर टैक्सी स्टैन्ड पर पहुंचे.वहा से हमने 5000रू मे जम्मू तक टैक्सी कर ली ओर चल पडे जम्मू की ओर,पटनीटाप होते हुए हम शाम को 5:30 बजे जम्मू पहुंचे.वहा से दिल्ली के लिए एक स्लीपर कोच बस मे तीन स्लीपर बुक करा दिए.जम्मू से 7:30 पर बस चल दि.बीच मे दो बार बस रूकी भी.ओर सुबह5 बजे हमे कश्मीरी गेट उतार दिया जहा से हम सभी अपने अपने घर को चले गए
यात्रा समाप्त....

बुधवार, 19 मार्च 2014

Kashmir trip-2,कश्मीर यात्रा

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आज सुबह जल्दी ही आंखे खुल गई.बाहर से शोर आ रहा था.खिडकी से देखा तो नीचे BSF के जवान सुबह की कदम चाल (परेड) कर रहे थे.बाहर बहुत ठण्ड थी फिर भी सभी जवान पूरी तरह से अपना काम कर रहे थे.चाय,नाश्ता करने के बाद,होटल का बिल चुकता कर दिया गया.ओर होटल से बाहर आ गए.एक आटो पकडा ओर टैक्सी स्टैन्ड पर पहुंच गए वहा से टगंमर्ग के लिए टैक्सी चलती है वही से एक टैक्सी मे बैठ गए.टैक्सी थोडे समय बाद ही चल पडी.हमारे साथ कुछ कश्मीरी भी टैक्सी मे बैठे थे.टगंमर्ग से कुछ पहले हल्की हल्की बर्फ सडक के किनारे पडी देखी.जिसे देखकर गौरव बडा खुश था मेने उस से कहा की आगे तुम्हे बर्फ ही बर्फ मिलने वाली है.टैक्सी टगंमर्ग मे एक मार्किट पर रूकी ओर हम वही उतर गए.टैक्सी वाले को 120 के हिसाब से तीन आदमीयो के 360 रू० दे दिए गए.टगंमर्ग मे काफी बर्फ पडी हुई थी जिस कारण यहा काफी ठण्ड थी हम एक दुकान पर पहुंचे ओर तीनो ने गर्म जुराबें खरीद कर वही पहन ली जिससे हमे काफी आराम मिला.सुबह नाश्ता ही किया था इसलिए कई ढाबे देखे पर सभी मुस्लिम ढ़ाबे थे.इसलिए हम एक चाय की दुकान पर पहुचे ओर चाय के साथ गर्म गर्म समौसे खा लिए.
अब हम गुलमर्ग जाने वाली टैक्सी स्टैन्ड पर पहुचे.वहा से हमने 500 रू मे एक टैक्सी कर ली.टैक्सी वाले ने कहा की मै आप लोगो को आगे कुछ दूरी पर मिलुगा आप मुझे वहा मिले.हम उधर की तरफ चल दिए .वही पर बर्फ मे चलने वाले लम्बे जूते मिल रहे थे तीनो ने वो जूते किराये पर ले लिए ओर टैक्सी मे बैठ गए.आगे चले ही थे की एक जगह पुलिस वालो ने टैक्सी को रोक दिया ओर ड्रायवरं से बोला गया की टैक्सी मे आगे के टायरो मे लोहे की चैन बांध ले जिससे गाडी बर्फ मे फिसले नही.गाडी मे चैन बांधकर हम चल पडे रास्ते मे हमे बहुत बर्फ पडी मिली एक जगह तो हमे उतर कर टैक्सी मे धक्का भी लगाना पडा.आखिरकार हम गुलमर्ग पहुंच ही गए.गुलमर्ग कश्मीर की सुन्दर जगहो मे से एक है.यहा एक रोपवे (ट्राली) भी चलती हे जो हमे गुलमर्ग की ऊंची पहाडी पर ले जाती हे.गुलमर्ग पहुंच कर हमने पहले होटल मे कमरा लेना पसंद किया ओर बहुत ढुढने पर3000रू मे एक रात के लिए कमरा मिल गया.कमरे मे पहुंच कर थोडा आराम किया गया.शाम के 4बजे हम बाहर घुमने के लिए निकल पडे.बाहर निकलते ही बर्फ पर चलने वाली गाडी(स्लैज) वालो ने घेर लिया.50 रू प्रति व्यक्ति के हिसाब से वे हमे नीचे एक ढलान से होते हुए खिलनमर्ग नामक जगह ले गए वहा से हम तीनो एक पहाडी पर चढ गए हमारे साथ साथ वो स्लैज वाले भी ऊपर आ गए ओर बोलने लगे की यह जगह खतरनाक है यहा जंगली जानवर आ जाते है इसलिए आप लोग हमारी स्लैज पर बैठ कर नीचे चलो पर हमने उनसे कहा की हमे कुछ देर इस शान्ति मे बैठने दो ओर हम अब स्लैज पर नही बैठेगे.थोडी देर बाद वह तीनो वहा से चले गए.अब हम तीनो के अलावा वहा कोई नही था.वहा पर हमने एक दूसरे पर खुब बर्फ के गोले फैक फैक कर खेलते रहे.खुब मस्ती करते रहे.वहा से एक पहाडी दिख रही थी उस पर ढलते सूरज की किरणे पडने के कारण उसका कलर सोने जैसा लग रहा था. बहुत खुबसूरत लग रही थी वह पहाड की चोटी.
अब कुछ कुछ अंधेरा होने लगा था.इसलिए हम बडी सावधानी से नीचे उतरने लगे मै तो कई बार बर्फ पर फिसल कर गिर भी गया पर चोट नही लगी.खिलनमर्ग मे एक मन्दिर भी था.
नीचे उतर कर थोडा चलने के बाद हम मुख्य सड़क पर पहुंच गए ओर वही एक ढा़बे पर राजमा चावल खाए गए. घुमते फिरते हम होटल पहुंचे. बाहर सर्दी बहुत थी कमरे मे पहुंच कर भी ठण्ड लगती रही इसलिए वेटर को बुला कर कमरे मे अलावघर(आग जलाने की जगह) मे लकडियां जलवा ली कुछ ठण्ड से राहत मिली .फिर हम कब सो गए पता ही नही चला.रात को बाहर पटाखो व शोर सुनकर हम तीनो जाग गए देखा लोग एक दूसरे को नव वर्ष की शुभकामनाएं दे रहे है .हमने भी एक दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएं दी ओर सो गए.
यात्रा अभी जारी हे...

शुक्रवार, 14 मार्च 2014

मेरी कश्मीर यात्रा

यह यात्रा मेने 30 दि०2012 को की थी.मे ओर गौरव( बुआ का लडका)एक दिन बात कर रहे थे की नए साल पर कही चला जाए.उसने कहा की मनाली चलते है,वो कहने लगा की उसने कभी बर्फ नही देखी है तो मनाली सही जगह होगी पर मेने उस से कहा की चलो कश्मीर चलते है,मै भी अभी तक कश्मीर नही गया था इसलिए मन था वहां जाने का ओर मेरे जीजाजी राहुल जी भी अभी हाल मे कश्मीर हो कर आए थे.फोटो ओर उनकी यात्रा वृतान्त सुनकर,मन मे था की अब की बार कश्मीर चला जाए ओर बर्फ भी पड रही थी वहा,तो गौरव ने कश्मीर चलने की हामी भर दी.गौरव ने अपने दोस्त अतुल से कश्मीर की हवाईजहाज की टिकेट को बोल दिया.मुझे बाद मे पता चला की हमारे साथ अतुल भी जा रहा है.तो आखिर हम तीन बंदे 30दि०2012 की सुबह 6:40 की फ्लाईट से श्रीनगर जा रहेथे.
मै ओर गौरव 29 की रात को अतुल के घर पहुंच गए .क्योकी उसका घर एयरपोर्ट के सबसे नजदीक था ओर सुबह तीनो साथ ही निकल पडेगे.सुबह एयरपोर्ट जाने के लिए गौरव ने एक  दोस्त को कह दिया की वह आज ही अपनी कार अतुल के घर लेते आए.तो हम सभी बाजार गए अपनी जरूरत का समान लेने?मेने ग्लब्स् लिए ,गौरव ने बैग लिया व कुछ गर्म कपडे भी लिए.हम चारो(कार वाला दोस्त भी) खाना खाकर सो गए.ओर सुबह 4बजे उठ कर फ्रैश होकर,एयरपोर्ट की तरफ चल दिए पर काफी कोहरा होने की वजह से सुबह5:45 पर एयरपोर्ट पहुंचे. जल्दी जल्दी भागे ओर बोर्डिग पास बनवाकर,कुछ ओर  जरूरी सुरक्षा कार्यवाही का सामना करते हुए जेटएयरवेज की बस मे बैठ गए.बस ने हमे हवाईजहाज के नजदीक उतार दिया.हम जल्द ही  हवाईजहाज मे अपनी  अपनी सीट पर बैठ गए.हम तीनो ही  पहली बार ही हवाई यात्रा कर रहे थे इसलिए बहुत उत्साहित हो रहे थे की यह कब उडे पर तभी एक घोषणा हुई की मौसम साफ ना होने के कारण अभी हवाईजहाज को उडने के लिए सिग्नल नही मिल रहा है तो हम सोचने लगे कही यह फ्लाईट कैन्सील न हो जाए.यात्रा विलम्ब होने के कारण एयरहोसट्स ने सभी यात्रीयो को खाने के लिए नूडल्स दिए,आखिरकार दोपहर 12 बजे सिग्नल मिलते ही हमारा प्लेन उड चला.उडने के कुछ सेकिंडो मे हम काफी ऊचांई पर पहुंच गए जहां से दिल्ली छोटी नजर आने लगी ओर दूर पहाडीया बर्फ से ढकी नजर आने लगी.कुछ देर मे ही घोषणा हुई की हम श्रीनगर उतरने वाले है ओर बादलो तो चीरते हुए हम नीचे की ओर उतरने लगे.बाहर का तापमान दिल्ली के बराबर ही था.हम एक घण्टे मे ही दिल्ली से श्रीनगर पहुंच गए थे. यह सफर बहुत जल्दी ही कट गया क्योकी हम तीनो मे ही खिडकी की तरफ बैठने की होड लगी थी.ओर बारी बारी से बैठ गए.श्रीनगर उतर कर कर अतुल के चाचा के लडके का फोन आया की वह कहां है तो अतुल ने कहा जबाब दिया श्रीनगर एयरपोर्ट पर हुं तो उसने कहा की मै श्रीनगर डलगेट पर ही तैनात हुं (वह BSF मे है)उसने बताया की टैक्सी लेकर डलगेट पर न्यु ममता होटल है वहा आ जाओ.हम दो घन्टे बाद डलगेट पहुंच गए.उसने हमे देखते ही खुशी से हमारा स्वागत किया ओर अन्य फौजियो से भी मिलवाया.फिर हमने होटल ममता मे ही कमरा ले लिया ओर बाहर डल झील की तरफ घुमने चल दिए.एक आटो किया 500 रूपयो मे उसने हमे डल झील का पूरा चक्कर लगवाया व निशांत बाग व मुगल गार्डन भी घुमाया पर सर्दियो मे हरियाली नाम को भी नही थी,फिर हम हजरतबल मस्जिद मे भी गए. यह डल झील के पास ही है ओर वहा हमने हलवा ओर पापड जैसा कुछ खाया पर स्वाद नही लगा जबकी आटो वाला वसीम भाई ने बताया की यह यहा का बहुत खास मिष्ठान है रात के 8 बज गए थे ओर सर्दी भी लग रही थी इसलिए हम वापिस होटल मे आ गए.वहा फौजी भाई हमारा इन्तजार करते मिले ओर उनसे बात होती रही.उन्होने बताया की यहा पत्थरबाजी कब हो जाए पता नही चलता ओर जुम्मे के दिन तो एक दो घटना होना आम बात है पर अब यहा शान्ति है.रात के दस बज चुके थे इसलिए भूख भी जोरो से लग रही थी होटल मे नीचे मारवाडी थाली मिलती थी शायद 150 रूपयो मे ,वो खाई ओर सोने के लिए कमरे मे चले गए

यात्रा अभी जारी है........

बुधवार, 12 मार्च 2014

ग्वालियर की यात्रा-3

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आज हम 3-1-14 की सुबह 6-30 ऊठ गए.कमरे से ही बेल बजाई तो वेटर आ गया उसे बोला की दो चाय ले आए. थोडी देर मे चाय आ गई ,चाय पीने के बाद वेटर से कहा की हमे आज  चेकआऊट करना है, तो बिल लेकर आना ओर हमे 8 बजे दो दो पराठे दही के साथ दे देना ओर उनका बिल भी लेते आना.हम नहा धोकर तैयार हो गए,नाश्ता करने के बाद होटल का बिल व वेटर को टिप देकर हम गोला का मन्दिर (चौक का नाम)पहुंचे. वहा से टेम्पो वाले से पुछा की सूर्य मन्दिर चलोगे तो उसने हामी भरी तो हम टेम्पो मे सवार हो गए,15 मिनट मे हम सूर्यमन्दिर पहुंच गए.टेम्पो वाले को भाडा देकर हम मन्दिर के  मेन गेट से होते हुए मन्दिर परीसर मे पहुंचे .यह मन्दिर बिडला ग्रुप वालो ने सन् 1985 मे बनवाया था वही के पंडत जी ने बताया.काफी सुन्दर बना है यह मन्दिर. यह मन्दिर सूर्य भगवान को समर्पित है ओर कोणार्क के सूर्य मन्दिर की कॉपी हे मतलब उस मन्दिर की तरह ही दिखता है लाल पत्थर से इसका निर्माण हुआ है.सूर्य के घोडे व रथ के पहिये पत्थर से निर्मित हे ओर बहुत सुन्दर भी,चारो तरफ हरे भरे बगिचे ओर बीच मे मन्दिर इस मन्दिर को ओर सुन्दरता प्रदान कर रही थी.मैने मन्दिर के दर्शन किये ओर बाहर आ गया.बाहर आकर हम पैदल ही चल पडे तो देखा की जहां से हम टेम्पो मे बैठे थे वहा से मन्दिर केवल 500 मीटर की दूरी पर ही था.पर टेम्पो वाला हमे बडे रास्ते से लेकर गया,चलो छोडो...तो हम गोला मन्दिर चौक पहुंचे, हमने सोचा पास ही टिगरा डैम है उसे ही देख लेते है पर एक स्थानीय दुकानदार न हमे बताया की वहा इस समय पानी कम होता हे तो आप बेकार ही समय खराब करोगे ओर पुलिस वाले आपको पानी के नजदीक भी नही जाने देगे क्योकी वहां मगरमच्छ भी हे तो हमने वहा जाने का विचार टाल दिया ओर रेलवे स्टेशन पर पहुंचे पर दिल्ली को जाने वाली सभी ट्रेने दो-तीन घन्टे लेट थी. तो हमने सोचा चलो बस से ही चला जाए तो हम बस अड्डे पहुंचे ओर दिल्ली के लिए जाने वाली एक कोच बस मे बैठ गए.वो ठीक दस बजे ग्वालियर से चल दी ओर आगरा होते हुए पलवल के रास्ते दिल्ली सराय काले खां रात को8:30 पहुंची.वहा से आटो पकड कर हम 9बजे हम घर पहुचे.