पृष्ठ

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

Eco Park, bhatta water fall( धनोल्टी व भट्टा जल प्रपात)

सुबह 6 बजे ही आँखे खुल गयी, आज स्वंतत्रता दिवस है, आज वह दिन है जिस दिन हमारे देश को आजादी मिली थी, आज हर साल की तरह हमारे देश के प्रधानमंत्री लाल किले से पुरे भारत को संबोधित करेंगे। वैसे आज के दिन मेरे स्वर्गीय पापा का भी जन्मदिन है, उनको भी मन ही मन याद किया और नमन किया। बाहर होटल के सामने कई कार खडी थी। सब पर हमारे देश का झंडा लगा हुआ था। शायद वो उनका 15 AUG  मनाने का ही तरीका हो। खिड़की से बाहर देखा तो अभी सड़क पर कोई चहल पहल नजर नहीं आ रहा थी। मैं और देवांग बाहर कुछ दूर घुमने चल दिए। होटल के सामने जो स्वेत पहाड़ दिख रहे थे वो अभी बदलो में छुपे हुए थे। लकिन जल्द ही वो दिखने लगे। बाहर आ कर हल्की हल्की सर्द मौसम को महसुस किया। कुछ बच्चे स्कूल की वर्दी में दिखे तो पूछ लिया की आज स्कूल की छुट्टी नहीं है क्या?  तो बच्चो ने बताया की झंडा रोहण के लिए स्कूल जा रहे है, हम थोडा और आगे बढे कुछ बंदर पेड़ो पर झूल रहे थे, थोड़ा और आगे चले तो ईको पार्क के पास बहुत बंदर थे जहाँ से हम वापिस हो लिए।

होटल आकर फ्रेश हुए फिर होटल छोड़ दिया होटल के बाहर ही मैं सारा सामान गाड़ी में डाल रहा था की बहुत से स्कूली बच्चे हाथ में झंडा लिए देश भक्ति के गीत गाते आ रहे थे। कुछ बच्चे तो बहुत छोटे थे। बच्चो को देख कर बहुत अच्छा लगा। यहाँ से हम ईको पार्क की तरफ चल दिए अभी पार्क बंद था जब तहसीलदार साहब झंडा रोहन करेंगे तब पार्क खुलेगा। हम सड़क पर थोड़ा और आगे चले की एक और इको पार्क नजर आया, पार्क के बाहर ही एक साइड गाड़ी खड़ी कर दी। एक दुकान पर मैग्गी बनती देखि तो वही बैठ गए। जब तक मैग्गी आये तब तक चाय पी ली। मैग्गी खा कर सुबह का नाश्ता भी हो गया था। इतने में इको पार्क का चौकीदार भी वही आ गया और कहने लगा की झंडा रोहन हो गया होगा, इसलिए आप पार्क में हो आयो। देवांग को प्यास लगी तो मै वही एक दुकान पर पानी लेने गया, देवांग ने टॉफी खाकर रैपर वही पर सड़क पर डाल दिया। मेरी पत्नी ने वो रैपर पास ही रखे डस्टबीन में डाल दिया और देवांग को बताया भी हमेशा सड़क पर कुछ ना फैंके, क्योकि हमने ही साफ सफाई पर ध्यान देना है, अगर हम खुद अपने आस पास गन्दा करंगे तो बहुत सी बीमारियां और यहाँ पहाड़ो को नुकसान पंहुचेगा।

मैंने दुकान से पानी की बोतल ली और देवांग को पानी पिला दिया। मैंने दुकान वाले को 500 का नोट दिया तो वो कहने लगा की सर हम पर खुल्ला नहीं है आप पार्क में घूम आयो आकर जब पैसे दे देना, लकिन मैंने गाड़ी से डेशबोर्ड में रखे 25 रुपए उसको लाकर दे दिए। जब हम चलने लगे तो वह दुकानदार कहने लगा की सर आप ने जैसे अपने बच्चे को समझाया कि गंदगी नहीं फैलाते है वो बहुत अच्छा लगा सुनकर, कहने लगा की लोग घूमने आते है और गंदगी फैला जाते है, और हम लोग यहाँ पहाड़ के भी होकर सफाई पर ज्यादा ध्यान नहीं देते है। अगर गंदगी की वजह से खूबसूरती ख़त्म हो जायेगी तो यहाँ कौन आएगा।

अब हम पार्क में चले गए, पार्क में जाने का टिकट लगता है(Rs20 प्रति वयस्क व Rs 10 बच्चो का) दो टिकेट ले लिए गए। जब में पहले यहाँ आया था तब ये पार्क नहीं बना था, यहाँ पर देवदार और बुराँस के जंगल हुआ करते थे। वैसे आज भी यहाँ पर जंगल है बस बच्चो के लिए झूले और लगा दिए गए है । क्योकि अब पर्यटक बहुत आने लगा है तो कुछ सुविधा तो देनी पड़ेगी ही। पार्क में जाने के लिए पगडण्डी बनायीं हुई है, बच्चो के लिये हर प्रकार के झूले यहाँ पर लगे हुए है। तरह तरह के फूल आपको यहाँ दिख जाएंगे। हरियाली तो चारो तरफ फैली हुई है ही यहाँ पर। देवदार, बांस और बुरांस के पेड़ो के जंगल के बीच यह पार्क बना ही हुआ है, यहाँ पर एक हर्बल पार्क भी बना है जहाँ पर हिमायल की कुछ जड़ीबूटीया भी आप देख सकते है, इको पार्क में जगह जगह जंगल को बचाने के लिए स्लोगन भी लिखे हुए है। थोड़ा ऊपर जाने पर एक खुली जगह आ जाती है, जहां से ऋषिकेश शहर दिखता है।(एक व्यक्ति ने बताया ) लकिन अभी पूरी घाटी में बादल छाए हुए थे।

यह सब देख कर हम पार्क से बाहर आ गए, धनोल्टी में बुराँस का जूस बहुत मिलता है हमने भी एक दुकान पर पिया। और वहाँ से चल पड़े। रास्ते में हमे कई बार स्वेत बर्फ से ढकी पर्वत माला के दर्शन हुए। एक जगह एक छोटा बच्चा कुछ सेब बेच रहा था वह सेब उसके ही बाग़ के थे, उसने 100 रुपये की टोकरी बतायी हमने टोकरी में जो सेब थे वो ले लिए, उसके पास कुछ कच्चे अखरोट भी थे वो भी ले लिए। वह बहुत खुश था फिर हमने उसको कुछ टॉफियां भी दी। और वहाँ से चल पड़े। आगे यह रास्ता दो रास्तो में बँट गया। एक मसूरी की चला गया और दूसरा सीधा आपको मसूरी के बाहर बाहर देहरादून वाले रास्ते पर पंहुचा देता है। हम दुसरे वाले पर चल दिए लकिन आगे जाकर देखा की पूरी रोड लैंडस्लाइड की मार झेल रहा था। आगे पूरा रास्ता ख़त्म था हम वहाँ से वापिस हो लिए। वापिस लाल टिब्बा वाले रोड पर हो गए। आगे जाकर ये रास्ता भी मसूरी से बाहर बाहर ही मैन रोड पर मिल जाता है।

यहाँ से आगे चलकर हमे थोड़ा ट्रैफिक जाम मिला यह जाम प्रकाशेस्वर महादेव मंदिर की वजह से लग रहा था। यह मंदिर एक प्राइवेट मंदिर है, यहाँ पर किसी भी प्रकार का चढ़ावा चढ़ाना सख्त मना है। हम भी मंदिर में गये और शिव के दर्शन किये, साथ में यहाँ पर प्रसाद के रूप में हमे खाने के लिए खीर भी मिली। यहाँ पर पूजा का बहुत सा सामान बहुत कम पैसो में मिल जाता है।

हम कुछ दूर चलने के बाद भट्टा वॉटरफॉल की तरफ जाते रास्ते पर चल दिए। वॉटरफॉल के लिए जाता रास्ता बहुत छोटा सा है, फिर भी मैंने अपनी कार उधर की तरफ घुमा दी। भट्ठा वॉटरफॉल से बिजली उत्पादन होती है, वॉटरफॉल को देखना अच्छा लगता है, चाये वो बड़ा हो या छोटा। कुछ देर यहाँ पर समय बीता कर हम वापिस मैन रोड पर आ गए, जहा से हम देहरादून और फिर बिहारीगढ़ पहुँचे, बिहारीगढ़ से एक रास्ता माता शकुम्बरी देवी को चला जाता है, हम फिर छुटमलपुर पहुँचे जहाँ से रुड़की होते हुए रात को दिल्ली पंहुच गये।

यात्रा समाप्त।


 मकड़ी 


सुबह सुबह 

पता नहीं क्या है?






चिपको आंदोलन 

यह मुझे बहुत अच्छा लगा। 

बच्चो का मार्च 15 aug को 


यह पूरा मस्त बच्चा था 

मैग्गी  
















भटटा वॉटरफॉल 






प्रकाश मंदिर के पास ट्रैफिक जाम 




शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016

Surkunda devi temple(सरकुंडा देवी मन्दिर)

सुरकुंडा देवी मंदिर



टिहरी झील देख कर हम चम्बा होते हुए, धनोल्टी के लिए चल पड़े। चम्बा से धनोल्टी तक की दूरी लगभग 30km है। मतलब आप आराम से एक घंटे में रुकते रुकाते पहुँच ही जायेंगे। हम जब चम्बा से चले तो मौसम साफ था, आसमान में बादल जरूर थे लेकिन बारिश नहीं थी। हम कुछ ही देर बाद कानाताल पहुच गये। यहाँ पर धुंध ने सड़क पर हमारा स्वागत किया। सड़क पर बहुत धुंध थी और गाड़ी की लाइट जलानी पड़ी और अगले मोड़ पर कोहरा गायब हो गया और सड़क के किनारे लंबे लंबे पेड़ दिखलायी देने लगे। यहाँ पर देवदार, बुरांश के पेड़ भी बहुत है जो मन को अलग ही तरह से आनंदित कर रहे थे। आप इनकी सुंदरता को देखकर अपने आप ही रुक जाते हो। मैंने भी एक दो जगह अपनी कार को रोड के साइड लगाया थोड़ी देर रुक कर आस पास की सुंदरता को देखा और कैमरा को कुछ काम दिया। मतलब कुछ फोटो लिए।

कानाताल में बहुत रिसोर्ट है। क्लब महिंद्रा से लेकर और कई जाने माने रिसोर्ट। इन में ठहरने के लिए इनकी मेम्बर्सशिप लेनी होती है। कानाताल एक सुंदर व प्राकृतिक नजारो से भरी जगह है। पास में एक पार्क भी है, जहाँ आप घूमने जा सकते हो। यहाँ आप सात आठ किलोमीटर की ट्रैकिंग का मज़ा ले सकते है। लकिन हम यहाँ नहीं रुके क्योकि हमने कद्दूखाल जाना था, कद्दूखाल से ही माँ सरकुंडा देवी के लिए पैदल रास्ता जाता है। वैसे सुरकुंडा देवी मंदिर को एक रास्ता ज्वारना  गांव से भी जाता है जो जंगल से होकर जाता है, अगर ट्रैकिंग करके किसी को सुरकुंडा जाना हो तो वह इस रास्ते से जाते है। ज्वरना गांव भी सड़क पर ही है और हमारे रास्ते में पड़ा भी लकिन हमे कद्दूखाल वाले रास्ते से जाना था इसलिए हम आगे बढ़ गए।
हम कुछ ही मिनटों में कद्दूखाल पहुच गये। रास्ते में हल्की हल्की बारिश होने लगी थी। कद्दूखाल में बारिश कुछ तेज हो गयी थी। मैंने कार वही रोड के एक साइड में लगा दी और एक दुकान पर जा पँहुचे, दुकान से प्रसाद ले लिया गया व ऊपर के लिए पानी की बोतल और कुछ खाने के ले लिया। यहाँ एक गड़बड़ हो गयी अब बारिश तेज़ हो गयी। और हम देवांग का रेनकोट नहीं खरीद सके। मेने एक काम किया अपना रेन कोट का ऊपर का हिस्सा देवांग को पहना दिया। उसको वह ओवरकोट का काम कर रहा था, मैने वही पर मिल रहे 30 रुपया का एक पन्नी का फोंचु खरीद लिया।

अब हम सुरकुंडा मंदिर तक जाने के लिए तैयार थे। हम लगभग दोपहर 12 बजे ऊपर की तरफ चल पड़े
कद्दूखाल से सुरकुंडा देवी मंदिर तक का लगभग 2km पैदल का खड़ा रास्ता है। क्योंकि कद्दूखाल लगभग 2300 मीटर ऊँचाई पर है और सुरकुंडा देवी मंदिर लगभग 3000 मीटर पर स्थित है। हमे लगभग 700 मीटर की दूरी 2km में करनी होगी वो भी सीढ़ियों पर या स्लैप पर। रास्ता अच्छा बना है पक्का बना है, जब में  14 साल पहले यहाँ आया था तब ये रास्ता पक्का नहीं बना था। रास्ता भी टुटा हुआ था लकिन अब रास्ता पक्का बना है। बीच बीच में तीन के शेड डाले हुए है और बैंच भी लगे है। जिसपर यात्री बैठकर आराम कर सकते है। यहाँ पर मुझे हर यात्री ख़राब हालात में मिला। सब थके थके हुआ से लगे। क्योकि एक तोह चढ़ायी ज्यादा थी फिर ऊपर से बारिश हो रही थी। बारिश की वजह से ऊपर से नीचे का कोई भी द्र्श्य नहीं दिख रहा था। दूर पहाड़ो को भी कोहरे ने ढका हुआ था। मुझे चलने में कोई परेशानी नहीं हो रही थी ना ही देवांग को। वो भी मस्ती में चले जा रहा था। लकिन मेरी श्रीमती को साँस फूलने व चक्कर की शिकायत हुई लकिन हम आराम आराम से चलते हुए ऊपर पंहुच ही गये।

ऊपर मंदिर परिसर में माँ सुरकुंडा देवी का मंदिर बना है और पास में ही भैरव मंदिर और शिव मंदिर और एक हनुमान मंदिर बना है। हम सुरकुंडा देवी मंदिर के अंदर गये। माँ की आराधना की फिर प्रसाद व कुछ दान देकर वही फर्श पर बैठ गए। एक भक्त माँ के लिए छत्र लेकर आया। पंडित जी ने वो छत्र माता के चरणों में चढ़ाया। मेने पंडित जी से पूछा की यहाँ माता के किस रूप की पूजा होती है तब पंडित जी ने बताया कि यहाँ पर गोरी माता की पूजा होती है और यहाँ सती माता का सर गिरा था। आपको दक्ष प्रजापति वाली कहानी तो पता ही है उस कथा के अनुसार जहां आज सुरकुंडा देवी मंदिर है यही पर माता सती का सर गिरा था। इसलिए यह माता का 52 शक्तिपीठो में से एक है। यहाँ पर गंगा दशहरा के दिन मेला भी लगता है।

मंदिर के अन्दर फोटो खींचना मना है। जबकि कुंजापुरी में फोटो लेना मना नहीं था , चलो जैसी जिस मंदिर की व्यवस्था। हम मंदिर से बाहर आ गए, एक जगह सब लोग नारियल फोड़ रहे थे, मैंने भी अपने प्रसाद वाला नारियल फोड़ा। फिर बारी बारी से सभी मंदिरों में गये। बारिश अभी भी हो रही थी जिसके वजह से हमे ऊपर से दिखने वाले नज़ारे भी नहीं दिखे। जब मौसम साफ होता है तब सुरकुंडा देवी से हिमालय की बहुत सी उच्च पर्वत चोटियाँ दिखती है, यहाँ से उत्तराखंड की ज्यादातर सभी उच्च पर्वत माला के दर्शन हो जाते है लकिन मुझे ऐसा अवसर दोनों बार में से एक बार भी नहीं हुआ। जब में पिछली बार आया तब यहाँ पर बहुत बर्फबारी हुई थी तब भी मौसम खराब था और आज बारिश की वजह से। चलो कोई बात नहीं अगली बार अगर कभी आया तब शायद दिख जाए।

कुछ देर यही बिता कर हम नीचे उतर आये। नीचे दो तीन ढ़ाबे बने है वहाँ हमने खाना खाया। यहाँ पर एक परिवार और बैठा था जिसने बताया कि वो भी कल ही दिल्ली से चले थे लकिन रुड़की से देहरादून वाली सड़क पर डाट वाली माता के मंदिर के पास सुरंग के पास लगे जाम में तीन घंटे फंसे रहे फिर मंसूरी रोड पर भी जाम मिला, अब वो हरिद्वार जा रहे है मैंने उनको कहा कि आप वापिस ना जा कर चम्बा की तरफ से जाये वो रोड आपको खाली और जल्दी पहुचा देगा। होटल वाले ने भी यही सलाह दी की चम्बा की तरफ से जाओ। 

हम खाना खाने के बाद धनोल्टी की तरफ निकल गए। कद्दूखाल से धनोल्टी केवल सात किलोमीटर की दूरी पर है। ये शांत व सुंदर जगह है जहाँ मसूरी में शोर सराबा और चमक धमक है, वही धनोल्टी में पेड़ है, शांति है। वैसे अब यहाँ भी बहुत होटल बन गए है। फिर भी यहाँ पर हम प्रकर्ति को काफी करीब से महसूस करते है।

अब बारिश रुक गयी है मेने एक होटल देख कर एक कमरा बुक कर लिया है, होटल से कुछ ही दूर ईको पार्क है लकिन थके होने के कारण वहा जाने को मन नहीं है।फिर भी देवांग के कहने पर मैं उसको लेकर कुछ देर होटल के पास ही घूमता रहा, फिर ईको पार्क तक भी हो आये। ईको पार्क बंद हो गया था क्योकि वह शाम 6 बजे तक ही खुलता है, ईको पार्क कल सुबह जाएंगे ऐसा सोचकर हम वापिस होटल आ गए। अब मौसम एकदम साफ हो गया था और रूम की खिड़की से दूर बर्फ की पहाड़ियां दिख रही थी। पक्का तो नहीं था की यह कौन सी पीक है, पर गंगोत्री व स्वर्गारोहिणी  पीक हो सकती है। देवांग खिड़की पर खड़े होकर उन स्वेत बर्फ से ढकी पहाड़ियों को देख रहा था और अपने बाल प्रश्नों की बौछार कर रहा था। की वहाँ कौन रहता है? वहां भगवान रहते है? हम वहा जा सकते है ? मेने कुछ जवाब दे दिए की वहा कोई नहीं रहता है क्योकि वह बर्फ ही बर्फ होती है। फिर भी वह उन पहाड़ियों पर जाना चाहता था। कुछ देर बाद रूम पर खाना आ गया और हम खाना खाकर जल्द ही सो गए।


अब कुछ फोटो देखे जाये इस यात्रा के......




चम्बा मसूरी रोड पर कही 


कानाताल के आसपास 

मैं (सचिन ) और देवांग 

रास्ते से दिखता एक गांव 

कानाताल 

देवांग अपनी ही धुन में है (कानाताल )



एक मोड़ पर  कोहरे का कहर दिखा। 

दूरी बताता एक शाइन बोर्ड। 

कद्दूखाल पर सुरकुंडा देवी की यात्रा का प्रवेश द्वार। 

बीच बीच में ऐसे शेड बने है जहा आप रुक आराम कर सकते है। 



सुरकुंडा मंदिर का ऊपर का द्वार। 


सुरकुंडा देवी मन्दिर। 


एक सेल्फी 

मंदिर के अंदर का दर्श्य। 

बादल ही बादल और कुछ नहीं। 



ज्वरना की तरफ आता रास्ता। 

नीचे कद्दूखाल दिखता हुआ पर कोहरा ,बादल की वजह से कुछ भी नजारा नहीं दिखा। 

धनोल्टी से दिखती बर्फ की ऊँची पर्वत चोटियां।