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सोमवार, 28 अप्रैल 2014

ऊटी से कुन्नूर तक यात्रा(toy train)

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22 जून 2013 की सुबह जल्दी ही आंख खुल गयी. ज्यादात्तर जब हम बाहर जाते हे तब सुबह जल्दी ही उठना चाहिए, जिससे हम अपने बनाये कार्यक्रम के हिसाब से पूरे दिन घूम-फिर सके.
खिडकी से बाहर देखा तो बारिश हो रही थी.एक बार तो मन मे आया की लेट जाओ, जब बारिश रूकेगी तभी चलेगे. पर मन मे आया की "नही जल्दी उठो ओर चलो ये तो पडती ही रहेगी"
चाय पीने के बाद नहाधौकर तैयार हो गए चलने के लिए.नाश्ते का आर्डर कर दिया सभी ने आलू के पराठे दही के साथ चट कर डाले ओर निकल पडे रेलवे स्टैशन की तरफ क्योकी आज हमे ऊटी से कुन्नूर तक ट्रेन की यात्रा करनी थी.होटल से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर
ऊटी का रेलवे स्टैशन था,इसलिए हम पैदल पैदल ही चलते हुए वहां पहुचं गए. यह ऊटी के बीचो बीच एक मेन चौराहे के पास ही बना है.यह रेलवे स्टैशन बहुत छोटा सा है,ओर सिंगल व छोटी लाईन का है इस पर एक छोटी सी ट्रेन(शायद भाप या डिजल वाला इन्जन) कुन्नूर तक चलती है.टिकेट तो हमने दिल्ली से ही बुक करा लिए थे एक तरफ के इसलिए हमे टिकेट काऊंटर पर लगी लाईन मे नही लगना पडा.ओर सीधे पहुचें प्लेटफार्म पर,दो चार मीनट मे ट्रेन भी आ पहुची.लोग ट्रेन के साथ फोटो खिचवा रहे थे तभी एक सीटी बजी ओर हम अपनी सीटो पर बैठ गए ओर चल पडे कुन्नूर की ओर..
ट्रेन मे बैठ कर अच्छा महसूस हो रहा था.जल्दी ही पूरी ट्रेन की सीटे यात्रीयों से भर गई.स्टैशन मास्टर ने झंडी दिखाई ओर ट्रेन चल पडी अपनी मंजिल की ओर,
ऊटी से कुन्नूर के बीच 22 किलोमीटर की दूरी के बीच 6 या 7 स्टैशन पडते है जो की बहुत छोटे थे. इन पर यह ट्रेन एक-दो मीनट के लिए रूकती ओर सीटी बजा कर फिर चल पडती. रास्ते मे कितने मोड,झरने, कितनी गुफा व पूल आए, याद नही पर यह मन मोह लेनी वाली यात्रा थी.अगर कोई ऊटी जाए तो उसे इस ट्रेन की यात्रा जरूर करनी चाहिए.जंगलो से निकलती व चाय के बगानो को पार करती यह छोटी सी ट्रेन बडी अच्छी दिखती है.रास्ते मे कई गांव पडते है जहा बच्चे ट्रेन का इंतजार करते रहते है ओर यात्रीयों को बाय बाय करते है.
यात्री भी इस यात्रा का पूरा लुफ्त उठाते है जब भी कोई गुफा आती पूरी ट्रेन मे यात्रीयों का शोर गुंजने लगता.बच्चे तो बच्चे,बडे भी शोर मचाने मे कम नही थे.यह ट्रेन पहाडीयों के बीच से तो कभी खाई की तरफ तो कभी सडक के साथ साथ चलती है जब ट्रेन किसी मोड पर मुडती तब उसको देखने व फोटो खिचने के लिए यात्री खिडकीयों की तरफ रूख करते.
इन सब के बीच कुन्नूर कब आ गया हमे पता ही नही चला.स्टैशन पर गाडी रूकते ही हम बाहर निकल पडे,एक बाजार मे पहुचे.
यहा पर सभी प्रकार की दुकाने है ओर सभी प्रकार का समान उपलब्थ है.यहा पर सिल्क की साडियो की दुकान बहुत है वो इसलिए की साऊथ इन्डिया मे ज्यादातर औरते व लडकियां सिल्क की साडी व कुर्ते ही पहनती है.थोडी देर ऐसे ही कुन्नूर के बाजार मे घुमे.
कुन्नूर के चाय के बगान बडे लोकप्रिय है जहा से चाय विदेशो तक जाती है (यह हमे एक चाय विक्रेता ने बताई).हम बागान मे जाना तो चाहते थे,पर हम तेज बारिश की वजह से वहा जा ना सके, इसलिए वापिस स्टैशन की तरफ चल दिए,रास्ते मे एक होटल पर खाना खाकर स्टैशन पहुंचे. ट्रेन के लिए पता किया तो जबाब मिला की अभी 15मिनट बाद ट्रेन आएगी, जब तक मैने ऊटी तक के टिकेट ले लिए ,जब टिकैट के पैसे दिए तो पता चला की कुन्नूर से ऊटी तक 8रू० का किराया है जबकी दिल्ली से बुक कराने पर120 रू० के आसपास लगे थे एक सवारी के. मुझे बहुत हैरत हुई की सिर्फ 8रू०, बस थोडे समय के लिए हम स्टैशन पर बैठे रहे कुछ समय के बाद ट्रेन आ गई ओर हम उस मे जा बैठे.ओर वापिस ऊटी की तरफ चल पडे.....
यात्रा जारी है..........

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

ऊटी.ooty(उदगमंडलम)

21जून की सुबह 5:30 पर कोयंमबटूर रेलवे स्टैशन उतरे.स्टैशन के बाहर आते ही टैक्सी वालो ने घेर लिया.ओर हर कोई हमे टैक्सी मे बैठाने को उतारू थे पर हम भी ठहरे उत्तर भारतीय उनको चकमा देकर एक आटो मे बैठ गए(जो सात-आठ सवारी ले जाते है).आटो वाले से बोल दिया की बस स्टैंड पर ले चल जहां से ऊटी की बस मिल जाए.10 मिनट मे ही हमे उसने बस डिपो पर उतार दिया.बस खडी थी पर बताया गया की 7 बजे चलेगी.बस स्टैंड पर ही फ्रैश होकर बाहर एक होटल पर नाश्ता करने चले गए.नाश्ते मे क्या मिल सकता था वहां सिर्फ डोसा,ईडली या उत्तपम पर यहा पर सब्जी व पूरी भी थी लेकिन तैयार नही थी तो फिर डौसा खा लिया गया.नाश्ता करने के पश्चात हम वापिस बस डिपो पर आ गए.सीट पर जाकर समान रख दिया.थोडी देर मे ड्रॉयवर साहब आ गए ओर गाडी स्टार्ट कर दि अब बस मे काफी लोग आ गए थे.मैने देवांग का टिकेट भी ले लिया जबकी वो फ्री मे भी जा सकता था.
तकरीबन 7बजे के आसपास हम ऊटी के लिए रवाना हो गए.मौसम सुहाना था यहां.
कोयंमबटूर एक बडा शहर है यहा पर सिल्क की साडीयो की बहुत दुकाने है यह शहर चारो तरफ से पहाडीयो ये घीरा है जैसे देहरादून.
एयरपोर्ट भी है यहा पर.कोयम्मबटूर से ऊटी की दूरी तकरीबन 105 kmहै ओर रास्ता पुछो मत इतना सुन्दर की देखते ही रहो,रास्ते मे नारियल के बाग लगे थे जहा देखो वही नारियल,एक जगह बस रूकी जिसे चाय पीनी हो पी सकता है पर वहा पर नारियल पानी बिक रहा था मेने पुछा की कितने का नारियल वाले मे बताया की कोई भी ले लो 10रू० का 5 नारियल ले लिए,पानी से भरपूर व पानी भी बहुत मीठा हमारे यहा दिल्ली मे तो एक महिने पुराने मिलते है.बाद मे उसकी गिरी भी खाई गई.फिर हम बस मे बैठ गए ओर बस चल पडी अपनी मंजिल की ओर.

अब थोडी ठंड बढ गई थी.हल्की हल्की बारिश भी हो रही थी.बस कुन्नुर जाकर रूकी यहा से ऊटी केवल 22 km रह जाता है.कुन्नुर भी एक हिल स्टैशन है जो अग्रेजो ने बसाया था.अग्रेजो ने यहा चाय की खेती की जो आज तक यहा होती है यहा पर चाय के बहुत बागान है.सुन्दर जगह है यह भी.यहा से एक खिलौना रेल ऊटी तक चलती है.जैसी शिमला मे चलती है.

10:30 पर हम ऊटी पहुंच गए.जहा से हम अपने होटल लेक व्यू पहुंचे. नहा धौकर हमने खाने के लिए पुछा तो यहा पर चपाती व पराठे मेन्यू मे थे.खाना खाकर हम पैदल पैदल झील के किनारे किनारे सडक से नीचे चलते रहे.बहुत अच्छा लग रहा था. कयोकी हम मेन रास्ते से ना चलकर पेडो के बीच चल रहे थे.तभी हमने देखा रेल की पटरी,यहा रेल की पटरी कहा से आई.शायद पहले चलती हो यहा पर,
लेकिन थोडी देर पश्चात एक छोटी सी ट्रेन उस पर चलती आ रही थी.पुछने पर पता चला की आगे बोट हाऊस है जहा से यह ट्रेन चलती है.

हम बोट हाऊस तक जा पहुचे.तभी तेज बारिश होने लगी हमने अपने रेनकोट पहन लिए ओर ऊटी मार्किट की तरफ चल पडे.यहा बारिश कभी तेज तो कभी हल्की पडने लगती है.

यहा पर चॉकलेट की बहुत दुकाने है या ये कहे की लगभग हर दुकान पर चॉकलेट मिलती है चाहे वो कपडो की दुकान हो या फल या किराने की दुकान.यह चॉकलेट यही पर बनती है हमने भी थोडी सी चॉकलेट खाई,स्वाद अच्छा था.

ऊटी नीलगिरी पहाडी पर सबसे ऊंचा हिल स्टैशन है.यह दक्षिण भारत का सबसे ऊंचा व ठंडा स्थान है,यहा जून मे भी दिल्ली की सर्दी याद आ गई.अगर तापमान नापने का यंत्र होता तो कम से कम 6-7 डिग्री निकलता.यहा पर बादल कभी ऊपर तो कभी नीचे ऐसा ही खेल दिखाते रहते है.हरीयाली से भरपूर ये पहाड सब का मन मोह लेने वाले है. यहां कभी भी आ सकते है मौसम मजेदार ही मिलेगा.
यहा पर कई गार्डन है जैसे रोज गार्डन व बोटनिकल गार्डन.यहा पर एक रेलवे स्टैशन भी है जिसपर टोयट्रेन चलती है,यहा पर एक झील भी है जो तीन km क्षेत्र मे फैली है उसी के पास एक डियर पार्क भी है.घुमने के लिए काफी जगह है यहा,फिल्मो की सुटिंग के लिए यह एक आदर्श जगह है.

शाम होने के कारण अब ठण्ड बढने लगी थी,हम गरम कपडे नही ले गए थे पर अपने व बच्चो के गरम इनर रख लिए थे, लेकिन हमने मार्किट से अपने लिए व बच्चो के लिए गर्म कपडे खरीद ही लिए.
यहा हमे एक पंजाबी होटल भी मिला हमने उससे कुछ खाना पैक करा लिया ओर रात 7:30 के करीब होटल आ गए.होटल मे आ कर खाना खाया.
रोज डोसा खाकर मन ऊब चुका था तो यह खाना बडा स्वादिस्ट लगा.
कल कहां कहां जाना है इस पर भी विचार हुआ.ओर सोने के लिए चले गए.

यात्रा जारी है........

रविवार, 20 अप्रैल 2014

तिरूपति बाला जी(वेकेंटेश्वर भगवान)

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20 तारिख की सुबह 4 बजे उठ गये। उठ क्या गए नींद ही नहीं आई।यह डर था कही बस हमारी वजह से लेट न हो जाए इसलिए नींद ही नही आई.जल्दी नहा धौकर बस मे बैठ गए. थोड़ी देर बाद बस चल पड़ी। बस एक जगह रुकी एक मंदिर था। हम ने सोचा त्रिपुति बाला जी आ गया। पर पता चला की यह एक प्राचीन लक्ष्मी मंदिर है ,मंदिर  के बाहर कमल के फूल बिक रहे थे, वहा पर जायदातर भक्त कमल का फूल माँ लक्ष्मी को चढ़ाने के लिए ले रहे थे। ओर एक बात यहाँ टिकट लगता है,दर्शन करने के लिए। हम ने टिकट लिया और लाइन में लग गए। 
तभी एक औरत हमारे पास आई और कुछ तमिल में बोला और अपनी सोने की घडी उतार कर मुझे दे गई। ओर थोड़ी दूर पर टंकी पर जा कर हाथ मुँह धोने लगी। तक़रीबन 15 मिनट बाद आई ओर फिर तमिल में कुछ बोल कर चली गई,में यह सोचता रहा की यहाँ के लोग कितना विष्वास कर लेते है। वह भी अजनबी पर, यह बात मुझे समझ में नहीं आई पर मैंने उसका विस्वास कायम रखा। 
 दर्शन करने के बाद हम वापिस बस मैं बैठ गए.बस वाले ने बीच मे सभी को नाश्ते के लिए एक जगह उतार दिया ओर बोला यहा से आपको हम दूसरी बस मे ले जाएगे क्योकी मन्दिर का रास्ता छोटा था वहा पर बडी बस नही जा सकती है हम सब लोग खाने के लिए चल पडे यहा पर चावल ,उत्तपम,डोसा,इडली आदी ही मिलती है इन्हे खाकर मन अब ऊब गया था अगर कही पंजाबी ढाबा मिल जाता तो मजे ही आ जाते पर अफसोस डोसा खाकर ही नाश्ता करना पडा.खाना खाने के बाद हम दूसरी बस मे बैठ गए ओर बस चल पडी अपनी मन्जील की ओर.
मुसकिल से दो चार किलोमीटर ही चले होगे की  बस एक जगह फिर रूकी ओर सभी सवारीयो को उतार कर तलाशी देनी पडी.यह जगह आन्ध्रप्रदेश की सीमा थी क्योकी हम चैन्नई से चले थे वो तमिलनाडू मे है ओर तिरूपति आन्ध्रा मे,तलाशी के बाद हम बस मे सवार हो कर निकल पडे तिरूपति के दर्शन के लिए....

तिरूपति बाला जी भारत मे सबसे धनी भगवान है यहा पर दुनियां भर से लोग आते है ओर भरपूर चढावा चढाते है कोई सोना,कोई चांदी ओर पैसे भी चढते है.यहां पर एक कक्ष भी है जहा पर कुछ लोग चढाए हुए पैसे व सोना-चांदी व जवारात की गिनती करते रहते है ओर नोटो की तो गड्डीया पर गड्डीया रखी रहती है. मन्दिर तिरूमाला पर्वत पर स्थित है जो काफी ऊचाँई पर है,कहते है की भगवान वैकंटेश्वर जो विष्णू भगवान के अवतार ही है,सभी की मनोकामनाएं पूरी करते है.कुछ लोग यहा पर मनोकामनाएं पूरी होने पर अपने बाल भी कटवाते(मुंडन)है.
यहा पर दर्शन करने के लिए भीअलग अलग श्रेणी बनाई गयी है,एक जो फ्री है पर दर्शन मे काफी समय लग सकता है एक शायद 50रू० वाली थी ओर एक 300रू० वाली जिसमे भी एक दो घन्टे लग जाते है दर्शन के लिए.300 रू मे दो लड्डू भी मिलते है प्रसाद के रूप मे.
तिरूपति बाला जी का मन्दिर अन्दर से पूरी तरह से सोने का बना है जो दिखने मे बहुत ही सुन्दर लगता है.तिरूपतिबाला जी के बराबर मे ही लक्ष्मी माता का मन्दिर है.
यहा पर एक पत्थर है जिसपर लोग अपनी मनोकामनाएं अपनी अंगुलियों से लिखते है कहते है की भगवान वैकेंटेश्वर की कृपा से मनोकामनाएं पूर्ण भी होती है.

बस ने हमे लगभग10 बजे तिरूपति मन्दिर पर उतार दिया.बस वाले ने अपनी जान पहचान की दुकान पर सभी का समान जैसे कैमरा,मोबाईल ओर अन्य समान जो अंदर नही ले जा सकते वही रख वा दिया ओर चल पडे दर्शन के लिए.यहा पर यात्रीयों के लिए रूकने का इन्तजाम भी है.
हम सब यात्रीयो को एक गलियारे मे भेज दिया जहा से हमे ऐसे 7गलियारे ओर पार करनेपडे,बहुत भीड थी यहा पर .
कुछ देर बाद हम मन्दिर के  प्रांगण मे प्रवेश किया.सभी लोग गोविन्दा गोविन्दा कह रहे थे. बहुत भीड थी यहा पर मेने देंवाग को अपने कंधो पर बिठा लिया ओर भीड के साथ मन्दिर मे प्रवेश किया,सामने भगवान तिरूपति बाला जी की मूर्ती के दर्शन हुए उनको नमस्कार करते हुए मै बाहर आ गया.मन्दिर के अन्दर चावल का प्रसाद मिल रहा था पर मैने नही लिया क्योकी हमारे यहा एकादशी को चावल नही खाते है पर बाद मे पता चला की अगर तिरूपति के मन्दिर मे एकादशी के दिन यदी चावल रूपी प्रसाद खा ले तो वह हर एकादशी को चावल खा सकता है.यह सुनकर बडा अफसोस हुआ की चावल क्यो नही खाए.

मन्दिर मे बहुत दान पेटी रखी हुई थी, व हर कोई उनमे कुछ न कुछ अपने समर्थ से डाल रहा था.मन्दिर से बाहर आ गए ओर दुकान पर पहुचं कर ,अपना समान ले लिया ओर कुछ देर वही बैठे रहे.जब सभी यात्री आ गए तब बस चल पडी,यहा मन्दिर तक दो रास्ते है एक ऊपर आने का ओर दूसरा नीचे जाने का.
बस वही रूकी जहां सुबह हमने नाश्ता किया था.खाना भी वही खा लिया.चपाती आर्डर की तो चावल व मैदा की लगी.बेस्वाद थी इसलिए एक ही खाकर रह गया.
यहां से पुरानी बस फिर मिल गई जिससे हम चैन्नई से आए थे.शाम के 7 बजे हम चैन्नई आ गए ओर चल पडे रेलवे स्टैशन की तरफ क्योकी यहा से हमे9:40 की ट्रेन से कोयम्मबटूर जाना था.

यात्रा अभी जारी है..........

गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

चैन्नई,chennai

16जून2013 को जो केदारनाथ मे हुआ,उसे देखकर पहाडो पर जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया.तभी मेरे करीबी रिश्तेदार(प्रवीन)जी जो पेशे से वकील है उन्होने तिरूपति बालाजी,व ऊटी घुमने का प्रौग्राम बनाया तो हमसे भी चलने के लिए  पूछा तो हमने हां बोल दी.प्रवीन जी ने ही सारा प्रोग्राम बनाया की कहां रूकना है कब चलना है कैसे चलना है वगेरहा वगेरहा.तो फाईनल हुआ की 19जून की सुबह6:40पर हवाईजहाज से चैन्नई के लिए निकलना है ओर वहा से  बस द्वारा तिरूपती बाला जी. यहां से पैकेज ले लिया जिसमे बस,होटल,दर्शन व प्रसाद सब चीजे 1500रू० प्रति व्यक्ति दिया गया.सारा टूर प्रवीन जी ने दिल्ली से ही बुक कर दिया था

समय कम था पैकिंग भी करनी थी क्योकी दक्षिण भारत मे मानसून आ गया होगा तो उससे बचने के लिए बाजार से तीन रेनकोट भी ले आए.एक अपने लिए,एक पत्नी जी के लिए ओर एक अपने बेटे(देवांग) के लिए. ओर अन्य जरूरत का समान की पैकिंग कर के एक जगह रख दिया क्योकी कल सुबह एयरपोर्ट के लिए जल्दी निकलना था.
हवाईजहाज का नाम सुनकर पत्नी कुछ डरी सी थी की उल्टी तो नही आ जाएगी?
क्योकी वह पहली बार हवाईजहाज मे बैठ रही थी,मै पहले कश्मीर यात्रा के दौरान हवाई यात्रा कर चुका हुं.(पर किसी को कोई भी परेशानी नही हुई)सब चीज एक जगह रखकर 12 बजे सो गए.

19जून 2013 की सुबह 4बजे ऊठ गए ओर जल्दी जल्दी नहा धौकर तैयार हो गए.थोडी देर मे प्रवीन जी सहपरिवार(तीन ही थे हमारी तरह)घर पर आ गए.साले साहब भी थे उनके साथ अपनी गाडी लिए.हम जल्द ही निकल पडे ओर 5:15पर एयरपोर्ट पहुंच गए.
बोर्डिग पास व अन्य जरूरी कार्य करते हुए हम 6बजे के आसपास एयरपोर्ट पर बने यात्रीयो के लिए प्रतिक्षा कक्ष मे बैठ गए.पास ही कैंटीन थी वहा पर कोल्ड ड्रिंक व बर्गर खा लिए नाश्ते के तौर पर ओर एक बस मे बैठ गए जो हमे स्पाईसजैट के हवाईजहाज तक ले गई.हवाईजहाज मे बैठ कर दोनो बच्चे बडे खुश हो रहे थे.थोडी देर बाद हवाईजहाज ने उडान भरी ओर सुबह 10 बजे चैन्नई उतार दिया,पूरे तीन घन्टे लगे हमे दिल्ली से चैन्नई तक.

एयरपोर्ट से बाहर आकर एक टैक्सी की ओर चल पडे चैन्नई शहर की तरफ.बहुत गर्मी थी यहां पर.सडके बहुत छोटी छोटी.चारो तरफ गाडी ही गाडी,फ्लाईओवर काफी है पर सडको पर जाम की स्थीती थी ऐसे लग रहा था जैसे चांदनी चौक मे हो.मेट्रो रेल का काम हर सडक पर पूरे जोर शोर से चल रहा है.क्रिक्रेट के स्टेडियम के सामने से होते हुए.एक चौक पर उतर गए.वहा से रास्ता पुछते हुए होटल मे आ गए.कमरे मे आकर थोडा आराम किया गया.

तकरीबन 12बजे हम बाहर घुमने के लिए निकले,पास ही मरीना बीच था समुंद्र देखने व नहाने की इक्छा भी थी इसलिए निकल पडे मरीना बीच की तरफ.होटल से तीन किलोमीटर था इसलिए एक आटो कर लिया90र० मे.मरीना बीच पहुंचे.
काफी दूर पैदल चलना पडा गर्म रेत पर.कुछ दुकाने भी लगी थी यहां पर जैसे नारियल पानी व अन्य खाने की चीजो की.यहा पर मछली के पकौडे भी तले जा रहे थे ओर उनकी दुर्गंध से मुझे बडी तकलीफ हो रही थी उनको पार कर हम समुंद्र के किनारे पर पहुंचे.

समुंद्र बहुत विशाल व सुंदर लग रहा था.उसकी लहरे हमे बुला रही थी पर बीच बीच मे एक दो विशाल लहरे हमे बाहर ही रहो का संदेश दे रही थी.नहाने का मन हुआ ओर निकाल दिए कपडे ओर कुद गए सागर की लहरो मे.यह मेरा पहला अनुभव था सागर की लहरो के बीच,पर बहुत मजा आ रहा था,एक लहर इतनी तेज आई की मुझे तकरीबन 10 फुट आगे किनारे की तरफ फैंक दिया जिस कारण मुंह मे नमकीन पानी पहुंच गया.पता नही धीरे धीरे लहरे तेज होती जा रही थी इसलिए हम बाहर आ गए.
वही पर कुछ घोडे वाले घुम रहे थे तो बारी बारी हमने भी घोडे की सवारी कर ली,ओर चल पडे होटल की ओर,आटो लिया ओर उसी चौक पर उतर गए.
मेने चैन्नई मे एक बात देखी की यहा पर सभी औरते सोने से बनी वस्तुएं खुले आम पहनती है ओर गले मे हार से लेकर चैन पुरी तरह से सज- धज कर रहती है हमारे यहां दिल्ली व उत्तर प्रदेश मे तो झपटमारो की चांदी हो जाए अगर यहा भी एसे ही सोना पहनने लगे.मेरे साथ एक घटना भी घटी वो मे आगे बताऊगा.

बच्चो को  व हमे भी बहुत जोरो से भूख लग रही थी.तो हम पहुंचे एक साऊथ इन्डियन भोजनालय(पंजाबी था ही नही) पर चावल व कई तरह की चटनी ,सांमभर व पापड खाने को मिला पर यहा हमे चम्मच नही मिली जब हमने चम्मच की फरमाईश की तब जाकर चम्मचे मिली हमे. सभी ने चावल खाना शुरू किया मैने तो वहा के लोगो की तरह हाथ से चावल खाने शुरू कर दिये जिसे देखकर हमारे परिवार के लोग हसंने लगे पर मेने परवाह किये बिना भोजन समाप्त किया.भोजन करने के बाद होटल पहुंच कर सभी ने थोडी थोडी नींद ले ली.
शाम 6बजे ऊठे,चाय पी ओर बस स्टैन्ड की तरफ चल दिए जहां से हमे तिरूपती बाला जी के लिए बस मिलनी थी. रास्ते मे फलो की दुकान पर छोटे छोटे,सुन्दर सुन्दर केले देखे 6रू० का एक केला था.केले खाए ओर आटो से स्टैन्ड पर पहुंचे. बस मे सीट ली ओर देखा हिन्दीभाषी कोई भी नही था सब किटर पिटर कर रहे थे. बस रात 7बजे चैन्नई से तिरूपती के लिए चल पडी.रास्ते मे एक जगह खाना खाने के लिए रूकी.(जगह का नाम याद नही है नही तो लिखता जरूर)ओर रात को 1बजे किसी होटल मे रूकवा दिए ओर बोला गया की सुबह 4बजे बस यहा से तिरूपति बाला जी के लिए निकल पडेगी इसलिए सभी लोग यही से सुबह नहाधौकर निकले.

अगली पोस्ट मे तिरूपति तक की यात्रा की जाएगी.
यात्रा जारी है........

मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

हरिद्वार,Haridwar

हरीद्वार...

हरीद्वार हिन्दुओ का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है.इसे प्राचीन वेदो व ग्रंथो मे मायानगरी भी कहा गया है.हर कोई यहा आना चाहता है,यह उत्तराखण्ड मे आता है.यही पर मां गंगा समतल हो जाती है.कहने का मतलब पहाडो से उतर कर मैदानी क्षेत्र मे प्रवेश करती है. यह उतराखंड का प्रवेश द्वार भी कहलाया जाता है क्योकी हरीद्वार से ही उत्तराखण्ड के धामो(गंगोत्री,यमुनोत्री,केदारनाथ, बद्रीनाथ व हेमकुंड) की यात्रा शुरू होती है.

मां गंगा पाप को हरने वाली व मोक्ष देनी वाली है ओर गंगा मईयां का हरीद्वार को भरपूर प्यार मिला है,हरिद्वार मे मां गंगा मे नहाने के लिए बहुत घाट है पर हर की पौडी पर नहाने का महत्व ज्यादा है क्योकी यह वोही जगह है जहा पर समुंद्र मँथन के दौरान निकला अमृत की बुंदे गिरी थी ओर इस कारण ही यहा प्रत्येक 12 वे साल कुम्भ मेला व हर 4साल बाद अर्द्धकुम्भ मेला लगता है जहा पर देश विदेश से बडे बडे संत,मुनी व लोग सिरकत करने आते है.

हरिद्वार दो पहाडो के बीच मे स्थित है एक पहाड पर मां चन्डी देवी विराजमान है ओर दूसरे पहाड पर मां मन्शादेवी,यहा पर दर्शन करने के लिए पैदल रास्ता है पर  केबल कार(उडनखटौला) से आप मिनटो मे दर्शन कर सकते है.

हरीद्वार मन्दिर व आश्रमो की नगरी है यहा पर सैकडो धर्मशालाएं भी है जहा पर आप रूक भी सकते है,यहा पर रूकने के लिए सभी प्रकार के होटल भी मिल जाते है सस्ते व महंगे दोनो तरह के.

हरीद्वार के पास ही कनखल नाम की जगह भी है जो भगवान भोलेनाथ की सुसराल भी है यही वो जगह है जहा मां सती अग्नी कुंड मे समा गयी थी.क्योकी राजा दक्ष ने यज्ञ मे सभी भगवानो को बुलाया पर सती के पति व भगवान शंकर को नही बुलाया.इसलिए सती ने यहां यज्ञ की अग्नी मे अपने आप को समर्पित कर दिया.यहा पर दक्षप्रजापती महादेव का मन्दिर भी है.

हरीद्वार से हर साल सावन मास मे दूर दूर से कावंडीये भगवान आशुतोष को प्रसन्न करने के लिए कावंड के रूप मे गंगा जल ले जाते है तब यहां एक उत्सव का माहौल रहता है.

मै भी हरीद्वार बचपन से अब तक पता नही कितने मर्तबा हरीद्वार जा चुका हुं. मुझे हरीद्वार मे जाकर व गंगा जी मे नहा कर मन को शान्ति की अनुभूती होती है
शाम को हर की पौडी पर होने वाली गंगा मईयां
की आरती  को देखने के लिए हर भक्त पहले ही जगह ले लेता है नही तो खडे होने की जगह भी नही मिल पाती है,हर व्यक्ति को यह आरती देखनी चाहिए इसे देखने व उस समय का माहौल देव लोक सा प्रतीत होता है.
हरीद्वार आप कभी भी जा सकते है, यहां आने के बाद आपको मेले जैसा अनुभव होता है.हमे यहा पर गंगा जी को स्वच्छ रखने के लिए प्रसाशन द्वारा बताए नियमो को मानने चाहिए.

हरीद्वार के आस पास की जगह जहा आप जा सकते है.......

1.ऋशीकेश:
हरीद्वार से लगभग 16 किलोमीटर आगे ऋशीकेश पडता है यह भी एक धार्मिक स्थल है,यहा पर गंगा को पार करने क् लिए दो झूला पूल भी है एक राम झूला व दूसरा लक्ष्मण झूला.
यहा पर भी मन्दिर व आश्रम बहुत सख्यां मे है.
यहां गीता भवन मे गीता प्रेस वालो की दुकान भी है जहा पर सभी प्रकार की धार्मिक पुस्तके कम रेट पर मिल जाती है.
यहा से आगे खतरो से खेलने वालो के लिए गंगा जी मे रिवर राफ्टींग भी करायी जाती है जिनके आफिस मुनी की रेती पर स्थित है

2.नीलकण्ठ महादेव मन्दिर:
यहां से लगभग 25 किलोमीटर आगे नीलकण्ठ महादेव का मन्दिर है जिसकी बहुत मान्यता है,कहते है जब शंकर भगवान ने समुंद्र मंथन मे निकला विष का पान किया तब उनका कण्ठ नीला हो गया तब भोले शंकर इसी स्थान पर आकर रहे.इसलिए यह मन्दिर भगवान शंकर जी को समर्पित है.
3.देहरादून:
यह उतराखंड की राजधानी भी है यहा भी कई सारे मन्दिर व पिकनीक स्पॉट है जहा आप घुम सकते हो यहा से आप मसूरी भी जा सकते है

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