पृष्ठ

बुधवार, 30 सितंबर 2015

महाकालेश्वर(महाकाल) उज्जैन

इस यात्रा को शुरु से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करे। 
29 June 2015,दिन सोमवार
कल काफी देर रात सोने के कारण आँखें सुबह के 5:30 पर खुली। इसका मतलब यह हुआ की हम अब महाकाल की भस्म आरती नही देख पाएँगे।क्योकी यह आरती सुबह 4बजे होती है।हम सभी लोग जल्दी जल्दी नहा व रोज के जरूरी कार्यों को निपटा कर,होटल से अपनी अपनी गाड़ी से निकल पड़े,महाकाल के दर्शन करने के लिए।होटल से महाकाल मन्दिर तकरीबन 2से 3km की दूरी पर था,हम एक बाजार से निकलते हुए,महाकालेश्वर मन्दिर की पार्किंग मे गाड़ी खड़ी कर दी। मन्दिर के बाहर बनी एक दुकान से सभी ने प्रसाद व शिव का जलाभीशेक करने के लिए जल ले लिया।मन्दिर के बाहर दो तीन जगह LCD.TV लगे थे जो महाकाल मन्दिर के अन्दर की लाईव कवरेज दिखा रहे थे।मन्दिर मे दर्शन हेतु लम्बी लाईन लगी हुई थी।कुछ लोग स्टाफ चलाकर सीधा मन्दिर में भी जा रहे थे।हमने vip दर्शन वाली 150रू० की टिकेट खरीद ली।सभी प्रकार के बैग,कैमरा,मोबाइल आदि जितनी वस्तुएँ थी वो हमने पहले ही अपनी गाड़ियों मे रख दी थी।क्योकी यह वस्तुएँ मन्दिर मे अन्दर ले जाना मना है।मन्दिर में घुसते ही कुछ पंडितों ने विशेष पूजा कराने के लिए बोला,पर हमने नही कराई हम तो केवल उज्जैन के राजा महाकालेश्वर उर्फ महाकाल के दर्शन करने मात्र पर ही अपने आप को धन्य समझ रहे थे।क्योकी यह शिवलिंग 12 ज्योतिर्लिंग में आता है।ओर यह एक मात्र दक्षिणी मुखी शिवलिंग है।भगवान शिव ने यहां पर एक बालभक्त को दर्शन देते हुए कहा था की मैं यही रहुंगा।इसलिए उज्जैन को शिव की नगरी कहा जाता है।इस मन्दिर का पुराणों व महाभारत आदि मे भी जिक्र है।
यहां पर सभी भक्तो का जल शिवलिंग पर चढ़े ओर भीड़ भी ना हो इसलिए यहां पर एक पाईप लगा हुआ था,सभी उसी मे जल चढ़ा रहे थे।हम सभी ने भी उसी पाईप मे जल डाल दिया जिसका मुहं शिवलिंग के सीधे ऊपर था।अर्थात आप जो जल पाईप मे डालेगे वह सीधा शिवलिंग पर ही चढेगा।हमने महाकाल के दर्शन किये।ओर वही बनी सिढियो पर खड़े हो गए।हम दर्शन करने के पश्चात चलने ही लगे थे की सूरज भाई ने बताया की अभी 7:15 बज रहे है अब से तकरीबन 15मिनटों बाद भगवान महाकाल का भांग श्रंगार व आरती होगी उसे देखकर चलेंगे।उनके कहने पर हम वही सिढियो पर बैठ गए।लोग आ रहे थे,शिव की जयजयकार से पूरा हॉल गूंज रहा था।हर कोई महाकाल के दर्शन करने को उत्साहित था।अगर पुलिस वाले वहां से लोगों को ना हटाए तो बहुत बुरी हालत हो जाए।
कुछ ही देर बाद जल चढना रोक दिया गया ओर मन्दिर की साफ सफाई होने लगी।मन्दिर मे शिवलिंग पर तरह तरह के लेप लगाए जाने लगे।शिवलिंग पर आंखे बनाई गई,मुंछे बनाई गई,चंदन का टिका लगाया गया।पुष्षो से सजावट हुई।कुछ देर बाद शिवलिंग से साक्षात शिव की झलक दिखने लगी।शिव का ऐसा रूप अपनी आंखों से मेने पहले कभी ना देखा था।हर तरफ जय भोलेनाथ व हर हर महादेव के जयकारे लगने लगे।ढोल व डमरू बजने लगे ओर कुछ ही देर बाद वहा पर मौजूद हर भक्त तालियाँ बजाते हुए,महाकाल की इस विशेष आरती मे शामिल हो गया।आरती शुरू होते ही पहले के स्वर सब शांत हो गए।हर कोई आरती मे ध्यान मग्न हो गया।कुछ समय पश्चात आरती समापन हुई।ओर लोगों ने ज्यौत आरती ली।
हम लोग भी प्रसाद चढ़ा कर व आरती लेकर मन्दिर से बाहर एक छोटे से प्रांगण मे आ गए,महाकालेश्वर मन्दिर के बिल्कुल ऊपर ओंकारेश्वर नाम का मन्दिर ओर बना है,जहां पर भी भगवान शिव की एक शिवलिंग स्थापित है।
ओर भी बहुत से अन्य मन्दिर यहां पर बने थे।इनको भी देखकर हम सभी अपनी अपनी गाड़ियों पर सवार होकर आगे की यात्रा पर चल पडे.............
उज्जैन शहर का इतिहास:- उज्जैन भारत में क्षिप्रा नदी के किनारे बसा मध्य
प्रदेश का एक प्रमुख धार्मिक नगर है। यह ऐतिहासिक
पृष्ठभूमि लिये हुआ एक प्राचीन शहर है।
उज्जैन महाराजा विक्रमादित्य के शासन काल में उनके राज्य
की राजधानी थी। इसको
कालिदास की नगरी भी
कहा जाता है। उज्जैन में हर 12 वर्ष के बाद ' सिंहस्थ कुंभ '
का मेला जुड़ता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक
'महाकालेश्वर ' इसी नगरी में है। मध्य
प्रदेश के प्रसिद्ध नगर इन्दौर से यह 55 कि.मी.
की दूरी पर है। उज्जैन के अन्य
प्राचीन प्रचलित नाम हैं- 'अवन्तिका',
'उज्जैयनी', 'कनकश्रन्गा' आदि। उज्जैन मन्दिरों
का नगर है। यहाँ अनेक तीर्थ स्थल है।जैसे-महाकालेश्वर मन्दिर,बड़े गणेश मन्दिर,हरसिद्धि मन्दिर,गढ़ कालिका मन्दिर,कालभैरव मन्दिर,गोपाल मन्दिर,मंगलनाथ मन्दिर,संदिपनी आश्रम व क्षिप्रा नदी।
जय महाकाल 

गूगल से साभार(महाकालेश्वर मंदिर ) 

भांग श्रृंगार 

उज्जैन का एक चौराहा 

बस मंदिर के लिए यही से जाना हैं। 

बस सामने ही मंदिर नजर आ रहा है। और सामने टीवी स्क्रीन पर मंदिर की लाइव कवरेज चलती हुई। 
मन्दिर के सामने दुकाने 

मन्दिर का मुखय प्रवेश द्धार (सड़क से )

एक फोटो मेरा भी महाकाल की नगरी में। 

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

दिल्ली से उज्जैन (Delhi to ujjain by road)

28 जून 2015,दिन रविवार
सुबह के 4:15 पर मेरठ से राहुल जी(मेरे जीजाजी)साथ मे दीदी ओर मेरा 5वर्ष का भांजा वीर गाजियाबाद आ गए।हम भी सुबह सुबह गाजियाबाद पहुँच गए।मेने अपनी कार गाजियाबाद में एक जगह खड़ी कर दी ओर राहुल जी की कार(वर्ना) में बैठ गए।हम लोगों को आज कार से उज्जैन जाना था,जो दिल्ली या कहे गाजियाबाद से लगभग 900km दूर था। इसका मतलब यह हुआ की हमे एक ही दिन मे इतनी दूरी तय करनी थी। राहुल जी के साथ उनके दोस्त सूरज व उनकी फैमली भी थी,जो अपनी स्विफ्ट डिजायर कार से हमारे साथ जाने वाले थे।सूरज भाई ने कभी इतनी दूर तक गाड़ी नही चलाई थी इसलिए वह अपने एक दोस्त अशोक जी(पत्रकार,दैनिक जागरण) व एक मित्र पंडित जी (सैंकी) को भी साथ ले आए।उनकी गाड़ी बिल्कुल भरी पड़ी थी।जबकी हम अपनी गाड़ी मे बिल्कुल सही बैठे थे। हम सब गाजियाबाद से सुबह 5 बजे उज्जैन के लिए निकल पड़े।
यह टूर कैसे बना:- हुआ यह की मेरी राहुल  जीजाजी से कई सालों से शिकायत थी की आप अकेले ही घुम आते हो,कभी हमे भी पूछ लिया करो। बस फिर क्या था,राहुल जी के दोस्त सूरज जी ने एक प्रोग्राम बनाया उज्जैन जाने का रोड से अपनी अपनी कार से।मुझसे पूछा मेने भी हां कह दी पर मेने एक सुझाव भी दिया की जब  एक साथ कई फैमली चल रही है क्यों ना किराये की बड़ी गाड़ी कर ले। या फिर टेम्पो ट्रैवलर्स की मिनी बस से चलते है ओर तकरीबन 5 या 6 दिन का कार्यक्रम बनाते है पर मेरा यह सुझाव नही माना गया ओर निकल पड़े अपनी अपनी कारों से।वो भी तीन दिन के लिए....
हम लोग गाजियबाद से नोएडा होते हुए,आगरा एक्सप्रेस हाईवे पर चढ़ गए।आगरा तक का 360रू० का टोल टैक्स कटवाया ओर सरपट दौड़ चले।गाड़ी की गति 100के आसपास ही रखी क्योंकि यह सड़क पूरी तरह सिमेंट से बनी है जिसपर गाड़ी के टायरो की हवा का दाब बढ जाने पर टायरो का फटना आम बात हो गई है।
हम लोग तकरीबन सुबह के  8:30 बजे आगरा पहुंच गए।पर अभी हमने बहुत दूर जाना था इसलिए हम आगरा नही रुके, बस सड़क से ही ताज का दीदार करते हुए,व आगरा के लाल किले के पास से निकलते हुए।आगरा,बोम्बे हाईवे(AB road)रोड पर चल दिए।नोएडा से आगरा तक जाने वाला रोड बड़ा ही शानदार बना है,जबकी आगरा से आगे वाला रोड इतना अच्छा नही बना है पर ठीकठाक है,हम आगरा से निकल कर,राजस्थान व मध्यप्रदेश की सीमा बनी चम्बल नदी को पार करते हुए।बाबा देवपुरी मन्दिर की तरफ चल पड़े।अब हम मैन रोड से निचे बाये तरफ जाते कच्चे रास्ते पर हो लिये।यह रास्ता पूरी तरह मिट्टी से बना था।रास्ते के दोनों तरफ ऊंचे ऊंचे टिले बने हुए थे।वहां की भाषा मे इस जगह को बीहड बोलते है।एक दो जगह हमारी कार नीचे से रगड भी खा जाती।तब हम सूरज भाई को कहते की कहां ले आए इन बिहडो मे,कुछ ही देर बाद हम एक मन्दिर परीसर मे पहुँच गए।यहां पर कई सारे मन्दिर बने हुए थे।इन्हीं मन्दिरो मे एक मन्दिर था बाबा देवपुरी जी का।यह एक संत थे जिन्होंने यहां पर तपस्या की थी।चूकीं मन्दिर सड़क से दूर है इसलिए सड़क पर भी इनके नाम का प्रसाद चढता है ओर तकरीबन हर गाड़ी यहां पर रूकती है ओर प्रसाद चढ़ाने के बाद यहां से आगे बढ़ती है।यहां पर मिल्क केक मिठाई का प्रसाद चढ़ाया जाता है।इन बाबा(देवपुरी)की यहां पर बहुत मान्यता है,लोग दूर दूर से यहां पर बाबा के दर्शन के लिए आते है।चारों तरफ बीहड जंगल के बीच बना यह मन्दिर एक अलग ही रोमांचित वातावरण प्रतीत कराता है।
हम लोगों ने यहां प्रसाद चढ़ाया ओर चल पड़े अपनी मंजिल की तरफ।
जब हम चले तब समय सुबह के लगभग 10 बज रहे थे।यहां से हम मुरैना पहुँचे,मरैना जो अपनी गज्जक के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां पर हल्का का सा जाम मिला पर जल्दी ही हमने उसे पार कर लिया।मुरैना से लगभग 40km दूरी पर ग्वालियर शहर पड़ा।जो अपने आप में एक ऐतिहासिक शहर रहा है।यहां पर कई सारे पर्यटक स्थल है,जिन्हें मेंने पहले ग्वालियर यात्रा में देख चुका हुं। इस बार भी ग्वालियर का किला देखने की इक्छा थी,पर रास्ता ग्वालियर के बाहर बाहर से ही निकल गया।ओर हमारे अरमान दिल मे ही रह गए।दोपहर के लगभग 12 बज रहे थे।हम ग्वालियर पार कर अपनी कार एक पेट्रोल पम्प पर लगाई ओर डीजल भरवा लिया।यही से हमने रास्ते में घर से लाई आलू-पूरी सब्ज़ी खा ली।लम्बा सफर था,इसलिए हर लम्हा कीमती था,इसलिए समय बचाते हुए हम कही नही रूक रहे थे।केवल जरूरी कामों के लिए ही रूकते।
पेट्रोल पम्प से गाड़ी मेने चलाने की बागडोर मेने सम्भाली क्योकी राहुल जी सुबह से ही गाड़ी चला रहे थे ओर अब तक 400km गाड़ी चला चुके थे,उन्हें कुछ आराम मिल जाए इसलिए कार मेने चलाने का निर्णय किया।
ग्वालियर से एक रास्ता झांसी व औरछा की तरफ चला जाता है ओर दूसरा आगरा-बोम्बे रोड है ही जिसपर हम चल रहे थे। ग्वालियर से लगभग 97km की दूरी पर शिवपुरी नामक जगह आती है यह भी एक ऐतिहासिक शहर रहा है।यह पहले सिंधिया राजघराने की ग्रीष्म राजधानी हुआ करती थी।
शिवपुरी से थोड़ा आगे चल कर एक रास्ता राजस्थान के शहर कोटा की तरफ चला जाता है। ओर दूसरा झांसी का तरफ चला जाता है।लेकिन हम AB road पर ही चलते रहे।शिवपुरी के पास ही माधव वन्य प्राणी क्षेत्र पड़ता है। लेकिन हम कही नही रूके बस चलते ही रहे,अब रास्ता बहुत खराब हो चला था।रास्ते मे हुए गढ्ढो ने बुरा हाल कर दिया।अगर इन सडको की तुलना हमारे उत्तरप्रदेश की सडको से की जाए तो उत्तरप्रदेश के किसी गाँव कस्बे की सड़क भी इन सडको से कही बेहतर निकलेगी। यहां मध्यप्रदेश मे भाजपा की सरकार है कई सालों से पर पता नही?
सडके इतनी बेहार क्यों है।फिलहाल जैसे तैसे शिवपुरी से लगभग 90km चलकर गुना पहुँचे।
गुना शहर के बाहर से ही एक बाईपास बना है,जिसपर टोल टैक्स लगता है पर सड़क बहुत बढ़िया बनी है।इस रोड को देखकर जान मे जान आ गई,ओर गाड़ी की रफ्तार अपने आप बढ़ गई।इसी रास्ते पर एक पहाड़ पर बनी एक देवी का मन्दिर भी पड़ता है, लेकिन उन का नाम मुझे अब याद नही आ रहा है।
टोल रोड खत्म होते ही फिर वही गढ्ढो से भरी सड़क का सामना हो गया।हमने एक ढाबा देखकर गाड़ी ढाबे पर लगा दी।इतने मे दूसरी गाड़ी भी आ गई।ढाबे वाले को चाय के लिए बोल दिया।बच्चो ने कोल्डड्रिंक पी।
चाय पीते पीते रास्ते को लेकर बाते हुई की कैसा बेकार रोड है इससे तो अच्छा होता की शिवपुरी से कोटा की ओर निकल जाते।
चाय पीने के बाद गाड़ी की कमान राहुल जी ने ले ली।ओर मैं दूसरी तरफ बैठ गया। समय लगभग शाम के 4 बज रहे थे ओर उज्जैन अब भी 245km की दूरी पर था।गाड़ी अपनी मध्यम रफ्तार से चली जा रही थी।कई छोटे बड़े गाँव कस्बे पड़े पर हम बस गाड़ी से ही उनका दीदार करते हुए चले जा रहे थे।रास्ते में कई छोटी बड़ी नदी,नाले पड़े जिन्हें हम देखते हुए चल रहे थे।रोड की दोनों ओर गहरा हरा रंग पेड़ पौधों पर छाया हुआ था,जो दिखने मे बहुत ही अच्छा लग रहा था।
सुबह से चलते हुए 10घंटों से ज्यादा वक्त हो चला था।इसलिए सभी को थकान महसूस हो रही थी,देवांग व वीर जोकी दोनों अभी छोटे ही है, बार बार यही पूछते की हम कब पहुँचेंगे।बस हम उन्हें यही दिलासा देते की जब रात हो जाएगी तब हम उज्जैन पहुँचेंगे। हमने इतना तो तय कर लिया था की वापसी में इस रोड से तो भूल कर भी नही आएँगे। मध्यप्रदेश वैसे अपने आप को भारत का दिल कहता है,पर्यटकों को हर तरह के माध्यम से अपने यहां पर बुलाता है पर सड़क ठीक नही करा सकता।फिर कौन जाना चाहेगा ऐसे दिल को देखने।
हम गुना से चलकर बायरा व सारंगपुर पार करते हुए शाहजहांपुर पहुँचे।रात के 9 बज चुके थे।यहां से उज्जैन अभी भी 80km दूर था। यहां पर भी हम ना रूके ओर आगे की ओर चल पड़े।तकरीबन 9:40 पर हम मक्शी पहुचें,यह एक छोटा सा कस्बा था।यहां पर हमने पेट्रोलपम्प पर गाड़ी मे डीजल भरवा लिया ओर बच्चो के लिए चिप्स व कोल्डड्रिंक ले ली।यहां से उज्जैन जाने के दो रास्ते है एक तो मक्शी से सीधा उज्जैन जो लगभग 40km की दूरी पर है ओर दूसरा मक्शी से देवास 35km ओर देवास से उज्जैन 39km।
हम मक्शी तक पहुँचते पहुँचते बहुत थक चुके थे।इसलिए पेट्रोलपम्प वाले से ही पूछा की कौन सा रास्ता अच्छा रहेगा।उसने कहा की आप मक्शी से उज्जैन वाला रास्ता ही पकड़ लो दो चार किलोमीटर का रास्ता तो खराब है बाकी नया बना है चार लेन का। उसके इस तरह के जवाब के कारण हम मक्शी से उज्जैन वाले रोड पर चल पड़े।यह रास्ता बिल्कुल सुनसान था,हमारी दोनों गाड़ियों के अलावा कभी कभी कोई ट्रक दिखलाई पड़ता।रास्ता खराब था,कभी अच्छी सड़क आ जाती तो कभी बिल्कुल कच्ची।इस रास्ते ने तो बिल्कुल सभी खराब सडको का रिकार्ड तोड़ दिया था।
होटल हमने पहले से ही बुक किया हुआ था,एक बार उसको फोन कर लिया की ओर बता दिया की हमारे तीन रूम बुक है ओर हम पहुंचने ही वाले है।आखिरकार हम सभी खराब सडको से जूंझते हुए रात के 11:30 पर महाकाल की नगरी उज्जैन पहुँच ही गए। होटल पहुंचने पर कमरे मे समान रख कर व फ्रैश होकर होटल मे बने रेस्टोरेंट पर खाना खा आए।ओर अपने अपने कमरों मे सोने के लिए चले गए...............
"जय महाकाल"
Yumuna express hiway
आगरा का लालकिला 
चम्बल नदी
बाबा देवपुरी मन्दिर की तरफ जाता कच्चा रास्ता
एक स्थानीय महिला प्रसाद बेचती हुई
बाबा देवपुरी मन्दिर का बाहरी प्रवेश द्वार
मन्दिर के पास मैं(सचिन),वीर व देवांग के साथ 
बाबा देवपुरी मन्दिर
ग्वालियर शहर से निकलते हुए
चलती गाड़ी से लिया फोटो
बैल 
नदी के बीच से जाता हुआ रास्ता।
भूरी मिट्टी का खेत
कुआं

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

परशुरामेश्वर महादेव(पुरा महादेव)

04.Aug. 2015 दिन मंगलवार

सावन का महिना लग चूका है।ओर हर जगह भोलेनाथ का बोलबाला हो रहा है।कुछ लोग कांवड लाने की तैयारी मे लगे है तो कुछ ने कांवड ऊठा भी ली है। मनीष जो की मेरा दोस्त व पडौसी भी है। मैं ओर मनीष हर साल सावन के महिने मे मोटरसाइकल से हरिद्वार गंगाजल लाने के लिए जाते है। इस बार में हरिद्वार नही गया तो वह भी हरिद्वार नही गया। तब उसने मुझ से कहा की हरिद्वार तो नही गए लेकिन पुरामहादेव तो चल ही सकते है।बस फिर क्या था,सावन के शुरू होते है हम दोनों 4 अगस्त को पुरा महादेव के दर्शन करने के लिए चल पडे....
सुबह 9बजे के आसपास में(सचिन)मनीष के घर पहुँचा,जहां से उसकी बाईक ऊठाई ओर बंथला नहर के साथ साथ चलते हुए रटौल कस्बे से होते हुए, पिलाना भट्टा पहुँचे।यहां से अगर बायें चले तो बागपत पहुँच जाते है, पर हम पिलाने भट्टा से दायें मुड़ गए ओर तकरीबन तीन चार किलोमिटर चलने पर बायें ओर पुरामहादेव मन्दिर को जाते रोड पर मुड गए। हम अपने घर से लगभग सवा घंटे मे ही पुरामहादेव मन्दिर पहुँच गए। पुरामहादेव दिल्ली से लगभग 45km व मेरठ से 28km की दूरी पर स्थित है।यह एक सिद्ध पीठ है,जहां भगवान परशुराम ने शिव की अराधना की थी वह भगवान शिव ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए थे।
मेने व मनीष ने बाईक मन्दिर के नजदीक ही खड़ी कर दी। ओर पास ही फूल व प्रसाद की दुकान से प्रसाद ले लिया, हम शिव को जल चढ़ाने के लिए अपने अपने घर से गंगाजल लेकर आए ही थे, प्रसाद लेकर हम मन्दिर की तरफ चल पड़े। मन्दिर एक टिले पर स्थित है इसलिए थोड़ी सी सीढ़ियों पर चढना पड़ा।हम सीढ़ियों से होते हुए, एक गलियारे को पार करते हुए। परशुरामेश्वर महादेव मन्दिर पहुँचे।
मन्दिर कुछ बदला बदला सा लग रहा था, मन्दिर मे निर्माण कार्य चल रहा था, जब हम पहले यहां पर आए थे तब यहां पर बहुत भीड़ थी,दर्शन करना बड़ा मुश्किल हो रहा था। पर आज हम दोनों के अलावा यहां पर एक परिवार ओर था जो शिव पूजा कर रहा था। हमने भी शिव का गंगा जल से अभीषेक किया,पुष्प,दीप व धुप से शिव की पूजा की।
शिव की पूजा करने के बाद हम दोनों मन्दिर निर्माण हेतु मन्दिर समिति मे कुछ दान देकर बाहर आ गए।

महादेव(पुरामहादेव) मन्दिर:-परशुरामेश्वर मन्दिर(पुरामहादेव) की मान्यता रामेश्वर व बारह ज्योतिर्लिंग के समकक्ष ही मानी जाती है।यहां शिव अपने हर भक्त की हर मनोकामना पूर्ण करते है।
ऐसा माना गया है की काफी समय पहले यहां पर कजरी वन था।इसी वन मे जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका संग अपने आश्रम मे रहते थे।यह आश्रम हरनन्दी(आज की हिंडन नदी) के समीप ही था।
एक बार राजा सहस्त्रबाहु शिकार खेलते हुए ऋषि के आश्रम पहुचां, जहां पर रेणुका माता ने कामधेनू गाय की कृपा से राजा को राजसी व्यंजन खिलाए।जिन्हें देखकर राजा को बड़ी हैरानी हुई की इस जंगल मे इतनी जल्दी यह व्यंजन कैसे बन गए। तब रेणुका जी ने उन्हें कामधेनू गाय के बारे मे बताया।
राजा ने गाय को अपने महल मे ले जाना चाहा पर कामधेनू गाय टस से मस नही हुई।तब राजा गुस्से में आकर रेणुका माता को ही उठाकर अपने साथ हस्तिनापुर अपने महल ले गया।
जब जमदग्नि ऋषि अपने आश्रम पहुचे तब उन्हें राजा सहस्त्रबाहु के इस कुकृत्य के बारे मे पता चला तब उन्हें बड़ा क्रोध आया।उधर राजा की अनुपस्थिति मे रानी ने रेणुका को मुक्त कर दिया।क्योकी वह रेणुका की छोटी बहन थी।रेणुका वहां से चलकर आश्रम पहची ओर सारा वृतांन्त ऋषि जमदग्नि को बताया।पर ऋषि ने रेणुका जी से आश्रम छोड़ देने के लिए कहा।क्योकी तुम एक रात पराये पुरूष के यहां बिताकर आयी हो इसलिए तुम यहां आश्रम मे नही रह सकती हो।लेकिन रेणुका जी ने कहां की वह आश्रम छोड़कर कही नही जाएगी।लेकिन उन्हें उनपर विश्वास नही है तो वह अपने हाथ से उसे मार दे जिससे पति के हाथों मरने पर उसे(रेणुका)मोक्ष प्राप्त हो जाए।
ऋषि ने उनकी इक्षा पूर्ण करने के लिए अपने पुत्रों को बुलाया ओर उन्हें आदेश दिया की तुम अपनी माता का सर धड़ से अलग कर दो, पर तीन पुत्रों ने मना कर दिया तब ऋषि ने अपने चौथे पुत्र राम(परशुराम) को बुलाया ओर उसे आदेश दिया की वह अपनी माता का सर धड से अलग कर दे।तब परशुराम ने कहा की पिता की आज्ञा मेरा धर्म है।यह कहकर उन्होंने अपनी माता का सिर धड से अलग कर दिया।लेकिन बाद मे उन्हें इस कार्य का घोर पश्चाताप हुआ।
इसी पश्चाताप वश परशुराम जी ने यही( पुरा गांव)मे आकर एक टिलेे पर शिवलिंग की स्थापना की व घोर तपस्या की।इसी स्थल पर भगवान परशुराम जी की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर प्रलयंकारी भगवान आशुतोष(शिव) ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए व प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मे अपना फरसा व उनकी माता को पूर्ण जीवित कर दिया। फरसा मिलने पर ही वह परशुराम कहलाए। बाद में उन्होंने अपने फरसे से सहस्त्रबाहु व अन्य पापी क्षत्रियो को मार डाला।
पुरामहादेव गांव मे आज भी वह शिवलिंग मौजूद है जो भगवान परशुराम ने स्थापित किया था।इसके दर्शन मात्र से ही शिव की कृपा हो जाती है।यह शिवलिंग शिव व शक्ति के रूप मे परशुराम मन्दिर मे हमे साक्षात दर्शन दे रहा है। व सभी मुरादे पूरी कर रहा है........

अब यात्रा वृतांन्त पर आते है.......
पुरा महादेव मन्दिर से बाहर आकर हम दोनों ने महार्षि बाल्मीकि आश्रम व लव कुश जन्म स्थली जाने का फैसला किया।पुरामहादेव मन्दिर से लगभग 3km दूरी पर यह आश्रम है,
मेरठ बागपत रोड पर बलैनी के पुल से पहले है, एक रास्ता इस मन्दिर या आश्रम की तरफ चला जाता है।
"एक बार जब हम हरिद्वार से गंगा जल लेकर पुरा जा रहे थे तब यही मन्दिर के पास रोड पर बने एक ट्युबवैल पर हम नहाए थे।"

मैं ओर मनीष पुरा महादेव मन्दिर से मात्र थोड़ी ही देर मे यहां पहुँच गए। यह मन्दिर भी एक टिले पर स्थित है।यहां पर एक स्कूल भी चल रहा था।हम मन्दिर के बाहर बनी एक मात्र दुकान से प्रसाद व पुष्प खरीद कर मन्दिर मे चले गए।
मन्दिर मे बड़ी शांति थी हमारे अलावा कोई अन्य यहां नही था। हर तरफ छोटे बड़े मन्दिर बने हुए थे। जहां पर एक दो संन्यासी बैठ हुए थे। हम दोनों बारी बारी सभी मन्दिरो के दर्शन कर आए।
यह आश्रम महर्षि बाल्मीकि की तपोभूमी थी।यही पर राम ने राजा बनने के बाद सीता को दोबारा बनवास दिया था,तब वह यही आकर रही व लव कुश की जन्मस्थली भी यही पावन जगह है।ओर बाद मे सीता जी इसी जगह धरती मे समा गई।
यहां पर हमने एक बाबा मिले उनसे मेने यह पता करना चाहा की क्या वाकई यह वही जगह है जहां पर लव-कुश का जन्म हुआ व सीता धरती मे समाई।इस प्रश्न के उत्तर मे उन्होंने यह जवाब दिया की जैसे एक राम हमारे मन मे रहते है ओर एक रामायण मे,ऐसे ही कुछ कारणों व कुछ तथ्यों के आधार पर यह जगह लव-कुश की जन्मस्थली मानी गई है।
हम दोनों ने उन बाबा को प्रणाम किया ओर मन्दिर से बाहर आ गए।बाहर खडी बाईक ऊठा कर,वापिस घर की ओर चल पडे..................................

अब कुछ फोटो देखे जाए इस यात्रा के....
.......

पुरामहादेव 
खेतों के बीच से जाता रास्ता
पुरामहादेव मन्दिर तक जाती सीढ़ियाँ
पुरामहादेव मन्दिर
पुरामहादेव मन्दिर
मैं मन्दिर के सामने
भगवान परशुराम द्वारा स्थापित शिवलिंग
मनीष
मैं सचिन त्यागी 
नंदी जी 

अब कुछ फोटो महर्षि बाल्मीकि आश्रम व लवकुश जन्मस्थली के देखे जाए.......................

मेरठ बागपत रोड पर बना द्वार जो मन्दिर की स्थिति को दर्शा रहा है।
मन्दिर के बाहर का दृश्य।
पंचमुखी शिवलिंग
लव-कुश जन्मस्थली
माता सीता व लव,कुश
लव-कुश की पाठशाला
कुछ प्राचीन अवशेष
सीता सती स्थल
यही वो बाबा थे जिनसे मेने प्रश्न पुछा था।
मन्दिर के बाहर मैं सचिन त्यागी