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शनिवार, 24 मई 2014

ऊटी से कोयम्बटूर व वापसी दिल्ली

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आज 25 तारिख को हमे वापिस दिल्ली जाना था.कोयम्बटूर से शाम 6 बजे की फ्लाईट थी.इसलिए आराम से ऊठे,चाय नाश्ता किया.होटल का खाने का बिल चुकता किया.कमरो का किराया हमने दिल्ली मे ही एडवांश रूप मे दे दिया था.होटल से बाहर आकर हमने निर्णय किया की ट्रेन से चलते है पर ट्रेन केवल कोन्नुर तक ही चलती है फिर वहा से टैक्सी या बस करनी पडेगी.इसलिए ट्रेन से जाना कैन्सिल हो गया.हम ऊटी बस स्टैन्ड पर पहुंचे वहा से कोयम्बटूर के लिए बस पुछी तो पता चला की एक बस तो चली गई है ओर दूसरी दस मिनट बाद चलेगी.इसलिए टिकेट खिडकी से 6 टिकेट ले लिए गए.बस भी अपने स्टैन्ड पर लग चुकी थी.हमे लगाकर केवल दस,बारह सवारी थी.थोडे समय बाद कन्डेक्टर व ड्रायवर आ गए ओर बस चालू कर दि.बस को चले अभी दस मिनट भी नही हुए थे की मेरे बेटे देवांग के पेट मे दर्द होने लगा था.शायद उसका पेट साफ नही हुआ था.कनडेक्टर ने कहा की कुन्नूर मे बस 5 मिनट रूकेगी तब आप इसको नीचे ले जाना.कुन्नूर भी आ गया ओर मै देवांग को नीचे ले गया ओर उसने केवल शुशु की ओर कहा की अब दर्द नही हो रहा है.मेने राहत की सांस ली ओर चल पडे कोयम्बटुर की ओर.ऊटी से कोयम्बटुर तक रास्ता बडा मन मोहक है पहाडी रास्ता है ओर बादल उडते रहते है कहीं कहीं तो बादल सड़क पर कोहरे के रूप मे भी आ गए.अब पहाडी रास्ता खत्म हो चुका था पर दोनो तरफ नारियल व केले के बाग सड़क के साथ चलते रहे.यहा पर नारियल के बडे बडे फार्म थे.यह यहा की मुख्य रोजगार का साधन भी है.जैसे हमारे उत्तर भारत मे गन्ना व गेंहू होता है वैसे ही यहा पर चावल व नारियल होता है.
हम दोपहर के लगभग 12 बजे कोयम्बटूर पहुंच गए.यह एक विकसित शहर है जैसे देरादून.यहा पर मॉल व बडी बडी दुकाने है.हमने पहले एक अच्छे से होटल मे खाना खाया.फिर निकल पडे बाजार की तरफ यहा हम एक साडी की दुकान मे चले गए.ऐसी दुकान मेने दिल्ली मे भी नही देखी.चार मन्जिला दुकान व कम से कम 100आदमी वहा पर काम करने वाले और हर मन्जिल पर दो बडे बडे हॉल जहा पर साडिया ही साडिया,ज्यादात्तर वहा सिल्क की साडिया व कुर्ते थे.यहा पर सभी ग्रराहको को चाय व कॉफी व ठंडा दिया जा रहा था.बाद मे पता चला की यह कोयम्बटुर ही नही दक्षिण भारत का शानदार दुकान मे से एक है.मै इसका नाम नही बताऊगा नही तो यह एक विज्ञापन हो जाएगा.यहा पर हमने चार पांच सिल्क की साडिंया ली जो साडी दिल्ली मे दस से पन्द्रह हजार रूपये मे मिलती है यहां पर हमे सात आठ हजार मे मिल गई.साडी लेते लेते कब शाम के चार बज गए पता ही नही चला.
साडी की दुकान से बाहर आकर हवाई अड्डे तक एक आटो कर लिया.बीस पच्चीस मिनट मे हम हवाई अड्डे पहुंच गए.क्योकी एयरपोर्ट शहर के बाहर व शहर से 9 या 10 km की दूरी पर था.कुछ जरूरी प्रक्रिया या कहे बोर्डिगपास बनवा लिए.लगैज वगेरहा जमा करा कर, वही प्रतिक्षालय मे जा कर बैठ गए.वही कैन्टीन पर चाय पानी पिया गया.दोनो बच्चो ने अपने खेलने के लिए सवारी ढुंढ ली.वहा पर समान रखने वाली ट्राली पर देवांग बैठ गया ओर दूसरा(दिव्यांश) उसको घुमाने मे लग गया.मै देखा वही एयरपोर्ट पर एक साडी की दुकान थी ओर उस दुकान के बाहर एक कटआऊट रखा था.उस पर एक फैमली बनी थी ओर वो बिल्कुल असली के लग रहे थे.मैने देवांग को बुलाकर उस कटआऊट या कहे उस बोर्ड के पास खडा कर दिया ओर फोटो ले लिया जिसे मेने इस पोस्ट मे लगाया भी है.
काफी देर बाद फ्लाईट की कॉल हुई ओर हम वहा पर मौजुद बस मे बैठ कर हवाईजहाज तक पहुंचे. हवाईजहाज अपने तय समय पर कोयम्बटूर से ऊड चला ओर तीन घन्टे बाद दिल्ली एयरपोर्ट पर उतर गया.समान लेने के बाद मैने एयरपोर्ट पर बने प्रीपेड टैक्सी बूथ से घर तक की टैक्सी बुक कर ली.ओर एयरपोर्ट से बाहर आकर टैक्सी वाले को पर्ची दिखाकर बता दिया की कहा जाना है ओर रात को 12 बजे के आसपास हम अपने घर पहुंच गया.
यात्रा समाप्त....

3 टिप्‍पणियां:

  1. सचिन भाई ,सुखद यात्रा व शानदार वापसी ,सलाह पर अमल करने के लिए शुक्रिया।

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  2. सचिन जी , आपके ब्लॉग की खासियत ये है कि आप फोटोग्राफ बहुत अच्छे लगाते हैं ! लिखते रहिये और अगर एक सलाह मान सकें तो फॉण्ट थोड़ा सा बड़ा रखिये !

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    1. योगी जी सलाह के लिए धन्यवाद,
      आगे से ध्यान रखा जाएगा

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