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मंगलवार, 22 सितंबर 2015

दिल्ली से उज्जैन (Delhi to ujjain by road)

28 जून 2015,दिन रविवार
सुबह के 4:15 पर मेरठ से राहुल जी(मेरे जीजाजी)साथ मे दीदी ओर मेरा 5वर्ष का भांजा वीर गाजियाबाद आ गए।हम भी सुबह सुबह गाजियाबाद पहुँच गए।मेने अपनी कार गाजियाबाद में एक जगह खड़ी कर दी ओर राहुल जी की कार(वर्ना) में बैठ गए।हम लोगों को आज कार से उज्जैन जाना था,जो दिल्ली या कहे गाजियाबाद से लगभग 900km दूर था। इसका मतलब यह हुआ की हमे एक ही दिन मे इतनी दूरी तय करनी थी। राहुल जी के साथ उनके दोस्त सूरज व उनकी फैमली भी थी,जो अपनी स्विफ्ट डिजायर कार से हमारे साथ जाने वाले थे।सूरज भाई ने कभी इतनी दूर तक गाड़ी नही चलाई थी इसलिए वह अपने एक दोस्त अशोक जी(पत्रकार,दैनिक जागरण) व एक मित्र पंडित जी (सैंकी) को भी साथ ले आए।उनकी गाड़ी बिल्कुल भरी पड़ी थी।जबकी हम अपनी गाड़ी मे बिल्कुल सही बैठे थे। हम सब गाजियाबाद से सुबह 5 बजे उज्जैन के लिए निकल पड़े।
यह टूर कैसे बना:- हुआ यह की मेरी राहुल  जीजाजी से कई सालों से शिकायत थी की आप अकेले ही घुम आते हो,कभी हमे भी पूछ लिया करो। बस फिर क्या था,राहुल जी के दोस्त सूरज जी ने एक प्रोग्राम बनाया उज्जैन जाने का रोड से अपनी अपनी कार से।मुझसे पूछा मेने भी हां कह दी पर मेने एक सुझाव भी दिया की जब  एक साथ कई फैमली चल रही है क्यों ना किराये की बड़ी गाड़ी कर ले। या फिर टेम्पो ट्रैवलर्स की मिनी बस से चलते है ओर तकरीबन 5 या 6 दिन का कार्यक्रम बनाते है पर मेरा यह सुझाव नही माना गया ओर निकल पड़े अपनी अपनी कारों से।वो भी तीन दिन के लिए....
हम लोग गाजियबाद से नोएडा होते हुए,आगरा एक्सप्रेस हाईवे पर चढ़ गए।आगरा तक का 360रू० का टोल टैक्स कटवाया ओर सरपट दौड़ चले।गाड़ी की गति 100के आसपास ही रखी क्योंकि यह सड़क पूरी तरह सिमेंट से बनी है जिसपर गाड़ी के टायरो की हवा का दाब बढ जाने पर टायरो का फटना आम बात हो गई है।
हम लोग तकरीबन सुबह के  8:30 बजे आगरा पहुंच गए।पर अभी हमने बहुत दूर जाना था इसलिए हम आगरा नही रुके, बस सड़क से ही ताज का दीदार करते हुए,व आगरा के लाल किले के पास से निकलते हुए।आगरा,बोम्बे हाईवे(AB road)रोड पर चल दिए।नोएडा से आगरा तक जाने वाला रोड बड़ा ही शानदार बना है,जबकी आगरा से आगे वाला रोड इतना अच्छा नही बना है पर ठीकठाक है,हम आगरा से निकल कर,राजस्थान व मध्यप्रदेश की सीमा बनी चम्बल नदी को पार करते हुए।बाबा देवपुरी मन्दिर की तरफ चल पड़े।अब हम मैन रोड से निचे बाये तरफ जाते कच्चे रास्ते पर हो लिये।यह रास्ता पूरी तरह मिट्टी से बना था।रास्ते के दोनों तरफ ऊंचे ऊंचे टिले बने हुए थे।वहां की भाषा मे इस जगह को बीहड बोलते है।एक दो जगह हमारी कार नीचे से रगड भी खा जाती।तब हम सूरज भाई को कहते की कहां ले आए इन बिहडो मे,कुछ ही देर बाद हम एक मन्दिर परीसर मे पहुँच गए।यहां पर कई सारे मन्दिर बने हुए थे।इन्हीं मन्दिरो मे एक मन्दिर था बाबा देवपुरी जी का।यह एक संत थे जिन्होंने यहां पर तपस्या की थी।चूकीं मन्दिर सड़क से दूर है इसलिए सड़क पर भी इनके नाम का प्रसाद चढता है ओर तकरीबन हर गाड़ी यहां पर रूकती है ओर प्रसाद चढ़ाने के बाद यहां से आगे बढ़ती है।यहां पर मिल्क केक मिठाई का प्रसाद चढ़ाया जाता है।इन बाबा(देवपुरी)की यहां पर बहुत मान्यता है,लोग दूर दूर से यहां पर बाबा के दर्शन के लिए आते है।चारों तरफ बीहड जंगल के बीच बना यह मन्दिर एक अलग ही रोमांचित वातावरण प्रतीत कराता है।
हम लोगों ने यहां प्रसाद चढ़ाया ओर चल पड़े अपनी मंजिल की तरफ।
जब हम चले तब समय सुबह के लगभग 10 बज रहे थे।यहां से हम मुरैना पहुँचे,मरैना जो अपनी गज्जक के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां पर हल्का का सा जाम मिला पर जल्दी ही हमने उसे पार कर लिया।मुरैना से लगभग 40km दूरी पर ग्वालियर शहर पड़ा।जो अपने आप में एक ऐतिहासिक शहर रहा है।यहां पर कई सारे पर्यटक स्थल है,जिन्हें मेंने पहले ग्वालियर यात्रा में देख चुका हुं। इस बार भी ग्वालियर का किला देखने की इक्छा थी,पर रास्ता ग्वालियर के बाहर बाहर से ही निकल गया।ओर हमारे अरमान दिल मे ही रह गए।दोपहर के लगभग 12 बज रहे थे।हम ग्वालियर पार कर अपनी कार एक पेट्रोल पम्प पर लगाई ओर डीजल भरवा लिया।यही से हमने रास्ते में घर से लाई आलू-पूरी सब्ज़ी खा ली।लम्बा सफर था,इसलिए हर लम्हा कीमती था,इसलिए समय बचाते हुए हम कही नही रूक रहे थे।केवल जरूरी कामों के लिए ही रूकते।
पेट्रोल पम्प से गाड़ी मेने चलाने की बागडोर मेने सम्भाली क्योकी राहुल जी सुबह से ही गाड़ी चला रहे थे ओर अब तक 400km गाड़ी चला चुके थे,उन्हें कुछ आराम मिल जाए इसलिए कार मेने चलाने का निर्णय किया।
ग्वालियर से एक रास्ता झांसी व औरछा की तरफ चला जाता है ओर दूसरा आगरा-बोम्बे रोड है ही जिसपर हम चल रहे थे। ग्वालियर से लगभग 97km की दूरी पर शिवपुरी नामक जगह आती है यह भी एक ऐतिहासिक शहर रहा है।यह पहले सिंधिया राजघराने की ग्रीष्म राजधानी हुआ करती थी।
शिवपुरी से थोड़ा आगे चल कर एक रास्ता राजस्थान के शहर कोटा की तरफ चला जाता है। ओर दूसरा झांसी का तरफ चला जाता है।लेकिन हम AB road पर ही चलते रहे।शिवपुरी के पास ही माधव वन्य प्राणी क्षेत्र पड़ता है। लेकिन हम कही नही रूके बस चलते ही रहे,अब रास्ता बहुत खराब हो चला था।रास्ते मे हुए गढ्ढो ने बुरा हाल कर दिया।अगर इन सडको की तुलना हमारे उत्तरप्रदेश की सडको से की जाए तो उत्तरप्रदेश के किसी गाँव कस्बे की सड़क भी इन सडको से कही बेहतर निकलेगी। यहां मध्यप्रदेश मे भाजपा की सरकार है कई सालों से पर पता नही?
सडके इतनी बेहार क्यों है।फिलहाल जैसे तैसे शिवपुरी से लगभग 90km चलकर गुना पहुँचे।
गुना शहर के बाहर से ही एक बाईपास बना है,जिसपर टोल टैक्स लगता है पर सड़क बहुत बढ़िया बनी है।इस रोड को देखकर जान मे जान आ गई,ओर गाड़ी की रफ्तार अपने आप बढ़ गई।इसी रास्ते पर एक पहाड़ पर बनी एक देवी का मन्दिर भी पड़ता है, लेकिन उन का नाम मुझे अब याद नही आ रहा है।
टोल रोड खत्म होते ही फिर वही गढ्ढो से भरी सड़क का सामना हो गया।हमने एक ढाबा देखकर गाड़ी ढाबे पर लगा दी।इतने मे दूसरी गाड़ी भी आ गई।ढाबे वाले को चाय के लिए बोल दिया।बच्चो ने कोल्डड्रिंक पी।
चाय पीते पीते रास्ते को लेकर बाते हुई की कैसा बेकार रोड है इससे तो अच्छा होता की शिवपुरी से कोटा की ओर निकल जाते।
चाय पीने के बाद गाड़ी की कमान राहुल जी ने ले ली।ओर मैं दूसरी तरफ बैठ गया। समय लगभग शाम के 4 बज रहे थे ओर उज्जैन अब भी 245km की दूरी पर था।गाड़ी अपनी मध्यम रफ्तार से चली जा रही थी।कई छोटे बड़े गाँव कस्बे पड़े पर हम बस गाड़ी से ही उनका दीदार करते हुए चले जा रहे थे।रास्ते में कई छोटी बड़ी नदी,नाले पड़े जिन्हें हम देखते हुए चल रहे थे।रोड की दोनों ओर गहरा हरा रंग पेड़ पौधों पर छाया हुआ था,जो दिखने मे बहुत ही अच्छा लग रहा था।
सुबह से चलते हुए 10घंटों से ज्यादा वक्त हो चला था।इसलिए सभी को थकान महसूस हो रही थी,देवांग व वीर जोकी दोनों अभी छोटे ही है, बार बार यही पूछते की हम कब पहुँचेंगे।बस हम उन्हें यही दिलासा देते की जब रात हो जाएगी तब हम उज्जैन पहुँचेंगे। हमने इतना तो तय कर लिया था की वापसी में इस रोड से तो भूल कर भी नही आएँगे। मध्यप्रदेश वैसे अपने आप को भारत का दिल कहता है,पर्यटकों को हर तरह के माध्यम से अपने यहां पर बुलाता है पर सड़क ठीक नही करा सकता।फिर कौन जाना चाहेगा ऐसे दिल को देखने।
हम गुना से चलकर बायरा व सारंगपुर पार करते हुए शाहजहांपुर पहुँचे।रात के 9 बज चुके थे।यहां से उज्जैन अभी भी 80km दूर था। यहां पर भी हम ना रूके ओर आगे की ओर चल पड़े।तकरीबन 9:40 पर हम मक्शी पहुचें,यह एक छोटा सा कस्बा था।यहां पर हमने पेट्रोलपम्प पर गाड़ी मे डीजल भरवा लिया ओर बच्चो के लिए चिप्स व कोल्डड्रिंक ले ली।यहां से उज्जैन जाने के दो रास्ते है एक तो मक्शी से सीधा उज्जैन जो लगभग 40km की दूरी पर है ओर दूसरा मक्शी से देवास 35km ओर देवास से उज्जैन 39km।
हम मक्शी तक पहुँचते पहुँचते बहुत थक चुके थे।इसलिए पेट्रोलपम्प वाले से ही पूछा की कौन सा रास्ता अच्छा रहेगा।उसने कहा की आप मक्शी से उज्जैन वाला रास्ता ही पकड़ लो दो चार किलोमीटर का रास्ता तो खराब है बाकी नया बना है चार लेन का। उसके इस तरह के जवाब के कारण हम मक्शी से उज्जैन वाले रोड पर चल पड़े।यह रास्ता बिल्कुल सुनसान था,हमारी दोनों गाड़ियों के अलावा कभी कभी कोई ट्रक दिखलाई पड़ता।रास्ता खराब था,कभी अच्छी सड़क आ जाती तो कभी बिल्कुल कच्ची।इस रास्ते ने तो बिल्कुल सभी खराब सडको का रिकार्ड तोड़ दिया था।
होटल हमने पहले से ही बुक किया हुआ था,एक बार उसको फोन कर लिया की ओर बता दिया की हमारे तीन रूम बुक है ओर हम पहुंचने ही वाले है।आखिरकार हम सभी खराब सडको से जूंझते हुए रात के 11:30 पर महाकाल की नगरी उज्जैन पहुँच ही गए। होटल पहुंचने पर कमरे मे समान रख कर व फ्रैश होकर होटल मे बने रेस्टोरेंट पर खाना खा आए।ओर अपने अपने कमरों मे सोने के लिए चले गए...............
"जय महाकाल"
Yumuna express hiway
आगरा का लालकिला 
चम्बल नदी
बाबा देवपुरी मन्दिर की तरफ जाता कच्चा रास्ता
एक स्थानीय महिला प्रसाद बेचती हुई
बाबा देवपुरी मन्दिर का बाहरी प्रवेश द्वार
मन्दिर के पास मैं(सचिन),वीर व देवांग के साथ 
बाबा देवपुरी मन्दिर
ग्वालियर शहर से निकलते हुए
चलती गाड़ी से लिया फोटो
बैल 
नदी के बीच से जाता हुआ रास्ता।
भूरी मिट्टी का खेत
कुआं

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