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बुधवार, 20 जुलाई 2016

एक यादगार यात्रा (कुमाँऊ)

हर किसी का मन पहाडो को देखने व वहा पर जाने को करता है, ऐसा ही मन हमारा भी हुआ, आज आपको बहुत पुराना व अपना यात्रा वृतांत पढ़वाता हु। 


यह यात्रा मैने और मेरे कजन मतलब मेरे चचेरे,ममेरे भाईयो ने एक साथ की थी, वो भी घर झूठ बोलकर, उस समय मेरी उम्र लगभग 21 वर्ष थी ओर केवल मुझसे मेरे मामा के लडके राजू भाई ही थोडे से बडे थे, बाकी सब के सब मुझसे छोटे ही थे, हुआ ये की एक दिन हम सब मिले ओर कही बाहर जाने का कार्यक्रम बना लिया, पर जाए कैसे क्योकी घर वाले जाने नही देगे , इसलिए सब के सब आइडिया लगाने लगे की कैसे जाए, मुझसे छोटा में चाचा का लडका वेदांत ने कहा की वह कर लेगा, सबसे पहले उसने नकली गिफ्ट कूपन छपवाए, किसी नामी कम्पनी  के, जो हमे राजस्थान की यात्रा पर ले जा रहे थे, फिर वह कूपन घर पर दिखाए जब सब को यकीन हो गया की हां यह गिफ्ट कूपन असली है ओर यह फ्री में जा रहे है तो घर के किसी बडे ने हमे नही रोका, बस फिर क्या था एक दिन सुबह सुबह हम लोग (8 सदस्य) किराए की टैक्सी कर निकल पडे नैनीताल। सुबह के चार बजे थे, घर से तो निकल लिए पर कुछ समान हमारा एक दुकान में रखा था, सुबह सुबह दुकान की शटर ऊपर ऊठा दी, कुछ देर बाद पडौस में कुछ लोग डंडा ऊठाकर कर हमे मारने के लिए दौडे चले आ रहे थे, जब वह नजदीक आए ओर हमे देखा तो बोले की क्या भइया बता तो देते की आप हो, हम तो यह सोच रहे थे की चोरो ने शटर तोड लिया दुकान का। हम सब बहुत हंसे ओर शुक्रिया भी किया भगवान का ,पता नही डंडा लग ही जाता अगर सचमुच में तो क्या होता.
मार्च का महिना था, मौसम भी अच्छा था ओर भीड भी नही थी, पर कमी थी कैमरे की,  किसी के पास कैमरा नही था, बस एक के पास मोबाईल था लेकिन उसमे भी कैमरा नही। हम सुबह निकले ओर सीधे मुरादाबाद रूके,  जहां पर सुबह के नाश्ते के लिए एक दुकान से ब्रैड व बटर ओर केले ले लिए, चलते चलते वो ही खा लिए, फिर हल्दवानी रूके वही रोड साईड ढाबे पर राजमा चावल का स्वाद लिया, मैने ओर गौरव (मेरे मामा का लडका) ने इस यात्रा पर खूब धमाल मचाया।
जैसे तैसे कर हम लगभग दोपहर के दो बजे नैनिताल पहुंचे, हम लोग पहली बार ही यहां पर आए थे, इसलिए यहां के बारे में कुछ नही पता था, झील के पास ही एक होटल मे ठहर गए।
सब कुछ देर बाद नैनिताल झील की सैर पर निकल पडे, कुछ ने नाव की सैर को मना कर दी, लेकिन मै ओर गौरव दोनो 150 रू में पूरी झील का चक्कर लगा आए, नाव वाले ने ही बताया की झील के इस पार तल्लीताल व उसपार मल्लीताल है, ओर एक तरफ की सडक को मॉलरोड व दूसरी को ठंडी सडक़ कहते है, नाव से ही माता नैना देवी का मन्दिर देखा, नाव वाले ने ही बताया की यहां पर सती माता का एक आंख गिरी थी। यहां का मौसम बडा सुहाना था, फिर घर से दूर भी थे, जो मन कर रहा था वो कर रहे थे। नाव वाले से कहकर नाव एक किनारे पर लगवा दी, वहां से तिब्बत मार्किट घुमे ओर फिर हम सब माल रोड पर मिल गए, जहां पर खाना खाकर हम वापिस होटल पहुंचे, अब अंधेरा चारो ओर फैल चुका था, दूर पहाड पर कुछ लाईट जल रही थी, जो दिखने में बहुत सुंदर लग रही थी, सचमुच यह मेरे जीवन में पहाड के प्रति प्रेम जगाने वाली यात्रा होने वाली थी।
होटल पहुचने पर पता चला की वेदांत का पर्स गायब हो गया है, दो तीन हजार रूपयो के साथ ड्राईविंग लाईसेंस व गाडी की RC भी चली गई, पर यह कहकर की घर जाकर नई बनवा लेना, हम सो गए..
दूसरा दिन...
सुबह ऊठ कर भवाली की तरफ चल पडे, यही पास मे ही कैंचीधाम मन्दिर है, वहा पर गए, दर्शन किए प्रसाद खाया ओर बाहर एक दुकान पर चाय व बटर टोस्ट खा लिए, फिर हम वहां से सातताल पहुंचे,  यह ताल मुझे बहुत अच्छी लगी, एकांत व शांत क्षेत्र, ना ज्यादा पर्यटक। यहां पर हमने बहुत देर तक बोट चलाई, एक दूसरे की बोट में टक्कर भी मारी, पानी की बोतल में पानी खत्म हो गया तो गौरव ने झील का हरा पानी ही पी लिया, अगर मुझे इतनी प्यास भी लगती तब भी मै वह पानी नही पीता। झील में नाव चलाने के बाद वही पास में बने एक रैस्तरा में खाना खा लिया गया, ओर फिर हम कुछ देर बाद वहां से चल दिए।
हम सातताल से सीधे मुक्तेश्वर चल पडे, मैने यह नाम उस दिन पहली बार ही सुना था, गढ़ मुक्तेश्वर तो मैने सुना व वहां गंगा में नहाया भी पर यह कौन सा मुक्तेश्वर आ गया, चलो इसे भी देखते है, हम चल ही रहे थे की एक बोर्ड पर रामगढ़ लिखा था, सब कहने लगे की शोले का रामगढ़ आ गया। सब के सब घर से निकल कर मजे कर रहे थे, सब अपनी ही मस्ती में थें। हम सब छोटे बडे का रिश्ता भूल कर सब एक दोस्त बन गए थे। कुछ देर बाद सबको ठंड लगने लगी, मुक्तेश्वर का छोटा सा बाजार आया, ना कोई यहां पर होटल था ना कोई गेस्टहाउस,  हम आगे बढते गए, जहां तक सडक गई एक जगह उत्राखंड सरकार का गेस्टहाउस देखा, एक बडा कमरा ले लिया शायद 1200रू में था, लाईट यहां थी नही इसलिए हर जगह के लिए पहले से ही मोमबत्ती हमे दे दी गई, खाने में पुछा तो बोले की रसोई है ओर हम बना भी देगे पर आपको ही सब लाना होगा, ड्रायवर संग राजू भाई चले गए ओर मैगी के पैकेट, सलाद के लिए खीरे व सुबह के लिए बटर व ब्रैड व नमकीन ले आए।
हम लोग होटल के पीछे की तरफ चल पडे होटल से ही हमारे साथ एक कुत्ता चल पडा, पहले तो हम डरे पर वह हमारी हिफाजत के लिए ही चल रहा था, वह कुती हमारे साथ साथ ही चल रही थी, हम पहाड के पिछे ढलते सूरज को देख रहे थे, जो बहुत ही सुंदर लग रहा था, दूसरी तरफ बर्फ से ढकी पहाडियां नजर आ रही थी। यह जगह बहुत ठंडी थी साथ में हवा भी बहुत तेज चल रही थी ओर साथ में चीड, देवदार, व बुरांस के पेड हवा के कारण हिल हिल कर शोर कर रहे थे। अब हम वापिस होटल की तरफ लौट आए।
रात हो चुकी थी, तारे बहुत नजदीक व सुंदर लग रहे थे। गेस्टहाउस के कर्मचारी ने बोला की मैगी तैयार है, हम लोगो ने मैगी खायी मोमबत्ती के उजाले में, साथ में वहा के कर्मचारी यह भी बता रहे थे की यहां पर तेंदुआ भी आ जाता है, ओर नीचे जंगल में तो पता नही कितने ही खतरनाक जानवर है, यह सुनकर हमारे ड्राइवर की हवा संट हो गई, ओर वह सीधा कमरे में जाकर सो गया। हम लोगो तो कुछ देर बाहर ही बैठे रहे, रात में तारें बहुत सुंदर लग रहे थे, फिर हम लोग गाडी के म्युजिक सिस्टम सें संगीत का आनंद उठाते रहे। ओर आखिरकार रात अधिक होने के कारण व सर्दी बढ जाने के कारण हम सोने के लिए चले गए।
तीसरा दिन...
मेरी व दो ओर भाईयो की नींद सुबह चार बजे ही खुल गई, क्योकी कल रात हमे वहा के कर्मचारीयो ने बताया की यहां की सुबह बडी सुंदर होती है, जब सूरज की पहली किरणे इन बर्फ से ढकी ऊंची चोटियों पर पडती है तब यह सोने जैसे चमकती है। बस इसलिए हम आज जल्दी ऊठ गए की ऐसा नजारा जरूर देखना है।  उठने के कुछ देर तक ऐसे ही बैड पर पडे रहे फिर ऊठकर रसोई में पहुचे शायद पांच बज रहे थे, चाय को बोलकर हम कम्बल लपेटकर होटल के आगन में बैठ गए। जहां से बहुत सारी बर्फ की चोटिया नजर आ रही थी, हल्का सा अंधेरा था पर हम सूर्योदय  देखने के लिए वही बैठे रहे।थोडी देर बाद चाय आ गई, बहुत ठंड थी पर सूर्योदय का वह नजारा जब बर्फ से ढंकी चोटिया लाल तो कभी सुनहरी दिखती है, वो हम देखना चाहते थे, फिर जिस घडी को हम देखना चाहते थे वह नजारा दिखा, मै शायद ही वह वर्णन कर पाऊ इसलिए एक शब्द कहना चाहुगा की चमत्कार जैसा था यह सब। वापिस कमरे में आ गए,  नहाने के लिए गरम पानी मिल गया, सभी नहा कर व चाय ओर टोस्ट का नाश्ता कर,  चोली की जाली नामक सुसाईड पोईंट की तरफ चल पडे। रास्ते में कुछ कुत्ते मिले जो लगातार हम पर भौंके ही जा रहे थे, लेकिन हमारी रक्षक फिमेल डॉगी(संगीता)ने सबको भगा दिया, ओर वह आगे आगे चलने लगी हम पिछे पिछे चोली की जाली पहुंचे। यहां पर कई सो मीटर खडी खाई है ओर एक पत्थर पर कुछ अंग्रैजो के नाम खुदे है शायद उनके नाम जिन्होने यहां से कुदकर जान दी हो।
चोली की जाली नाम लेते हुए जब शर्म आ रही थी। यहां से हम एक पहाडी पर चढ गए, जिसके आखिरी में एक शिव मन्दिर था, यह मन्दिर बिल्कुल ऐकांत में था, कोहरा धुंध चारो ओर फैल जाता था, लम्बे लम्बे पेडो के बीच यह मन्दिर बना था, यहां पर दर्शन कर हम दूसरी तरफ बने रास्ते पर चल पडे, जो होटल की दूसरी ओर उतरता है, हम नीचे पहुचं कर गाडी मे बैठ गए ओर चल पडे अगली मंजिल रानीखेत की तरफ।
रास्ते में रूकाते व सुंदरता को निहारते हुए पहुच गए रानीखेत, बीच में एक मन्दिर भी पडा झूला देवी का पर हम मन्दिर नही गए बस मन्दिर के नीचे जंगल में घुम आए, फिर यहां से चल पडे लगभग शाम हो चली थी जब गम रानीखेत पहुचे। पास मे ही एक होटल ले लिया, मै ओर दो भाई समान रख कर बाहर घुमने निकल पडे, जब हम होटल में वापिस आए तो रोने वाली सूरत बना ली ओर कहने लगे की चाचा को पता चल गया है की हम झूठ बोलकर यहां आए है, ओर वो कल यहां पर आ रहे है, इतना सुनते ही चाचा का लडका रोने लगा कहने लगा की बहुत मार पडेगी, जब ज्यादा ही हो गया तब हमने उसे बताया की हम तो मजाक कर रहे है उन्हे नही पता चला। जब उसकी जान में जान आई।
फिर हम रात को होटल में खाना खाकर जल्दी ही सो गए।
चौथा दिन....
सुबह आराम से ऊठे, फ्रैश होकर नाश्ता किया ओर निकल पडे, रानीखेत के गोल्फकोर्स की तरफ, रास्ते में हमे एक बॉल पडी मिल गई, जिससे हम कैच कैच खेलने लगे, कुछ दूर पर थोडी भीड लगी देखी तो निकल लिए उधर की तरफ देखने की क्या माजरा है यह भीड क्यो लगी है। देखा तो अपना शाहिद कपूर बैठा था, विवाह फिल्म की सुटिंग हो रही थी, सुटिंग देखना बकवास लगता है एक ही सॉट कई बार करना पडता है, बिल्कुल बकवास लगता है। फिर शाहिद कपूर व अन्य स्टाफ के लोग भी बॉल से खेलने लगे। लेकिन अपनी से क्योकी यह एक गाने की सुटिंग थी।
हम वापिस आ गए ओर कुछ देर घुम-फिर कर हम वहां से चल पडे ओर चौबटिया गार्डन की तरफ। यहां पर सेब के बाग भी थे। कुछ दूर जाते है एक पार्क मे घुस गए, वहा पर कुछ गाईड पिछे पड गए की जंगल की सैर कराएगे, एक सौ रूपयो मे मान गया ओर पंगडंडी से अलग नीचे उतर गया जंगल में हम उसके पिछे-पिछे चलते रहे। पता नही कहां कहां ले गया वो हमे कभी पेडो के बीच तो कभी झाडियो से निकल रहे थे, पैर के नीचे पत्तियो की कुचलने की आवाज आ रही थी, जो अलग ही डर के हालात पैदा कर रहे थे। बाकी सब हमे(मुझे ओर गौरव)कह रहे थे की तुम ही लाए इस जंगल मे,चलो अब ऊपर चलो।   हमारा गाइड चलते चलते एक जगह रूक गया  ओर सबको शांत रहने के लिए कहने लगा, अब सबकी हवा संट हो गई, की पता नही यहां कौन सा जानवर आ गया। वह किसी जानवर की आवाज निकालने लगा, फिर कुछ गोबर पडा था कहने लगा की जंगली सुअर  का ताजा गोबर है, गौरव ने गौबर हाथ से छुआ तो वह कडक था मतलब पुराना, हम दोनो एक साथ बोले की उल्लू मत बना। फिर वो हमे कुछ ओर आगे ले गया यहां पर पेड बहुत थे जिसके कारण दोपहर मे भी अंधेरा सा था, वहा पर पानी की आवाज आ रही थी वह हमे उधर ले जाने लगा, शायद भालू पुल (beer bridge) की तरफ। तभी ऊपर से कही शोर आ रहा था की तेंदुआ तेंदुआ। बस फिर क्या था हमारे गाईड से लेकर जो भाई लोग पिछे पिछे चल रहे थे डर के मारे भाग लिए ओर ऊपर पहुच गए, मै ओर गौरव आराम से आए, ऊपर आकर अन्य गाइड से पता चला की हमारे गाईड साहब पहली बार ही जंगल मे नीचे गए है। वो भी इसलिए की आप लोग ज्यादा संख्या में जो थे। गाइड को पैसे देकर हम वहा से चल पडे। यहां पर मैने बिच्छू घास को पकड लिया ओर जिसकी जलन अगले दिन ठीक हुई।
रास्ते में खाना भी खाया फिर अब शाम को रानीखेत के होटल पहुंचे, रात को खाना खाकर जल्दी ही सो गए।
पांचवा व अंतिम दिन...
सुबह जल्दी उठकर व नहाधौकर सात बजे के करीब हम लोग चल पडे। हम लोग नैनिताल की तरफ ना जाकर, रानीखेत से एक रास्ता जंगल से होता हुआ जिम कॉर्बेट पार्क की तरफ चला जाता है, बस हम लोग रास्ते मे एक मन्दिर के पास रूके, मन्दिर मे दर्शन करने के बाद वही चाय की दुकान पर चाय व पकौडी का नाश्ता किया, ओर चल पडे। यह रास्ता बहुत सुंदर था, बीच बीच में एक नदी शायद कोसी नदी थी वह भी दिखती रहती साथ में हिरण व ओर अन्य जंगली जानवर भी दिखते रहते। इस रस्ते पर ट्रैफिक बिल्कुल नही था, कुछ छोटे गांव भी मिल जाते थे। लगभग 11 बजे के आसपास हम लोग जिम कार्बेट पार्क के ढिकाला गेट पर पहुँचे । जहां हमने प्रति व्यक्ति की पर्ची कटवाई ओर अपनी गाडी को जंगल में घुसा दिया। क्योकी हमारी गाडी बडी थी इसलिए इसे अंदर जाने दिया नही तो बाहर से जीप किराए पर करनी पडती। जिम कार्बेट पार्क में अंदर जाकर हम एक कैंटीन पर रूके वहा पर चिप्स व कोलड्रिंक ही मिली, वहा पर एक नन्हा हिरण का बच्चा था, कैंटिन वाले ने बताया की यह बच्चा जंगल से बाहर निकल कर यहां आ गया, तब से यह यही रहता है। हम लोग एक छोटी सी जल धारा को पार कर के घने जंगल मे चले गए। यहां पर गर्मी बहुत लग रही थी हमारा बहुत बुरा हाल हो रहा था, हम एक जगह पेड की छांव मे गाडी लगा कर वही बैठे रहे ओर इधर उधर देखते रहे पर बाघ नही दिखा, हिरण व बंदर ओर सियार ही दिख रहे थे बस। फिर हम वहा से चल पडे आगे जाकर एक सुखी नदी मिली ड्राईवर में उसमे गाडी उतारने को मना कर दिया, हमारी उससे बहस हो गई। राजू भाई ( मामा के लडके) ने ड्राइवर को पिछे भेज दिया ओर खुद गाडी चलाने लगे। गाडी उस सुखी नदी मे उतार दी, पास मे ही लम्बी लम्बी भूरे रंग की झाडिया थी, वही पर गाडी खडी कर दी, लगभग आधा घंटे हम लोग वही बैठे रहे पर हमे बाघ ना दिखाई दिया। गाडी के तकरीबन पंद्रह बीस फुट दूर से झाडी पर लाल रंग के बेर लगे थे, जिन्हे देखकर मै ओर गौरव गाडी से नीचे उतर गए, खुब सारे बेर तोडे हमने जबकी सब हमे कह रहे थे की नही नीचे मत उतरो यहां पर खतरा हो सकता है, पर वह उम्र ही कुछ ओर होती है, भला हम क्यो किसी की मानने लगे। हम बेर तोड ही रहे थे की झाडियो से खडखड की बहुत तेज आवाज आने लगी, जैसे कोई आ रहा हो हम भाग कर गाडी मे बैठ गए। थोडी देर में वहा से दो नेवले निकले, जबकी हम बाघ समझ रहे थे। अब हम वापिस चल पडे। ओर जिम कार्बेट पार्क से बाहर आ गए। रामनगर आकर कुछ हल्का पुल्का खाया ओर घर की तरफ चल पडे। रात को घर पहुचे.


यह यात्रा मुझे हमेशा याद रहेगी, यह मेरे दिल के बहुत करीब है, इस यात्रा की कोई फोटो नही है, जिसका दुख होता है, काश हम कैमरा ले जाते ।

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