दिल्ली से जानकी चट्टी

गंगोत्री और यमुनोत्री जाने की चाह काफी दिनों से थी और कई बार जाने का प्लान बना भी लेकिन कभी प्लान कैंसिल हो जाता तो कभी कही अन्य जगह चला जाता। अप्रैल 2019 में मैंने नई कार खरीदी और सोचा कि चलो इसको ही लेकर कहीं सैर पर चला जाया जाए लेकिन जाया जाए तो कहां? फिर मन में ख्याल आया कि क्यों ना गंगोत्री-यमुनोत्री यात्रा पर ही चला जाए वैसे भी मैं वहां गया नहीं हूं और काफी सालों से जाने की सोच भी रहा हूं। मैंने सोचा क्यों ना परिवार के साथ ही इस यात्रा को किया जाए। मेरे बेटे देवांग की स्कूल की ग्रीष्मकालीन छुट्टियां हो जाने के बाद जाने का निर्णय किया गया। वैसे तो मई-जून में चार धाम यात्रा की भी शुरुआत हो जाती है और उत्तराखंड के सभी धामो पर पूरे इंडिया से दर्शन के लिए यात्री आते हैं और काफी भीड़ भी हो जाती है। वैसे गंगोत्री व यमुनोत्री व अन्य धाम पर आने का सबसे अच्छा मौसम सितंबर अक्टूबर से लेकर दिवाली तक का होता है। क्योंकि तब बारिश भी कम होती है और भीड़ भी कम मिलती है। लेकिन ज्यादातर लोग फैमिली संग घूमने जाते है इसलिए वो बच्चों की गर्मियों की छुट्टियों में ही पहाड़ी प्रदेशों की तरफ निकलते है। और एक बात जब मैं छोटा था और किसी से गंगोत्री आदि जगहों के किस्से सुना करता था उसके बाद गंगोत्री और यमुनोत्री जाने का ख्याल जब भी मन में आता था तो कुछ दृश्य मेरे मन मस्तिक में आने लगते थे जैसे कि वहां का वातावरण कितना स्वच्छ होगा, बर्फ के पहाड़ काफी नज़दीक दिख रहे होंगे, आसपास घने जंगल होंगे, चारो तरफ शांति होगी और नदी में शीतल जल बह रहा होगा।
28 मई 2019
जल्द ही वह दिन आ गया जिस दिन हमे अपनी यात्रा पर निकलना था। सुबह जल्दी उठकर हम तकरीबन सुबह 4:30 पर अपने घर से गंगोत्री-यमुनोत्री यात्रा के लिए निकल पड़े। अपने कार्यक्रम के अनुसार हमे पहले यमुनोत्री जाना था और फिर गंगोत्री। कार में बैठते ही गूगल मैप किया तो मैप ने हमें बताया कि जानकीचट्टी पहुँचने के लिए लगभग 10 घंटे का समय लगेगा जो कि दिल्ली से 405 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। गाड़ी का फ्यूल टैंक मैंने रात को ही फुल करा लिया था और सभी सामान भी रात को ही कार में रख दिये थे जिससे सुबह ज्यादा समय खराब ना हो और हम जल्दी से निकल चले। अभी सड़क खाली ही थी कुछ ट्रक तो कुछ गाड़ी ही रोड पर दिख रही थी। मुरादनगर पार करने के बाद गंग नहर के साथ वाले रास्ते से चल पड़े। अभी चारो तरफ अंधेरा ही था और इसी अंधेरे को चीरते हुए हम आगे बढ़ रहे थे। खतौली के आसपास पहुँचे तो हल्की हल्की रोशनी चारो तरफ फैल चुकी थी। खेत खलियान देख कर मन आनंदित हो गया था। मुजफ्फरनगर होते हुए हम देवबंद पहुँचे। पहले देवबंद से सहारनपुर रोड काफी खराब हुआ करता था लेकिन यह रास्ता अभी कुछ साल पहले से बहुत बेहतरीन बन चुका है इसलिए हम इसी रास्ते पर आगे का सफर तय करेंगे। हम देवबंद से आगे गागलहेडी होते हुए छुटमलपुर पहुंचे। छुटमलपुर से यह रास्ता बिहारीगढ़ होते हुए देहरादून के लिए चला जाता है। लेकिन हमें हरबर्टपुर जाना था इसलिए हम छुटमलपुर से बांये तरफ जाती सड़क पर मुड गए। इसी रास्ते पर आगे बेहट नाम का कस्बा आता है यही से एक रास्ता माता शाकुंभरी देवी के लिए अलग हो जाता है। लेकिन हम आगे हरबर्टपुर की तरफ चल पड़े। यह रास्ता छोटे-छोटे गांव से होते हुए जा रहा था। दोनों तरफ खेत तो कभी जंगल ही दिखाई पड़ रहे थे। ऐसे रास्तो पर गाड़ी चलाना बहुत आनंद देने वाला होता है। कुछ घंटे सफ़र करने के बाद हम एक मोड़ पर पहुँचे जिधर से हरबर्टपुर की दूरी मात्र 7 किलोमीटर ही रह गयी थी और इधर से एक रास्ता पौंटा साहिब की तरफ भी रहा था। वैसे यह पौंटा रोड भी मेरा देखा हुआ है क्योंकि जब मैं
रेणुका जी से ऋषिकेश गया था तब इसी रास्ते से आया था। खैर हम हरबर्टपुर की तरफ मुड़ गए। हरबर्टपुर उत्तराखंड का एक छोटा व अच्छा शहर है और आसपास के गांव आदि से काफी लोग यहां पर अपनी जरूरत का सामान आदि की शॉपिंग करने के लिए आते हैं। यहां पर कुछ समय रुक कर हमने फल भी खरीदे। हरबर्टपुर से कुछ किलोमीटर आगे डाकपत्थर नामक जगह पड़ती है यहां से एक रास्ता कलसी होते हुए उत्तराखंड के प्रसिद्ध हिल स्टेशन चकराता के लिए चला जाता है। लेकिन हमें यमुनोत्री मार्ग पर ही चलना था इसलिए हम सीधा ही चलते रहे। मैंने गाड़ी का मीटर देखा तो पता चला की हम दिल्ली से अब तक 265 किलोमीटर चल चुके थे जो हम ने लगभग 5 घंटे में ही तय कर लिया था और अब हमें जानकीचट्टी तक के लिए तकरीबन 140 किलोमीटर और चलना था लेकिन आगे के यह 140 किलोमीटर पूरे पहाड़ी रास्ते पर ही तय करने होंगे और जिसमें हमें लगभग 5 घंटे का समय लगना था।
अब भूख जोरो से लग चली थी इसलिए एक भोजनालय देख कर हम रुक गए और भोजन किया गया। राजमा चावल व चपाती आर्डर कर दी गयी। खाना खाने के बाद पेट को खुराक मिल गयी थी और आगे बढ़ने के लिए ऊर्जा भी। अब आगे पहाड़ी रास्ता शुरू हो चुके थे। कार इन बलखाते ठेढ़े मेढ़े रास्तो पर मंद मंद चल रही थी, यह पहाड़ी रास्ते काफी सुंदर होने के साथ खतरनाक भी होते है इसलिए हमें ध्यान से वाहन चलाना चाहिए। हमें ट्रैफिक शून्य के बराबर ही मिल रहा था। इसी रास्ते पर हम एक मोड़ पर पहुंचे जहां से एक रास्ता केम्पटी फॉल व मसूरी के लिए चला जाता है। जो लोग देहरादून की तरफ यमनोत्री के लिए आते है, वह मसूरी होते हुए इस रास्ते से ही आते है। और कुछ लोग जो हरिद्वार ऋषिकेश से यमनोत्री गंगोत्री जाते है वह टिहरी, चंबा व धराशु बैंड होते हुए जाते है। कुछ किलोमीटर चलने पर ही यमुना नदी पर बना एक पुल पड़ा जिसको युमना ब्रिज बोला जाता है। इधर कुछ चाय पानी की दुकान भी बनी हुई है। हम कुछ देर यमुना ब्रिज पर रुके यहां से यमुना नदी का दृश्य देखना बड़ा अच्छा लगता है। आप लोग भी जब भी इस रास्ते से आये तो इधर जरूर रुकना। इधर से कुछ लोग यमुना नदी के तट पर नीचे भी जा रहे थे। जहाँ वह बड़े बड़े पत्थरों पर बैठ कर फ़ोटो भी खिंचवा रहे थे। लेकिन हम नीचे नही गए और आगे की तरफ बढ़ चले कुछ किलोमीटर चलने के बाद नैनबाग नामक एक जगह आती है। मैं इस सड़क पर आखिरी बार यहां तक ही आया था, जब मैं अपने एक दोस्त मुसाफिर नीरज कुमार के साथ नाग टिब्बा यात्रा पर आया था। तब मैं यहां नैनबाग से
पंथवाड़ी गांव वाले रास्ते पर गया था। पंथवाड़ी से ही हमने
नाग टिब्बा ट्रैक किया था। आज मुझे एक बार वही ट्रैकिंग फिर से याद आ गयी थी। हम नैनबाग से आगे पड़े आगे रोड पर काम भी होता दिख रहा था। अब हम एक इतनी ऊंचाई पर चल रहे थे जिधर से यमुना नदी हमे बहुत नीचे बहती दिख रही थी। पहाड़ी रास्ते पर काफी मोड़ होते हैं जिस कारण गाड़ी उतनी गति नहीं पकड़ पाती है और आराम से चलानी होती है। अब रास्ते में छोटे-छोटे गांव भी दिख रहे थे जिसमें कुछ लोग हमें खेती करते हुए भी दिख रहे थे। कुछ पालतू जानवर भी सड़क पर दिख जा रहे थे। अब मौसम कुछ सुहाना व हवा ठंडी हो चली थी। दोपहर के लगभग 1:00 बजे के आसपास हम उस स्थान पर पहुंचे जहां से एक रास्ता लाखामंडल के लिए अलग हो जाता है यहां से लाखामंडल 5 किलोमीटर दूरी मात्र पर ही रह जाता है हम लाखामंडल नहीं गए क्योंकि हमें आज जानकीचट्टी तक जाना था। जिसका रास्ता अभी भी 3 घंटे का बाकी रह गया था और उधर पहुँचने पर रात में रुकने के लिए होटल भी ढूंढ़ना था। लाखामंडल जगह को महाभारत से जोड़ा जाता है कहा जाता है कि पांडवों को यहीं पर लाख के बने महल में मारने की कोशिस की गई थी। कहते है वो लाक्षागृह यहाँ पर ही था। लकिन कुछ लोग बरनावा (मेरठ के नजदीक ) को ही असली लाक्षाग्रह मानते है क्योंकि उधर आज भी गुफा मौजूद है .
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इधर ही रुक कर खाना खाया था |
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यमुना ब्रिज
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जानकी चट्टी पहुँच गए . |

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जानकी चट्टी से दिखती हिमालय पर्वत की कुछ की चोटियाँ
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जानकीचट्टी से ही यमुनोत्री धाम के लिए पैदल यात्रा करनी होती है जो कि 6 किलोमीटर की होती है कुछ लोग जो पैदल ना जाना चाहें उनके लिए घोड़े/खच्चर व कुछ लोगो के लिए पालकी, छोटे बच्चों के लिए पिट्ठू की सुविधा भी यहां पर उपलब्ध होती है। यहां पर हमें कुछ दर्शन करके आते हुए यात्री मिले उन्होंने बताया की बहुत भीड़ थी ऊपर काफी समय भी लगा दर्शन करने में। उन्होने सलाह भी दी कि आप सुबह जितना जल्दी हो सके उतनी जल्दी यात्रा प्रारंभ कर देना जिससे आप जल्द व आराम से दर्शन कर सके। उन्होंने बताया कि उनको चढ़ाई भी ज्यादा लगी इसलिए आप घोड़ो पर ही जाए तो बेहतर होगा। उन्होंने बताया कि यात्रियों की तादात ज्यादा होने के कारण रास्ते में जाम भी लग जाता है। मेरा मन तो पैदल ही यात्रा करने का था लेकिन बेटे और श्रीमती के कहने पर घोड़े पर चलने को स्वीकार कर ही लिया। फिर एक घोड़े/खच्चर वाले से बात हुई उसने 1100 रुपये प्रति व्यक्ति का बोल दिया मंदिर तक आने जाने के। हमने उसको होटल का नाम व रूम नम्बर बता दिया व उसका नम्बर भी ले लिया और साथ मे बोल भी दिया कि वह सुबह 4:30 तक जरूर आ जाये। उससे बात कर हम होटल की तरफ चले गए

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खरसाली गाँव का एक मंदिर
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एक अन्य मंदिर
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बहुत सुंदर फ़ोटो लिए है आपने
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मोहित जी
हटाएंखूब बढ़िया सचिन भाई। मैं अभी तक वहां नहीं गया तो इस यात्रा को आपके साथ करना और भी रोमांचक लग रहा है !
जवाब देंहटाएंआभार आपका योगी भाई मेरा लेख आपको पसंद आया इसलिए।
हटाएंदिल्ली से जाने वाले पर्यटक को अच्छी जानकारी दी है आपने
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कटारिया जी
हटाएंबहुत बढ़िया लेख। इससे यमुनोत्री जाने वाले लोगों को बहुत अच्छी जानकारी प्राप्त होगी।
जवाब देंहटाएंजी इसलिए ही ब्लॉग लिखता हूँ जिससे मेरी यात्रा से अन्य लोग लाभान्वित हो सके।
हटाएंजानकारी से परिपूर्ण यमुनोत्री यात्रा का ये लेख पसंद आया । रास्ते की जगह और सड़क मार्ग अच्छे से बताया । यमुना के उस पुल तक तो हम भी गए है जब चकराता से मसूरी गए थे ।
जवाब देंहटाएंमेहनत लगती है एक ब्लॉग को बनाने में और ये काम आप कर रहे हो ।
धन्यवाद रितेश जी।
हटाएंबहुत अच्छा लिखा ह सचिन भाई आपने ,पर म तो पहले गंगोत्री वाली यात्रा पढ़ी ह,खैर अब फिर कोई भाग पढता हूँ
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अशोक जी। कोई बात नही आप ऐसे ही संवाद बनाए रखें।
हटाएंबहुत अच्छा यात्रा लेख, सुन्दर वृतांत। मै भी यमुनोत्री तीन बार जा चुका हूँ, विगत 2017 मे अन्तिम बार गया था। सितम्बर के महीने मे भीड़ नही होती है, वक्त मिले तो सितम्बर या अक्तूबर मे एक फिर जाईये। अत्यधिक आनन्द की प्राप्ति होगी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शैलेंद्र भाई जी।
हटाएंजी बिल्कुल! एक बार अक्टूबर में भी जाना चाहूँगा।
मेरी भी बहुत इच्छा है यमनोत्री जाने की ,तुम्हारी उस पोस्ट से मेंर भी मन हो जाये😂😂😂
जवाब देंहटाएंबुआ जी प्रणाम🙏
हटाएंइस यात्रा से जुड़े रहे अगली पोस्ट यमनोत्री मंदिर के ऊपर ही रहेगी।
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इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपने यमुनोत्री के बारे में बहुत ही अच्छा बताया है मैं भी एक बार यमुनोत्री जाना चाहती हूं।
जवाब देंहटाएंकामना करता हूँ की आपकी यह इक्छा जल्द ही पूरी हो🙏
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