भूली भट्यारी महल ,दिल्ली |
दिल्ली राज्य में वैसे तो बहुत सी ऐतिहासिक इमारते है। लेकिन बहुत सी ऐसी जगह भी जिनको लोग कम जानते है या फिर जानते ही नही है। ऐसी ही जगहों में से एक जगह है भूली भटियारी महल। इसका निर्माण 14वी शताब्दी में दिल्ली के शासक फ़िरोज़ शाह तुगलक ने करवाया था। पहले यह जगह घना जंगल हुआ करती थी। वैसे तो आज भी यह जगह जंगल का रूप लिए हुए है। इस जंगल मे सुल्तान व शाही परिवार शिकार खेलने के लिए आते थे। इसलिए इस महल का निर्माण शिकारगाह के रूप किया गया। महल में एक ही प्रवेश द्वार है जिसमे एक छोटी सी गैलरी बनी ही है फिर एक द्वार और है जिसको पार करने के बाद एक बडा सा आंगन(अहाता) है। जिसमे कुछ छोटे कोटड़ी (छोटे कमरे) बने हुए है। जहां पर कभी सैनिक या नौकर चाकर रहा करते होंगे। या फिर रसोईघर के रूप में उपयोग किया जाता होगा। महल में कुछ टॉयलेट जैसी बनावट के स्ट्रैचर भी मौजद है। एक सीढीदार रास्ता ऊपर की मंजिल पर चला जाता है। ऊपर भी दो एक जैसे टॉयलेट जैसे स्ट्रैचर बने है जो शायद जनाना और मर्दाना हो सकते है। बाकी कुछ कमरे भी रहे होंगे जो आज मौजूद नही है।
इस महल को लेकर कुछ कहानियां भी सुनी जाती रही है। कुछ कहानी में बताया जाता है कि कोई औरत जो राजिस्थान की भटियारिन थी वो रास्ता भटक कर इस जंगल मे आ गयी और इस खाली पड़े महल में रहने लगी। वह लोगो को पानी पिलाने और खाना दे देती थी। कहते हैं कि फिर वो मर गयी। कहानी के अनुसार आज भी उसकी आत्मा यही कही भटकती है। इसलिए दिल्ली पुलिस भी शाम के बाद किसी को इस महल की तरफ नही जाने देती। ऐसी ही एक दूसरी कहानी में सुल्तान की एक रानी को ये महल पसंद नही आया तो सुल्तान ने उसे इस महल में बंद कर दिया और वह मर कर भूत बन गयी। इस तरह की और भी कहानियां है जिसमे इस महल को भूतिया बताया गया है। वैसे ऐसी कहानियां का किसी भी पुराने इतिहास की किताबों में जिक्र नही आता है। खैर किसी को भूत इधर मिले या नही मिले लेकिन आप अगर पुरानी इमारतों को देखने के शौकीन है और एकांत पसंद इंसान है। तो आपको यहाँ आना चाहिए।
इस महल को लेकर कुछ कहानियां भी सुनी जाती रही है। कुछ कहानी में बताया जाता है कि कोई औरत जो राजिस्थान की भटियारिन थी वो रास्ता भटक कर इस जंगल मे आ गयी और इस खाली पड़े महल में रहने लगी। वह लोगो को पानी पिलाने और खाना दे देती थी। कहते हैं कि फिर वो मर गयी। कहानी के अनुसार आज भी उसकी आत्मा यही कही भटकती है। इसलिए दिल्ली पुलिस भी शाम के बाद किसी को इस महल की तरफ नही जाने देती। ऐसी ही एक दूसरी कहानी में सुल्तान की एक रानी को ये महल पसंद नही आया तो सुल्तान ने उसे इस महल में बंद कर दिया और वह मर कर भूत बन गयी। इस तरह की और भी कहानियां है जिसमे इस महल को भूतिया बताया गया है। वैसे ऐसी कहानियां का किसी भी पुराने इतिहास की किताबों में जिक्र नही आता है। खैर किसी को भूत इधर मिले या नही मिले लेकिन आप अगर पुरानी इमारतों को देखने के शौकीन है और एकांत पसंद इंसान है। तो आपको यहाँ आना चाहिए।
महल देखने के लिए आप झंडेवालान मेट्रो स्टेशन पर उतरे और लगभग 600 mtr पैदल चल कर यहा पहुँच सकते है। सड़क मार्ग से आने के लिए आप करोल बाग के बग्गा लिंक पहुँचे या फिर हनुमान मंदिर(बड़ी मूर्ति वाले हनुमान) पर पहुँचे। महल का रास्ता इनके पीछे से ही जाता है। महल देखने का कोई टिकट नही है। फ़ोटो और वीडियो बनाने पर किसी भी तरह की पाबंदियां नही है। सप्ताह के सातों दिन खुला रहता है। सुबह 8 बजे से शाम के अंधेरा होने से पहले देखा जा सकता है।
भूली भट्यारी महल का बाहरी द्वार |
मेरा यात्रा वर्णन
मेरा और मेरे दोस्त योगी सारस्वत जी का भूली भटियारी देखने का प्रोग्राम बना लेकिन हम दोनों उस दिन जा ना सके। फिर एक दिन मुझे पता चला कि घुमक्कड़ी दिल से ग्रुप( GDS) एक फोटो वॉक आयोजित कर रहा है। भूलि भटियारी महल पर। दिनांक 13 oct संडे को यह मीटिंग रखी गयी। मैंने भी तय समय पर पहुँचने का बोल दिया 13 तारिख को लगभग 11:20 पर संजय कौशिक भाई का फ़ोन आया कि सचिन कहा रह गया? हम झंडेवालान मेट्रो स्टेशन पहुँच गए है। फ़ोन आने पर ही मुझे याद आया कि आज तो GDS की मीटिंग है। क्योंकि सुबह से ही घर के कामो मे उलझा हुआ था इसलिए फ़ोन देखने का भी समय नही मिला। खैर संजय भाई को मीटिंग में ना आने की सूचना दे दी। क्योंकि मैं अब कब तो जाऊंगा और कब पहुँचगा कुछ पता नही। मेरी यह बाते मेरा 9 वर्षीय बेटा देवांग भी सुन रहा था। वह मुझको बोला कि पापा मुझे भी चलना है आपके साथ। फिर मैंने सोचा की चलते ही है जो होगा देखा जाएगा। फिर हम दोनों लगभग 11:45 पर स्कूटी उठा कर करोलबाग की तरफ चल पड़े। हम करोलबाग के हुनमान मंदिर पहुँचे। मंदिर के बाहर हनुमानजी की बहुत विशाल मूर्ति बनी है। बस यही लैंडमार्क भी है भूलि भटियारी महल का क्योंकि मंदिर के पीछे से ही एक रास्ता चला जाता है महल की तरफ। हम लगभग 12:45 पर भूलि भटियारी पहुँच चुके थे। फिर मैं कुछ पुराने और नए मित्रो से मिला। फिर हम सभी इस खंडरनुमा महल में घूमे। काफी देर तक आपस मे बातचीत होती रही। एक दूसरे के साथ फोटोशूट होते रहे फिर हम सभी ने महल के चारो तरफ चक्कर भी लगाया। हम सभी इस पल को काफी इंजॉय कर रहे थे। मेरे बेटे के अलावा कुछ और बच्चे भी थे वो सभी इधर उधर भागी दौड़ी में मशगूल थे। महल के पास ही एक पार्क बनाया गया है हम सभी दोस्त थोड़ी देर उधर पार्क में बैठे और फिर साथ लाये खाने की चीज़ों को खाया गया। उधर ही बैठ कर यह भी निर्णय लिया गया कि इस प्रकार की फ़ोटो वाक होती रहनी चाहिए। काफी देर बाद हम सभी एक दूसरे से मिलकर वापिस आपने अपने अपने घर को लौट गए।
हनुमान मंदिर करोलबाग |
gds परिवार बैनर द्वारा सन्देश देते हुए। |
मैं और योगी सारस्वत जी |
अति सुंदर लेख पढ़ कर बहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका।
हटाएंnice...ek chot se jagha...jaha jaya ja saktahai...thans
जवाब देंहटाएंजी बिल्कुल जाया जा सकता है। thanks
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