यात्रा की रूपरेखा-
अक्तूबर 2019 की बात है एक दिन ललित का फ़ोन आता है कि काफी दिन हो गए है कही बाहर गए हुए। तो आप कोई प्रोग्राम बना लो लेकिन बनाना उत्तराखंड का ही और उसमें बद्रीनाथ भी शामिल हो सके तो और बढ़िया रहेगा। मैंने उससे बोला कि अभी पिछले साल तो बद्रीनाथ जी के दर्शन कर के आये है कही और चलते है इस बार उसने बताया कि इस बार उसके दो दोस्त भी साथ चलने को बोल रहे है और वही बोल रहे है कि बद्रीनाथ चलेंगे इस बार। मैने अगले दिन उसको बताया कि रुद्रप्रयाग के पास कार्तिकेय स्वामी का मंदिर है और मंदिर तक पहुँचने के लिए 3km का पैदल ट्रेक भी है। जिसको आराम से 3 से 4 घंटो में कर सकते है। और उधर से फिर शाम तक जोशीमठ भी पहुंचा जा सकता है। तो इस प्रकार हमारा टूर बन चुका था। की हमें उत्तराखंड ही जाना था और पहले दिन रुद्रप्रयाग रुकना था और दूसरे दिन कार्तिक स्वामी मंदिर ट्रैक करके जोशीमठ के आस-पास ही रुकना था।
व्हाट्सएप ग्रुप बनाया-
फिर ललित ने अगले दिन एक व्हाट्सएप ग्रुप बना लिया जिसमे मेरे अलावा अपने दोनों दोस्तो को भी जोड़ लिया।लेकिन कार्तिकेय स्वामी ट्रैक पर जाने के नाम पर ललित आना कानी करने लगा। कभी कहता कि उधर नही जाऊंगा क्योंकि मेरे से नही चला जाएगा कभी कहता कि इसको यात्रा लौटते वक्त करेंगे। लेकिन मैंने भी साफ साफ बोल दिया कि अगर मेरे कार्यक्रम से चलना है तो बोलो नही तो अपना जाना कैंसिल है। बाकी दो दोस्तो ने भी मेरा समर्थन कर दिया। और तय हुआ कि हम 01 nov को सुबह 4 बजे निकल चलेंगे अपने सफर पर।
यात्रा की तैयारी-
अंकित और अमित(ललित के दोस्त) ने बताया कि वह उत्तराखंड में सिर्फ मसूरी, नैनीताल और हरिद्वार तक ही गए हैं। उनकी बात सुनकर मुझे काफी ताजुब हुआ कि वो अभी तक उत्तराखंड की बाकी सुंदर जगह कैसे नहीं गए हैं खैर अब उनको बताया कि इस मौसम में स्नोफॉल भी मिल सकता है इसलिए कपड़ो के साथ कुछ गर्म कपड़े व एक जैकेट भी रख ले और जरूरी दवाइयां भी रख ले और हर छोटी बात को आपस मे पूछ सकते है इस प्रकार मैं 31अक्टूबर की रात 8:00 बजे ललित के घर राजनगर एक्सटेंशन पहुंच गया और अमित भी अंकित के घर पहुंच गया। अब हमने मिलकर यह तय किया कि जिसे जो समान लेना है वो मार्किट से ले लें। जैसे किसी को दवाई लेनी थी तो किसी को कुछ कपड़े लेने थे तो हमने कुछ देर मार्किट में शॉपिंग की और अपने अपने घर चले गए।
01 नवंबर 2019
सुबह अलार्म बजने से पहले की आंखे खुल चुकी थी बस इंतजार कर रहा था कि कब अलार्म बजे। वैसे तो रात को नींद भी लेट आई क्योंकि कहीं भी जाने से पहले उस यात्रा के बारे में सोच कर और जाने की एक एक्साइटमेंट/ उत्सुकता बनी रहती है। इसलिए कभी कभी नींद नहीं आती है फिर हमे बात करते करते भी लगभग 12 बज चुके थे। फिर भी मैं सुबह जल्दी उठ गया। समय देखा तो अभी 3:40 हो रहे थे और थोड़ी देर बाद मैंने ललित को भी उठा दिया और अंकित को फोन करके बताया कि हम उठ चुके है और तुम लोग भी उठ जाओ। बाकी हम नहा-धोकर और चाय के साथ बिस्किट खाने के बाद सुबह के लगभग 4:30 पर निकल चले। तब तक अंकित और अमित भी अपनी सोसाइटी के मैन गेट पर आ चुके थे और हम सभी ललित की कार में बैठ कर अपने सफर पर निकल चले।
हमने खतौली पहुँच कर गूगल मैप में देखा कि रुद्रप्रयाग के लिए कौन सा रास्ता जल्दी पहुँचा रहा है ऋषिकेश होकर या फिर कोटद्वार की तरफ से। गूगल मैप ने दिखाया कि हमें ऋषिकेश की तरफ से जाने में ज्यादा समय लग रहा था जबकि कोटद्वार होते हुए हमारा लगभग एक घंटा समय बच रहा था। फिर मैंने एक दिन पहले अपने एक दोस्त से भी बात की थी तो उन्होंने बताया था कि ऋषिकेश से श्रीनगर के बीच उत्तराखंड चार धाम यात्रा रोड के निर्माण कार्य के चलने के कारण जगह-जगह जाम लग जा रहा है जिसके कारण यात्रा में काफी समय लग रहा है अभी मेरे बड़े भाई भी केदारनाथ की यात्रा करके आए थे। उन्होंने भी बताया कि उनको भी श्रीनगर ऋषिकेश रोड पर काफी जाम मिला था इसलिए मैंने तय किया कि हम कोटद्वार की तरफ से पौड़ी होते हुए जाएंगे। मैंने यह रास्ता पहले भी देखा हुआ है और जानता भी हूँ कि यह रास्ता सही है और भीड़ भाड़ भी नही मिलेगी इस पर। लेकिन ललित व अन्य इस रास्ते से अभी तक परिचित नहीं थे इसलिए वो थोड़ा दुविधा में थे। हम खतौली से जानसठ से होते हुए मीरापुर पहुँचे। यही से एक रोड पौड़ी के लिए निकल जाता है और हम उसी पर चल रहे थे। हमे लगातार चलते चलते लगभग चार घंटे हो चुके थे इसलिए कोटद्वार से कुछ पहले हमने एक अच्छा सा होटल देखकर नाश्ता किया। नाश्ते में हमने प्याज और पनीर के परांठे खाये। अब हमारे पेट भी पूरी तरह से फुल हो चुके थे इसलिए सोच लिया था कि अब आगे निरंतर चलते रहेंगे। कोटद्वार से कुछ पहले का जो रास्ता है यह मुझे बहुत अच्छा लगता है क्योंकि सड़क के दोनों तरफ जंगल मिलता है और कभी-कभी इस पर जानवर भी दिख जाते हैं पर मैंने आज तक बंदर को छोड़ कर कोई जानवर नही देखा। हम लगभग 9 बजे कोटद्वार पहुंच चुके थे, कोटद्वार में सिद्धबली बाबा का मंदिर है जो हनुमान जी को समर्पित है, कोटद्वार तक समतल जगह है फिर आगे कोटद्वार से पहाड़ी स्टार्ट हो जाती है। अब हमें अब आगे का सफर पहाड़ पर ही तय करना है। आधा पौन घंटा चलने पर एक तिराहा या मोड़ आता है जहां से एक रास्ता सुप्रसिद्ध हिल स्टेशन लैंसडाउन के लिए चला जाता है और एक रास्ता गुमखाल के लिए चला जाता है जो आगे पौड़ी के लिए निकल जाता है। हम गुमखाल की तरफ चल पड़े गुमखाल लैंसडाउन के लगभग की ऊंचाई वाला ही जगह है। यह बहुत से चीड़ के पेड़ों वाली जगह है यहां पर काफी पेड़ है और यह ठंडी जगह भी है यहां से आगे कुछ किलोमीटर चलने के बाद सतपुली जगह आती है जहां से एक रास्ता देवप्रयाग के लिए अलग हो जाता है। सतपुली से करीब 25 km आगे ज्वालपा देवी का मंदिर आता है। जो मैन सड़क के किनारे ही स्थित है। मैं तो पहले भी यहां आ चुका हूं एक बार केदारनाथ यात्रा के समय लेकिन बाकी तीनों दोस्त पहली बार ही आये थे इसलिए हम सभी मंदिर की तरफ चल पड़े। ज्वाल्पा देवी मंदिर नयार नदी के किनारे बना है। हम सभी दर्शन के बाद कुछ समय नदी के किनारे भी देर बैठे रहे।
अब हमें यहां आगे पौड़ी के लिए निकलना था। ज्वाल्पा मंदिर से चलकर हम लोग दोपहर के 12:30 बजे पौड़ी पहुँच चुके थे। पौड़ी एक बड़ा शहर है और एक जिला भी है। यहां पर काफी दुकानें ,होटल आदि हैं इसलिए यहां पर काफी चहल-पहल दिख रही थी। हमने एक रेस्टोरेंट देखा और अपनी गाड़ी को सड़क के एक साइड में लगा कर कमर सीधी करी और उस रेस्टोरेंट मैं जा कर खाना का आर्डर दे दिया जब तक खाना आया तब तक हम होटल से दिख रही हिमालय की हिम पर्वतों के दीदार करते रहे। फिर खाना खाने के बाद हम आगे के लिए निकल पड़े। लगभग 2 बजे हम श्रीनगर से पहले अलकनंदा नदी के किनारे बने रेत के एक बीच पर रुके।हमारे अलावा इधर कुछ अन्य लोग भी रुके हुए थे पास में कुछ दुकाने भी लगी हुई थी। उन्ही में से एक दुकान पर हमने चाय भी पी और कुछ समय मौज मस्ती में बिताया। हमने देखा कि नदी के दूसरे किनारे पर कुछ हिरण पानी पी रहे हैं।
अक्तूबर 2019 की बात है एक दिन ललित का फ़ोन आता है कि काफी दिन हो गए है कही बाहर गए हुए। तो आप कोई प्रोग्राम बना लो लेकिन बनाना उत्तराखंड का ही और उसमें बद्रीनाथ भी शामिल हो सके तो और बढ़िया रहेगा। मैंने उससे बोला कि अभी पिछले साल तो बद्रीनाथ जी के दर्शन कर के आये है कही और चलते है इस बार उसने बताया कि इस बार उसके दो दोस्त भी साथ चलने को बोल रहे है और वही बोल रहे है कि बद्रीनाथ चलेंगे इस बार। मैने अगले दिन उसको बताया कि रुद्रप्रयाग के पास कार्तिकेय स्वामी का मंदिर है और मंदिर तक पहुँचने के लिए 3km का पैदल ट्रेक भी है। जिसको आराम से 3 से 4 घंटो में कर सकते है। और उधर से फिर शाम तक जोशीमठ भी पहुंचा जा सकता है। तो इस प्रकार हमारा टूर बन चुका था। की हमें उत्तराखंड ही जाना था और पहले दिन रुद्रप्रयाग रुकना था और दूसरे दिन कार्तिक स्वामी मंदिर ट्रैक करके जोशीमठ के आस-पास ही रुकना था।
व्हाट्सएप ग्रुप बनाया-
फिर ललित ने अगले दिन एक व्हाट्सएप ग्रुप बना लिया जिसमे मेरे अलावा अपने दोनों दोस्तो को भी जोड़ लिया।लेकिन कार्तिकेय स्वामी ट्रैक पर जाने के नाम पर ललित आना कानी करने लगा। कभी कहता कि उधर नही जाऊंगा क्योंकि मेरे से नही चला जाएगा कभी कहता कि इसको यात्रा लौटते वक्त करेंगे। लेकिन मैंने भी साफ साफ बोल दिया कि अगर मेरे कार्यक्रम से चलना है तो बोलो नही तो अपना जाना कैंसिल है। बाकी दो दोस्तो ने भी मेरा समर्थन कर दिया। और तय हुआ कि हम 01 nov को सुबह 4 बजे निकल चलेंगे अपने सफर पर।
यात्रा की तैयारी-
अंकित और अमित(ललित के दोस्त) ने बताया कि वह उत्तराखंड में सिर्फ मसूरी, नैनीताल और हरिद्वार तक ही गए हैं। उनकी बात सुनकर मुझे काफी ताजुब हुआ कि वो अभी तक उत्तराखंड की बाकी सुंदर जगह कैसे नहीं गए हैं खैर अब उनको बताया कि इस मौसम में स्नोफॉल भी मिल सकता है इसलिए कपड़ो के साथ कुछ गर्म कपड़े व एक जैकेट भी रख ले और जरूरी दवाइयां भी रख ले और हर छोटी बात को आपस मे पूछ सकते है इस प्रकार मैं 31अक्टूबर की रात 8:00 बजे ललित के घर राजनगर एक्सटेंशन पहुंच गया और अमित भी अंकित के घर पहुंच गया। अब हमने मिलकर यह तय किया कि जिसे जो समान लेना है वो मार्किट से ले लें। जैसे किसी को दवाई लेनी थी तो किसी को कुछ कपड़े लेने थे तो हमने कुछ देर मार्किट में शॉपिंग की और अपने अपने घर चले गए।
01 नवंबर 2019
सुबह अलार्म बजने से पहले की आंखे खुल चुकी थी बस इंतजार कर रहा था कि कब अलार्म बजे। वैसे तो रात को नींद भी लेट आई क्योंकि कहीं भी जाने से पहले उस यात्रा के बारे में सोच कर और जाने की एक एक्साइटमेंट/ उत्सुकता बनी रहती है। इसलिए कभी कभी नींद नहीं आती है फिर हमे बात करते करते भी लगभग 12 बज चुके थे। फिर भी मैं सुबह जल्दी उठ गया। समय देखा तो अभी 3:40 हो रहे थे और थोड़ी देर बाद मैंने ललित को भी उठा दिया और अंकित को फोन करके बताया कि हम उठ चुके है और तुम लोग भी उठ जाओ। बाकी हम नहा-धोकर और चाय के साथ बिस्किट खाने के बाद सुबह के लगभग 4:30 पर निकल चले। तब तक अंकित और अमित भी अपनी सोसाइटी के मैन गेट पर आ चुके थे और हम सभी ललित की कार में बैठ कर अपने सफर पर निकल चले।
हमने खतौली पहुँच कर गूगल मैप में देखा कि रुद्रप्रयाग के लिए कौन सा रास्ता जल्दी पहुँचा रहा है ऋषिकेश होकर या फिर कोटद्वार की तरफ से। गूगल मैप ने दिखाया कि हमें ऋषिकेश की तरफ से जाने में ज्यादा समय लग रहा था जबकि कोटद्वार होते हुए हमारा लगभग एक घंटा समय बच रहा था। फिर मैंने एक दिन पहले अपने एक दोस्त से भी बात की थी तो उन्होंने बताया था कि ऋषिकेश से श्रीनगर के बीच उत्तराखंड चार धाम यात्रा रोड के निर्माण कार्य के चलने के कारण जगह-जगह जाम लग जा रहा है जिसके कारण यात्रा में काफी समय लग रहा है अभी मेरे बड़े भाई भी केदारनाथ की यात्रा करके आए थे। उन्होंने भी बताया कि उनको भी श्रीनगर ऋषिकेश रोड पर काफी जाम मिला था इसलिए मैंने तय किया कि हम कोटद्वार की तरफ से पौड़ी होते हुए जाएंगे। मैंने यह रास्ता पहले भी देखा हुआ है और जानता भी हूँ कि यह रास्ता सही है और भीड़ भाड़ भी नही मिलेगी इस पर। लेकिन ललित व अन्य इस रास्ते से अभी तक परिचित नहीं थे इसलिए वो थोड़ा दुविधा में थे। हम खतौली से जानसठ से होते हुए मीरापुर पहुँचे। यही से एक रोड पौड़ी के लिए निकल जाता है और हम उसी पर चल रहे थे। हमे लगातार चलते चलते लगभग चार घंटे हो चुके थे इसलिए कोटद्वार से कुछ पहले हमने एक अच्छा सा होटल देखकर नाश्ता किया। नाश्ते में हमने प्याज और पनीर के परांठे खाये। अब हमारे पेट भी पूरी तरह से फुल हो चुके थे इसलिए सोच लिया था कि अब आगे निरंतर चलते रहेंगे। कोटद्वार से कुछ पहले का जो रास्ता है यह मुझे बहुत अच्छा लगता है क्योंकि सड़क के दोनों तरफ जंगल मिलता है और कभी-कभी इस पर जानवर भी दिख जाते हैं पर मैंने आज तक बंदर को छोड़ कर कोई जानवर नही देखा। हम लगभग 9 बजे कोटद्वार पहुंच चुके थे, कोटद्वार में सिद्धबली बाबा का मंदिर है जो हनुमान जी को समर्पित है, कोटद्वार तक समतल जगह है फिर आगे कोटद्वार से पहाड़ी स्टार्ट हो जाती है। अब हमें अब आगे का सफर पहाड़ पर ही तय करना है। आधा पौन घंटा चलने पर एक तिराहा या मोड़ आता है जहां से एक रास्ता सुप्रसिद्ध हिल स्टेशन लैंसडाउन के लिए चला जाता है और एक रास्ता गुमखाल के लिए चला जाता है जो आगे पौड़ी के लिए निकल जाता है। हम गुमखाल की तरफ चल पड़े गुमखाल लैंसडाउन के लगभग की ऊंचाई वाला ही जगह है। यह बहुत से चीड़ के पेड़ों वाली जगह है यहां पर काफी पेड़ है और यह ठंडी जगह भी है यहां से आगे कुछ किलोमीटर चलने के बाद सतपुली जगह आती है जहां से एक रास्ता देवप्रयाग के लिए अलग हो जाता है। सतपुली से करीब 25 km आगे ज्वालपा देवी का मंदिर आता है। जो मैन सड़क के किनारे ही स्थित है। मैं तो पहले भी यहां आ चुका हूं एक बार केदारनाथ यात्रा के समय लेकिन बाकी तीनों दोस्त पहली बार ही आये थे इसलिए हम सभी मंदिर की तरफ चल पड़े। ज्वाल्पा देवी मंदिर नयार नदी के किनारे बना है। हम सभी दर्शन के बाद कुछ समय नदी के किनारे भी देर बैठे रहे।
gumkhal |
jwalpa devi |
सचिन ,ललित,अमित व अंकित (पीछे नयार नदी ) |
अब हमें यहां आगे पौड़ी के लिए निकलना था। ज्वाल्पा मंदिर से चलकर हम लोग दोपहर के 12:30 बजे पौड़ी पहुँच चुके थे। पौड़ी एक बड़ा शहर है और एक जिला भी है। यहां पर काफी दुकानें ,होटल आदि हैं इसलिए यहां पर काफी चहल-पहल दिख रही थी। हमने एक रेस्टोरेंट देखा और अपनी गाड़ी को सड़क के एक साइड में लगा कर कमर सीधी करी और उस रेस्टोरेंट मैं जा कर खाना का आर्डर दे दिया जब तक खाना आया तब तक हम होटल से दिख रही हिमालय की हिम पर्वतों के दीदार करते रहे। फिर खाना खाने के बाद हम आगे के लिए निकल पड़े। लगभग 2 बजे हम श्रीनगर से पहले अलकनंदा नदी के किनारे बने रेत के एक बीच पर रुके।हमारे अलावा इधर कुछ अन्य लोग भी रुके हुए थे पास में कुछ दुकाने भी लगी हुई थी। उन्ही में से एक दुकान पर हमने चाय भी पी और कुछ समय मौज मस्ती में बिताया। हमने देखा कि नदी के दूसरे किनारे पर कुछ हिरण पानी पी रहे हैं।
पौड़ी शहर |
होटल की छत से दिखता पौड़ी शहर का दर्शय |
अब यहां से चलकर हम श्रीनगर पहुँचे। श्रीनगर से 15 किलोमीटर चलने के बाद धारी देवी का मंदिर आया।मंदिर अलकनंदा के किनारे बना है। लेकिन एक द्वार मुख्य सड़क पर भी बना है जिस पर लोग रुक कर माथा टेक कर आगे जाते है। हम भी थोड़ी देर के लिए रूके और द्वार के पास धारी देवी को नमस्कार किया और आगे की तरफ बढ़ गए। धारी देवी से रुद्रप्रयाग करीब 20 km रह जाता है और हम शाम के लगभग 4:00 बजे रुद्रप्रयाग पहुंच चुके थे। रुद्रप्रयाग शहर से पहले ही एक रास्ता केदारनाथ के लिए अलग हो जाता है या उसे केदारनाथ बाईपास भी बोल सकते हैं। उसी से कुछ पहले पहले अलकनंदा नदी के किनारे होटल देखा, होटल विजय पैलेस नाम से इसके रूम ठीक-ठाक लग रहे थे। वाशरूम भी साफ थे इसलिए हमने दो रूम नदी नदी के साइड वाले ले लिए। नदी की तरफ रूम लेने का फायदा यह होता है कि आप घंटों तक अपने रूम से नदी को देखते रहते हैं, उसका शोर सुनते रह सकते है और अपना समय व्यतीत कर सकते है। हमको 2500 रुपए में 2 रूम मिल गए थे साथ में यहां होटल के नीचे रेस्टोरेंट भी था। अपनी थकान उतारने के लिए पहले हमने चाय मंगाई। हम चारो में केवल अमित ही चाय नही पीता था इसलिए उसके लिए चाय नही मंगाई गई। चाय पीने और उसके बाद हम फ्रेश होने पर हम दिल्ली एनसीआर के प्रदूषण पर बात कर रहे थे। क्योंकि उस समय delhi ncr में बहुत ज्यादा प्रदूषण हो रहा था, लोगो की आंख से आँशु व जलन तक की शिकायत आ रही थी। मास्क पहन कर लोगो को रहना पड़ रहा था। और एक इधर का मौसम और हवा थी बेहद खुशनुमा और साफ व शुद्ध। न्यूज़ में बताया जा रहा था कि पंजाब और हरियाणा के किसान फसल काटे जाने के बाद बची हुई पराली को खेतों में जला देते है जिससे दिल्ली ncr की आवो-हवा बद से बदत्तर हो जाती है। बाकी इस समस्या का हल सरकार और किसानों को जल्द ही निकलना चाहिए नही तो यह समस्या आने वाले वर्षो में और भी विकराल रूप ले लेगी।
धारीदेवी का मंदिर
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इस चर्चा के बाद हमने खाना खाया और तकरीबन 7:00 बजे बाहर घूमने का फैसला किया। अब हल्का हल्का अंधेरा हो चुका था। पहले रुद्रप्रयाग गए लेकिन इस समय लगभग मार्किट बंद हो चुकी थी इसलिए हम कुछ देर घूमने के बाद अपने होटल वापिस आ गए और सोने के लिए अपने अपने रूम में चले गए।
एक दम बेहतरीन पोस्ट रोमांचक पूरी तरह से । 💐💐फ़ोटो भी सारी एक दम शानदार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका👍बस ऐसे ही प्रेम बनाये रखे।
हटाएंबहुत ही शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुधीर उपाध्याय जी।
हटाएंरोचक यात्रा रही आपकी। मैं भी पौड़ी से ही आता हूँ। घर गये हुए काफी दिन हो गये थे इसलिए आपकी पोस्ट में पौड़ी के दीदार करके दिल खुश हो गया। हाँ, प्रदूष्ण के बात जहाँ तक आती है उसके लिए मुझे लगता है किसान से ज्यादा दिल्ली एन सी आर की पब्लिक जिम्मेदार है। पराली पहले भी जलता था। किसान लोग न जाने कब से यह गतिविधि करते हैं। अब बदला है तो केवल इतना कि दिल्ली और एन सी आर वालों के पास गाड़ियाँ काफी हो गयी हैं। धुएँ उगलते ये टिन के डिब्बे दिन बार दौड़ते रहते हैं तो प्रदूष्ण तो बढेगा ही। हाँ, सरकार को पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा को बढ़ाना चाहिए वहीं लोगों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह अपने अपने सार्वजनिक यातायात सेवाओं का इस्तेमाल करें।
जवाब देंहटाएंआगे की कड़ियों का इन्तजार रहेगा।
हटाएंधन्यवाद विकास जी पोस्ट पसंद करने के लिए। बाकी आप की बात भी सही है प्रदूषण फैलाने के अन्य कारण भी है। जिन पर सरकार और हमे संज्ञान लेना चाहिए।
हटाएंबहुत़ ही सुंदर यात्रा वृत्तांत। आंनद आ गया पढ़ने में। ऐसा लग रहा है मानों हम भी आपके साथ यात्रा कर दर्शन लाभ ले रहे हैं। चलते हैं आपके साथ अगले भाग पर। जय़ बद्री विशाल ।🙏 🙏
जवाब देंहटाएंआभार आपका भाई
हटाएंपोस्ट को पढ़कर आपको यदि यह लग रहा है कि आप भी इस यात्रा में है बस मेरा लिखना सार्थक हो गया।
ज्वाला माता तक तो हम भी गए थे फिर हम मनिकरण चले गए थे यदि मालूम होता तो वहां से धारीदेवी की यात्रा भी कर सकते थे खेर,...अच्छी यात्रा शुरू हुई हैं।
जवाब देंहटाएंनमस्कार बुआ जी
हटाएंयह ज्वाल्पा माता का मंदिर उत्तराखंड में है। और धारी देवी भी आप हिमाचल की बात कर रही है। बाकी आपका आभार अपने विचार रखने के लिए।
बहुत अच्छे सचिन भाई । कार्यक्रम बनाने से लेकर दिल्ली से रुद्रप्रयाग तक का यात्रा वृतांत बेहद शानदार लगा । जानकारी भी अच्छे से दी आपने । वैसे पहाड़ो का सफर और वहां की जलवायु की शुद्धता बड़े शहरों में कभी नही मिल सकती ।
जवाब देंहटाएंचित्र भी अच्छे लगे 👌👌
धन्यवाद रितेश जी। जी सही कहा आपने पहाड़ व मैदान के बड़े शहर के वातावरण व जलवायु की तुलना हो ही नही सकती है।
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