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सोमवार, 27 अप्रैल 2020

मेरी यमुनोत्री यात्रा

पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कि मैं अपनी फैमिली के संग यमुनोत्री यात्रा के लिए दिल्ली से चलकर जानकीचट्टी पहुँच गया क्योंकि जानकीचट्टी से ही यमनोत्री मंदिर के लिए पैदल यात्रा आरंभ होती है। अब आगे पढ़े ...
 
यमुनोत्री धाम 

जानकीचट्टी से यमुनोत्री धाम की यात्रा

29 मई 2019

मैंने घोड़े वाले को कल ही बोल दिया था कि आज सुबह 4:30 बजे तक आ जाना क्योंकि हम यात्रा जल्दी ही स्टार्ट करेंगे इसलिए हम सुबह जल्दी ही उठ कर व फ्रेश होकर 4:30 तक तैयार हो चुके थे। मैं होटल से बाहर आ गया और घोड़े वाले को फ़ोन मिलाया। लेकिन उसने फ़ोन ही रिसीव नही किया। होटल से बाहर निकलने पर ही पता चला कि बाहर काफी ठंडी हवा चल रही थी और काफी सर्दी भी हो रही थी। इसलिए मैं तुरंत ही होटल के अंदर चला गया मैंने फिर घोड़े वाले को फोन किया और उसने फ़ोन उठा भी लिया। और उसने बताया कि उस के पास घोड़े कम है इसलिए वह सात बजे तक ही आ पाएगा।  इसलिए मैंने उसको आने के लिए मना कर दिया। फिर हम होटल के बाहर एक चाय की दुकान पर पहुँचे और गर्मा गर्म चाय और साथ में बिस्किट खाने लगे। चाय की दुकान पर ही एक घोड़े वाला चाय पी रहा था। उसने कहा कि मंदिर चलोगे क्या? मैंने बोला बताओ क्या लोगे? उसने कहा कि 1400 रुपए दे देना। मैंने कहा कि तुम ज्यादा मांग रहे हो और मेरी किसी अन्य से बात एक हजार रुपए में हो रखी है। फिर वह लास्ट 1100 रुपए पर आ गया। मैंने कहा ठीक है तुम घोड़े ले आओ। वह 5 बजे घोड़े लेकर हमारे पास आ गया और हम घोड़े पर सवार होकर 5:15 पर यमनोत्रीधाम के लिए निकल चले। 

अब पूरा उजाला हो चुका था और काफी लोग यात्रा प्रारंभ भी कर चुके थे। घोड़े वाले ने बताया की घोड़े से यह यात्रा 4 से 5 घंटे में हो जाती है और पैदल यात्रा में एक से दो घंटे अधिक का समय लग जाता है। उसने यह भी कहा कि सुबह सुबह ही जाना अच्छा होता है। क्योंकि जब भीड़ भी कम मिलती है और दर्शन भी बिना किसी असुविधा के आराम से हो जाते है। हम ऐसे ही बातें करते हुए जा रहे थे। मैंने एक बैग भी ले लिया था जिसमे एक गर्म चादर और रेनकोट व कुछ खाने-पीने का सामान रख लिया था । यदि आप भी अगर यमनोत्री आएं तो ध्यान रखियेगा की पहाड़ो पर बारिश कभी भी हो जाती है यह आमतौर पर दोपहर बाद ही होती है इसलिए रेनकोट या छाता अपने पास हमेशा होना चाहिए।
यात्रा शुरू हो गयी 
हरे भरे वृक्षों को देखते चलो 

हम अभी लगभग आधा किलोमीटर ही चले होंगे कि हमें एक जगह रुकना पड़ा यहां पर घोड़े वालों को 120 रुपये प्रति सवारी की पर्ची कटवानी होती है। वह पर्ची कटवाने के बाद हम आगे चल पड़े। मंदिर तक पूरा रास्ता पक्का बना हुआ है, लेकिन यह कंही कंही काफी चढ़ाई वाला रास्ता भी है। बीच-बीच में सीढियों पर भी चलना होता है।इन सीढियों पर चढ़ते वक्त मैं यही सोच रहा था कि वापिसी में घोड़ा इनपर से कैसे उतरेगा कहीं वो हमें गिरा ना दे। रास्ते पर एक दो जगह पहाड़ की तरफ कुछ पत्थर आगे बाहर की तरफ निकले हुए थे जिनसे पैदल चलने वाले यात्रियों को तो कोई दिक्कत नहीं होती लेकिन जो घोड़े पर चलते हैं वह कभी-कभी इनसे टकरा भी जानते हैं इसलिए घोड़े वाले ने हमे पहले से ही सतर्क कर दिया था इसलिए हम थोड़ा झुक कर बैठे हुए थे। यमुना नदी हमारे दाएं हाथ की तरफ बहती हुई चल रही थी अब वह काफी नीचे बहती दिख रही थी। पानी के तेज प्रवाह की वजह से काफी तेज शोर भी आ रहा था। यमुनोत्री धाम तक यह रास्ता बड़ा ही रोमांचित करने वाला है। रास्ते से गगनचुंबी बर्फ से ढँके पर्वत दिखते रहते है इन्हें देखना बड़ा ही मनभावन व आनंदित करने वाला है। और आसपास के जंगल भी यात्रियों को अपनी तरफ सम्मोहित करते है। यह घाटी बहुत खूबसूरत है।

रास्ते में जंगल देखने को मिलता रहता है .
रास्ता व दूर से दिखती हुई बर्फ की चोटियाँ

तभी मेरे घोड़े वाला जोर से चिल्लाते हुए बोला नदी के दूसरी तरफ पहाड़ी पर जंगल में देखो भालू दिख रहा है। मैंने देखा तो मुझे नहीं दिखाई दिया लेकिन फिर ध्यान से देखने पर मुझे भालू दिखाई पड़ा लेकिन वह क्षणभर के लिए ही दिखाई दिया और घने जंगल मे चला गया। मैंने घोड़े वाले से पूछा क्या जंगली जानवर यहां पर आ जाते हैं? तो उसने कहा कि भाई जी.. यात्रा के दौरान तो रास्ते पर कभी देखे नहीं है लेकिन ऊपर जंगल में तो जानवर है ही और आज जैसे अभी आपने देखा उतने ही दूर रहते है। 
बुरांस के फूल 

हमने एक पुल को पार किया अब सीढ़िया एक दम खड़ी जाती हुई दिख रही थी। इन पर चढ़ने के बाद एक मंदिर आया जो भैरव बाबा का मंदिर था। हमने इनको प्रणाम किया और आगे बढ़ गए। थोड़ा आगे कुछ दुकानें बनी हुई थी यहां पर घोड़े वाले ने हमें उतार दिया और बोला कि घोड़ा इधर कुछ रेस्ट करेगा और आप भी चाय नाश्ता करना चाहो तो कर सकते हैं। हम एक दुकान पर बैठ गए यहां गरमा गरम समोसे बन रहे थे हमने चाय और समोसे का नाश्ता किया। नाश्ता करने के बाद हम सीधा यमुनोत्री मंदिर से कुछ पहले उतर गए अब यहां से आगे पैदल ही जाना है आगे कुछ दुकानें भी लगी हुई थी। ज्यादातर दुकानें प्रसाद की ही थी इन्ही में से एक दुकान से हमने प्रसाद लिया। प्रसाद में हमें चावल की पोटली भी मिली जिस पोटली में कुछ चावल बंधे हुए थे। जिसे हमें सूर्य कुंड में रखना था और चावल के उबलने के बाद प्रसाद रूप में वापस ले जाना था। हमने एक लोहे का पुल पार किया और यमुनोत्री मंदिर के निकट गौरीकुंड पर पहुँचे। सर्वप्रथम यात्रीगण गौरीकुण्ड में स्नान करते है और फिर युमना मंदिर जाते है। गौरीकुण्ड का पानी काफी गर्म होता है। यहां दो कुंड बने है एक महिलाओं के लिए तो दूसरा पुरुषों के लिए। पानी को छू कर देखा तो पानी काफी गर्म था। इस पानी मे सल्फर की मात्रा ज्यादा होती है इसलिए ज्यादा देर पानी में नहाना भी नहीं चाहिए। मैंने भी तीन-चार डुबकी मारी और बाहर आ गया । 
कुछ दुकाने और सबसे पीछे यमुनोत्री धाम 
एक पुल पार करना है बस 
और पहुँच गये यमुनोत्री धाम 
सबसे पहले यात्री गौरीकुंडके गर्म पानी में स्नान करते है और यात्रा की थकान को समाप्त करते है फिर मंदिर जाते है .

अब माँ यमनोत्री के दर्शन करने के लिए थोड़ा सा ऊपर कुछ सीढियों को चढ़ते ही मुख्य मंदिर पर पहुंच गया।यहां पर बहुत सारे पंडित पंडित बैठे हुए थे। उन्ही में से एक मेरे पास आये और बोले कि मैं आपकी पूजा करवा देता हूं। हमने पूछा कि आप की दक्षिणा क्या होगी तब उन्होंने कहा कि जो इक्छा हो वही दे देना। फिर उन्होंने हमे सर्वप्रथम दिव्य शिला का पूजन कराया. हमने देखा की शिला से एक गर्म पानी की धार उबाले मारती हुई व आवाज करती हुई निकल रही थी। कहा जाता है कि यह माता युमना ही है जो दिव्य शिला से निकल रही है  दिव्य शिला के पास ही सूर्यकुंड है बोला जाता है कि भगवान सूर्य के तेज के कारण ही इस कुंड का जल इतना गर्म है। हमने भी चावल की एक पोटली प्रसाद के रूप में इस कुंड में डाल दी और कुछ ही देर में यह चावल पक भी गए। यहाँ पर सभी यात्री ऐसे ही पोटली में चावल को पका रहे थे। सूर्यकुण्ड के नजदीक ही यमुना जी का मंदिर है। मंदिर के अंदर माँ यमुना की मूर्ति काले रंग के पत्थर से बनी है। मंदिर में प्रसाद चढ़ाने व माँ यमुना के दर्शन करने के पश्चात हम मंदिर से बाहर आ गए और पूजा कराने वाले पंडित जी को भी दक्षिणा दे दी. अब हम मंदिर के पास यमुना नदी के नजदीक गए और एक बोतल में यमुना का जल भी भरा जिसे हम अपने साथ अपने घर लेकर जायंगे यमुना का जल बहुत साफ़ व ठंडा था इतना ठंडा की लग रहा था की मेरा हाथ सुन्न ना पड़ जाये  हमने कुछ समय और मंदिर के आस पास व्यतीत किया और फिर वापिस लौट चले। वापिसी में हमे रास्ते में काफी भीड़ मिली और एक दो जगह तो कुछ देर रुकना भी पड़ा फिर भी हम सुबह के लगभग 10 बजे तक वापिस जानकीचट्टी स्तिथ आ गए और होटल पहुँच कर अपनी कार में बैठ कर आगे गंगोत्री धाम यात्रा पर निकल गए। हम बरकोट से धरासू बैंड पहुंचे और फिर आगे उत्तरकाशी रुक गए 

दिव्यशिला


सूर्य देव की प्रतिमा
सूर्य कुण्ड जहां हमने चावल पकाए थे .
मैं परिवार सहित यमुनोत्री धाम पर 
पास में ही एक ग्लेशियर

यमुनोत्री के बारे में
उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में यमुनोत्री धाम स्तिथ है। और यह उत्तराखंड के चार धामो में से एक है। यह मंदिर सूर्य पुत्री यमुना जी को समर्पित है। यमुनोत्री समुंद तल से करीब 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्तिथ है और यह बन्दरपूँछ पर्वत पर स्तिथ हिमखंड(ग्लेशियरों) से निकलती है। यह कलिंद पर्वत से निकली है और भगवान सूर्य का एक नाम कलिंद भी है और यमुना जी सूर्य देव की पुत्री भी है इसलिए यमुना जी को कालन्दी भी कहा गया है । यमुना जी यमराज व शनिदेव की बहन भी है।
यमुनोत्री मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खोले जाते है तथा कार्तिक के महिने में यम द्वितीय (दीपावली) के दिन बंद कर दिए जाते है। फिर शीत काल मे यमुना जी की पूजा खरसाली गांव में होती है। यमुनोत्री मंदिर का निर्माण टिहरी के राजा महाराजा प्रतापशाह ने सन 1884 में करवाया था। यमुनोत्री धाम से जुड़ी कुछ कथाएं भी सुनी जाती है।

यमुनोत्री की कथा
1- एक कथा के अनुसार यहां पर एक मुनि आसित निवास किया करते थे उनको ही दर्शन देने के लिए युमना जी नदी के रूप में धरती पर आयी थी।
2- दूसरी कथा के अनुसार सूर्य देव की पत्नी छाया को यमराज व यमुना संतान रूप में पैदा हुए। यमुना जी नदी के रूप में पृथ्वी पर उतरी और यमराज जी को यमलोक मिला। एक बार यमुना जी ने भाई यमराज से एक वर मांगा की जो व्यक्ति यमुना में स्नान कर लेगा उसे यमराज अकाल मृत्यु नही देंगे। कहते है यह वरदान माँ यमुना ने अपने भाई यम से भाई दूज के दिन माँगा था। ऐसा मानना की जो यमुना में स्नान कर लेता है उसको अकाल मृत्यु नहीं आती है इसलिए यात्री यमुना में स्नान भी करते है और यमुना जी के साथ साथ यमराज की भी पूजा अर्चना करते है।

इस यात्रा के अन्य भाग पढने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करे

21 टिप्‍पणियां:

  1. हमने आपके माध्यम से यमुनोत्री धाम की यात्रा कर ली। बहुत बढिया प्रस्तुतिकरण

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  2. यमनोत्री धाम की विस्तृत व उपयोगी जानकारी
    बहुत शानदार

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    1. धन्यवाद भाई जी। ऐसे ही संवाद बनाये रखे।

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  3. शानदार वर्णन किया आपने यात्रा । एक तरह से आपके साथ मानसिक यात्रा हो गयी ।
    चित्र और लेख अच्छे लगे

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    1. लेख पसंद आया आपको उसके लिए आभार प्रकट करता हूँ रितेश जी।

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  4. बहुत सुन्दर यात्रा वृत्तांत

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  5. बहुत सुंदर आपके साथ हमने भी य यात्रा कर ली ह ,अच्छी तरह से समझया ह आपने

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  6. शानदार यात्रा वर्णन किया आपने. पिछले साल मैं भी सपरिवार यहाँ दर्शन के लिए आया था . आज यादें ताज़ा हो गयी . ...नरेश सहगल

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    1. नरेश जी मैंने आपका ब्लॉग पढ़ा था उससे ही जानकारी प्राप्त भी की। आपका धन्यवाद भाई

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  7. शानदार यात्रा वृतांत सचिन जी

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  8. सीढ़ियों पर घोड़े गए कैसे होगी🤔 मुझे तो डर लग रहा हैं
    😂😂वैसे रास्ते को देखकर मुझे हेमकुंड यात्रा याद हो आई।

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    1. दर्शन जी कोई डरने वाली बात नही होती है उतरते वक्त थोड़ी सावधानी बरतनी अवश्य होती है।

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  9. इतनी बेहतरीन जानकारी साझा करने के लिए धन्यवाद।

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