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शुक्रवार, 7 मार्च 2014

ग्वालियर की यात्रा,Gwalior

आज 01:01:14 की सुबह कहने को तो नया साल है पर वही सबकुछ जो बीते साल मे छोडा था वैसे ही है. आज मन मे कुछ अजीब सा हो रहा है कही घुमने का मन है पर कहां जाया जाए यह समझ मे नही आ रहा था. तभी विचार आया की क्यो ना मध्यप्रदेश चला जाए.हमारे यहां से दिल्ली से भिण्ड(मध्यप्रदेश) की बस रोज चलती है तो मैने निश्चय किया की भिन्ड चला जाए जहा से ग्वालियर 70 km की दूरी पर है तो वही घुम लिया जाए.तो बस वाले से आगे वाली सीट के लिए बोल दिया तभी एक दोस्त मुस्तफा खान जी ने भी साथ चलने के लिए कहा तो मेने दो सीटे बुक करा दी.आज रात 8:30 पर बस निकलनी थी तो अपना थोडा सा समान लेकर हम 8:30 तक बस मे बैठ गए.थोडी ही देर मे बस चल पडी ओर नोएडा होते यमुना एक्सप्रैस पर चढ गई काफी बढिया रोड था बीच बीच मे तीन टोल आए जहां पर खाने ओर अन्य सुविधा भी है बीच मे कही खाना खाने के लिए बस भी रोकी. ओर सुबह 4:45 पर हम भिन्ड पहुंचे तुरन्त ही हम एक दूसरी बस मे बैठ गए जो  ग्वालियर  की थी इस प्रकार हम सुबह 8बजे ग्वालियर पहुंचे. बस स्टैन्ड पर ही हम फ्रैश होकर ओटो से ग्वालियर के किले के लिए निकल पडे इस किले के दो रास्ते है एक पैदल के लिए व दूसरा ऊरवाई द्वार से गाडी से भी जा सकते है हमे आटो वाले ने ऊरवाई द्वार पर उतार दिया जहा से थोडा पैदल चलते ही जैन समुदाय के तीर्थकारो की बहुत सी मूर्तियां पहाड पर नक्काशी कर के बनाई हुई है पर ज्यादातर टुटी फुटी अवस्था मे थी शायद मुस्लिम आक्रान्ताओ ने उन्हे इस्लाम के खिलाफ समझकर तोड दिया हो. किले पर पहुंच कर  बहुत शानदार नजारा देखने को मिला वहा से पूरा ग्वालियर शहर दिखता  था क्योकी यह किला पहाडी पर स्थित है यह किला 15 वी शताब्दी मे राजा मानसिंह तोमर ने बनवाया था.लाल रंग के पत्थरो से इसका निर्माण हुअा.यह किला वास्तव मे एक उतम वास्तुकला  से निर्मित हुआ है.राजा रानी के कमरे के बीच मे पाईप विछे हुए थे जो उस समय टैलिफोन का कार्य करते थे नीचे तहखाने मे रानीयो का स्नानग्रह था जो बाद मे जौहर के काम मे भी लाया गया.इसी तहखाने मे औरंगजेब ने अपने छोटे भाई मुराद को फांसी भी दि थी.यही वह किला है जहॉ पर झांसी की रानी ने अंग्रेजो के खिलाफ लडते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए.यह सब हमे हमारे गाइड यादव जी ने बताया था. महल मे कई कमरे बने है यह महल पूरा तीन मंजिला बना है ओर कई रास्ते है कहे तो पूरी भूल भूलैया है. एक रंगशाला भी थी जहा पर राजा रानीयो के मनोरंजन के लिए नाच गाना होता था . दिवारो से लेकर छत तक गजब की नक्काशी हुई है महल मे.जो देखने लायक है .हमे घुमते घुमते दस बज गए थे ओर हम सुबह से खाली पेट भी थे  तो भूख भी जोरो से लगी थी तो गाईड को 100 रूपया दे कर हम कैन्टीन पर पहुंचे ओर खाने के लिए चाय व पैटीज ले ली .खाने के बाद हम पहुंचे सास-बहु के मन्दिर मे, सास बहु सीरियल वाली नही वास्तव इसका नाम सहस्त्रबाहू मन्दिर है जो भगवान श्री हरी को समरर्पित है पर अब कोई मूर्ति नही है पर है बडा ही सुन्दर,थोडी देर यही बैठे रहे ऊचांई पर होने के कारण हवा बडी तेज चल रही थी यहां पर कुछ स्थानीय लडके बैठे हुए थे उनसे पता चला की की राजा की एक  ओर रानी थी उसी का महल नीचे दूसरे पैदल रास्ते पर है तो हम उन्हे धन्यवाद कहकर रानी का महल देखने चल दिए.यह महल गुजरी महल से जाना जाता है यह रानी राजा की नौवी रानी थी एक बार राजा शिकार खेलने जंगल मे गया वहा दो भैंसे सींग से सींग मिलाकर लड रहे थे तब एक लडकी ने आकर उन्ह भैंसो को वहां से भगा दिया राजा उस लडकी की बहादूरी देखकर बहुत प्रसन हुआ ओर राजा ने उस लडकी से शादी करने का निश्चय किया लडकी ने राजा के सीमने तीन शर्त रखी पहली की वह राजा के साथ शिकार पर जाया करेगी राजा ने यह शर्त स्वीकार कर ली.दूसरी शर्त की वह कभी घुंघट नही करेगी राजा ने यह शर्त भी स्वीकार कर ली.तीसरी शर्त की वह अपने पिहर की नदी(रेवा) के जल से ही स्नान करेगी व पियेगी.यह शर्त कठीन थी क्योकी वह नदी वहा से बहुत दूर थी ओर महल पहाडी पर स्थित था पर राजा ने यह शर्त भी स्वीकार कर ली राजा ने एक एेसे महल का निर्माण कराया जो पहाडी मे सबसे नीचे व दो तीन मन्जिल जमीन के नीचे  भी है ओर नदी से महल के बीच पानी की पाईपलाइन भी बिछाई.आगे चलकर यह रानी मृगनयनी के नाम से जानी गयी.
यह सब सुनकर व पढकर की यह सब 15 वी शताब्दी मे हुआ है आश्चर्य होता है .मै ओर खान साहब गुजरी महल देखकर किले से बाहर आ गए.
ग्वालियर यात्रा अभी जारी है............

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