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गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

चैन्नई,chennai

16जून2013 को जो केदारनाथ मे हुआ,उसे देखकर पहाडो पर जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया.तभी मेरे करीबी रिश्तेदार(प्रवीन)जी जो पेशे से वकील है उन्होने तिरूपति बालाजी,व ऊटी घुमने का प्रौग्राम बनाया तो हमसे भी चलने के लिए  पूछा तो हमने हां बोल दी.प्रवीन जी ने ही सारा प्रोग्राम बनाया की कहां रूकना है कब चलना है कैसे चलना है वगेरहा वगेरहा.तो फाईनल हुआ की 19जून की सुबह6:40पर हवाईजहाज से चैन्नई के लिए निकलना है ओर वहा से  बस द्वारा तिरूपती बाला जी. यहां से पैकेज ले लिया जिसमे बस,होटल,दर्शन व प्रसाद सब चीजे 1500रू० प्रति व्यक्ति दिया गया.सारा टूर प्रवीन जी ने दिल्ली से ही बुक कर दिया था

समय कम था पैकिंग भी करनी थी क्योकी दक्षिण भारत मे मानसून आ गया होगा तो उससे बचने के लिए बाजार से तीन रेनकोट भी ले आए.एक अपने लिए,एक पत्नी जी के लिए ओर एक अपने बेटे(देवांग) के लिए. ओर अन्य जरूरत का समान की पैकिंग कर के एक जगह रख दिया क्योकी कल सुबह एयरपोर्ट के लिए जल्दी निकलना था.
हवाईजहाज का नाम सुनकर पत्नी कुछ डरी सी थी की उल्टी तो नही आ जाएगी?
क्योकी वह पहली बार हवाईजहाज मे बैठ रही थी,मै पहले कश्मीर यात्रा के दौरान हवाई यात्रा कर चुका हुं.(पर किसी को कोई भी परेशानी नही हुई)सब चीज एक जगह रखकर 12 बजे सो गए.

19जून 2013 की सुबह 4बजे ऊठ गए ओर जल्दी जल्दी नहा धौकर तैयार हो गए.थोडी देर मे प्रवीन जी सहपरिवार(तीन ही थे हमारी तरह)घर पर आ गए.साले साहब भी थे उनके साथ अपनी गाडी लिए.हम जल्द ही निकल पडे ओर 5:15पर एयरपोर्ट पहुंच गए.
बोर्डिग पास व अन्य जरूरी कार्य करते हुए हम 6बजे के आसपास एयरपोर्ट पर बने यात्रीयो के लिए प्रतिक्षा कक्ष मे बैठ गए.पास ही कैंटीन थी वहा पर कोल्ड ड्रिंक व बर्गर खा लिए नाश्ते के तौर पर ओर एक बस मे बैठ गए जो हमे स्पाईसजैट के हवाईजहाज तक ले गई.हवाईजहाज मे बैठ कर दोनो बच्चे बडे खुश हो रहे थे.थोडी देर बाद हवाईजहाज ने उडान भरी ओर सुबह 10 बजे चैन्नई उतार दिया,पूरे तीन घन्टे लगे हमे दिल्ली से चैन्नई तक.

एयरपोर्ट से बाहर आकर एक टैक्सी की ओर चल पडे चैन्नई शहर की तरफ.बहुत गर्मी थी यहां पर.सडके बहुत छोटी छोटी.चारो तरफ गाडी ही गाडी,फ्लाईओवर काफी है पर सडको पर जाम की स्थीती थी ऐसे लग रहा था जैसे चांदनी चौक मे हो.मेट्रो रेल का काम हर सडक पर पूरे जोर शोर से चल रहा है.क्रिक्रेट के स्टेडियम के सामने से होते हुए.एक चौक पर उतर गए.वहा से रास्ता पुछते हुए होटल मे आ गए.कमरे मे आकर थोडा आराम किया गया.

तकरीबन 12बजे हम बाहर घुमने के लिए निकले,पास ही मरीना बीच था समुंद्र देखने व नहाने की इक्छा भी थी इसलिए निकल पडे मरीना बीच की तरफ.होटल से तीन किलोमीटर था इसलिए एक आटो कर लिया90र० मे.मरीना बीच पहुंचे.
काफी दूर पैदल चलना पडा गर्म रेत पर.कुछ दुकाने भी लगी थी यहां पर जैसे नारियल पानी व अन्य खाने की चीजो की.यहा पर मछली के पकौडे भी तले जा रहे थे ओर उनकी दुर्गंध से मुझे बडी तकलीफ हो रही थी उनको पार कर हम समुंद्र के किनारे पर पहुंचे.

समुंद्र बहुत विशाल व सुंदर लग रहा था.उसकी लहरे हमे बुला रही थी पर बीच बीच मे एक दो विशाल लहरे हमे बाहर ही रहो का संदेश दे रही थी.नहाने का मन हुआ ओर निकाल दिए कपडे ओर कुद गए सागर की लहरो मे.यह मेरा पहला अनुभव था सागर की लहरो के बीच,पर बहुत मजा आ रहा था,एक लहर इतनी तेज आई की मुझे तकरीबन 10 फुट आगे किनारे की तरफ फैंक दिया जिस कारण मुंह मे नमकीन पानी पहुंच गया.पता नही धीरे धीरे लहरे तेज होती जा रही थी इसलिए हम बाहर आ गए.
वही पर कुछ घोडे वाले घुम रहे थे तो बारी बारी हमने भी घोडे की सवारी कर ली,ओर चल पडे होटल की ओर,आटो लिया ओर उसी चौक पर उतर गए.
मेने चैन्नई मे एक बात देखी की यहा पर सभी औरते सोने से बनी वस्तुएं खुले आम पहनती है ओर गले मे हार से लेकर चैन पुरी तरह से सज- धज कर रहती है हमारे यहां दिल्ली व उत्तर प्रदेश मे तो झपटमारो की चांदी हो जाए अगर यहा भी एसे ही सोना पहनने लगे.मेरे साथ एक घटना भी घटी वो मे आगे बताऊगा.

बच्चो को  व हमे भी बहुत जोरो से भूख लग रही थी.तो हम पहुंचे एक साऊथ इन्डियन भोजनालय(पंजाबी था ही नही) पर चावल व कई तरह की चटनी ,सांमभर व पापड खाने को मिला पर यहा हमे चम्मच नही मिली जब हमने चम्मच की फरमाईश की तब जाकर चम्मचे मिली हमे. सभी ने चावल खाना शुरू किया मैने तो वहा के लोगो की तरह हाथ से चावल खाने शुरू कर दिये जिसे देखकर हमारे परिवार के लोग हसंने लगे पर मेने परवाह किये बिना भोजन समाप्त किया.भोजन करने के बाद होटल पहुंच कर सभी ने थोडी थोडी नींद ले ली.
शाम 6बजे ऊठे,चाय पी ओर बस स्टैन्ड की तरफ चल दिए जहां से हमे तिरूपती बाला जी के लिए बस मिलनी थी. रास्ते मे फलो की दुकान पर छोटे छोटे,सुन्दर सुन्दर केले देखे 6रू० का एक केला था.केले खाए ओर आटो से स्टैन्ड पर पहुंचे. बस मे सीट ली ओर देखा हिन्दीभाषी कोई भी नही था सब किटर पिटर कर रहे थे. बस रात 7बजे चैन्नई से तिरूपती के लिए चल पडी.रास्ते मे एक जगह खाना खाने के लिए रूकी.(जगह का नाम याद नही है नही तो लिखता जरूर)ओर रात को 1बजे किसी होटल मे रूकवा दिए ओर बोला गया की सुबह 4बजे बस यहा से तिरूपति बाला जी के लिए निकल पडेगी इसलिए सभी लोग यही से सुबह नहाधौकर निकले.

अगली पोस्ट मे तिरूपति तक की यात्रा की जाएगी.
यात्रा जारी है........

7 टिप्‍पणियां:

  1. सचिन भाई अच्छी यात्रा है। फोटो तो शानदार है लेकिन यात्रावृतांत धारदार नही है। पाठक को लगना चाहिये की यात्रा आप नही वो कर रहा है। आशा है अगले भाग मे यात्रावृतांत धारदार होगा।

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    1. विनय भाई आपकी सलाह पर ध्यान दिया जाएगा.
      आपका बहुत धन्यवाद

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  2. सचिन भाई शानदार यात्रा शानदार फोटो
    कहना क्या है भाई, यही कहेंगे कि बिंदास विवरण पढकर मजा आ गया

    शुभकामनाओ सहित
    संजय भास्कर
    शब्दों की मुस्कराहट
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

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