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रविवार, 20 अप्रैल 2014

तिरूपति बाला जी(वेकेंटेश्वर भगवान)

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20 तारिख की सुबह 4 बजे उठ गये। उठ क्या गए नींद ही नहीं आई।यह डर था कही बस हमारी वजह से लेट न हो जाए इसलिए नींद ही नही आई.जल्दी नहा धौकर बस मे बैठ गए. थोड़ी देर बाद बस चल पड़ी। बस एक जगह रुकी एक मंदिर था। हम ने सोचा त्रिपुति बाला जी आ गया। पर पता चला की यह एक प्राचीन लक्ष्मी मंदिर है ,मंदिर  के बाहर कमल के फूल बिक रहे थे, वहा पर जायदातर भक्त कमल का फूल माँ लक्ष्मी को चढ़ाने के लिए ले रहे थे। ओर एक बात यहाँ टिकट लगता है,दर्शन करने के लिए। हम ने टिकट लिया और लाइन में लग गए। 
तभी एक औरत हमारे पास आई और कुछ तमिल में बोला और अपनी सोने की घडी उतार कर मुझे दे गई। ओर थोड़ी दूर पर टंकी पर जा कर हाथ मुँह धोने लगी। तक़रीबन 15 मिनट बाद आई ओर फिर तमिल में कुछ बोल कर चली गई,में यह सोचता रहा की यहाँ के लोग कितना विष्वास कर लेते है। वह भी अजनबी पर, यह बात मुझे समझ में नहीं आई पर मैंने उसका विस्वास कायम रखा। 
 दर्शन करने के बाद हम वापिस बस मैं बैठ गए.बस वाले ने बीच मे सभी को नाश्ते के लिए एक जगह उतार दिया ओर बोला यहा से आपको हम दूसरी बस मे ले जाएगे क्योकी मन्दिर का रास्ता छोटा था वहा पर बडी बस नही जा सकती है हम सब लोग खाने के लिए चल पडे यहा पर चावल ,उत्तपम,डोसा,इडली आदी ही मिलती है इन्हे खाकर मन अब ऊब गया था अगर कही पंजाबी ढाबा मिल जाता तो मजे ही आ जाते पर अफसोस डोसा खाकर ही नाश्ता करना पडा.खाना खाने के बाद हम दूसरी बस मे बैठ गए ओर बस चल पडी अपनी मन्जील की ओर.
मुसकिल से दो चार किलोमीटर ही चले होगे की  बस एक जगह फिर रूकी ओर सभी सवारीयो को उतार कर तलाशी देनी पडी.यह जगह आन्ध्रप्रदेश की सीमा थी क्योकी हम चैन्नई से चले थे वो तमिलनाडू मे है ओर तिरूपति आन्ध्रा मे,तलाशी के बाद हम बस मे सवार हो कर निकल पडे तिरूपति के दर्शन के लिए....

तिरूपति बाला जी भारत मे सबसे धनी भगवान है यहा पर दुनियां भर से लोग आते है ओर भरपूर चढावा चढाते है कोई सोना,कोई चांदी ओर पैसे भी चढते है.यहां पर एक कक्ष भी है जहा पर कुछ लोग चढाए हुए पैसे व सोना-चांदी व जवारात की गिनती करते रहते है ओर नोटो की तो गड्डीया पर गड्डीया रखी रहती है. मन्दिर तिरूमाला पर्वत पर स्थित है जो काफी ऊचाँई पर है,कहते है की भगवान वैकंटेश्वर जो विष्णू भगवान के अवतार ही है,सभी की मनोकामनाएं पूरी करते है.कुछ लोग यहा पर मनोकामनाएं पूरी होने पर अपने बाल भी कटवाते(मुंडन)है.
यहा पर दर्शन करने के लिए भीअलग अलग श्रेणी बनाई गयी है,एक जो फ्री है पर दर्शन मे काफी समय लग सकता है एक शायद 50रू० वाली थी ओर एक 300रू० वाली जिसमे भी एक दो घन्टे लग जाते है दर्शन के लिए.300 रू मे दो लड्डू भी मिलते है प्रसाद के रूप मे.
तिरूपति बाला जी का मन्दिर अन्दर से पूरी तरह से सोने का बना है जो दिखने मे बहुत ही सुन्दर लगता है.तिरूपतिबाला जी के बराबर मे ही लक्ष्मी माता का मन्दिर है.
यहा पर एक पत्थर है जिसपर लोग अपनी मनोकामनाएं अपनी अंगुलियों से लिखते है कहते है की भगवान वैकेंटेश्वर की कृपा से मनोकामनाएं पूर्ण भी होती है.

बस ने हमे लगभग10 बजे तिरूपति मन्दिर पर उतार दिया.बस वाले ने अपनी जान पहचान की दुकान पर सभी का समान जैसे कैमरा,मोबाईल ओर अन्य समान जो अंदर नही ले जा सकते वही रख वा दिया ओर चल पडे दर्शन के लिए.यहा पर यात्रीयों के लिए रूकने का इन्तजाम भी है.
हम सब यात्रीयो को एक गलियारे मे भेज दिया जहा से हमे ऐसे 7गलियारे ओर पार करनेपडे,बहुत भीड थी यहा पर .
कुछ देर बाद हम मन्दिर के  प्रांगण मे प्रवेश किया.सभी लोग गोविन्दा गोविन्दा कह रहे थे. बहुत भीड थी यहा पर मेने देंवाग को अपने कंधो पर बिठा लिया ओर भीड के साथ मन्दिर मे प्रवेश किया,सामने भगवान तिरूपति बाला जी की मूर्ती के दर्शन हुए उनको नमस्कार करते हुए मै बाहर आ गया.मन्दिर के अन्दर चावल का प्रसाद मिल रहा था पर मैने नही लिया क्योकी हमारे यहा एकादशी को चावल नही खाते है पर बाद मे पता चला की अगर तिरूपति के मन्दिर मे एकादशी के दिन यदी चावल रूपी प्रसाद खा ले तो वह हर एकादशी को चावल खा सकता है.यह सुनकर बडा अफसोस हुआ की चावल क्यो नही खाए.

मन्दिर मे बहुत दान पेटी रखी हुई थी, व हर कोई उनमे कुछ न कुछ अपने समर्थ से डाल रहा था.मन्दिर से बाहर आ गए ओर दुकान पर पहुचं कर ,अपना समान ले लिया ओर कुछ देर वही बैठे रहे.जब सभी यात्री आ गए तब बस चल पडी,यहा मन्दिर तक दो रास्ते है एक ऊपर आने का ओर दूसरा नीचे जाने का.
बस वही रूकी जहां सुबह हमने नाश्ता किया था.खाना भी वही खा लिया.चपाती आर्डर की तो चावल व मैदा की लगी.बेस्वाद थी इसलिए एक ही खाकर रह गया.
यहां से पुरानी बस फिर मिल गई जिससे हम चैन्नई से आए थे.शाम के 7 बजे हम चैन्नई आ गए ओर चल पडे रेलवे स्टैशन की तरफ क्योकी यहा से हमे9:40 की ट्रेन से कोयम्मबटूर जाना था.

यात्रा अभी जारी है..........

4 टिप्‍पणियां:

  1. सचिन भाई ,लगता है सलाह का असर होने लगा है ,अबकी बार यात्रावृतांत मे कुछ धार है ,लिखते रहिए -कलम को घिसते रहिए ,धार अपने आप ही आ जायगी। अबकी बार यात्रावृतांत रोचक है। फोटो प्रसंसनीय है। फोटो की संख्या,और साथ मे उनके विवरण मे कुछ वृद्धि हो जाए तो मजा दोगुना हो जाएगा।
    आपके अगले पोस्ट का इन्तजार है।

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  2. विनय भाई मै ब्लॉग पर मार्च से ही लिख रहा हुं पर जब मै यात्रा कर रहा था तो फोटो व अन्य चीजो पर ध्यान ही नही दिया क्योकी उस समय मै ब्लॉगर नही था.
    इसलिए फोटो कम व टूरिस्ट वाले ज्यादा जिसमे बैकग्राऊंड मे कुछ आए या ना आए पर हमारी सुरत जरूर आए.
    बस आप लोगो का प्यार है जो मुझे लिखने के लिए शक्ति देती है
    धन्यवाद.

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    1. मै आपकी बात समझ गया सचिन भाई ,यानी ये सब यात्रा ब्लॉगिंग शुरु करने से पहले की है। लेकिन एक बात तो है की आपने बिना अनुभव के भी इतनी अच्छी फोटो ली है। इसका मतलब आने वाली यात्राओं मे काफी मजा आने वाला है क्योंकि अब तो आप एक अनुभवी बलोगर बन चुके हो। आने वाले यात्राओं के लिए शुभकामनाए।

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  3. आपके उत्‍साह वर्धन के लिये आपकी तिरूपति यात्रा को विजयवाणी डॉट इन में इसे प्रसारित किया जा रहा है हेडिंग है- मेरी तिरूपति बाला जी आध्‍यात्मिक यात्रा

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