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गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

उज्जैन का काल भैरव मन्दिर व दिल्ली वापसी


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30 जून 2015, दिन मंगलवार
सुबह 6 बजे आंखे खुली। होटल के रूम से बाहर आकर देखा तो, हमारे सहयात्री भी ऊठ चुके है, ओर नहाने की तैयारी में लगे है। हम भी सुबह के तकरीबन 6:40 तक तैयार हो गए।
सभी सह यात्री गाड़ीयो के पास पहुँचे ओर अपना अपना समान गाड़ियों मे पैक करने लगे। जब तक हम समान पैक करते तब तक राहुल जी व सूरज जी होटल का बिल भी चुकता कर आए।
हम सब गाड़ियों मे सवार होकर काल भैरव मन्दिर की तरफ चल पड़े। आज हमने काल भैरव के दर्शन करने के पश्चात दिल्ली के लिए वापसी मे चलना था। हम उज्जैन के एक मैन चोराहे से होते हुए, व वहां से दांये तरफ एक सुनसान सी सड़क पर मुड़ गए। इस सड़क पर कल रात हुई बारिश का पानी भरा हुआ था। हमारे साथ आए पंडित जी ने बताया की यह रास्ता छोटा व भीड़ से भी बचाता है। तीन चार मोड़ मुडने के पश्चात हम काल भैरव मन्दिर के सामने रूके। यहां पर बहुत सी प्रसाद की दुकानें सजी थी। यह दुकानें उज्जैन के काल भैरव मन्दिर के बिल्कुल सामने लगी थी। मन्दिर के सामने ही गाड़ी खड़ी कर हम लोगों ने एक प्रसाद की दुकान की तरफ रूख किया। हमने देखा की प्रसाद की दुकान पर हर तरह की शराब व हर तरह के ब्रांड की दारू मौजूद है। इंग्लिश व देशी जैसी चाहो वैसी दारू आप यहां से ले सकते है।  हम सभी ने अपना अपना प्रसाद ले लिया। मैंने भी 350 रू० का प्रसाद ले लिया। प्रसाद मे एक दारू का क्वार्टर व कुछ फूल व अन्य पूजा की सामाग्री थी।
मेने सुना व पढ़ा भी था की, उज्जैन के काल भैरव को दारू बहुत पसंद है। सब लोग इन्हें यहां पर दारू का भोग लगाने आते है ओर यह भी सबको निराश नही करते है। बस एक प्लेट मे थोड़ी सी मदिरा (शराब) डालो ओर काल भैरव जी के हौठो से लगाओ ओर देखते ही देखते शराब प्लेट से खाली हो जाती है।  वैसे कालभैरव का यह मंदिर लगभग छह हजार साल पुराना माना जाता है। यह एक वाम मार्गी तांत्रिक मंदिर है। वाम मार्ग के मंदिरों में माँस, मदिरा, बलि, मुद्रा जैसे प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। प्राचीन समय में यहाँ सिर्फ तांत्रिको को ही आने की अनुमति थी। वे ही यहाँ तांत्रिक क्रियाएँ करते थे और कुछ विशेष अवसरों पर काल भैरव को मदिरा का भोग भी चढ़ाया जाता था। कालान्तर में ये मंदिर आम लोगों के लिए खोल दिया गया, लेकिन बाबा ने भोग स्वीकारना यूँ ही जारी रखा। अब यहाँ जितने भी दर्शनार्थी आते हैं, बाबा को भोग जरूर लगाते हैं। मंदिर के पुजारी द्वारा यहाँ विशिष्ट मंत्रों के द्वारा बाबा को अभिमंत्रित कर उन्हें मदिरा का पान कराते है। जिसे वे बहुत खुशी के साथ स्वीकार भी करते हैं और अपने भक्तों की मुराद पूरी करते हैं। काल भैरव के मदिरापान के पीछे क्या राज है, इसे लेकर, एक अँग्रेज अधिकारी ने मंदिर की हर तरह से जाँच करवाई थी। लेकिन कुछ भी उसके हाथ नहीं लगा। उसने काल भैरव की प्रतिमा के आसपास की जगह की खुदाई भी करवाई, लेकिन नतीजा कुछ भी निकला तब उसके बाद वह भी काल भैरव का भक्त बन गया।
काल भैरव से जुड़ी एक कथा भी है, जो इस प्रकार है..  "कि स्कंद पुराण में इस जगह के धार्मिक महत्व का जिक्र है। इसके अनुसार, चारों
वेदों के रचियता भगवान ब्रह्मा ने जब पांचवें वेद की रचना का फैसला किया, तो उन्हें इस काम से रोकने के लिए देवता भगवान शिव की शरण में गए। ब्रह्मा जी ने उनकी बात नहीं मानी। इस
पर शिवजी ने क्रोधित होकर अपने तीसरे नेत्र से बालक बटुक भैरव को प्रकट किया। इस उग्र स्वभाव के बालक ने गुस्से में आकर ब्रह्मा जी का पांचवां मस्तक काट दिया। इससे लगे ब्रह्म हत्या के पाप को दूर करने के लिए वह अनेक स्थानों पर गए, लेकिन उन्हें मुक्ति नहीं मिली। तब भैरव ने भगवान शिव की आराधना की। शिव ने भैरव को बताया कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर ओखर श्मशान के पास तपस्या
करने से उन्हें इस पाप से मुक्ति मिलेगी। तभी से यहां काल भैरव की पूजा हो रही है।"
हम लोग प्रसाद लेकर एक बड़े से द्वार से होते हुए, मन्दिर मे दाखिल हुए। द्वार के ठीक सामने काल भैरव का मन्दिर है, चार पांच सीढ़ियाँ चढ़ने पर काल भैरव जी की मूर्ति के दर्शन होते है। हमसे पहले कुछ भक्त वहां बैठ कर काल भैरव की पूजा अर्चना मे लगे हुए थे। इसलिए हम मन्दिर मे ही एक साईड खड़े हो गए। कुछ देर बाद हमारी बारी आई, वहां पर एक पंडित जी बैठे थे, उन्होंने हमसे प्रसाद ले लिया ओर पुष्प आदि काल भैरव को चढ़ा दिए। फिर उन्होंने प्रसाद मे रखी मदिरा की बोतल में से कुछ मदिरा एक छोटी सी प्लेट में डाली। पंडित जी ने कुछ मंत्र बुदबुदाए ओर प्लेट काल भैरव की मूर्ति के होठो पर टच कर दी। कुछ ही देर बाद प्लेट से मदिरा लगभग खत्म हो गई। मुझे भी इस बात का आश्चर्य हुआ की यह कैसे हो गया।
कुछ लोग इसे चमत्कार कहे या कुछ ओर, पर मैंने तो अपनी आंखों के सामने भैरव जी की मूर्ति को मदिरापान करते हुए देखा। मन्दिर के पुजारी ने हमसे कहां की यह शराब बाहर बैठे किसी भी व्यक्ति को ना दे। क्योंकि बाहर बैठे ऐसे व्यक्ति भी वहां का माहौल खराब कर सकते है। उनकी बात मानकर हम मन्दिर से बाहर निकल गए।
मन्दिर परिसर के अंदर ओर भी मन्दिर बने है। उनमें से एक शिव मन्दिर मे दर्शन किए। मन्दिर परिसर में ही काल भैरव मन्दिर के पिछे एक छोटी सी गुफा बनी है, जो बहुत ही छोटी थी। चौड़ाई इतनी की बस एक ही आदमी उसमें प्रवेश कर सकता है, इस छोटी सी गुफा मे घुसते ही गणेश जी की मूर्ति स्थापित है। फिर इस गुफा में से ही एक ओर संकरी गुफा बनी है। जो नीचे की ओर बनी है। वहां पर पता चला की यह गुफा पाताल भैरवी गुफा है, ओर प्राचीनकाल से ही यहां पर तंत्र-मंत्र,सिद्धी प्राप्त करने हेतु पूजा पाठ होते रहें है। इस गुफा को देखकर हम वापस बाहर आ गए। मन्दिर के बाहर बहुत से लंगूर बैठे हुए थे, जिन्हें लोग चने-मुंगफली व कोई काले रंग का फल खिला रहे थे। मैंने भी लंगूरो के लिए चने- मुंगफली व वह फल ले लिए, ओर उन्हें खिलाने लगा। देखते ही देखते काफी लंगूर वहां पर जमा हो गए। फिर हम वहां से पार्किंग की तरफ चल पड़े। वहां से हम उज्जैन कोटा रोड की तरफ चल पड़े।
सुबह से हमने कुछ खाया भी नही था। इसलिए थोड़ा सा चलते ही एक ढाबे पर गाड़ियाँ लगा दी। चाय, बिस्किट, मठरी का नाश्ता किया गया। लगभग 8 बजे हम नाश्ता करने के बाद हम चले। कुछ देर चलने के बाद हमारे साथ वाली गाड़ी एक बाजार मे टायर पंचर वाले की दुकान पर रूकी। यहां पर उन्होंने अपनी गाड़ी के टायर की हवा चैक कराई। इस जगह का नाम सुन कर मुझे थोड़ा अजीब सा लगा क्योकी इस कस्बे का नाम था " घटिया" । खैर नाम कुछ भी हो हमारा काम तो यहां पर हो ही गया। हवा चैक करा कर हम यहां से चल पड़े। रास्ते मे एक जगह एक गांव पड़ा जिसका नाम था "घौसला" । घौसला मे मैन सड़क पर इतनी भैड मिली की कुछ मिनटों तक हमे गाड़ी एक जगह ही रोकनी पड़ी। उज्जैन से कोटा तक रोड बढ़िया बनी है, ज्यादा ट्रैफिक भी नही मिलता। कुछ दूर चलने पर हमे हजारों की तादात मे बिजली बनाती पवन चक्कीयां मिली। जो देखने मे बहुत सुन्दर लग रही थी। इतनी सारी पवनचक्की एक साथ मेनें आजतक नही देखी। इनको देखते देखते हम अब मध्यप्रदेश से राजस्थान मे प्रवेश कर गए। राजस्थान मे प्रवेश करते ही एक शहर मिला, जिसमें एक छोटीे पहाड़ी पर एक किला बना था। आगे चलकर इस शहर का नाम पता चला, इस शहर का नाम था " झालावाड " ।
इसका क्या इतिहास है यह मुझे नही पता। पर किला देखने में बेहद शानदार लग रहा था। झालावाड से होते हुए कोटा पहुँचे। कोटा से थोड़ा आगे निकल कर हमने एक ढाबे पर खाना खाया।
खाना खाने के बाद हम एक बेहद शानदार सड़क से होते हुए, बूँदी पहुँचे। बूँदी का किला (तारागढ़ दुर्ग)सामने सड़क से ही दिख रहा था। किले के पास अन्य मकान भी बने थे। बूँदी का इतिहास बहुत पुराना है।व अब तो यह एक पर्यटक स्थल भी बन चुका है। बूँदी के किले के सामने से निकलते हुए, हम लगातार चलते रहे। रास्ते मे कई छोटे बड़े किले मिले। एक किला तो घोर जंगल मे बना था। नाम भूल गया हुं। रास्ते में एक किला ओर दिखाई पड़ा, यह था टोंक का किला। यह किला भी बाहर से बहुत सुंदर लग रहा था। मैं इन किले, दुर्ग के इतने नजदीक होकर भी इन्हें देख नही सका। क्योकी हमने घर भी पहुँचना था।
यहां से मौसम ने एक दम करवट बदल ली। बहुत जोरों से बारिश होने लगी। जहां हमारी गाड़ी 100/120 km की रफ्तार से चल रही थी अब बारिश की वजह से 40km की रफ्तार पर आ गई थी। जयपुर पहुँचते पहुँचते शाम के लगभग 6बज गए। बारिश भी बंद हो गई थी। जयपुर के हवामहल के सामने से निकल ही रहे थे, की मेरी नजर गर्मा गरम पकोडो पर पड़ी। जब गाड़ी साईड मे लगाकर में पकोडे लेने पहुँचा। तब पता चला की यहां पर तो पहले से ही बुकिंग चल रही है। इसका मतलब यह हुआ की पकोडे खाने है तो एक घंटा इंतजार करो, नही तो राम राम करो। हवामहल के पास बनी कुछ दुकानों पर हमारी पत्नी व दीदी ने जल्दी जल्दी कुछ खरीददारी भी कर डाली।
हवामहल से आमेर के किले की तरफ चल पड़े। बीच मे ही एक बड़ी झील दिखलाई पड़ी। उसके बीचो बीच एक इमारत बनी थी।  इसको जल महल कहते है। कुछ देर यहां पर रूकने के बाद हम आमेर के किले के बाहर से गुजरते हुए, जयपुर दिल्ली हाईवे पर चढ़ गए।  अब अंधरे हो चला था। थकान भी सब के मुख मंडल पर साफ झलक रही थी। रास्ते मे एक जगह रूक कर खाना खाया ओर रात के 2 बजे गाजियाबाद पहुँचे। जहां से हम घर ओर राहुल जी व सूरज जी मेरठ चले गए।
यात्रा समाप्त.......
अब कुछ फोटो देखे जाएँ इस यात्रा के.....
काल भैरव मंदिर  तरफ जाता रास्ता 
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 काल भैरवः मंदिर  के बारे में बताता एक बोर्ड 
एक काले कुत्ते की मूर्ति मंदिर के बाहर बनी है। 
काल भैरव जी के दर्शन। 
मंदिर में बना एक शिव मंदिर। 
एक फोटो मेरा भी कालभैरव मंदिर पर। 
पाताल भैरवी गुफा का प्रवेश द्धार। 
गुफा में प्रवेश करते ही गणेश जी की मूर्ति है (यहा बहुत अन्धेरा था कैमरे की फ्लैश से यह फोटो आये )

लंगूर सेना 
देवांग कालभैरव मंदिर पर 
प्रसाद की दुकान 
सेल्फ़ी देवांग की 
जगह और नदी का पता नहीं पर यहाँ नदी के बीचो बीच एक मंदिर  था 
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झालावाड़ का किला


 बूंदी का किला 
 जयपुर तक ऐसी  रोड मिली 
जयपुर 
हवामहल जयपुर 
हवामहल जयपुर लाइट जलने पर 
एक  फोटो मेरा 
देवांग हवामहल के सामने 
जल महल जयपुर 

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

ओंकारेश्वर मन्दिर व ममलेश्वर (ज्योतिर्लिंग) ओर नर्मदा नदी दर्शन

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29 जून 2015,दिन सोमवार
हम सुबह के लगभग 11बजे उज्जैन से ओंकारेश्वर के लिए चल पड़े। उज्जैन से ओंकारेश्वर तक की दूरी लगभग 127km है।उज्जैन से इंदौर तक टोल रोड है, जिस पर 19रूपयो का टोल लगता है। हमने टोल टैक्स दिया ओर हमारी गाड़ी सरपट दौड़ चली। यह रोड वाकई बहुत बढ़िया बनी है। हम जल्द ही इंदौर पहुँच गए। इंदौर मध्यप्रदेश का एक विकसित शहर है। इंदौर पहुंचने पर हमने एक दवाई घर से कुछ जरूरी दवाईयां ले ली जिनकी रोजमर्रा में जरूरत पड़ती है। इंदौर से ओंकारेश्वर तक की दूरी लगभग 77 km है। अब हम मैन रोड से बांये तरफ जाते खांडवा रोड पर चल पड़े। इस रास्ते पर थोड़ा चलने के बाद ही पहाड़ी रास्ता चालू हो जाता है।रास्ते के मनोहारी दृश्य बहुत सुंदर लग रहे थे। रोड के दोनों तरफ हरे भरे पेड़ पौधे मन को सकुन दे रहे थे। साथ साथ एक नदी भी बह रही थी। जहां पर कुछ पिकनिक स्पोट भी बने थे। कुछ दूर गाड़ी चलाने के बाद राहुल जी ने गाड़ी चलाने की बागडोर मुझे सौंप दी। वहां से लेकर ओंकारेश्वर तक गाड़ी मेने ही चलाई। रास्ता बहुत अच्छा बना था। जितनी परेशानी हमने गुना से उज्जैन तक सहीं थी। आज वह सब मन से बाहर निकल गई क्योकी आज हमे सड़क बहुत अच्छी जो मिली थी। हम उज्जैन से लगभग रूकते रूकते तीन -चार घंटों मे ओंकारेश्वर पहुँच गए । ओंकारेश्वर पहुंचने पर सबसे पहले तो हमने दोनों गाड़ी एक पार्किंग मे लगाई।फिर वही पर एक दुकान पर चाय पी। चाय पीने के बाद हम वहां से पैदल चल पड़े मन्दिर की तरह। थोड़ा चलने पर हमे दूर से विंध्य पर्वत के दर्शन हुए। कहते है की ओम शब्द का पहला उच्चारण यही ओंकारेश्वर मे ही हुआ था।  ओर विंध्य पर्वत  का आकार ओम जैसा है, ओर जैसे ओम मे जहां चंद्र बिंदु होता है, वैसे ही ओंकारेश्वर महादेव का मन्दिर भी विंध्य पर्वत के उसी चंद्र बिंदु में स्थित है। ओंकारेश्वर मन्दिर एक ज्योतिर्लिंग है। यह शिव के बारह ज्योतिर्लिंग मे से एक है। ओंकारेश्वर लिंग किसी मनुष्य के द्वारा गढ़ा, तराशा या बनाया हुआ नहीं है, बल्कि यह प्राकृतिक शिवलिंग है। इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है।
मन्दिर तक जाने के दो रास्ते है। एक पुराने पुल से व दूसरा नए झूला पूल से।वैसे हम तो पुराने पुल से ही गए।मन्दिर के ही समीप नर्मदा नदी बह रही थी। नदी का साफ व हरा पानी देखकर हमारे मन मे इसे नजदीक से देखने व छुने की प्रबल इक्षा हुई। इसलिए हम काफी सीढ़ियों से उतरते हुए नर्मदा के एक घाट पर पहुँचे। यहां से मन्दिर बिल्कुल नजदीक ही दिखलाई पड़ता रहा था। नर्मदा का जल बड़ा स्वच्छ था,जिसमें छोटी छोटी मछलिया तैरती हुई दिखलाई दे रही थी। नाव वाले नाव चला रहे थे। लोग उनमें बैठ कर सैर कर रहे थे। घाट पर ही कुछ दुकानें लगी हुई थी, जिनपर प्रसाद व पुष्प बिक रहे थे। ओर साथ मे मछलियों को खिलाने के लिए भूने हुए चने बिक रहे थे। मेरा बेटा देवांग ने मुझसे कहा की पापा आप चने खरीद लीजिए, फिर मछलियों को खिलाऐगे। मैं 10 रू० के चने ले आया ओर देवांग ने मछलियों को चने खिलाए।
मछलियों को चने खिलाने के उपरांत हमने नहाने की सोची। हममें से कुछ नहाएं तो कुछ ने हाथ मुहं ही धौ लिए। मैं ओर देवांग तो जी भर के नहाऐ। जब तक सबने यह नही कह दिया की अब तो बाहर आ जाओ।
नर्मदा नदी को गंगा व यमुना से भी पवित्र नदी माना गया है। कुछ पौराणिक कहानियों व ग्रंथों मे नर्मदा नदी के बारे मे यह कहा गया है की गंगा के सात स्नान व नर्मदा का एक स्नान बराबर है। मतलब यह की गंगा जी मे सात स्नान करने के बाद आपको जितना फल मिलता है, उतना नर्मदा मे एक बार स्नान करने पर ही मिल जाता है। ओर नर्मदा नदी के पत्थर को भगवान शिव माना गया है। यह कहावत प्राचीन समय से ही चली आ रही है की नर्मदा के पत्थर पत्थर मे भगवान शिव का वास है।
हम सभी लोग नर्मदा मे नहाने के पश्चात ओंकारेश्वर महादेव के दर्शन के लिए मन्दिर की तरफ चल पड़े।मन्दिर से पहले कुछ सीढ़ियाँ बनी है, जहां पर काफी भीड़ पहले से ही मौजूद थी। यहां पर दर्शन हेतु महिलाएँ व छोटे बच्चो के लिए अलग लाईन थी। हमसे पहले हमारी ग्रुप की महिलाओं ने दर्शन कर लिए। जब महिलाएँ ने दर्शन कर लिए तब पुरुषों को अन्दर भेजा गया। भोले बाबा के जयकारे लगाते हुए हम मन्दिर के प्रवेश द्वार से अंदर चले गए। अन्दर बड़े बड़े खम्बे जिनपर सुन्दर नक्काशी हो रही थी। उनके बीच से होते हुए। एक छोटे से कमरे मे पहुचें,यहां पर बहुत भीड़ हो रही थी, इसी कमरे से जुड़ा एक छोटा सा कमरा ओर है, जहां पर हमने ओंकारेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग के दर्शन किये। तरह तरह के पुष्पो से ढकां यह शिवलिंग मुझे दिखलाई पड़ा।इसके आगे शीशे का अवरोधक बनाया हुआ था , जिससे भक्त केवल जल चढ़ा सके बाकी इस शिवलिंग को टच ना कर सके। सभी भक्त शिवलिंग पर जल चढ़ा रहे थे। हमने भी महादेव के दर्शन किये ओर मन्दिर से बाहर आ गए।
बाहर आकर हमारे साथ आए पंडितजी सैंकी महाराज ने नर्मदा के जल से एक छोटी सी पूजा कराई। पूजा करने के बाद हम थोड़ी देर मन्दिर मे ही बैठे रहे, जब सब लोग फोटो सोटो खिंच कर आ गए, तब हम सभी एक साथ नए झूला पूल की तरफ से वापस चल पड़े। झूला पूल से दोनों तरफ का शानदार नजारा दिख रहा था। एक तरफ ओंकारेश्वर मन्दिर का बेहतरीन नजारा दिख रहा था तो दूसरी ओर नर्मदा नदी पर बना एक विशाल बाँध सबको अपनी तरफ आकर्षित कर रहा था। झूला पूल को पार करने पर हम वापिस बाजार मे आ गए।
अब हम यहां पर मौजूद दूसरे ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के लिए चल पड़े। ओंकारेश्वर व ममलेश्वर(अमलेेश्वर) दोनों ही ज्योतिर्लिंग है। इनसे सम्बंधित एक कथा है, ओर कथा के अनुसार एक बार विंध्याचल पर्वत ने भगवान शिव की लगातार छः महीने तक घोर अराधना की। भगवान शिव अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने विंध्याचल पर्वत को दर्शन दिए। उचित अवसर देखकर देवता और ऋषिगण भी आ गए, जिनकी प्रार्थना पर ओंकार नामक लिंग के दो भाग किए गए। जिनमें से पहले में भगवान शिव ओम रूप में विराजे और वह ओंकारेश्वर कहलाया तथा दूसरा उस पार्थिव लिंग से प्रकट होने के कारण अमलेश्वर कहलाया। कहते है की इन दोनों ज्योतिर्लिंग की गणना एक मे होती है। इसलिए सम्पूर्ण ज्योतिर्लिंग दर्शन करने के लिए ओंकारेश्वर व ममलेश्वर दोनों के ही दर्शन जरूरी माने जाते है।
कुछ दूर चलने पर हम ममलेश्वर महादेव के प्राचीन मन्दिर(10वी शताब्दी कालीन) के पास आकर रूक गए।काले व भूरे पत्थर से बना यह मन्दिर दिखने मे बड़ा सुंदर लग रहा था। मन्दिर के पास चार पांच मन्दिर ओर भी थे। फिलहाल हम ममलेश्वर मन्दिर मे ज्योतिर्लिंग दर्शन के लिए अंदर गए। शिवलिंग के दर्शन बहुत अच्छे ढंग से हो गए।यहां पर भीड़ बिल्कुल भी नही थी। शिवलिंग का पूजन जल व पुष्प से किया।फिर मन्दिर के अंदर ही शिवलिंग के फोटो भी लिए,एक बात यहां देखी की ओंकारेश्वर की तरह यहां पर फोटो खिंचने की मनाई नही है। यहां पर आप कितने ही फोटो खिंच सकते है, बिना किसी की रोकटोक के। हम लोग दर्शन कर मन्दिर से बाहर आ गए। बाहर आकर मैं वहां पर अन्य बने मन्दिर देखने लगा। यहां पर बहुत से पंडितजी अपने जजमानो की पूजा करा रहे थे। एक मन्दिर मे कई तरह की प्राचीन व दुर्लभ मूर्तियाँ रखी थी, वहां पर वारह अवतार की भी मूर्ति रखी थी। एक पंडित जी थे मेने उनसे पूछा की यह सब यहां पर एक साथ क्यों रखी है। तब उन्होंने बताया की यह सब मूर्तियाँ बड़ी प्राचीन है, ओर यहां पर खुदाई मे ही मिली है। जगह की कमी की वजह से इन्हें एक ही जगह रखा गया है। मेने उन सभी की एक फोटो खीची ही तभी मेरे कैमरे की बैटरी खत्म हो गई। ओर मै मन्दिर से बाहर आ गया। फिर हम सब पार्किंग की तरफ चल पड़े। लेकिन हमारे साथ आएं पंडित जी ने हमे कोई ओर दूसरा रास्ता दिखा दिया। हम उस रास्ते पर चल दिए। आगे जाकर उस रास्ते पर हमें बहुत से बंदरो का सामना करना पड़ा। बंदरो से निपटने के बाद हम सभी पार्किंग पहुँचे। गर्मी बहुत लग रही थी,इसलिए निम्बू पानी पीया गया। थोड़ी देर बाद हम वहां से वापिस उज्जैन की तरफ चल पड़े। रास्ते मे एक अच्छा सा ढाबा देखकर खाना खाया गया। जब हम वहां से चले तो मौसम कुछ अच्छा सा हो गया था। हवा मे कुछ ठंडक हो गई थी। इंदौर पार करने के बाद तो इतनी तेज बारिश हुई की उज्जैन तक नही रूकी। शाम के लगभग सात बजे हम उज्जैन पहुँचे।जहां से हम अपने होटेल मे चले गए।
अब कुछ फोटो देखे जाए इस यात्रा के......
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग 
इंदौर खंडवा रोड पर कहीं 
पुराना पूल ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग व विंध्य पर्वत दर्शन 
ओंकारेश्वर मंदिर दर्शन व सामने नर्मदा पर बना बाँध दिखता हुआ 
नर्मदा का एक घाट 
नर्मदा के शांत जल पर तैरती एक  नाव
में सचिन अपने बेटे देवांग संग नर्मदा के एक घाट पर 
मंदिर तक जाता रास्ता व दोनों ओर  दुकाने 
मन्दिर पर ऐसी भीड़ का सामना करना पड़ा 
दीदी ,जीजाजी व सूरज भाई और उनकी फैमिली 
एक फोटो अपनी फैमिली का भी ओंकारेश्वर मंदिर के सामने 
में सचिन त्यागी ओंकारेश्वर मंदिर पर 
बच्चे अपनी ही मस्ती में होते है (देवांग और वीर )
 झूला पूल व बांध 
झूला पूल से दिखते अन्य मंदिर 
ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर 
ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग शिवलिंग दर्शन 
यही वोह मंदिर था जॅहा पर बहुत सारी मूर्तियाँ  साथ रखी थी