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बुधवार, 22 जुलाई 2015

हिमाचल यात्रा-05(माता चामुंडा देवी)

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19 june 2015, 
हम लोग ज्वाला माता के दर्शन करने के बाद कांगडा से कुछ दूर पालमपुर वाले रोड पर एक कस्बा पड़ता है "नगरोटा बागंवा"। जिसे हम पूरे रास्ते नगरोटा भगवान कहते रहे। यहां आकर वर्कशोप पर गाड़ी दिखाई पर यहां पर वह पार्ट नही मिला। इसलिए हम यहां से मायूस होकर बाहर निकल पडे। वैसे उसी ही दिन हमने गगल में गाड़ी ठीक करा दी थी यह मेनें पिछली पोस्ट में लिख ही दिया है इसलिए चलते है सीधा मां चामुंडा के दर्शन करने...।

हम नगरोटा के टोयटा शौरूम से आगे चलकर मालन नाम की जगह से बांये तरफ जाती रोड पर मुड गए।जिसको मालन चामुंडा रोड भी कहते है।यहां से चामुंडा देवी मन्दिर मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर रह जाता है। यहां से हल्की हल्की पहाड़ी रोड भी चालू हो गई। यह रोड सीधे धर्मशाला पालमपुर वाली रोड पर मिल जाती है।यहां T पोईंट पर ही माता का मन्दिर स्थित है ओर अगर बायें चले तो यह रास्ता हमे धर्मशाला पहुचाँ देगा जो यहा से 14 km की दूरी पर ही है ओर अगर यहां से दाहिने चले तो यह रास्ता सीधे पालमपुर पहुचां देगा,जो यहां से लगभग 28km की दूरी पर है। पालमपुर अपनी चाय के बगानो के लिए मशहूर है।
हम लोग गाड़ी वही पार्किंग मे खडी कर मन्दिर की तरफ चल पडे। मन्दिर के पास से ही प्रसाद ले लिया ओर माता की जय,जयकार करते हुए मन्दिर के अन्दर प्रवेश कर गए। हल्की हल्की बारिश तो पहले से हो रही थी पर यहां पर एकदम जबरदस्त तेज बारिश चालू हो गई। वो तो माता का शुक्र है,की मन्दिर मे टिन सेड लगा हुआ था नही तो पूरे भीग जाते। यहां पर दर्शन के लिए काफी लम्बी  लाईन लगी हुई थी। सभी लाईन में लग गए,पर हम तीनों(सचिन,आयुष व पीयुष) वगैर लाईन में लगे ही आगे जा कर लाईन में घुस गए। बाद में माता से इस गलती के लिए माफी मांग ली।हम  मन्दिर के प्रवेश द्वार से होते हुए एक गलियारे की सीढियां उतरने के बाद  मां चामुंडा के मुख्य मन्दिर के समीप पहुचं गए। काफी भीड थी पर सबको माता के बढिया दर्शन हुए। यहां पर एक आदमी ने अपने छोटे से बच्चे(10 या 15 दिन का होगा)को बाहुबली स्टाईल में एक हाथ से ऊठा रखा था ओर वह बडे जोरो से रो रहा था। वहां पर सभी लोगो ने उसे आगे जाने के लिए रास्ता यह कह कर दे दिया की" भाई तु पहले दर्शन कर हम तो बाद में कर लेगे"।
बाद में हमने भी चण्ड ओर मुण्ड  नामक महादृत्यो का वध करने वाली मां चामुंडा देवी के दर्शन किये। माता के दर्शन करने के बाद हम मन्दिर से बाहर आ गए। हमने देखा की बारिश अभी भी हो रही थी पर अब हल्की हो गई थी।मन्दिर परिसर में हनुमान जी की एक बडी प्रतिमा लगी है ओर पास ही भैरो बाबा का मन्दिर भी है।इन को नमस्कार कर हम सीढियो से नीचे उतरकर एक छोटी सी झील के पास पहुचें,इस झील के बीचो बीच भगवान शकंर की एक प्रतिमा लगी है ओर कुछ लोग यहां,पर पैडल वाली नाव भी चला रहे है। अभी तक धार्मिक मुड चल रहा था पर यह सब देखकर पिकनिक जैसा लगने लगा। हर कोई अपने आंनद मे डुबा दिखाई दे रहा था। हो भी क्यो नही जब मौसम सुहाना हो,कल कल बहती बानेर नदी(बाणगंगा) हो,मन्दिर से दिखते ऊंचे ऊंचे धौलाधार के बर्फ से ढके पहाड।जब यह सब कुछ एक ही जगह हो तो यकीनन आपके मन मे आंनद की एक लहर सी ऊठेगी ही।
इस छोटी झील के पास ही कुछओर  सुंदर प्रतिमाएँ लगी हुई थी। इनको देखते हम तीनों बानेर नदी या कहे की बाणगंगा नदी के तट पर पहुचें ।यहा पर बहुत से लोग पहले से ही मौजूद थे,सभी लोग यहा पर आकर मौजमस्ती कर रहे थे। कोई नहा रहा था तो कोई फोटो खिचंवा रहा था। हमने भी बाणगंगा के इस सीतल जल मे मुहं हाथ धोए ओर फोटो खिचने लगे। हम नदी मे बह कर आए बडे बडे पत्थरो पर बैठे गए।ओर  नदी के बहाब व उसके शौर को देख व महसूस कर रहे थे। आयुष व पियुष दोनो इस जगह की खूबसूरती का लुफ्त ऊठा रहे थे दोनो अलग अलग अंदाज मे एक दूसरे का फोटो खिंच रहे थे।मै उन्हे वही छोड कर थोडा ओर आगे की तरफ चला ही था की मेरी नजर नदी मे तैरते हुए एक साँप पर पडी जो मजे से तैरता हुआ आकर एक पत्थर पर बैठ गया। मैने उसके पास जाकर (थोडा दूर ही रहा)उसके फोटो खिंचे। वहा पर एक अन्य सांप ओर दिखाई दिया। फिर वह दोनो सांप एक बडे से पत्थर की ओट में पता नही कहां छिप गए। पर कहते है की पानी का सांप ज़हरीला नही होता पर एक बार टीवी पर बताया था की पानी का सांप ज़हरीला होता है। अगर आप में कोई इस बारे मे जानता हो तो मुझे जरूर बताना।
सांपो को देखकर मै वापिस उन दोनो के पास आ गया ओर उन्हे सांप के बारे मे बताया।व उन्हे ओर  वहां पर मौजूद अन्य लोगो को हिदायत भी दी की आप लोग उधर ना जाए वहां पर सांप है।
कुछ ही देर बाद दीदी व अन्य  हम तीनों के पास आ गए। सभी लोग नदी के किनारे बैठ गए। यहां पर आकर मन आंनद से भर गया।
कुछ समय यहां बैठ कर हम बाण गंगा नदी से बाहर निकल आए। ओर वापिस पार्किंग की तरफ चल पडे। पर मै ओर आयुष पास में ही एक मन्दिर देखने के लिए दोडते चले गए। यह मन्दिर पुरानी चामुंडा नाम का था। यहा पर कई मन्दिर थे। जिन्हे हम देखकर वापिस चामुंडा देवी मन्दिर पर पहुचं गए। यहा पर एक विशाल पत्थर पडा हुआ है जिसके नीचे एक गुफा सी बनी है मुस्किल से दो या तीन आदमी ही रह सकते है वहा पर। यहां पर एक शिवलिंग स्थापित है जिसको पंडित जी नन्दकेश्वर शिवलिंग बता रहे थे। उन्होने बताया की यह स्वयं निकला शिवलिँग है। इसका फोटो खिचना मना था इसलिए कैमरा जेब में ही पडा रहने दिया। यहां पर दर्शन करने के बाद हम सीधे पार्किंग में पहुचे। ओर गगल के लिए प्रस्थान किया जो यहां से लगभग 28km दूरी पर स्थित है....
चामुंडा देवी:-माता चामुंडा का मन्दिर जिला कांगडा मे स्थित है। यह मन्दिर बानेर नदी (बाणगंगा) के किनारे पर स्थित है।माता चामुंडा मन्दिर माता के 51 शक्ति पीठो में से एक है। शक्ति पीठ उन्ह स्थलो को कहा जाता है जहां पर माता सती के अंग या आभूषण गिरे थे। ज्यादात्तर यह शक्तिपीठ भारत मे ही है ओर कुछ पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका व तिब्बत में भी  है। ऐसा माना जाता है की यही पर माता के पैर( चरण) गिरे थे। यह मन्दिर मां काली को समर्पित है। पौराणिक ग्रन्थो में व अन्य कथाओं मे वर्णित है की इसी जगह मां भगवती(शेरावाली मां)के एक रूप मां काली ने चन्ड ओर मुन्ड दो महाअसुरो का वध किया था ओर उनके सर काट कर मां भगवती को भेंट में दिए जिससे मां भगवती ने उन्हे वर दिया की क्योकीं तुमने चन्ड ओर मुंड नामक दो महाअसुरो का वध किया है इसलिए तुम इस संसार मे चामुंडा के नाम से विख्यात होगी।इसलिए यहां पर माता के इसी स्वरूप की पूजा की जाती है कहते है की यहां पर देवी का पाठ कहने व सुनने वाले की सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है।
अब कुछ फोटो देखते है............... 
जय मां चामुंडा देवी
मन्दिर द्वार बाहर पार्किंग के पास
मन्दिर द्वार (बाजार )
लाईन लगी हुई है
मां चामुंडा देवी का मुख्य मन्दिर
मन्दिर के बाहर का दृश्य
 मै सचिन त्यागी
मां काली चंड ओर मुंड के सर माता भगवती को उपहार के रूप मे देती हुई।
यहां चिलम पीना मनाभोले नाथ जी बब्बर शेर के साथ पियुष जीयह नकली नहीं"असली" है
पुरानी चामुंडा मन्दिर मार्गपुरानी चामुंडा मुख्य मन्दिर व दिवारो पर वर्णित इतिहास 
चामुंडा मन्दिर का पूर्ण दर्शन व नन्दीकेश्वर शिवलिंग वाला स्थान दिखता हुआ(मन्दिर के नीचे)
बाणगंगा नदी(बानेर नदी)
बानेर पर बना पूल 
आयुष व पियुष
मै सचिन त्यागी 
बाणगंगा नदी 
नाग देवता
नाग देवता

शनिवार, 18 जुलाई 2015

हिमाचल यात्रा-04("गगल" में गाडी ठीक कराई)

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ज्वाला देवी के दर्शन करने के पश्चात हम होटल पहुचें ओर होटल वाले का हिसाब कर हम कांगडा की तरफ चल पडे। अब हमारा लक्ष्य केवल गाडी ठीक कराना ही था। वैसे गाड़ी केवल आवाज ही कर रही थी पर चल एकदम ठीक रही थी। लेकिन जो कमी थी उसको ठीक कराना ही उचित होता है।
हमे ज्वाला देवी के दर्शन करने मे लगभग दो घन्टो का समय  लग गया था। इसलिए हम लगभग दोपहर के 12 बजे ज्वालादेवी से कांगडा शहर के लिए चले जो लगभग 36km की दूरी पर था।रास्ते में एक कस्बा पड़ता है नाम था रानीताल।लगा की यहां जरूर झील वगैरह होगी पर वहां पर ऐसा कुछ नही था वहा पर खाने के लिए बहुत सारे शाकाहारी वेष्णो ढाबे जरूर थे। हमने भी सुबह से कुछ खाया नही था। इसलिए यहीं पर एक पंजाबी ढाबे पर गाड़ी लगा दी ओर खाना खाया।खाना खाने के बाद हम यहां से कांगडा की तरफ चल पडे वैसे रानीताल से पठानकोट वाली मुख्य सडक तक रास्ता जाता है,ओर पठानकोट से जोगिन्दरनगर तक चलने वाली रेल भी यहां से होकर गुजरती है जिसकी पटरी कई बार पूरे रास्ते दिखती रही,कही कही रेलवे के सुन्दर पुल भी दिखाई दिए।हम कुछ ही देर बाद कांगडा शहर पहुचं जाते है वही पता चलता है की कांगडा से लगभग 20km दूरी पर व हाईवे न-20 (पठानकोट से मंडी) पर स्थित एक कस्बे नगरोटा बांग्वा मे टोयटा गाडी का सर्विस स्टेशन है। हम सीधे उसी रास्ते पर हो लिए। यह रास्ता बहुत सुन्दर था। कुछ दूर बर्फ के पहाड दिख रहे थे। हरे भरे खेत खलियान सडक के किनारे किनारे चल रहे थे। यह 20km कब खत्म हो गए पता ही नही चला।हम दोपहर के लगभग 2:30बजे नगरोटा में टोयटा के शौरूम पहुचें। अमरीष जी व ड्राइवर साहब गाडी के साथ अन्दर चले गए ओर हम बाकी सब वही पर बने वेटिंग रूम मे बैठ गए। गाडी मे कम से कम दो घन्टे लगने थे इसलिए मैने ओर आयुष, पियुष ने तय किया की हम या तो पैदल या फिर किसी ओर वाहन से चामुण्डा चले जाऐगे जो यहा से केवल 6km की दूरी पर ही है । लेकिन कुछ देर बाद एक बुरी खबर मिली की गाड़ी यहां ठीक नही हो सकती है क्योकीं जो बैरिंग टुटा है वो या तो मन्डी वर्कशोप पर मिलेगा या फिर जलंधर वर्कशोप पर। ओर अगर वह वहा से वह पुर्जा मंगाते है भी तो कम से कम तीन दिन लग जाएगे। अब हमारी चिंता ओर बढ गई। लेकिन उन्होंने हमे कांगडा से लगभग 5kmदूरी पर गगल नामक जगह बताई जहां पर आपकी गाड़ी ठीक हो सकती है। उसने हमे एक आदमी का मोबाइल नम्बर भी दिया। ओर कहा की आप इस के पास चले जाना यह जरूर कैसे ना कैसे आपकी गाड़ी ठीक कर देगा।मेने उस आदमी से बात की ओर हमारी गाड़ी में क्या खराबी है वो भी बता दिया। उसने कहा की आपकी गाड़ी ठीक हो जाएगी । आप शाम के 6 बजे तक आ जाना।
अब हमे कुछ अच्छा सा महसूस हुआ। इसलिए हमने चामुंडा देवी जाने का निर्णय लिया। हम नगरोटा से कुछ दूरी चलके बांये तरफ जाते रास्ते पर मुड गए यह रास्ता सीधा चामुंडा देवी मन्दिर तक जाता है तथा धर्मशाला से जो रास्ता पालमपुर जाता है वहा पर मिल जाता है । हम कुछ ही मिनटो में मन्दिर पहुचं गए। चामुंडा माता के दर्शन किये । (चामुंडा माता के दर्शन अगली पोस्ट में लिखुंगा)
दर्शन करने के बाद हम हाईवे न-20 से होते हुए। लगभग शाम के 6 बजे गगल पहुँचे । गगल एक छोटा सा शहर है जहां पर हमे सभी प्रकार की दुकानें देखने को मिली। यहां पर हर जरूरत का समान मिल जाता है। यहां से कांगडा 6 व धर्मशाला 10 की दूरी पर है। यहा पर एयरपोर्ट भी है गगल एयरपोर्ट लेकिन यह धर्मशाला एयरपोर्ट के नाम से ज्यादा जाना जाता है।
यहां आकर हमने एक बार ओर उस आदमी को फोन मिलाया तो उसने कहा की इंडियन आयल के पम्प के पास ही मेरी दुकान है आप इसी रास्ते पर सीधे चले आओ। हम वहां से सीधे चलते हुए उसकी दुकान पर पहुचें । उसने हमारी गाडी को खोलना चालू किया ओर अल्टिनैटर का पुली संग बैरिंग नया डाल दिया। गाड़ी अब बिल्कुल ठीक हो गई थी कोई आवाज नही आ रही थी। उसने हमसे 3000 रू मांगे जो हमने उसे दे दिए। पर उसने कहा की पता नही आपकी गाड़ी कैसे चल रही थी। हमने पुछा क्यो भाई ऐसा क्या हो गया था?
उसने बताया की बैरिंग की अन्दर की सारी गोली कट कट कर बाहर निकल गई थी ओर उपर से इस पर बैल्ट चल रही थी। जब गोली ही नही थी तो बैरिंग कैसे चल रहा था ओर बैल्ट उस पर कैसे टिकी थी। जब हमने उसे बताया की हम कल से ऐसी हालत में ही घुम रहे है तो वह भी हैरान हो गया की गाड़ी ऐसे हालत में,कैसे चल रही थी। खैर हम तो इसे माता का चमत्कार ही कहेगे।
यात्रा अभी जारी है..............
रानीताल के ढाबे
कांगडा की तरफ 
कांगडा की किला दिख रहा है।
रेलवे का शानदार ब्रिज दिखाई दे रहा है
कांगडा से नगरोटा बांगवा तक ऐसे ही दृश्य दिखाई देते है सडक से
नगरोटा बागंवा 
टोयटा की वर्कशोप में पुराने टायर का बढिया प्रयोग पौधे लगाने में 
गगल
गगल में इसी दुकान में ठीक कराई गाडी

सोमवार, 13 जुलाई 2015

हिमाचल यात्रा-03(ज्वालादेवी मन्दिर,ज्वालामुखी)

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19 जून 2015,दिन शनिवार
रात काफी लेट सोने के बावजूद सुबह आँखें जल्दी ही खुल गई। पूरी रात बारिश पडती रही थी,लेकिन अब बारिश रूक गई थी,मै ओर आयुष,पियुष ओर नेहा हम चारो होटेल की छत पर पहुचें। जहां से चारो ओर नजारा शानदार दिख रहा था। मन्दिर के पहले दर्शन भी हमे यही से हो गए। होटल से नीचे सडक पर देखा तो बाहर श्रद्धालुओं की चहल पहल चालू हो चुकी थी,जो मन्दिर की ओर चले जा रहे थे।ओर माता ज्वाला देवी के दर्शन जल्द से जल्द करना चाह रहे थे। मन्दिर तक एक गलियारा बना है जिसके दोनो तरफ प्रसाद व पूजा की ओर अन्य वस्तुओ की दुकानें है।यह सब हम ऊपर से ही देख रहे थे।हम सभी नीचे आ गए ओर सुबह के दैनिक कार्यो को निपटा कर सुबह के 9बजे मन्दिर की तरफ चल पडे। रास्ते में हमारे ड्राइवर साहब जी मिले जो दर्शन कर लोट रहे थे।हम होटल से पांच छ: मिनट में ही मन्दिर पर पहुचं गए। बाहर बनी दुकान से सबने प्रसाद लिया। ओर माता का जयकारा लगाते हुए,सीढियां चढते चले गए। ऊपर देखा की माता के भक्तो की भिड लगी थी। काफी भीड थी हमने अंदाजा लगा लिया था की कम से कम दो घंटे लग जाऐगे दर्शन करने में। हमे काफी देर हो गई एक ही जगह खडे खडे,मन में कई सवाल ऊठ रहे थे की यह लाईन क्यो नही चल रही है। मेने फैसला किया की यह लाईन क्यो नही चल रही है क्यो ना यह देखा जाए। इसलिए मै लाईन से हट कर आगे चल दिया काफी आगे जाकर देखा की अब तक तो तीन लाईन चल रही थी पर आगे लोहे के पाईप लगे है ओर वहा से एक ही लाईन बन रही है इसलिए ऐसा लग रहा था की लाईन चल ही नही रही है।धिरे धिरे लाईन चली ओर मै अपने साथ वालो से थोडा आगे हो गया। मैने अायुष व पियुष को भी अपने पास बुला लिया। हम तीनों नें ज्वालामुखी माता के दर्शन एक साथ किये।मन्दिर में अन्दर एक कुंड सा बना था जिसमे माता की ज्योत जल रही थी ।तीन चार पुजारी वहां पर लगे हुए थे जो लोगे के प्रसाद को मां की अग्नि ज्योत के पास ले जाते हो बाकी प्रसाद उसी भक्त को वापिस दे देते। माता की ज्योत एक समान रूप से जली जा रही थी लग रहा था की शायद कुछ गैस वगैरह की पाईपलाईन बिछी हो पर ऐसा नही है। यह ज्योत पता नही कितने समय से जलती आ रही है इसका तो पता ही नही पर एक बार मुगल सम्राट अकबर ने इस ज्योति को बुझाने के लिए,पता नही कितने प्रयास किये पर यह ज्योति निरंतर जलती रही। आखिरकार अकबर भी मां की महिमा को जान गया ओर यहां घुटनो के बल आ गया,उसका अभिमान यहां आकर चकनाचूर हो गया । उसने मां को सोने का छत्र चढाया पर मां ने उसे स्वीकार नही किया ओर वह किसी ओर धातु में बदल गया। आज भी वह छत्र मन्दिर के पास ही रखा है।
मां की ज्योति के दर्शन कर व वहां से प्रसाद लेकर हम तीनो मन्दिर से बाहर आ गए। ज्वाला माई मन्दिर के आसपास कई मन्दिर बने है। हम तीनो ने एक एक कर सभी मन्दिरो में दर्शन किये।
मन्दिर परीसर में काफी भक्त मौजूद थे,कई ढौल वाले भी बैठे थे।कुछ लोग माता की ज्योत से ज्योत ले जा रहे थे। ऐसा हमारे गांव में भी होता है साल के दोनो नवरात्रो में यही से ज्योत ले जाते है ओर मन्दिर में एक अखंड जौत जलाते है,फिर सुबह हर घर से कोई ना कोई मन्दिर आता है ओर वहा उस अखंड ज्योत से एक ज्योत जला कर अपने घर के मन्दिर  में स्थापित करता है।
उतर भारत के लोग माता की जात देने जाते है माता के दरबार में,यहां भी ऐसे काफी लोग मौजुद थे। जो मन्दिर परिसर मे गाना बजाना कर रहे थे।यह लोग ज्यादातर पीले वस्त्र ही पहनते है।इनको देखते हुए हम तीनो  मन्दिर के बिल्कुल सामने बने माता का शयनकक्ष देखने के लिए पहुचें है जहां माता रानी का बिस्तर सजा है। ओर हर शाम यहा पर आरती होती है ओर माता का बिस्तर सजता है।
यहां से हम ज्वाला देवी मन्दिर के पास ही एक ओर मन्दिर है जिसे देखने गए "गोरख डिब्बी"। यहां पर माता का एक भक्त गोरखनाथ रहा करते थे। एक बार उन्हे भूख लगी तो उन्होने मां से कहा की "मां आप आग जला कर पानी  गरम होने को रखे जब तक मै भिक्षा मांग कर लाता। मां ने आग जला दी ओर गोरखनाथ का इन्तजार करने लगी पर गोरखनाथ नही आया। सतयुग से कलयुग बीत गया पर गोरखनाथ जी  नही आये। कहते है की माता रानी की यह ज्वाला ज्योति तब से निरंतर जलती आ रही है ओर माता रानी यहां पर हमेशा मौजूद रहती है। ओर जब तक बाबा गोरखनाथ नही आ जाते यह ज्योति यूं ही जलती रहेगी।
हम तीनो गोऱख डिब्बी नामक मन्दिर में प्रवेश करते है,यहां पर बाबा गोरखनाथ के कुछ चमत्कारो के चित्र बने है। वैसे इस मन्दिर में जो बात मुख्य है वो है खौलते पानी का कुण्ड जो दिखने मे तो खौलता महसूस होता है पर छुने पर ठन्डा ही होता है। यहां पर पुजारी नें कुछ देर के लिए दर्शन बंद कर दिए ओर पर्दा डाल दिया । आयुष ने हल्का सा पर्दा हटाकर देखा तो पुजारी जी नोटो को समेटने मे लगे थे। कुछ ही देर बाद दर्शन फिर से चालू हो गए। हमने भी गोरख डिब्बी के उस खौलते पानी के कुन्ड के दर्शन किये ओर बाहर आ गए। बाहर आते ही हमने देखा की बाकी लोग भी ज्वाला माता के दर्शन कर चुके है ओर हमारा इंतजार कर रहे है।यहां पर एक अन्य मन्दिर "टेढा मन्दिर" भी था जो लगभग 2km की दूरी पर था। हम वहा जाना तो चाहते थे पर अमरीष जी ने कहा की अब यहां,से चलो आज गाडी भी ठीक करानी है।(हमारी गाडी में कल ऊना से ही आवाज आ रही थी)हमने कहां की चामुंडा देवी भी तो चलना है पर हमारी गाड़ी खराब होने के कारण शायद ही हम वहा पर जा सके।हमने एक बार माता को प्रणाम किया ओर वहां से होटल की ओर चल पडे।
ज्वालादेवी माता-ज्वालादेवी या ज्वालामुखी माता का मन्दिर कांगडा जिले मे पड़ता है। कांगडा से यहां तक की दूरी लगभग 35km है। इस मन्दिर मे माता की अग्नि ज्योत निरंतर जलती रहती है। यह भी माता के 51शक्ति पीठों में से एक है यहां पर माता सती की जीभ गिरी थी। कहते है की माता आज भी इन शक्तिपीठों में निवास करती है ओर जो सच्चे मन से यहां आकर माता की अराधना करता है,मां उसकी हर मनोकामनाएं पूर्ण करती है। कहते है की इस मन्दिर की खोज पांडवों ने ही कि थी पर बाद में कांगडा के राजा ने इस मन्दिर का निर्माण कराया।
होटल की छत से दिखता माता का मन्दिर
एक फोटो अपना भी
यह मिठ्ठू होटल में ही था
आयुष मन्दिर जाने वाले रास्ते पर
यही से मन्दिर शुरू होता है
भक्त दर्शन के लिए जाते हुए
यही से पाईप वाला रास्ता चालू होता है,जिससे सभी आराम से दर्शन कर सके।
ज्वालामुखी माता का मुख्य मन्दिर
अकबर का चढाया छत्र जो माता ने स्वीकार नही किया था ओर सोने से किसी ओर धातु मे बदल गया था
मै ज्वालादेवी मन्दिर पर
मै ओर आयुष माता के शयनकक्ष के सामने
माता के शयनकक्ष के अंदर का फोटो
मन्दिर परीसर 
माता की ज्योति दर्शन 
यही पर था वह खौलता पानी का कुन्ड
माता की ज्योति से अखंड ज्योति ले जाते भक्त