यह यात्रा मैंने 31oct 2018 को अपने एक दोस्त के संग की थी। हम दोनों को पौड़ी गढ़वाल के एक गांव बरसूडी में जाना था। यह गांव हमारे परम मित्र बीनू कुकरेती जी का है और हम कुछ दोस्त इस गांव में 2017 से एक एजुकेशन व स्वास्थ्य कैम्प का आयोजन करते आ रहे थे। इसलिए हमें वहाँ एक दिन पहले पहुँचना था। उस समय गांव तक सड़क नही थी (वर्तमान में सड़क बन चुकी है ) सड़क केवल द्वारीखाल तक ही थी। और बरसूडी गांव तक जाने के लिए करीब 8 km पैदल चलना होता था।
हम दोनों दोस्त अपनी कार से जा रहे थे। इसलिए कुछ काम निपटाने के बाद लगभग 11 बजे दिल्ली से बरसूडी के लिए निकल पड़े। दिल्ली से द्वारीखाल तक कि दूरी 240 किलोमीटर थी और हमें लगभग शाम के 5 बजे तक पहुँच जाना था। हम मेरठ रोड से होते हुए मीरापुर पहुँचे। अब हमें कोटद्वार वाले रास्ते पर चलना था। फिर हम आगे नजीबाबाद पहुँच कर एक ढ़ाबे पर रुकें। हमे रास्ते मे बारिश भी मिली लेकिन बारिश थोड़ी ही देर में रुक गयी। हमने ढ़ाबे पर खाना खाया और कोटद्वार के लिए निकल पड़े।
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सिध्बली टेम्पल, कोटद्वार |
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ट्रैफिक जाम |
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लैंड स्लाइड |
कोटद्वार में हनुमानजी का एक प्रसिद्ध मंदिर है। जो सिद्धबली नाम से प्रसिद्ध है। सिद्धबली मंदिर खोह नदी के किनारे एक पहाड़ी पर बना है। मंदिर को दूर से ही प्रणाम किया और आगे निकल गए। आगे रास्ता टूटा मिला क्योंकि दो चार दिन पहले एक पहाड़ी खिसक थी और कोटद्वार में भी काफी बारिश हुई थी। हमको भी एक दो जगह जाम जैसी स्तिथि का सामना करना पड़ा। हम लगभग शाम के 6 बजे दुगड्डा से थोड़ा आगे गुमखाल पहुँच गए। गुमखाल एक सुंदर जगह है।
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गुमखाल |
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मैं सचिन त्यागी (लेखक) |
गुमखाल से एक रास्ता सीधा पौड़ी को चला जाता है और एक रास्ता बांए तरफ ऋषिकेश चला जाता है। ऋषिकेश वाले रास्ते पर ही हम चल पड़े। थोड़ा चलते ही कीर्तिखाल आ गया यहाँ से
भैरोगढ़ी मंदिर के लिए पैदल रास्ता बना है। हम कीर्तिखाल से थोड़ा आगे द्वारीखाल के लिए चल दिये अब शाम ढल चुकी थी पर अभी उजाला था। सड़क किनारे एक जगह देखकर अपनी कार साइड में लगा दी। और अपना सामान उठा कर बरसूडी गांव के लिए चल दिये। एक चाय की दुकान पर रुके और एक गर्म चाय के लिए बोल दिया । चाय पीते-पीते हुए बरसूडी गांव का रास्ता भी पूछ लिया । वैसे रास्ता तो हम जानते थे क्योंकि पिछले साल भी गाँव आए थे। रास्ता पूछने का एक यह भी कारण था की एक तो पूरा रास्ता जंगल का था और दूसरा अब शाम ढल चुकी थी और शायद कुछ ही पलों में अंधेरा भी होने वाला था। हमे उम्मीद थी की शायद कोई ना कोई गांव का व्यक्ति पिछले साल की तरह आज भी हमारे साथ चल पड़े। लेकिन अबकी बार हम थोड़े लेट थे गांव के लोग वापिस जा चुके थे।
शाम के लगभग 7 बजे हम चाय की दुकान से चल पड़े। अभी थोड़ा उजाला था लेकिन जल्द ही अंधेरा चारो तरफ फैल जाएगा यह हमें पता था। पहाड़ो पर ऐसा ही होता है अंधकार जल्दी ही फैल जाता है। कुछ घरों से धुआं उड़ रहा था यह रात के खाने बनने का संकेत होता है। दुकान से करीब 200 मीटर दूर एक आखिरी घर था। उससे आगे कोई घर नही था। फिर आगे जंगल का ही रास्ता था। पहाड़ो पर चीड़, बांज बुराँस आदि के पेड़ होते है यहां भी चीड़ के गगनचुंबी पेड़ बहुयात थे। वैसे पहाड़ी लोग चीड़ के पेड़ को अच्छा नही मानते है एक तो इसका पिरूल बहुत जल्दी जल जाता है और कभी कभी तो सूर्य की तेज किरणों से भी सुलग जाता है जिससे जंगलो में आग लग जाती है। दूसरा इस पेड़ के नीचे अन्य वनस्पति नही उपज पाती है।
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बर्सुड़ी के लिए चल पड़े |
तो हम दोनों चीड़ व अन्य पेड़ के जंगलों में चल रहे थे। पिछले साल के मुकाबले रास्ता बदल गया था जो छोटा सा रास्ता था वो अब नही था। अब रास्ता एक कच्ची सड़क जैसा हो गया था जिसपर बहुत छोटे छोटे पत्थर फैले हुए थे। इस सड़क निर्माण की वजह से पहाड़ काटे गए होंगे तो वह रास्ता भी तोड़ दिया गया होगा। अब यह रास्ता हमारे लिए नया ही था। हम आगे चलने के साथ रुक रुक कर बार बार पीछे भी देख रहे थे की शायद कोई मुसाफिर दिख जाए, पर कोई आता नही दिख रहा था। पहाड़ के उस पार दूर दूसरी तरफ सड़क पर लाइट दिख रही थी। वो ऋषिकेश रोड था।
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अब अँधेरा होने लगा था |
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कुछ दूर चलने के बाद पेड़ घने हो गए थे और अब अंधकार भी चारो तरफ पूरी तरह फैल चुका था। मेरा दोस्त मुस्तफा एक कमजोर दिल का प्राणी है। इसका उदाहरण वह पहले भी कई बार दे चुका है। आज भी अंधेरा होते ही उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी। उसे तो यह भय था की तेंदुआ, भालू अभी कुछ दूर रास्ते मे ही मिल जाएंगे और अपने बचाव कैसे होगा सभी की कहानी भी सुनाने लगा। मैंने अपने बैग से एक छोटी टार्च निकाल ली। हम थोड़ा चलते फिर रुक जाते क्योंकि हमे पहाड़ी रास्तो पर चलने की आदत भी नही थी इसलिए थोड़ा सांसो को आराम देते हुए चल रहे थे और ऊपर से अंधेरे व जंगल का भय अलग से था। हवा से पेड़ो व झाड़ियों की पत्तियां भी हिलती तो जान सी निकल जाती। बल्कि मुस्तफा ने तो यहा तक भी कह दिया था कि यदि तेंदुआ आ गया तो वो खाई की तरफ नीचे भागेगा। थोड़ा आगे चलने पर रास्ता दो जगह फट गया। जबकि पहले गांव तक रास्ता सीधा ही था। इसलिए मैंने इस रास्ते पर भी सीधा ही चलना तय किया, जो सही भी था। बाद में पता चला की दूसरा रास्ता भाल गांव के लिए था। हमे चलते हुए लगभग 1 घण्टा हो चुका था। एक मोड़ पर पर मुड़ते ही मुझे आगे लगभग 300 मीटर दूर कोई जानवर सड़क के किनारे बैठा प्रतित हुआ। जो मुझे टॉर्च की रोशनी में दिखाई पड़ा। मैं तुरंत एक जगह रुक गया मैंने मुस्तफा को शांत रहने की सलाह दी। मुस्तफा का हाल बेहाल हो गया था। हमने तय किया कि हम यहीं कुछ देर खड़े रहेंगे जब तक वो जानवर चला नही जाता। लगभग 10 से 15 मिनेट बाद मैंने टॉर्च की रोशनी फिर आगे मोड़ की तरफ की तो देखा की वह जानवर तो उसी मुद्रा में बैठा हुआ था जैसे मैंने उसे पहले देखा था। मुझे कुछ संदेह हुआ फिर मैंने फैसला किया कि हमे कुछ आगे बढ़ना चाहिए। थोड़ा आगे बढ़े तो पता चला कि वो एक टूटा हुआ पेड़ का हिस्सा था और उसके आगे एक पत्थर पड़ा था जो दूर से एक जानवर का मुँह जैसे दिख रहा था। मैंने मुस्तफा को बोल दिया कि यह तेरी वजह से हुआ है जब से चले है तब से कभी भूत तो कभी तेंदुआ यही बोलता आ रहा है इसलिए मुझे भी लकड़ी और पत्थर में जानवर दिखने लगे है।
मुस्तफा को मैंने बताया कि यदि तेज़ आवाज में बोलते चले या गाना गाते चले तो जानवर निकट नही आते तब मैंने तो मेरे दोस्त ने तेज़ आवाज में बोलना शुरू कर दिया। जब तक पेड़ो पर बैठे एक पक्षी ने बोलना शुरू ना किया। मैंने मुस्तफा को फिर डरा दिया कि यह पक्षी बता रहा है की तेंदुआ आसपास ही है।
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दूर बर्सुड़ी गाँव दिख रहा है |
करीब आधा घंटे बाद आगे चलने पर मुझे बांये तरफ खाई के उस पार कुछ लाइट चमकती हुई दिखाई दी। ध्यान से देखा तो मैं बरसूडी गांव को तुरंत पहचान गया। मैंने टॉर्च की लाइट गांव की तरफ की और टोर्च से डीपर भी दिया तो गांव की तरफ से भी कई टॉर्च की लाइट जलाई गई। अब मंज़िल पास थी तो थोड़ा चैन आ गया और डर भी कम हुआ। अब हम आगे की और चल पड़े। आगे रास्ता अत्यधिक टूटा हुआ था केवल मात्र एक या दो फ़ीट की रास्ता ही बना था उसको पार कर हम लगभग रात के 9:30 पर बरसूडी गांव पहुँच गए। फिर सभी दोस्तों के मिलकर और रात का खाना खाकर सोने के लिए एक कमरे में चले गए। अगले दिन सुबह हमने कैम्प के आयोजन में भाग लिया और दोस्तो के साथ गांव का भ्रमण भी किया।
वैसे गांव वालों ने बताया कि एक तेंदुआ चार पांच दिन पहले एक कुत्ते को उठा कर ले गया था। मेरे दोस्त का मुँह देखने लायक था उसने तो बोल भी दिया की यदि यह खबर उसे पहले पता होती तो वह रात में कभी नही आता। यह रात मुझे आज भी पूरी तरफ याद है और शायद ही इस रात को भूल पाऊंगा।
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गाँव के एक बुजर्ग |
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बच्चो के साथ |
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खेल कूद प्रतियोगिता |
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हमारे मित्र प्रकाश जी बच्चो के साथ |
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मुस्तफा |
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बोरा रेस |
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मित्र मंडली |
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मित्र मंडली |
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मास्टर जी
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मेरा पोज कैसा है |
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मेडिकल केम्प में सहयोग |
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एक गाँव का घर जिसमे अब कोई नहीं रहता |
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मित्र मंडली गाँव भ्रमण पर |
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दूर से बरसूदीगाँव
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