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शनिवार, 5 नवंबर 2016

Agrasen ki Baoli, उग्रसेन की बावली




अभी कुछ दिन पहले मुझे अग्रसेन की बावली जाने का अवसर मिला। हम कुछ दोस्त दिल्ली के कनॉट पैलेस स्तिथ सेन्ट्रल पार्क में जमा हुए थे। कुछ देर बातचीत का माहौल बना रहा। फिर मीटिंग खत्म होने पर हम कुछ ने निर्णय किया कि चलो आज अग्रसेन की बावली ही देख आये। वैसे तो राजीव चौक मेट्रो स्टेशन यहाँ कहे की कनॉट पैलेस कई बार आना हुआ। लकिन अग्रसेन की बावली देखना नहीं हो पाया। वैसे मुझे इस जगह के बारे में बहुत दिन से पता था लकिन फिर भी यहाँ जाना ना हो पाया।

चलो देर आये दुरुस्त आये यही कहावत सही बैठती है मुझ पर क्योकि आये भी तो पूरा लश्कर लेकर। हम कुछ दोस्त एक साथ यहाँ जो आये थे। इसमें रमता जोगी(बीनू), अमित तिवारी, ऋषभ , डॉ प्रदीप त्यागी जी और कमल कुमार सिंह(नारद जी) थे। हम सभी ने कुछ समय यही पर बिताया।वैसे जबसे pk मूवी(आमिर खान) में इस बावली को दिखाया है तब से यह और भी ज्यादा लोकप्रिय हुई है, नहीं तो दिल्ली के अधिकांश लोग इसको जानते भी नहीं थे। 

अग्रसेन की बावली के बारे माना गया है कि इसको महाभारत काल में राजा अग्रसेन ने बनवाया था। और बाद में उनके ही वंशजो ने 13 वी या 14 वी शताब्दी में फिर से जीर्णोद्वार करवाया था। इस बावली में नीचे तल(कुएँ) तक जाने के लिए 103 सीढियां बनाई गयी है, यह लाल व भूरे बलुआ पत्थरो से निर्मित है। यह तक़रीबन 15 मीटर चौड़ी व 60 मीटर लंबी और 15 मीटर ही गहरी है। वैसे अब इसमें पानी नहीं है, अब कुआँ भी सूखा हुआ था। यह तीन मंजिल ऊँची है। अगर वास्तुकला की नज़र से देखा जाये तो यह एक बेहद शानदार व खूबसूरत ईमारत है। वैसे यह दिल्ली की सबसे भूतिया जगहो में भी शुमार है, कहते है कि इसका पानी अपनी और आकर्षित करता था, जिसकी वजह से लोग इसमें उतर जाते थे और फिर मौत हो जाती थी। पता नहीं यह बात सच है या झूठी लकिन वही एक गाइड यही बता रहे थे। लेकिन अब यहाँ पानी नहीं है आप आराम से यहाँ आ सकते है। नीचे कुए में चमगादड़ो के मल की बहुत बदबु आती है, ऊपर छत पर असंख्य चमगादड़ चिपकी हुई थी। 
अग्रसेन की बावड़ी में एक मस्जिद भी बनी है जो शायद मुगलो या शेरशाह सूरी या किसी और अन्य मुस्लिम राजा के शासन में बनी होगी। 

अग्रसेन की बावड़ी(बावली) के सबसे नजदीक मेट्रो स्टेशन बाराखंबा मेट्रो स्टेशन है और राजीव चौक( कनॉट प्लेस) से तक़रीबन एक किलोमीटर दूर है। यह बावली हैली रोड पर हैली लेन पर स्तिथ है। जंतर मंतर से भी सीधा रास्ता आता है यहाँ तक। टॉलस्टाय रोड से सीधे हाथ पर मुड़ने पर भी यहाँ तक पंहुचा जा सकता है।

घुमक्कड़  मित्र मंडली 
हैली रोड से बायें तरफ मुड़ना है। 

बस पहुँच गए। 
सभी मित्र 

अग्रसेन की बावली 



एक पुरानी मस्जिद 

नीचे तल में कुँए तक जाता रास्ता। 

रमता जोगी कुँए का निरिक्षण करते हुए। 

सूखा हुआ कुआँ। 



ऊपर छत पर बहुत सी चमगादड़ थी। 

नीचे से ऊपर का दर्श्य 





मैं सचिन त्यागी अग्रसेन की बावली पर। 

बीनू कुकरेती जी (रमता जोगी )




गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

Eco Park, bhatta water fall( धनोल्टी व भट्टा जल प्रपात)

सुबह 6 बजे ही आँखे खुल गयी, आज स्वंतत्रता दिवस है, आज वह दिन है जिस दिन हमारे देश को आजादी मिली थी, आज हर साल की तरह हमारे देश के प्रधानमंत्री लाल किले से पुरे भारत को संबोधित करेंगे। वैसे आज के दिन मेरे स्वर्गीय पापा का भी जन्मदिन है, उनको भी मन ही मन याद किया और नमन किया। बाहर होटल के सामने कई कार खडी थी। सब पर हमारे देश का झंडा लगा हुआ था। शायद वो उनका 15 AUG  मनाने का ही तरीका हो। खिड़की से बाहर देखा तो अभी सड़क पर कोई चहल पहल नजर नहीं आ रहा थी। मैं और देवांग बाहर कुछ दूर घुमने चल दिए। होटल के सामने जो स्वेत पहाड़ दिख रहे थे वो अभी बदलो में छुपे हुए थे। लकिन जल्द ही वो दिखने लगे। बाहर आ कर हल्की हल्की सर्द मौसम को महसुस किया। कुछ बच्चे स्कूल की वर्दी में दिखे तो पूछ लिया की आज स्कूल की छुट्टी नहीं है क्या?  तो बच्चो ने बताया की झंडा रोहण के लिए स्कूल जा रहे है, हम थोडा और आगे बढे कुछ बंदर पेड़ो पर झूल रहे थे, थोड़ा और आगे चले तो ईको पार्क के पास बहुत बंदर थे जहाँ से हम वापिस हो लिए।

होटल आकर फ्रेश हुए फिर होटल छोड़ दिया होटल के बाहर ही मैं सारा सामान गाड़ी में डाल रहा था की बहुत से स्कूली बच्चे हाथ में झंडा लिए देश भक्ति के गीत गाते आ रहे थे। कुछ बच्चे तो बहुत छोटे थे। बच्चो को देख कर बहुत अच्छा लगा। यहाँ से हम ईको पार्क की तरफ चल दिए अभी पार्क बंद था जब तहसीलदार साहब झंडा रोहन करेंगे तब पार्क खुलेगा। हम सड़क पर थोड़ा और आगे चले की एक और इको पार्क नजर आया, पार्क के बाहर ही एक साइड गाड़ी खड़ी कर दी। एक दुकान पर मैग्गी बनती देखि तो वही बैठ गए। जब तक मैग्गी आये तब तक चाय पी ली। मैग्गी खा कर सुबह का नाश्ता भी हो गया था। इतने में इको पार्क का चौकीदार भी वही आ गया और कहने लगा की झंडा रोहन हो गया होगा, इसलिए आप पार्क में हो आयो। देवांग को प्यास लगी तो मै वही एक दुकान पर पानी लेने गया, देवांग ने टॉफी खाकर रैपर वही पर सड़क पर डाल दिया। मेरी पत्नी ने वो रैपर पास ही रखे डस्टबीन में डाल दिया और देवांग को बताया भी हमेशा सड़क पर कुछ ना फैंके, क्योकि हमने ही साफ सफाई पर ध्यान देना है, अगर हम खुद अपने आस पास गन्दा करंगे तो बहुत सी बीमारियां और यहाँ पहाड़ो को नुकसान पंहुचेगा।

मैंने दुकान से पानी की बोतल ली और देवांग को पानी पिला दिया। मैंने दुकान वाले को 500 का नोट दिया तो वो कहने लगा की सर हम पर खुल्ला नहीं है आप पार्क में घूम आयो आकर जब पैसे दे देना, लकिन मैंने गाड़ी से डेशबोर्ड में रखे 25 रुपए उसको लाकर दे दिए। जब हम चलने लगे तो वह दुकानदार कहने लगा की सर आप ने जैसे अपने बच्चे को समझाया कि गंदगी नहीं फैलाते है वो बहुत अच्छा लगा सुनकर, कहने लगा की लोग घूमने आते है और गंदगी फैला जाते है, और हम लोग यहाँ पहाड़ के भी होकर सफाई पर ज्यादा ध्यान नहीं देते है। अगर गंदगी की वजह से खूबसूरती ख़त्म हो जायेगी तो यहाँ कौन आएगा।

अब हम पार्क में चले गए, पार्क में जाने का टिकट लगता है(Rs20 प्रति वयस्क व Rs 10 बच्चो का) दो टिकेट ले लिए गए। जब में पहले यहाँ आया था तब ये पार्क नहीं बना था, यहाँ पर देवदार और बुराँस के जंगल हुआ करते थे। वैसे आज भी यहाँ पर जंगल है बस बच्चो के लिए झूले और लगा दिए गए है । क्योकि अब पर्यटक बहुत आने लगा है तो कुछ सुविधा तो देनी पड़ेगी ही। पार्क में जाने के लिए पगडण्डी बनायीं हुई है, बच्चो के लिये हर प्रकार के झूले यहाँ पर लगे हुए है। तरह तरह के फूल आपको यहाँ दिख जाएंगे। हरियाली तो चारो तरफ फैली हुई है ही यहाँ पर। देवदार, बांस और बुरांस के पेड़ो के जंगल के बीच यह पार्क बना ही हुआ है, यहाँ पर एक हर्बल पार्क भी बना है जहाँ पर हिमायल की कुछ जड़ीबूटीया भी आप देख सकते है, इको पार्क में जगह जगह जंगल को बचाने के लिए स्लोगन भी लिखे हुए है। थोड़ा ऊपर जाने पर एक खुली जगह आ जाती है, जहां से ऋषिकेश शहर दिखता है।(एक व्यक्ति ने बताया ) लकिन अभी पूरी घाटी में बादल छाए हुए थे।

यह सब देख कर हम पार्क से बाहर आ गए, धनोल्टी में बुराँस का जूस बहुत मिलता है हमने भी एक दुकान पर पिया। और वहाँ से चल पड़े। रास्ते में हमे कई बार स्वेत बर्फ से ढकी पर्वत माला के दर्शन हुए। एक जगह एक छोटा बच्चा कुछ सेब बेच रहा था वह सेब उसके ही बाग़ के थे, उसने 100 रुपये की टोकरी बतायी हमने टोकरी में जो सेब थे वो ले लिए, उसके पास कुछ कच्चे अखरोट भी थे वो भी ले लिए। वह बहुत खुश था फिर हमने उसको कुछ टॉफियां भी दी। और वहाँ से चल पड़े। आगे यह रास्ता दो रास्तो में बँट गया। एक मसूरी की चला गया और दूसरा सीधा आपको मसूरी के बाहर बाहर देहरादून वाले रास्ते पर पंहुचा देता है। हम दुसरे वाले पर चल दिए लकिन आगे जाकर देखा की पूरी रोड लैंडस्लाइड की मार झेल रहा था। आगे पूरा रास्ता ख़त्म था हम वहाँ से वापिस हो लिए। वापिस लाल टिब्बा वाले रोड पर हो गए। आगे जाकर ये रास्ता भी मसूरी से बाहर बाहर ही मैन रोड पर मिल जाता है।

यहाँ से आगे चलकर हमे थोड़ा ट्रैफिक जाम मिला यह जाम प्रकाशेस्वर महादेव मंदिर की वजह से लग रहा था। यह मंदिर एक प्राइवेट मंदिर है, यहाँ पर किसी भी प्रकार का चढ़ावा चढ़ाना सख्त मना है। हम भी मंदिर में गये और शिव के दर्शन किये, साथ में यहाँ पर प्रसाद के रूप में हमे खाने के लिए खीर भी मिली। यहाँ पर पूजा का बहुत सा सामान बहुत कम पैसो में मिल जाता है।

हम कुछ दूर चलने के बाद भट्टा वॉटरफॉल की तरफ जाते रास्ते पर चल दिए। वॉटरफॉल के लिए जाता रास्ता बहुत छोटा सा है, फिर भी मैंने अपनी कार उधर की तरफ घुमा दी। भट्ठा वॉटरफॉल से बिजली उत्पादन होती है, वॉटरफॉल को देखना अच्छा लगता है, चाये वो बड़ा हो या छोटा। कुछ देर यहाँ पर समय बीता कर हम वापिस मैन रोड पर आ गए, जहा से हम देहरादून और फिर बिहारीगढ़ पहुँचे, बिहारीगढ़ से एक रास्ता माता शकुम्बरी देवी को चला जाता है, हम फिर छुटमलपुर पहुँचे जहाँ से रुड़की होते हुए रात को दिल्ली पंहुच गये।

यात्रा समाप्त।


 मकड़ी 


सुबह सुबह 

पता नहीं क्या है?






चिपको आंदोलन 

यह मुझे बहुत अच्छा लगा। 

बच्चो का मार्च 15 aug को 


यह पूरा मस्त बच्चा था 

मैग्गी  
















भटटा वॉटरफॉल 






प्रकाश मंदिर के पास ट्रैफिक जाम