रेणुका जी जाने के कई अवसर बने पर मै नही जा पाया,
पहला अवसर:-रेणुका जी झील के बारे में पता चला,फेसबुक के एक दोस्त अजय भारतीय से,एक दिन इन जनाब का फोन आया,शायद दिपावली से अगले दिन,की सचिन भाई हिमाचल चल रहे हो,मेने कहा की एक दिन के लिए घुम सकता हुं,हिमाचल जाने का समय नही निकाल पाऊगा,तब अजय भाई ने बताया की सुबह 4 बजे चलेगे ओर रात तक वापिस भी आ जाऐगे,वो भी बाईक से अर्थारत लगभग एक दिन में ही 600 किलोमीटर बाईक चलानी पडेगी या पिछे बैठना पडेगा,चलने का तो बहुत मन था लेकिन घर पर कई कामो की वजह से नही जा पाया,वैसे अजय भाई ने एक दिन में ही यह यात्रा सम्पन कर डाली,
दूसरा अवसर:- नव वर्ष 2015 की दोपहर में सन्दीप उर्फ जाट देवता जी का फोन आया,(सन्दीप जी का अपना एक हिन्दी ब्लॉग है,ओर घुम्मक्कडी के बहुत शौकिन है)सन्दीप भाई ने बताया की मै मन्डौली (मेरा घर) आ रहा हुं ओर साथ मे मनु प्रकाश त्यागी(यह भी एक ब्लॉगर है,ओर लगभग पूरा भारत घुमे हुए है)जी भी आ रहे है,मै अपने काम पर गाजियाबाद गया हुआ था पर मै लगभग 3:30पर घर पहुचं गया,सन्दीप जी को फोन मिलाया तो उन्होने बतलाया की आप मेरे घर आ जाओ,ओर मै15 मिनटो मे सन्दीप भाई के घर पहुचं गया,वहा पर मनु जी भी आ चुके थे,गर्मागरम दूध मिला पिने के लिए,वो तो मिलता ही क्योकी हमारे जाट देवता जी चाय पिते ही नही,
हां तो हम मनु,सन्दीप व मुझमे घुम्मक्कडी ही बाते होती रही,आगे कहां कहां जाने का कार्यक्रम आदी,हमने मिलकर 4 जनवरी को रेणुका जी जाने का कार्यक्रम बना लिया,पर वहां वह उस समय बहुत बारिश हो रही थी,इसलिए हम वहां जा ना सके....
रेणुका जी के लिए प्रस्थान:- 26 जनवरी के पास तीन चार छुट्टी पड रही थी,इसलिए स्कूल बंद थे, तब मेने सोचा की चलो परिवार के साथ ही रेणुका चला जाए,तो कार्यक्रम यह बना की हम 25 जनवरी की सुबह 5 बजे अपनी कार से
निकलेगे ओर कुरूक्षेत्र देखकर शाम तक रेणुका जी पहुचं जाएगेलेकिन 25 की सुबह जल्दी नही निकल पाए ओर सुबह 9 बजे के आसपास जाकर हम घर से निकले,दिल्ली मुकबरा चौक से होते हुए,सोनीपत व पानीपत पार करते हुए 11:30 बजे करनाल के पास रूके,यहां पर एक ढाबे पर खाना खाया ओर लगभग दोपहर के 12:30 बजे कुरूक्षेत्र पहुचें,
पहला अवसर:-रेणुका जी झील के बारे में पता चला,फेसबुक के एक दोस्त अजय भारतीय से,एक दिन इन जनाब का फोन आया,शायद दिपावली से अगले दिन,की सचिन भाई हिमाचल चल रहे हो,मेने कहा की एक दिन के लिए घुम सकता हुं,हिमाचल जाने का समय नही निकाल पाऊगा,तब अजय भाई ने बताया की सुबह 4 बजे चलेगे ओर रात तक वापिस भी आ जाऐगे,वो भी बाईक से अर्थारत लगभग एक दिन में ही 600 किलोमीटर बाईक चलानी पडेगी या पिछे बैठना पडेगा,चलने का तो बहुत मन था लेकिन घर पर कई कामो की वजह से नही जा पाया,वैसे अजय भाई ने एक दिन में ही यह यात्रा सम्पन कर डाली,
दूसरा अवसर:- नव वर्ष 2015 की दोपहर में सन्दीप उर्फ जाट देवता जी का फोन आया,(सन्दीप जी का अपना एक हिन्दी ब्लॉग है,ओर घुम्मक्कडी के बहुत शौकिन है)सन्दीप भाई ने बताया की मै मन्डौली (मेरा घर) आ रहा हुं ओर साथ मे मनु प्रकाश त्यागी(यह भी एक ब्लॉगर है,ओर लगभग पूरा भारत घुमे हुए है)जी भी आ रहे है,मै अपने काम पर गाजियाबाद गया हुआ था पर मै लगभग 3:30पर घर पहुचं गया,सन्दीप जी को फोन मिलाया तो उन्होने बतलाया की आप मेरे घर आ जाओ,ओर मै15 मिनटो मे सन्दीप भाई के घर पहुचं गया,वहा पर मनु जी भी आ चुके थे,गर्मागरम दूध मिला पिने के लिए,वो तो मिलता ही क्योकी हमारे जाट देवता जी चाय पिते ही नही,
हां तो हम मनु,सन्दीप व मुझमे घुम्मक्कडी ही बाते होती रही,आगे कहां कहां जाने का कार्यक्रम आदी,हमने मिलकर 4 जनवरी को रेणुका जी जाने का कार्यक्रम बना लिया,पर वहां वह उस समय बहुत बारिश हो रही थी,इसलिए हम वहां जा ना सके....
रेणुका जी के लिए प्रस्थान:- 26 जनवरी के पास तीन चार छुट्टी पड रही थी,इसलिए स्कूल बंद थे, तब मेने सोचा की चलो परिवार के साथ ही रेणुका चला जाए,तो कार्यक्रम यह बना की हम 25 जनवरी की सुबह 5 बजे अपनी कार से
निकलेगे ओर कुरूक्षेत्र देखकर शाम तक रेणुका जी पहुचं जाएगेलेकिन 25 की सुबह जल्दी नही निकल पाए ओर सुबह 9 बजे के आसपास जाकर हम घर से निकले,दिल्ली मुकबरा चौक से होते हुए,सोनीपत व पानीपत पार करते हुए 11:30 बजे करनाल के पास रूके,यहां पर एक ढाबे पर खाना खाया ओर लगभग दोपहर के 12:30 बजे कुरूक्षेत्र पहुचें,
कुरूक्षेत्र का इतिहास बहुत पुराना है,यह वही भूमि है जहां पर पांडवो ओर कौंरवो के बीच वह ऐतिहासिक युद्ध लडा गया जिसे लोग आज महाभारत के नाम से जानते है,
यही वो भूमि है जहा भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश सुनाए.
कुरूक्षेत्र में कई जगह है जो दर्शनिय है जैसे- ब्रह्मसरोवर(जहां पर दुर्योधन छिप गया था),
सननिहित सरोवर(जहां पर लोग अपने पूर्वजो की आत्मा की शान्ति के लिए पिन्ड दान करते है)
ज्योतिसार-(जहां पर भगवान श्री कृष्ण ने गीता के उपदेश दिए थे)
कुरूक्षेत्र में ओर भी कई जगह है देखने के लिए,यहा पर मन्दिर व बहुत से आश्रम भी है,जहां आप जा सकते है
हम पहले से ही काफी लेट थे अपने तयशुदा कार्यक्रम पर,इसलिए हम सीधे ब्रहमसरोवर(ब्रहमकुण्ड) पहुचें,यह एक लम्बा चौडा सरोवर है,ओर यहा पर कई घाट बने है,कहते है की इस सरोवर मे ही ध्रतराष्ट पुत्र दुर्योधन जल मे छिप गया था ओर सरोवर के पास ही भीम से लडते हुए अपने प्राण त्यागे थे,
इस सरोवर पर जब सूर्य ग्रहण होता है तब यहा पर बहुत लोग आकर स्नान करते है है,इस सरोवर मे बहुत सारी महाशीर मछलीयाँ है,जिन्हे लोग आटे की गोलिया खिलाते रहते है,
इस सरोवर पर जब सूर्य ग्रहण होता है तब यहा पर बहुत लोग आकर स्नान करते है है,इस सरोवर मे बहुत सारी महाशीर मछलीयाँ है,जिन्हे लोग आटे की गोलिया खिलाते रहते है,
यहां से हम सरोवर के नजदीक ही श्री कृष्णा संग्रहालय है वहा पर पहुचें,यहां पर तीस रूपये का टिकेट लगता है,जहां पर महाभारत कालीन बहुत सी वस्तुएं आप देख सकते है,पर यहां पर फोटो खिचना मना,यहा पर पहले ही काऊंटर पर कैमरा व फोन जमा करा लेते है,
यहां पर एक नकली वृक्ष बना है,जिसके नीचे एक टच वाला कम्पयुटर लगा है,जहां यक्ष आपसे सवाल पुछता है ओर आप जबाव देते है,जिस प्रकार युदिष्ठर ने दिए थे,एक बडे से हॉल मे भगवान श्री कृष्ण गीता का उपदेश दे रहे थे,बीच रास्ते मे द्रोणाचार्य द्वारा चक्रव्यू भी मिलता जिसे आपको पार करना पडता है,भीष्म पितामाह की एक झांकी जहां वो बाण की शय्या पर पडे है,एक तरफ कर्ण की झांकी भी है,ओर बालक अभिमन्यु की झांकी भी है
यहां पर बहुत कुछ है देखने के लिए,कभी इधर से निकले तो अवश्य यहां आए.दिल्ली से कुरूक्षेत्र की दूरी लगभग 165 किलोमीटर ही है,
यहां पर एक नकली वृक्ष बना है,जिसके नीचे एक टच वाला कम्पयुटर लगा है,जहां यक्ष आपसे सवाल पुछता है ओर आप जबाव देते है,जिस प्रकार युदिष्ठर ने दिए थे,एक बडे से हॉल मे भगवान श्री कृष्ण गीता का उपदेश दे रहे थे,बीच रास्ते मे द्रोणाचार्य द्वारा चक्रव्यू भी मिलता जिसे आपको पार करना पडता है,भीष्म पितामाह की एक झांकी जहां वो बाण की शय्या पर पडे है,एक तरफ कर्ण की झांकी भी है,ओर बालक अभिमन्यु की झांकी भी है
यहां पर बहुत कुछ है देखने के लिए,कभी इधर से निकले तो अवश्य यहां आए.दिल्ली से कुरूक्षेत्र की दूरी लगभग 165 किलोमीटर ही है,
टाईम देखा तो दोपहर के 2 बज रहे थे,इसलिए कुरूक्षेत्र को अलविदा कह कर हम रेणुका जी की तरफ निकल पडे,कुरूक्षेत्र से रेणुका जी की दूरी लगभग 124 किलोमिटर है,कुरूक्षेत्र से लगभग 2 km चलने पर शाहबाद नामक जगह आती है जहां से हम दाया मुड गए,फिर कालाअम्ब होते हुए नाहन पहुचें, रास्ता सिंगल लेन ही है पर ज्यादा ट्रैफिक नही था ओर रोड भी बढिया बना हुआ था,नाहन जो हिमाचल के सिरमौर जिले का मुख्यालय है,यही पर जिले के सभी प्रशासनिक कार्य होते है,सिरमौर पहले एक स्वतन्त्र रिहाशत थी पर नेपाल से आए गौरखो ने यहां पर अधिकार कर लिया पर बाद में अंग्रेजो से सन्धि कर के यह जगह उन्होने छोड दी,ओर बाद मे इसका विलय हिन्दुस्तान मे हो गया,
पर्यटन की नजर से यहा पर भी काफी कुछ देखने के लिए पर हम यहां पर भी नही रूके क्योकी रेणुका जी पर मै पहली बार ही जा रहा था,रास्ते से लेकर रहने तक का कोई आईडिया नही था,नई जगह थी इसलिए बीच में कही नही रूका,लेकिन रास्ते में एक जगह इतनी सुन्दरथी की मुझे यहां पर रूकना ही पडा,या यह कहे की इस जगह ने रूकने के लिए बेबस कर दिया,जगह तो पता नही पर रेणुका जी से लगभग 10km पहले एक जगह पर एक मन्दिर देखा जो झरने के बीचो बीच बना हुआ था,दोनो तरफ पानी बह रहा था,अभी बारिश नही हो रही थी पर बरसात के मौसम में यह कैसा प्रतित होता होगा सोचकर भी डर लगता है, इसकी सुन्दरता को कैमरे में कैद करने के बाद,यहा से चल पडा,रास्ते छोटे है,घुमावदार भी है,जैसा आम पहाडी रास्ता होता है,सडक के दाहिने तरफ खाई मे एक नदी साथ साथ चल रही थी,मेरे बेटे देवांग(5वर्ष) ने चिप्स की डिमांड रखी,पर हमे कोई दुकान नही दिखाई दी,रास्ता लगभग सुनसान ही था कभी कभी कोई गाडी आती दिख जाती थी,
समय शाम के 5बज रहे थे,तभी एक दुकान दिखाई दी ओर मेने गाडी वही उस दुकान पर लगा दी. दुकान को एक अम्मा चला रही थी,उनसे चाय,चिप्स लिए,ओर बातचीत भी की उन्होने ही बताया की यहां से रेणुका जी मात्र 5 km की दूरी पर ही है,ओर यह नदी जो सडक के किनारे चल रही है इसका नाम गिरी नदी है,हमने उनको चाय,चिप्स के पैसे दिए ओर चल पडे रेणुका जी की तरफ,दुकान वाली अम्मा ने हमसे कहां की बेटा अगर रहने की कोई समस्या हो तो यहीं आ जाना,हमने कहां की ठीक है अम्मा जी अगर कोई परेशानी हुई तो हम यही पर आ जाऐगे.
यहां से हम लगभग शाम के 5:30 बजे चले ओर हम रेणुका जी 5:50 पर पहुचं गए........
पर्यटन की नजर से यहा पर भी काफी कुछ देखने के लिए पर हम यहां पर भी नही रूके क्योकी रेणुका जी पर मै पहली बार ही जा रहा था,रास्ते से लेकर रहने तक का कोई आईडिया नही था,नई जगह थी इसलिए बीच में कही नही रूका,लेकिन रास्ते में एक जगह इतनी सुन्दरथी की मुझे यहां पर रूकना ही पडा,या यह कहे की इस जगह ने रूकने के लिए बेबस कर दिया,जगह तो पता नही पर रेणुका जी से लगभग 10km पहले एक जगह पर एक मन्दिर देखा जो झरने के बीचो बीच बना हुआ था,दोनो तरफ पानी बह रहा था,अभी बारिश नही हो रही थी पर बरसात के मौसम में यह कैसा प्रतित होता होगा सोचकर भी डर लगता है, इसकी सुन्दरता को कैमरे में कैद करने के बाद,यहा से चल पडा,रास्ते छोटे है,घुमावदार भी है,जैसा आम पहाडी रास्ता होता है,सडक के दाहिने तरफ खाई मे एक नदी साथ साथ चल रही थी,मेरे बेटे देवांग(5वर्ष) ने चिप्स की डिमांड रखी,पर हमे कोई दुकान नही दिखाई दी,रास्ता लगभग सुनसान ही था कभी कभी कोई गाडी आती दिख जाती थी,
समय शाम के 5बज रहे थे,तभी एक दुकान दिखाई दी ओर मेने गाडी वही उस दुकान पर लगा दी. दुकान को एक अम्मा चला रही थी,उनसे चाय,चिप्स लिए,ओर बातचीत भी की उन्होने ही बताया की यहां से रेणुका जी मात्र 5 km की दूरी पर ही है,ओर यह नदी जो सडक के किनारे चल रही है इसका नाम गिरी नदी है,हमने उनको चाय,चिप्स के पैसे दिए ओर चल पडे रेणुका जी की तरफ,दुकान वाली अम्मा ने हमसे कहां की बेटा अगर रहने की कोई समस्या हो तो यहीं आ जाना,हमने कहां की ठीक है अम्मा जी अगर कोई परेशानी हुई तो हम यही पर आ जाऐगे.
यहां से हम लगभग शाम के 5:30 बजे चले ओर हम रेणुका जी 5:50 पर पहुचं गए........
अब कुछ इस यात्रा के फोटो देखे जाए.....