पृष्ठ

सोमवार, 26 मई 2014

गंगा के करीब_ऋषिकेश यात्रा(2014)

यह यात्रा अभी हाल मे 13मई2014 को हुई.हुआ यह की मेरे साले साहब ललित जी ने मुझ से पुछा की हरिद्वार चल रहे हो पर मैने मना कर दिया.पर मैने बाद मे ललित को फोन मिलाकर उसके कार्यक्रम के बारे मे पुछा तो उसने बताया की प्रवीन(वकिल साहब)जी व उनके एक दोस्त जो अमेरिका से आए है वो हरिद्वार जाना चाहते
है तो मेने भी हामी भर दी.प्रवीन जी से फोन पर बात हुई तो उन्होने मुझसे 3बजे दोपहर के मुझे लेने की बात कही,मेने तभी एक जोडी कपडे बैग मे रखकर तय समय पर अपने घर के पास वजिराबाद रोड पर खडा हो गया,तकरीबन 3 बजे के आसपास प्रवीन जी अपनी कार से मुझे लेने पहुंच गए पर वो अकेले ही थे मेने पुछा की आपका दोस्त नही आए तब उन्होने बताया की उन्हे कुछ काम पड गया है ओर वो नही जा सकते है.
हम दोनो ललित के घर पहुंचे ओर गाजियाबाद से शाम के 5 बजे हरिद्वार के लिए चल दिए.ललित ने मैक्डी पर बर्गर खाने की इक्छा जाहिर की हम मेरठ बाईपास पर बने मैक्डी पर रूके पर वो बंद था इसलिए हम वहा से चल पडे,आगे नावला गाँव पडता है वही पर एक मैक्डी है हमने वही गाडी पार्क की ओर चल पडे अंदर बर्गर खाने,हमने वहा पर अाईक्रीम खाई ओर बर्गर पैक करा लिए ओर चल पडे हरिद्वार की ओर,रास्ते मे जहा उत्तराखण्ड की सीमा चालू होती है शायद जगह थी बहती.वही पर सड़क किनारे गाडी लगाकर अपने अपने बर्गर खत्म करे ओर चल पडे.हम रात के 9बजे हरिद्वार पहुंच गए.हम सीधे भूपतवाला रोड पर बनी धर्मशाला निष्काम सेवा ट्रस्ट पर पहुचे जहा पर हमारा Ac वाला कमरा बुक था.कमरा दिल्ली के ही एक भूतपूर्वक विधायक व प्रवीन जी के दोस्त ने बुक करा दिया था ओर वो हरिद्वार मे ही हमारा इंतजार कर रहे थे.जल्दी जल्दी हम धर्मशाला मे बनी रसोई मे पहुचे.ओर हमने वहा पर पत्तलो पर परोसा गया साफ व शुद्ध भोजन किया.यह भोजन बिलकुल सादा था पर बडा स्वादिस्ट लग रहा था.शायद पत्तलो की वजह से,भोजन करने के पश्चात हम पैदल पैदल छ लोग लगभग 2 किलोमिटर दूर सुखीनदी के पास दुध की दुकान पर पहुंचे. वहा पर मेने व ललित ने तो ठंडा दुध पिया पर अन्य लोगो ने गरमा गरम कढाई वाला दुध पिया.दुध पीने के पश्चात हम वापस धर्मशाला आ गए.वहा पर एक बात हुई मेरी चाची जी उसी धर्मशाला मे मिल गई वह  भी सहपरिवार सहित हरीद्वार आई हुई थी.उनसे मिलकर मै अपने कमरे मे पहुचा ओर लेट गया.कुछ देर बाद लाईट चली गई पर कुछ ही सैकेंडो मे जरनेटर चल पडा ओर नींद कब आई पता ही नही चला.
14 मई की सुबह 5बजे नींद खुली तो देखा बाहर का मौसम बडा अच्छा लग रहा था.मे ओर ललित चाय पीने के लिए बाहर बनी दुकान पर पहुचे,चाय पीने के बाद हम वापिस कमरे मे आ गए ओर बालकनी मे खडे हो गए.बाहर एक बादल मे बंदर सा चित्र बना हुआ था हमने फोटो भी खिचा ओर कमरे मे आकर गाडी की चाबी उठाई ओर वहा से चल पडे गंगा स्नान के लिए.
हम हर की पोडी पर ना जाकर बाहर की तरफ बने कई घाटो मे से एक शिव की पौडी घाट पर पहुचें.
यहा पर नहाने का यह फायदा होता है की एक तो गाडी पास ही लग जाती है ओर भीड भी नही होती है.यहा पर नहाने के बाद हम वापिस धर्मशाला पहुंचे. यहा पर दिल्ली वाले पूर्व विधायक जी ने कहा की हम तो उत्तरकाशी जा रहे है (सेब का बाग खरीदने के लिए)आप मेरे बडे लडके जो बिमार है ओर उनका ईलाज बाबा रामदेव के आश्रम मे चल रहा है इसलिए ही हम उनको यहा पर ले आए.की चलो हरीद्वार दर्शन कर लेगे.
उन्होने प्रवीन जी से कहा की आप उन्हे दिल्ली वाली बस मे बिठा देना,यह कहकर वो वहा से चले गए.हमे पता चला की दिल्ली वाले रोड पर बडा तकडा जाम लगा हुआ है तब हमने उनसे कहा की आप हमारे साथ रीषिकेश चलो तब उन्होने हामी भर दी.हम चल पडे रिषिकेश की तरफ.
हमने यह कार्यक्रम बनाया की हम ऐसी जगह ठहरगे जहा पर भीड-भाड न हो.तभी प्रवीन जी ने कहा की ऐसी जगह का इन्तजाम हो जाएगा ओर उन्होने किसी को फोन लगाया,बाद मे उन्होने बताया की इंतजाम हो गया है.
प्रवीन जी पेशे से वकील है जो तीस हजारी कोर्ट मे वकालत करते है वह किसी सरकारी कंपनी  के पैनल मे है ओर उसी कंपनी का एक गेस्ट हाऊस रिषिकेश मे नीलकण्ठ को जाने वाले रास्ते पर पडने वाले बैराज के निकट है.तो हम वहा के लिए चल पडे. हम गेस्टहाऊस पर पहुंचे,
गेस्टहाऊस पर मौजूद कर्मचारी ने हमारा स्वागत किया.ओर दो कमरे खोल दिये.
यह गेस्टहाऊस शहर की भीडभाड से अलग व प्राकृतिक नजारो के पास था यहा दिन मे भी चिडियो का शोर सुनाई दे रहा था,जैसा हम चाहते थे यह जगह उस से भी ज्यादा अच्छी थी,चारो ओर पार्क व पेडो के बीच मे बना एक पुरानी इमारत मे बना यह गेस्टहाऊस.
समान रख कर हम रिशिकेश के लिए निकल पडे सबसे पहले हमने एक रेस्टोरेंट मे आलू के पराठे के संग दही का नाश्ता किया.हमारे साथ आए ब्रजमोहन जी बिमारी के कारण रोटी नही खाते थे उनके लिए हमने दुघ व कोर्नफ्लेक्श ले लिए.
नाश्ता करने के पश्चात हम मुनी की रेती जगह नामक जगह पहुचे यहा पर बनी पार्किग मे गाडी लगाई.यहा पर काफी सारी राफ्टींग के आफिस खुले हुए है एक बार मै भी यही से राफ्टिग के लिए जा चुका हुँ.
हम ने गाडी खडी कर के राम झुला पार किया.रिषिकेश मे राम व लक्षमण झुला बडे ही प्रसिद्ध है.यह दोनो ही गंगा के ऊपर बने है.इतिहास मे कहा गया है की राम व लक्षंमण बनवास के दौरान यहा से गंगा पार की थी. इसलिए इन लोहे की रस्सी पर टंगे पुल का नाम इन दोनो पर रख दिया होगा.
हमने राम झुला पार करके किसी मन्दिर मे ना जा कर एक शांत व सुंदर गंगा तट पर पहुचे यहा पर पानी का पहला स्पृर्श बडा ही ठंडा प्रतीत हुआ(हरीद्वार से भी ठंडा).
यहा पर भी केवल हम तीनो ही नहाए.ब्रजमोहन जी ने तो एक तौलिया गंगा जल से गीला किया ओर बाँध लिया सर पर.यहा पर राफ्टिंग वाले बहुत शोर कर रहे थे क्योकी यह उनका आखिरी पडाव होता है ओर ज्यादात्तर राफ्ट वाले यहा पर रस्सी को पकड कर गंगा जी मे कुदने के लिए कह देते है ओर यह श्ण बहुत ही रोमांचकारी होते है जिस ने राफ्टिंग की होगी वो मेरी बात को समझ गया होगा की मै क्या कहना चाह रहा हुँ.
हां तो आते अब के समय मे राफ्टिंग वालो को देखकर ललित जी ज्यादा ही उत्साहित हो गए ओर शोर मचाने लगे तट की सारी शांति भंग कर दी उन्होने.चलो कोई बात नही मस्ती करने ही तो आए थे यहा कोई कैसे ही अपना मन बहलाए हमे क्या.
गंगा जी मे नहाते हुए हमे काफी समय गुजर गया यह पता ही नही चला.ये भी ब्रजमोहन जी ने बताया क्योकी वो  नहा  ही नही रहे थे पर हम कहा मानने वाले थे तीनो एक से बडे नहाने के कीडे थे.एक ओर बात जहा हम नहा रहे थे वही पर एक विदेशी महिला योगा कर रही थी,करना तो उसको आ नही रहा था पर कोशिष जरूर कर रही थी.अब उसे कौन बताए की योगा सुबह या शाम को ही करना चाहिए पर हमे क्या जो कर रहा है करता रहे.
हम गंगा से बाहर आकर कपडे पहन कर,राम झुला के नजदीक गीता भवन वालो की मिठाई की दुकान पर पहुंचे ओर देशी घी से बनी आधा किलो जलेबी ले ली ओर वही चट कर डाली,जलेबी स्वादिस्ट व करारी थी.
अब हम वापिस गेस्टहाऊस की तरफ चल पडे.रास्ते मे उसी होटल पर खाना खाया ओर खाना खाकर गंगा बैराज को पार करते हुए,चीला हरीद्वार वाले रोड पर चल दिए एक जगह हमने गाडी साईड मे खडी कर के गंगा पर बने एक छोटे से पुल को पार करते हुए, एक सुनसान जगह पर बनी एक पगडंडी पर चल दिए.ब्रजमोहमन जी मे जाने से मना कर दिया.हम तीनो आगे चल दिए,ऊबड खाबड रास्तो पर चल रहे थे.ये पता नही कहा जाना है पर चलते चले जा रहे थे सबसे आगे प्रवीन जी ही थे हम तो पिछे पिछे चल रहे थे, तकरीबन 300 -400 मीटर चलने पर एक तालाब या कहे जंगली जानवरो को पीने के लिए एक जौहड सा बना हुआ दिखा,जहा पर हाथी का गौबर भी पडा था.ओर बहुत सारे जानवरो के पैरो के निशान भी थे. प्रवीन जी तो उस गढ्ढे तक जाना चाहते थे पर हम दोनो ने मना कर दिया,हम एक ऐसी जगह थे जहा पर प्राकृतिक नजारो के अलावा हम ही थे, यहा कुछ कटैंली झाडियो की बाड सी बनी थी शायद जानवर इस ओर ना आए इसलिए भी हो सकती है.
एक बार मेरे बडे भाई व उनके दोस्त शाम को इसी जगह से गुजर रहे थे तब उन्हे यहा पर तेन्दुआ देखने को मिला था.पर हमे यहा कुछ नही मिला पर हमे यहा पर अच्छा लग रहा था,यहा से कुछ दूर पर चिला वन्य अभ्यारण्य भी है जहा आप जंगल सफारी का आनंद प्राप्त कर सकते है.
हम कुछ देर वही खडे रहे ओर फिर वापिस चल पडे गेस्टहाऊस की तरफ.
गेस्टहाऊस पहुंच कर दोपहर भर आराम किया गया.प्रवीन व ब्रजमोहन जी के सोने के बाद मै ओर ललित रिषिकेश से देहरादून जाने वाली सडक पर पहुचे,वहा एक दवाईघर से कुछ जरूरी दवाईया लेकर पास ही एक फलो की दुकान से खरबुजे ले लिए ओर वापिस चल पडे गेस्टहाऊस की तरफ.रास्ते मे कुछ सेना के जवान क्रिकेट खेल रहे थे हम भी वही पेड की छांव मे गाडी लगा कर क्रिकेट का खेल देखने लगे.जब हमे काफी देर हो गई ओर समय देखा शाम के पाँच बज रहे है तो हम वहा से चल पडे ओर अपने कमरे मे आ गए.कमरे मे केवल ब्रजमोहन जी ही सो रहे थे प्रवीन जी का कुछ अता पता नही था फोन लगाया तो कहने लगे की तुम चोरी छिपे मुझे छोडकर भाग गए ,इसलिए मै भी कही घुमने के लिए आ गया हुं बाद मे पता चला की वह वही पास मे एक सुनसान जंगलनुमा जगह पर गए थे.
अब तक ब्रजमोहन जी भी ऊठ चुके थे ओर प्रवीन जी भी आ गए थे हम सभी गेस्टहाऊस मै बने पार्क मे पहुंचे ओर वहा पर लगे हुए झूले पर बैठ कर बातचीत करने लगे.ललित ने गेस्टहाऊस के कर्मचारी को खरबुजे दे दिये की आप भी खालो ओर हमे भी खिला दो.
खरबुजा खाने के बाद हम वहां पर फोटो खिचते रहे अब कुछ अंधेरा सा होना चालू हो गया था.वहा पर उल्लू जैसे पक्षी बहुत थे.ओर अन्य पक्षी भी थे जो दिनभर घुमने के बाद अपने अपने घौसले मे आ गए थे ओर आने की खुशी जाहिर भी कर रहे थे.
रात को हम आठ बजे उसी होटल मे पहुंचे ओर खाना खाया गया.ब्रजमोहन जी ने सलाद व दही ही खाई.वहा से गेस्टहाऊस पहुचे तो दरबान हमारा ही इंतजार कर रहा था,हमारे आते ही उसने गेट बंद कर दिया ओर हम भी सोने के लिए अपने अपने कमरो मे चले गए.
15 मई की सुबह7 बजे हम ऊठ कर हरिद्वार की तरफ चल दिए.कल जब हम हरिद्वार से आ रहे थे तो हमने एक छोटी सी नदी देखी थी तो आज हमने वहा जाने का फैसला किया यह जगह राजाजी नैशनल पार्क के नजदीक ही थी हमने अपनी गाडी सडक से नीचे उतार कर एक कच्ची पगडंडी पर चल दिए थोडा सा ही चले थे की एक छोटी सी जलधारा सामने आ गई,गाडी वही रोक कर सब नीचे उतर गए और वही पर प्राकृतिक नजारो को कैमरे व अपनी यादो मे कैद करते रहे,प्रवीन जी एक कदम आगे उस जल धारा मे प्रवेश करते हुए वहा पर एक पेड पर जा चढे ओर जब तक उनके दो तीन फोटो नही ले लिए तब तक वो नही उतरे.प्रवीन जी को भी ट्रैकिंग व एडवेंचर वाली यात्राएं पंसद है
हम वहा से चलकर तकरीबन 8:30 पर हरिद्वार पहुंच गए ओर वोही अपना घाट शिव की पौडी पर गंगा स्नान किया.हमने वही घाट के पास से ही गंगा जल की कैन खरीद कर गंगा जल भरा ओर चल पडे अपने घर की तरफ,बीच मे मुज्जफरनगर बाईपास से पहले एक गुरूनानक नाम के ढाबे पर खाना खाया ओर दोपहर के 2 बजे गाजियाबाद पहुंच गए,जहा से सब लोग अपने अपने घर को चले गए.
यात्रा समाप्त....

शनिवार, 24 मई 2014

ऊटी से कोयम्बटूर व वापसी दिल्ली

शूरूआत सेे पढने के लिए यहां click करे.. 

आज 25 तारिख को हमे वापिस दिल्ली जाना था.कोयम्बटूर से शाम 6 बजे की फ्लाईट थी.इसलिए आराम से ऊठे,चाय नाश्ता किया.होटल का खाने का बिल चुकता किया.कमरो का किराया हमने दिल्ली मे ही एडवांश रूप मे दे दिया था.होटल से बाहर आकर हमने निर्णय किया की ट्रेन से चलते है पर ट्रेन केवल कोन्नुर तक ही चलती है फिर वहा से टैक्सी या बस करनी पडेगी.इसलिए ट्रेन से जाना कैन्सिल हो गया.हम ऊटी बस स्टैन्ड पर पहुंचे वहा से कोयम्बटूर के लिए बस पुछी तो पता चला की एक बस तो चली गई है ओर दूसरी दस मिनट बाद चलेगी.इसलिए टिकेट खिडकी से 6 टिकेट ले लिए गए.बस भी अपने स्टैन्ड पर लग चुकी थी.हमे लगाकर केवल दस,बारह सवारी थी.थोडे समय बाद कन्डेक्टर व ड्रायवर आ गए ओर बस चालू कर दि.बस को चले अभी दस मिनट भी नही हुए थे की मेरे बेटे देवांग के पेट मे दर्द होने लगा था.शायद उसका पेट साफ नही हुआ था.कनडेक्टर ने कहा की कुन्नूर मे बस 5 मिनट रूकेगी तब आप इसको नीचे ले जाना.कुन्नूर भी आ गया ओर मै देवांग को नीचे ले गया ओर उसने केवल शुशु की ओर कहा की अब दर्द नही हो रहा है.मेने राहत की सांस ली ओर चल पडे कोयम्बटुर की ओर.ऊटी से कोयम्बटुर तक रास्ता बडा मन मोहक है पहाडी रास्ता है ओर बादल उडते रहते है कहीं कहीं तो बादल सड़क पर कोहरे के रूप मे भी आ गए.अब पहाडी रास्ता खत्म हो चुका था पर दोनो तरफ नारियल व केले के बाग सड़क के साथ चलते रहे.यहा पर नारियल के बडे बडे फार्म थे.यह यहा की मुख्य रोजगार का साधन भी है.जैसे हमारे उत्तर भारत मे गन्ना व गेंहू होता है वैसे ही यहा पर चावल व नारियल होता है.
हम दोपहर के लगभग 12 बजे कोयम्बटूर पहुंच गए.यह एक विकसित शहर है जैसे देरादून.यहा पर मॉल व बडी बडी दुकाने है.हमने पहले एक अच्छे से होटल मे खाना खाया.फिर निकल पडे बाजार की तरफ यहा हम एक साडी की दुकान मे चले गए.ऐसी दुकान मेने दिल्ली मे भी नही देखी.चार मन्जिला दुकान व कम से कम 100आदमी वहा पर काम करने वाले और हर मन्जिल पर दो बडे बडे हॉल जहा पर साडिया ही साडिया,ज्यादात्तर वहा सिल्क की साडिया व कुर्ते थे.यहा पर सभी ग्रराहको को चाय व कॉफी व ठंडा दिया जा रहा था.बाद मे पता चला की यह कोयम्बटुर ही नही दक्षिण भारत का शानदार दुकान मे से एक है.मै इसका नाम नही बताऊगा नही तो यह एक विज्ञापन हो जाएगा.यहा पर हमने चार पांच सिल्क की साडिंया ली जो साडी दिल्ली मे दस से पन्द्रह हजार रूपये मे मिलती है यहां पर हमे सात आठ हजार मे मिल गई.साडी लेते लेते कब शाम के चार बज गए पता ही नही चला.
साडी की दुकान से बाहर आकर हवाई अड्डे तक एक आटो कर लिया.बीस पच्चीस मिनट मे हम हवाई अड्डे पहुंच गए.क्योकी एयरपोर्ट शहर के बाहर व शहर से 9 या 10 km की दूरी पर था.कुछ जरूरी प्रक्रिया या कहे बोर्डिगपास बनवा लिए.लगैज वगेरहा जमा करा कर, वही प्रतिक्षालय मे जा कर बैठ गए.वही कैन्टीन पर चाय पानी पिया गया.दोनो बच्चो ने अपने खेलने के लिए सवारी ढुंढ ली.वहा पर समान रखने वाली ट्राली पर देवांग बैठ गया ओर दूसरा(दिव्यांश) उसको घुमाने मे लग गया.मै देखा वही एयरपोर्ट पर एक साडी की दुकान थी ओर उस दुकान के बाहर एक कटआऊट रखा था.उस पर एक फैमली बनी थी ओर वो बिल्कुल असली के लग रहे थे.मैने देवांग को बुलाकर उस कटआऊट या कहे उस बोर्ड के पास खडा कर दिया ओर फोटो ले लिया जिसे मेने इस पोस्ट मे लगाया भी है.
काफी देर बाद फ्लाईट की कॉल हुई ओर हम वहा पर मौजुद बस मे बैठ कर हवाईजहाज तक पहुंचे. हवाईजहाज अपने तय समय पर कोयम्बटूर से ऊड चला ओर तीन घन्टे बाद दिल्ली एयरपोर्ट पर उतर गया.समान लेने के बाद मैने एयरपोर्ट पर बने प्रीपेड टैक्सी बूथ से घर तक की टैक्सी बुक कर ली.ओर एयरपोर्ट से बाहर आकर टैक्सी वाले को पर्ची दिखाकर बता दिया की कहा जाना है ओर रात को 12 बजे के आसपास हम अपने घर पहुंच गया.
यात्रा समाप्त....