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मंगलवार, 19 अगस्त 2014

Humayun's tomb,हुमायूं का मकबरा

                                     हुमायूं का मकबरा 


दिल्ली हमेशा ही देशी व विदेशी पर्यटको के लिए घुमने के लिए बढिया जगह रही है, यहां पर कई  ऐतिहासिक ईमारत व जगह है, जहा पर घुमने के शौकिन व परिवार सहित लोग घुमने के लिए जाते है. ऐसी ही एक जगह है मुगल बादशाह हुमायूं का मकबरा (humayun tomb)

मै ओर मेरे एक दोस्त खान दोनो ने एक दिन(18Aug2014) हुमायूं का मकबरा देखने का कार्यक्रम बनाया. वैसे तो पता नही कितनी बार इसके बाहर से निकला हुआ हूँ. पर आजतक इसको अन्दर से देखना नही हुआ.
हम दोनो अपने घर से निकल कर राजघाट के सामने से होते हुए, भेरो रोड से होते हुए व पुराना किला व चिडियां घर के सामने से होते हुए, मथुरा रोड से उल्टे हाथ को मुडते हुए सुन्दर नर्सरी पहुंच गए. यंही पर विश्व प्रसिद हुमायूं के मकबरे बना है।

यहा पहुचं कर पार्किंग में स्कूटी लगा कर, टिकेट खिडकी पर पहुचें. 10 रू० प्रति टिकेट के हिसाब से दो टिकेट ले लिए. हमारे पास कैमरा था पर उसका टिकेट नही लगा वो इसलिए की फोटो वाले कैमरे पर कोई चार्ज नही था लेकिन कोई विडियो बनाना चाहता हो तो उस के लिए आपको 25 रू ज्यादा  देने होगे. यदि  अगर आप हिन्दुस्तानी नही है तो आपको मकबरे में प्रवेश के लिए  100रू देने होगे.

टिकेट लेकर हम अंदर प्रवेश कर गए. तीन बडे दरवाजो को पार कर हम हुमायूं के मकबरे पर पहुचें. यह दिखने में बहुत ही शानदार लग रहा था. यदि इसमे मिनारे लग जाती तो यह ताजमहल जैसा ही लगता. यहा हमे पता चला की यह ताजमहल से भी पुराना है ओर ताजमहल इसको देखकर ही बना है. यह लाल पत्थर से बना है और ताजमहल सफेद संगमरमर से।

अब बात करते है हुमायूं से सम्बंधित इतिहास की.
बादशाह हुमायूं का जन्म 1508 में हुआ, इनके पिता बादशाह मोहमम्द बाबर थे. हुमायूं की एक ही संतान हुई  जिसे दुनिया अकबर ने नाम से जानती है. हुमायूं  बडे प्रर्यावरण प्रेमी थे इनका एक ही सपना था की वे ऐसा शहर बसाएगे जो बडी बडी चारदिवारी मे स्थित हो ओर बाग बगिचो से भरपूर हो. ओर उसका नाम दिलपनाही रखा जाए, पर वो इस सपने को पूरा न कर सके ओर उनकी मौत सन् 1556 में हो गयी।

बाद में उनकी यह तमन्ना उनकी बेगम हमीदा बानो बेगम (अकबर की माता) ने उनके मरने के 9 वर्ष पश्चात, उनके लिए मकबरा बनवा कर किया. हुमायूं का मकबरा सन् 1565 से बनना चालू हुआ और सन् 1572 में जाकर यह पूरा बन पाया. इसे बनाने के लिए भवन वास्तुकार अफगानिस्तान से आए ओर उनकी ही देख रेख मे यह इमारत बन कर तैयार हुई. यह इमारत चारबाग शैली पर बनी. चारबाग शैली उस शैली को कहा जाता है जिसमे  भवन को बीच मे बनाया जाता है ओर चारो ओर बाग (गार्डन) होते है। यह ईमारत  इस शैली पर बनने वाला हिन्दुस्तान की पहली मुगल इमारत थी. जिस में फारसी व हिन्दुस्तान की वास्तुकला का संगम था. बाद में इसी शैली का प्रयोग ताजमहल में भी प्रयोग किया गया।

यह मकबरा  8 मीटर ऊंचे एक चबूतरे पर बना है जिससे यह बहुत सुन्दर प्रतीत होता है। चबूतरे के नीचे भी छोटे छोटे बहुत से कमरे बने है. इन के बीच सीढियां बनी है जहा से होते हुए, मुख्य मकबरे तक पहुचां जाता है. मुख्य इमारत पर संगमरमर पत्थर की गुम्बंद बनी है जिस पर पीतल की 6 मीटर ऊंची छड लगी है. नक्काशी तो हर जगह पर यहां मौजूद है चाहे वो खम्बो पर हो या फिर पत्थर की जाली पर। इस पुरे परिसर में और अन्य मकबरे भी बने है है जिन्हे देखा जा सकता है. उनमे नाई का मकबरा, इसाखान का मकबरा और  अरब की सराय मुख्य है।
हम हुमायूं का  मकबरा देखने के बाद बाहर आ गए और एक दूसरे मकबरे नाई (barber's tomb) के मकबरे पर पहुचे. यह 1590 के आसपास बना यह एक शाही नाई (हज्जाम) का है. यह भी एक ऐतिहासिक इमारत है.
इसे देखने के बाद हम दक्षिणी दरवाजे पर पहुचें यह दरवाजा पुराने समय मे शाही महमानो के लिए खुलता था इसके पिछे एक सराय भी थी जो अब हमे तो दिखाई दी नही. यहा से आगे चलकर हम उत्तर दिशा मे बने शाही हमाम (bathroom) को देखने पहुचें. यह एक स्नानघर था जहा पर बडी नालिया बनी थी जिनमे कभी पानी चलता होगा. इसे देखकर हम दोनो पश्चिम दरवाजे पर पहुचें, जहां एक संग्रहालय बना हुआ है जहां आप मकबरे से सम्बधित काफी जानकारी प्राप्त कर सकते है और हुमायूं व मुगल सम्राज्य के बारे मे जानकारी ले सकते है
यह सब देखकर पश्चिमी दरवाजे से होते हुए एक अन्य दरवाजे पर पहुचें यह दरवाजा था अरब सराय दरवाजा, यह सराय(inn)अरब से आए मजदूरो के लिए बनी थी. क्योकी मकबरे को बनने में काफी समय लगा था ओर मजदूरो को रहने के लिए भी जगह चाहिए थी इसलिए यह सराय बनी. सराय के अन्दर दो पुरानी इमारते थी जिन्हे देखकर हम बाहर आ गए.
अब हम पहुचे एक और मकबरे को देखने जो था इसा खान का मकबरा. यह मकबरा हुमायूं के मकबरे से भी लगभग20 साल पहले का यहा बना हुआ था. शायद सन्1547 ई० में यह बना था।
इसाखान दिल्ली के बादशाह शेरशांह सूरी के दरबार में आमिर थे. आमिर यानी की कुरान पढाने वाले. यह उन्ही का मकबरा था, यह देखने मे काफी सुंदर था.
इसे देखने के बाद हम दोनो बाहर आ गये और सीधा पार्किंग में पहुचं कर स्कूटी ऊठायी और वापिस चल पडे...
अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखें...


मंगलवार, 12 अगस्त 2014

काँवड़ यात्रा- हरिद्वार व नीलकंठ यात्रा (2014)

यह यात्रा मेने 22 जूलाई 2014 को की.
सावन मास चल रहा है ओर हरिद्वार में कांवड़ मेला जोरो पर है,देश के विभिन्न राज्यो से कावडिये हरिद्वार जल लेने आए हुए है.हरिद्वार में हर जगह कांवड़ीयाँ ही कांवड़ीयाँ नजर आ रहे है जो जल लेकर भगवान शिव को चढाने के उदेश्शय से यहां आए है.
मेने ओर मेरे कुछ दोस्तो ने भी बाईक से हरिद्वार जाने का कार्यक्रम बनाया,पर चलने से एक दिन पहले कुछ का कार्यक्रम बदल गया.
लेकिन मेने हरिद्वार जाना ही था इसलिए मेरे एक मित्र मनीष नें भी बाईक से हरिद्वार व नीलकंठ जाने के लिए कहा,तब मे ओर मनीष का हरिद्वार जाने का कार्यक्रम बन गया.
हम 22 जूलाई की सुबह 5 बजे दिल्ली से हरीद्वार के लिए निकल पडे.मनीष अपनी बाईक पर ओर में अपनी स्कूटी पर,दो ओर जानने वाले हमारे साथ हो लिए,कुल मिलाकर चार आदमी हो गए.
सुबह 5 बजे हम वजीराबाद रोड से होते हुए,मेरठ हरिद्वार रोड से गुजरते हुए,बीच बीच मे रूकते हुए लगभग दोपहर के 12:30 बजे हरिद्वार के शिव की पौडी नामक गंगा के घाट पर पहुंच गए.
वैसे तो यहा पर गंगा के कई घाट है पर यहा  नहाने के लिए यह घाट मुझे बढिया लगता है क्योकी यहा भीड-भाड ज्यादा नही रहती.
गंगा जी में जमकर नहाए सभी लोग ओर भूपतवाला रोड पर स्थित एक भोजनालय में खाना खाकर सीधे निष्काम धर्मशाला मे पहुंचे. वहा जाकर एक कमरा लिया ओर आराम किया.
शाम के लगभग 4 बजे हम सभी चंडी देवी के दर्शन के लिए धर्मशाला से निकल पडे.
गंगा पर बने चंडी पूल को पार करते ही एक दुकान के पास अपनी स्कूटी व बाईक खडी कर दी.
यहा पर हमे दो ओर जानने वाले मिले वह भी हमारे साथ हो लिए.वह भी बाईक से ही आए थे.
बाईक खडी कर हम सभी चंडी देवी पैदल मार्ग पर हो लिए, कुछ घंटो मे ही हम ऊपर चंडी माता के दर्शन कर नीचे आ गए.
काफी थक चुके थे हम,नीचे आकर हम अपनी सवारीयां ऊठा कर सीधे शिव की पौडी पर पहुचें.शाम के 7 बज रहे थे ओर गंगा आरती का समय हो रहा था.
यहा पर हमने गंगा की आरती के दौरान मशीनी स्वचलित ज्यौत भी देखी,जिसमे मोटर लगी थी ओर ज्योत कभी ऊपर तो कभी नीचे हो रही थी.गंगा आरती के बाद हमने प्रसाद ग्रहन किया ओर सीधे पहुंचे धर्मशाला में,
धर्मशाला में आकर हमने धर्मशाला के भोजनालय में जाकर भोजन किया ओर सोने के लिए चले गए.
23 जूलाई की सुबह 4 बजे आंखे खुली तो सबको जगा दिया क्योकी आज हमे नीलकंठ महादेव के दर्शन के लिए जाना था.
सभी ऊठ कर ओर फ्रैश होकर 4:30 पर धर्मशाला से निकलकर सर्वानंद घाट पर पहुंचे यह घाट भी शिव की पौडी से लगता हुआ ही है.
यहा नहाकर व छोटी कैन में जल भरकर निकल पडे नीलकंठ की ओर.
हरिद्वार पार कर व रीशिकेश से पहले बैराज को सीधे हाथ को रास्ता जाता है इसी रास्ते से होते हुए हम बैराज को पार करते हुए नीलकंठ की तरफ जाते हुए पहाडी व घुमावदार रास्ते से होते हुए सुबह के 8 बजे हम नीलकंठ महादेव पहुंच गए.
यहा पर बनी पार्किग मे स्कूटी व बाईक खडी कर चल पडे मन्दिर की तरफ.
(ऐसा माना गया है की समुंद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला था जो समस्त लोको में तबाही मचा सकता था.तब उस विनाश से बचाने के लिए शिव ने वह विष पी लिया.लेकिन उसकी गर्मी के कारण शिव बैचेन हो गए तब शिव ने इसी पर्वत पर आकर,यही तपस्या की थी ओर सभी देवी देवताओ ने गंगा जल से शिव का जलाभिषेक किया था.तभी शिव को विष की गर्मी से शांति मिली,तभी से शिव को जल चढाया जाता है)
बाईक खडी कर हम मन्दिर मे जाकर शिव का गंगा जल से जलाभिषेक कर आए.
मन्दिर से बाहर आकर एक होटल पर हमने  गर्म चाय के साथ परांठो का नाश्ता कर लिया.
नाश्ता करने के बाद हमने पार्किग में जाकर अपनी अपनी बाईक ऊठाई ओर वापिस चल पडे.लेकिन चलते ही हमे बहुत लम्बे जाम का सामना करना पडा.
जाम का कारण था की नीचे से बहुत से लोग अपनी बाईक व गाडीयो पर दर्शन के लिए आ रहे थे,कुछ ने तो वही रोड पर ही गाडी व बाईक खडी कर दर्शन के लिए चले गए.जिस कारण पहाडी रास्ते पर लगभग चार पांच किलोमीटर लम्बा जाम लग गया.
पुलिस ने आकर नीचे अपने साथियों से कहा की नीचे से किसी को भी ऊपर आने दिया जाए क्योकी यहा लम्बा जाम लग चुका है,यह पांच किलोमीटर का जाम हमने लगभग दो घंटो मे पार किया.
जाम पार करने के बाद एक मोड पर मे ओर मनीष रूक गए क्योकी हमारे दो साथी जाम मे ही फंसे थे.यहा कुछ ओर कांवडिया भी अपने अपने साथियो का इन्तजार कर रहे थे.
ऐसे ही में दिल्ली एक कांवडिये से मिला,नाम था नवरत्न,
नवरत्न एक बाईक पर थे जो बहुत अच्छी तरह से सजा रखी थी,बाईक पर सांप व शिवलिंग जैसी बहुत सी चीजे लगाई हुई थी.उन्होने बताया की वह कई सालो से सावन मास में कांवड मेले में आ रहे है.मेने उनका व बाईक का फोटो भी लिया.
थोडी देर बाद ही हमारे साथी भी आ गए ओर हम नीचे की तरफ चल पडे.
रीशिकेष के लिए एक नया पूल बनाया गया है जो पहले नही था हम उसी पूल से होते हुए.रीशीकेष की तरफ ऊल्टे हाथ को मुड लिए,तभी इतनी जोरो से बारिश होने लगी की हमे एक दुकान पर बाईके रोकनी पडी.
यहा हमने नमकीन व गर्मा गरम चाय पी.
वारिश मे चाय पीने का मजा ही कुछ ओर होता है जब आप पूरी तरह से भींगे हुए हो.
लगभग आधा घंटे बाद बारिश कुछ हल्की हुई तो हमने चलने का निर्णय लिया.रीषिकेश आकर मेने अपनी स्कूटी मे पेट्रोल भरवाया.
तेल भरवाने के बाद हम हरिद्वार की तरफ चल पडे ओर लगभग दोपहर के 2 बजे के आसपास हरीद्वार मे अपने कमरे पर पहुंचे.
थके होने के कारण नींद आ गई ओर शाम को 5 बजे के आसपास नींद खुली.
नींद खुलते ही हम हर की पौडी की तरफ चल पडे.हर की पौडी पर नहाकर, हम गंगा जी की आरती में शामिल हुए.यहा की आरती मुझे बहुत अच्छी लगती है,लाखो लोग वहा पर मौजूद थे सब गंगा मईया के जयकारे व शिव के जयकारे लगा रहे थे.इन जयकारो के के कारण वहा का वातावरण कुछ अलग का महसूस करा रहा था.
आरती के उपरांत हमने प्रसाद लिया ओर चल पडे धर्मशाला की तरफ.
धर्मशाला के भोजन कक्ष में पहुंच कर भोजन किया ओर सोने के लिए कमरे में चले गए.
24 जूलाई की सुबह 7 बजे नींद खुली.जल्दी जल्दी फ्रैश होकर व हर की पौडी पर नहाकर हम मंशा देवी जो बिल्व पर्वत पर विराजमान है उनके दर्शन के लिए गए.
हम पैदल मार्ग से ही मां मंशा के दरबार पर पहुंचे काफी भीड थी पर दर्शन बढिया हो गए.
नीचे उतरकर धर्मशाला पहुच कर धर्मशाला में पर्ची कटवाकर व बाईक ऊठा कर हम सर्वानन्द घाट पर पहुंचे जहा हम हम काफी देर तक नहाते रहे,फिर सभी ने अपनी अपनी बाईक व मैने अपनी स्कूटी को भी गंगा जल मे नहलाया.
हम नहाकर अपनी अपनी कैन मे गंगा जल भरा ओर हरीद्वार से निकल पडे दिल्ली की ओर रास्ते में रूकते रूकते रात को तकरीबन 11 बजे के आसपास दिल्ली अपने निवास स्थान पहुचे ओर 25 की सुबह को शिव चौदस वाले दिन अपने लाए गंगा जल से भगवान शिव का जलाभिषेक किया.
जय गंगा मईया...
जय भोले नाथ...
कुछ फोटो भी देखे इस यात्रा के दौरान द्वारा खिची गई.......................................

मेरठ बाईपास पर रुके 

जय भोले कि 
नीलकंठ कि तरफ चल पड़े 
ऋषिकेश सहर दिखता हुआ 
नीलकण्ठ महादेव मन्दिर 


रूद्राक्ष के फल
मैं और भोले नाथ 
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5 km लम्बा जाम
नवरत्न संग सचिन
बाईक तो देखो 
गंगा आरती हर कि पौड़ी 
हर की पौडी संध्या के समय
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हर की पौडी पर कांवडिये कांवड ऊठाए
मनसा देवी परवेश द्वार