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मंगलवार, 31 मार्च 2020

बद्रीनाथ व माना गाँव की यात्रा

बद्रीनाथ व माना गांव की यात्रा भाग 03  
बद्रीनाथ 
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03 नवंबर 2019
कल हम कार्तिकेय स्वामी मंदिर ट्रैकिंग करने के बाद चमोली से आगे बिरही में रुक गए थे। आज सुबह हम लगभग 7:00 बजे बद्रीनाथ जी के लिए चल दिए। बिरही से बद्रीनाथ जी पहुंचने में लगभग 4 घंटे लग गए इसी बीच रास्ते में ही हमने नाश्ता भी किया। बद्रीनाथ जी पहुंचने के बाद सबसे पहले हमने एक होटल में दो रूम ले लिए वहां पर बैग व अन्य सामान रखने के बाद हम बद्रीनाथ मंदिर की तरफ चल दिये और गर्म कुंड में काफी देर तक स्नान करते रहे। गर्म पानी मे नहाने के बाद सारी थकान दूर हो जाती है। नहाने के बाद हमने बद्रीनाथ जी के दर्शन किए और फिर माना गांव की तरफ चले गए।
मैं सचिन त्यागी और मेरे साथ अंकित व ललित 

बद्रीनाथ मंदिर के अंदर का दृश्य 

मंदिर के खम्बे पर नक्काशी द्वारा बनाये गए विष्णु भगवान 


मंदिर के अंदर का सीन व ऊपर पहाड़ पर बर्फ़बारी होते हुए 

एक बाबा 




बद्रीनाथ जी का मुख्य गर्भ गृह 

बद्रीनाथ से अन्य स्थल की दूरी बताता एक बोर्ड 

मैं माना गांव पहले भी आ चुका हूं, मेरा यह तीसरा अवसर है कि जब मैं बद्रीनाथ जी आया हूं। मैं पिछले साल भी बद्रीनाथ आया था ललित के संग और अगर मुझे हर साल यहा आने का अवसर मिले तो इससे बड़ा सौभाग्य में नहीं समझ सकता। माना गांव के कुछ दर्शनीय स्थलों के दर्शन किए गए। हम सरस्वती नदी, भीम पुल, भारत की आखरी चाय की दुकान आदि स्थल हमने देखे उसके बाद हम वापस होटल आ गए शाम हो चुकी थी। एक बार फिर दोबारा बद्रीनाथ मंदिर गए और 150 रू प्रति व्यक्ति के दर से एक पर्ची कटवाई और एक विशेष पूजा में भी भाग लिया। उसके बाद हम वापिस होटल आ गए। अब अंधेरा हो चुका था कुछ देर बाद हमने खाना खाया और देखा कि बाहर बारिश हो रही थी। और काफी ठंड हो रही थी। कुछ समय बाद बहुत तेज बारिश होने लगी फिर छोटी छोटी कंकड पढ़ने लगी और देखते ही देखते शरद ऋतु की पहली बर्फबारी चालू हो गयी। स्नोफॉल देखना अपने आप में ही एक अच्छा अनुभव होता है, हम जैसे मैदानी लोग जो दिल्ली एनसीआर व देश में कही भी रहते हो उनके लिए स्नोफॉल देखना बहुत बड़ी बात होती है। लोग बर्फ देखने के लिए कई कई दिन इंतजार भी करते है और आज हम भी बर्फ पड़ते हुए देख रहे थे। मैंने तो कई बार snowfall देखा हुआ है। लेकिन ललित, अंकित और अमित ने जिंदगी में पहली बार स्नोफॉल देखी थी इसलिए वह काफी खुश थे। कुछ समय बाद हम सोने के लिए अपने अपने कमरों में चले गए।
माना गाँव के निकट 


माना गाँव ,भीम पुल दिखता हुआ इस फोटो में 


एक छोटी बच्ची जो मुझे माना गाँव में मिली थी 

रात को बर्फवारी भी हुई 




इस यात्रा के अन्य भाग पढ़े 

सोमवार, 30 मार्च 2020

कार्तिक स्वामी मंदिर ट्रैकिंग यात्रा भाग 02

कार्तिक स्वामी मंदिर की पैदल यात्रा भाग 02

kartikeya swami temple,uttrakhand 

02 नवंबर 2019
मै सुबह लगभग 6:00 बजे उठ चुका था। मुझसे पहले ललित भी उठ गया था फिर मैंने दूसरे कमरे में जाकर अंकित और अमित को भी जगा दिया और उनसे बोल भी दिया कि 7:00 बजे फ्रेश होकर नीचे रेस्टोरेंट पर मिलो हम सभी लगभग 7:00 बजे के करीब रेस्टोरेंट पहुंच गए और हमने नाश्ते के लिए बोल दिया। तब तक हमने अपना सारा सामान गाड़ी में लगा दिया। होटल वाले ने आवाज लगा कर हमसे बोला कि आपके पराठे रेडी हो गए है। नाश्ता करने के बाद ललित ने कहा कि तीन चार पराठे यहीं से पैक करा लेते हैं क्योंकि पता नहीं यहां के आगे कोई ढाबा या होटल मिले या ना मिले। मैंने उसे बोला कि मैंने नेट पर देखा था तथा कुछ यात्रा वृतांत भी पढ़े थे जिसमें बताया गया कि कनक चोरी गांव में कुछ होटल है। लेकिन फिर भी मैं ललित की बात से सहमत हो गया और हमने अपने लिए तीन परांठे साथ में थोड़ा सा आचार पैक करा लिया। होटल का बाकी भुगतान करने के बाद हम वहां से चल दिए। रुद्रप्रयाग से तकरीबन 38 किलोमीटर दूर कनक चोरी गांव है, वहीं से 3 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी होती है कार्तिकेय स्वामी मंदिर तक के लिए। हम तकरीबन 9 बजे कनक चोरी गांव पहुंच चुके थे। यहां हमने एक दुकान के सामने गाड़ी खड़ी कर दी और उससे मैगी बनाने को बोल दिया फिर गरमा गरम मैगी खा कर और एक पानी की बोतल लेकर हम तैयार थे कार्तिक स्वामी ट्रेक के लिए। कनकचोरी गांव एक छोटा सा गांव है और यह चमोली जिले के अंतर्गत आता है जबकि कार्तिकेय स्वामी मंदिर जो ऊंची चोटी पर बना है वह रुद्रप्रयाग जिले में आता है।


कनकचोरी गाँव की तरफ चल पड़े 

कनक चौरी गाँव पहुँच गए 

हम लोग अब आगे चल पड़े। कुछ स्थानीय लोग जहाँ से यात्रा आरंभ होती है उधर बैठे हुए थे। ये शायद फॉरेस्ट विभाग के कर्मचारी थे। ललित ने इन लोगो से पूछा की मंदिर तक कितने किलोमीटर का रास्ता है? उन्होंने बताया कि यहां से 3 किलोमीटर का रास्ता है और 1 घंटे में यह सफर पूरा हो जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि आज आप लोग ही पहले जा रहे हो। ललित ने पूछा कि रास्ता कैसा है और कोई जानवर तो नही मिल जाएगा? उन्होंने बताया कि रास्ता जंगल से होकर जाता है और जानवरों का किसी भी प्रकार का डर नहीं है। जब यहां पर बर्फ ज्यादा पड़ जाती है तब भालू वगैरह कुछ जानवर आ जाते हैं लेकिन इस मौसम में कोई जानवर रास्ते पर नही आता है इसलिए आप बिल्कुल बेफ़िक्र होकर जाए आपको कोई दिक्कत नही आएगी। यदि आपको लगे कि कोई जानवर आगे है तो आप थोड़ी देर इंतजार करना जब वह नीचे उतर जाए तब अपनी यात्रा प्रारंभ करना। वैसे आप आराम से जाए कोई दिक्कत नही है। उनको धन्यवाद कह कर हमने अपनी यात्रा आरंभ कर दी। हम थोड़ा सा ही चले थे कि एक आंटी मिल गई उनका घर उधर ही है, जहां से यात्रा स्टार्ट होती है। उन्होंने हमें लकड़ी की स्टिक दी इन से हमें ऊपर चढ़ने में आसानी रहेगी उन ऑन्टी ने हम से कहा की वापिसी में यह लकड़ी की स्टिक मेरे घर पर ही रख जाना जिससे अन्य लोगो को भी मदद हो सके। हम सभी ने एक स्वर में जवाब दिया जी ठीक है। हम उनको नमस्कार कर आगे बढ़ गए। वाकई ये ऑन्टी कितनी मददगार है।

कनकचोरी गांव लगभग 2200 मीटर की ऊंचाई पर है और कार्तिकेय स्वामी मंदिर की ऊंचाई लगभग 2700 मीटर है। लगभग सारा रास्ता जंगल से होकर जाता है हमे पहाड़ की धार से होता हुआ जाना है। लेकिन रास्ता काफी चौड़ा बना है कहीं-कहीं जंगल की तरफ से कटीले तार भी लगाए गए हैं जिससे जंगली जानवर मुख्य मार्ग पर ना आए और मुसाफिर रास्ता ना भटके इसलिए स्थानीय लोगों ने या जो दर्शन के लिए जाते हैं उनको जगह जगह लाल चुनरी निशानी के तौर पर बांधी हुई है जिससे हमें पता चलता रहता है कि सही रास्ता कौन सा है कई बार मोड़ भी आता है जहां से दो रास्ते अलग हो जाते हैं तो वहां पर भी चुनरी कुछ ऐसे बांधी हुई है जिसकी मदद से हम रास्ता नहीं भटकते है।

ऐसे रास्ते के होकर जाना होता है 
मैं सचिन त्यागी 

हिमालय के दर्शन होते हुए 





चलते चलते ललित थक गया था इसलिए वह एक दो जगह बैठता हुआ ऊपर चढ़ रहा था। बाकी दोनों मित्र अमित व अंकित भी इस यात्रा का पूरा लुफ्त उठा रहे थे। बोल रहे थे कि हम शुरू में तो काफी डर रहे थे कि पैदल कैसे चलेंगे लेकिन यह हमारे लिए बहुत ही अच्छा एडवेंचर टूर हो गया है। बाकी हम चारो एक दूसरे से बोलते हुए चले जा रहे थे। एक मोड़ पर ललित जो सबसे आगे चल रहा था उससे मैंने मज़ाक मज़ाक में बोला कि आगे कोई जानवर खड़ा था ललित तुरन्त चलता चलता रुक गया मैं ललित से आगे निकल कर बोला कि यह मज़ाक था चल आ जा । ललित ने पहले एक छोटा पत्थर आगे फैंका फिर तस्सली कर आगे बढ़ा। ललित भी एक जगह रुक कर मुझ से बोला कि उसे भी अच्छा महसूस हो रहा है और अब थकान भी नही हो रही है। मौज मस्ती से चलते चलते हम लगभग एक किलोमीटर चल चुके थे। इस रास्ते से हिमालय की बर्फ से ढँकी पहाड़ियां जैसे चौखंबा, केदारनाथ, स्वर्गारोहिनी के साथ अन्य भी जिनका मुझे नाम याद नहीं है वह सभी साफ दिखाई दे रही थी। जिनको देखने के लिए भी लोग कार्तिक स्वामी मंदिर आते हैं इन सब का और भी सुंदर नज़ारा ऊपर से दिखाई देता है। अब हम उस स्थान पर पहुंचे जहां से मंदिर 1 किलोमीटर ही रह जाता है और जंगल का रास्ता भी समाप्त हो जाता है। इधर कुछ पंडित लोग रहते हैं उनके घर भी बने हुए है साथ मे कुछ होटल जैसी इमारत भी बन रही थी। यहाँ पर एक पानी का कुंड भी था इससे आगे हमे मंदिर तक सीढ़ियों से होकर जाना है।
ऊपर उस चोटी तक जाना है मंदिर उसी चोटी पर ही है



ललित थक कर बैठ गया 

अंकित व अमित 

चौखम्बा पर्वत 

यहाँ से जंगल का रास्ता समाप्त हो जाता है और सीढियों वाला शुरू हो जाता है 


सीढियों वाला रास्ता जो मंदिर तक बना है 

सीढ़ियों के रास्ता थोड़ा कठिन लग रहा था अर्थात जितना सरल दो किलोमीटर जंगल का रास्ता था लगभग उतना ही कठिन आखिरी का एक किलोमीटर वाला ये सीढ़ियों वाला लग रहा था। लेकिन इस ट्रेक को मैं एक सरल ट्रैक की श्रेणी में ही रखूंगा क्योंकि इसको आप केवल 3 घंटे में कर लेते हो इसलिए यह बहुत ही सरल ट्रेक है लेकिन साथ मे यह एक छोटा ट्रक होने के बावजूद भी एक अच्छा ट्रैक माना जाता है। बहुत से लोग यहां सिर्फ वीडियोग्राफी और फोटोशूट करने ही आते है। अब हम मंदिर पर पहुंच चुके थे। हमे लगभग एक घंटा 15 मिनट लगे मंदिर तक पहुंचने में कनकचोरी गांव से। पहले हमने वहीं बैठ कर अपनी सांसों को शांत होने दिया फिर हमने जूते स्टैंड पर अपने जूते रखे और हाथ धोने के बाद मंदिर की तरफ चल दिये। मंदिर में एक पुजारी जी खड़े हुए थे जिनसे मंदिर के बारे में पूछने पर उन्होंने हमें बताया कि यह जो मूर्ति आप देख रहे हैं यह भगवान कार्तिकेय अर्थात भगवान शिव के जेष्ठ पुत्र की हड्डियां है जिनको हजारो सालो से पूजा जा रहा है उन्होंने आगे बताया कि एक बार गणेश जी और कार्तिकेय जी में प्रतियोगिता हुई कि जो ब्रह्मांड को पहले नाप लेगा वही श्रेष्ठ माना जाएगा। इसलिए कार्तिकेय जी तो चले गए ब्रह्मांड को नापने के लिए और गणेश जी ने अपने माता-पिता के ही चक्कर लगाकर उनसे बोल दिया कि मेरे लिए तो मेरे माता पिता ही ब्रह्मांड हैं तब भगवान शिव और माता पार्वती ने उनसे खुश होकर ने उन्हें वरदान दिया कि आप सर्वप्रथम पूजन वाले भगवान होंगे और जब यह बात कार्तिकेय जी को पता चली तो वह बड़े क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने शरीर का माँस माता पार्वती को भेंट कर दिया और अपनी हड्डियां भगवान शिव को भेंट कर दी और खुद निर्वाण रूप (अदर्शय) रूप में आकर इस क्रोध पर्वत पर तपस्या करने लगे तब से यहा भगवान कार्तिकेय स्वामी जी की पूजा होती है और माना जाता है भगवान कार्तिकेय आज भी यही रहते है।

बस पहुँच ही गए सामने ऊपर मंदिर ही है 

थोडा और ऊपर 



आखिरकार हम मंदिर पहुँच ही गए 

हमने मंदिर में दान दक्षिणा दी और प्रसाद भी चढ़ाया।  भगवान कार्तिक स्वामी के दर्शन करने के पश्चात हम मंदिर के पीछे एक चबूतरे पर बैठ गए और अपने साथ लाये हुए पराठे को खाया। भूख भी बहुत जोरों से लग रही थी वह पराठे खाकर हम तृप्त हो गए। मंदिर से आसपास का दिखने वाला दर्शय बहुत सुंदर लग रहा था लेकिन हिमालय पर्वत की चोटियों को हम देख ना सके क्योंकि वह बादलों में विलीन हो चुकी थी। अर्थात वह हमें दिखाई नहीं पड़ रही थी जो नजारा हम देखना चाहते थे वह हमें नहीं दिख रहा था लेकिन यहां आकर फिर भी हम बहुत हर्ष, आनंदित महसूस कर रहे थे। अंकित, अमित और ललित तीनों दोस्त यहां आकर बहुत खुश थे और इसी खुशी में उन्होंने कहा कि शायद हम इस ट्रैक पर नही आते तो हम कुछ ना देखते हैं आज तुम्हारी वजह से हमने यह सब देखा जिसके बारे में हम तो कभी सोच भी नहीं सकते कि हम यहां आ सकते हैं और तुम ही हमें ऐसी जगह ले कर आए सच में यह हमारे लिए बहुत ही रोमांचित करने वाला एहसास है और आगे भी हम आपके साथ ऐसी जगह जाना पसंद करेंगे। उनकी यह बात सुनकर मुझे अच्छा लग रहा था। अमित ने बताया कि उसको पैदल चलकर ऐसे स्थान पर पहुंचना, जंगल के बीच से निकलना, पुरानी कथाओं को सुनना, एक अलग सी शांति महसूस करा रही है।
बदलो में छिपा हिमालय 

अमित व अंकित 


परांठे और हिमालय

कार्तिक स्वामी मंदिर स्तिथ मूर्ति जिसे कार्तिक स्वामी की हड्डियाँ भी बोला जाता है और पूजा भी जाता है
भैरव नाथ व गौरी माता का मंदिर 

कुछ देर बाद हम ने नीचे उतरना स्टार्ट कर दिया बीच में भैरव जी का मंदिर भी है वहां पर भी हमने दर्शन किए फिर से हम जंगल वाले रास्ते पर आ गए थे अब जंगल स्टार्ट हो चुका था लेकिन अब हमें काफी लोग ऊपर आते हुए दिख रहे थे इसका मतलब है कि यहां पर दर्शन के लिए काफी लोग आते हैं पर ज्यादातर यहां पर स्थानीय लोग ही थे बाहरी पर्यटक यहां पर कम आता है अगर उत्तराखंड सरकार यहां पर कुछ होटल बनाए और अन्य सुविधा दे तो लोगो को अपनी जीविका चलाने का एक बड़ा अवसर प्राप्त हो सकता है। खैर हम जल्दी ही नीचे आ गए हमने पहले सभी लकड़ी की स्टिक को उन ऑन्टी को वापिस दे दिया और उन्हें धन्यवाद भी कहा और नीचे आने के बाद अब हम ने मैगी वाली दुकान पर ही स्पेशल चाय बनवाई और चिप्स खाने के बाद गाड़ी लेकर आगे मोहन खाल होते हुए करणप्रयाग पहुंचे। यहां पर हमने खाना खाया और आगे हमें मुख्य मार्ग पर काफी जगहों पर सड़क निर्माण कार्य की वजह से रुकना पड़ रहा था। कई जगह जाम की स्थिति थी और यहां पर हमें आधे आधे घंटे भी रुकना पड़ा और शाम के तकरीबन 5:00 बजे हम चमोली से कुछ किलोमीटर आगे बिरही में तपोवन नाम से रिसोर्ट में रुक गए इस रिसोर्ट पर मैं और ललित पिछले साल भी रुके थे इसलिए उधर का स्टाफ हमे जनता था और मैंने मोहनखाल में ही रिसोर्ट में फ़ोन लगा कर अपने लिए दो रूम बुक करा दिए थे। कल हम इधर से ही बद्रीनाथ जी के लिए निकलेंगे।

इस यात्रा के अन्य भाग पढ़
भाग 01   

शनिवार, 28 मार्च 2020

कार्तिक स्वामी मंदिर यात्रा भाग 01

कार्तिक स्वामी मंदिर की पैदल यात्रा भाग 01
kartikey swami temple,uttrakhand

यात्रा की रूपरेखा-
अक्तूबर 2019 की बात है एक दिन ललित का फ़ोन आता है कि काफी दिन हो गए है कही बाहर गए हुए। तो आप कोई प्रोग्राम बना लो लेकिन बनाना उत्तराखंड का ही और उसमें बद्रीनाथ भी शामिल हो सके तो और बढ़िया रहेगा। मैंने उससे बोला कि अभी पिछले साल तो बद्रीनाथ जी के दर्शन कर के आये है कही और चलते है इस बार उसने बताया कि इस बार उसके दो दोस्त भी साथ चलने को बोल रहे है और वही बोल रहे है कि बद्रीनाथ चलेंगे इस बार। मैने अगले दिन उसको बताया कि रुद्रप्रयाग के पास कार्तिकेय स्वामी का मंदिर है और मंदिर तक पहुँचने के लिए 3km का पैदल ट्रेक भी है। जिसको आराम से 3 से 4 घंटो में कर सकते है। और उधर से फिर शाम तक जोशीमठ भी पहुंचा जा सकता है। तो इस प्रकार हमारा टूर बन चुका था। की हमें उत्तराखंड ही जाना था और पहले दिन रुद्रप्रयाग रुकना था और दूसरे दिन कार्तिक स्वामी मंदिर ट्रैक करके जोशीमठ के आस-पास ही रुकना था।

व्हाट्सएप ग्रुप बनाया-
फिर ललित ने अगले दिन एक व्हाट्सएप ग्रुप बना लिया जिसमे मेरे अलावा अपने दोनों दोस्तो को भी जोड़ लिया।लेकिन कार्तिकेय स्वामी ट्रैक पर जाने के नाम पर ललित आना कानी करने लगा। कभी कहता कि उधर नही जाऊंगा क्योंकि मेरे से नही चला जाएगा कभी कहता कि इसको यात्रा लौटते वक्त करेंगे। लेकिन मैंने भी साफ साफ बोल दिया कि अगर मेरे कार्यक्रम से चलना है तो बोलो नही तो अपना जाना कैंसिल है। बाकी दो दोस्तो ने भी मेरा समर्थन कर दिया। और तय हुआ कि हम 01 nov को सुबह 4 बजे निकल चलेंगे अपने सफर पर।

यात्रा की तैयारी-
अंकित और अमित(ललित के दोस्त) ने बताया कि वह उत्तराखंड में सिर्फ मसूरी, नैनीताल और हरिद्वार तक ही गए हैं। उनकी बात सुनकर मुझे काफी ताजुब हुआ कि वो अभी तक उत्तराखंड की बाकी सुंदर जगह कैसे नहीं गए हैं खैर अब उनको बताया कि इस मौसम में स्नोफॉल भी मिल सकता है इसलिए कपड़ो के साथ कुछ गर्म कपड़े व एक जैकेट भी रख ले और जरूरी दवाइयां भी रख ले और हर छोटी बात को आपस मे पूछ सकते है इस प्रकार मैं 31अक्टूबर की रात 8:00 बजे ललित के घर राजनगर एक्सटेंशन पहुंच गया और अमित भी अंकित के घर पहुंच गया। अब हमने मिलकर यह तय किया कि जिसे जो समान लेना है वो मार्किट से ले लें। जैसे किसी को दवाई लेनी थी तो किसी को कुछ कपड़े लेने थे तो हमने कुछ देर मार्किट में शॉपिंग की और अपने अपने घर चले गए।

01 नवंबर 2019
सुबह अलार्म बजने से पहले की आंखे खुल चुकी थी बस इंतजार कर रहा था कि कब अलार्म बजे। वैसे तो रात को नींद भी लेट आई क्योंकि कहीं भी जाने से पहले उस यात्रा के बारे में सोच कर और जाने की एक एक्साइटमेंट/ उत्सुकता बनी रहती है। इसलिए कभी कभी नींद नहीं आती है फिर हमे बात करते करते भी लगभग 12 बज चुके थे। फिर भी मैं सुबह जल्दी उठ गया। समय देखा तो अभी 3:40 हो रहे थे और थोड़ी देर बाद मैंने ललित को भी उठा दिया और अंकित को फोन करके बताया कि हम उठ चुके है और तुम लोग भी उठ जाओ। बाकी हम नहा-धोकर और चाय के साथ बिस्किट खाने के बाद सुबह के लगभग 4:30 पर निकल चले। तब तक अंकित और अमित भी अपनी सोसाइटी के मैन गेट पर आ चुके थे और हम सभी ललित की कार में बैठ कर अपने सफर पर निकल चले।

हमने खतौली पहुँच कर गूगल मैप में देखा कि रुद्रप्रयाग के लिए कौन सा रास्ता जल्दी पहुँचा रहा है ऋषिकेश होकर या फिर कोटद्वार की तरफ से। गूगल मैप ने दिखाया कि हमें ऋषिकेश की तरफ से जाने में ज्यादा समय लग रहा था जबकि कोटद्वार होते हुए हमारा लगभग एक घंटा समय बच रहा था। फिर मैंने एक दिन पहले अपने एक दोस्त से भी बात की थी तो उन्होंने बताया था कि ऋषिकेश से श्रीनगर के बीच उत्तराखंड चार धाम यात्रा रोड के निर्माण कार्य के चलने के कारण जगह-जगह जाम लग जा रहा है जिसके कारण यात्रा में काफी समय लग रहा है अभी मेरे बड़े भाई भी केदारनाथ की यात्रा करके आए थे। उन्होंने भी बताया कि उनको भी श्रीनगर ऋषिकेश रोड पर काफी जाम मिला था इसलिए मैंने तय किया कि हम कोटद्वार की तरफ से पौड़ी होते हुए जाएंगे। मैंने यह रास्ता पहले भी देखा हुआ है और जानता भी हूँ कि यह रास्ता सही है और भीड़ भाड़ भी नही मिलेगी इस पर। लेकिन ललित व अन्य इस रास्ते से अभी तक परिचित नहीं थे इसलिए वो थोड़ा दुविधा में थे। हम खतौली से जानसठ से होते हुए मीरापुर पहुँचे। यही से एक रोड पौड़ी के लिए निकल जाता है और हम उसी पर चल रहे थे। हमे लगातार चलते चलते लगभग चार घंटे हो चुके थे इसलिए कोटद्वार से कुछ पहले हमने एक अच्छा सा होटल देखकर नाश्ता किया। नाश्ते में हमने प्याज और पनीर के परांठे खाये। अब हमारे पेट भी पूरी तरह से फुल हो चुके थे इसलिए सोच लिया था कि अब आगे निरंतर चलते रहेंगे। कोटद्वार से कुछ पहले का जो रास्ता है यह मुझे बहुत अच्छा लगता है क्योंकि सड़क के दोनों तरफ जंगल मिलता है और कभी-कभी इस पर जानवर भी दिख जाते हैं पर मैंने आज तक बंदर को छोड़ कर कोई जानवर नही देखा। हम लगभग 9 बजे कोटद्वार पहुंच चुके थे, कोटद्वार में सिद्धबली बाबा का मंदिर है जो हनुमान जी को समर्पित है, कोटद्वार तक समतल जगह है फिर आगे कोटद्वार से पहाड़ी स्टार्ट हो जाती है। अब हमें अब आगे का सफर पहाड़ पर ही तय करना है। आधा पौन घंटा चलने पर एक तिराहा या मोड़ आता है जहां से एक रास्ता सुप्रसिद्ध हिल स्टेशन लैंसडाउन के लिए चला जाता है और एक रास्ता गुमखाल के लिए चला जाता है जो आगे पौड़ी के लिए निकल जाता है। हम गुमखाल की तरफ चल पड़े गुमखाल लैंसडाउन के लगभग की ऊंचाई वाला ही जगह है। यह बहुत से चीड़ के पेड़ों वाली जगह है यहां पर काफी पेड़ है और यह ठंडी जगह भी है यहां से आगे कुछ किलोमीटर चलने के बाद सतपुली जगह आती है जहां से एक रास्ता देवप्रयाग के लिए अलग हो जाता है। सतपुली से करीब 25 km आगे ज्वालपा देवी का मंदिर आता है। जो मैन सड़क के किनारे ही स्थित है। मैं तो पहले भी यहां आ चुका हूं एक बार केदारनाथ यात्रा के समय लेकिन बाकी तीनों दोस्त पहली बार ही आये थे इसलिए हम सभी मंदिर की तरफ चल पड़े। ज्वाल्पा देवी मंदिर नयार नदी के किनारे बना है। हम सभी दर्शन के बाद कुछ समय नदी के किनारे भी देर बैठे रहे।
gumkhal 

jwalpa devi

सचिन ,ललित,अमित व अंकित (पीछे नयार नदी )

अब हमें यहां आगे पौड़ी के लिए निकलना था। ज्वाल्पा मंदिर से चलकर हम लोग दोपहर के 12:30 बजे पौड़ी पहुँच चुके थे। पौड़ी एक बड़ा शहर है और एक जिला भी है। यहां पर काफी दुकानें ,होटल आदि हैं इसलिए यहां पर काफी चहल-पहल दिख रही थी। हमने एक रेस्टोरेंट देखा और अपनी गाड़ी को सड़क के एक साइड में लगा कर कमर सीधी करी और उस रेस्टोरेंट मैं जा कर खाना का आर्डर दे दिया जब तक खाना आया तब तक हम होटल से दिख रही हिमालय की हिम पर्वतों के दीदार करते रहे। फिर खाना खाने के बाद हम आगे के लिए निकल पड़े। लगभग 2 बजे हम श्रीनगर से पहले अलकनंदा नदी के किनारे बने रेत के एक बीच पर रुके।हमारे अलावा इधर कुछ अन्य लोग भी रुके हुए थे पास में कुछ दुकाने भी लगी हुई थी। उन्ही में से एक दुकान पर हमने चाय भी पी और कुछ समय मौज मस्ती में बिताया। हमने देखा कि नदी के दूसरे किनारे पर कुछ हिरण पानी पी रहे हैं।



पौड़ी शहर 


होटल की छत से दिखता पौड़ी शहर का दर्शय
कीर्तिनगर के पास रेत का बीच

अब यहां से चलकर हम श्रीनगर पहुँचे। श्रीनगर से 15 किलोमीटर चलने के बाद धारी देवी का मंदिर आया।मंदिर अलकनंदा के किनारे बना है। लेकिन एक द्वार मुख्य सड़क पर भी बना है जिस पर लोग रुक कर माथा टेक कर आगे जाते है। हम भी थोड़ी देर के लिए रूके और द्वार के पास धारी देवी को नमस्कार किया और आगे की तरफ बढ़ गए। धारी देवी से रुद्रप्रयाग करीब 20 km रह जाता है और हम शाम के लगभग 4:00 बजे रुद्रप्रयाग पहुंच चुके थे। रुद्रप्रयाग शहर से पहले ही एक रास्ता केदारनाथ के लिए अलग हो जाता है या उसे केदारनाथ बाईपास भी बोल सकते हैं। उसी से कुछ पहले पहले अलकनंदा नदी के किनारे होटल देखा, होटल विजय पैलेस नाम से इसके रूम ठीक-ठाक लग रहे थे। वाशरूम भी साफ थे इसलिए हमने दो रूम नदी नदी के साइड वाले ले लिए। नदी की तरफ रूम लेने का फायदा यह होता है कि आप घंटों तक अपने रूम से नदी को देखते रहते हैं, उसका शोर सुनते रह सकते है और अपना समय व्यतीत कर सकते है। हमको 2500 रुपए में 2 रूम मिल गए थे साथ में यहां होटल के नीचे रेस्टोरेंट भी था। अपनी थकान उतारने के लिए पहले हमने चाय मंगाई। हम चारो में केवल अमित ही चाय नही पीता था इसलिए उसके लिए चाय नही मंगाई गई। चाय पीने और उसके बाद हम फ्रेश होने पर हम दिल्ली एनसीआर के प्रदूषण पर बात कर रहे थे। क्योंकि उस समय delhi ncr में बहुत ज्यादा प्रदूषण हो रहा था, लोगो की आंख से आँशु व जलन तक की शिकायत आ रही थी। मास्क पहन कर लोगो को रहना पड़ रहा था। और एक इधर का मौसम और हवा थी बेहद खुशनुमा और साफ व शुद्ध। न्यूज़ में बताया जा रहा था कि पंजाब और हरियाणा के किसान फसल काटे जाने के बाद बची हुई पराली को खेतों में जला देते है जिससे दिल्ली ncr की आवो-हवा बद से बदत्तर हो जाती है। बाकी इस समस्या का हल सरकार और किसानों को जल्द ही निकलना चाहिए नही तो यह समस्या आने वाले वर्षो में और भी विकराल रूप ले लेगी।
धारीदेवी का मंदिर 
रुद्रप्रयाग पहुँच गए 





इस चर्चा के बाद हमने खाना खाया और तकरीबन 7:00 बजे बाहर घूमने का फैसला किया। अब हल्का हल्का अंधेरा हो चुका था। पहले रुद्रप्रयाग गए लेकिन इस समय लगभग मार्किट बंद हो चुकी थी इसलिए हम कुछ देर घूमने के बाद अपने होटल वापिस आ गए और सोने के लिए अपने अपने रूम में चले गए।
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