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सोमवार, 28 जनवरी 2019

Kutub minar (कुतुबमीनार)

कुतुबमीनार, दिल्ली
kutub minar

कुतुब मीनार ईंटो से बनी दुनिया की प्राचीन ऊंची इमारतों में से एक है। यह दिल्ली के महरौली इलाके में स्थित है। युनेस्को ने इस इमारत को विश्व धरोधार के रूप में स्वीकृत किया है। कुतुब मीनार की ऊंचाई तकरीबन 73 मीटर है। आधार पर इसका व्यास 14.3 मीटर और टॉप पर केवल 2.7 मीटर है। और यह पांच मंजिला बनी हैं। इसका निर्माण दिल्ली के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्धीन ऐबक ने 1199 ई. में करवाया था। कुतबुद्दीन ऐबक ने सिर्फ इसकी पहली मंजिल का निर्माण करवाया था। जबकि उनके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसकी तीन मंजिलें बनवाईं थी, बाकी पांचवी मंजिल (अंतिम मंजिल) 1368 में फिरोजशाह तुगलक ने बनवाई।
कुतुब मीनार का निर्माण लाल बलुआ पत्थर और सफेद मार्बल से किया गया था। इसके अंदर गोल सीढ़ियां हैं जिनसे होकर ऊपर पहुँचा जाता है। लेकिन अभी वर्तमान में यह सीढ़िया पर्यटकों के लिए बंद कर दी गयी है। कुतुब परिसर में कुछ अन्य इमारते भी है जिनमे कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनाई गई भारत की पहली मस्जिद कुव्वत-उल-इस्लाम, चौथी सदी का चंद्र लौह स्तंभ (आयरन पिलर), अलाई दरवाजा, इल्तुतमिश का मकबरा आदि प्रमुख हैं।
कुतुबमीनार में प्रवेश के लिए भारतीय पर्यटकों के लिए 30 रुपये का टिकेट रखा गया है। अंदर प्रवेश करने के लिए सुबह 7 से शाम 5 बजे तक का समय है और सप्ताह के सभी दिन यह खुला रहता है। कुतुबमीनार के सबसे नजदीक मेट्रो स्टेशन कुतुब मीनार मेट्रो स्टेशन है। यह येलो लाइन मेट्रो पर है। जो हुडा सिटी से जुड़ी है। सड़क मार्ग से सीधा कुतुबमीनार पहुँचा जा सकता है।
प्रवेश द्वार 


कुतुबमीनार 

पत्थरों पर कुछ लिखा हुआ है। 

मीनार के अंदर जाना मना है। 

एक स्तंभ 



मैं और मेरा बेटा 

लौह स्तंभ 





दीवार में पानी निकलने की जगह 


अलाइ मीनार जो बन ना सकी। 





इल्तुतमिश का मक़बरा 







गुरुवार, 3 जनवरी 2019

मेरी केदारनाथ यात्रा (केदारनाथ मंदिर)_Kedarnath by Helicopter

मेरी केदारनाथ यात्रा 
इस यात्रा को शुरू से पढ़े 
फंस गए केदारनाथ में
केदारनाथ मंदिर 

2 मई 2018, बुधवार
सुबह जल्दी सभी कार्यो से निवृत्त होकर होटल के नीचे बने एक ढाबे पर पहुँचे और चाय संग आलू के परांठो का नाश्ता कर लिया। सभी सामान गाड़ी में पैक कर दिया क्योंकि हमें आज ही केदारनाथ से वापिस आना था इसलिए सिर्फ गर्म कपड़े पहन लिए और थोड़ा खाने का सामान रखा बाकी समान हेलीपैड की पार्किंग में खड़ी गाड़ी में ही रख दिये। दो छाते भी रख लिए जिन्हें हेलीपैड पर खड़े एक कर्मचारी ने देख लिया और हेलीकॉप्टर में रखने से मना करने लगा। मैंने उससे कहा कि इन छतरी में नोक नकुली नही है और बैग में आ सकती है इसलिए नियम अनुसार यह हेलीकॉप्टर में जा सकती है, इसलिए उसने इन्हें जाने दिया। वैसे आज मौसम साफ था इनकी जररूत पड़ेगी नही क्योंकि हमें आज दोपहर के 12 बजे तक लौट आना था और पहाड़ों पर दोपहर बाद ही मौसम बिगड़ता है। तो हम ने थोड़ा समान रख लिया और हेलीकॉप्टर की आने की प्रीतिक्षा करने लगे। हमारे पास एक व्यक्ति ने जिसका आज ही जाना और लौटना था। उसने अपनी लौटने की तारिख अगले दिन की करा ली थी। उसे देखकर मेरा भी मन केदारनाथ में रुकने का बन गया। लकिन मेरी श्रीमती ने आज ही लौटने को बोल दिया। क्योंकि आज ही हम लौटने के बाद कालीमठ रुकेंगे। फिर कल आगे वापिसी भी करेंगे। इसलिए मैंने भी आज ही लौटना तय किया।  एक और बात फाटा से एक ही हेलीकॉप्टर उड़ता है। फाटा से ले जाने का कार्य भी उसी का ही होता है और केदारनाथ से आने का भी कार्य उसी का ही है। मेरे हिसाब से एक हेलिपैड पर दो हेलीकाप्टर तो अवश्य होने चाहिए जिससे सवारियों को ज्यादा इन्तजार ना करना पड़े। फाटा से केदारनाथ और केदारनाथ से फाटा तक के सफर के लिए आपको 6700 रुपये देने होते है। 

कुछ समय पश्चात एक  हेलीकॉप्टर उड़ता हुआ हमारे हेलिपैड पर उतर गया। यह सन्तरी कलर का पवन हंस कंपनी का हेलीकॉप्टर था। यह एक सरकारी कंपनी है। प्राइवेट कंपनियों के हेलीकॉप्टर तो सुबह से ही उड़ रहे थे। आधा घंटा बीत गया लेकिन हेलीकॉप्टर नही उड़ा। क्यो? क्या हुआ? यही सवाल सभी यात्री उधर बने आफिस में पूछ रहे थे। जबाव मिला कि तकनीकी खराबी है थोड़ा समय लगेगा। सुबहें के लगभग 9:30 पर हेलीकॉप्टर उड़ चला और पहले ग्रुप को ले गया। हमारा भी नम्बर लगभग 10 बजे आ ही गया और हम भी हेलीकॉप्टर पर सवार हो गए। मैं आगे बैठना चाहता था लेकिन मुझे बताया गया कि आगे सबसे हल्का भार वाला व्यक्ति ही बैठता है। और अपन का वजन 80 kg था इसलिए मैं पीछे ही बैठ गया। फाटा की एल्टीट्यूड लगभग 1550 मीटर है वही केदारनाथ की एल्टीट्यूड लगभग 3550 मीटर है। मतलब 2000 मीटर ज्यादा ऊंचाई पर पहुचना होगा वो भी 8 मिनट में। अब हमारा हेलीकॉप्टर बहुत ऊँचाई पर उड़ रहा था। मंदाकिनी नदी के दोनों तरफ वाले केदारनाथ जाने वाले रास्ते साफ दिख रहे थे। एक रास्ते पर चहल पहल दिख रही थी क्योंकि यह नया रास्ता था जो 2013 कि प्रलय के बाद बना था और दूसरी तरफ वाला जगह जगह से टूटा हुआ दिख रहा था। अब यह रास्ता बंद हो चुका है। हेलीकॉप्टर में वायुदाब के कारण हमारे कान में हवा भर जाती महसूस हो रही थी। मेरे बेटे को तो कान में दर्द भी हो गया था। पड़ोस में बैठी एक सवारी काफी डरी हुई दिख रही थी वो राम नाम का जाप कर रही थी। लेकिन मुझे हेलीकॉप्टर में बहुत अच्छा लग रहा था। हेलीकॉप्टर से बर्फीले पहाड़, नीचे बहती नदी और पूरी केदार घाटी के दर्शन जो हो रहे थे। काश में हेलीकॉप्टर में आगे बैठ पता। हेलीकॉप्टर से बर्फ के पहाड़ बेहद नजदीकी से दिख रहे थे। जिनकी एक झलक पाते ही यात्रियों की यात्रा रोमांचक हो उठती है। कुछ ही देर बाद केदारनाथ मंदिर व आसपास की इमारतें दिखने लगी थी। कुछ ही मिनटों में हम केदारनाथ हेलिपैड पर उतर चुके थे। उतरने के बाद हमें पता चला कि यहां पर कितनी ठंडी हवा चल रही थी और कितना ठंडा मौसम था। हेलीपैड से मंदिर तक की दूरी मात्र 500 मीटर ही है। हम सीधा मंदिर की तरफ ही चल पड़े चल पड़े वैसे सीधा एकदम नहीं चलना चाहिए इसका ज्ञान हमे बाद में पता चला। हुआ यू की एक बुजुर्ग दंपति हेलीकॉप्टर से आये और सीधा मंदिर आ गए। उन ऑन्टी को ऑक्सीजन की कमी जैसे माहौल में बड़ी दिक्कत हुई उनको आर्मी वाले अपने कैम्प में लेकर गए । इसलिए अगर आप हेलिकॉप्टर से आ रहे हैं तो थोड़ी देर रुके । चाय-पानी पिए या थोड़ी देर आराम करें उसके बाद चले। क्योंकि हमारी बॉडी एकदम से मौसम के अनुकूल नही हो पाती है उसको थोड़ा समय चाहिए होता है। अन्यथा आपको चक्कर आना, उल्टी होना या सर दर्द होना स्टार्ट हो सकता है। यही लक्षण मेरे बेटे को हो गया उसके कान में दर्द तो था अब सर में दर्द में दर्द भी होने लगा था। हमने उसे थोड़ी देर मंदिर के पास ही बिठाया लेकिन उसको कोई आराम नहीं लग रहा था। वह थोड़ा चिड़चिड़ापन भी महसूस कर रहा था। 
फाटा होटल से सुबहे का फोटो 


हेलिपैड 

हेलीकाप्टर आ गया। 
मन्दाकिनी नदी के दोनों तरफ वाले रास्ते दिख रहे है एक टुटा हुआ है तो एक पर कैंप लगा हुआ.

हेलीकाप्टर से केदारनाथ मंदिर व अन्य इमारते दिखती हुई। 

चलो भई चलो केदार धाम 

देवांग थोड़ा आराम कर ले। 

चलो अब दर्शन कर लेते है। 

मैं और देवांग लाइन में दर्शन के लिए 

थोड़ी देर बाद एक पंडित जी हमारे पास आए जो अंदर हमारे पूजा कराने के लिए बोल रहे थे। हमने ₹251 उनको देने तय किया और पूजन कराने के लिए हम उनके साथ मंदिर में चले गए। हम अपने साथ कुछ पूजा का सामान भी लेकर आए थे। हमने अंदर शिवलिंग को जलाभिषेक किया। यहां आकर हमें बहुत अच्छा लगा। लगा कि जैसे हम भगवान केदारनाथ के समक्ष ही बैठे हुए थे। उनकी कृपया हम पर थी, जो हमें इतने अच्छे दर्शन हुए इतने खुले दर्शन हुए। केदारनाथ मंदिर दो भागों में बना है एक बाहरी कक्ष जिसमे एक पीतल के नंदी जी विराजमान है व दीवार की चारो तरफ पांचो पाण्डवो की मूर्तियां बनी है। एक अंदर वाले मुख्य कक्ष में जहां साक्षात शिव पिंडी रूप में विराजमान है। यहां शिव ज्योतिर्लिंग(11 वे) के रूप में विराजमान है। केदारनाथ धाम के कपाट अक्षय तृतीया से भाई दूज तक भक्तों के लिए खुले रहते है। फिर बाबा शीत काल में आराम करते है। अर्थात कपाट बंद हो जाते है। बाकी सर्दियों में इनकी पूजा ऊखीमठ में होती है।

मंदिर से जुड़ी एक कथा है। कथा कहती है कि पांडव महाभारत युद्ध (कुरुक्षेत्र युद्ध ) के बाद अपने पापों से मुक्त होने के लिए भगवान शिव को ढूंढते-ढूंढते केदारखंड की इस जगह पहुँचे। लेकिन भगवान शिव पाण्डवों से अप्रसन्न थे। पाण्डवों को आया देख शिव ने भैसे का रूप धारण कर लिया और भैस-भैसे के झुंड में शामिल हो गये। लेकिन महाबली भीम ने जान लिया की शिव इसी झुंड में शामिल है और शिव को पहचान ने के लिए महाबली भीम एक गुफा के मुख के पास पैर फैलाकर  खड़े हो गए। सभी भैस और भैसे उनके पैर के बीच से होकर निकलने लगे लेकिन भैसे बने शिव ने  भीम के पैर के बीच से जाना स्वीकार नहीं किया इससे भीम ने शिव को पहचान लिया। इसके बाद शिव वहां भूमि में विलीन होने लगे तब भैसे बने भगवान शंकर को भीम ने पीठ की तरफ से पकड़ लिया और तब भगवान शंकर ने पाण्डवों को दर्शन दिए और उन्हें पापों से मुक्त कर दिया।

हम लगभग 15 मिनट मंदिर में रहे और फिर बाहर आ गए। अब हम केदारनाथ मंदिर के पीछे वाले हिस्से में पहुँचे। इधर एक बहुत बड़ी शिला थी जिसकी लोग पूजा कर रहे थे। यह शिला (बोल्डर) या बहुत बड़ा पत्थर प्रलय के समय पानी के साथ बहता हुआ आया था। कुछ लोग कहते है कि यह गांधी सरोवर(ग्लेशियर झील) से बहता हुआ आया था । 16 जून 2013 की शाम आयी प्रलय में यह बहता हुआ ठीक मंदिर के पीछे आकर रुक गया और जिस जलधारा ने प्रचंड कोहराम मचा दिया था। इस शिला की वजह से मंदिर बच गया क्योंकि इसकी वजह से धारा दो भागों में बंट गई और केदारनाथ मंदिर सुरक्षित बच गया। मैंने भी उस शिला को स्पर्श किया और मन ही मन भगवान शिव को याद किया। फिर हम मंदाकिनी नदी के तट पर भी गए।

जय केदार 









मंदिर के पीछे यही शिला बहती हुई आयी थी इसी को भीम शिला कहते है। 




बाबा जी फ़ोन वाले 


भैरोनाथ मंदिर 


हम लगभग 11:30 पर वापिस हेलीपैड पहुँच गए। काफी देर हो गयी लेकिन पवनहंस का हेलीकॉप्टर नही दिखाई दिया। मैं उनके एक ऑफिसर से बात की तो पता चला कि हेलीकॉप्टर में कुछ तकनीकी प्रॉब्लम है । ठीक होते ही सेवाएं चालू हो जाएंगी। अब हमारे पास इंतजार के अलावा कोई चारा नही था। हल्की हल्की बारिश स्टार्ट हो गयी और सफेद कोहरे ने पूरी केदारनाथ घाटी को अपने कब्जे में ले लिया। उधर देवांग(बेटे) होटल जाने की जिद्द करने लगा। एक बार मन मे आया कि चलो पैदल ही चलते है। लेकिन हेलीकॉप्टर कर्मचारी ने बताया कि मौसम साफ होते ही हेलीकॉप्टर आ जायेगा। लगभग शाम के 4 बज चुके थे। मौसम साफ हो गया।  सभी कंपनियों के हेलीकॉप्टर उड़ने चालू हो गए। हमारी पवन हंस कंपनी के हेलीकॉप्टर ने भी दो तीन राउंड लगाएं। लेकिन जब हमारा नंबर आना था। उससे पहले ही मौसम बिगड़ गया। तेज बारिश होनी स्टार्ट हो गई ऊपरी पहाड़ों पर बर्फबारी चालू हो गई जिस कारण ठंड बहुत बढ़ गयी थी। बिजली कड़क रही थी हल्का हल्का अंधेरा हो चुका था। साथ मे एक बुरी खबर भी मिली कि आज की हेलीकॉप्टर सेवाएं बंद कर दी गई है । अब कल ही सेवाएं चालू होंगी। अब हमें आज रात केदारनाथ में ही रुकना था। हम गर्म कपड़े साथ में नहीं लाये थे। देवांग को काफी ठंड लग रही थी और बुखार भी हो गया था।अब मैंने सबसे पहले मैंने रूम लेने की सोची मैं gmvn के ऑफिस गया, वहां पर मैंने 700 रुपये की दो डॉरमेट्री ले ली ली। और एक रूम में जाकर लेट गया देवांग के लिए आर्मी कैम्प से बुखार की दवाई भी ले आया और साथ मे एक मैग्गी भी बनवा ली और देवांग को खिलवा भी दी। बारिश तेज हो चुकी थी और पूरे केदारनाथ में लाइट भी चली गयी। ठंड इतनी थी कि बारिश का रुका पानी भी जम जा रहा था। देवांग सो चुका था। कमरे में एक परिवार के लोग और भी थे। जो प्रलय की बात करने लगे कि कैसे कैसे लोगो ने रात काटी। कितने मर गए और कितने कैसे कैसे बचें।  समय लगभग 7:30 का था जब में बारिश में ही आर्मी कैम्प में बनी एक मेस(रसोई) में गया। उधर 250 रुपयों की खाने की थाली मिल रही थी। एक थाली ले ली उधर फौजियों में लाइट को लेकर बात चल रही थी कि चमोली साइड बादल फट जाने के कारण पूरे एरिया में लाइट नही है। उधर मंदिर में घंटियों की आवाज आ रही थी। लेकिन इतना थका होने के कारण ना आरती में गया और ना लाइट एंड साउंड शो देखने। वैसे आज मौसम ही अपना लाइट एंड साउंड शो दिखा रहा था। मैंने ऐसी रात की कल्पना बिल्कुल भी नही की थी जैसी आज की रात थी मेरी केदारनाथ में। खाने की थाली रूम तक लेकर आया। मेरा बेटा तो पहले ही सो चुका था इसीलिए उसको उठाया नही और हम दोनों ने ही वह खाना खाया और सोने के लिए चले गए।
हेलीपैड पर अपना हेलीकाप्टर नहीं था। 

मौसम ख़राब होना शुरू हो गया था। 


रात को इतनी ठण्ड थी की बारिश का पानी भी जम जा रहा था टीन से गिरता पानी बर्फ बना हुआ है फोटो में 

अगले दिन( 03 मई 2018)
सुबह 6 बजे के आसपास आँख खुली। अब बारिश रुक चुकी थी लेकिन सर्दी बहुत थी, खैर बिस्तर से उठ गए। कैम्प के नजदीक बने टॉयलेट में फ्रेश हो आया। अब उजाला हो चुका था। मेरा बेटा भी उठ चुका था अब वह बिल्कुल सही दिख रहा था। सर दर्द या बुखार बिल्कुल नही था उसको। उठते ही उसने मेरा कैमरा लिया और बाहर कुछ फोटो लेने लगा। बाहर आज का नजारा कल से कुछ अलग था। केदारनाथ के तीनों तरफ ऊपर बर्फीली चोटियां है जिनपर ताज़ी पड़ी बर्फ  चमक रही थी। सूर्य की कुछ किरण चोटियों पर पड़ रही थी जिससे वह स्वर्ण सी लग रही थी। शीतल हवा चल रही थी। 
सुबहे मौसम साफ़ था। 

सुबहे 



अब कुछ चाय की दुकानें खुल चुकी थी और हमने गरमा गरम चाय पी और हेलीपैड की तरफ चल पड़े। सुबहें लगभग 7 बजे हेलीकॉप्टर सेवा स्टार्ट हो गयी थी । लेकिन अभी हमारे वाला हेलीकॉप्टर आता नही दिख रहा था। थोड़ी देर बाद देवांग तेज़ी से बोला कि पा...पा वो देखो हमारा हेलीकॉप्टर आ गया मैंने देखा कि सन्तरी रंग का हेलीकॉप्टर उड़ता आ रहा है। और देवांग के मुख पर एक खुशी भी थी। पहले नंबर हमारा ही था इसलिए  हम हेलीकॉप्टर में सवार होकर कुछ ही मिनटो में फाटा पहुँच गए और अपनी कार लेकर वापसी के लिए चल पड़े। जाना तो हमे कालीमठ और त्रिजुनिनारायन मंदिर भी था। लेकिन अब कार्यक्रम बिगड़ चुका था इसलिए यह जगह कभी आग की यात्रा में देखी जाएंगी और हम लगभग शाम के सात बजे हरिद्वार पहुँच गए जहाँ रात में रुककर अगले दिन आपने घर को निकल गए।
हेलीपैड पर 

देवांग हेलीकाप्टर में 

रुद्रप्रयाग 

देवप्रयाग 

हरिद्वार 

मैं सचिन त्यागी