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रविवार, 30 दिसंबर 2018

मेरी केदारनाथ यात्रा ( ख़िरसू )

मेरी केदारनाथ यात्रा 
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ख़िरसू, पौड़ी गढ़वाल
30 अप्रैल 2018, मंगलवार 
जब हम ज्वाल्पा देवी से चले तब दोपहर के लगभग 3:30 बज रहे थे। वैसे तो हमें आज के दिन कलडूँग में गो हिमालय के होमस्टे पर रुकना था। लेकिन मेरे मित्र बीनू कुकरेती जी से जब मेरी बात हुई तो उन्होंने कहा जब इधर घूमने आ ही रहे हो तो फिर ख़िरसू घूम कर आना। उन्होंने बताया कि ख़िरसू एक बहुत सुंदर जगह है। और उधर से हिमालय के दर्शन भी बहुत बढ़िया से होते है। चौखम्भा पर्वत भी दिखता है। इसलिए हमने ख़िरसू में ही रुकने का प्लान कर लिया।

ज्वालपा देवी से ख़िरसू की दूरी लगभग 41 किलोमीटर है। जो हमने लगभग डेढ़ घंटे में पूरी कर ली थी। पूरा रास्ता पहाड़ी घुमावदार ही है। रास्ते मे कई गांव आते है उन्ही में एक स्थान आता है बुवाखाल। बुवाखाल से एक रास्ता बांए तरफ पौड़ी की तरफ चला जाता है। और फिर श्रीनगर के लिए। और एक रास्ता सीधा आगे ख़िरसू के लिए चला जाता है। इसी रास्ते पर आगे चोबट्टा आता है, बाद में ख़िरसू। हम ख़िरसू वाले रास्ते पर चल पड़े। कुछ समय बाद हमे सड़क के दोनों तरफ बड़े बड़े पेड दिखने शुरू हो गए। यह चोबट्टा था और यह बेहद सुंदर जगह थी। चोबट्टा से थोड़ा आगे ही ख़िरसू है शायद दो या तीन किलोमीटर। हमे ख़िरसू में प्रवेश करते ही काफी भीड़भाड़ दिखाई दी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई स्थानीय मेला चल रहा था। क्योंकि ज्यादातर लोग स्थानीय ही लग रहे थे, जब हम गढ़वाल मंडल के गेस्ट हाउस (gmvn) पहुंचे। तब हमें पूरी तरह पता चल चुका था कि यह एक वार्षिक मेला है जो अभी अभी समाप्त हुआ है। इसलिए भीड़ ज्यादा दिख रही है। GMVN के गेस्ट हाउस पहुंचते ही हमने एक रूम (hut) ले लिया। मैंने यह रूम इसलिए लिया क्योंकि इस रूम की खिड़की से पर्दा हटाते ही अंदर से ही हिमालय दर्शन हो रहे थे। इस रूम के एक रात के ठहरने का किराया मुझे 1650 रुपये चुकाना पड़ा। जबकि यहां रुकने के और भी सस्ते विकल्प थे। अगर मुझे ख़िरसू gmvn गेस्ट हाउस की तारीफ करनी हो तो मैं इन शब्दों में करूँगा की यह काफी शांत व मनमोहक जगह पर बना है। यह खुली जगह पर बना है। एक तरफ जंगल दिखता है, तो दूसरी तरफ हिमालय। कुछ दिन एकांत में व्यतीत करने हो तो मोबाइल को बंद करके इधर रहा जा सकता है।
खिर्सू 


गेस्ट हाउस के सामने एक सूखा पेड़ था। उस पर कुछ लंगूर बैठे हुए थे। जो उछलकूद कर रहे थे। गेस्ट हाउस में ही तरह तरह के पौधे लगे हुए थे। जिनपर फल व फूल भी लगे हुए थे। जो हर किसी को अपनी और आकर्षित कर रहे थे। यहां से चौखम्बा पर्वत समेत अन्य कुछ पहाड़ियों के भी दर्शन हो रहे थे। गेस्ट हाउस में हमारे अलावा दो तीन फैमिली और रुकी हुई थी। एक परिवार जो दिल्ली से ही आया हुआ था। जब उनसे बात हुई तो उन्होंने बताया कि उन्हें आये इधर अभी दो दिन ही हुए है, वह हर साल इधर ही आते है। और तीन- चार दिन रहते है। उन्होंने इसका कारण यहाँ की हवा, पानी व वातावरण को बताया जो उन्हें इधर हर साल बुलाती है। एक परिवार से और मिला वह हमारे शाहदरा से ही थे और मेरे एक अंकल के जानकार भी निकले और साथ मे मेरे घुमक्कड़ मित्र व गो हिमालय होम स्टे के मालिक सूर्य प्रकाश डोभाल जी के मामा भी निकले। उन्होंने बताया कि वह ख़िरसू के ही है लेकिन कई सालों बाद यहां आए है। इन सभी लोगो से बात करके अच्छा लगा।









वैसे मेरी नज़र में ख़िरसू कोई हिल स्टेशन नही है, बल्कि एक गांव ही है। यह मसूरी और नैनीताल जैसा नही है। इसका यह कारण है कि जब उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश से अलग हुआ तब ख़िरसू व ऐसे कुछ गांव पर्यटन मानचित्र पर उभर कर आये। उत्तराखंड सरकार ने कुछ ऐसी जगहों को प्रमोट किया। उन्ही जगहों में ख़िरसू भी है। अभी यहाँ gmvn के गेस्ट हाउस समेत एक दो होटल ही मात्र है, बाकी होमस्टे भी हो सकते है। घूमने के लिए एक मनोरंजन पार्क बना है। और घंडियाल देवता का मंदिर है, जो एक बड़े से मैदान के पास बना है। यह यहां के स्थानीय देवता है और पूजनीय भी। सालभर यहाँ मौसम ठंडा और अच्छा ही रहता है। गर्मियों में यहां बहुत भीड़ होती है। यह समुंदर की सतह से लगभग 1750 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। इसके आस पास घने जंगल है। यहां चीड़, देवदार, बांज आदि के दरख़्त(पेड़) पाए जाते है। इसलिए यहाँ की हवा में स्वच्छता है। इधर कई तरह-तरह के पक्षियों को देखा जा सकता है। कुल मिलाकर यह एक सुंदर जगह है जहां पर आप शांति से कुछ पल बिता सकते हैं।

हम अपने रूम में पहुँचे ही थे कि जोर जोर से बारिश होने लगी। अब ठंडक पहले से बढ़ गयी थी। लेकिन बारिश थोड़ी देर बाद ही रुक गयी। जैसा अकसर पहाड़ो की बारिश होती था थोड़ा पड़ी और रुक गयी। फिर हमने गरमा गरम चाय पी और बाहर ख़िरसू घूमने के लिए निकल गए। हम एक बड़े से मैदान में पहुँचे। कुछ लोग अपनी दुकानें समटने में लगे थे। क्योंकि मेला आज थोड़ी देर पहले ही समाप्त हुआ था। सामने ही एक मंदिर दिख रहा था। वही घंडियाल देवता का मंदिर है, एक बच्चे ने मेरे पूछने पर बताया। मंदिर का बाहरी गेट खुला था। लेकिन अंदर वाला चेनल (गेट) बंद था। चलो कोई बात नही, हमने मंदिर देखना था और देवता को प्रणाम करना था। वो हमने कर ही लिए थे। अब मेरा बेटे देवांग को भूख लगने लगी थी इसलिए हम वापिस गेस्ट हाउस में लौट आये। क्योंकि ख़िरसू में खाने के लिए हमे कोई रेस्टोरेंट नही दिखा। गेस्ट हाउस पहुचे तो हल्का अंधेरा होने लगा था। सामने स्वेत हिम पर्वतों पर ढ़लते सूरज की लालिमा पड़ रही थी। तभी गेस्ट हाउस की लाइट चली गयी थोड़ी देर बाद एक कर्मचारी आये उन्होंने एक माचिस और एक मोमबत्ती (कैंडल) हमे देते हुए कहा कि जबतक जनरेटर नही चलता आप कैंडल जला लीजिएगा। उन्होंने खाने का भी आर्डर ले लिया था। वैसे आधे घंटे में जनरेटर भी चल गया और खाना भी आ गया। बारिश फिर से चालू हो गयी थी। और थोड़ी देर में बंद भी। क्योंकि पहाड़ों पर बारिश ऐसी ही होती है। खाना खाने के बाद मैं टहलने के लिए बाहर आया लेकिन सर्द हवाओं की वजह से वापिस कमरे में जाकर रजाई में घुस गया।
घंडियाल देवता मंदिर 


मैं सचिन मंदिर पर (घंडियाल देवता के )



अगले दिन
01 मई 2018, बुधवार
सुबह उठ गया समय देखा तो  5:15 बज रहे थे। जल्द ही बिस्तर से निकला और कैमरा उठा कर बाहर आ गया। बाहर ठंडी हवा चल रही थी। हल्का अंधेरा था। चांद गोल और बहुत नज़दीक दिख रहा था। दो तीन चिड़ियो की आवाज तो आ रही थी पर वह दिख नही रही थी। चाय पीना का मन हुआ लेकिन 6:30 से पहले वो भी नही मिलेगी। थोड़ी देर घूमने के बाद वापिस रूम में लौट आया और खिड़की के पास ही बैठ गया। लगभग आधा घंटे बाद फिर बाहर आया। अभी दूर बर्फ के पहाड़ काले दिख रहे थे। लेकिन जब सूर्य अपनी रोशनी से इन्हें जगमग करेगा तो पल पल में बहुत से रंग दिखेंगे। आसमान में बादल थे इसलिए हो सकता है कि वो फ़ोटो ना ले पाऊ जो मुझे लेने थे। अब गेस्ट हाउस में बाहर थोड़ी हलचल बढ़ी और एक कपल जो कि कोलकाता से आये थे। उनसे बात हुई उन्होंने बताया कि वो आज चोपता तुंगनाथ जायंगे। वैसे मैंने देखा वेस्ट बंगाल के लोग काफी घूमते है। अब उजाला हो चुका था। और थोड़ा कोहरा भी था। दूर चौखम्बा पर्वत व अन्य पर्वतों पर बदल छाए हुए थे। वो साफ नही दिख रहे थे। चाय रूम में पहुँच चुकी थी इसलिए मैं भी रूम की तरफ बढ़ चला। और बाद में हम लोग गेस्ट हाउस से नाश्ता करने के बाद सुबह के लगभग 9 बजे आगे के सफर पर निकल गए.......




बर्फ के पर्वत अभी श्याम रूप लिए हुए है। 

अब थोड़ा प्रकाश आया सूर्य का। 

आड़ू 






यात्रा अभी जारी है. .....


शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

मेरी केदारनाथ यात्रा (दिल्ली से ज्वाल्पा देवी मंदिर)

मेरी केदारनाथ यात्रा
ज्वाल्पा देवी मंदिर, पौड़ी गढ़वाल

ज्वाल्पा देवी मंदिर , पौड़ी गढ़वाल 

केदारनाथ नाम सुनते ही मन मस्तिष्क में हिमालय की हिमाच्छादित पर्वतीय चोटियों के बीच एक मंदिर की तस्वीर दिखलाई पड़ती है। केदारनाथ धाम के बारे में यह कहा जाता है कि जो व्यक्ति केदारनाथ जाता है उसपर तो शिव की कृपा होती ही है बल्कि जो व्यक्ति केदारनाथ धाम जाने की सोचता भी वह भी शिव की कृपा पाता है। इसलिये मेरा भी बहुत सालों से मन था केदारनाथ बाबा के दर्शन कर आऊं लेकिन हर बार प्रोग्राम किसी ना किसी कारण रदद हो ही जाता था। पिछले वर्ष 2017 में मैने तृतीय केदार तुंगनाथ महादेव की यात्रा की थी। वापिसी में केदारनाथ धाम जाने की सोची लेकिन उस यात्रा के सहयात्री ललित को एक अर्जेंट काम आ पड़ा और हम कुंड नाम की जगह से ही वापिस लौट आये थे। इस वर्ष 2018 में भी कुछ घुमक्कड़ (घुमक्कड़ी दिल से) दोस्तो का केदारनाथ यात्रा पर जाने का प्रोग्राम बना। अपना मन भी जाने को मचल पड़ा लेकिन उससे पहले ही मेरा छोटा सा एक्सीडेंट हो गया और मेरे बांये पैर की सबसे छोटी अंगुली मे क्रेक आ गया और चालीस दिन के लिए पैर पर प्लास्टर बंध गया। फिर भी मैं, दोस्तो के बनाये एक वाट्सएप्प ग्रुप केदारनाथ यात्रा से जुड़ा रहा और ग्रुप में बातों को पढ़ता रहा और जानकारी भी लेता रहा। और जैसे जैसे समय बितता गया केदारनाथ जाने की लालसा और प्रबल होती गयी। लेकिन अभी भी मेरे पैर में दर्द था। सभी दोस्त 27 अप्रैल को तय यात्रा पर निकल गए। इसी बीच मेरे मन में ख्याल आया कि क्यों ना यह यात्रा हेलीकॉप्टर द्वारा की जाए। जिससे मुझे चलना भी नही पड़ेगा। बाकी गाड़ी चलाने में मुझे कोई दिक्कत नही आने वाली थी। क्योंकि मेरी कार ऑटोमैटिक है, उसमें बांये पैर को पूरा आराम मिलता है। मैंने हेलीकॉप्टर के टिकेट के लिए गूगल पर बहुत सर्च किया और पाया कि अभी हेलीकॉप्टर बुकिंग खुली नही है। इसलिए एक एजेंट को बोल दिया कि 2 मई के टिकेट हो तो तीन टिकट बुक कर देना और अगर इस तारीख की नही मिले तो फिर रहने देना। 28 अप्रैल की रात को तकरीबन 8 बजे मैं अपने ऑफिस में बैठा था। तभी उस एजेन्ट का फ़ोन आया कि पवन हंस जो कि सरकारी हेलीकॉप्टर कंपनी है। उसकी साइट अभी अभी खुली है और 2 मई की फाटा से केदारनाथ की आने-जाने टिकट Rs6700 में मिल रही है। मैंने उसको तुरंत ऑनलाइन पेमेंट कर दी और कुछ ही देर बाद उसका फ़ोन आया कि आपकी टिकट कंफर्म हो गयी है और उसने टिकट मुझे मेरी मेल पर भेज दी है। अब मैने घर पर फ़ोन कर के यह सारी बात बता दी कि हमे 30 अप्रैल को सुबह केदारनाथ यात्रा पर निकल पड़ना है और कल तक सभी सामान पैक कर लेना है। मैंने चारधाम यात्रा का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन पहले ही कर लिया था। जिसकी 50 रुपए प्रति व्यक्ति फीस भी लगी थी।

30 अप्रैल 2018 सोमवार
इस यात्रा में मेरे अलावा मेरी श्रीमती व मेरा बेटा थे।  सुबह हमने 6 बजे दिल्ली स्तिथ घर से यात्रा शुरू कर दी। जल्द ही हम गाजियाबाद हिंडन के पुल को पार कर राजनगर एक्सटेंशन से होते हुए मुरादनगर गंग नहर पहुंचे। अभी फिलहाल हमें मुरादनगर में जाम नहीं मिला मुरादनगर में अक्सर जाम मिल जाता है। मैंने कल ही अपने मामा के लड़के से मुरादनगर गंगनहर वाला रास्ते का पता लगा लिया था और यह जान लिया कि यह रास्ता फिलहाल खतौली तक बेहतरीन बना है। यह रास्ता आगे सीधा मंगलौर तक चला जाता है लेकिन अभी वो ठीक नही है। हम गंगनहर के किनारे वाले वाले रोड पर सीधे चलते रहे। अब यह रोड काफी चौड़ा हो चुका है और आराम से गाड़ी सरपट दौड़ती चलती है। जल्द ही जल्द ही हम खतौली पहुंच गए। खतौली से मैं जानसठ- मीरापुर- कोटद्वार वाला रोड पर चल दिया। यह एक सिंगल रोड है। लेकिन ज्यादा ट्रैफिक नहीं है इस रोड पर हम आराम से इस पर चलते हुए लगभग 10:30 बजे के करीब हम कोटद्वार पहुंचे। कोटद्वार मैं पहले भी आया हूं, यहां पर हनुमान जी का एक मंदिर है जिसको सिद्धबली मंदिर कहा जाता है। लेकिन अब की बार जो की मैं परिवार के साथ आया था और हम सभी हनुमान जी के दर्शन करना चाहते थे। इसलिए मैंने गाड़ी को पार्किंग में खड़ी की और सिद्धबली मंदिर की तरफ चल पड़े। सिद्धबली मंदिर खोह नदी के किनारे एक टीले पर बना है। जब पिछली बार मैं यहां पर आया था। तो कपाट बंद हो रहे थे और बड़ी मुश्किल से मुझे बाबा के दर्शन हो पाए लेकिन आज जब मैं पहुंचा तो मंदिर के कपाट खुले हुए थे और सभी भक्त हनुमान जी के दर्शन कर रहे थे। हमने भी दर्शनों का लाभ लिया और कुछ वक्त मंदिर में बिता कर वापिस नीचे पार्किंग की तरफ चल पड़े। फिर हम गाड़ी में बैठकर आगे के सफर के लिए निकल पड़े।
मंदिर के लिए कुछ सीढ़िया चढ़नी पड़ती है। 

मुख्य मंदिर व हनुमान जी ( सिद्धबली बाबा )





यहां से आगे हम दुगड्डा नाम जी जगह पहुँचे। यहाँ से एक रास्ता नीलकंठ महादेव के लिए भी चला जाता है। दुग्गड़ा से आगे चलकर एक मोड़ आता है। यहाँ से दो रास्ते अलग हो जाते है। एक रास्ता लैंसडौन के लिए चला जाता है जो कि 22 किलोमीटर दूरी पर है। और दूसरा रास्ता गुमखाल के लिए जो कि 14 किलोमीटर दूरी पर है। वैसे लैंसडाउन वाला रास्ता भी वापिस गुमखाल में ही मिल जाता है। लेकिन यह तक़रीबन 18 km ज्यादा पड़ता है। इसलिए हम गुमखाल की तरफ जाते रास्ते पर मुड़ गए। इसको मेरठ- पौड़ी रोड भी कहते हैं। क्योंकि यह सीधा रास्ता पौड़ी की तरफ चला जाता है और हमें भी पौड़ी के रास्ते से ही जाना था। थोड़ी दूर चलने के बाद लंबे लंबे चीड़ के वृक्ष सड़क के दोनों तरफ दिखाई दे रहे थे। ऐसा लग रहा था, जैसे एक जन्नत में आ गए हो। चारों तरफ हरियाली फैली थी और रास्ते पर एक या दो गाड़ी ही दिख रही थी। वातावरण में शुद्ध हवा थी। आँखों को यह सब अच्छा लग रहा था। ज्यादातर ऐसे मेरे साथ होता है जब भी मैं ऐसे स्थान को देखता हूँ तो मैं गाड़ी थोड़ी देर रोक ही लेता हूँ। इसलिए आज भी रुक गए, कुछ समय हमने यहां बिताया और हम आगे की तरफ निकल गए। गुमखाल से थोड़ा सा ही आगे चलने पर एक तिराहा आता है। यहां से एक रास्ता बांये तरफ जाते हुए द्वारीखाल पहुंचता है और फिर यह रास्ता आगे नीलकंठ होते हुए ऋषिकेश निकल जाता है। इसी रोड पर मेरे दोस्त बीनू का गांव बरसूडी भी है। बहुत सुंदर गांव है आने वाले सितम्बर को इस गांव में आना होगा हम कुछ दोस्तों का। दूसरा रास्ता पौड़ी की तरफ चला जाता है इसी रास्ते पर सतपुली नामक जगह पड़ती है जहाँ से एक रास्ता देवप्रयाग चला जाता है। और एक पौड़ी के लिए, हम उसी पौड़ी रोड पर ही आगे चल रहे थे। सतपुली से तकरीबन 20 किलोमीटर चलने पर उत्तरी नयार नदी के किनारे ज्वाल्पा देवी का प्राचीन मंदिर है। हमने गाड़ी के ब्रेक मंदिर के बाहर ही लगाए और सीधा मंदिर की तरफ चल पड़े। मंदिर सड़क से कुछ दूरी पर नीचे नदी के किनारे पर बना हुआ है। इस मंदिर से जुड़ी एक कथा है।

कथा के अनुसार यहां पर पुलोमा नामक असुर की पुत्री शची, देवताओ के राजा इंद्र को पति के रूप में पाना चाहती थी। इसलिए शची ने इस जगह पर माँ पार्वती की आराधना की थी। तब पार्वती जी ने यहां पर ज्वाला रूप में शची को दर्शन दिए और उनको मन वांछित वर भी दिया। जिसके कारण उसने इंद्र को अपने पति के रूप में पाया। मां पार्वती ने यहां पर ज्वाला के रूप में शची को दर्शन दिए थे इसलिए आज भी माँ पार्वती एक अखंड ज्योति रूप में इस मंदिर में विराजमान है। और हर भक्त की मनोकामना पूर्ण करती है।

ये रास्ते 

ये रास्ते 

ज्वाल्पा देवी मंदिर द्वार सड़क से 


हम थोड़ी देर बाद मंदिर में पहुँच गए। मंदिर नयार नदी के किनारे ही स्तिथ है। रुकने के लिए एक धर्मशाला भी बनी थी। हमने माता के दर्शन किये। पुजारी जी ने एक कथा और बतायी इस मंदिर से जुड़ी। उस कथा के अनुसार इस जगह कुछ व्यापारी रात को रुके। वह नीचे शहर से कुछ सामान लाये थे। अगली सुबह जब सभी व्यापारी चल पड़े तो एक व्यापारी की गठरी उठ नही पायी जब गठरी खोली गई तो उसमें माता की मूर्ति निकली। वही मूर्ति आज मंदिर में है।

हम दर्शन करने के पश्चात नयार नदी के किनारे पहुँचे। फिर हम नदी के किनारे एक बड़े से पत्थर पर बैठ गए। नदी की कल कल बहती धारा बहुत सुंदर लग रही थी। और जल के प्रवाह की आवाज भी कानो में पड़ रही थी। आस पास कुछ लोग और भी थे। जो अपनी सेल्फी लेने में मस्त थे। पास में ही एक लोहे का पुल बना था। जो शायद नयार के पार किसी गांव के लिए बनाया गया होगा। बीच बीच मे मंदिर की घंटियों की बजने की आवाज़ आ जाती थी। कुछ समय यहाँ बिताने के बाद हम ऊपर सड़क पर पहुँच गए और आगे के सफर पर निकल पड़े।
ज्वाल्पा देवी मंदिर 






यात्रा अभी जारी है. ...
part 01 jawalpa devi
part 02(khirsu)
part 03 devalgarh
part 04 kedarnath temple