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गुरुवार, 29 जनवरी 2015

Delhi red fort(लाल किला)

बहुत दिनो से कही घुमना नही हो रहा था,कही घुमने नही गया काम की वजह से,इसलिए एक दिन दिल्ली के लाल किला भ्रमण की योजना बना ली,घर पर मेरा भांजा आयुष आया हुआ था,वह इंजनियरिगं कर रहा है,छुट्टीयों में यहा आया हुआ था,मेने उससे पूछा की लाल किला चल रहा है क्या? उसने तुरंत चलने की हामी भर दी,हम दोनो स्कूटी पर बैठ कर सुबह 10 बजे के आसपास अपने घर से लाल किले के लिए निकल पडे...........................

(इतिहास-लाल किला लाल बलुआ पत्थर से बना है,इसलिए इसका नाम लाल किला पडा,मुगल शासक शाहजहां ने आगरा से अपनी राजधानी बदल कर दिल्ली को अपनी नयी राजधानी बनाया,शाहजहां ने सन् 1628-58 मे लाल किला बनवाया,शाहजहां ने एक शहर बसाया जिसका नाम दिया गया"शाहजहांनाबाद".जो यमुना नदी के किनारे ही बसाया गया.बाद मे औरंगजेब व बहादुरशाहंजफर मुगल शासको ने भी लाल किले मे निर्माण कराए,सन् 1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश सेना ने लाल किले को अपने कब्जे मे ले लिया ओर यहां छावनी बना दी गई,लाल किले मे ही अंग्रेज हुकुमत ने आखिरी मुगल शासक बहादुरशाहं जफर पर मुकदमा चलाया,

बाद में आजादी के बाद 15 अगस्त 1947 को हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नहरू जी यही लाल किले पर एक जनसभा बुलाई ओर देश की जनता से कहा की अब हम आजाद है,तब से आज तक 15 अगस्त को यहा लाल किले पर प्रधानमंत्री द्वारा तिरंगा फहराया जाता है,

लाल किले में प्रवेश के दो गेट है पहला है दिल्ली गेट जिसमे केवल  vip लोगो ही जा सकते है बाकी सभी पर्यटको के लिए लाहोरी गेट है,)

मै ओर मेरा भांजा आयुष जब लाल किले पर पहुचें तो देखा की लाहौरी गेट पर बहुत लम्बी लाईन लगी है किले में प्रवेश के लिए,तब मेने आयुष से कहा की ऐसा करते है की मै लाईन मे लगा रहता हुं तब तक तुम टिकट ले आओ,मैने उसको 50र० देकर टिकेट लेने के लिए भेज दिया जो लाहौरी गेट के सामने ही है,दस मिनट बाद वह बगैर टिकट लिए आया ओर बोला की मामा कैमरे का टिकेट 25 र० का है,ओर पैसे दे दो तब मेने उससे कहा की वो विडियो कैमरे का टिकट होता है,सामान्य कैमरे का कोई टिकट नही लगता है,तब जाकर वह 10 रू० प्रतिव्यक्ति के हिसाब से दो टिकट ले आया ओर साथ मे रू 5 के दो संग्रहालय के टिकेट ओर ले आया,तब तक मे लाहौरी गेट के काफी नजदीक पहुचं चुका था,दोनो ने लाहौरी गेट से होते हुए लाल किले में प्रवेश किया,किले में घुसते ही छत्ता चौक आया यह एक पुराना बाजार है,जिसे मुगल शासक शाहजहां ने सन्1646 में बनवाया था,पहले बाजार खुले स्थान मे होते थे यह उस काल का पहला छत (कवर्ड)वाला शाही बाजार था जो दो मन्जिला था.

हम बाजार से होते हुए,एक अलिशान,खुबसूरत ईमारत में पहुचें,यह ईमारत थी दिवाने आम,यहां मुगल शासक विदेशी महमानो व फरीयादियो से रूबरू होते थे,वह यहां इंसाफ भी किया करते थे,यह भी लाल पत्थर से बना है पर मुगल शासक जहां बैठा करते थे,वह स्थान सफेद संगमरमर से बना है,ऊंचे ऊंचे खम्बो से बनी यह ईमारत बहुत सुन्दर दिखती है,

यहां से आगे चल कर हम दोनो पहुचें खास महल यह शाहजहां का निजी महल था,जहां शाहजहां खुदा की इबादत करता था,वह कुछ खास महमानो को भी यहां ठहराया जाता था,खाश महल के निचे रंग महल नामक एक महल था जहां शाहजहां हाथियों की लडाई व अन्य मनोरंजन के कार्यक्रम कराता था,हमारी इक्षा थी इसको देखने की पर वहा तीनो दरवाजो पर ताले लगे हुए थे.

खास महल के दाहिने होते हुए हम पहुचें मुमताजमहल,जोअब संग्रहालय के रूप मे प्रयोग के काम मे आ रहा है,यह पहले बहुत सुन्दर हुआ करता था पर अंग्रैजो ने इसे अपने काल मे जेल बना दिया था इसलिए उन्होने इसका पूरा स्वरूप ही बदल दिया,हम दोनो यहा पहुचें, यहां पर राजसी पौशाक ,कपडे ,बरतन वह बहुत सी कलाकृति,व बहुत सी अन्य चीजो को देखा जा सकता है पर यहां फोटो व विडियो बनाना सख्त मना है ओर जगह जगह कैमरे भी लगे है,

इसे देखकर हम दोनो पहुचें दिवाने खास,यह महल सफेद संगमरमर पत्थर से निर्मित हैं,सभी खम्बो पर नक्काशी हुई है.यह महल शाहजहां के विशिष्ट क्रर्मचारियो व शाही मित्रो से मुलाकात की जगह थी,इसके व महल के अन्य जगह भी  एक छोटी सी नहर बहा करती थी जो इन महलो को गर्मीयो मे ठंडा रखती थी,जब हम यहां पहुचें तो यहां पर मरम्मत का कार्य चल रहा था,इसलिए इसमे अन्दर नही जाने दिया लेकिन मै पहले वहां कई बार जा चुका हुं..

दिवाने खास के पास ही है मोती मस्जिद जिसे मुगल शासको में सबसे क्रूर माने जाने वाले शासक औरंगजेब ने निजी इबादत के लिए बनवाया यह भी सफेद संगमरमर से बनी है.

मोती मस्जिद के सामने ही बना है शाही हमाम घर जहां पर शाही परिवार नहाने के प्रयोग मे लाता था,यह भी किन्ही कारणो के कारण बंद था मेने एक खिडकी पर चढं कर इसके अन्दर के फोटो खिच लिए,तभी वहां पर एक गार्ड ने मुझे वहा से उतर जाने को कहा मैं वहा से सीधे एक छोटे से बाग में पहुचां,जिसके एक छोर पर सावन मंडप व दूसरे छोर पर भादो मंडप नामक दो छोटे छोटे हॉल बने थे ओर इनके बीच भी छोटी सी जलधारा बहती थी इसे शाहजहां ने बनवाया था,बाद मे मुगल शासक  बहादुरशाह जफर ने इन दोनो मंडपो के बीचो बीच लाल पत्थर से पानी के बीच जफरमहल नामक एक छोटा सा महल बनवाया.

इन्हे देखने के बाद हम पहुचें,शाह बुर्ज नामक इमारत पर जहां से यमुना का पानी महल मे चढाया जाता था ओर वह शाह बुर्ज से होते हुए,नहर-ऐ-बहिस्त नामक छोटी सी नहर या कहे ताजे पानी की नाला पूरे महल मे निकलती थी जो महल को ठंडा रखती थी वह बाग बगिचो की सिचांई करती थी,

लालकिला बाग बगिचो का किला था,जहां अंग्रैजो ने तोड फोड कर अपनी सेना के लिए नए निर्माण भी किए.यहा पर उन्होने रहने के लिए बहुमंजिला इमारत बनायी,जो आज भी देखी जा सकती है. 

यह सब देखकर हम बाहर की तरफ चल पडे,लेकिन अभी लाल किले में देखने को बहुत कुछ था जो हमने देखा भी,उसके बारे में आगे की पोस्ट में बताऊगा..




लाल किले के सामने मैं सचिन त्यागी
लाहौरी गेट
लाल किले का नक्शा
छत्ता चौक की दुकान
दिवाने आम
दिवाने आम में शाहजहां का तख्त
खास महल व नीचे नहर 
रंग महल में लगा हुआ ताला
दिवान-ए- खास
दिवाने खास
खम्बो पर नक्काशी
दिवाने खास
मोती मस्जिद
सावन मंडप
जफर महल
भादो मंडप
शाही हमाम
आयुष दिल्ली गेट के पास
शाह बुर्ज जहां पर यमुना से पानी ऊठाकर पूरे महल मे भेजा जाता था