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शनिवार, 2 मई 2020

काशी विश्वनाथ मंदिर-उत्तरकाशी

अब तक आपने पढ़ा कि हम गंगोत्री धाम के दर्शन करने के पश्चात गंगनानी के आसपास रुक गए थे अब आगे पढ़ें...

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31 मई 2019
kashi viswanath temple, uttarkashi

सुबह जल्दी ही उठ गए हैं और फ्रेश होने के पश्चात लगभग 6 बजे हम यहां से उत्तरकाशी की तरफ निकल चलें। कुछ किलोमीटर चलने पर भटवारी आया अभी दुकाने बंद थी इसलिए हम लगभग 30 km आगे चलकर उत्तरकाशी के बस स्टैंड पहुँचे। बस स्टैंड से काशी विश्वनाथ मंदिर मात्र 300 मीटर की दूरी पर ही। हम जल्द ही मंदिर के सामने थे। मंदिर के बाहर बैठे एक प्रसाद बेचने वाले से गंगा घाट के लिए रास्ता पूछा तो उसने रास्ता समझाते हुए बताया कि केदार घाट पर चले जाना, वह बहुत बढ़िया बना है। हमने पहले ही तय कर लिया था कि पहले गंगा घाट पर स्नान करेंगे फिर बाबा विश्वनाथ जी के दर्शन। मंदिर से लगभग 500 मीटर चलने पर ही केदार घाट पहुँच गए। यह घाट काफी साफ सुथरा दिख रहा था। सुबह-सुबह अभी कुछ औरतें व एक दो आदमी ही स्नान कर रहे थे। महिलाओं के लिए कपड़े बदलने की के लिए एक दो चेंजिंग रूम भी बने हैं। यह घाट कुछ कुछ हरिद्वार की हर की पौड़ी की याद दिलाता है लेकिन यह उससे काफी छोटा है। हरिद्वार में गंगा स्नान करना भी मुझे बड़ा ही आनंद प्रदान करता है।
खैर जब मैंने जल में पहला कदम रखा तो यह काफी ठंडा महसूस हुआ लेकिन यहां के जल की तुलना गंगोत्री के जल से करें तो उसके सामने यह कुछ भी ठंडा नही था इसलिए पहली डुबकी लगाकर फिर आराम से दस पंद्रह मिनट तक नहाया और खूब डुबकी भी लगाई। नहाने के पश्चात घाट के नजदीक ही मेरी कार भी खड़ी थी उसको भी गंगा जल से स्नान करा ही दिया। वापिस घाट पर आकर कपड़े बदल कर एक मंदिर जो केदारनाथ मंदिर से जाना जाता है और घाट के बेहद नजदीक भी है उसमें दर्शन के लिए गए। यह मंदिर छोटा है लेकिन अंदर भगवान केदारनाथ के भव्य दर्शन होते है। एक बार तो मुझे लगा कि जैसे हम वाकई केदारनाथ आ गए है। वैसी ही चट्टानी शिवलिंग बनाई हुई है जैसे केदारनाथ धाम में स्तिथ है।
उत्तरकाशी शहर व केदार घाट 

काशी विश्वनाथ मंदिर
घाट से चलकर हम थोड़ी ही देर में काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंच गए। मंदिर के बाहर दीवारों पर स्थानीय लोगों ने या फिर प्रशासन की तरफ से पेंटिंग की हुई है जो बहुत अच्छी दिख रही थी। मंदिर में प्रवेश करने से पहले हमने प्रसाद भी लिया और बाबा विश्वनाथ जी के दर्शन के लिए मंदिर परिसर में प्रवेश किया। मंदिर परिसर में कई मंदिर बने है। सबसे पहले हम विश्वनाथ मंदिर में गए। सबसे पहले नंदी जी के दर्शन होते है फिर हम मुख्य कक्ष में प्रवेश करते है यहाँ भगवान शिव शिवलिंग के रूप में विराजमान है, यह शिवलिंग दक्षिण दिशा की तरफ झुका है जिसे साफ देखा जा सकता है। मंदिर के पुजारी जी ने बताया कि यह मंदिर भगवान परशुराम जी ने बनाया था लेकिन यह शिवलिंग स्वयंभू है अर्थात किसी ने इसे यहां पर स्थापित नही किया है यह स्वयं प्रकट हुआ है और इसका दक्षिण की तरफ झुका होना ही इसका सबूत है क्योंकि यदि कोई व्यक्ति इस शिवलिंग को स्थापित करता तो सीधा ही करता। उन्होंने बताया कि बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर और उत्तरकाशी के विश्वनाथ मंदिर की एक ही मान्यता है। उन्होंने यह भी बताया कि पुराणों में भी उत्तरकाशी का वर्णन है और पहले इस नगरी का नाम बाड़ाहाट था। भगवान शिव को जो हम सब के आराध्य हैं, हमने उनको नमस्कार किया साथ में जल व प्रसाद भी चढ़ाया और बाहर आ गए। बाहर अन्य काफी भक्त मौजूद थे फिर हम सब ने मिलकर भगवान शिव की आरती भी की। सचमुच यह पल मुझे हमेशा याद रहेंगे।
काशी विश्वनाथ मंदिर के बाहर 
मंदिर के बाहर दीवारों को कुछ ऐसे सजाया गया है 
मैं सचिन त्यागी अपने परिवार के साथ विश्वनाथ मंदिर पर
मंदिर का पिछला हिस्सा 
अन्दर जो जल चढाया जाता है वो इधर से बाहर गिरता है 


शक्ति मंदिर
विश्वनाथ मंदिर के सामने ही एक मंदिर बना जिसे शक्ति मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर माता पार्वती को समर्पित है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण यहां पर स्थापित एक बहुत बड़ा त्रिशूल है। इस त्रिशूल की ऊंचाई लगभग 26 फ़ीट है और यह काफी चौड़ा भी है। इस विशाल त्रिशूल को देखते ही ऐसा लगता है जैसे यह साक्षात शिव जी का त्रिशूल हो, लेकिन वहां पर बैठे पंडित जी ने बताया कि यह बहुत प्राचीन है, माना जाता है कि यह 1500 वर्ष से भी पुराना है। उन्होंने बताया कि यह बहुत भारी है जिसे एक व्यक्ति का उठा पाना भी सम्भव नही है जबकि यह एक उंगली मात्र लगने से ही कंपन(हल्का सा हिलने) करने लगता है। इस त्रिशूल को माता पार्वती (मां दुर्गा) के त्रिशूल रूप में पूजा जाता है। मंदिर परिसर में और अन्य मंदिर भी बने हैं इनको भी देखा गया और हम मंदिर परिसर से बाहर आ गए।
शक्ति मंदिर 
शक्ति मंदिर के अन्दर का दर्शय 
वह प्राचीन व विशाल त्रिशूल 
शक्ति मंदिर व पीछे वाला विश्वनाथ मंदिर ,उत्तरकाशी

उत्तरकाशी में देखने को और बहुत से मंदिर है। उत्तरकाशी में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIM) भी जहां पर पर्वतारोहण का कोर्स किया जाता है। व कई प्रमुख ट्रेक भी आस पास है जैसे दायरा बुग्याल, डोडिताल ट्रेक, नचिकेता ताल ट्रेक आदि। उत्तरकाशी उत्तराखंड का एक जिला है जिसमे यमनोत्री गंगोत्री धाम भी स्तिथ है।

अब हम वापिस चलने को तैयार थे। समय देखा तो सुबह के 9:30 हो रहे थे। आज मैंने ऋषिकेश रुकना तय किया जो उत्तरकाशी से लगभग 175 km की दूरी पर है और लगभग सात घंटे का सफर है। मैंने गूगल से चम्बा तक का रास्ता जाना तो गूगल मैप ने मुझे दो रास्ते सुझाये। पहला उत्तरकाशी से धरासू बैंड होते हुए चिन्यालीसौड़ और फिर चम्बा जो लगभग 106 किलोमीटर का था और दूसरा उत्तरकाशी से चौरंगिखाल होते है नई टिहरी। यह रास्ता थोड़ा बड़ा था यह लगभग 144 km का था। चौरंगिखाल से तीन किलोमीटर का एक छोटा ट्रेक करके नचिकेता ताल तक पहुँचा जाता है। फिलहाल मुझे यह ट्रेक तो करना नही था इसलिए चिन्यालीसौड़ वाला रास्ते से जाना तय किया। लगभग 10 बजे हम उत्तरकाशी शहर से बाहर आ गए। एक दुकान देखकर चाय और ब्रेड का नाश्ता भी कर लिया। धरासू बैंड पहुँचे यही से एक रास्ता यमनोत्री के लिए अलग हो जाता है। हमे चिन्यालीसौड़ की तरफ जाना था इसलिए हम धरासू बैंड से बाँये तरफ हो गए। रास्ते मे हमे कई जगह जंगल जलते हुए मिले एक जगह तो आग रास्ते के इतने करीब भी आ गया थी कि हमारे चहरों ने भी उसकी तपन को महसूस किया। आग की वजह से हर तरफ धुंआ ही धुंआ फैला हुआ था। पहाड़ो पर गाड़ी चलाने का जो एक आनंद होता है वह आज मुझे बिल्कुल भी नही आ रहा था। रास्ते मे एक होटल पर रुके, खाने का मन नही हुआ इसलिए निम्बू पानी और ताज़े खीरे खाये गए। यहाँ पर एक व्यक्ति से पूछा कि हर जगह इतनी आग क्यो लगी है और कोई इसको बुझाता भी क्यो नही तो उस व्यक्ति ने बताया कि कुछ आग तो गांव वाले लगा देते है जिससे बारिश के बाद नई घास बढ़िया आती है जिससे पशुओं के लिए चारे की कमी नही होती है। क्योंकि चीड़ की पत्तियों घास को उगने ही नही देती है। और कुछ जगह आग चीड़ के पिरुल की वजह से भी लग जाती है। पिरुल जल्दी तप जाता है और आग पकड़ लेता है जिसकी वजह से भी आग लग जाती है। अब हम आगे चल पड़े और लगभग दोपहर के तीन बजे चम्बा पहुँच गए। चम्बा से नई टिहरी, टिहरी झील व कानाताल जगह बेहद नजदीक है। चम्बा पहुँचे ही थे कि मेरा बेटा देवांग कुछ अस्वस्थ नज़र आया इसलिए आज की रात हम ने चम्बा में ही रुकने का निर्णय किया। 
एक जगह दूर आग जलती दिख रही थी 
हमने देखा की अब वह आग काफी विकराल रूप ले चुकी थी 
आग सड़क तक आ गयी थी और इसकी तपन को हम गाड़ी में ही महसूस कर रहे थे 
जंगल के जंगल जल रहे थे जिसकी वजह से हर जगह धुआं फैला हुआ था 
रात को चंबा में ही रुके 

और अगले दिन 01 जून को चम्बा से ऋषिकेश की तरफ निकल पड़े जो की चंबा से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर है, चंबा से ऋषिकेश के बीच ही माँ कुंजापुरी देवी का मंदिर भी आता है जो एक शक्ति पीठ है हम कुंजापुरी पहले भी गए हुए है इसलिए सीधा ऋषिकेश पहुंचे और  कुछ समय ऋषिकेश में बिताने के उपरांत हरिद्वार की तरफ चल दिए। आज की रात हम हरिद्वार ही रुके फिर हम संध्या आरती देखने के लिए हर की पौड़ी भी गए। गंगा जी की आरती देखना मुझे बहुत अच्छा लगता है। बहते हुए जल में जलते दीप और उसे जाते हुए देखना एक अलग ही तरह का आनंद प्रदान करता है। आरती के बाद खाना खाने के बाद हम सीधा होटल पहुंचे। जंहाँ से अगले दिन वापिस अपने घर दिल्ली लौट आयेे।
ऋषिकेश 
परमार्थ निकेतन आश्रम,ऋषिकेश 
ऋषिकेश में गंगा स्नान 
हर की पौड़ी हरिद्वार 
हर की पौड़ी पर संध्या आरती की तय्यारी हो रही है 
माँ गंगा की संध्या आरती होती हुई हर की पौड़ी हरिद्वार में 


यात्रा समाप्त
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