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गुरुवार, 17 अक्तूबर 2019

भूलि भटियारी महल

भूली भट्यारी महल 
भूली भट्यारी महल ,दिल्ली 

दिल्ली राज्य में वैसे तो बहुत सी ऐतिहासिक इमारते है। लेकिन बहुत सी ऐसी जगह भी जिनको लोग कम जानते है या फिर जानते ही नही है। ऐसी ही जगहों में से एक जगह है भूली भटियारी महल। इसका निर्माण 14वी शताब्दी में दिल्ली के शासक फ़िरोज़ शाह तुगलक ने करवाया था। पहले यह जगह घना जंगल हुआ करती थी। वैसे तो आज भी यह जगह जंगल का रूप लिए हुए है। इस जंगल मे सुल्तान व शाही परिवार शिकार खेलने के लिए आते थे। इसलिए इस महल का निर्माण शिकारगाह के रूप किया गया। महल में एक ही प्रवेश द्वार है जिसमे एक छोटी सी गैलरी बनी ही है फिर एक द्वार और है जिसको पार करने के बाद एक बडा सा आंगन(अहाता) है। जिसमे कुछ छोटे कोटड़ी (छोटे कमरे) बने हुए है। जहां पर कभी सैनिक या नौकर चाकर रहा करते होंगे। या फिर रसोईघर के रूप में उपयोग किया जाता होगा। महल में कुछ टॉयलेट जैसी बनावट के स्ट्रैचर भी मौजद है। एक सीढीदार रास्ता ऊपर की मंजिल पर चला जाता है। ऊपर भी दो एक जैसे टॉयलेट जैसे स्ट्रैचर बने है जो शायद जनाना और मर्दाना हो सकते है। बाकी कुछ कमरे भी रहे होंगे जो आज मौजूद नही है।
इस महल को लेकर कुछ कहानियां भी सुनी जाती रही है। कुछ कहानी में बताया जाता है कि कोई औरत जो राजिस्थान की भटियारिन थी वो रास्ता भटक कर इस जंगल मे आ गयी और इस खाली पड़े महल में रहने लगी। वह लोगो को पानी पिलाने और खाना दे देती थी। कहते हैं कि फिर वो मर गयी। कहानी के अनुसार आज भी उसकी आत्मा यही कही भटकती है। इसलिए दिल्ली पुलिस भी शाम के बाद किसी को इस महल की तरफ नही जाने देती। ऐसी ही एक दूसरी कहानी में सुल्तान की एक रानी को ये महल पसंद नही आया तो सुल्तान ने उसे इस महल में बंद कर दिया और वह मर कर भूत बन गयी। इस तरह की और भी कहानियां है जिसमे इस महल को भूतिया बताया गया है। वैसे ऐसी कहानियां का किसी भी पुराने इतिहास की किताबों में जिक्र नही आता है। खैर किसी को भूत इधर मिले या नही मिले लेकिन आप अगर पुरानी इमारतों को देखने के शौकीन है और एकांत पसंद इंसान है। तो आपको यहाँ आना चाहिए। 
महल देखने के लिए आप झंडेवालान मेट्रो स्टेशन पर उतरे और लगभग 600 mtr पैदल चल कर यहा पहुँच सकते है। सड़क मार्ग से आने के लिए आप करोल बाग के बग्गा लिंक पहुँचे या फिर हनुमान मंदिर(बड़ी मूर्ति वाले हनुमान) पर पहुँचे। महल का रास्ता इनके पीछे से ही जाता है। महल देखने का कोई टिकट नही है। फ़ोटो और वीडियो बनाने पर किसी भी तरह की पाबंदियां नही है। सप्ताह के सातों दिन खुला रहता है। सुबह 8 बजे से शाम के अंधेरा होने से पहले देखा जा सकता है।
भूली भट्यारी महल का बाहरी द्वार 


मेरा यात्रा वर्णन
मेरा और मेरे दोस्त योगी सारस्वत जी का भूली भटियारी देखने का प्रोग्राम बना लेकिन हम दोनों उस दिन जा ना सके। फिर एक दिन मुझे पता चला कि घुमक्कड़ी दिल से ग्रुप( GDS) एक फोटो वॉक आयोजित कर रहा है। भूलि भटियारी महल पर। दिनांक 13 oct संडे को यह मीटिंग रखी गयी। मैंने भी तय समय पर पहुँचने का बोल दिया 13 तारिख को लगभग 11:20 पर संजय कौशिक भाई का फ़ोन आया कि सचिन कहा रह गया? हम झंडेवालान मेट्रो स्टेशन पहुँच गए है। फ़ोन आने पर ही मुझे याद आया कि आज तो GDS की मीटिंग है। क्योंकि सुबह से ही घर के कामो मे उलझा हुआ था इसलिए फ़ोन देखने का भी समय नही मिला। खैर संजय भाई को मीटिंग में ना आने की सूचना दे दी। क्योंकि मैं अब कब तो जाऊंगा और कब पहुँचगा कुछ पता नही। मेरी यह बाते मेरा 9 वर्षीय बेटा देवांग भी सुन रहा था। वह मुझको बोला कि पापा मुझे भी चलना है आपके साथ। फिर मैंने सोचा की चलते ही है जो होगा देखा जाएगा। फिर हम दोनों लगभग 11:45 पर स्कूटी उठा कर करोलबाग की तरफ चल पड़े। हम करोलबाग के हुनमान मंदिर पहुँचे। मंदिर के बाहर हनुमानजी की बहुत विशाल मूर्ति बनी है। बस यही लैंडमार्क भी है भूलि भटियारी महल का क्योंकि मंदिर के पीछे से ही एक रास्ता चला जाता है महल की तरफ। हम लगभग 12:45 पर भूलि भटियारी पहुँच चुके थे। फिर मैं कुछ पुराने और नए मित्रो से मिला। फिर हम सभी इस खंडरनुमा महल में घूमे। काफी देर तक आपस मे बातचीत होती रही। एक दूसरे के साथ फोटोशूट होते रहे फिर हम सभी ने महल के चारो तरफ चक्कर भी लगाया। हम सभी इस पल को काफी इंजॉय कर रहे थे। मेरे बेटे के अलावा कुछ और बच्चे भी थे वो सभी इधर उधर भागी दौड़ी में मशगूल थे। महल के पास ही एक पार्क बनाया गया है हम सभी दोस्त थोड़ी देर उधर पार्क में बैठे और फिर साथ लाये खाने की चीज़ों को खाया गया। उधर ही बैठ कर यह भी निर्णय लिया गया कि इस प्रकार की फ़ोटो वाक होती रहनी चाहिए। काफी देर बाद हम सभी एक दूसरे से मिलकर वापिस आपने अपने अपने घर को लौट गए।
हनुमान मंदिर करोलबाग
 
gds परिवार बैनर द्वारा सन्देश देते हुए। 
मैं और योगी सारस्वत जी 

कुछ दोस्त मेट्रो ट्रैन से आये, झंडेवालान मेट्रो स्टेशन से भी सिर्फ ६०० मीटर चलना होता है महल तक के लिए। 





कैप्शन जोड़ें




डॉ सुभाष शल्य जी पेड़ पर फोटो शूट कराते हुए। 




सुशांत सिंघल जी द्वारा प्राप्त फोटो 
सुशांत सिंघल जी द्वारा प्राप्त फोटो


सुशांत सिंघल जी द्वारा प्राप्त फोटो




शनिवार, 14 सितंबर 2019

आओ चले बद्रीनाथ

बद्रीनाथ धाम 

15 नवम्बर 2018 की शाम को ललित का फोन आया उसने कहा कि चलो बद्रीनाथ जी के दर्शन कर आते हैं। मैंने कहा नहीं यार बद्रीनाथ तो मैं अभी कुछ साल पहले ही गया था, चलो कही और चलते है ना। क्योंकि मैं एक जगह को बार-बार जाना पसंद नहीं करता हूं उसने कहा कि एक बार फिर चलो मुझे केवल बद्रीनाथ ही जाना है। और मैं तुम्हारे साथ ही जाना चाहता हूँ। ललित ने मेरे साथ कई यात्रायें की है और हम दोनों चोपता तुंगनाथ भी साथ ही गये थे।
मैंने उससे पूछा की चल बता कब चलना है बद्रीनाथ? उसने कहा कि हम कल चलेंगे। मैंने पूछा कल..? उसने कहा जी हां! कल ही चलना है। ठीक है तो थोड़ी देर बताता हूँ तुझे मैंने कहा। फिर कुछ देर बाद मैंने उसको फ़ोन किया और बोला मैं सामान पैक कर के आज रात को ही तेरे घर आ जाता हूं जिससे हम सुबह जल्दी ही बद्रीनाथ के लिए निकल चलेंगे।
मैं रात के 8:00 बजे टेंपो करके ललित के घर  ग़ाज़ियाबाद के लिए निकल पड़ा। टेंपो ने मुझे ललित के घर से थोड़ी ही दूर पर छोड़ दिया, थोड़ी देर बाद ही ललित अपनी कार लेकर मेरे पास आ गया। यात्रा के लिए कुछ जरूरी सामान खरीद कर हम ललित के घर पहुंच गए जहा हमने अपना सारा सामान गाड़ी की डिग्गी में रख दिया क्योंकि अगली सुबह हमें जल्दी ही निकल जाना था।

अगली सुबह, 16 नवम्बर 2018
हम सुबह 4 बजे उठ गए और लगभग 4:30 बजे घर से निकल चले। अभी सड़क पर हल्का ट्रेफिक ही था इसलिए कुछ ही मिनटों में हमने मुरादनगर पार कर लिया। अभी हल्का अंधेरा ही था। हमारी कार सरपट दौड़े हुए जा रही थी। मोदीनगर और मेरठ भी कब पार कर लिए थे पता ही नही चला था। अगर दिन में मेरठ भी आना हो तो बहुत जाम मिलता है इस सड़क पर। खतौली से पहले एक होटल था नाम याद नही पर सड़क के किनारे ही था। उधर चाय पी गयी और फिर मुजफ्फरनगर बाई पास पर बने गुरु नानक ढाबे पर नाश्ता किया गया। यहा से आगे हम बिना रुके सीधा हरिद्वार शिव की पौड़ी नामक घाट पर ही रुके। गंगा जी के किनारे पर कुछ समय बिताया। गंगा जी का जल, कल कल करता हुआ बह रहा था। आस पास कुछ महिलाएं पूजा कर रही थी। पास में बने मंदिर की घंटियों का स्वर इस सुबह को और भी सुंदर बना रहा था।  घाट पर कुछ साधु लोग बैठे हुए थे। कुल मिलाकर माहौल एकदम धार्मिक सा हो गया था। हमने एक बोतल में कुछ जल भर लिया। अब समय लगभग 9 बज रहे थे।इसलिए अब हम आगे के सफ़र पर चल पड़े, हरिद्वार से ऋषिकेश की दूरी 23km है जो हमने थोड़ी देर में ही पूरी कर ली थी। ऋषिकेश तक रास्ता मैदानी ही है फिर आगे पहाड़ी रास्ते पर चलना होता है। इसलिए कार की प्रति किलोमीटर एवरेज भी कम होती जाती है। ऋषिकेश में अब रिवर राफ्टिंग की बहुत मांग हो चुकी है, लोग छुट्टी पड़ते ही यहा रिवर राफ्टिंग और कैंपिंग करने चले आते है। पहले ऋषिकेश को आध्यात्मिक धार्मिक नगरी के रूप में देखा जाता था लेकिन अब लोग एडवेंचर मनोरंजन पिकनिक और रिवर राफ्टिंग जैसे खेलों के लिए ऋषिकेश आते हैं। पर्यटकों के लिए अवैध रूप से मदिरा भी परोशी जाने लगी है। अध्यात्मिक व योग नगरी कब पिकनिक और मनोरंजन नगरी हो गई लोगों को पता ही नहीं चला। खैर इस टॉपिक पर हम बात करेंगे तो काफी लंबी बात जाएगी इसको यही छोड़ते हैं और आगे चलते हैं अपनी यात्रा पर।
ऋषिकेश पार करने के बाद शिवपुरी जगह आती है। यहा पर काफी सारे टेंट लगे हुए होते है और रिवर राफ्टिंग भी कराई जाती है एक बार मैंने भी इधर से ही राफ्टिंग की थी। इधर ही एक होटल एंड रेस्टोरेंट था तपोवन नाम से हम थोड़ी देर तक उसी में रुके और साथ मे चाय भी ली। अब तक सुबह के 10 बज चुके थे। ऋषिकेश से 72 km आगे देवप्रयाग आता है, यहां गंगोत्री से आती भागीरथी वह बद्रीनाथ से से आती अलकनंदा नदियों का संगम है जब हम पिछली बार चोपता यात्रा पर आए थे तब हम दोनो नीचे प्रयाग तक गए थे। इस बार हमने प्रयाग को दूर सड़क से ही देखा और आगे बढ़ गए।
हरिद्वार 

हरिद्वार स्तिथ शिव मूर्ति 

ऋषिकेश 

आल वैदर रोड बनने के कारण जगह जगह जाम लग जाता है उसी जाम में खडी हमारी कार। 

रास्ते में मैंन पड़ाव है यह जगह, इसको सभी तीन धारा के नाम से जानते है. काफी सारे ढाबे है इधर लकिन रोड बनने के कारण इसका रूप ही बदल गया है। 

लम्बा जाम 


देवप्रयाग से श्रीनगर लगभग 38 किलोमीटर दूरी पर है। श्रीनगर से एक रास्ता पौड़ी के लिए भी अलग हो जाता है। श्रीनगर रुक कर मैंने ATM से पैसे निकाले। श्रीनगर, श्रीकोट व कीर्ति नगर आपस मे मिले हुए है और यह एक बड़े से शहर का आभास कराते है। श्रीनगर से लगभग 16 किलोमीटर आगे धारी देवी मंदिर आता है जो सड़क से थोड़ा नीचे अलकनंदा नदी के तट पर बना है। रास्ते में काफी बड़ी संख्या में सिख श्रद्धालु मिले जो हेमकुंड यात्रा पर जा रहे थे। हेमकुंड यात्रा के लिए रास्ता गोविंदघाट से अलग हो जाता है। गोविंदघाट बद्रीनाथ रोड पर जोशीमठ से कुछ km आगे पड़ता है।

हम तकरीबन 2:30 बजे रुद्रप्रयाग पहुंचे। सबसे पहले हमने एक होटल देख कर खाना खाया। रुद्रप्रयाग में भी दो नदियों का संगम है। यहाँ मन्दाकिनी और अलकनन्दा नदी आपस मे मिल जाती है। यहां से हम लगभग दोपहर के 3:30 पर आगे की ओर चल पड़े। रुद्रप्रयाग से एक रास्ता केदारनाथ जी के लिए अलग हो जाता है और दूसरा रास्ता सीधा माना व बद्रीनाथ के लिए अलग हो जाता है। हमे बद्रीनाथ वाले रास्ते पर ही जाना था। एक दो जगह रुकते ठहरते हुए हम शाम लगभग 7:00 बजे चमोली से आगे बिरही नामक जगह पर रुके। यहां पर हमने एक होटल तपोवन देखा और आज की रात यहीं पर रुकने का फैसला भी किया। क्योंकि अब अंधेरा भी हो चुका था और हम थके हुए भी थे। यह होटल काफी बड़ा व सुंदर था। कमरे भी काफी बड़े थे। आसपास का वातावरण खुला खुला और शांत था। यहां पर हमें ₹2000 का एक कमरा मिला। हमारे अलावा होटल में दिल्ली से आए चार दोस्त और थे। थोड़ी देर हम दोनो आपस में ही बातें करते रहे फिर उन बाकी चार लोगों से भी बातें होने लगी। उन्होंने बताया कि वह 4 दोस्त हर साल कहीं ना कहीं घूमने के लिए जाते रहते हैं। उन्होंने बताया कि साल में एक बार वह अपनी फैमिली के साथ टूर पर जाते हैं और बाकी जितने भी टूर करते हैं वह सब दोस्तों के साथ ही करते है। बातों बातों में उन्होंने हमें बताया कि वो आज सुबह जल्दी बद्रीनाथ जी के लिए निकल गए थे और दर्शन करने के बाद शाम को फिर वापस इसी होटल में रुक गए है। जिससे कल वो आराम से दिल्ली जा सके वैसे वो हर साल इसी मौसम में बद्रीनाथ जी आते है। उनकी यह सलाह मुझे काफी अच्छी लगी की दर्शन के बाद फिर वापिस इसी होटल में रुकना। फिर उनको हम गुड नाइट कह कर अपने रूम में चले गए
इसी होटल में हम ठहरे थे 

मैं सचिन त्यागी खाने के इन्तजार में। 

अगले दिन,17 नवम्बर 2018
सुबह लगभग 6:30 बजे हम दोनों नहा धोकर बद्रीनाथ जी के लिए निकल चलें। अभी रोड पर इक्का-दुक्का गाड़ी ही दिख रही थी। सुबह सूरज की धूप कुछ पहाड़ों के ऊपर वाली चोटीयो पर पड़ रही थी जिसके कारण कुछ पर्वत चमक रहे थे। यह दृश्य आंखों को बेहद सकून दिलाने वाला होता है। रास्ते के अलावा दूर कहीं सफ़ेद बर्फ़ीली  पहाड़ियां दिख रही थी, मुझे पहचान नहीं की वह कौन सी चोटियाँ थी लेकिन उनको देखना बहुत अच्छा लग रहा था। मेरा मन ऐसा कर रहा था कि मैं उड़ता हुआ हूं उन हिम पर्वत पर चला जाऊं। रास्ते मे देखा कि कुछ खाने को मिल जाये लेकिन अभी ज्यादातर दुकाने बंद थी। फिर एक दुकान पर रुक कर चाय और ब्रेड खाये गए। यह दुकान जोशीमठ में ही थी। हम लगभग दो ढाई घंटे में जोशीमठ पहुंचे चुकें थे। यहां से लगभग 40 किलोमीटर आगे बदरीनाथ जी है। जोशीमठ से एक रास्ता ओली के लिए अलग हो जाता है। ओली एक टूरिस्ट जगह है जोशीमठ से ओली केबल कार(sky troly) से भी जा सकते है। लेकिन ज्यादातर लोग ओली सर्दियों में जाना पसंद करते है। क्योंकि सर्दियों में इधर काफी बर्फ पड़ती है। जिस कारण ओली में स्कीइंग और अन्य रोमांचकारी खेलों का आयोजन होता है। जोशीमठ में भगवान नरसिंह जी का भी मंदिर है। जिसको गुरु आदी शंकराचार्य जी ने बनवाया था। और शीत कालीन में कपाट बंद होने पर बद्रीनाथ जी की गद्दी यही आती है।

हम चाय ब्रैड खा ही रहे थे तो चाय वाले ने बताया कि वह भी 5 दिन पहले बद्रीनाथ जी से ही आया था तो उस दिन वहां पर बर्फबारी हुई थी। उसके कहने से हमें लग रहा था कि हमें भी काफी बर्फ देखने को मिल सकती है। चाय पीने के बाद हम आगे चल पड़े अब पेट भी भर चुका था इसलिए अब सीधा बद्रीनाथ जी ही रुकेंगे। कुछ दूर चलने के बाद पांडुकेश्वर और गोविंदघाट को पार करने के बाद हनुमान चट्टी नाम से एक जगह आती है। यहां पर भगवान हनुमान जी का मंदिर है और मान्यता यह है कि कोई भी वाहन यहां से गुजरता है तो वह है थोड़ी देर के लिए ही सही लेकिन हनुमान जी को प्रणाम करके ही आगे बढ़ता है। हमने भी उन्हीं का अनुसरण किया थोड़ी देर गाड़ी रोकी और हनुमान जी को प्रणाम किया और वापस लौटने पर प्रसाद चढ़ाने को भी बोला। आसपास के लोगो ने बताया किया की हनुमान जी यहां पर सभी को किसी भी दुर्घटना व एक्सीडेंट आदि से बचाते हैं। इसलिए इनकी यहां पर इतनी मान्यता है। साथ में एक मान्यता  यह भी है कि जब भीम यहां पर आए तो उन्हें यहां पर रास्ते में वायु पुत्र हनुमान जी मिले जिन्हें वह एक सामान्य लंगूर ही समझ सके भीम ने उन से रास्ता मांगा तो उन्होंने कहा कि मेरी पूछ आप हटा दीजिए भीम के काफी यतन करने पर भी वह हनुमान जी की पूंछ ना उठा सके तब उन्होंने हनुमान जी से क्षमा मांगी और आगे वे कभी अपनी शक्ति पर घमंड नहीं करेंगे ऐसा भरोसा भी दिया। ऐसी ही कथा अलवर राजिस्थान के पास पाण्डु पोल नामक जगह के बारे में भी कही जाती है।

हम लगभग दिन 11 बजे हम बद्रीनाथ धाम पर पहुंच चुके थे। एक व्यक्ति ने बताया कि दोहपर के 12:00 बजे के बाद मंदिर के दरवाजे बंद हो जाएंगे तो 2 बजे के बाद खुलेंगे। यह तो मुझे पता नहीं कि ऐसा रोजाना होता है या फिर उस दिन ही हो रहा था। इसलिए हम जल्दी-जल्दी गर्म पानी के कुंड की तरफ चल पड़े। पानी काफी गर्म था लेकिन हम दोनों कुछ देर उस तृप्त कुंड में नहाते रहे। नहाने के बाद तो सारी थकान ही चली गयी थी। अब हम दोनों मंदिर की तरफ चल पड़े। मंदिर गर्म पानी के कुंड के निकट ही है और लगभग 12 बजे हम बद्रीनाथ मंदिर में थे। मुश्किल से 20 /25 लोग ही थे। आज से चार दिन बाद बद्रीनाथ जी के कपाट बंद हो जाएंगे। शायद उस दिन भीड़ ज्यादा होगी लेकिन आज फिलहाल लोग कम ही थे।आज मैं यहा दूसरी बार आया था। मंदिर में श्री हरि विष्णु की मूर्ति को देख कर अपने आप को बड़ी ही शांति महसूस होती है। पिछली बार भी बद्रीनाथ जी के दर्शन करके मुझे ऐसी ही मन को शांति आभास हुआ था जैसा आज हुआ था। ललित भी आंखें बंद करके मंदिर में काफी देर बैठा रहा। शायद वह इसलिए ही यहां पर आया था। मैं मंदिर से बाहर आ चुका था। मंदिर के बाएं तरफ एक छोटा सा मंदिर और है जो माता लक्ष्मी का है यहां पर मैंने दर्शन किए और बारी बारी बाकी मंदिर भी देखे। ललित भी बाकी मंदिरों के दर्शन करके बाहर आ चुका था। बद्रीनाथ जी के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने प्रथम कदम धरती पर इसी जगह रखे थे। और फिर यही पर वो ध्यान मग्न हो गए। उनकी देख रेख के लिए माता लक्ष्मी जी बेर (बद्री) का पेड़ बन कर उन्हें मौसम से बचाती रही। बाद में विष्णु भगवान ने उनसे खुश होकर इस स्थान को बद्रीनाथ धाम के नाम से जाना जाएगा ऐसा वरदान दिया। इसलिए बद्रीनाथ धाम सभी धामो में श्रेष्ठ माना गया है।
दिल्ली वाले दोस्त 

सुबहे और दूर दिखते बर्फीले पहाड़ 
चाय की वो दुकान जहा हमने चाय और ब्रेड खाये थे। 

लोगो ने बताया की ये हाथी पर्वत है.. 

पहुंच गए बद्रीनाथ जी 

तृप्त कुंड (गर्म पानी का कुंड )

सारी थकान दूर हो जाती है गर्म पानी में नहा कर। 

मैं और ललित बद्रीनाथ जी के धाम पर। 


नीलकंठ पर्वत 

ललित 

अब हमें माना गांव जाना था। बद्रीनाथ धाम से माना गांव की दूरी लगभग 3 किलोमीटर है। कुछ लोग इस दूरी को पैदल भी तय करते हैं, कुछ लोग सामान्य चलने वाली गाड़ियां शेयरिंग जीप उसके द्वारा भी तय करते हैं। खैर हम पर तो अपनी गाड़ी थी इसलिए हमने अपनी गाड़ी को स्टार्ट किया और माना गांव कुछ ही मिनट में पहुंच गए। माना इस क्षेत्र का भारत का आखिरी गांव भी कहा जाता है क्योंकि यहां से आगे केवल और सिर्फ केवल भारतीय फौज ही जा सकती है सामान्य नागरिक का आगे जाना सख्त मना है। कुछ लोग आगे ट्रैकिंग या किसी अन्य कार्य से जाते हैं तो उनके लिए उनको परमिट की आवश्यकता होती है। आज माना गांव पूरा बंद था क्योंकि अब बर्फ पड़नी स्टार्ट हो जाएगी इसलिए सब लोग अपने सर्दियों के निवास के लिए नीचे जा चुके है। इसलिए यहां पर हर घर बंद था। हर दुकान और मंदिर बंद थे। मेरे और ललित के अलावा दो या तीन लोग मुश्किल से और थे। हम गणेश गुफा, व्यास पोथी गुफा और भारत की आखिरी चाय की दुकान पर भी गए लेकिन यह सब बंद थे। कुछ देर बाद हम भीम पुल पर पहुंचे। यहां पर कुछ पर्यटक पहले से ही मौजूद थे। यहां से हमें सरस्वती नदी के दर्शन होते हैं। जो ऊपर बड़े वेग से आती दिखती है और नीचे तेज़ शोर करती हुई एक गहरे गड्ढे में गिर जाती है। इसको देखना बहुत अच्छा लगता है, यहां पर भी बनी कुछ दुकानें जिनपर भारत की आखरी दुकान लिखा था। सभी बंद थी यहीं पर एक बाबा बैठते हैं जो भस्म लगाए धूनी रमाये बैठे रहते है। जब मैं पिछली बार यहां पर आया था। तो वही अपनी गुफा में थे। तब किसी ने बताया कि यह बाबा सर्दियों में भी यहीं रहते हैं। लेकिन आज जबकि में सर्दी में यहां पर आया हूं तो बाबा अपनी कुटिया को बंद कर के नीचे जा चुके थे। भीम पुल पार करने के बाद एक रास्ता वसुधारा वाटरफॉल के लिए भी जाता है यहां से वसुधारा फॉल तक कि दूरी 7 किलोमीटर है जो कि पैदल ही तय करनी होती है। वसुधारा जाने के लिए सुबह-सुबह जाया जाए तो वह बेहतर होता है। कहते हैं कि इस झरने का पानी इतनी ऊंचाई से गिरता है कि नीचे गिरने से पहले ही हवा के साथ ही वह उड़ जाता है कुछ लोगो का कहना है कि जो पापी लोग होते हैं उन पर इस झरने पानी गिरता भी नहीं है।

भीम पुल के पास थोड़ा सा ही ऊंचाई पर व अलकनंदा नदी के दूसरी ओर एक मंदिर और दिख रहा था। यह मंदिर माता त्रिपुर बाला सुंदरी का मंदिर है जो यहा की कुलदेवी भी है। कहते हैं की जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तब पांडव स्वर्ग की यात्रा के लिए यहीं इसी जगह से गए थे। सरस्वती नदी का वेग देखकर द्रौपदी डर गई तब महाबली भीम ने अपनी भुजाओं से एक शिला को उठा कर दो पर्वतों के बीच में रख दिया जिसे आज लोग भीम पुल कहते हैं। द्रौपदी इसको पार करके थोड़ी दूर ही चली थी कि वह मृत्यु को प्राप्त हो गई और जिस जगह वह मृत्यु को प्राप्त हुई आज उसी जगह है यह कुल देवी का मंदिर बना है। वही मंदिर मुझे दूर से दिख रहा था जब मैं पिछली बार यहां आया था। अपने दोस्तों के संग तब मैं सतोपंथ झील की यात्रा करने के लिए जा रहा था लेकिन मैं वह यात्रा किसी कारण से नहीं कर सका था और मैं यात्रा से वापिस आ गया था। यहां आकर वही बातें मुझे फिर याद आ रही थी शायद जब तक मैं सतोपंथ यात्रा नहीं कर लूंगा तब तक वह बातें मेरे मन में आती रहेंगी। कि मैं क्यों सतोपंथ नहीं जा पाया था। ललित और मैं कुछ समय यहा बिताने के यहा से वापिस चल पड़े। 
माना गांव 


गणेश गुफा जहा महाभारत लिखी गयी 

माना गांव से दिखती कुछ बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ। 

वेद व्यास गुफा 

भीम पुल के सामने ललित 


कुलदेवी मंदिर


पूरा का पूरा गांव बंद था। 

ये भी बंद थी 





माना गांव से चलकर कुछ ही देर बाद हम हनुमान चट्टी पहुंचे। यहां पर हमने भगवान हनुमान जी को प्रणाम किया उनको प्रसाद चढ़ाया और वापिस आगे की तरफ चल पड़े। अब हम सीधा पांडुकेश्वर रुके। पांडुकेश्वर में सड़क से थोड़ा सा ही नीचे पांडवकालीन मंदिर बने हुए हैं जिनको हमें देखना था। इनमें योगबद्री मंदिर भी हैं। सड़क किनारे कार को खड़ी करके 10 मिनिट में ही हम नीचे मंदिर पहुँच गए। पांडुकेश्वर मंदिर परिसर में दो मंदिर बने है एक योग बद्री का और दूसरा वासुदेव जी का। यह मंदिर भारतीय पुरातत्व संस्थान के संरक्षण में है। दर्शन करने के बाद हम चल दिए। हमे इस मंदिर के पंडित जी मिले जिनका नाम राजन प्रसाद डिमरी जी था। वो भी ऊपर सड़क ही तरफ ही जा रहे थे। वह अपने घर जा रहे थे जो की जोशीमठ में था। हमने उनसे कहा की हम आपको जोशीमठ छोड़ देंगे क्योंकि हमें उधर से होकर जाना है। वह हमारी गाड़ी में बैठ गए, उनसे बातों का सिलसिला भी चालू हो गया। उन्होंने बताया कि जब अजय और विजय पर्वत आपस में मिल जाएंगे तब फिर बद्रीनाथ जी तक आने जाने का रास्ता ही बंद हो जाएगा तब उनकी पूजा भविष्य बद्री में होगी। उन्होंने यह भी बताया कि जब कपाट बंद होते हैं तो बद्रीनाथ जी की गद्दी पांडुकेश्वर में ही आकर रुकती है। उन्होंने यह भी बताया कि रावल जी एक स्त्री का रूप बनाकर व श्रंगार करके श्री बद्रीनाथ जी के मंदिर में लक्ष्मी जी की मूर्ति को बद्रीनाथ जी की मूर्ति के समीप रख कर और फिर मंदिर के कपाट बंद कर देते हैं ऐसा ही वह जब कपाट खुलते हैं तब फिर वह स्त्री का रूप धारण करके फिर लक्ष्मी जी की मूर्ति को वापस मंदिर में स्थापित कर देते हैं। ऐसा वह इसलिए करते हैं कि लक्ष्मी जी को कोई अन्य पुरुष छू नही सकता इसलिए वह स्त्री का रूप धारण करते है। मेरे लिए यह एकदम बिल्कुल नई जानकारी थी। मुझे पहले इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। पंडित जी ने और अन्य बहुत सी बातें बताई। फिर हम जोशीमठ में पंडित जी को सड़क के किनारे छोड़ आगे बढ़ गए।
योग बद्री ,पांडुकेश्वर 

योग बद्री 

एक अन्य मंदिर 

जोशीमठ से 7 km आगे चलने के बाद अनिमठ नाम से एक गांव आता है। यही पर एक मंदिर है जिसको सभी वृद्धबद्री के नाम से जानते है। मंदिर तक जाने के लिए 50 मीटर सड़क से नीचे पैदल जाना होता है जो थोड़ी सी खड़ी चढ़ाई और खड़ी उतराई वाला रास्ता है ललित ने तो नीचे जाने को मना कर दिया। मैंने उससे कहा कि तुम यही पर रुक मुझे तो मंदिर जाना है। इसलिए मैंने नीचे मंदिर तक जाने वाले रास्ते पर दौड़ लगा दी। काफी उतराई वाला रास्ता था मतलब की आने में काफी मेहनत करनी होगी। मंदिर परिसर में एक पुजारी जी मिले उन्होंने मंदिर के दर्शन कराए और मंदिर के बारे में बताया कि यह मंदिर बद्री नाथ जी से भी प्राचीन है और यहा विष्णु भगवान जी ने नारद मुनि को बूढ़े व्यक्ति के रूप में दर्शन दिए थे। इसलिय ही इसको वृद्धबद्री कहा जाता है। इस मंदिर को पहले राजा सगर ने बनवाया था बाद में आदि शंकराचार्य ने इसका दोबारा से निर्माण कराया। मैंने कुछ दान दक्षिणा देकर पंडित जी को नमस्कार किया और वापिसी की राह पकड़ी। अब चढ़ाई बहुत खड़ी थी मैंने शुरू में तो दौड़ लगाई लेकिन सांस इतना फूल गया यह मुझे फिर रुक रुक कर चलना पड़ा। लेकिन मैं जल्द ही ऊपर पहुंच गया ललित अभी गाड़ी की सफाई कर रहा था उसने मुझे देखकर कहा कि आप तो बड़ी जल्दी आ गए? दर्शन करने मंदिर गए भी या नहीं ? मैंने कहा देख मैं मंदिर होकर आया हूं देख मेरे माथे पर जो तिलक भी लगा है। उससे यह पुष्टि हो गई थी कि हां मैं मंदिर दर्शन करके आया हूं।
हम लगभग शाम के 7:00 बजे हम वापस बिरही में अपने उसी होटल पर पहुंच गए। आज हमारे अलावा एक परिवार और यहां रुका हुआ था। हम लगभग 9:00 बजे खाना खाकर अपने रूम में सोने के लिए चले गए।
वृद्ध बद्री मंदिर ,अणीमठ गांव 


वृद्ध बद्री मंदिर 


अगले दिन, 18 नवम्बर 2018
सुबह नहा धोकर 7 बजे तैयार हो गए थे। होटल पर काम करने वाले लड़के धीरज ने बताया कि जब केदारनाथ त्रासदी हुई थी तब अलकनंदा में भी बहुत पानी आया था। हमारे होटल के सामने gmvn का गेस्ट हाउस होता था वो भी पूरा का पूरा अलकनंदा में बह गया था। उसने सामने वाले पर्वत की और इशारा करते हुए बताया कि एक बार बहुत जोरो से बारिश हुई थी तब उधर का पहाड़ पूरा नीचे मलबे के रूप में आ गया था। उससे काफी देर बात होती रही फिर नाश्ता करने के बाद हम लगभग 8:00 बजे बिरही स्थित तपोवन होटल से निकल कर आगे की तरफ चल पड़े। लगभग 9:45 बजे के आसपास हम रुद्रप्रयाग पहुंचे। रुद्रप्रयाग के पास एक टनल है, उसी के पास हमने गाड़ी सड़क किनारे लगाकर नीचे रुद्रप्रयाग मंदिर व अलकनंदा और मंदाकिनी नदी का संगम स्थल देखने के लिए चल पड़े। 10 मिनेट में ही हम मंदिर पहुँच गए। यहाँ रुद्रप्रयाग में बद्रीनाथ जी से आती अलकनंदा व केदारनाथ जी से आती मंदाकिनी नदी का संगम है। साथ में गंगा मैया का मंदिर, शिव मंदिर, माता का मंदिर बने है। नारद जी ने यहां पर भगवान शिव की पूजा की थी। यहां पर दोनों नदियों को मिलते हुए देखना और पानी की आवाज सुनना बड़ा ही अच्छा लग रहा था। कुछ देर हम यही एक बड़े से पत्थर पर बैठे रहे और फिर वापस अपनी गाड़ी पर पहुंचकर आगे की ओर निकल पड़े। रुद्रप्रयाग से आगे हम देवप्रयाग में एक ढाबे पर रुके जहां हमने खाना खाया फिर आगे सीधा हम हरिद्वार ही रुके शाम के लगभग 7:00 बजे हम हरिद्वार पहुंच गए हमने जल्द ही एक होटल लिया और रात को आज हरिद्वार ही विश्राम किया गया और अगले दिन गंगा जी में नहा कर सीधे दिल्ली के लिए प्रस्थान कर गए।
रुद्रप्रयाग 

अलकनंदा व मंदाकनी नदी का संगम स्थल (रुद्रप्रयाग )

मैं सचिन प्रयाग पर 

ललित 

शिव मंदिर जहा नारद जी ने शिव की  पूजा की थी। 

शिव मंदिर 

यात्रा समाप्त