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शनिवार, 26 दिसंबर 2015

एक छोटी सी यात्रा(नैना देवी व गर्जिया देवी मन्दिर)

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13,September,2015
हम सुबह 6बजे ही ऊठ गए, क्योकी आज हमने अलमोडा होते हुए, कौसानी जाना था या फिर बिनसर। लेकिन चाय के समय यह तय हुआ की हम आज ही दिल्ली वापिस जाएंगे। कल रात से ही ललित का दिल घर जाने को करने लगा, ओर वकील साहब ने तो सीधे ही घर जाने को कह दिया। पहले तो मुझे बड़ा दुख हुआ की हमारा टूर अपने मुकाम को हासिल ना कर पाया। लेकिन मैंने भी यह समझकर सब्र कर लिया, की कल मेरी वजह से भी तो यह लोग नैनीताल तक आए। लेकिन अब इतना तय हो चुका था की आज हम वापिस घर जाएंगे। ओर घर जाएंगे तो कुछ देख कर ही जाएंगे, इसलिए मैंने नैनीताल से कालाडुंगी वाला रास्ते से जाना तय किया, जिससे इन लोगों को गर्जियादेवी(गिरिजा देवी)के दर्शन करा सकूँ।
हम सुबह नहा व अन्य जरूरी कार्यों को निपटा कर होटल से निकल पड़े, आज नैनीताल में सुबह से ही पुलिस व स्थानीय लोग काफी संख्या में इकठ्ठा हुए थे, जिसका कारण यह था की यहां पर मैराथन दौड़ का आयोजन किया हुआ था। इस मैराथन दौड़ मे नैनीताल के काफी स्कूल भाग ले रहे थे। हम भी माल रोड पर दर्शक बन कर इस दौड़ का लुफ्त उठा रहे थे।
फिर हम दौड़ के प्रतियोगी को देखते देखते पार्किंग में पहुँचे, जहाँ हमारी कार खड़ी थी, पार्किंग के पास ही माता नैनादेवी का मन्दिर है, जो माता के 51 शक्ति पीठो में से एक है, यहां पर माता सती के मृत शरीर की बांयी आँख (नयन) गिरी थी। जिस कारण यहां पर झील का निर्माण भी हुआ। जो आज नैनीझील के नाम से विख्यात है, झील के किनारे ही यह सुंदर मन्दिर बना है, यहां पर गणेशजी, माता काली, हनुमान  व अन्य बहुत से मन्दिर बने है।
चूँकि मैं ओर प्रवीण जी कल ही यहां पर दर्शन कर आए थे, लेकिन ललित कल दर्शन नही कर पाया था, इसलिए मैं ओर ललित मन्दिर मे दर्शन करने चले गए, प्रवीण जी ने मन्दिर जाने से मना कर दी, ओर कहने लगे की मैं गाड़ी पार्किंग मे से निकाल रहा हुं, तब तक तुम मन्दिर दर्शन कर आओ। हमने मन्दिर के बाहर बनी दुकान से प्रसाद लिया ओर नैना देवी मन्दिर चले गए। बहुत अच्छे से दर्शन हुए। दर्शन करने के बाद हम गाड़ी के पास पहुँचे ओर वहां से चल पड़े।
हम लोग बारापत्थर तिराहा से खुरपा ताल की तरफ चल पड़े, क्योकी सुबह से कुछ खाया भी नही था, इसलिए आगे चलकर चारगांव नामक जगह आई, यहां पर एक होटल वाले से चाय बनवाने के लिए बोल दिया, साथ मे कुछ खाने को भी ले लिया, यहां से चलकर हम सडीयाताल से पहले एक छोटे से झरने पर भी रूके। पहाडो पर ऐसी जगह देखते ही, अपने आप रूकने को  मन कर जाता है, यहां पर कुछ समय रूककर हम सीधे खुरपाताल ही रूके, वैसे हम नीचे झील तक नही गए, हम ऊपर सड़क पर ही रूक गए, यहां पर कुछ लोग पत्थर ऊठा ऊठा कर झील की तरफ फैंक रहे थे, पर पत्थर झील तक नही पहुँच पा रहा था, जबकी झील सड़क से बहुत नजदीक दिखाई पड़ रही थी, उन्हीं लोगों में से एक ने बताया की झील इतनी नजदीक होने के बावजूद भी कोई वहां तक पत्थर नही फैंक सकता, क्योकी यह झील उसे अपने तक नही आने देती, मैंने भी एक पत्थर ऊठाया ओर झील की तरफ उछाल दिया, पत्थर की गति को देखकर वहां पर बैठे सभी कहने लगे की यह तो जरूर जाएगा, लेकिन पत्थर एकदम नीचे पेडो मे चला गया। जहाँ तक मुझे लगा की झील पास ही दिखती है पर वास्तव मे वह पास नही दूर है। इसलिए पत्थर वहां तक नही गया। खुरपाताल के नजदीक ही सड़क पर माता मनसा देवी का एक एक छोटा सा मन्दिर भी बना है,
नैनीताल से रामनगर तक का रास्ता बहुत सुंदर बना है, ज्यादा भीडभाड भी नही रहती है इस रास्ते पर, प्राकृतिक सुंदरता सड़क के दोनों ओर बनी रहती है, बार बार मन करता रहता है की यहां रूको वहां रूको, हवा इतनी शुद्ध की शरीर में अपने आप नई ऊर्जा का अनुभव होता है,
इसी रोड पर चलते हुए, जिम कार्बेट के अंतगर्त आने वाला कालाडुंगी जंगल भी पड़ता है, जहां दोनों ओर घने जंगल मिलते है, लम्बे लम्बे पेड़ , पक्षियों की आवाज व दिमक की बनाई गई बाम्बियां भी बहुत दिखती है, यहां पर भी हम थोड़ी देर रूक कर आगे चले, आगे नया गांव नाम की जगह पड़ती है, जिसे शायद छोटी हल्द्धवानी भी कहते है, यहां पर जिम कार्बेट संग्रहालय भी है, ओर थोड़ी ही दूर पर कार्बेट फॉल नाम का झरना भी है, पर फिलहाल यह बंद था, यह नवम्बर से खुल कर जूलाई मे बंद होता है। यहां से एक रास्ता रामपुर व कांशीपूर को चला जाता है, ओर एक रास्ता रामनगर, जिम कार्बेट पार्क की तरफ चला जाता है, इसी रास्ते पर कार्बेट फॉल भी पड़ता है। हम भी इसी रास्ते पर हो लिये, आगे कोसी नदी पर बना एक डैम पड़ा, जहां से एक रास्ता रामनगर चला जाता ओर दूसरा सीतावनी चला जाता है, हम रामनगर वाले रास्ते पर चल दिए, कुछ ही मिनटों मे रामनगर पहुँच गए, रामनगर से गर्जिया तक बहुत से होटल बने है, इस रोड पर बहुत से हाथी  वाले भी बैठे थे जो हाथी पर बैठ कर जंगल सफारी कराते है, जो तकरीबन आपको तीन चार घंटे जंगल की सैर कराते है, एक हाथी के तकरीबन 3000रू० लेते है, ओर अधिकतम चार आदमी इतने पैसों मे हाथी पर बैठ कर जंगल सफारी का आनंद ले सकते है।
हम रामनगर से सीधे तकरीबन 12 किलोमीटर चल कर दाहिने हाथ पर गर्जिया (गिरिजादेवी) मन्दिर को जो रास्ता जाता है, उस चल पड़े। ढिकाला मार्ग से ही आपको एक बड़ा गेट बना हुआ दिख जाएगा। गर्जिया नामक जगह  गिरिजा माता के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। यह मन्दिर कोसी(कौशिकी) नदी के मध्य एक छोटे से टीले (पहाड़ )पर बना है, कहते है की यह टीला पानी मे बहता बहता हुआ यहां तक आया था, गिरिजादेवी गिरीराज हिमालय की पुत्री थी, माता पार्वती को गिरिजादेवी के रूप से भी जाना जाता है।मन्दिर तक जाने के लिए कोसी पर पुल बना है, मन्दिर तक तकरीबन 90 सीढ़ियों से होकर जाना पड़ता है, इस मन्दिर पर ऊपर तक जाने व वापसी आने का रास्ता मात्र चार या पाँच फुट ही चौड़ा है, ऊपर बस गिरिजादेवी का एक छोटा सा मन्दिर ही है, इस मन्दिर की यहां पर बहुत बड़ी मान्यता है, दूर दूर से लोग यहां पर माता के दर पर माथा टेकने के लिए आते है, यहां पर कुछ भक्तों ने बताया की यहां पर मांगे जानी वाली सारी मनोकामनाएं पूरी होती है, इसलिए तो यहां पर माता के दर्शन के लिए हमेशा भक्तों की लाईन लगी रहती है।
जिस पहाड़ पर माता का मन्दिर है, उसी पहाड़ के नीचे भैरो का मन्दिर भी है। यह एक छोटी सी गुफा में स्थित है। ओर एक शिव मन्दिर भी बना है।
हम तीनों पास ही एक दुकान से प्रसाद लेकर मन्दिर की लाईन में लग गए। लाईन लम्बी थी पर इतनी बड़ी नही थी, मैं पहले भी एक बार यहां पर आ चुका हुं, तब माता के दर्शन नही हो पाए थे। इसलिए मैं दर्शन का यह मौका नही चुकना चाहता था। हम तीनों लाईन मे लगे रहे, तकरीबन एक घंटे बाद हमने माता गिरिजादेवी के दर्शन किये। ऊपर से कोसी का सुंदर दृश्य दिखाई पड़ रहा था, लेकिन जगह की कमी की वजह से हमे जल्द ही नीचे उतरना पड़ा। नीचे आकर हम तीनों कोसी के किनारे पहुँचे, कोसी का जल बहुत स्वच्छ व साफ दिख रहा था, पानी को देखकर तुरंत ही हम तीनों का इसमें नहाने का मन बन गया ओर बिना देरी करे हम कोसी के शीतल जल मे जमकर नहाए। यहां पर हमने एक गाय को नदी पार करते देखा।
नहाने के पश्चात हम गाड़ी तक पहुँचे, ओर गाड़ी लेकर रामनगर आ गए, यहां पर हमने एक मिठाई की दुकान से उत्तराखंड की प्रसिद्ध बाल मिठाई खरीदी। मुझे यह बाल मिठाई खाने में  बहुत अच्छी लगती है, फिर हम काशीपुर होते हुए, मुरादाबाद पहुँचे, रास्ते मे खाना खाकर रात को तकरीबन दस बजे दिल्ली आ गए।
यात्रा समाप्त.......
अब कुछ फोटो देखे जाएँ, इस यात्रा के........
मैराथन दौड़ 
ललित और सचिन 
नैनीताल में गुरुदवारा साहिब 
नयनादेवी मन्दिर का बाहरी दवार। 
नैनादेवी के दर्शन कर लो आप भी 
बहुत मछलियाँ थी यहाँ पर। 
नैनीझील 
नैनीझील 
चारगांव 
चारगांव में एक दुकान जहा हमने नाश्ता किया था। 
रास्ते में एक छोटा सा झरना भी मिला। 
मै (सचिन त्यागी)
सिंचाई के लिए बनायीं गयी एक छोटी सी झील। 
पता नहीं यह क्या था। 
खुर्पाताल 
खुर्पाताल में माता मनसा देवी मंदिर। 
यह कोई फल था नाम नहीं पता। 
सुन्दर रास्ते 
रास्ते में ऐसी सुन्दर जगह की रुकने को अपने आप मन कर जाएं। 
कैप्शन जोड़ें
इस लकड़ी में छोटे छोटे कई सारे पौधे उगे हुए थे। 
कालाढूंगी से पहले सड़क किनारे  सुनसान जंगल 
वकील साहब चल दिए फोटो खीचने जंगल  अंदर। 
दीमक की बांबी 
रास्ते में एक नदी पड़ी जहा पर बहुत सारे लँगूर दिखाई दिए। 
एक तिराहा व  दिशा बताता शाइन बोर्ड। 
कॉर्बेट फॉल ( नयागांव) 
रामपुर से गर्जिया जाते हुए एक लोहे का पुल। 
एक ऐलिफेन्ट सफारी पॉइंट।, जहा  आप कुछ मनी देकर जंगल सफारी का आनंद ले सकते है। 
गर्जिया देवी तक जाता रास्ता। 
कोसी नदी (गर्जिया )
गिरिजा देवी मन्दिर 
मै सचिन त्यागी  गर्जिया देवी मंदिर पर। 
मंदिर पर दर्शन के लिए  लाइन लगी हुई हैं व मंदिर के निचे शिव और भैरो मन्दिर। 
मंदिर तक खड़ी सीढ़िया और छोटा सा रास्ता। 
ऊपर माता गिरिजादेवी के दर्शन। 
मंदिर से लिया गया कोसी नदी का एक फोटो। 
कोसी में स्नान 
एक गऊ माता कोसी में 
नदी पार करती गऊ माता। 

मंगलवार, 1 दिसंबर 2015

एक छोटी सी यात्रा( नैनीताल )

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12, सितम्बर, 2015
समुद्र तट से 1938 मीटर की ऊंचाई पर स्थित विश्व प्रसिद्ध पर्यटन नगरी नैनीताल सैर-सपाटे के लिये बेहद उम्दा शहर है। यहां की ऊंची-ऊंची पर्वत श्रृंखलायें, लहराते हुये हरे-भरे पेड़ों की चोटियां और ठण्डी आबो-हवा किसी का भी दिल जीतने के लिये काफी है। शहर का दिल कहलायी जाने वाली नैनी झील यहां के आकर्षण का मुख्य केन्द्र है। आप नैनीताल किसी भी मौसम में आ सकते है। यहां पर आपको हमेशा चहल पहल मिलेगी ही।
हम लोग तकरीबन साढ़े दस बजे नैनीताल पहुँच गए। हमे नैनी झील का शानदार नजारा दिख रहा था, झील के दोनों ओर सड़क बनी है, जिसे मल्लीताल व तल्लीताल कहा जाता है। नैनीताल में बच्चो के लिए बहुत स्कूल बने है, जहां पर हास्टल सुविधा होती है। शेरवुड व बहुत से अन्य नामी स्कूल यहां पर खुले है। मुझे भी अपने एक जानकार के बच्चे से मिलने ऐसे ही एक स्कूल (बिरला स्कूल) में जाना था, यह नैनीताल जू (Zoo) वाली रोड पर स्थित है, हम नैनीताल मे प्रवेश करते ही एक दुकान पर पहुँचे, जहां से बच्चे के लिए कुछ जूस वगैरहा ले लिया, दुकान वाले से ही रास्ता पुछा तो उसने बताया की कुछ दिन पहले यहां पर बहुत तेज बारिश होने के कारण वह रास्ता कई जगह से टुट गया है, जो फिलहाल तो बंद है। फिर हमने यही रास्ता बंद होने की बात एक पुलिस वाले से भी जानी। फिर मैंने अपने जानकार व बच्चे के पिता को ही फोन लगाया ओर इस बात से अवगत कराया की रास्ता तो बंद है, तब उन्होंने हमे दूसरा रास्ता बताया। हम उनके बताए रास्ते पर चल दिए।
नैनीताल मे मॉलरोड पर गाड़ी प्रवेश शुल्क देना होता है, यह शुल्क (100रू०) देकर हम मॉलरोड मे प्रवेश कर गए, मॉल रोड नैनीताल की पहचान है, काफी सारे होटल, रेस्तराँ, दुकानें व स्ट्रीट फूड वाले यहां पर होते है ओर रात मे यह रोड जन्नत सी बन जाती है, मालरोड के किनारे किनारे नैनीझील भी है, जो हर समय सुंदर ही दिखाई देती रहती है। झील मे चलती नाव, तैरती बत्तखे, इसे ओर भी सुंदर बना देती है। झील के किनारे ही तिब्बती मार्केट बनी है, ओर साथ मे मां नैनादवी का मन्दिर भी।
हम लोग गाड़ी से मॉलरोड पार करते हुए, बारापत्थर पहुँचे। जहां से एक रोड सडियाताल ओर खुरपाताल से होते हुए रामनगर की तरफ चला जाता है, ओर दूसरा रोड नैना पीक व झील व्यू प्वाइंट तक चला जाता है, हम दूसरे वाले, यहां कहे की दाहिने वाले रोड पर मुड़ गए। कुछ तकरीबन 2km चलने पर एक छोटा सा रास्ता दाहिने तरफ कट जाता है, हम उसी पर हो लिये। यह रास्ता इतना छोटा था की बस एक ही गाड़ी चल सकती थी, इसी रास्ते पर एक गांव भी पड़ा, फिर यह रास्ता बिरला स्कूल पर जाकर ही खत्म होता है। स्कूल गए वहां पर जाकर बच्चे का नाम, कौन सी क्लास मे पढ़ता है बताया, तब जाकर हमे अंदर जाने दिया। स्कूल काफी ऊंचाई पर तो बना है, ही साथ मे चीड, देवदार के पेडो के बीच बसा है। इसलिए यहां का नजारा बहुत ही मन मोहने वाला था, यहां पर बड़ी ठंडी हवा चल रही थी ओर साथ मे कोहरा भी आ जाता था, बड़ा ही सुंदर मौसम था यहां पर , यह स्कूल काफी बड़ा भी है, वो तो हमे बाते करते हुए एक टीचर ने सुन लिया, ओर वो हमारे पास आ गए तब हमने उन्हें बताया की हम एक बच्चे (सार्थक, 11th class) को देखने आए है। तब उन्होंने हमारी बहुत मदद की, हमे अपनी गाड़ी मे बिठाकर, क्लास तक ले गए, वहा पर सार्थक नही था, फिर उन्होंने पता कराया की वह कहां पर है, पता चला की वह स्कूल की डिस्पैंसरी मे है, फिर वो हमे वहां पर ले गए। हम सार्थक से मिले व कुछ अस्वस्थ लग रहा था, मैंने उसकी बात उसके पिता से कराई ओर वह उसी दिन स्कूल के हेडमास्टर के साथ दिल्ली चला गया। हमने जिस टीचर मे हमारी मदद की, उनको धन्यवाद किया, टीचर का नाम ललित शर्मा था ओर वह गाजियाबाद के रहने वाले थे, उन्होंने हमारी भाषा से ही पहचान लिया था की हम गाजिायबाद से आए है, उनको धन्यवाद करके हम वापिस चल पड़े।
हम लोग वापिस मैन रोड पर आ गए। लगभग दिन के तीन बज रहे थे। वैसे हमने आज अलमोडा व वहां से बिनसर रूकना था पर तीनों की सहमति से आज नैनीताल ही रूकना तय हो गया। क्योकी ललित इससे पहले नैनीताल नही आया था , इसलिए वो नैनीताल मे ही घुमना चाहता था । हम वहां से नैनी झील व्यू प्वाईंट की तरफ निकल चले। तकरीबन दो-तीन किलोमीटर चलने पर ही हम वहां पहुंच गए। लेकिन मौसम ने हमारा साथ नही दिया, धुंध ज्यादा होने के कारण हमे वहां से नैनीझील के दर्शन नही हो पाए। मैं पहले भी नैनीताल आ चुका हुं, तब मैं यहाँ पर भी आया था, तब मुझे यहां से नैनीझील के बहुत अच्छे दर्शन हुए थे। लेकिन आज धुंध के कारण हम उस नजारे को देख नही सके। हम लोग वहां से थोड़ी दूर ओर चले, आगे एक गांव दिखाई दिया, गाँव से पहले ही थोड़ी देर रूक कर हम वापिस नैनीताल की तरफ चल पड़े। थोड़ी से ही चले थे की एक मन्दिर दिखलाई दिया, हमने गाड़ी वही मन्दिर के पास ही खड़ी कर दी ओर चल पड़े मन्दिर के दर्शन करने के लिए, मन्दिर के आसपास बहुत धुंध थी, यहां पर हमारे वकील साहब एक चट्टान पर चढ़ गए, मैंने उनके फोटो खिंच लिए, ललित व प्रवीण जी यहां आकर खुश लग रहे थे। मन्दिर पर ही हमे दिल्ली के कुछ लड़के मिले, उन्होंने बताया की आगे एक गांव है, वहां जाईये बहुत खूबसूरत गांव है, वहां से आगे जाकर शानदार नजारे देखने को मिलते है, उन्होंने बताया की वह लोग जब भी नैनीताल आते है तो वहां जरूर जाते है। हमने उन्हें बताया की हम गांव तक जाकर वापिस लौट आए, कभी जब यहाँ आएँगे तब गाँव से आगे तक जाएँगे।
अब हम वापिस बारहपत्थर तिराहे पर पहुँचे, वहां से हम खुपराताल की तरफ जाते रास्ते पर मुड़ गए। कुछ दूर ही चले थे की घोड़े वाले खड़े थे, कहने लगे की आपको ऊपर पहाड़ी पर ले चलेंगे। पर हमने मना कर दी, हम उनसे थोड़ा आगे जाकर रूक गए। रूकते ही हमारे वकील साहेब(प्रवीण) एक ऊंचे पत्थर पर चढ़ गए ओर कहने लगे की चलो ऊपर की तरफ चलते है, उनके कहने पर मैं भी उनके साथ हो लिया पर ललित ने साफ मना कर दिया। हम दोनों उस पहाड़ी चढ़ते रहे। आगे आगे वकील साहब ओर उनके पिछे मैं। हम  बढ़ते रहे। काफी देर बाद हम ऊपर एक पहाड़ी पर पहुँचे। यहां से नीचे देखने पर बहुत सुंदर दृश्य दिखाई दे रहा था, सर्पाकार सड़क दिखाई दे रही थी, आगे केवल सफेद धुंध ही धुंध नजर आ रही थी, हमे थोड़ा सा सांस भी चढ़ रहा था, क्योकी हम मैदानी लोगों को इस तरह की मेहनत की आदत नही है, ऊपर हमे एक पहाड़ी कच्चा रास्ता दिखाई दिया, हम उस पर चलने लगे, हम बिल्कुल उस पहाड़ी पर पहुँच गए, जहां पर नीचे घोड़े वाले खड़े थे, अब हम नीचे की तरफ वापिस उतरने लगे। थोड़ा सा ही उतरे थे की हमे नीचे ललित दिखलाई दिया, हमने वहीं से ललित को बहुत आवाजें दी, पर ललित ने एक ना सुनी, फिर हम पहाड़ी पर शार्ट कट मारते हुए नीचे उतर आए। ललित गुस्से मे था की तुम लोग इतनी देर कहां चले गए, हमने उसे बताया की ऊपर बहुत अच्छा लग रहा था, तब उसने कहां की ठीक है, अब जल्दी से होटल देख लो रात को रूकने के लिए, हम वापिस नैनीताल की तरफ चल पड़े, माल रोड पर कई होटल देखे, बाद मे होटल शालीमार मे एक कमरा ले लिया, कमरा साफ सुथरा था, तीन बेड पड़े थे। इस कमरा के हमे 1500 रू० देने पड़े। कमरे के बाहर बाल्कनी से झील व माल रोड पर चलने वालों की चहल पहल दिखाई दे रही थी। सामने ही अमर ऊजाला अखबार का दफ्तर था, गाड़ी से कपड़े व ओर समान उतार कर कमरे मे रख दिया। फिर मैं ओर वकील साहेब गाड़ी को पार्किंग मे खड़ी करने के लिए चले गए। शाम के छ: बज रहे थे, मॉल रोड पर लाईटे जल गई थी, हम पार्किंग में गाड़ी लगाकर, नैना देवी के मन्दिर चले गए, वहां से दर्शन करने के बाद हम होटल पहुँचे, लगभग शाम के सात बज रहे थे, कमरे में ही घुसते ललित ने गुस्से में कहा की तुम लोग अकेले घुम रहे हो, ओर मैं यहां पर तुम लोगों का इंतजार कर रहा था, उसको हमने बताया की पार्किंग के पास जाम लग गया था, इसलिए लेट हो गए थे, लेकिन हमारे माथे पर तिलक देखकर वह ओर भड़क गया। बोला की मन्दिर भी हो आए तुम तो। हम चुपचाप खड़े रहे, थोड़ी देर बाद ललित सामान्य हो गया, फिर हम तीनों मॉलरोड की तरफ चले गए। थोड़ी देर झील के किनारे बैठे, रात मे झील बहुत खूबसूरत दिखाई दे रही थी। झील में दूर पहाड़ी की लाईटो का प्रतिबिंब दिखाई दे रहा था, जो इसकी खूबसूरती को ओर भी बढ़ा रहा था, फिर हम एक रेस्ट्रोरेंट मे जाकर पेट पूजा कर आए, खाना खाने के बाद हम तीनों मॉल रोड पर घुमते रहे। ओर तकरीबन रात के दस बजे वापिस होटल आ गए। सभी ने  घर फोन कर बता दिया की आज हम नैनीताल रूके है, फिर हम सब सोने के चले गए।
अब कुछ फोटो देखें जाए........
बिरला स्कूल नैनीताल  
बिरला स्कूल, कोहरे की वजहें फोटो साफ़ नहीं आया। 
ललित शर्मा जी वही टीचर जिन्होंने हमारी हेल्प की थी। 
वकील साहेब 
यहाँ पर बहुत कोहरा था। 
सार्थक जिसे हम देखने के लिए आये थे। 
स्कूल से वापिस रोड पर आ गए ओर चल पड़े व्यू पोईन्ट की तरफ। 
रास्ता और एकान्त 
कुछ नज़र आया क्या 
एक मंदिर जहा हम रुके थे। 
मंदिर का दर्शय थोड़ा दूर से. 
ललित , प्रवीन , सचिन 
वकील साहब 
अब नजर आए। 
यही लोग  हमे मंदिर पर मिले थे।  

ललित 
 घने कोहरे की वजहें से हमे झील के दर्शन नहीं हो पाये। 
कैप्शन जोड़ें
वकील साहब को चैन नहीं जॅहा देखो पहाड़ पर चढ़ जाते है। 
चलो हम भी चलते है। 
थोड़ा ऊपर पहुँचने पर ऐसा मौसम हो गया। 
एक फोटो मेरा भी 
ऊपर 
एक रास्ता मिला।
एक फूल 
एक फूल 
एक फूल 
मालरोड पर ललित ओर प्रवीन 
मालरोड पर कुछ छोटी दुकानें  
मालरोड पर बनी एक कलाकृति। 
रात में झील