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29 June 2015,दिन सोमवार
कल काफी देर रात सोने के कारण आँखें सुबह के 5:30 पर खुली। इसका मतलब यह हुआ की हम अब महाकाल की भस्म आरती नही देख पाएँगे।क्योकी यह आरती सुबह 4बजे होती है।हम सभी लोग जल्दी जल्दी नहा व रोज के जरूरी कार्यों को निपटा कर,होटल से अपनी अपनी गाड़ी से निकल पड़े,महाकाल के दर्शन करने के लिए।होटल से महाकाल मन्दिर तकरीबन 2से 3km की दूरी पर था,हम एक बाजार से निकलते हुए,महाकालेश्वर मन्दिर की पार्किंग मे गाड़ी खड़ी कर दी। मन्दिर के बाहर बनी एक दुकान से सभी ने प्रसाद व शिव का जलाभीशेक करने के लिए जल ले लिया।मन्दिर के बाहर दो तीन जगह LCD.TV लगे थे जो महाकाल मन्दिर के अन्दर की लाईव कवरेज दिखा रहे थे।मन्दिर मे दर्शन हेतु लम्बी लाईन लगी हुई थी।कुछ लोग स्टाफ चलाकर सीधा मन्दिर में भी जा रहे थे।हमने vip दर्शन वाली 150रू० की टिकेट खरीद ली।सभी प्रकार के बैग,कैमरा,मोबाइल आदि जितनी वस्तुएँ थी वो हमने पहले ही अपनी गाड़ियों मे रख दी थी।क्योकी यह वस्तुएँ मन्दिर मे अन्दर ले जाना मना है।मन्दिर में घुसते ही कुछ पंडितों ने विशेष पूजा कराने के लिए बोला,पर हमने नही कराई हम तो केवल उज्जैन के राजा महाकालेश्वर उर्फ महाकाल के दर्शन करने मात्र पर ही अपने आप को धन्य समझ रहे थे।क्योकी यह शिवलिंग 12 ज्योतिर्लिंग में आता है।ओर यह एक मात्र दक्षिणी मुखी शिवलिंग है।भगवान शिव ने यहां पर एक बालभक्त को दर्शन देते हुए कहा था की मैं यही रहुंगा।इसलिए उज्जैन को शिव की नगरी कहा जाता है।इस मन्दिर का पुराणों व महाभारत आदि मे भी जिक्र है।
यहां पर सभी भक्तो का जल शिवलिंग पर चढ़े ओर भीड़ भी ना हो इसलिए यहां पर एक पाईप लगा हुआ था,सभी उसी मे जल चढ़ा रहे थे।हम सभी ने भी उसी पाईप मे जल डाल दिया जिसका मुहं शिवलिंग के सीधे ऊपर था।अर्थात आप जो जल पाईप मे डालेगे वह सीधा शिवलिंग पर ही चढेगा।हमने महाकाल के दर्शन किये।ओर वही बनी सिढियो पर खड़े हो गए।हम दर्शन करने के पश्चात चलने ही लगे थे की सूरज भाई ने बताया की अभी 7:15 बज रहे है अब से तकरीबन 15मिनटों बाद भगवान महाकाल का भांग श्रंगार व आरती होगी उसे देखकर चलेंगे।उनके कहने पर हम वही सिढियो पर बैठ गए।लोग आ रहे थे,शिव की जयजयकार से पूरा हॉल गूंज रहा था।हर कोई महाकाल के दर्शन करने को उत्साहित था।अगर पुलिस वाले वहां से लोगों को ना हटाए तो बहुत बुरी हालत हो जाए।
कुछ ही देर बाद जल चढना रोक दिया गया ओर मन्दिर की साफ सफाई होने लगी।मन्दिर मे शिवलिंग पर तरह तरह के लेप लगाए जाने लगे।शिवलिंग पर आंखे बनाई गई,मुंछे बनाई गई,चंदन का टिका लगाया गया।पुष्षो से सजावट हुई।कुछ देर बाद शिवलिंग से साक्षात शिव की झलक दिखने लगी।शिव का ऐसा रूप अपनी आंखों से मेने पहले कभी ना देखा था।हर तरफ जय भोलेनाथ व हर हर महादेव के जयकारे लगने लगे।ढोल व डमरू बजने लगे ओर कुछ ही देर बाद वहा पर मौजूद हर भक्त तालियाँ बजाते हुए,महाकाल की इस विशेष आरती मे शामिल हो गया।आरती शुरू होते ही पहले के स्वर सब शांत हो गए।हर कोई आरती मे ध्यान मग्न हो गया।कुछ समय पश्चात आरती समापन हुई।ओर लोगों ने ज्यौत आरती ली।
हम लोग भी प्रसाद चढ़ा कर व आरती लेकर मन्दिर से बाहर एक छोटे से प्रांगण मे आ गए,महाकालेश्वर मन्दिर के बिल्कुल ऊपर ओंकारेश्वर नाम का मन्दिर ओर बना है,जहां पर भी भगवान शिव की एक शिवलिंग स्थापित है।
ओर भी बहुत से अन्य मन्दिर यहां पर बने थे।इनको भी देखकर हम सभी अपनी अपनी गाड़ियों पर सवार होकर आगे की यात्रा पर चल पडे.............
कल काफी देर रात सोने के कारण आँखें सुबह के 5:30 पर खुली। इसका मतलब यह हुआ की हम अब महाकाल की भस्म आरती नही देख पाएँगे।क्योकी यह आरती सुबह 4बजे होती है।हम सभी लोग जल्दी जल्दी नहा व रोज के जरूरी कार्यों को निपटा कर,होटल से अपनी अपनी गाड़ी से निकल पड़े,महाकाल के दर्शन करने के लिए।होटल से महाकाल मन्दिर तकरीबन 2से 3km की दूरी पर था,हम एक बाजार से निकलते हुए,महाकालेश्वर मन्दिर की पार्किंग मे गाड़ी खड़ी कर दी। मन्दिर के बाहर बनी एक दुकान से सभी ने प्रसाद व शिव का जलाभीशेक करने के लिए जल ले लिया।मन्दिर के बाहर दो तीन जगह LCD.TV लगे थे जो महाकाल मन्दिर के अन्दर की लाईव कवरेज दिखा रहे थे।मन्दिर मे दर्शन हेतु लम्बी लाईन लगी हुई थी।कुछ लोग स्टाफ चलाकर सीधा मन्दिर में भी जा रहे थे।हमने vip दर्शन वाली 150रू० की टिकेट खरीद ली।सभी प्रकार के बैग,कैमरा,मोबाइल आदि जितनी वस्तुएँ थी वो हमने पहले ही अपनी गाड़ियों मे रख दी थी।क्योकी यह वस्तुएँ मन्दिर मे अन्दर ले जाना मना है।मन्दिर में घुसते ही कुछ पंडितों ने विशेष पूजा कराने के लिए बोला,पर हमने नही कराई हम तो केवल उज्जैन के राजा महाकालेश्वर उर्फ महाकाल के दर्शन करने मात्र पर ही अपने आप को धन्य समझ रहे थे।क्योकी यह शिवलिंग 12 ज्योतिर्लिंग में आता है।ओर यह एक मात्र दक्षिणी मुखी शिवलिंग है।भगवान शिव ने यहां पर एक बालभक्त को दर्शन देते हुए कहा था की मैं यही रहुंगा।इसलिए उज्जैन को शिव की नगरी कहा जाता है।इस मन्दिर का पुराणों व महाभारत आदि मे भी जिक्र है।
यहां पर सभी भक्तो का जल शिवलिंग पर चढ़े ओर भीड़ भी ना हो इसलिए यहां पर एक पाईप लगा हुआ था,सभी उसी मे जल चढ़ा रहे थे।हम सभी ने भी उसी पाईप मे जल डाल दिया जिसका मुहं शिवलिंग के सीधे ऊपर था।अर्थात आप जो जल पाईप मे डालेगे वह सीधा शिवलिंग पर ही चढेगा।हमने महाकाल के दर्शन किये।ओर वही बनी सिढियो पर खड़े हो गए।हम दर्शन करने के पश्चात चलने ही लगे थे की सूरज भाई ने बताया की अभी 7:15 बज रहे है अब से तकरीबन 15मिनटों बाद भगवान महाकाल का भांग श्रंगार व आरती होगी उसे देखकर चलेंगे।उनके कहने पर हम वही सिढियो पर बैठ गए।लोग आ रहे थे,शिव की जयजयकार से पूरा हॉल गूंज रहा था।हर कोई महाकाल के दर्शन करने को उत्साहित था।अगर पुलिस वाले वहां से लोगों को ना हटाए तो बहुत बुरी हालत हो जाए।
कुछ ही देर बाद जल चढना रोक दिया गया ओर मन्दिर की साफ सफाई होने लगी।मन्दिर मे शिवलिंग पर तरह तरह के लेप लगाए जाने लगे।शिवलिंग पर आंखे बनाई गई,मुंछे बनाई गई,चंदन का टिका लगाया गया।पुष्षो से सजावट हुई।कुछ देर बाद शिवलिंग से साक्षात शिव की झलक दिखने लगी।शिव का ऐसा रूप अपनी आंखों से मेने पहले कभी ना देखा था।हर तरफ जय भोलेनाथ व हर हर महादेव के जयकारे लगने लगे।ढोल व डमरू बजने लगे ओर कुछ ही देर बाद वहा पर मौजूद हर भक्त तालियाँ बजाते हुए,महाकाल की इस विशेष आरती मे शामिल हो गया।आरती शुरू होते ही पहले के स्वर सब शांत हो गए।हर कोई आरती मे ध्यान मग्न हो गया।कुछ समय पश्चात आरती समापन हुई।ओर लोगों ने ज्यौत आरती ली।
हम लोग भी प्रसाद चढ़ा कर व आरती लेकर मन्दिर से बाहर एक छोटे से प्रांगण मे आ गए,महाकालेश्वर मन्दिर के बिल्कुल ऊपर ओंकारेश्वर नाम का मन्दिर ओर बना है,जहां पर भी भगवान शिव की एक शिवलिंग स्थापित है।
ओर भी बहुत से अन्य मन्दिर यहां पर बने थे।इनको भी देखकर हम सभी अपनी अपनी गाड़ियों पर सवार होकर आगे की यात्रा पर चल पडे.............
उज्जैन शहर का इतिहास:- उज्जैन भारत में क्षिप्रा नदी के किनारे बसा मध्य
प्रदेश का एक प्रमुख धार्मिक नगर है। यह ऐतिहासिक
पृष्ठभूमि लिये हुआ एक प्राचीन शहर है।
उज्जैन महाराजा विक्रमादित्य के शासन काल में उनके राज्य
की राजधानी थी। इसको
कालिदास की नगरी भी
कहा जाता है। उज्जैन में हर 12 वर्ष के बाद ' सिंहस्थ कुंभ '
का मेला जुड़ता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक
'महाकालेश्वर ' इसी नगरी में है। मध्य
प्रदेश के प्रसिद्ध नगर इन्दौर से यह 55 कि.मी.
की दूरी पर है। उज्जैन के अन्य
प्राचीन प्रचलित नाम हैं- 'अवन्तिका',
'उज्जैयनी', 'कनकश्रन्गा' आदि। उज्जैन मन्दिरों
का नगर है। यहाँ अनेक तीर्थ स्थल है।जैसे-महाकालेश्वर मन्दिर,बड़े गणेश मन्दिर,हरसिद्धि मन्दिर,गढ़ कालिका मन्दिर,कालभैरव मन्दिर,गोपाल मन्दिर,मंगलनाथ मन्दिर,संदिपनी आश्रम व क्षिप्रा नदी।
प्रदेश का एक प्रमुख धार्मिक नगर है। यह ऐतिहासिक
पृष्ठभूमि लिये हुआ एक प्राचीन शहर है।
उज्जैन महाराजा विक्रमादित्य के शासन काल में उनके राज्य
की राजधानी थी। इसको
कालिदास की नगरी भी
कहा जाता है। उज्जैन में हर 12 वर्ष के बाद ' सिंहस्थ कुंभ '
का मेला जुड़ता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक
'महाकालेश्वर ' इसी नगरी में है। मध्य
प्रदेश के प्रसिद्ध नगर इन्दौर से यह 55 कि.मी.
की दूरी पर है। उज्जैन के अन्य
प्राचीन प्रचलित नाम हैं- 'अवन्तिका',
'उज्जैयनी', 'कनकश्रन्गा' आदि। उज्जैन मन्दिरों
का नगर है। यहाँ अनेक तीर्थ स्थल है।जैसे-महाकालेश्वर मन्दिर,बड़े गणेश मन्दिर,हरसिद्धि मन्दिर,गढ़ कालिका मन्दिर,कालभैरव मन्दिर,गोपाल मन्दिर,मंगलनाथ मन्दिर,संदिपनी आश्रम व क्षिप्रा नदी।
जय महाकाल |
गूगल से साभार(महाकालेश्वर मंदिर ) |
भांग श्रृंगार |
उज्जैन का एक चौराहा |
बस मंदिर के लिए यही से जाना हैं। |
बस सामने ही मंदिर नजर आ रहा है। और सामने टीवी स्क्रीन पर मंदिर की लाइव कवरेज चलती हुई। |
मन्दिर के सामने दुकाने |
मन्दिर का मुखय प्रवेश द्धार (सड़क से ) |
एक फोटो मेरा भी महाकाल की नगरी में। |