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बुधवार, 29 मार्च 2017

लैंसडौन यात्रा : ताडकेश्वर महादेव मन्दिर व दुर्गा देवी मन्दिर

tadkeshwar temple, uttrakhand

4 मार्च 2017 को मेरा लैंसडौन (लैन्सडाऊन) जाने का प्रोग्राम बना। हुआ ऐसा की 3 मार्च को घर में पूजा थी, घर पर कई मेहमान भी आए थे। जिसमे मेरे बडे जीजा जी भी आए। उनको कोटद्वार किसी काम से जाना था।  मुझसे साथ में चलने के लिए बोला। मै मना ना कर सका और उनके साथ चलने के लिए सहमति दे दी। कुछ देर बाद पता चला की अब वो एक दिन पहले चलेंगे। क्योकी अब दीदी व मेरा भांजा आयुष भी चल रहा था , उनका लैंसडौन घुमने का कार्यक्रम बन गया था। इसलिए उन्होने होटल मयूर में (गांधी चौक ,लैंसडौन) रूम भी बुक कर दिए थे। अब लैंसडौन तक पहुंचाने व घुमाने की जिम्मेदारी मुझ पर थी।

4 मार्च की सुबह तकरीबन आठ बजे हम सब कार से लैंसडौन के सफर पर निकल चले। दिल्ली से मेरठ तक सुबह काफी ट्रैफिक मिला। मेरठ शहर से मवाना रोड होते हुए हम मीरापुर पहुंचे यहां से हमने खाने के लिए फल भी लिए। यहां से एक रास्ता सीधा मुजफ्फरनगर चला जाता है। और एक रास्ता खतौली की तरफ जाता है और तीसरा दाहिनी तरफ से बिजनौर की तरफ चला जाता है। हमे बिजनौर वाले रास्ते पर ही चलना था। इसलिए गाडी उधर की तरफ ही मोड दी। थोडा आगे चलने पर गंगा नदी पर बैराज बना है। यहां पर हम थोडी देर रूके और घर से लाए सब्जी व पूरी भी खाई ली। मैने देखा की पास के एक पेड पर बेर लगे हुए थे। मैने थोडे से बेर भी तोडे। कुछ देर बाद हम यहां से चलकर बिजनौर पहुँच गए। बिजनौर से दो रास्ते कोटद्वार जाते है, पहला किरतपुर से नजीबाबाद होते हुए सीधा कोटद्वार। दूसरा बिजनौर से कौतवाली होते हुए नजीबाबाद और फिर कोटद्वार। दूसरा रास्ता पहले रास्ते से कुछ बडा है। लेकिन इस पर ट्रैफिक कम है। इसलिए हमने दूसरा रास्ता ही चुना कोटद्वार पहुंचने के लिए। यह रास्ता सिंगल लेन ही है, लेकिन ट्रैफिक इतना नही है। तकरीबन हम दोपहर के 1बजे कोटद्वार पहुंचे। तकरीबन दिल्ली से हमे कोटद्वार तक पहुँचने में पांच घंटे का समय लग गया.

खोह नदी का पुल पार करते ही सिद्ध बली का मन्दिर दिखाई दे रहा था। मन्दिर एक ऊंचे टीले पर बना है। हमने दूर से ही हनुमान जी को प्रणाम किया क्योकी हम यहां पर कल आएगे। आज हम पहले ताडकेश्वर महादेव मन्दिर जाएगे और फिर बाद मे लैंसडौन। कोटद्वार से हम लगातार खोह नदी के साथ चल रहे थे। तकरीबन दस बारह किलोमीटर चलने पर दुर्गा देवी नामक मन्दिर आया। इसका मुख्य द्वार रोड पर ही है लेकिन मन्दिर दर्शन के लिए नीचे जाना होता है। कार रोड पर पर साईड में खडी कर हम मन्दिर में नीचे चल पडे। थोडा सा चलने पर हम एक गुफा पर पहुंचे । इसी गुफा में माता की मूर्ति व एक शिवलिंग के दर्शन हुए। गुफा में लगभग लेट कर या घुटनो के बल ही जाया जा सकता है। पास में ही एक साधु बाबा बैठे हुए धुनी रमा रहे थे। उन्होने माथे पर धुनी की भभूत भी लगाई। उन्होने इस जगह के बारे में बस इतना ही बताया की यह जगह प्राचीन काल से ही बहुत मान्यता वाली है। पहले यहां पर साधु व तपस्वियों ने बहुत तपस्या की है। मन्दिर के नदी की ओर जाली लगी हुई थी,  पता चला की पहले यहां पर जंगली जानवर भी आ जाते थे फिलहाल बंदरो से बचने व कोई नदी की तरफ ना जाए इसलिए यह जाली लगाई हुई है। मुझे यह जगह बहुत सुंदर लगी। खोह नदी का बहाव कम था लेकिन फिर भी इसे देखना अच्छा लग रहा था।

दुर्गा देवी मंदिर से तकरीबन 5 किलोमीटर चलने के बाद दुगड्डा नाम की जगह आती है। जहां से एक रास्ता नीलकंठ महादेव मन्दिर की तरफ चला जाता है। और एक रास्ता गुमखाल की तरफ चला जाता है। लेकिन हम लैंसडौन रोड पर ही चलते रहे। दुगड्डा से तकरीबन 20 किलोमीटर चलने पर सडक दो भागो में बंट जाती है। वहां से एक सड़क लैंसडौन चली जाती है। यहां से लैंसडौन मात्र 6 किलोमीटर ही रह जाता है। और दूसरी सड़क दाहिनी तरफ चली जाती है। जो चमकोट व डौरीयाखाल होते हुए चौखुलियाखाल तक जाती है। वैसे यह सड़क आगे कर्णप्रयाग तक जाती है। लेकिन हमे चौखुलियाखाल से बांयी तरफ जाती एक छोटी सी सड़क पर ही मुडना था। यह सड़क सीधा ताडकेश्वर मन्दिर तक पहुंचा देती है।

हम इसी सड़क पर चल पडे। मुख्य सड़क से ताडकेश्वर मन्दिर तक की दूरी पाँच किलोमीटर है। अब तक हमे चीड का जंगल मिल रहा था , अब हमे बांज व बुरांस का जंगल देखने को मिल रहा था। बुरांस के लाल फूल हर पेड पर दिखाई दे रहे थे, कुछ फूल सड़क पर बिखरे हुए थे जिनको देखकर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने सड़क पर लाल रंग का गलीचा बिछा दिया हो। बुरांस के फूल का शर्बत बहुत अच्छा लगता है पीने में,  यह दिल व दिमाग के लिए बहुत लाभदायक होता है। कुछ ही देर बाद हम ताडकेश्वर महादेव मन्दिर तक पहुँच गए। एक बडे सी खाली जगह पर गाडी खडी कर दी। दो दुकानें भी यहां बनी थी लेकिन फिलहाल बंद थी। गाडी खडी कर हम मन्दिर की तरफ चल पडे। मन्दिर लगभग तीन चार सौ मीटर दूर बना है। अब एक चीज पर ध्यान गया। अब तक हमको यहां पर बांज व बुरांस के पेड ही दिख रहे थे अब हमको यहां पर देवदार के गगनचुम्बी पेड दिख रहे थे। जबकी यह पेड हमे आसपास व पूरे रास्ते में नही दिखे। मैने मोबाईल की एक एेप से यहां की ऊंचाई नापी तो समुंद्र की सतह से 1824 मीटर ऊंचाई आयी। मन्दिर से पहले एक आश्रम व धर्मशाला भी बनी है। जहां पर आप रात में रूकना चाहे तो रूक सकते है। एक व्यक्ति वहां पर मुझे मिला। नाम याद नही पर सरनेम भट्ट था उसने बताया की आपको यहां पर 1100 रू मे फैमली के लिए कमरा मिल जाएगा। धर्मशाला से कुछ आगे नहाने के लिए कुंड भी बने है।

मन्दिर से कुछ पहले रास्ते पर दोनो तरफ घंटियां लगी हुई है। जो वहां के शांत माहौल को चीरती हुई मन की ध्वनि को जगाती है। कुछ ही पल मे हम मन्दिर परिसर में आ गए। मुख्य मन्दिर बीच में बना है। मन्दिर के आसपास बहुत से देवदार के पेड लगे है। मन्दिर के पुजारी ने हमे एक पेड दिखाया जो ऊपर जाकर तीन भाग में बंट गया था और त्रिशूल जैसे दिख रहा था। मन्दिर में जाकर शांति से बैठ गए,  पुजारी जी ने प्रसाद दिया । अच्छी बात यह रही की मैने जब मन्दिर में फोटो लेने चाहे तो पंडित जी ने मना नही किया। उन्होने बताया की यह शिव की मूर्ति है। शिव ने यहां पर तपस्या की थी। मन्दिर में एक माता का मन्दिर और भी है। मन्दिर व देवदार के घने पेड़ो के जंगल के बीच केवल हम ही थे। पुजारी जी ने बताया की लोगो ज्यादातर सुबह आते है। हम लगभग 3:30 पर पहुँचे थे। हमारे पूछने पर पुजारी जी ने बताया की यहां पर कभी कभी जंगली जानवर भी आ जाते है। जिसमे भालू, हिरण व जंगली सुअर मुख्य है। कुछ समय मन्दिर परिसर में बिताने के बाद हम लोग वापिस लैंसडौन की तरफ चल पडे। शाम के लगभग पांच बज चुके थे हमे निकलते निकलते । लैंसडौन शहर में प्रवेश करने के लिए प्रति व्यक्ति एक रूपया देना पडा व 24 घंटे के लिए गाडी का शुल्क 100 रूपया भी देना पडा। थोडा चलने के बाद गांधी चौक आ गया,  जहां पर होटल मयूर में हमारे कमरे बुक थे। कमरो मे पहुंचे और खाना वही मंगा लिया और जल्दी ही सो गए।

ताडकेश्वर मन्दिर की कहानी :-  कहते है कि ताड़कासुर का वध करने के बाद भगवान शिव ने यहां इस जगह विश्राम किया था, विश्राम के समय उन्हें सूर्य की किरणों की गर्मी से बचाने के लिये मां पार्वती ने देवदार के सात वृक्ष लगाये थे। आज भी ये सातों वृक्ष मन्दिर के अहाते में हैं।
एक कहानी यह भी है की एक योगी बाबा यहां पर रहा करते थे। शरीर पर भस्म लगाए व हाथ मे चिमटा लिए यहां पर रहते थे लोगो की हरसंभव मदद किया करते थे। जो व्यक्ति बुरा कार्य करता था, जैसे किसी पशु तथा पक्षियों को सताता था। यह बाबा उन लोगो को बहुत ताडते थे। ताडना का मतलब होता है दंड देना, डांटना या तेज आवाज मे बोलना। वह बाबा अपने ताडने के कारण ताडकेश्वर बाबा कहलाने लगे। और यह जगह ताडकेश्वर मन्दिर।


tadkeshwar mahadev video 


अब कुछ फोटो देखे जाएं.........

बेर तोडते हुए।

kotdwar,कोटद्वार 

sidhbali temple, सिद्धबली मन्दिर, कोटद्वार 

रास्ते के नजारे ऐसे हर मोड पर मिलेंगे।


khoh river, खोह नदी


durga devi temple , दुर्गा देवी मन्दिर

दुर्गा मन्दिर थोडा नीचे बना है, सड़क से.. मन्दिर तक जाती सीढियाँ 

गुफा के बाहर हनुमान जी

tample cave in backside , गुफा पीछे दिखती हुई

lizard 

durga devi cave , मन्दिर में यह छोटी सी गुफा ही है जिसमे एक शिवलिंग व एक माता की प्राचीन मूर्ति है।

durga devi temple 

duggada, दुगड्डा


pine forest , चीड का जंगल

left side go for lansdowne and right for tadkeshwar temple , एक मोड

turn left side for temple

reached tadkeshwar temple , ताडकेश्वर मन्दिर पर पहुँच गए। 

मन्दिर तक बना रास्ता
me (sachin) and my jiju

ayush 

जल का कुंड 

मन्दिर के पास बनी एक धर्मशाला।

ताडकेश्वर का इतिहास 

मन्दिर

मन्दिर का प्रवेश द्वार




main murti in tadkeshwar temple ( shiva), मन्दिर की मुख्य मूर्ति 

me

देवदार के एक पेड पर ऊपर त्रिशूल बना हुआ है,  जबकी बाकी पेड सीधे है।

सड़क के एक मोड पर यह जनाब भी मिले।

sun set 

sun set 

 hotel mayur , lansdowne

बुधवार, 8 मार्च 2017

ओरछा यात्रा (पौधा रोपण व ओरछा से वापसी)

इस यात्रा को शरुआत से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे। 

25, दिसम्बर, 2016

सुबह उठकर पहले चाय के लिए नीचे होटल की कैंटीन में गया। वहा कोई नहीं था। फिर राम राजा मंदिर के पीछे एक दुकान दिखी। बस उसी दुकान पर चाय पी ली और एक पैक करा ली। चाय पीने के बाद छत पर घूम रहा था और सामने ओरछा का महल दिख रहा था। महल के पीछे से सूर्य अपनी लाल किरणों से चमकता हुआ ऊपर आ रहा था। ये द्र्श्य ओरछा  के महल को ओर भी सुंदर बना रहा था। हरिद्वार से आये मित्र पंकज शर्मा जी भी अपना कैमरा लिए इस सुन्दर सुबह का हर पल को कैद कर रहे थे।

बाद में मैं  दैनिक कार्य से निर्वत होकर अपना सारा सामान पैक करके कार में रख आया। पता चला की ग्रुप से कुछ महिलाएं मुकेश पांडेय जी के घर गयी हुई थी, नीचे जाकर इस ग्रुप (मिलन समारोह ) के देख रेख करने वाले पांडेय जी व संजय कौशिक जी को तय पैसे भी दे आया। कुछ ही देर बाद नाश्ता आ गया। नाश्ते में गरमा गर्म पोहा व मावे की गुंजिया खाने को मिली। साथ में आगरा से आये रितेश गुप्ता जी ने आगरे का मशहूर पेठा भी खिलवाया। सब एक बड़ी सी मेज पर बैठे थे। नाश्ता करने के बाद मैंने बेतवा नदी के किनारे बनी छतरिया देखना तय किया। और फिर आज मुझे वापिस भी जाना था। इसलिए मैंने पांडेय जी व अन्य सभी से विदा लेते हुए कहा की यह महामिलन हमेशा स्मरण रहेगा। लकिन संजय जी ने कहा की वृक्ष रोपण कार्य हो जाने के बाद चले जाना। मुझे सभी की बात माननी पड़ी और बेतवा नदी के उसी पार्क में पहुच गए जहां हम कल शाम घूम रहे थे।

फिर से वही मज़ाक मस्ती चालू हो गयी। ज्यादातर सभी आपस में पहली या दूसरी बार ही मिल रहे थे। लकिन लग नहीं रहा था की इनसे पहली या दूसरी ही मुलाकात है, लग रहा था की हम एक दूसरे को काफी समय से जानते है। यहाँ पर मुझे एक बुजुर्ग़ व्यक्ति भगवान सिंह बुन्देला मिले। उन्होंने बताया की यहाँ पर जंगल में हिरन, नील गाय , जंगली सूकर , सियार व बन्दर ही है। और उन्होंने बताया की इसी रोड से आगे पाँच किलोमीटर आगे जाने पर एक नदी भी जहा आप कुछ समय बिता सकते हो। उन्होंने मुझे वहा लगे पेड़ो के नाम भी बताये (जो मुझे याद नहीं )। उनसे बात करके मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। वो पहले यही काम करते थे लकिन अब रिटायर हो चुके है। मैंने उनको धन्यवाद किया।

मुकेश पांडेय (दरोगा बाबू ) व ओरछा वन के फारेस्ट ऑफिसर भी वहाँ आ चुके थे। उन्ही की देख रेख में वृक्ष (पौधे) लगाने का व प्रकृति को बचाने का यह महत्वपूर्ण कार्य किया गया। एक पौधा दोस्ती के नाम का मैंने भी लगाया। पता नहीं मैं कब ओरछा आऊँ या ना आ पाऊ लकिन इतना तय है की मैं ओरछा से यादें ही संजो कर ही नहीं ले जा रहा था, बल्कि पौधे के रूप में कुछ देकर भी जा रहा था। सभी दोस्तों से मिलकर व दोबारा मिलने का वादा कर में ओरछा से चल पड़ा। ओरछा से लगभग 11 :40 पर हम चले। पहले मेरा प्रोग्राम बना की ग्वालियर में सिंधिया हाउस व सूर्य मंदिर देखा जाये। लकिन लगभग दोपहर के 3 बज चुके थे। और फिर इतना समय भी नहीं था यह जगह देखी जाये इसलिए मैंने सीधा घर जाना ही तय किया और मैं ग्वालियर रोड से वापिस कार मोड़कर दिल्ली की तरफ चल पड़ा।

यात्रा समाप्त। 
पिछली पोस्ट। 

अब कुछ फोटो देखे जाये। ........ 




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भगवान सिंह 





पौधा रोपण