इस यात्रा के कुछ ओर फोटो....
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शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015
शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015
रेणुका झील की परिक्रमा व mini zoo
दिनांक 26 जनवरी
आज आँख जल्दी ही खुल गई,खिडकी से पर्दा हटाकर बाहर देखा तो पूरे बाजार मे सन्नाटा छाया हुआ था,किसी भी प्रकार की दुकाने नही खुली हुई थी,होटल के सामने गिरी नदी शान्त स्वभाव में बह रही थी,चाय पीने का मन था पर अभी होटल नया बना था इसलिए रेस्टोरेंट की सुविधा नही थी,मै होटल से बाहर आकर थोडी दूर घुम आया पर दुकाने बंद ही मिली,शायद आज 26 जनवरी(गणतंत्र दिवस) है इसलिए दुकाने देर से खुले इसलिए मै वापस होटल की तरफ चल पडा,होटल के बाहर होटल के मालिक मिल गए,थोडी उनसे बातचीत होती रही,उन्ही से पता चला की यहां पर गिरी नदी पर डैम बनाया जाऐगा जहां से बिजली बनेगी व ददाहु से शिमला के लिए व पावंटा साहिब के लिए बस मिल जाती है,उन्होने यह भी बताया की पहले यहां पर बहुत कम बाहर का पर्यटक आता था पर अब यहां पर पर्यटक आने चालू हो गए है,इसलिए ही मेने यह होटल बनाया है,
कुछ देर उनसे बात होती रही इतने में ही होटल के पास वाली एक दुकान खुल गई,मैने उससे दो चाय पैक कराई ओर सीधे अपने रूम मे पहुचां,चाय पीने के बाद,हम नहाकर व सुबह के दैनिक कार्य को निपटा कर गाडी के पास पहुचें,गाडी में समान रखकर सीधे रेणुका झील पहुचें,सुबह सुबह का मौसम था,हर ओर साफ व मन को प्रसन्न करने वाली ताजी वायु चल रही थी,ऐसी जगह मन अपने आप ही खुश हो जाता है,पक्षीयो की आवाज इस माहौल को ओर भी सुन्दर बना रही थी,यहां पर केवल हम ही थे ओर कोई हमे यहां पर दिखाई नही दिया,वैसे थोडी देर बाद यहां पर कई पर्यटक आ गए थे!
देवांग ने गाडी में से एक कुरकुरे का पैकिट निकाल कर खोला ही था की एक बलशाली बंदर महाराज ने वो पैकिट देवांग से छीन लिया ओर पेड पर बैठ कर बडे मजे से कुककुरो का आनन्द लिया,यहां पर बंदरो की बहुत बडी फौज है जो हर जगह आपको मिल जाऐगी ओर आपको परेशान भी कर सकती है,
बंदर से बच कर हम मन्दिर पहुचें,यहा पर पूजा की ,प्रसाद खाया व दक्षिणा दी,वहा पर एक परिवार भी था जो शायद वहां का लोकल भी हो,उन्होने हमे बताया की यहां पर प्रसाद में कच्चे चावल भी मिलते है,वह चावल उनको खिलाए जाते है जिनको बूरे सपने व नींद मे बोलने व चलने की बिमारी होती है,
पंडित जी ने हमे भी कच्चे चावल दिए,हम मन्दिर से बाहर आ गए,मन्दिर के बाहर ही एक टिले नुमा जगह थी जिस पर परशुराम बैठ कर तप किया करते थे,यह सब देख कर हम तीनो झील की परिक्रमा मार्ग पर चल पडे,
यह परिक्रमा मार्ग लगभग 3.5 km लम्बा है,आज सोमवार था इसलिए इसका बडा गेट बंद था नही तो गाडी,बाईक से भी परिक्रमा की जा सकती है,परिक्रमा मार्ग पक्का बना हुआ है,ऐसा प्रतित होता है जैसे आप किसी जंगल में जा रहे हो,पक्षीयों की आवाज,बन्दरो की आवाज,ओर साथ में शेर की दहाड भी सुनाई दे जाती है,क्योकी यहां पर परिक्रमा मार्ग पर दर्शको व भक्तो के लिए एक छोटा चिडियाघर (mini zoo)बनाया हुआ है,जहां पर कई तरह के जंगली जानवर खुले बाडे(पिंजरे) में रहते है ओर पूरे परिक्रमा मार्ग पर मौजूद है,जिनको देखते देखते परिक्रमा भी पूरी हो जाती है,यहां पर जंगली भैसा,शेर,तेन्दुंआ,भालू,जंगली बिल्ली,कई तरह के हिरण व कई अन्य प्रकार के जीव आप देख सकते है,
हम झील के किनारे किनारे चलते रह थे,आसपास या आगे पिछे कोई नही था,नयी जगह थी इसलिए हम वही किनारे पर रूक गए थोडी देर बाद एक ग्रुप जिसमे कुछ जापानी व बाकी हिन्दुस्तानी लडके लडकीयां थे,हमने उनको देखा ओर आगे आगे चल दिए,रास्ते मे एक मन्दिर भी मिला,जहां पर एक स्वच्छ पानी की धार निकल रही थी,इसको देखकर हम आगे चल पडे,झील लगभग दो km लम्बी ओर 300 मीटर चौडी है,पर हर जगह अलग ही नजारा देखने को मिलता है,जहां शुरू मे मन्दिर,आश्रमो दिखते है तो आखिर में पेड पौधो से घिरे तट भी है,खजूर के पेड भी झील की शोभा को बढा रहे थे,यहां पर अर्थात रेणुका झील मे महाशीर मछलीयां बहुत पाई जाती है,पर्यटक व भक्त इन मछलीयो को आटे की गोली व चने खिलाते रहते है,हमने भी चने व आटे की गोलियां मछलीयो को खिलाई ओर हजारो मछलीयां वहा प्रकट हो गई,बडा ही मस्त नजारा था वो,
यहां से आगे चले ही थे की आश्रम वाले बुढे बाबा मिल गए ओर कहने लगे की कल आप वापिस नही आए तब मेने उनको बताया की रात हम ददाहु मे रूक गए थे,मेने उनको कुछ पैसे दिए आश्रम के लिए,ओर उनको प्रणाम कर आगे बढ चला,यहा पर बोटिंग भी कर सकते है,जब हम आए थे जब बोटिंग चालू नही थी पर अब बोटिंग चालू हो चुकी थी,
तभी हमे भारत का राष्ट्रगान के स्वर सुनाई दिए ओर हम उसके सम्मान मे शांत खडे हो गए,राष्टगान के बाद हम गाडी के पास पहुचें,
पार्किंग के पास ही एक दुकान पर चाय पी गई ओर नाश्ते के तौर पर मैगी खाई,
यही पर एक परिवार मिला जो अभी अभी रेणुका जी पहुचां था,उन्होने बताया की वे लोग हरीपूर धार नामक जगह से आ रहे है जहा पर मां भाग्यानी देवी का मन्दिर है ओर अच्छी खासी बर्फ भी है,इस जगह के बारे में मुझे पहले से ही पता था, हरीपुरधार से ही चूरीधार नामक जगह है जहां पर लोग ट्रैकिंग करते है ओर मेरे एक मित्र नीरज जाट वहा पर जा चुके है,
लेकिन हमारा कोई इरादा नही था वहा पर जाने का लेकिन भविष्य में एक बार वहा अवश्य जाऊगां,
मैगी खाने के बाद हम गाडी मे सवार हो गए ओर निकल पडे अगली मन्जिल पाँवटा साहिब गुरूद्वारा की तरफ.....
आज आँख जल्दी ही खुल गई,खिडकी से पर्दा हटाकर बाहर देखा तो पूरे बाजार मे सन्नाटा छाया हुआ था,किसी भी प्रकार की दुकाने नही खुली हुई थी,होटल के सामने गिरी नदी शान्त स्वभाव में बह रही थी,चाय पीने का मन था पर अभी होटल नया बना था इसलिए रेस्टोरेंट की सुविधा नही थी,मै होटल से बाहर आकर थोडी दूर घुम आया पर दुकाने बंद ही मिली,शायद आज 26 जनवरी(गणतंत्र दिवस) है इसलिए दुकाने देर से खुले इसलिए मै वापस होटल की तरफ चल पडा,होटल के बाहर होटल के मालिक मिल गए,थोडी उनसे बातचीत होती रही,उन्ही से पता चला की यहां पर गिरी नदी पर डैम बनाया जाऐगा जहां से बिजली बनेगी व ददाहु से शिमला के लिए व पावंटा साहिब के लिए बस मिल जाती है,उन्होने यह भी बताया की पहले यहां पर बहुत कम बाहर का पर्यटक आता था पर अब यहां पर पर्यटक आने चालू हो गए है,इसलिए ही मेने यह होटल बनाया है,
कुछ देर उनसे बात होती रही इतने में ही होटल के पास वाली एक दुकान खुल गई,मैने उससे दो चाय पैक कराई ओर सीधे अपने रूम मे पहुचां,चाय पीने के बाद,हम नहाकर व सुबह के दैनिक कार्य को निपटा कर गाडी के पास पहुचें,गाडी में समान रखकर सीधे रेणुका झील पहुचें,सुबह सुबह का मौसम था,हर ओर साफ व मन को प्रसन्न करने वाली ताजी वायु चल रही थी,ऐसी जगह मन अपने आप ही खुश हो जाता है,पक्षीयो की आवाज इस माहौल को ओर भी सुन्दर बना रही थी,यहां पर केवल हम ही थे ओर कोई हमे यहां पर दिखाई नही दिया,वैसे थोडी देर बाद यहां पर कई पर्यटक आ गए थे!
देवांग ने गाडी में से एक कुरकुरे का पैकिट निकाल कर खोला ही था की एक बलशाली बंदर महाराज ने वो पैकिट देवांग से छीन लिया ओर पेड पर बैठ कर बडे मजे से कुककुरो का आनन्द लिया,यहां पर बंदरो की बहुत बडी फौज है जो हर जगह आपको मिल जाऐगी ओर आपको परेशान भी कर सकती है,
बंदर से बच कर हम मन्दिर पहुचें,यहा पर पूजा की ,प्रसाद खाया व दक्षिणा दी,वहा पर एक परिवार भी था जो शायद वहां का लोकल भी हो,उन्होने हमे बताया की यहां पर प्रसाद में कच्चे चावल भी मिलते है,वह चावल उनको खिलाए जाते है जिनको बूरे सपने व नींद मे बोलने व चलने की बिमारी होती है,
पंडित जी ने हमे भी कच्चे चावल दिए,हम मन्दिर से बाहर आ गए,मन्दिर के बाहर ही एक टिले नुमा जगह थी जिस पर परशुराम बैठ कर तप किया करते थे,यह सब देख कर हम तीनो झील की परिक्रमा मार्ग पर चल पडे,
यह परिक्रमा मार्ग लगभग 3.5 km लम्बा है,आज सोमवार था इसलिए इसका बडा गेट बंद था नही तो गाडी,बाईक से भी परिक्रमा की जा सकती है,परिक्रमा मार्ग पक्का बना हुआ है,ऐसा प्रतित होता है जैसे आप किसी जंगल में जा रहे हो,पक्षीयों की आवाज,बन्दरो की आवाज,ओर साथ में शेर की दहाड भी सुनाई दे जाती है,क्योकी यहां पर परिक्रमा मार्ग पर दर्शको व भक्तो के लिए एक छोटा चिडियाघर (mini zoo)बनाया हुआ है,जहां पर कई तरह के जंगली जानवर खुले बाडे(पिंजरे) में रहते है ओर पूरे परिक्रमा मार्ग पर मौजूद है,जिनको देखते देखते परिक्रमा भी पूरी हो जाती है,यहां पर जंगली भैसा,शेर,तेन्दुंआ,भालू,जंगली बिल्ली,कई तरह के हिरण व कई अन्य प्रकार के जीव आप देख सकते है,
हम झील के किनारे किनारे चलते रह थे,आसपास या आगे पिछे कोई नही था,नयी जगह थी इसलिए हम वही किनारे पर रूक गए थोडी देर बाद एक ग्रुप जिसमे कुछ जापानी व बाकी हिन्दुस्तानी लडके लडकीयां थे,हमने उनको देखा ओर आगे आगे चल दिए,रास्ते मे एक मन्दिर भी मिला,जहां पर एक स्वच्छ पानी की धार निकल रही थी,इसको देखकर हम आगे चल पडे,झील लगभग दो km लम्बी ओर 300 मीटर चौडी है,पर हर जगह अलग ही नजारा देखने को मिलता है,जहां शुरू मे मन्दिर,आश्रमो दिखते है तो आखिर में पेड पौधो से घिरे तट भी है,खजूर के पेड भी झील की शोभा को बढा रहे थे,यहां पर अर्थात रेणुका झील मे महाशीर मछलीयां बहुत पाई जाती है,पर्यटक व भक्त इन मछलीयो को आटे की गोली व चने खिलाते रहते है,हमने भी चने व आटे की गोलियां मछलीयो को खिलाई ओर हजारो मछलीयां वहा प्रकट हो गई,बडा ही मस्त नजारा था वो,
यहां से आगे चले ही थे की आश्रम वाले बुढे बाबा मिल गए ओर कहने लगे की कल आप वापिस नही आए तब मेने उनको बताया की रात हम ददाहु मे रूक गए थे,मेने उनको कुछ पैसे दिए आश्रम के लिए,ओर उनको प्रणाम कर आगे बढ चला,यहा पर बोटिंग भी कर सकते है,जब हम आए थे जब बोटिंग चालू नही थी पर अब बोटिंग चालू हो चुकी थी,
तभी हमे भारत का राष्ट्रगान के स्वर सुनाई दिए ओर हम उसके सम्मान मे शांत खडे हो गए,राष्टगान के बाद हम गाडी के पास पहुचें,
पार्किंग के पास ही एक दुकान पर चाय पी गई ओर नाश्ते के तौर पर मैगी खाई,
यही पर एक परिवार मिला जो अभी अभी रेणुका जी पहुचां था,उन्होने बताया की वे लोग हरीपूर धार नामक जगह से आ रहे है जहा पर मां भाग्यानी देवी का मन्दिर है ओर अच्छी खासी बर्फ भी है,इस जगह के बारे में मुझे पहले से ही पता था, हरीपुरधार से ही चूरीधार नामक जगह है जहां पर लोग ट्रैकिंग करते है ओर मेरे एक मित्र नीरज जाट वहा पर जा चुके है,
लेकिन हमारा कोई इरादा नही था वहा पर जाने का लेकिन भविष्य में एक बार वहा अवश्य जाऊगां,
मैगी खाने के बाद हम गाडी मे सवार हो गए ओर निकल पडे अगली मन्जिल पाँवटा साहिब गुरूद्वारा की तरफ.....
अब कुछ फोटो देखे जाए.....
शनिवार, 4 अप्रैल 2015
रेणुका झील(Renuka ji lake)
हम शाम के 5:30 पर रेणुका जी पहुचं गए,सबसे पहले हमने रहने के लिए कमरा ढुंढना उचित समझा,रेणुका जी में ही हिमाचल प्रदेश सरकार का एक होटल बना है जो बिल्कुल झील के सामने ही बना है,हमने गाडी वही बनी पार्किग में खडी की ओर हिमाचल पर्यटन विकास के इस होटल में पहुचं गए,कमरे के लिए पुछा तो पता चला की सब के सब कमरे पहले से ही भरे हुए है,यहां से हम मुंह लटकाकर बाहर आ गए,
झील के पास ही हमे कुछ रोशनी सी होती नजर आई,घन्टो की ध्वणि बडी मधुर लग रही थी,पूरा माहौल बडा रमणिक हो रहा था,हमने आगे चल कर देखा तो यहां पर कुछ आश्रम व मन्दिर बने है,हम एक आश्रम में पहुचें जहां पर एक बुढे बाबा बैठे थे,हमने इनसे पुछा की क्या रहने को कमरा मिल सकता है,तब वह बाबा बोले की शराब,अंडा,मीट तो नही खाते हो,..
मैने जबाव दिया की..नही जी बिल्कुल भी नही
इस पर उन्होने हमे कमरा दिखा दिया,पूरे आश्रम में हम ही थे ओर कोई नही था,कमरा देखा ठीक ठाक था पर शौचालय बहुत दूर था ओर आश्रम में हम ही थे,इसलिए मेने परिवार की सुरक्षा के खातिर वहां नही रहने का विचार कर लिया,
बाहर अब बिल्कुल अंधेरा फैल चुका था,मेरा बेटा देवांग को भूख लग रही थी,क्योकी हमने करनाल मे ही खाना खाया था,बुढे बाबा से यह कहकर बाहर आ गए की हम खाना खाने जा रहे है,अगर हम एक घन्टे में लौटकर नही आए तो समझ लेना की हम कही ओर ठहर गए है, रेणुका जी मे ओर कोई रहने का इन्तजाम नही है,इसलिए रेणुका जी से दो कि०मी० पहले एक कस्बा है ददाहु,जहां हमने पहुचं कर एक होटल जो गिरी नदी के किनारे बना हुआ था.नाम था होटल गिरी व्यु मे पहुचें ओर रहने के लिए एक कमरा ले लिया,कमरा अच्छा था ओर होटल में बहुत से पर्यटक भी ठहरे हुए थे,काफी मोलभाव करने के बाद 700 रू० मे कमरा मिल गया,कमरे में समान रख कर हम खाना खाने के लिए एक छोटे से ढाबे पर पहुचें,वहा पुछा की खाने मे क्या मिल सकता है,ढाबे वाले ने बताया की दाल ओर आलू- गोभी की सब्जी ही मिल पाएगी पर मेरा बेटा देवांग पनीर मांगने लगा,इसलिए ढाबे वाले ने बराबर वाली दुकान से पनीर मंगा कर पनीर बना दिया,खाना खाकर हमने पुछा की भाई कितने हुए तो वह बोला की जितने देने हो दे दो,मेने कहां की नही भाई आप बताओ तो उसने हिसाब लगाकर 190 रू बताए,मेने उसको 200 रू दिए ओर सीधे होटल मे आ गए......
अब कुछ रेणुका जी के बारे मे..
रेणुका जी हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर की शिवालिक पहाडियों पर बसा एक छोटा सा व एक सुन्दर जगह है,यह गिरी नदी के पास बसा हैओर गिरी नदी की दूसरी तरफ ददाहु नाम का कस्बा भी है जहा पर होटल,दुकाने आदि है,रेणुका जी में एक झील है,जो बडी पवित्र मानी जाती है,यह जगह भगवान परशुराम की जन्मस्थली भी है, ओर रेणुका जी परशुराम जी की माता का नाम था,पर इस झील का नाम रेणुका झील क्यो पडा इसके पिछे एक कहानी छुपी है.......
कभी पहले यह घनघोर जंगल हुआ करता था,यहा पर ऋषि जमदग्नि ओर उनकी पत्नी भगवती रेणुका जी का आश्रम था,उनके पुत्र राम (जो बाद मे शिव जी के फरसे के कारण परशुराम कहलाए)रहते थे,बालक राम अपनी तपस्या के लिए कही गए हुए थे,उसी दौरान जंगल में शिकार खेलने के लिए राजा सह्त्रबाहु आया,बह भूखा प्यासा था इसलिए वह जमदग्नि के आश्रम में पहुचां तब रेणुका जी ने उन्हे बहुत स्वादिष्ट कई तरह के व्यंजन दिए खाने के लिए,राजा भोजन के बाद बहुत खुश हुआ उन्होने रेणुका जी से पुछा की आप इस जंगल में इतने स्वादिष्ट भोजन कहां से लेकर आई ,तब रेणुका जी ने उन्हे कामधेनु गाय के विषय में बताया की जिस चीज की आप इक्छा करेगे यह कामधेनु गाय उन सभी इक्छाओ को पूरा करती है,तब राजा सहत्रबाहु ने अपने बल के जोर पर वह गाय अपने अधिकार में ले ली ओर ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी,ओर बल पूर्वक माता रेणुका को भी ले जाने लगा तब रेणुका जी ने अपनी लाज बचाने के लिए,राम सरोवर नामक सरोवर मे जल समाधि ले ली,
जब भगवान परशुराम बडे हुए ओर शिव से शस्त्र शिक्षा ली तो वह अपने घर पहुचें जब उन्हे राजा सहस्त्रबाहु के इस अपराध के बारे में पता चला तब उन्होनो राजा सहस्त्रबाहु व उसकी सम्पूर्ण सेना का विनाश अपने फरसे से कर दिया तब से ही वह राम से भगवान परशुराम कहलाए,
उन्होने अपने तपोबल से अपने पिता ऋषि जमदग्नि को जिन्दा कर दिया ओर अपनी मां को भी रामसरोवर से बाहर आने पर मजबूर कर दिया पर भगवती रेणुका जी ने परशुराम जी को वचन दिया की वह हर वर्ष देव प्रवोधिनी एकादशी को इस सरोवर से बाहर आया करेगी ओर सभी को दर्शन दिया करेगी ओर उनको आशिर्वाद देगी,इतना कहकर मां भगवती रेणुका जी रामसरोवर के जल मे विलिन हो गई,तब से यह सरोवर रेणुका झील कहलाने लगा,
इसलिए आज यहां पर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मेला लगने लगा,जहां पर भक्तगण मां रेणुका जी के दर्शन करने के लिए आते है....
अब कुछ चित्र भी देखे.....
झील के पास ही हमे कुछ रोशनी सी होती नजर आई,घन्टो की ध्वणि बडी मधुर लग रही थी,पूरा माहौल बडा रमणिक हो रहा था,हमने आगे चल कर देखा तो यहां पर कुछ आश्रम व मन्दिर बने है,हम एक आश्रम में पहुचें जहां पर एक बुढे बाबा बैठे थे,हमने इनसे पुछा की क्या रहने को कमरा मिल सकता है,तब वह बाबा बोले की शराब,अंडा,मीट तो नही खाते हो,..
मैने जबाव दिया की..नही जी बिल्कुल भी नही
इस पर उन्होने हमे कमरा दिखा दिया,पूरे आश्रम में हम ही थे ओर कोई नही था,कमरा देखा ठीक ठाक था पर शौचालय बहुत दूर था ओर आश्रम में हम ही थे,इसलिए मेने परिवार की सुरक्षा के खातिर वहां नही रहने का विचार कर लिया,
बाहर अब बिल्कुल अंधेरा फैल चुका था,मेरा बेटा देवांग को भूख लग रही थी,क्योकी हमने करनाल मे ही खाना खाया था,बुढे बाबा से यह कहकर बाहर आ गए की हम खाना खाने जा रहे है,अगर हम एक घन्टे में लौटकर नही आए तो समझ लेना की हम कही ओर ठहर गए है, रेणुका जी मे ओर कोई रहने का इन्तजाम नही है,इसलिए रेणुका जी से दो कि०मी० पहले एक कस्बा है ददाहु,जहां हमने पहुचं कर एक होटल जो गिरी नदी के किनारे बना हुआ था.नाम था होटल गिरी व्यु मे पहुचें ओर रहने के लिए एक कमरा ले लिया,कमरा अच्छा था ओर होटल में बहुत से पर्यटक भी ठहरे हुए थे,काफी मोलभाव करने के बाद 700 रू० मे कमरा मिल गया,कमरे में समान रख कर हम खाना खाने के लिए एक छोटे से ढाबे पर पहुचें,वहा पुछा की खाने मे क्या मिल सकता है,ढाबे वाले ने बताया की दाल ओर आलू- गोभी की सब्जी ही मिल पाएगी पर मेरा बेटा देवांग पनीर मांगने लगा,इसलिए ढाबे वाले ने बराबर वाली दुकान से पनीर मंगा कर पनीर बना दिया,खाना खाकर हमने पुछा की भाई कितने हुए तो वह बोला की जितने देने हो दे दो,मेने कहां की नही भाई आप बताओ तो उसने हिसाब लगाकर 190 रू बताए,मेने उसको 200 रू दिए ओर सीधे होटल मे आ गए......
अब कुछ रेणुका जी के बारे मे..
रेणुका जी हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर की शिवालिक पहाडियों पर बसा एक छोटा सा व एक सुन्दर जगह है,यह गिरी नदी के पास बसा हैओर गिरी नदी की दूसरी तरफ ददाहु नाम का कस्बा भी है जहा पर होटल,दुकाने आदि है,रेणुका जी में एक झील है,जो बडी पवित्र मानी जाती है,यह जगह भगवान परशुराम की जन्मस्थली भी है, ओर रेणुका जी परशुराम जी की माता का नाम था,पर इस झील का नाम रेणुका झील क्यो पडा इसके पिछे एक कहानी छुपी है.......
कभी पहले यह घनघोर जंगल हुआ करता था,यहा पर ऋषि जमदग्नि ओर उनकी पत्नी भगवती रेणुका जी का आश्रम था,उनके पुत्र राम (जो बाद मे शिव जी के फरसे के कारण परशुराम कहलाए)रहते थे,बालक राम अपनी तपस्या के लिए कही गए हुए थे,उसी दौरान जंगल में शिकार खेलने के लिए राजा सह्त्रबाहु आया,बह भूखा प्यासा था इसलिए वह जमदग्नि के आश्रम में पहुचां तब रेणुका जी ने उन्हे बहुत स्वादिष्ट कई तरह के व्यंजन दिए खाने के लिए,राजा भोजन के बाद बहुत खुश हुआ उन्होने रेणुका जी से पुछा की आप इस जंगल में इतने स्वादिष्ट भोजन कहां से लेकर आई ,तब रेणुका जी ने उन्हे कामधेनु गाय के विषय में बताया की जिस चीज की आप इक्छा करेगे यह कामधेनु गाय उन सभी इक्छाओ को पूरा करती है,तब राजा सहत्रबाहु ने अपने बल के जोर पर वह गाय अपने अधिकार में ले ली ओर ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी,ओर बल पूर्वक माता रेणुका को भी ले जाने लगा तब रेणुका जी ने अपनी लाज बचाने के लिए,राम सरोवर नामक सरोवर मे जल समाधि ले ली,
जब भगवान परशुराम बडे हुए ओर शिव से शस्त्र शिक्षा ली तो वह अपने घर पहुचें जब उन्हे राजा सहस्त्रबाहु के इस अपराध के बारे में पता चला तब उन्होनो राजा सहस्त्रबाहु व उसकी सम्पूर्ण सेना का विनाश अपने फरसे से कर दिया तब से ही वह राम से भगवान परशुराम कहलाए,
उन्होने अपने तपोबल से अपने पिता ऋषि जमदग्नि को जिन्दा कर दिया ओर अपनी मां को भी रामसरोवर से बाहर आने पर मजबूर कर दिया पर भगवती रेणुका जी ने परशुराम जी को वचन दिया की वह हर वर्ष देव प्रवोधिनी एकादशी को इस सरोवर से बाहर आया करेगी ओर सभी को दर्शन दिया करेगी ओर उनको आशिर्वाद देगी,इतना कहकर मां भगवती रेणुका जी रामसरोवर के जल मे विलिन हो गई,तब से यह सरोवर रेणुका झील कहलाने लगा,
इसलिए आज यहां पर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मेला लगने लगा,जहां पर भक्तगण मां रेणुका जी के दर्शन करने के लिए आते है....
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