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शनिवार, 16 मई 2015

National rail museum (delhi)राष्टीय रेल संग्रहालय

अभी हाल में ही(अप्रैल2015)में दिल्ली चाणक्यपुरी स्थित राष्ट्रीय रेल संग्रहालय (national rail museum) जाना हुआ,अभी इसी साल फरवरी में रेणुका जी घुम कर आया था उसके बाद कही जाना नही हो पाया,एक दिन देवांग ने घुमने की रट लगा ली की मुझे कही घुमा कर लाओ,सब बच्चे जाते है मै ही नही जाता,वैसे उस दिन मंगलवार भी था, मंगलवार को मेरी दुकान की छट्टी रहती है,इसलिए मै उसको चाणक्यपुरी,नई दिल्ली स्थित राष्टीय रेल म्युजियम(national rail museum) दिखाने के लिए ले गया,यह म्युजियम सोमवार को अवकाश के कारण बंद रहता है बाकी सभी दिन खुला रहता है,सुबह 9:30 बजे से शाम के 5:30 तक खुला रहता है,यहा पर पुराने भाप के इंजन,सैलून गाडी,राजा महराजो की रेल गाडी,नैरो गेज पटरी,मीटर गेज पटरी व बहुत सी अन्य चीजे आप देख सकते है व उनकी जानकारी प्राप्त कर सकते है,यहा पर एक छोटी ट्रैन की सवारी भी आप कर सकते है जो आपको पुरे रेल संग्रहालय का चक्कर लगवाती है,इसमे बैठ कर बच्चे तो बच्चे,बडे भी बहुत मस्ती करते है पुरे रास्ते हल्ला मचा होता है,अगर आप यहां से निशानी के तौर पर कुछ ले जाना चाहते है तो पास ही एक कोने में एक दुकान है जहां पर आप चाबी के छल्ले,किताबे,रेल गाडी के माडल व अन्य वस्तुए खरीद सकते है,
अब आगे...
में सुबह लगभग 10 बजे घर से चल पडा,दिल्ली I.T.Oचौक को पार करते हुए,अशोका रोड से तीन मूर्ती रोड व वहा से शांति पथ रोड जहां पर सभी देशो की अम्बैसी है व वहा के राजदूत रहते है,शांति पथ रोड पर ही यह रेल म्युजियम स्थित है,पार्किंग में गाडी खडी कर हम(मै,देवांग ओर पत्नी जी)सीधे टिकेट खिडकी पर पहुचे,तीन प्रवेश टिकेट ले लिए साथ मे अन्दर चलने वाली रेल गाडी की सवारी का भी टिकेट ले लिया, टिकेट का मूल्य बडो के लिए 20 रू० का था ओर बच्चो के लिए 10 रू० का,इतना ही रेल गाडी की सवारी का टिकेट मूल्य था,हम टिकेट लेकर अन्दर चल पडे,अन्दर पहुचते ही सामने एक लाल रंग का सुन्दर व छोटा सा इंजन खडा था,जो बहुत सुन्दर लग रहा था,इसे देखकर हम आगे बढ गए,थोडा सा ही चले थे की रेल गाडी की छुक छुक व लम्बी सी हार्न सुनाई पडा,आगे देखा तो एक नन्ही सी ट्रेन चली आ रही है,देवांग उसको देखकर बहुत खुश हुआ,हमारा यहां पर आना सफल हुआ क्योकी हम यहां पर देवांग के लिए ही तो आए थे,

ट्रैन हमारे सामने से चलती चली गई ओर आगे बने स्टैशन पर रूक गई,हम भी स्टैशन पर पहुचें ओर सीट देखकर ट्रेन में बैठ गए,मैने साल 2013 में ऐसी ही ट्रेन (ऊटी से कौन्नूर)में यात्रा की थी यह भी बिल्कुल उस जैसी ही थी,जब ट्रेन चली तो सभी सवारी चाहे बच्चे हो या बडे सब के सब खुशी से चिल्लाने लगे,इस ट्रेन ने हमको पूरा एक चक्कर लगवाया,वाकई बहुत मजा आया,इसमे बैठ कर,
ट्रेन से नीचे उतर कर हम पैदल ही घुमते रहे,हमने बहुत से पुराने इंजन देखे जो हमारे देश में बाहर से लाए गए थे, यह सभी भाप के इजंन थे,जिनमे इंधन के तौर पर कोयले  का उपयोग होता था,आजकल तो बिजली से या डीजल से ट्रेन चलती है,
कुछ इंजन छोटे व प्यारे थे तो कुछ बहुत विशाल थे,जैसे एक कार्टुन आती है थॉमस एण्ड फ्रेण्डस.
कुछ बोगिया भी देखी जो पूरी तरह से लकडी की बनी थी,जिन्हे यह इंजन खीचा करते थे,ज्यादात्तर इन्हे अंग्रैज ही प्रयोग मे लाते थे,
इन सब पर चमचमाता रंग बिरंगे कलर किये हुए है,कोई लाल रंग का तो कोई हरा,खाशतौर पर बच्चे इन्हे देखकर बहुत खुश हो रहे थे,यहा पर कुछ स्कूल के बच्चे भी स्कूल की तरफ से आए हुए थे,कभी मै भी जब छोटा था शायद तीसरी कक्षा में पढता था तब मे भी स्कूल की तरफ से यहा पर आया था, यहा पर एक छोटा सा पार्क भी बना है जिसमे संगीतमय फव्वारें लगे है,पेड पौधे से भरा व फूलो व रंगो से भरा यह पार्क या यह कहे की पूरा रेल म्युजियम ही बहुत सुन्दर व मन मोह लेने वाला है, सभी को एक बार तो यह देखना ही चाहिए.

अब कुछ फोटों देखे...

प्रवेश द्वार व टिकेट खिडकीनन्हा इंजन
म्यूजियम जंक्शन
एक बडा इंजन
मै ओर देंवाग
यह एक बोगी पर अंकित था
पुरानी लाईट
भाप के इंजन का बोयलर जहा पर कोयला डाला जाता था
एक सुन्दर पार्क
लकडी से बनी एक सैलून बोगी 

मंगलवार, 5 मई 2015

दक्षेश्वर महादेव मन्दिर,कनखल(हरिद्वार)kankhal


दिनांक 27 जनवरी 2015 की सुबह ऊठकर हम होटल से ही फ्रैश होकर रीशिकेश से  हरिद्वार की तरफ चल पडे,रीशिकेश से ही जो रास्ता नीलकंठ महादेव को तरफ जाता है,वही तिराहे पर ही एक होटल में बैठकर आलू के परांठेदक के साथ नाश्ते में खा लिए,ओर चल पडे हरिद्वार की तरफ,रीशिकेश से हरिद्वार वाला रास्ते पर सडक चौडीकरण हो रहा है,आने वाले समय मे यह रास्ता ओर बढिया हो जाऐगा,लगभग 10:30 पर हम हरिद्वार पहुचं गए,हर की पौडी के पास ही कार पार्किंग में कार खडी कर,पैदल ही हर की पौडी पर पहुचें,इस समय गंगा मे जल की मात्रा बहुत कम थी,ओर श्रधालुओ की सँख्या भी काफी कम थी,जैसा हरिद्वार में आमतौर होता नही है,यहां तो साल मै कभी भी आओ पर भीड मिलती है पर आज कुछ राहत थी,वैसे मैं यहां पर  काफी बार आ चुका हुं फिर भी यहां आकर मै बहुत अच्छा महसूस करता हुं,
हर की पौडी पर पहुचते ही सीधा गंगा स्नान के लिए गंगा जी मे पहुचं गया,बहुत ही ठंडा जल था पहली डुबकी तक सर्दी लगती रही जब चार पांच डुबकी गंगा में लगाई,तब जाकर कुछ ठंड से मुक्ति मिली,मुझे देखकर देवांग भी नहाने के लिए आ गया,शुरू मे वह ठन्डे पानी की वजह से रोता रहा पर फिर वह गंगा जी से निकलने का नाम ही नही ले रहा था,कुछ देर नहाने के बाद हम गंगा जी को प्रणाम कर व घर के लिए गंगा जल एक कैन में भर कर ,गंगा जी से बाहर आ गए,गंगा जी में नहाने के बाद भूख लगने लगती है,गंगाघाट पर ही शक्करगंदी की चाट बिक रही थी,पहले हमने वो चाट खाई फिर हम पार्किग की तरफ चल पडे,रास्ते में गंगा पर बने एक पुल पर मछलियों के लिए आटे की गोलिया बिक रही थी,जिन्हे देखते ही देवांग ने कहा की पापा वह गोलिया ले लो मै मछलियों को खिलाऊगां,मेने वो आटे की गोलियां खरीद कर उसको दे दी,उसने वही पुल के नीचे एक एक कर सारी गोलियां गंगा जी मे डाल दी,एक दो मछली दिखाई भी दी,फिर हम वहा से चलकर गाडी के पास पहुचें ओर वहा बने एक होटल पर चाय पी,वही से घर के लिए प्रसाद खरीदा ओर चल पडे कनखल की तरफ,कनखल हरिद्वार से कुछ किलोमीटर पहले ही है,हरिद्वार से कुछ पहले गुरूकल कांगडी नामक एक संस्था पडती है जो दवाईयो के लिए भी जानी जाती है वह कनखल मे ही स्थति है,
कनखल हर की पौडी से लगभग मात्र छ: या सात किलोमीटर दूर है ,अगर अपनी सवारी से ना जाना चाहे तो टम्पू(थ्रीविलर) से भी जा सकते है,हमने अपनी कार सीधे मन्दिर के पास वाली पार्किंग में खडी कर दी ओर चल पडे,दक्षेश्वर महादेव व सती कुण्ड(हवन कुंड) के दर्शन करने के लिए.....
कनखल:- कनखल को भगवान शिव की सुसराल भी माना गया है,क्योकी कनखल के राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री सती(पार्वती)ने शिव से विवाह किया,पर राजा दक्ष शिव को अपने से निम्न समझता था,एक बार राजा दक्ष ने शिव को नीचा दिखाने के लिए एक महायज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होने सभी देवताओ व गुरू को निमंत्रण दिया पर भगवान शिव व सती को निमंत्रण नही भेजा,पर सती ने शिव से जिद्द कर के वहा जाने की आज्ञा मांगी,जब सती अपने पिता के घर कनखल पहुचीं तो वह देखती है की वहा पर सभी देवताओ के आसलगे है,ओर शिव को छोडकर सभी देवता यहां उपस्थित है, तब उन्हे यह अच्छा नही लगा क्योकी वहा शिव का आसन नही था,तब उन्होनो यह बात अपने पिता से पुछी तब उनके पिता राजा दक्ष ने सभी के सामने भगवान शिव को बुरा भला कहा,जो माता सती सहन ना कर सकी ओर उन्होने वही यज्ञ (हवन)कुण्ड में अपने प्राणो की आहुती दे दी,जिसे देख वहा पर हाहाकार मच गया,जब भगवान शिव को इस बात का पता चला तब वह बहुत क्रौध में आ गए,ओर उन्होने अपने एक गण वीरभद्र को आज्ञा दी वह कनखल जाए ओर दक्ष को मृत्यु दण्ड दे ओर उसका यज्ञ खण्डित कर दे,शिव से आज्ञा पाकर वीरभद्र ने राजा दक्ष का सर काट डाला,शिव भी वहां पहुचें ओर माता सती का शव लेकर चले गए..आगे की कहानी तो आपको पता ही होगी की कैसे भगवान ने शिव का गुस्सा शांत किया ओर जहां जहां माता सती के शव के अंग धरती पर गिरे वहा पर शक्ति पीठ बने,जैसे जहां पर नैन गिरे वहां नैना देवी शक्ति पीठ बना
मन्दिर में प्रवेश द्वार में घुसते ही,भगवान शिव की एक बडी प्रतिमा लगी है,जिसमें वो गुस्से में ओर माता सती का शव ऊठाएं है,उस प्रतिमा को देखते ही सती माता की कहानी अपने आप याद आ जाती है,थोडा सा अन्दर चलने पर मुख्य मन्दिर व सती कुण्ड नजर आ जाता है,हमने भी ओर श्रधालूओ की तरह मन्दिर के पास बह रही गंगा जी से जल लिया ओर वहा पर एक पण्डित जी से छोटी सी पूजा कराई ओर जल लेकर मन्दिर में प्रवेश किया,प्रवेश करते ही प्राचीन हवन कुंड के दर्शण किये,जहां माता सती ने अपने प्राणो की आहुती दी थी,हवन कुंड देखकर मूख्य मन्दिर में प्रवेश किया,यहां पर एक शिव लिंग है जो स्वयमं यहा पर प्रकट हुआ है,किसी के द्वारा स्थापित नही है,शिवलिंग पर गंगाजी का जल चढाया ओर  फिर वही थोडी देर बैठे रहे फिर पण्डित जी से प्रसाद लेकर बाहर आ गए,बाहर कुछ अन्य मन्दिर भी है,शिव ओर अन्य भगवानो के,उन मन्दिरो को देखकर हम वापिस पार्किंग में पहुचें जहां से हम चलकर सीधे दिल्ली की तरफ चल पडे ओर रास्ते में रूकते रूकाते रात को घर पहुंच गए.......
यात्रा समाप्त...
हरिद्वार
गंगा जी की तस्वीर
भगवान शिव सती का शव उठाए हुएं
यहीं था वह कुंड जहा देवी सती ने प्राण की आहुती दी
नन्दीजी
दक्षेश्वर महादेव शिवलिंग

शुक्रवार, 1 मई 2015

गुरूद्वारा पाँवटा साहिब(paonta sahib),


26 जनवरी का दिन था,हम रेणुका जी से गुरूद्वारा पाँवटा साहिब की तरफ चल दिए,रेणुका से पाँवटा साहिब जाने के लिए दो रास्ते है एक रेणुका से नाहन ओर नाहन से पाँवटा साहिब,जो तकरीबन 85 km लम्बा पडता है,ओर दूसरा रेणुका से सीधे पाँवटा साहिब जो लगभग 44 km ही लम्बा पडता है,
हमने दूसरे वाले रास्ते को चुना पाँवटा साहिब जाने के लिए,दिन के तकरीबन 11 बज रहे थे जब हम रेणुका जी से पाँवटा साहिब की तरफ चले थे,हमने गिरी नदी पर बने एक पुल को पार ही किया था की देखा सडक की हालत बहुत ही खराब है,सडक के नाम पर केवल पत्थर व पत्थर के ऊपर मिट्टी पडी थी ओर ऊपर से खडी चढाई वाला रास्ता था,फिर भी मेने इसी रास्ते पर जाने का फैसला किया,हां अगर शाम या रात का समय होता तब तो मैं भूल कर भी इस रास्ते से नही जाता पर अभी दिन ही था इसलिए मेने यही रास्ता चुना,काफी देर हो गई चलते हुए पर इस रास्ते पर कोई वाहन नजर नही आ रहा था,ओर हम उस कच्चे रास्ते पर चले जा रहे थे,तभी एक सामने की तरफ से एक  मोटरसाईकल आती दिखाई दी,मेने उसे रूकने का इशारा किया ओर  उससे पूछा की यह रास्ता पाँवटा साहिब ही जाता है या हम गलत आ गए है उसने बताया की10 km बाद आपको पक्की सडक मिल जाऐगी जो आपको NH72 तक ले जाऐगी,उस भले इन्सान को धन्यवाद कह कर मै वहा से चल पडा,कुछ दूर ही गया था की एक जगह यह रास्ता दो रास्तो मे बदल गया(Y),एक दाई ओर मुड गया तो दूसरा बाई ओर,दोनो ही रास्ते कच्चे थे,दाया वाला रास्ता बहुत चढाई वाला था इसलिए हमे यह लगा की यह रास्ता नही होना चाहिए, इसलिए हम बाए वाले रास्ते पर मुड गए,यह रास्ता पहले से ओर कच्चा ओर छोटा होता जा रहा था,बीच बीच मे मोडो पर ऊपर से आता पानी ओर बह रहा था,तकरीबन 4km चलने के बाद ऐसी जगह आई की हम समझ गए की यह रास्ता तो पाँवटा साहिब का हो ही नही सकता,सडक पर पानी बह रहा था ओर पूरी सडक पर मिट्टी की कीचड ही कीचड थी,यहा पर पेड,झाडियो के अलावा कुछ नही था,रास्ता बिल्कुल ऐकांत था,जो हमे बडा भयानक लग रहा था,बडी मुस्किलो के बाद मेने गाडी वापिस मोडी ओर वापिस उसी दो राहे पर आ गया,काफी देर खडा रहा पर कोई नही आया,थोडी देर बाद एक सैन्ट्रो गाडी आयी ओर दाहिने वाले खडी चढाई वाले रास्ते पर चली गई,मैने फोन निकाला ओर गुगल मैप का सहारा लिया,फोन ने कहा की दाहिने वाले रास्ते पर मुड जाओ,तब मेने भी अपनी गाडी सीधी कठीन चढाई वाले रास्ते पर चढा दी,आगे कुछ कि० मीटर चलने के बाद एक पक्की सडक मिल गई,यदि हम यहा से दाई ओर मुडते तो हम नाहन पहुचं जाते पर गुगल मैप का सहारा लेते हुए हम बाएं मुड गए,फिर तो सीधे इसी सडक पर चलते रहे,पूरा रास्ता पहाडी ही है,पर ज्यादा ट्रैफिक नही था,अब मुझे भी पता था की मै सही रास्ते पर हुं तो मै भी बडे आराम से व पहाडी रास्तो की सुंदरता को देखते नीचे उतर रहा था,हम लगभग 20 km चलने के बाद एक टी प्वाईंट (T) आया जहा से कही भी मुड जाओ आप पाँवटा साहिब को जाने वाली सडक पर पहुचं जाओगे,हम पहले बाए मुडे पर वह रास्ता बडा ओर जगंल मे होते हुए जाता है ऐसा वहा के एक स्थानीय व्यक्ति ने बतलाया इसलिए मै दोबारा पहली वाली जगह पहुचां ओर दायें वाले रास्ते पर चलता चल,मेन हाईवे पर पहुचं गया जहा से मेने अपनी कार बाए ओर मोड दी ओर लगभग 7km चलने के बाद दोपहर के1:45 पर हम गुरूद्वारा पाँवटा साहिब पहुचें,
गुरूद्वारा पाँवटा साहिब का इतिहास-(गुरूद्वारा का मतलब होता है गुरू का द्वार,गुरूद्वारा पाँवटा साहिब हिमाचल के सिरमौर जिले(नाहन) में यमुना नदी के किनारे स्थित है,एक बार जब सिख धर्म के दसंवे गुरू,गुरू गोबिंद सिह जी अपने घोडे पर सवार होकर यहा पर आए तब उनका घोडा यहा पर आकर रूक गया,तब गुरू गोबिन्द सिहं जी ने यही रूकने का फैसला किया,वे यहां पर साढे चार साल रहे ओर उन्होने यहा पर एक शहर बसाने का फैसला किया ओर उन्होने जहां यह गुरूद्वारा है वहां पर एक ईमारत भी बनवाई,गुरू गोबिंद सिहं जी ने यही पर पवित्र पुस्तक(ग्रन्थ)dassam भी लिखि,
बाद में गुरू गोबिंद सिहं को समर्पित इस गुरूद्वारा का नाम पाँवटा साहिब पडा, यहां पर आज भी गुरू गोबिंद सिहं जी के अस्त्र व अन्य वस्तुए( निशानिया) एक संग्रहालय में सुरक्षित रखी है जिसे वहा जाने वाले देख सकते है,)
अब आगे..
गुरूद्वारा की पार्किंग मे कार खडी कर हम सीधे गुरूद्वारा के बडे गेट से होते हुए अन्दर पहुचें,गुरूद्वारा में कोई भी धर्म का व्यक्ति जा सकता है,पर उसे कुछ गुरूद्वारा के नियमो का पालन करना होगा ही जैसे आप नंगे सर गुरूद्वारे में नही जा सकते,आपको अपना सर किसी कपडे से ढकना होगा चाहे तो रूमाल सर पर बांध सकते है,दूसरा आपको बाहर ही जूते,जूराबे व चप्पल उतारनी होगी,इन सब का पालन करते हुए हम भी गुरूद्वारे श्री पाँवटा साहिब में प्रवेश कर गए,बाहर काफी भीड थी इसलिए थोडा सा शोर तो होना ही था पर अन्दर का माहौल बिल्कुल विपरीत था अन्दर बडी ही शान्ति का माहौल था व शान्त सगींत(गुरूवाणी) चल रही थी,कुछ लोग वहा बिछे हुए कालिनो पर शांत मुद्रा में बैठे हुए थे,पास ही हलवे का प्रसाद बंट रहा था,हमने भी प्रसाद लिया ओर वही बिछे कालिन पर बैठ कर प्रसाद में मिला हलुवा खाया, हमारी तरह बहुत से लोग वही बैठ कर ही प्रसाद खा रहे थे,हलवा बडा ही स्वादिष्ट बना हुआ था,थोडी देर पश्चात हम मुख्य कक्ष से बाहर आ गए,बाहर दूसरी तरफ यमुना शांत बह रही थी,कहते है की यमुना मे कितना ही पानी आ जाए पर यहां पर यमुना नदी हमेशा शांत ही बहती है,हम आगे चले तो देखा की एक जगह गुरू का लंगर लिखा हुआ था,दोपहर के 3 बज चुके थे इसलिए हमे भी भूख लग रही थी,हम भी   लंगर छकने पहुंच गए,अन्दर जाकर देखा की कितने ही लोग यहा पर थे पर गुरूद्वारे की व्यवस्था बहुत अच्छी थी बहुत से सेवादार यहा पर सेवा कर रहे थे.
लंगर छकने (खाने) के बाद हम बाहर की तरफ बने लंगर के लिए बने दान काऊंटर पर कुछ पैसे देकर व उन्होने पर्ची लेकर बाहर आ गए.
अब हम अपनी कार मे बैठ कर सीधे रीषिकेष(रीशिकेश) की तरफ चल पडे,पाँवटा साहिब वैसे तो हिमाचल के सिरमौर जिले मे पडता है पर यह देहरादून के बहुत नजदीक ही है,यहां से देहरादून मात्र 45 km की दूरी पर ही है,यहा से आप चकराता भी जा सकते है जो यहां से  लगभग 75 km दूरी पर है,यहां से चलने के थोडी देर बाद ही बारिश शुरू हो गई हम सीधे रीशीकेश वाले रोड पर हो लिए वैसे यहा से हर्बट पूर व कलसी भी जा सकते है,एक दो जगह मुझे रास्ता भी पूछना पडा ओर हम शाम के 6 :30 पर रीशिकेष पहुचं गए,रीशिकेश के त्रिवेणी घाट के पास ही एक होटल मे रूम लिया ओर थोडी देर त्रिवेणीघाट पर गंगा के किनारे घुमते रहे,गंगा आरती मे भाग लिया,एक पंडत जी से गंगा मईया का प्रसाद लिया ओर कुछ देर वही गंगा के घाट पर बैठे रहे रात मे गंगा जी बडी शांत लग रही थी,हाथ मुंह धोए ओर कुछ छीटे शरीर पर भी डाले,बडा ही ठंडा जल था मां गंगा का,मै साल मे कई बार हरीद्वार आ जाता हुं मुझे यहा आना बहुत अच्छा लगता है,चाहे कितनी भी भीड क्यो ना हो पर गंगा मे नहा कर सब कष्ट भूल जाता हुं,ऐसी है मां गंगा ...
अब हल्की हल्की बारिश पडने लगी थी इसलिए हम त्रिवेणी घाट से बाहर आ गए ओर बाहर ही एक रेस्टोरेंट मे खाना खाकर वापिस होटल में चले  गए...... जय गंगे मईयां
यही रास्ता था जो पूरा कच्चा था जिस पर हम गलत चले गए थे!
गुरूद्वारा श्री पाँवटा साहिब
गुरूद्वारा
गुरू का लंगर
रीशिकेश में गंगा जी में दीप प्रवाहित करते हुए
पंडत जी पूजा की आरती की ज्योत लेते हुए