कुछ दिन पहले मैं ओर मेरे एक रिश्तेदार प्रवीण जी(वकील साहब) ओर ललित ने एक टूर प्लान किया, कुमाऊँ घुमने का। टूर यह था की हम पहले दिन भीमताल रूकेगे फिर वहा से अलमोडा, बिनसर ओर कौसानी घुमते हुए, रानीखेत जाएंगे। हमने 11सितम्बर को सुबह 5 बजे निकलना तय किया, इसलिए हम लोग 10 सितम्बर की रात ललित के घर इकठ्ठे हो गए। इससे पहले हम तीनो साथ में
रिशिकेश की यात्रा कर चुके है। 11 की सुबह मैं चार बजे ऊठ गया, उठकर देखा तो वकील साहब अपने लैपटोप पर कुछ काम कर रहे थे। मेरे पुछने पर उन्होंने बताया की 14 सितम्बर को उनकी दिल्ली हाईकोर्ट मे केस की तारिख पड गयी है। जिसके के लिए कुछ जरूरी पेपर तैयार कर रहा हुँ। पर उन्होंने बताया की यह पेपर वह अपने किसी दोस्त जो की वकील है, उन तक पहुँचा देगें, जिससे उनके दोस्त मेरी(प्रवीण जी) जगह14 सितम्बर को पैरवी कर सके। ओर हम आराम से घुम आए। कुछ ही देर बाद उन्होंने पेपर तैयार कर लिए। हम तीनों सुबह आठ बजे अपनी गाड़ी मे बैठ कर प्रवीण के चेम्बर जो की तीस हजारी कोर्ट में है, वहां के लिए निकल पड़े। लगभग एक घंटे मे हम चेम्बर पर पहुँचे। वहां पर कुछ जरूरी पेपर लेकर प्रवीण जी ओर हम दिल्ली हाईकोर्ट पहुँचे। जहां पर वकील साहब ने अपना जरूरी काम निपटा दिया। फिर हम लगभग दोपहर के 11:30 पर दिल्ली हाईकोर्ट से उत्तराखंड स्थित भीमताल के लिए निकल पड़े।
हम तीनों अब टेंसन फ्री थे, क्योकी अब हम कुमाऊँ की सुन्दरता देखने के लिए जा रहे थे। अगर हम सुबह जाते तो शायद रात को अलमोडा रूक जाते लेकिन अब हम चले ही 12 बजे थे, तो रात को ही भीमताल तक ही पहुँच सकते है, ओर शायद इसलिए भीमताल ही रूकना भी होगा।
दिल्ली के जाम से निकलते हुए, अब हम NH24 पर पहुंच गए। डासना टौल पर पहुँचे, यहां पर हमने टौल नही दिया, लोकल कह कर निकल गए। क्योकी इस रोड की लागत तो सरकार ने कई सालों पहले ही वसूल कर ली है, अब तो फालतू मे ही प्रशासन ने टौल लगा रखा है। खैर हम आगे जाकर हापुड से पहले पिलखुवा रूके। पिलखुवा दो चीजो के लिए फैमस है एक तो यहां पर चादर, रजाई, व अन्य कपड़े थौक रेट मे मिलते है, व दूसरा है रोहताश की चाट के लिए फैमस। हम जब भी इधर से गुजरते है तो रोहताश की चाट जरूर खाते है। पर आज हमे थोड़ा जल्दी थी, इसलिए हमने कोक की बोतल व खाने के लिए चिप्स ले लिए। यहां से आगे चल कर हापुड आ जाता है, पर शहर के बाहर ही बाहर शानदार रोड बना है, जिसको पार करते ही बाबूगंढ छावनी आ जाती है। यहां पर खाना खाने के लिए बहुत से अच्छे होटल बने है। मैंने कहां की यहां पर खाना खा लेते है, पर ललित जो गाड़ी चला रहा था। कहने लगा की अभी भूख नही है, अभी तो चिप्स व कोल्डड्रिंक ही पी है, बाद मे देखेंगे। इस प्रकार हम गढ़गंगा ब्रजघाट पहुँचे। गंगा मईया को सड़क से प्रणाम करते हुए, हम वहां से आगे निकल गए।
आगे चलकर हम मुरादाबाद पहुचें। मुरादाबाद को पीतल नगरी भी कहां जाता है। यहां पर बहुत बड़े पैमाने पर पीतल की वस्तुओं का निर्माण होता रहा है। मुरादाबाद से एक रास्ता कांशीपुर होते हुए रामनगर चला जाता है, जहां से नैनिताल व रानीखेत जैसे पर्यटन स्थल पर जाया जा सकता है। लेकिन हमने भीमताल जाना था, इसलिए हम मुरादाबाद से बाहर ही बाहर बने बाईपास से होते हुए। रामपुर पहुँचे, रामपुर शहर से ही एक रास्ता हल्दवानी व काठगोदाम को चला जाता है, ओर एक रास्ता सीधे बरेली को। हम तीनों बातों मे मस्त थे, इसलिए रामपुर शहर के अंदर मुडने की जगह सीधे ही सीधे चलते रहे। तकरीबन चार-पांच किलोमीटर चलने पर गलती का अहसास हुआ, तो वापिस मुड़ गए ओर रामपुर शहर पहुँचे। रामपुर के रेलवे स्टेशन पार करने के बाद हम हल्दवानी रोड पर मुड़ गए। रामपुर से हल्दवानी लगभग 72km की दूरी पर स्थित है। रामपुर से हल्दवानी रोड की स्थिति बहुत ही दयनीय हो चुकी है।, हमारी गाड़ी जो अब तक एक अच्छी रफ्तार पर चल रही थी, यहां इस रोड पर रूक सी गई। सड़क मे गढ्ढे इतने की पुछो मत, हमे गढ्ढो मे से सड़क ढुढनी पड़ रही थी, गाड़ी बैल गाड़ी की तरह चल रही थी। कहीं कहीं तो गाड़ी नीचे अड भी जाती थी। यह है उत्तरप्रदेश की सडको का हाल। हमको ऐसी सड़क से छुटकारा मिला उत्तराखंड जाकर ही। उत्तराखंड शुरू होते ही सड़क बेहतरीन होती चली गई। सड़क खाली व साफ ओर उच्च श्रेणी की मिली। अच्छा हुआ जो उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश से निकल गया।
शाम के लगभग 5 बज रहे थे, हम एक रेस्ट्रोरेंट मे रूके, यह अभी फिलहाल बन ही रहा था, पर कुछ भाग बन चुका है। यहां पर चाय ओर बटरटोस्ट का आर्डर कर दिया। ओर रेस्ट्रोरेंट के मालिक जो एक सरदार जी थे। उन्होंने बताया की यह रेस्तराँ हमने अभी बनाया है, आने वाली गर्मी की छुट्टियों तक यह पूरी तरह तैयार हो जाएगा। थोड़ी देर बाद चाय ओर ब्रेड आ गए। हमने फटाफट चाय ओर टोस्ट को निपटाया ओर सरदार जी पैसे देकर चल पड़े अपनी मंजिल की तरफ।
अब सड़क के दोनों ओर सुंदर नजारे आने लगे थे, दूर तक दिखती काली सड़क ओर दोनों तरफ ऊंचे ऊंचे पेड़ व उन पर फैली हरियाली, मन मोहने के लिए बहुत होता है। अगर रास्ता ऐसा हो तो, दूरी का पता ही नही चलता है।
हम लोग सीधे ही चल रहे थे, तभी एक सड़क पर लगा बोर्ड पढ़ा, जिससे पता चला की पंतनगर हवाई अड्डा बहुत नजदीक ही है। यही पर कुछ सड़क के किनारे अमरूद बाले खड़े थे। हमने खाने के लिए अमरूद ले लिए। अमरूद खाते खाते ओर बातचीत करते हुए हम चले जा रहे थे। तकरीबन आधा घंटे बाद हम हल्दवानी पहुँच गए। हल्दवानी शहर पूरी तरह विकसित शहर है। होटेल, बड़ी बड़ी शौरूम व एक बड़ा सा बाजार, सब कुछ है यहाँ पर।
हम हल्दवानी से आगे चल पड़े। अब पहाड़ी रास्ता चालू हो गया था, हम हल्दवानी से लगभग पाँच किलोमीटर चल कर काठगोदाम पहुँचे। काठगोदाम तक ही रेल आती है। मेरे साथ आए प्रवीण(वकील साहब) जी ने बताया की एक बार वह दिल्ली से ट्रेन से काठगोदाम आए थे, ओर उन्होंने रेलवे स्टेशन पर बनी एक कैन्टीन मे ही खाना खाया था।
हम लोग काठगोदाम से थोड़ी दूर ही चले थे, तो रास्ते मे एक जगह आयी, रानीताल यहीं से एक रास्ता भीमताल को चला जाता है। यहां से भीमताल 16-17km की दूरी पर स्थित है। ओर नैनिताल लगभग 27 km दूर पर है।
हम दांये ओर जाते रास्ते पर मुड़ गए। अब शाम ढल चुकी थी, हल्का हल्का अंधेरा हो चला था। अब तक सड़क पर जो ट्रैफ़िक दिख रहा था, वो भी खत्म सा हो गया। रास्ता सुनसान सा लगने लगा। पहाडो की हवा की वजह से कान बंद से होने लगे। मंद मंद शीतल हवा हमारे चेहरे पर ठंडी का अहसास कराने लगी।
तभी ललित मुझसे कहने लगा की, भीमताल तो शायद हम ही जा रहे है, कोई गाड़ी आसपास दिखाई ही नही दे रही है। तब मेने उसे बताया की लोग ज्यादातर नैनीताल ही जाते है, भीमताल कम जाते है। फिर दो तीन गाड़ी ऊपर से नीचे उतरती दिखाई दी तब जाकर ललित को चैन मिला।
पहाड़ी रास्ते ओर आसमान मे फैली हल्की लालिमा ओर दूर से दिखता हल्दवानी शहर बहुत ही शानदार नजारा पेश कर रहे थे।
खैर हम भीमताल रात के लगभग 8:30 पर पहुंच गए। भीमताल मे प्रवेश करते ही कुछ होटल बने थे, वही से झील चालू हो जाती है, हम भी झील के साथ साथ बनी सड़क पर चलते रहे। आगे जाकर सड़क के किनारे कुछ पुलिसवाले बैठे थे। उनसे रास्ता पुंछ कर एक छोटा सा पुल पार कर हम एक पार्किंग मे पहुँचे। गाड़ी खड़ी कर हमने अपने अपने घरो मे फोन कर बता दिया की हम भीमताल पहुँच गए है। फिर कुछ देर झील के किनारे बैठे गए। फिर हमने रात को रूकने के लिए कमरा ढुंढना चालू किया। एक होटल मे गए शायद लेक पैराडाईज नाम था, कमरा पसंद आ गया 1100 रू० मे बात भी पक्की हो गई। लेकिन काऊंटर पर बैठा आदमी बोलने लगा की आपको यहां पर खाना चाय नही मिलेगी क्योकी ऑफ सीजन है इसलिए रेस्ट्रोरेंट बंद है, बाहर ही खाना पड़ेगा आपको, ओर रात को दस बजे गेट बंद कर दिए जाएंगे। इसलिए आप जल्दी खाना खाकर आ जाओ। हमारे वकील साहब उस आदमी से कहने लगे की होटल मे कमरा दे रहा है या जेल की सजा सुना रहा है, हमारी मर्जी हम कभी भी आए, कभी भी जाए तुझे क्या। ओर कहकर हम वहां से बाहर निकल आए, उस आदमी ने तुरंत शराब की बोतल निकाल कर पीना चालू कर दिया। अब हम लोगों को बात समझ मे आई की यह समय उसका पीने का था, इसलिए वह हमे जल्दी से जल्दी ठरकाना चाह रहा था, क्योकी उसके कार्यक्रम मे हमने देरी करवा दी थी।
यहां से हम एक होटल मे गए, बढ़िया होटल था पर कमरों मे सैलाबी की बदबू सी आ रही थी।
हम यहां से बिल्कुल शुरू के कुछ होटलों की तरफ गए। वहां पर एक रेस्ट्रोरेंट वाले ने हमसे पुछा की कमरा चाहिए क्या आपको। हमने एक ही स्वर मे कहा की हाँ चाहिए।
वह हमे एक होटल मे ले गया। एक कमरा दिखाया डबल बैड वाला 400रू० का ओर एक कमरा दिखाया 600 रू० का उसमें एक डबल व एक सिंगल बैड पड़ा था, टोयलेट देखा तो साफ सुथरा था। साथ मे गीजर भी लगा था। तुरंत ही वह कमरा ले लिया गया। गाड़ी वही रोड पर उसके रेस्ट्रोरेंट पर खड़ी कर दी ओर समान लेकर हम तीनों ऊपर आ गए कमरे में।
रात को खाना भी ऊपर कमरे मे ही आ गया। खाना खाकर हम रात के लगभग साढ़े दस बजे ठहलने के लिए झील के पास पहुँचे। पूरा भीमताल सोया हुआ था, केवल हम ही वहा पर घुम रहे थे। थोड़ी देर बाद एक गाड़ी आई, नंबर देखा तो दिल्ली का था, उसने हमसे एक होटल के बारे मे पुछा, हम उस होटल मे भी कमरा देखने के लिए गए थे, इसलिए उनको रास्ता बता दिया। वो वहां से चले गए ओर हम भी सोने के लिए होटल के कमरे मे चले गए।