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शनिवार, 21 नवंबर 2015

एक छोटी सी यात्रा(भीमताल)

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12, September, 2015
भीमताल के बारे मे.....
भीमताल झील कुमाऊँ की सबसे बड़ी झीलो मे से एक है। यह झील नैनीताल की झील से भी बड़ी है। यह झील समुंद्र तल से 1370 मीटर ऊँचाई पर बनी है, यह 1674 मीटर लम्बी व 447 मीटर चौड़ी है। गहराई के मामले मे यह कुमाऊँ की सबसे गहरी झील (नौकुचियाताल) से कुछ ही कम गहरी है। यह झील नैनीताल की नैनी झील से भी पुरानी है व कुछ विद्वानों ने इस झील का सम्बंध पांडु पुत्र भीम से भी जोड़ा है। कुछ लोगों का कहना है की पांडव यहां पर अपने वनबास के दौरान रहे ओर उन्होंने ही यहां पर इस झील का निर्माण किया था। इसलिए उसका नाम भीमताल पड़ा। कुछ लोगों का कहना है की यह झील बहुत बड़ी है इसलिए भी इसका नाम बलशाली भीम पर रख दिया गया होगा। झील के पास ही एक प्राचीन महादेव का मन्दिर है, जिसे पांडवो ने निर्माण किया बताया जाता है इसलिए यह भीमेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। इस झील पर एक बांध भी बना है, जिसमें से सिंचाई के लिए छोटी छोटी जलधारा निकलती है, जो बाद मे गौला नदी मे जाकर मिल जाती है। इस झील के चारो तरफ सड़क बनी है। जिन्हें मल्लीताल व तल्लीताल के नाम से जाना जाता है। भीमताल झील के बीचो बीच एक टापू बना है, जिस पर एक मछलीघर बना है, जहां पर पर्यटकों को देखने के लिए बहुत सी मछलीयां मिलती है। मछलीघर तक आपको नाव के द्वारा आना होता है। इस झील मे आप नोकाविहार भी कर सकते है।
भीमताल नैनीताल जितना विकसित तो नही है, पर यहां पर एक छोटा सा बाजार भी है, जहां पर हर जरूरत का समान मिल जाता है। रहने के लिए यहां पर छोटे बड़े सभी प्रकार के होटल मिल जाते हैं।
अब यात्रा वर्णन पर आते है...
सुबह सुबह नौकुचियाताल देखकर हम वापिस भीमताल आ जाते है। भीमताल पहुँच कर हमने सबसे पहले गाड़ी झील के किनारे ही लगा दी, जिस होटल मे रात हमने कमरा नही लिया था, उसी के सामने झील का सबसे अच्छा दृश्य दिख रहा था। हम तीनों यहां पर काफी देर तक बैठे रहे। फोटो खिचंते रहे ओर आगे की यात्रा पर बात करते रहे। मेने होटल के एक कर्मचारी से जान लिया था की यहां पर केवल यह झील व झील पर बना एक डैम ओर भीमेश्वर महादेव का मन्दिर है। इसलिए हम इन्हें भी देखना चाहते थे। ओर आज हमे अलमोडा होते हुए, बिनसर भी जाना था। इसलिए हमने यहां पर जाना कैंसिल कर दिया।
तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी, देखा तो घर से मेरे बड़े भाई का फोन था, उन्होंने मुझ से पूछा की कहां पर है मेने जवाब दिया की फिलहाल तो भीमताल हुं, बस थोड़ी देर बाद हम अलमोडा के लिए निकल रहे है। उन्होंने बताया की पहले नैनीताल चले जाना, वहां पर उनके दोस्त व हमारे पडौसी का लड़का एक स्कूल मे पढ़ता है। क्या नाम था स्कूल का...... हां बिड़ला स्कूल।
बड़े भाई ने आदेश दिया की उसकी तबियत खराब है, वो स्कूल के अस्पताल मे ऐडमिट है, उसे देख आना ओर उसके पिता को फोन कर उसका हालचाल बता देना, जिससे वह यह जान सके की उसको वही रहने दिया जाए या दिल्ली लाया जाए। मैंने कहा ठीक देख आऊंगा।
ललित भी कहने लगा की नैनीताल ही चलेंगे, क्योकी ललित भी यहां पर पहली बार आया था।
खैर हम तीनों भीमताल के एक कोने से दूसरे कोने पर बने अपने होटल पहुँचे। अब नल में गरम पानी भी आ रहा था, इसलिए हमने बिना देरी किये नहा-धौकर होटल के रेस्ट्रोरेंट मे पहुँचे। वहां पर हम तीनों ने आलू व प्याज के दो दो परांठे, दही संग खा लिए। परांठे खाकर व कमरे का बिल व टिप देकर हम वहां से नैनीताल की तरफ चल पड़े। भीमताल से नैनीताल लगभग 22km की दूरी पर स्थित है। भीमताल से हम पहले भवाली पहुचें। भवाली से एक रास्ता नैनीताल, दूसरा रास्ता रामगढ़ व मुक्तेश्वर को चला जाता है, एक रास्ता रानीखेत व अलमोडा को चला जाता है। भवाली मे कैंचीधाम नाम का एक मन्दिर भी है जो हाल ही मे बड़ा फैमस हो गया है। भीमताल से नैनीताल तक का रास्ता बड़ा ही सुंदर है, पहाड़ी घुमावदार रास्ता तो कही लम्बे लम्बे पेड़, तो कहीं पर दिखती धुंध से भरी खाई। छोटे छोटे खूबसूरत पहाड़ी फूल ओर हरियाली तो यहां पर कुदरत ने तोफहे मे दे ही रखी है। भीमताल से लेकर नैनीताल तक सड़क भी बेहतरीन बनी है, भवाली से निकलने के बाद बारिश होने लगी, पर यह बारिश जल्द ही थम भी गई। एक जगह हम रूके जहां पर धुंध ने रास्ता रोका हुआ था, जैसे मानो धुंध कह रही हो की आराम से चलो, चारों ओर नजारे ही नही मुझे भी महसूस करो। यहाँ से चलकर लगभग साढ़े दस पर हम नैनीताल जा पहुँचे।रास्ते के दौरान वकील साहब मेरे नैनिताल जाने के निर्णय पर थोड़ा नाराज भी हो गए थे, कहने लगे की हम अपने अपने घर से निकले है घुमने फिरने के लिए, इसलिए तुम्हारे बड़े भाई को तुम्हे नैनीताल जाने के लिए कहना ही नही चाहिए था। लेकिन बाद मे उनका मुड़ ठीक हो गया। क्योकी वह मुड़ खराब कर क्या करते, जब साथ थे, तो जाना तो पड़ता ही।
अब कुछ फोटो देखे जाएँ.......
भीमताल झील का दृश्य 
बतख़ जलक्रीड़ा करती हुई। 
एक साथी ओर आ गया। 
पूरा का पूरा झुँड 
झील और नाव 
झील के बीच बना टापू पर एक मछलीघर। 
एक फोटो अपना भी भीमताल झील पर। 
भवाली 
नैनीताल को जाता सुन्दर रोड, हरे भरे पेड व सर्पाकार सड़क। 
ललित 
प्रवीन (वकील साहब )
इस फोटो में बैकग्राउंड में कुछ नहीं दिख रहा है, जबकि यहां धुंध  ने एक खूबसूरत समां बांधा हुआ था। 
कुछ कुछ ऐसा ही। 
आगे धुंध ज्यादा है कृप्या धीरे चले ओर प्रकृति के नजारो को देखते चले। 

शनिवार, 14 नवंबर 2015

एक छोटी सी यात्रा(नौकुचिया ताल)

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12, Sep, 2015
सुबह आंखे जल्दी ही खुल गई, मोबाईल में देखा तो सुबह के 5 बज रहे थे। खिड़की से बाहर देखा तो घुप्प अंधेरा चारों ओर छाया हुआ था। फिर से बेड पर लेट गया, पर नींद नही आई, लगभग 5:30 पर प्रवीण व ललित भी ऊठ गए। सबका मन चाय पीने को कर रहा था। पर हम जानते थे की इस समय चाय मिलना नामुमकिन है। लगभग आधा घंटे बाद हम तीनों होटल से निकल कर बाहर आए। बाहर आते ही हल्की हल्की सर्द हवाओं ने हमारा स्वागत किया। ओरो का तो पता नही पर मैं एक गर्म स्वेट शर्ट जरूर लेकर आया था, इसलिए बिना देरी लगाए मैंने तो अपनी स्वेट शर्ट पहन ली। अभी दुकानें, रेस्ट्रोरेंट सब कुछ बंद थे, इसलिए हम लोगों ने नौकुचिया ताल जाने की सोची। भीमताल से नौकुचिया ताल लगभग 4-5km की दूरी पर स्थित है। हम लोग गाड़ी मे बैठ गए। गाड़ी मैं चला रहा था, गाड़ी के शीशे खोल दिए गए ताकि बाहर की स्वच्छ व शीतल हवा, हमे मिलती रहे। पहले रास्ता थोड़ा ऊँचाई का है, लेकिन फिर रास्ता समतल हो जाता है, कही हल्की चढ़ाई तो कही उतराई, पहाड़ी घुमावदार रास्तों पर गाड़ी चलाने का अपना ही मजा है। जहां अच्छा सा नजारा दिखता है, वही गाड़ी साईड मे लगा दी जाती है। ओर प्रकृति की सुंदरता को महसूस किया जाता है। हम मुश्किल से 15 मिनट मे ही नौकुचिया ताल पर पहुँच गए।
नौकुचिया ताल समुद्र तल से लगभग 1292 मीटर ऊंची है, झील की शुरूआत मे कमल के बहुत से फूल खिले थे, जहां पर लिखा था की फूल तोड़ने पर रू०500 का जुर्माना देना होगा, यहां पर बहुत सारी छोटी छोटी मछलीया थी, जो शायद मछलियों के छोटे बच्चे हो, लेकिन उन छोटी मछलियों को छोटी छोटी व प्यारी चिड़िया अपना भोजन बना रही थी। कमल वाले तालाब के पास ही बोटिंग स्टेंड भी है। यहां पर आप इस खूबसूरत झील मे नोकाविहार कर सकते है।
पास मे कुछ होटल व रेस्ट्रोरेंट भी है। जो फिलहाल अभी खुले ना थे, पर एक रेस्ट्रोरेंट में कुछ चहल पहल देख कर  हम तीनों हवा पहुँचे, वहां पर मौजूद कर्मियों ने बताया की इस समय केवल चाय ही मिलेगी हमने कहां "भाई तू चाय ही पीला दे"। कुछ देर बाद वह तीन चाय ले आया, हमारी गाड़ी मे कुछ नमकीन बिस्किट व फैन रखे हुए थे, इसलिए चाय संग उन्हें ग्रहण कर लिया। चाय पीने के बाद शरीर मे नई उर्जा का आभास हुआ। हम कुछ दूर झील के साथ साथ टहल रहे थे, तभी झील मे चारों ओर पानी हिलने लगा, फिर पानी से बुलबुले उठने लगे। वहां पर जा रहे एक व्यक्ति ने बताया की यह बुलबुले झील की मछलियों को सांस लेने मे मदद करते है। फिर हम लोग वहां से गाड़ी मे बैठ कर झील के साथ साथ चलते रहे। सुबह सुबह का समय, पेडो की हिलती टहनियां, चिड़ियो की चहचहाहट ओर पता नही क्या क्या देखने को मिला हमे। झील का रूप हर जगह अलग सा लगता, कही पानी हरा तो कही काला लगता, पर लगता सुंदर ही। हम कुछ दूर ही चले थे की सड़क आगे से बंद मिली या यूं कहे की सड़क केवल यही तक ही थी। कुछ दुकानें लगी हुई थी, कुछ बोटिंग कराने वाले भी बैठे थे। यहां से झील बहुत बड़ी व सुंदर दिख रही थी। यहां पर बने बोट स्टेंड पर हमारे वकील साहब जा पहुँचे। लेकिन बोट स्टेंड पर कोई भी बोट वाला मौजूद नही था, सभी बोट आपस मे रस्सीयों से बंधी हुई थी, यहां पर हमने झील के पानी मे कुछ लाल रंग के केकडे भी देखे।
कहते है की यह झील कुमाऊँ की सबसे गहरी झील है। यह लगभग 1km से ज्यादा लम्बी व आधा किलोमीटर से ज्यादा चौड़ी है, ओर यह लगभग 45 मीटर गहरी भी है। इस झील के नौ कोने है, इसलिए इसे नौकुचिया ताल कहते है। कहते है की कोई भी इस झील के नौ के नौ कोनो को एक साथ नही देख सकता है। ओर यह सच भी है, झील के नौ कोनो को एक साथ देखा ही नही जा सकता है, क्योकी यह झील टेढ़ी मेढी बनी है।
झील के पास काफी समय बिता कर हम वापिस भीमताल की तरफ चल पड़े। रास्ते मे राम भक्त हनुमान जी की एक विशाल मूर्ति देखने को मिली व पास मे ही गुफा वाला मन्दिर भी था। चुंकि हम नहाए नही थे, इसलिए हनुमानजी जो सड़क से ही प्रणाम कर हम भीम ताल की तरफ चल पड़े। रास्ते मे ओर भी नजारे दिखे जैसे ऊंचे नीचे सीढ़ीनुमा खेत व हल जोतता किसान, दिखने मे बड़े सुंदर लग रहे थे। जिन्हें देखते देखते हम भीमताल आ पहुँचे।
कुछ फोटो देखें जाए इस यात्रा के....
छोटी छोटी चिड़िया झील के किनारे देखने को मिली। 
नौकुचिया ताल का एक हिस्सा। 
अभी बोट वाले आये नहीं है शायद 
सुबह की पहली चाय 
ललित और मैं (सचिन )
प्रवीण और मैं 
झील हर जगह से बेहतरीन दिख रही थी 
बोट स्टैंड पर हम तो थे, पर बोट वाला ही नहीं था। 
पहाड़ी मिर्ची 
रास्ते में हनुमानजी की विशाल मूर्ति के दर्शन हुए।  
दूर दिखता एक बैल 
थोड़ा पास से देखते है। 

मंगलवार, 3 नवंबर 2015

एक छोटी सी यात्रा,(दिल्ली से भीमताल)

11, सितम्बर, 2015
कुछ दिन पहले मैं ओर मेरे एक रिश्तेदार प्रवीण जी(वकील साहब) ओर ललित ने एक टूर प्लान किया, कुमाऊँ घुमने का। टूर यह था की हम पहले दिन भीमताल रूकेगे फिर वहा से अलमोडा, बिनसर ओर कौसानी घुमते हुए, रानीखेत जाएंगे। हमने 11सितम्बर को सुबह 5 बजे निकलना तय किया, इसलिए हम लोग 10 सितम्बर की रात ललित के घर इकठ्ठे हो गए। इससे पहले हम तीनो साथ में रिशिकेश की यात्रा कर चुके है। 11 की सुबह मैं चार बजे ऊठ गया, उठकर देखा तो वकील साहब अपने लैपटोप पर कुछ काम कर रहे थे। मेरे पुछने पर उन्होंने बताया की 14 सितम्बर को उनकी दिल्ली हाईकोर्ट मे केस की तारिख पड गयी है। जिसके के लिए कुछ जरूरी पेपर तैयार कर रहा हुँ। पर उन्होंने बताया की यह पेपर वह अपने किसी दोस्त जो की वकील है, उन तक पहुँचा देगें, जिससे उनके दोस्त मेरी(प्रवीण जी) जगह14 सितम्बर को पैरवी कर सके। ओर हम आराम से घुम आए। कुछ ही देर बाद उन्होंने पेपर तैयार कर लिए। हम तीनों सुबह आठ बजे अपनी गाड़ी मे बैठ कर प्रवीण के चेम्बर जो की तीस हजारी कोर्ट में है, वहां के लिए निकल पड़े। लगभग एक घंटे मे हम चेम्बर पर पहुँचे। वहां पर कुछ जरूरी पेपर लेकर प्रवीण जी ओर हम दिल्ली हाईकोर्ट पहुँचे। जहां पर वकील साहब ने अपना जरूरी काम निपटा दिया। फिर हम लगभग दोपहर के 11:30 पर दिल्ली हाईकोर्ट से उत्तराखंड स्थित भीमताल के लिए निकल पड़े।
हम तीनों अब टेंसन फ्री थे, क्योकी अब हम कुमाऊँ की सुन्दरता देखने के लिए जा रहे थे। अगर हम सुबह जाते तो शायद रात को अलमोडा रूक जाते लेकिन अब हम चले ही 12 बजे थे, तो रात को ही भीमताल तक ही पहुँच सकते है, ओर शायद इसलिए भीमताल ही रूकना भी होगा।
दिल्ली के जाम से निकलते हुए, अब हम NH24 पर पहुंच गए। डासना टौल पर पहुँचे, यहां पर हमने टौल नही दिया, लोकल कह कर निकल गए। क्योकी इस रोड की लागत तो सरकार ने कई सालों पहले ही वसूल कर ली है, अब तो फालतू मे ही प्रशासन ने टौल लगा रखा है। खैर हम आगे जाकर हापुड से पहले पिलखुवा रूके। पिलखुवा दो चीजो  के लिए फैमस है एक तो यहां पर चादर, रजाई, व अन्य कपड़े थौक रेट मे मिलते है, व दूसरा है रोहताश की चाट के लिए फैमस। हम जब भी इधर से गुजरते है तो रोहताश की चाट जरूर खाते है। पर आज हमे थोड़ा जल्दी थी, इसलिए हमने कोक की बोतल व खाने के लिए चिप्स ले लिए। यहां से आगे चल कर हापुड आ जाता है, पर शहर के बाहर ही बाहर शानदार रोड बना है, जिसको पार करते ही बाबूगंढ छावनी आ जाती है। यहां पर खाना खाने के लिए बहुत से अच्छे होटल बने है। मैंने कहां की यहां पर खाना खा लेते है, पर ललित जो गाड़ी चला रहा था। कहने लगा की अभी भूख नही है, अभी तो चिप्स व कोल्डड्रिंक ही पी है, बाद मे देखेंगे। इस प्रकार हम गढ़गंगा ब्रजघाट पहुँचे। गंगा मईया को सड़क से प्रणाम करते हुए, हम वहां से आगे निकल गए।
आगे चलकर हम मुरादाबाद पहुचें। मुरादाबाद को पीतल नगरी भी कहां जाता है। यहां पर बहुत बड़े पैमाने पर पीतल की वस्तुओं का निर्माण होता रहा है। मुरादाबाद से एक रास्ता कांशीपुर होते हुए रामनगर चला जाता है, जहां से नैनिताल व रानीखेत जैसे पर्यटन स्थल पर जाया जा सकता है। लेकिन हमने भीमताल जाना था, इसलिए हम मुरादाबाद से बाहर ही बाहर बने बाईपास से होते हुए। रामपुर पहुँचे, रामपुर शहर से ही एक रास्ता हल्दवानी व काठगोदाम को चला जाता है, ओर एक रास्ता सीधे बरेली को। हम तीनों बातों मे मस्त थे, इसलिए रामपुर शहर के अंदर मुडने की जगह सीधे ही सीधे चलते रहे। तकरीबन चार-पांच किलोमीटर चलने पर गलती का अहसास हुआ, तो वापिस मुड़ गए ओर रामपुर शहर पहुँचे। रामपुर के रेलवे स्टेशन पार करने के बाद हम हल्दवानी रोड पर मुड़ गए। रामपुर से हल्दवानी लगभग 72km की दूरी पर स्थित है। रामपुर से हल्दवानी रोड की स्थिति बहुत ही दयनीय हो चुकी है।, हमारी गाड़ी जो अब तक एक अच्छी रफ्तार पर चल रही थी, यहां इस रोड पर रूक सी गई। सड़क मे गढ्ढे इतने की पुछो मत, हमे गढ्ढो मे से सड़क ढुढनी पड़ रही थी, गाड़ी बैल गाड़ी की तरह चल रही थी। कहीं कहीं तो गाड़ी नीचे अड भी जाती थी। यह है उत्तरप्रदेश की सडको का हाल। हमको  ऐसी सड़क से छुटकारा मिला उत्तराखंड जाकर ही। उत्तराखंड शुरू होते ही सड़क बेहतरीन होती चली गई। सड़क खाली व साफ ओर उच्च श्रेणी की मिली। अच्छा हुआ जो उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश से निकल गया।
शाम के लगभग 5 बज रहे थे, हम एक रेस्ट्रोरेंट मे रूके, यह अभी फिलहाल बन ही रहा था, पर कुछ भाग बन चुका है। यहां पर चाय ओर बटरटोस्ट का आर्डर कर दिया। ओर रेस्ट्रोरेंट के मालिक जो एक सरदार जी थे। उन्होंने बताया की यह रेस्तराँ हमने अभी बनाया है, आने वाली गर्मी की छुट्टियों तक यह पूरी तरह तैयार हो जाएगा। थोड़ी देर बाद चाय ओर ब्रेड आ गए। हमने फटाफट चाय ओर टोस्ट को निपटाया ओर सरदार जी पैसे देकर चल पड़े अपनी मंजिल की तरफ।
अब सड़क के दोनों ओर सुंदर नजारे आने लगे थे, दूर तक दिखती काली सड़क ओर दोनों तरफ ऊंचे ऊंचे पेड़ व उन पर फैली हरियाली, मन मोहने के लिए बहुत होता है। अगर रास्ता ऐसा हो तो, दूरी का पता ही नही चलता है।
हम लोग सीधे ही चल रहे थे, तभी एक सड़क पर लगा बोर्ड पढ़ा, जिससे पता चला की पंतनगर हवाई अड्डा बहुत नजदीक ही है। यही पर कुछ सड़क के किनारे अमरूद बाले खड़े थे। हमने खाने के लिए अमरूद ले लिए। अमरूद खाते खाते ओर बातचीत करते हुए हम चले जा रहे थे। तकरीबन आधा घंटे बाद हम हल्दवानी पहुँच गए। हल्दवानी शहर पूरी तरह विकसित शहर है। होटेल, बड़ी बड़ी शौरूम व एक बड़ा सा बाजार, सब कुछ है यहाँ पर।
हम हल्दवानी से आगे चल पड़े। अब पहाड़ी रास्ता चालू हो गया था, हम हल्दवानी से लगभग पाँच किलोमीटर चल कर काठगोदाम पहुँचे। काठगोदाम तक ही रेल आती है। मेरे साथ आए प्रवीण(वकील साहब) जी ने बताया की एक बार वह दिल्ली से ट्रेन से काठगोदाम आए थे, ओर उन्होंने रेलवे स्टेशन पर बनी एक कैन्टीन मे ही खाना खाया था।
हम लोग काठगोदाम से थोड़ी दूर ही चले थे, तो रास्ते मे एक जगह आयी, रानीताल यहीं से एक रास्ता भीमताल को चला जाता है। यहां से भीमताल 16-17km की दूरी पर स्थित है। ओर नैनिताल लगभग 27 km दूर पर है।
हम दांये ओर जाते रास्ते पर मुड़ गए। अब शाम ढल चुकी थी, हल्का हल्का अंधेरा हो चला था। अब तक सड़क पर जो ट्रैफ़िक दिख रहा था, वो भी खत्म सा हो गया। रास्ता सुनसान सा लगने लगा। पहाडो की हवा की वजह से कान बंद से होने लगे। मंद मंद शीतल हवा हमारे चेहरे पर ठंडी का अहसास कराने लगी।
तभी ललित मुझसे कहने लगा की, भीमताल तो शायद हम ही जा रहे है, कोई गाड़ी आसपास दिखाई ही नही दे रही है। तब मेने उसे बताया की लोग ज्यादातर नैनीताल ही जाते है, भीमताल कम जाते है। फिर दो तीन गाड़ी ऊपर से नीचे उतरती दिखाई दी तब जाकर ललित को चैन मिला।
पहाड़ी रास्ते ओर आसमान मे फैली हल्की लालिमा ओर दूर से दिखता हल्दवानी शहर बहुत ही शानदार नजारा पेश कर रहे थे।
खैर हम भीमताल रात के लगभग 8:30 पर पहुंच गए। भीमताल मे प्रवेश करते ही कुछ होटल बने थे, वही से झील चालू हो जाती है, हम भी झील के साथ साथ बनी सड़क पर चलते रहे। आगे जाकर सड़क के किनारे कुछ पुलिसवाले बैठे थे। उनसे रास्ता पुंछ कर एक छोटा सा पुल पार कर हम एक पार्किंग मे पहुँचे। गाड़ी खड़ी कर हमने अपने अपने घरो मे फोन कर बता दिया की हम भीमताल पहुँच गए है। फिर कुछ देर झील के किनारे बैठे गए। फिर हमने रात को रूकने के लिए कमरा ढुंढना चालू किया। एक होटल मे गए शायद लेक पैराडाईज नाम था, कमरा पसंद आ गया 1100 रू० मे बात भी पक्की हो गई। लेकिन काऊंटर पर बैठा आदमी बोलने लगा की आपको यहां पर खाना चाय नही मिलेगी क्योकी ऑफ सीजन है इसलिए रेस्ट्रोरेंट बंद है, बाहर ही खाना पड़ेगा आपको, ओर रात को दस बजे गेट बंद कर दिए जाएंगे। इसलिए आप जल्दी खाना खाकर आ जाओ। हमारे वकील साहब उस आदमी से कहने लगे की होटल मे कमरा दे रहा है या जेल की सजा सुना रहा है, हमारी मर्जी हम कभी भी आए, कभी भी जाए तुझे क्या। ओर कहकर हम वहां से बाहर निकल आए, उस आदमी ने तुरंत शराब की बोतल निकाल कर पीना चालू कर दिया। अब हम लोगों को बात समझ मे आई की यह समय उसका पीने का था, इसलिए वह हमे जल्दी से जल्दी ठरकाना चाह रहा था, क्योकी उसके कार्यक्रम मे हमने देरी करवा दी थी।
यहां से हम एक होटल मे गए, बढ़िया होटल था पर कमरों मे सैलाबी की बदबू सी आ रही थी।
हम यहां से बिल्कुल शुरू के कुछ होटलों की तरफ गए। वहां पर एक रेस्ट्रोरेंट वाले ने हमसे पुछा की कमरा चाहिए क्या आपको। हमने एक ही स्वर मे कहा की हाँ चाहिए।
वह हमे एक होटल मे ले गया। एक कमरा दिखाया डबल बैड वाला 400रू० का ओर एक कमरा दिखाया 600 रू० का उसमें एक डबल व एक सिंगल बैड पड़ा था, टोयलेट देखा तो साफ सुथरा था। साथ मे गीजर भी लगा था। तुरंत ही वह कमरा ले लिया गया। गाड़ी वही रोड पर उसके रेस्ट्रोरेंट पर खड़ी कर दी ओर समान लेकर हम तीनों ऊपर आ गए कमरे में।
रात को खाना भी ऊपर कमरे मे ही आ गया। खाना खाकर हम रात के लगभग साढ़े दस बजे ठहलने के लिए झील के पास पहुँचे। पूरा भीमताल सोया हुआ था, केवल हम ही वहा पर घुम रहे थे। थोड़ी देर बाद एक गाड़ी आई, नंबर  देखा तो दिल्ली का था, उसने हमसे एक होटल के बारे मे पुछा, हम उस होटल मे भी कमरा देखने के लिए गए थे, इसलिए उनको रास्ता बता दिया। वो वहां से चले गए ओर हम भी सोने के लिए होटल के कमरे मे चले गए।
यात्रा अभी जारी है...............
इस यात्रा के कुछ फोटो देखें जाए.....
 रास्तें की फ़ोटो 
सरदार जी का रेस्टोरेन्ट जहा हम रूके थे। 
हल्द्धानी से  कुछ किलोमीटर पहले। 
लो जी पहुंच गये हल्द्धानी। 
काठगोदाम पार कर हल्द्धानी ऊपर से ऐसी दिखती है। 
पहुंच गए भीमताल, रात में ऐसी दिखती है भीमताल की झील।