पृष्ठ

बुधवार, 11 जुलाई 2018

मेरी जयपुर यात्रा (जयगढ़ और नाहरगढ़ किला)



सुबहे आराम से उठ कर व नहा धोकर हम लगभग 8:30 पर नीचे बने होटल के रेस्टोरेंट में पहुंचे। हम से पहले कुछ विदेशी गेस्ट भी वहा मौजूद थे। नास्ते में खीर ,कॉर्नफ्लेक्स ,फ्रूट और फ्रूट जूस था और बटर टोस्ट साथ में हां कुछ वेज कटलेट भी थे। मैंने परांठे को पूछा तो उसने सॉरी कहते हुए नहीं कह दिया। चलो जी इनसे ही काम चला लेते है। नाश्ता करने के बाद हम जयपुर घूमने के लिए निकल पड़े।

जयगढ़ क़िला 

जयगढ़ किला
हम सबसे पहले अरावली की पहाडी पर बने जयगढ़ के किले को देखने के लिए पहुंचे। यह किला आमेर की सुरक्षा के लिए बनाया गया था। यहां पर तोपखाना (कारखाना)भी था जहां पर तोपो का निर्माण होता था व अन्य शस्त्रों को रखने के लिए भी उपयोग में लाया जाता था। हम कह सकते है की यह उस समय सेना का गढ़ हुआ करता था।  आज भी यहां पर दुनिया की सबसे बडी तोप रखी हुई है। जिसको भी हम देखने वाले हैं। हम एक तिराहे पर पहुंचे जहां से एक रास्ता नाहरगढ़ फोर्ट तो दूसरा सीधा रास्ता जयगढ़ फोर्ट पर पहुंचता है। यही पर एक गाइड मिला उसने जयगढ़ फोर्ट घुमाने के 200 मांगे। मैने उसको 150 रूपय बोलाे। आखिर में वह मान गया और हमारे साथ जय गढ़ किले की तरफ चल पडा। जयगढ़ किले के बाहरी गेट पर टिकेट घर था  मैने टिकिट लिए और हम किले अंदर चल दिए। इस किले में हम गाडी के द्वारा ही घुम सकते है मतलब पैदल कम और सवारी से ज्यादा क्योंकि रास्ते बहुत चौडे़ बनाए हुए हैं। हमारा गाइड सबसे पहले हमे वही तोप दिखाने के लिए लेकर गया जिसे सभी विश्व की सबसे बड़ी तोप कहते हैं। गाइड ने हमे बताया की यह तोप केवल एक बार ही चलाई गई थी। क्योंकी इससे इतना तेज धमाका हुआ की चलाने वाले सैनिक बहरे हो गए और वह धमाके के दबाव से उत्पन हुए धक्के से कई फ़ीट पीछे गिर गए। इस तोप को किले में एक ऊंची जगह पर रखा गया है। इस तोप का नाम जयवाण तोप है। वाकई यह बहुत विशाल तोप है। इस तोप का निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह (द्वितीय) के शासनकाल सन् 1720 ई. में जयगढ़ किले के कारखाने में ही हुआ था।
इस किले से जयपुर शहर का बहुत सुंदर व मनभावन नजारा दिख रहा था। किले से नीचे देखने पर एक पानी का कुंड भी दिख रहा था और आमेर का किला भी दिख रहा था। जिसे अम्बर किला भी कहते है, यहां से आगे चलकर हम एक म्यूजियम में पहुंचे। यहां पर राजसी पोशाके व विभिन्न प्रकार के अस्त्र शस्त्र आदि रखे हुए है। कई प्रकार की छोटी तोपे व उनके गोले भी रखे हुए है। यह सब देखना अच्छा लगता है लेकिन साथ में इतिहास की वह यादें भी ताजा हो उठी थी। जिसमे हमने यह जाना था की जयपुर राज्य नें पहले मुगलों का साथ दिया और बाद में अंग्रेज़ी सरकार का।
यहां से आगे हमारा गाइड हमें एक जगह लेकर गया वहाँ पर ताला लगा हुआ था उसने बताया की। यह एक पानी की टंकी है जिसमे पानी एकत्रित किया जाता था। साथ में उसने बताया की। इंदिरा गांधी ने इस किले में खजाने के लिए बहुत खुदाई करायी और इसी पानी की टंकी के नीचे गुप्त तहखाने में काफी खजाना मिला जिसे कई ट्रको में दिल्ली ले जाया गया, बाद में उस समय के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भुट्टो नें भी अपना हिस्सा मांगा था लेकिन इंडिया ने उनसे कोई बातचीत नही की और सारा खजाना अपने पास ही रख लिया।
वैसे गाइड की बातों पर यक़ीन नही हो रहा था। इसलिए मैं नही जानता की खजाना मिला भी या नही। यह भी हो सकता है कि गाइड केवल एक किस्से कहानी को ही बता रहा था जो शायद उसने अपने बड़े बुजर्गो से सुनी हो? लेकिन उसके मुँह से सुनना मुझे बडा अच्छा लग रहा था। यहां से आगे वह हमें एक दुकान पर ले गया वहा बहुत से प्रकार के समान रखे हुए थे, यह समान राजस्थान हैंडीक्राफ्ट का था। हमने कुछ समान भी खरीदा जिसमें गाइड को भी कुछ ना कुछ कमीशन जरूर मिलेगा। और हां एक बात जयपुर में हर गाइड आपको एक दुकान पर अवश्य ले जाता है अपनी कमीशन या दिहाड़ी के लिए जबकि वही समान बाहर बाजार में सस्ता मिल जाता है।
जयगढ़ किले में और बहुत सी जगह भी दर्शनीय है जिनमें आराम मंदिर जो एक खूबसूरत बग़ीचा और छोटा महल है जिसे राजा ग्रीष्म काल मे उपयोग में लाते थे। यहाँ पर भोजशाला भी बनी है जहाँ राजा और रानी भोजन करते थे। इस महल में और भी कई भवनों को देख सकते है जिसमे लक्ष्मी विलास नामक महल, तोप कारखाना, विलास मंदिर, ललित मंदिर और आराम मंदिर हैं जहां राज परिवार रहता था। किले में दो पुराने मंदिरों भी है जिसमे 10वीं सदी का राम हरिहर मंदिर और 12वीं सदी का काल भैरव मंदिर है। जयगढ़ किले से ही एक रास्ता आमेर के किले के लिए चला जाता है कुछ लोग पैदल तो कुछ लोग वहां से चलने वाली खास गाड़ी से भी जा रहे थे। हम जयगढ़ किले को देखकर वापिस अपनी गाड़ी की तरफ आ गए। पास में ही एक कैंटीन पर हमने चाय और देवांग ने जूस पिया। यहाँ से हम वापिस चल पड़े फिर उसी तिराहे पर पहुँचे जहां से हमने गाइड लिया था अब हम नाहरगढ़ किला देखने के लिए चल पड़े।
जयगढ़ फोर्ट की तरफ जाता रोड 

जयवाण तोप के साथ मैं सचिन 


वर्ल्ड लांगेस्ट कैनन "जयवाण "

मेरी डस्टर कार और देवांग 

जयगढ़ क़िले से दिखता एक जल कुंड 

जयगढ़ फोर्ट 

धूप बहुत है 

चलो कैप लगा लेते है। 

जयगढ़ क़िले में राजा व राजशाही लोगो की मनोरंजन का स्थान 

सुभट निवास यहाँ योद्धाओं बैठा करते थे। 

 शाही भोजशाला 

तोप बनाने का कारखाना 

बड़े बड़े तबले जो विशिस्ट अवसरों पर बजते थे। 

राजा की पालकी 

तोप के गोले संगहालय में 

राइफल्स और छोटी तोप जिसे आराम से ढोया जा सकता था 

युद्ध की पोशाक 

जलेब द्वार मतलब सेना से सम्बादित 

एक गलियारा 


नाहरगढ़ किला
अरावली पहाडियों पर बना नाहरगढ़ का किला राजा सवाई जय सिंह(द्वितीय) ने 1734 में बनवाया था और 1868 में यह किला बनकर तैयार हुआ था। किले में दीवाने आम, खज़ाना भवन और सैनिक विश्राम गृह भी है। इस किले में सबसे दर्शनीय माधवेंद्र भवन है जिसका निर्माण महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय के द्वारा कराया गया था।  माधवेंद्र भवन में रानियों के लिए नौ खास कमरे बनवाए गए थे। और राजा के लिए एक शानदार कमरा बनाया गया था। यह किला दो मंज़िला बनाया गया था। सभी रानियों के कक्ष बिलकुल एक समान बनाये गए है। ग्रीष्म ऋतु में रानियां नीचे रहा करती थी और शरद ऋतु में ऊपर के कक्ष में। रानियों के हर महल को राजा के महल से एक गलियारें से जोड़ा गया है जिसे राजा का गलियारा बोला जाता है। राजा किस रानी के साथ है यह अन्य रानियों को पता ना चले और कौन सी रानी किस रानी से मिल रही है यह भी पता ना चले। शायद राजा रानियों में झगड़ा नही चाहता था इसलिए यह महल कुछ इस प्रकार से यह बनाया गया था। महल में पानी की एक बाबड़ी भी बनी है जो उस समय पानी की पूर्ति करता होगा। आज भी उसमे पानी था। पास में ही एक म्यूजियम भी बनाया हुआ है जिसमे कई वैक्स की प्रतिमाएं है और शीश महल भी बना है। लेकिन इन सभी चीज़ों को देखने के लिए आपको 500 रुपए चुकाने होंगे इसलिए मैं तो अंदर गया नही। नाहरगढ़ किले से भी जयपुर शहर का सुंदर दृश्य दिखता है। कुछ टेलिस्कोप वाले भी छत पर बैठे हुए थे जो  20 रूपए में जयपुर की सात इमारतों को दिखाता है। मेरे 7 वर्षीय बेटे देवांग ने भी टेलीस्कोप द्वारा यह इमारतें देखने की फ़रमाइश की वैसे उसकी दिलचस्पी केवल टेलिस्कोप में देखना मात्र था। ऊपर छत पर सूर्य की तेज किरणों की वजह से गर्मी भी लग रही थी जबकि जनवरी का महीना चल रहा था। वैसे इस किले से सूर्यास्त का सुंदर नज़ारा दिखता है यह हमें टेलिस्कोप वाले ने बताया था। किले के दूसरी तरफ जंगल है इसलिए स्टील के तारो को लगाया गया है और पर्यटकों को अंदर ना जाने की चेतावनी भी दी गयी है। जयपुर आने वाले काफी पर्यटक इस प्राचीन किले को देखने आते है और यहाँ आकर निराश भी नही होते है। अब हम वापिस किले से बाहर आ गए।
नाहरगढ़ क़िले के बारे में बताता एक शिला पट 


माधवेंद्र महल जहा 9 रानियाँ और राजा रहा करते थे। 

दोनों तरह रानियों के कक्ष और सामने राजा का कक्ष 

देवांग टेलिस्कोप से जयपुर शहर देखता हुआ 

जयपुर शहर नाहर गढ़ क़िले से 

रानी का महल 

रानी का ऊपरी कक्ष 

राजा का कक्ष 

पानी की बाबड़ी( स्टेप वेल )

शाही गाड़ी 

मैं सचिन 

गलियारा 

सैनिको के रुकने का स्थान 

चरण मंदिर 
हम नाहरगढ़ से वापिस जयपुर सिटी की तरफ चल पड़े। रास्ते में बने एक पुराने मंदिर में भी गए। जिसे चरण मंदिर कहते है। इस मंदिर का भी एक इतिहास है, मंदिर के पुजारी जी बताते है कि भगवान श्री कृष्ण मथुरा से द्वारकाधीश जाते वक्त यहाँ रुके थे तब उनके पैरों के निशान एक पत्थर पर बन गए और उनके साथ उनकी गायों के खुर के निशान भी पत्थरो पर अंकित हो गए। वह पत्थर आज भी मंदिर में रखे हुए है और उन्ही चरण पादुका की पूजा आज तक भी की जाती है। मंदिर में बैठे एक बजुर्ग पंडित जी ने हमको वह पत्थर दिखाए। हम कुछ समय मंदिर में बिताने के बाद वापिस जयपुर की तरफ चल पड़े।
चरण मंदिर बाहर का द्वार 

चरण मंदिर 

चरण पादुका