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शनिवार, 2 मई 2020

काशी विश्वनाथ मंदिर-उत्तरकाशी

अब तक आपने पढ़ा कि हम गंगोत्री धाम के दर्शन करने के पश्चात गंगनानी के आसपास रुक गए थे अब आगे पढ़ें...

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31 मई 2019
kashi viswanath temple, uttarkashi

सुबह जल्दी ही उठ गए हैं और फ्रेश होने के पश्चात लगभग 6 बजे हम यहां से उत्तरकाशी की तरफ निकल चलें। कुछ किलोमीटर चलने पर भटवारी आया अभी दुकाने बंद थी इसलिए हम लगभग 30 km आगे चलकर उत्तरकाशी के बस स्टैंड पहुँचे। बस स्टैंड से काशी विश्वनाथ मंदिर मात्र 300 मीटर की दूरी पर ही। हम जल्द ही मंदिर के सामने थे। मंदिर के बाहर बैठे एक प्रसाद बेचने वाले से गंगा घाट के लिए रास्ता पूछा तो उसने रास्ता समझाते हुए बताया कि केदार घाट पर चले जाना, वह बहुत बढ़िया बना है। हमने पहले ही तय कर लिया था कि पहले गंगा घाट पर स्नान करेंगे फिर बाबा विश्वनाथ जी के दर्शन। मंदिर से लगभग 500 मीटर चलने पर ही केदार घाट पहुँच गए। यह घाट काफी साफ सुथरा दिख रहा था। सुबह-सुबह अभी कुछ औरतें व एक दो आदमी ही स्नान कर रहे थे। महिलाओं के लिए कपड़े बदलने की के लिए एक दो चेंजिंग रूम भी बने हैं। यह घाट कुछ कुछ हरिद्वार की हर की पौड़ी की याद दिलाता है लेकिन यह उससे काफी छोटा है। हरिद्वार में गंगा स्नान करना भी मुझे बड़ा ही आनंद प्रदान करता है।
खैर जब मैंने जल में पहला कदम रखा तो यह काफी ठंडा महसूस हुआ लेकिन यहां के जल की तुलना गंगोत्री के जल से करें तो उसके सामने यह कुछ भी ठंडा नही था इसलिए पहली डुबकी लगाकर फिर आराम से दस पंद्रह मिनट तक नहाया और खूब डुबकी भी लगाई। नहाने के पश्चात घाट के नजदीक ही मेरी कार भी खड़ी थी उसको भी गंगा जल से स्नान करा ही दिया। वापिस घाट पर आकर कपड़े बदल कर एक मंदिर जो केदारनाथ मंदिर से जाना जाता है और घाट के बेहद नजदीक भी है उसमें दर्शन के लिए गए। यह मंदिर छोटा है लेकिन अंदर भगवान केदारनाथ के भव्य दर्शन होते है। एक बार तो मुझे लगा कि जैसे हम वाकई केदारनाथ आ गए है। वैसी ही चट्टानी शिवलिंग बनाई हुई है जैसे केदारनाथ धाम में स्तिथ है।
उत्तरकाशी शहर व केदार घाट 

काशी विश्वनाथ मंदिर
घाट से चलकर हम थोड़ी ही देर में काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंच गए। मंदिर के बाहर दीवारों पर स्थानीय लोगों ने या फिर प्रशासन की तरफ से पेंटिंग की हुई है जो बहुत अच्छी दिख रही थी। मंदिर में प्रवेश करने से पहले हमने प्रसाद भी लिया और बाबा विश्वनाथ जी के दर्शन के लिए मंदिर परिसर में प्रवेश किया। मंदिर परिसर में कई मंदिर बने है। सबसे पहले हम विश्वनाथ मंदिर में गए। सबसे पहले नंदी जी के दर्शन होते है फिर हम मुख्य कक्ष में प्रवेश करते है यहाँ भगवान शिव शिवलिंग के रूप में विराजमान है, यह शिवलिंग दक्षिण दिशा की तरफ झुका है जिसे साफ देखा जा सकता है। मंदिर के पुजारी जी ने बताया कि यह मंदिर भगवान परशुराम जी ने बनाया था लेकिन यह शिवलिंग स्वयंभू है अर्थात किसी ने इसे यहां पर स्थापित नही किया है यह स्वयं प्रकट हुआ है और इसका दक्षिण की तरफ झुका होना ही इसका सबूत है क्योंकि यदि कोई व्यक्ति इस शिवलिंग को स्थापित करता तो सीधा ही करता। उन्होंने बताया कि बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर और उत्तरकाशी के विश्वनाथ मंदिर की एक ही मान्यता है। उन्होंने यह भी बताया कि पुराणों में भी उत्तरकाशी का वर्णन है और पहले इस नगरी का नाम बाड़ाहाट था। भगवान शिव को जो हम सब के आराध्य हैं, हमने उनको नमस्कार किया साथ में जल व प्रसाद भी चढ़ाया और बाहर आ गए। बाहर अन्य काफी भक्त मौजूद थे फिर हम सब ने मिलकर भगवान शिव की आरती भी की। सचमुच यह पल मुझे हमेशा याद रहेंगे।
काशी विश्वनाथ मंदिर के बाहर 
मंदिर के बाहर दीवारों को कुछ ऐसे सजाया गया है 
मैं सचिन त्यागी अपने परिवार के साथ विश्वनाथ मंदिर पर
मंदिर का पिछला हिस्सा 
अन्दर जो जल चढाया जाता है वो इधर से बाहर गिरता है 


शक्ति मंदिर
विश्वनाथ मंदिर के सामने ही एक मंदिर बना जिसे शक्ति मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर माता पार्वती को समर्पित है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण यहां पर स्थापित एक बहुत बड़ा त्रिशूल है। इस त्रिशूल की ऊंचाई लगभग 26 फ़ीट है और यह काफी चौड़ा भी है। इस विशाल त्रिशूल को देखते ही ऐसा लगता है जैसे यह साक्षात शिव जी का त्रिशूल हो, लेकिन वहां पर बैठे पंडित जी ने बताया कि यह बहुत प्राचीन है, माना जाता है कि यह 1500 वर्ष से भी पुराना है। उन्होंने बताया कि यह बहुत भारी है जिसे एक व्यक्ति का उठा पाना भी सम्भव नही है जबकि यह एक उंगली मात्र लगने से ही कंपन(हल्का सा हिलने) करने लगता है। इस त्रिशूल को माता पार्वती (मां दुर्गा) के त्रिशूल रूप में पूजा जाता है। मंदिर परिसर में और अन्य मंदिर भी बने हैं इनको भी देखा गया और हम मंदिर परिसर से बाहर आ गए।
शक्ति मंदिर 
शक्ति मंदिर के अन्दर का दर्शय 
वह प्राचीन व विशाल त्रिशूल 
शक्ति मंदिर व पीछे वाला विश्वनाथ मंदिर ,उत्तरकाशी

उत्तरकाशी में देखने को और बहुत से मंदिर है। उत्तरकाशी में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIM) भी जहां पर पर्वतारोहण का कोर्स किया जाता है। व कई प्रमुख ट्रेक भी आस पास है जैसे दायरा बुग्याल, डोडिताल ट्रेक, नचिकेता ताल ट्रेक आदि। उत्तरकाशी उत्तराखंड का एक जिला है जिसमे यमनोत्री गंगोत्री धाम भी स्तिथ है।

अब हम वापिस चलने को तैयार थे। समय देखा तो सुबह के 9:30 हो रहे थे। आज मैंने ऋषिकेश रुकना तय किया जो उत्तरकाशी से लगभग 175 km की दूरी पर है और लगभग सात घंटे का सफर है। मैंने गूगल से चम्बा तक का रास्ता जाना तो गूगल मैप ने मुझे दो रास्ते सुझाये। पहला उत्तरकाशी से धरासू बैंड होते हुए चिन्यालीसौड़ और फिर चम्बा जो लगभग 106 किलोमीटर का था और दूसरा उत्तरकाशी से चौरंगिखाल होते है नई टिहरी। यह रास्ता थोड़ा बड़ा था यह लगभग 144 km का था। चौरंगिखाल से तीन किलोमीटर का एक छोटा ट्रेक करके नचिकेता ताल तक पहुँचा जाता है। फिलहाल मुझे यह ट्रेक तो करना नही था इसलिए चिन्यालीसौड़ वाला रास्ते से जाना तय किया। लगभग 10 बजे हम उत्तरकाशी शहर से बाहर आ गए। एक दुकान देखकर चाय और ब्रेड का नाश्ता भी कर लिया। धरासू बैंड पहुँचे यही से एक रास्ता यमनोत्री के लिए अलग हो जाता है। हमे चिन्यालीसौड़ की तरफ जाना था इसलिए हम धरासू बैंड से बाँये तरफ हो गए। रास्ते मे हमे कई जगह जंगल जलते हुए मिले एक जगह तो आग रास्ते के इतने करीब भी आ गया थी कि हमारे चहरों ने भी उसकी तपन को महसूस किया। आग की वजह से हर तरफ धुंआ ही धुंआ फैला हुआ था। पहाड़ो पर गाड़ी चलाने का जो एक आनंद होता है वह आज मुझे बिल्कुल भी नही आ रहा था। रास्ते मे एक होटल पर रुके, खाने का मन नही हुआ इसलिए निम्बू पानी और ताज़े खीरे खाये गए। यहाँ पर एक व्यक्ति से पूछा कि हर जगह इतनी आग क्यो लगी है और कोई इसको बुझाता भी क्यो नही तो उस व्यक्ति ने बताया कि कुछ आग तो गांव वाले लगा देते है जिससे बारिश के बाद नई घास बढ़िया आती है जिससे पशुओं के लिए चारे की कमी नही होती है। क्योंकि चीड़ की पत्तियों घास को उगने ही नही देती है। और कुछ जगह आग चीड़ के पिरुल की वजह से भी लग जाती है। पिरुल जल्दी तप जाता है और आग पकड़ लेता है जिसकी वजह से भी आग लग जाती है। अब हम आगे चल पड़े और लगभग दोपहर के तीन बजे चम्बा पहुँच गए। चम्बा से नई टिहरी, टिहरी झील व कानाताल जगह बेहद नजदीक है। चम्बा पहुँचे ही थे कि मेरा बेटा देवांग कुछ अस्वस्थ नज़र आया इसलिए आज की रात हम ने चम्बा में ही रुकने का निर्णय किया। 
एक जगह दूर आग जलती दिख रही थी 
हमने देखा की अब वह आग काफी विकराल रूप ले चुकी थी 
आग सड़क तक आ गयी थी और इसकी तपन को हम गाड़ी में ही महसूस कर रहे थे 
जंगल के जंगल जल रहे थे जिसकी वजह से हर जगह धुआं फैला हुआ था 
रात को चंबा में ही रुके 

और अगले दिन 01 जून को चम्बा से ऋषिकेश की तरफ निकल पड़े जो की चंबा से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर है, चंबा से ऋषिकेश के बीच ही माँ कुंजापुरी देवी का मंदिर भी आता है जो एक शक्ति पीठ है हम कुंजापुरी पहले भी गए हुए है इसलिए सीधा ऋषिकेश पहुंचे और  कुछ समय ऋषिकेश में बिताने के उपरांत हरिद्वार की तरफ चल दिए। आज की रात हम हरिद्वार ही रुके फिर हम संध्या आरती देखने के लिए हर की पौड़ी भी गए। गंगा जी की आरती देखना मुझे बहुत अच्छा लगता है। बहते हुए जल में जलते दीप और उसे जाते हुए देखना एक अलग ही तरह का आनंद प्रदान करता है। आरती के बाद खाना खाने के बाद हम सीधा होटल पहुंचे। जंहाँ से अगले दिन वापिस अपने घर दिल्ली लौट आयेे।
ऋषिकेश 
परमार्थ निकेतन आश्रम,ऋषिकेश 
ऋषिकेश में गंगा स्नान 
हर की पौड़ी हरिद्वार 
हर की पौड़ी पर संध्या आरती की तय्यारी हो रही है 
माँ गंगा की संध्या आरती होती हुई हर की पौड़ी हरिद्वार में 


यात्रा समाप्त
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भाग-01
भाग-02
भाग-03
भाग-04

गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

मेरी गंगोत्री यात्रा

हम यमुनोत्री यात्रा कर आगे उत्तरकाशी में रुकें। हमने यहां goibbo app की मदद से पहले ही एक होटल बुक करा लिया था। लेकिन वह होटल हमे काफी ढूंढने पर भी नही मिला, गूगल मैप से भी ढूंढा तब भी लोकेशन गलत ही बता रहा था। हमने काफी बार फ़ोन भी किया तब भी फ़ोन उठाया नही गया फिर मैंने दूसरे नम्बर से फ़ोन किया तब उन्होंने फ़ोन उठाया लेकिन रूम बुक होने से साफ इंकार कर दिया जबकि हमने goibbo को पैसे भी दे दिए थे। हमारे लगभग 2 घंटे उधर ऐसे ही खराब हो चुके थे। फिर हमने goibbo पर शिकायत कर दी और उत्तरकाशी से कुछ आगे गंगा किनारे एक होटल शिव गंगा व्यू में रूम ले लिया। कुछ देर बाद goibbo की तरफ से एक कॉल आयी और उन्होंने इस प्रकरण के लिए माफी भी मांगी तथा मेरे पैसे भी रिफंड करने का आश्वासन दिया।
यमुनोत्री यात्रा को पढने के लिए यहाँ पर क्लीक करे ....
 
गंगोत्री धाम ,उत्तराखंड 

30 मई 2019
अगली सुबह जल्दी ही आँखे खुल गयी क्योंकि रात जिस होटल में हम ठहरे थे, वह भागीरथी नदी(गंगा) के किनारे था और नदी की तरफ से आता जल का शोर सुबह सुबह बड़ा ही सुरीला लग रहा था। बाकी उठने में रही सही कसर प्रकृति के अलार्म ने पूरी कर दी थी? जी हां मैं बात कर रहा हूँ, उन पक्षियों जो कि सुबह से ही रूम के आस पास उड़ते हुए चहक रहे थे। कल रात हम नदी के किनारे जिन पत्थरों पर बैठे थे वो भी अब पानी मे डूब चुके थे इसका मतलब यह था कि आज नदी में पानी बढ़ गया था। होटल से सुबह के कई मनमोहक नज़ारे दिख रहे थे। सुंदर दृश्य जैसे बहता हुआ जल, पक्षियों की चहचहाना, सामने पहाड़ आदि यह सभी आनंद को दोगुना कर रहे थे और कल जो हमारे साथ goibbo होटल वाला प्रकरण हुआ उसे भी अब हम भुला चुके थे।
देवांग रूम की खिड़की से बाहर की तरफ देखता हुआ
भागीरथी नदी ,उत्तरकाशी

गंगोत्री के लिए प्रस्थान
सुबह होटल में ही नाश्ता किया, होटल की सर्विस भी अच्छी लगी और लगभग 7 बजे हम गंगोत्री यात्रा पर निकल पड़े। कुछ किलोमीटर चलने पर ही हमे एक चौकी पर रोक लिया गया, यहाँ पर चार धाम यात्री पंजीकरण भी हो रहा था लेकिन हमसे सिर्फ कार के कागज व कितने यात्री है साथ मे मेरा फ़ोन नम्बर लिया गया। अब हम यहाँ से आगे चल पड़े। सुबह- सुबह भी सड़क पर काफी गाड़िया जाती हुई दिख रही थी कुछ ही समय मे हम मनेरी पहुँच गए। मनेरी में भागीरथी नदी पर एक डेम बना है जिससे बिजली बनाई जाती है। मनेरी में देखने के लिए एक खेड़ी नाम से झरना भी है। मनेरी से तक़रीबन आठ किलोमीटर चलने पर सड़क मार्ग पर व गंगा किनारे एक बड़ा आश्रम बना है। जिसमे शिव आदि देवताओं की बड़ी बड़ी प्रतिमाएं लगी हुई थी। यहां पर लोग रुक कर फ़ोटो आदि ले रहे थे। यह पायलट बाबा का आश्रम नाम से प्रसिद्ध है। हम यहाँ नही रुके और मैं रास्तो के फोटो भी नही ले पा रहा था क्योंकि कार मैं ही चला रहा था। पायलट बाबा के आश्रम से 9km आगे चलने पर भटवारी नाम का कस्बा आता है। यहाँ पर कुछ होटल व दुकानें देखने को मिली। भटवारी से एक रास्ता बरशु के लिए चला जाता है। बरशु से ही आगे दायरा बुग्याल के लिए ट्रैकिंग की जाती है।
भटवारी से 16 km आगे गंगनानी जगह पड़ती है। यहाँ पर हमें काफी जाम मिला। गंगनानी से कुछ किलोमीटर पहले ही लोगो ने अपनी कार, बस आदि रोड के साइड में खड़ी की हुई थी इसलिए ट्रैफिक थोड़ा स्लो चल रहा था हमे लगभग आधा घंटा गंगनानी को पार करने में लग गया। हम गंगनानी जरूर रुकते लेकिन भीड़ व जाम की वजह से आते वक्त देखंगे यह डिसाइड हुआ। वैसे गंगनानी में गर्म पानी के कुंड है साथ मे एक दो मंदिर भी है। इसलिए यात्री गंगनानी जाते है। उत्तरकाशी से गंगनानी तक हम भागीरथी के किनारे किनारे बनी सड़क पर ही चल रहे थे। यह रास्ता बहुत सुंदरता समेटे हुए है। दूर तक फैली घाटी, नदी, जंगल पूरे रास्ते आपका साथ नही छोड़ते है। गंगनानी से कुछ आगे चलकर नदी का रास्ता छोड़ हमे ऊंचाई वाला व बहुत से मोड़ो वाले रास्ते पर चलना होता है। अब हम उसी रास्ते पर चल रहे थे। यह पहाड़ी ऊंचाई वाला रास्ता सुक्खी टॉप तक जाता है फिर हमे वापिस ऐसे ही रास्ते से नीचे भी उतरना होता है। इसका मतलब घाटी के बीच यह पहाड़ आ जाता है जिसको हमे पार कर फिर से घाटी में उतरना होता है। सुक्खी टॉप पहुँचने व वहाँ से उतरने तक हमे बहुत लंबा जाम मिला। लेकिन सुक्खी टॉप पर पहुँच कर और उधर से दिखती गंगा घाटी का सुंदर दृश्य सारी निराशा को दूर कर देता है। ऊंचे ऊंचे पहाड़ बीच से बहती गंगा नदी और दूर आखिरी में दिखते हिम शिखर। यह दृश्य हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित कर रहे थे। सुक्खी टॉप से उतरने के बाद हम एक बार फिर भागीरथी नदी के साथ साथ चल रहे थे। लगभग 15 किलोमीटर आगे चलने पर देवदार के घने जंगल के बीच से एक रास्ता बाँये तरफ अलग चला जाता है यह रास्ता हर्षिल के लिए जाता है। हर्षिल वैली अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। एक पुरानी फ़िल्म राम तेरी गंगा मैली जिसे राजकपूर साहब ने बनाया था उसकी ज्यादातर शूटिंग भी यहाँ हर्षिल में ही हुई थी। साथ में हर्षिल वैली अपने सेब के लिए भी जानी जाती है।
सुक्खी टॉप पर लगा वाहनों का ट्रेफिक जाम

यह रास्ते कितने खूबसूरत है 
टॉप से दिखती हिमालय की पर्वत श्रेणी
सुक्खी टॉप से दिखती गंगा की घाटी 

चूंकि हमे गंगोत्री जाना था इसलिए हम आगे बढ़ गए। थोड़ी दूर चलते ही सड़क पर बहुत पानी बह रहा था साथ मे कई जगह से पानी आ रहा था। ट्रेफिक भी रुका हुआ था। एक तरफ का ही ट्रैफिक चल रहा था। इसी जगह पर थोड़ा पैदल चल कर एक वाटरफॉल भी है जिसको मंदाकिनी वाटर फॉल कहते है। अब मेरी तरफ वाला ट्रैफिक चल पड़ा था और मैंने इस उबड़ खाबड़ वाले रास्ते को बड़ी सावधानी से पार किया। कुछ आगे चलने पर बाँये तरफ नदी के दूसरी तरफ थोड़ा ऊँचाई पर एक सफेद मंदिर दिख रहा था। मैंने आगे एक जगह गाड़ी रोकी इस जगह का नाम धराली या धरली था इधर मेरे पूछने पर एक व्यक्ति ने बताया कि यह मंदिर जो आप देख रहे हो वह मुखबा गांव में है और जब शीतकालीन समय में गंगोत्री धाम के कपाट बंद हो जाते है तब यहाँ पर ही माँ गंगा की पूजा होती है। धराली से 14 किलोमीटर आगे चलने पर भैरोघाटी शुरू हो जाती है एक ब्रिज(भैरो ब्रिज) जो भागीरथी पर ही बना है उसको पार करते ही दाँये तरफ बाबा भैरो नाथ का प्राचीन मंदिर बना है, कहते है कि गंगोत्री धाम के साथ यहाँ भी दर्शन करने चाहिए। भैरो मंदिर से गंगोत्री धाम तक कि दूरी लगभग आठ किलोमीटर ही रह जाती है और यह आठ किलोमीटर का रास्ता बेहद खूबसूरत है। वैसे तो सुक्खी टॉप से ही गगनचुंबी हिमालय की चोटियों के बीच बीच में नयनाभिराम दर्शन होते रहते है लेकिन इस सड़क से हिमालय की चोटियां काफी नजदीक दिखती रहती है और अगर आपके हाथ में कैमरा है तब आप रुक कर जरूर इनका फोटो लेंगे।

धराली
मुकबा गाँव का गंगा मंदिर जहां पर शीतकाल में गंगा माँ की पूजा होती है 

गंगोत्री पहुँच गए..
कुछ ही समय बाद हम गंगोत्री धाम की पार्किंग में पहुँच गए, यहां से किसी भी वाहन को आगे जाने की इजाज़त नही थी। वैसे सीज़न के बाद आगे तक जाया जा सकता है। पार्किंग से 500 मीटर आगे एक बाजार चालू हो जाता है जिसमे दोनो तरफ दुकानें व कुछ भोजनालय भी बने है। ऐसी ही एक दुकान से हमने चाय व समोसे खाये। हमे लगभग 6 घंटे लगे उत्तरकाशी से गंगोत्री तक पहुँचने में क्योंकि हम लगभग 2 घंटे जाम में भी फंसे रहे थे। यही से एक रास्ता कुछ नीचे सूर्यकुंड की तरफ भी चला जाता है लेकिन पहले मंदिर दर्शन करेंगे फिर अन्य जगहों को देखेंगे। इसलिए हम पहले सीधा भागीरथी (गंगा) के घाट पर पहुँचे। इधर काफी लोग स्नान कर रहे थे। नदी का जल बहुत ठंडा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अगर हम नहाए तो यहां पर ही जम जायंगे। मैंने बड़ी मुश्किल से अपना पैर जल में रखा थोड़ी ही देर में पैर ठंड की वजह से सुन्न सा पड़ गया लेकिन स्नान तो करना ही था इसलिए दो तीन मग्गे शुरू में अपने ऊपर डाला और हर हर गंगे बोल कर नदी में एक डुबकी लगा ही दी और बाहर आ गया फिर मैंने अपने बेटे को भी गंगा स्नान कराया। महिलाओं के लिए घाट पर कपड़े बदलने की व्यवस्था थी। स्नान करने के बाद हमने गंगा पूजा की और गंगोत्री मंदिर की तरफ चल पड़े। एक दुकान से प्रसाद भी ले लिया और कुछ सीढ़ियों को चढ़ते हुए मंदिर पहुँच गए।
गंगोत्री पहुचं गए उधर लगा एक बोर्ड जिस पर मंदिर की समय सारणी लिखी है 
गंगोत्री का बाज़ार 

हम पहले सीधा गंगा घाट पर पहुचें
गंगा जी में स्नान के बाद 
घाट से मंदिर तक कुछ सीढियों को चढ़ना होता है 
और पहुँच गए गंगोत्री धाम 

मंदिर पर पहुँचने पर देखा कि दर्शन के लिए तो बहुत लम्बी लाइन लगी है यदि लाइन में लगते है, तो कम से कम 2 घंटे से पहले नंबर नही आएगा। लेकिन जो यात्री जल्दी दर्शन करना चाहते है, उनके लिए विशेष दर्शनों(vip) की भी व्यवस्था है। उसके लिए 2100 रुपयों की पर्ची कटानी पड़ती है। एक पर्ची पर अधिकतम 6 लोग ही दर्शन कर सकते है। मैं भी vip दर्शन पर्ची काउंटर पर गया। उधर एक परिवार मिला जिसमे सिर्फ 4 लोग ही थे और हम 2 थे इसलिए हमने मिलकर एक ही पर्ची कटवा ली। जिसके लिए मैंने अपने 2 बंदों के हिसाब से उन्हें पैसे दे दिए। लगभग 10 मिनट बाद हमारा नम्बर आ गया और हमने मंदिर में प्रवेश किया। माँ गंगा को मन से नमस्कार किया, प्रसाद भी चढ़ाया और मंदिर के एक कोने में थोड़े समय के लिए बैठे रहे। कुछ समय बाद हम गंगोत्री मंदिर के अलावा अन्य मंदिर भी गए। फिर हम भागीरथी तपस्या शिला भी देखने के लिए गए, जिस शिला पर बैठ कर श्री राम के पूर्वज राजा भागीरथी ने शिव की कठोर तपस्या की और गंगा को अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए धरती पर लाये। यहां बैठे पंडित जी ने बताया कि सर्वप्रथम गंगा जी यही पर उतरी थी इसलिए इस जगह का नाम गंगोत्री पड़ा। कई हज़ार साल पहले गंगोत्री ग्लेशियर(गौमुख) यही तक था जो अब खिसकने के कारण 19 किलोमीटर पीछे हो गया है। जिसको आज गौमुख बोलते है।

मैं सचिन त्यागी अपने परिवार सहित गंगोत्री धाम पर 
अब चलते है भगीरथी तपस्या शिला देखने 
भगीरथी शिला 
भागीरथी शिला देखने के पश्चात हमने गंगा किनारे एक होटल में खाना खाया और आगे सूर्यकुंडगौरीकुंड देखने के लिए चल पड़े। सबसे पहले सूर्यकुंड आता है, सूर्यकुंड को पहली ही नज़र से देखना बेहद ही रोमांचित करने वाला अहसास होता है। सूर्यकुंड के खास तरह के पत्थरों व उन पर जल के कटाव के निशानों में से पूरी भागीरथी नदी को एक धारा के रूप में निकलते देखना बड़ा ही अच्छा लगता है। यहां पर नदी बहुत शोर करती हुई और गहराई में बहती है। कहा जाता है कि राजा भगीरथ ने इस जगह पर सूर्य को जल अर्पित किया था इसलिए आज भी गंगा नदी सूर्य को नमस्कार करती हुई सी प्रतीत होती दिखती है। सूर्य कुंड से कुछ दूरी के फासले पर ही गौरीकुंड है। गौरीकुंड कोई कुंड नही है लेकिन यहाँ पर गंगा नदी बहुत नीचे गहराई में बहती दिखती है कहा जाता है कि जब गंगा धरती पर बड़े वेग से उतरी तब शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में बांध लिया और अपनी एक जटा यही गौरीकुंड में खोली जिससे गंगा आराम से धरती पर उतरी।

गंगोत्री का सुन्दर दर्शय
खाने की प्रतिक्षा करते हुए 
एक पुल पर देवांग 
सूर्यकुण्ड
गौरीकुंड के रास्ते पर 
गौरीकुंड 

गंगोत्री धाम के बारे में..
गंगोत्री उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्तिथ है। गंगोत्री धाम समुन्द्र तल से 3140 मीटर की ऊंचाई पर स्तिथ है। पुराणों व अन्य धार्मिक ग्रंथों में इस धाम की महिमा वर्णित है। राजा भगीरथ ने इसी जगह पर 5500 वर्षो तक तपस्या कर गंगा मैया को नदी के रूप में उतरने के लिए प्रसन्न किया था। हर साल गंगोत्री मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खोले जाते है तथा कार्तिक के महिने में दीपावली के दिन बंद कर दिए जाते है। फिर शीत काल मे गंगा जी की पूजा मुखबा गांव में की जाती है। गंगोत्री मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18 वी शताब्दी के शुरूआत में किया गया था तथा वर्तमान मंदिर का पुननिर्माण जयपुर के राजघराने द्वारा किया गया। गंगोत्री के आसपास से आसमान छूते पर्वत मेरू, सुमेरु, शिवलिंग, सुदर्शन, चतुर्भुज आदि अनेक बहुत से पर्वत व चोटियों दिखती है। साथ ही यह देवदार, भोज वृक्ष के जंगल के बीच स्तिथ एक सुंदर घाटी है। गंगोत्री से ही गौमुख व तपोवन की ट्रेकिंग की शुरुआत होती है। गंगोत्री में यात्रियों को रुकने के लिए बहुत से होटल व धर्मशाला है।
गंगोत्री धाम से हम शाम के 5 बजे वापिस चल पड़े। हमने सोचा कि आज हर्षिल या धराली रुकेंगे। हम भैरो घाटी स्तिथ भैरो मंदिर भी गए। फिर हम हर्षिल गए। काफी होटल देखे लेकिन यहा कही भी होटल नही मिला इसलिए हर्षिल से वापिस उत्तरकाशी की तरफ चल पड़े। बीच मे एक दो जगह कुछ होटल देखे भी लेकिन कही पसंद नही आता तो कही रूम फुल मिलते। सुक्खी टॉप पर भी होटल का पता किया लेकिन वहां भी सभी रूम फुल मिले। गंगनानी से पहले बहुत लंबा जाम मिला हम एक ही जगह पर लगभग एक घंटे से अधिक समय तक रुकें रहे। लग रहा था जैसे यह जाम अब नही खुलेगा और हमे रात सड़क पर ही गुजारनी पडेगी। अब रात भी हो चुकी थी। फिर जाम खुला और हम लगभग रात के 10:30 पर गंगनानी पहुँचे और थोड़ा आगे जाकर एक होटल में रूम लेकर सो गए।

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