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मंगलवार, 27 जून 2017

सीतावनी मंदिर व जंगल सफारी

निकल चले एक नए सफर पर।( सीताबनी )

24 मार्च, 2017
सुबह जल्दी ही आंखे खुल गई थी। क्योकी आज हमे जंगल सफारी पर जाने का इंतजार भी था। लगभग सुबह के 6 बजे जिप्सी आ चुकी थी। हम भी बगैर नाश्ता किये जिप्सी में बैठ गए। हमने कुछ फल व बिस्कुट के पैकेट साथ रख लिए और लगभग 6:30 पर हम चल पडे। जीप वाला हमे (सीताबनी) सीतावनी के जंगल में सैर कराने वाला था। कोसी नदी के एक तरफ जिम कार्बेट पार्क है जहां पर जाने के लिए रामनगर स्थित ऑफिस में पास बनवाना पडता है लेकिन पर्यटकों की भीड ज्यादा होने के कारण अभी दो तीन दिन तक की बुकिंग चल रही है मतलब हम जिम कार्बेट पार्क नही जा सकते है इसलिए हम कोसी नदी के दूसरी तरफ फैले जंगलो में जाएगे। यह जंगल भी बाघ, तेंदुए, हिरण व हाथी के लिए जाना जाता है। अभी कुछ दिन पहले हमने न्यूज व अखबार मे पढा था की एक बाघिन ने दो मजदूर को मार दिया था जिसे पकडने में वन विभाग ने JCB मशीन का सहारा लिया था लेकिन वह JCB में दब कर मर गई। आज हम उसी जंगल में जाने वाले है।

लेकिन वहां जंगली जानवर हर हालात में दिखे यह सब किस्मत का खेल है। ज्यादातर लोग जिम कार्बेट पार्क बाघ व तेन्दुए को देखने की लालसा से ही जाते है। सीतावनी जाने के लिए पहले रामनगर जाना होता है वहा से कालाढूंगी वाले रास्ते पर बने कोसी नदी बैराज को पार कर बांयी तरफ चले जाते है। आगे चलकर टेड़ा गेट आता है। यहां से परमिशन लेकर हमे जंगल मे जाना होगा और जंगल के दूसरी तरफ के गेट पवलगढ़ से निकलना होगा। लगभग दो तीन घंटे हमे जंगल में ही बिताने होंगे। टेड़ा गेट से हमारे ड्राइवर ने जंगल सफारी के लिए परमिशन परमिट बनवा लिया। अब हम जीप में बैठकर आगे चल पडे। रास्ते में दो तीन जगहों पर कोसी नदी के बहुत नजदीक भी आ जाते थे। कुछ जंगली जानवर जैसे हिरण, बंदर व कुछ पक्षी भी रास्ते में दिख जाते। लेकिन यह सडक से काफी दूर ही रहते है। अब हम मुख्य सड़क को छोडकर, दांये तरफ कच्ची रोड पर मुड चले। आगे एक वन विभाग की चौकी थी यहां पर हमारे जीप वाले ने परमिशन परमिट की एक कॉपी वहा पर बैठे कर्मचारी को दे दिया। उसने एक रजिस्टर में एंट्री करने बाद गेट खोल दिया।
सुबहे सुबहे 

टेड़ा गेट यही पर परमिट बनता है। 

कुछ जरुरी सूचना जंगल में जाने से पहले। 

चलते है 

जंगल में प्रवेश करने से पहले यहाँ चौकी पर परमिट दिखना होता है। 

परमिट चेक करता एक कर्मचारी 


अब हम घने जंगल में जाने वाले थे। एक अंदर से अच्छी सी फिलिंग आ रही थी। हम सभी यही सोच रहे थे की शायद कोई बाघ या तेन्दुआ के दर्शन हो ही जाए। वैसे यह हमारी सोच ही नही बल्कि जंगल सफारी पर आने वाले सभी पर्यटक की सोच होती है। कुछ आगे बढे तो दूर तक लम्बे लम्बे पेड के बीचो बीच जाती कच्ची सड़क दिख रही थी। जो दिखने में बडी ही सुंदर लग रही थी। कच्ची सडक पर गाडी में हम भी उछलते उछलते जा रहे थे। एक जगह हमसे आगे वाली दो जीप रूकी हुई थी। और वह किसी का फोटो खींच रहे थे और साथ में तेज तेज बोल रहे थे लगभग शोर मचा रहे थे। जो गलत होता है जब भी आप जंगल में जाए तो शांत रहना चाहिए जिससे जानवर डरे नही और वह आपको दिख भी जाए लेकिन अगर आप शोर करेगे तो वह डर कर जंगल मे छिप जाते है और फिर आप ही बिना देखे मायूस होकर लौटेंगे।

मै आगे वाली जीप पर बैठे लोगो की प्रतिक्रिया देखकर मन ही मन में मै सोच रहा था की आज तो बाघ के दर्शन हो ही गए। जैसे ही हम वहां पहुंचे तो वह तो जंगली मुर्गी निकली जो हमे देखते ही भाग गई जैसे हम उसे पकड कर खाने वाले हो। वैसे मैं शाकाहारी हूं उसे डरने की जरूरत नही थी। मैने अपने ड्राइवर से कह दिया की आगे वाली गाडी से तकरीबन आधा किलोमीटर पीछे चलो। एक तो इनकी गाडी की धूल से बच जाएंगे। और उनके शोर से भी। इसका एक फायदा भी हुआ कुछ देर बाद हमे एक बडा सा जंगली सुअर जंगल के रास्ते से तेजी से भागता हुआ दिखाई दिया।वह बडी जल्दी में था। हमने जीप रूकवा दी क्या पता कोई तेंदुआ इसका पीछा कर रहा हो और वह भी इसके पीछे भागता आता ही हो। लेकिन कोई नही आया और हम आगे बढ़ गए। आगे कुछ किलोमीटर यूंही आंखो को खोलकर इधर उधर देखते रहे पर कुछ ना दिखा। थोडी देर बाद हम एक प्राचीन मन्दिर सीताबनी देखने पहुंचे जो घने जंगलो के बीच बना है। और माता सीता को समर्पित है।

सीताबनी मंदिर 

सीताबनी मंदिर 

एक पानी का कुंड 

गणेश जी की एक प्राचीन मूर्ति 

सल्फर युक्त पानी की धार 


नंदी 


सीताबनी को माता सीता की तपस्थली व लव-कुश की जन्मस्थली व शिक्षा स्थली भी माना गया है। यहां पर एक पंडित जी मिले उन्होने बताया की प्रभु राम द्वारा लंका जीत के बाद सीता माता को त्याग दिया था। तब लक्ष्मण जी माता सीता को यही कौशकी नदी( कोसी) के समीप बने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में छोड गए थे। यही वह जगह है जहां पर लव-कुश का जन्म व लालन पोषण हुआ। वैसे भारत में ऐसे कई मन्दिर है जो सिद्ध करते है की सीता जी को यहां छोडा व लव- कुश का जन्म यहां हुआ। यह तो पता नही की असली जगह कौन सी थी। लेकिन इतना कहूंगा की यह जगह बडी ही खूबसूरत है एक तो यह घने जंगल में है। दूसरी की यह मन्दिर भी पौराणिक महत्व लिए हुए है।

मन्दिर परिसर में एक शिव मन्दिर बना है व सीता माता का मन्दिर समीत दो तीन मन्दिर और भी बने है। मन्दिर के पास ही एक पानी की धारा भी है जिसमे लोग स्नान भी करते है मैने तो हाथ व मुंह ही धौए। मन्दिर से कुछ नीचे एक कुंड बना है जिसका जंगली जानवर पानी पीने मे उपयोग करते है। मुझे पास ही हाथी का ताजा गोबर भी पडा मिला। यह जगह बेहद शांत जगह है,  व पक्षियों की आवाज भी आती रहती है। जिसे सुनना शायद सब लोग पंसद करते है। यहां पर रामनवमी को काफी लोग पूजा करने आते है। पंडित जी ने हमे प्रसाद दिया। प्रसाद खाते खाते हम वापिस जीप पर पहुंच गए। और फिर चल पडे अपनी जंगल सफारी पर। हमने दो तीन छोटी नदी भी पार भी। हमारे ड्राइवर ने रास्ते पर बने कुछ जानवरो के पदचिन्हों को भी दिखाया।

रास्ते मे एक जगह हाथी गलियारा लिखा था। यह नदी के समीप था शायद जंगल से पानी के लिए हाथी इस रास्ते का आने जाने में उपयोग करते होंगे। पर हमे उस गलियारे में भी कुछ नही दिखा। अब हम पवलगढ़ चौकी पर पहुंच गए और फिर से परमिट दिखाया गया। वहां मौजूद कर्मचारी ने रजिस्टर में कुछ लिखा और गेट खोल दिया और हम जंगल से बाहर आ गए। हम जंगल सफारी कर के थक गए थे। वैसे जंगल की सैर की मिलीजुली प्रतिक्रिया रही जहां देवांग को बाघ का ना दिॆखने का मलाल हो रहा था वही ललित को थकावट जैसी फिलिंग हो रही थी। जबकी मुझे जंगल सफारी में आनंद आया। जब हम जंगल में होते है वही पल कम रोमांचकारी नही होते। हर मोड पर व हर आहट पर अलग ही रोमांच होता है। जब हम छोटी छोटी व मंद मंद बहती नदियों को पार करते है तब भी बहुत रोमांचक पल होता है। इसलिए मुझे कोई जानवर दिखा हो या नही कोई फर्क नही पडता। क्योकी मुझे और चीजो से भी खुशी मिलती है।
घना जंगल इधर ही जंगली सुअर दिखा था 

ललित अपने बेटे के संग 

यहाँ पर हिरन थे 


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हाथी गलियारा 

नदी का किनारा 


नदी पार करते हुए 


पवलगढ़ गेट 
होटल 


होटल में कटहल के कई पेड़ थे लकिन लंगूरो ने कई तोड़ डाले जिनसे देवांग खेलता हुआ। 


रास्ते में ही जीप वाले के बाकी बचे पैसे भी दे दिए। वैसे जीप वाले ने हमसे 2100 रू लिए जीप व परमिट सहित। होटल पहुंच कर सबसे पहले नाश्ते का आर्डर दे दिया क्योकी हमे भूख बडी जोरो से लग रही थी। तब तक हम दोबारा नहा कर आ गए क्योकी जंगल की धूल जो चढ़ गई थी तन पर। नाश्ता करने के बाद हम वापिस दिल्ली के लिए निकल पडे।

यात्रा समाप्त!
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शनिवार, 10 जून 2017

बिनसर महादेव मन्दिर(सोनी गांव) व गार्जिया देवी मन्दिर(रामनगर)

23 मार्च 2017
हम लोग कुमाऊँ रेजिमेंट संग्रहालय देखकर तकरीबन सुबह के 11 बजे रानीखेत से चल पडे। हमे आज जिम कार्बेट पार्क के नजदीक रूकना था। इसलिए रानीखेत से सोनी गांव होते हुए मोहान वाला रास्ता चुना गया। वैसे इस रास्ते पर ट्रेफिक बहुत कम है और जरूरी सुविधाओं की भी बहुत कमी है। इसका जिक्र बाद में करेंगे। बहुत पहले एक बार मै इसी रास्ते से रामनगर गया था। तब बहुत से जानवर देखने को मिले थे। हम लोग गनयाडौली पहुचें यही से सोनी के लिए रास्ता अलग हो जाता है। जल्द ही हम तारीखेत (ताडीखेत)  पहुँच गए। यहां पर भी कुछ होटल बने है रूकने के लिए। यहां पर मैने एक दुकान से पानी की बोतलें खरीदी पीने के लिए। यहां से कुछ दूर चलने पर गोलू देवता के मन्दिर के लिए रास्ता अलग हो जाता है वैसे गोलू देवता का मुख्य मन्दिर अलमौडा में है। ताडीखेत में मकान दुकान बन रहे थे इसका मतलब यहां पर भी पर्यटकों को अब बढिया सुविधाएं मिलने लगेगी निकट भविष्य में । सड़क लगभग समानतर ही चल रही थी ना ज्यादा चढाई और ना ज्यादा ऊंचाई। सड़क के दोनो तरफ चीड के पेड दिख रहे थे वह गर्मियों में उनमे लगी आग की निशानी भी दिख रही थी। लगभग चीड का हर पेड नीचे से जला हुआ था। जंगल की यह आग बहुत खतरनाक होती है। वनस्पति को तो नुकसान होता ही है साथ में वायु प्रदुषण व जानवरो के लिए भी यह बेहद खतरनाक साबित होती है।

कुछ ही देर में हम सोनी गांव पहुँच गए। रानीखेत से सोनीगांव लगभग 16 km की दूरी पर है। सोनीगांव से कुछ चलने के ही बाद दाहिंने हाथ पर बीसौना के लिए रास्ता कटता है बस उसी रास्ते पर लगभग 2.5km चलने पर बिनसर महादेव मन्दिर है। इसे रानीखेत का बिनसर भी कहते है एक बिनसर अलमोडा के पास भी है। जहां पर बिनसर वन्य सेंचुरी (अभ्यारण्य) भी है। सोनी का बिनसर महादेव मन्दिर चीड, देवदार व अन्य गगनचुंबी पेडो के बीच बना है। यह समुद्रतल से लगभग 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसलिए गर्मीयों में भी यहां पर थोडी ठंड का अहसास बना रहता है। हमे दूर एक मोड से ही इस मन्दिर की भव्यता दिखाई पड रही थी। मन्दिर में घंटे - घंटी का बजाना मना है केवल आरती के समय ही घंटी बजा सकते है। वो इसलिए की यहा पर लोग शांत वातावरण में शांति से ध्यान लगाने आते है। यहां पर एक गुरूकुल भी है जहां पर बच्चे पढते भी है शायद उनकी पढाई में खलल ना पडे इसलिए भी मन्दिर में घंटी बजाना मना हो सकता है।

हमने बाहर ही जूते उतार दिए और मन्दिर की ओर  चले गए। यहां पर फोटोग्राफी व विडियोग्राफी करना मना है। हम सीधे महादेव के मन्दिर मे गए। हमने यहां पर स्थापित प्राचीन शिवलिंग के दर्शन किये। यहां पर हमे कोई नही दिख रहा था। चाहता तो कुछ फोटो ले सकता था पर लिये नही। पास में कुछ मन्दिर और भी बने है। कुछ मन्दिर ऊपर के तल पर भी बने है। जिन्हे देखकर हम वापिस नीचे आ गए। नीचे एक कक्ष में धूनी जल रही थी। एक तरफ नागा बाबा मोहन राम गिरी जी का फोटो लगा हुआ था जिन्होने इस मन्दिर की पुनः स्थापना की थी व दूसरी तरफ नीम करौली बाबा का फोटो लगा हुआ था। इस कक्ष में बडी शांति थी लग रहा था जैसे इस कक्ष में कोई और भी हो। कमरे में हल्का हल्का अंधेरा था। एक ज्योति जल रही थी। थोडी देर बाद एक पंद्रह सोलह साल का एक बालक आया जो यही पर पढता था। उसने हमे खाने के लिए मुरमुरे का प्रसाद दिया। फिर हम मन्दिर से बाहर आ गए। मन्दिर का वातावरण तो दिल को आन्नदित कर ही रहा था लेकिन बाहर का वातावरण उससे भी अच्छा लग रहा था। चारो और देवदार के वक्ष फैले थे। दूर पक्षियो की आवाज आ रही थी। हवा में शीलता का अहसास हो रहा था। ऐसे वातावरण में भला कौन रहना नही चाहेगा।

यह मन्दिर कैसे प्रसिद्ध हुआ इसके पीछे एक कहानी है-- कहानी के अनुसार पहले यहां पर बहुत से मनिहार ( चूड़ी बनाने वाले) रहा करते थे। एक मनिहार की गाय दिन भर जंगल मे चरती व शाम को जब वह वापस लौटती तो उसके थनो में दूध नही होता था। ऐसा हर रोज होता एक बार मनिहार गाय के पीछे जंगल में गया। वहां उसने देखा की गाय के थनो से दूध स्वयं ही निकल रहा है और एक पत्थर पर गिर रहा है। उसने उस पत्थर को तो़ड कर फेंक दिया। फिर किसी मनिहार को स्वप्न दिखलाई दिया जिसमे उन्हे गांव छोडने को कहा। सभी मनिहार गांव को छोड कर चले गए। फिर किसी बूढे दम्पति को जो नि:संतान थे वो वही जंगल में ही रहते थे उन्हे एक दिन सपने मे एक बाबा ने आदेश दिया की पास नदी मे एक शिवलिंग पडा है उसे वहां से निकाल कर पूजा अर्चना करो और निश्चित जगह पर स्थापित करो। बूढे दम्पती ने वैसा ही किया जैसा उन्हे सपने में दिखा। उन्होने शिवलिंग को स्थापित किया बाद में उन पर भगवान की ऐसी कृपा हुई की उन्हें कुछ दिन बाद पुत्र प्राप्ती भी हुई। बाद में जूना अखाडे के नागा बाबा मोहन राम गिरी जी ने यहा पर भव्य मन्दिर बनवाया। आज यहां पर उसी शिव मन्दिर व चमत्कारी शिवलिंग के दर्शन करने काफी भक्त आते है।

रानीखेत से थोड़ा चलते ही 

आ गया बिनसर महादेव मंदिर 

मंदिर का बाहरी प्रवेश द्धार 

मंदिर परिसर 

मंदिर का मुख्य द्वार 

मैं सचिन त्यागी बिनसर महादेव( सोनी ) पर 

अब आगे चलते है 


यहां से हम जिम कार्बेट पार्क की तरफ चल पडे। आज हमे वही रूकना था। कुछ दूर चले तो गाडी का टायर जिसमे हमने पंचर लगाया था वह पंचर हट गया था और हवा निकल रही थी। हमने गाडी को एक तरफ खडा कर, गाडी में रखा दूसरा (स्टपनी) टायर लगा दिया। यह रास्ता कम चलता है। एक्का दुक्का गाडी ही चलती हुई दिख रही थी। एक छोटा सा गांव आया उसके बाद एक जगह सडक टूटी हुई थी शायद कुछ दिन पहले लैंडस्लाईड हुई होगी। इस जगह को आराम से पार किया गया लेकिन एक पत्थर ने हमारा पिछला टायर जो कुछ देर पहले लगाया था वह काट दिया जिसकी वजह से टायर की हवा निकल गई। आसपास कोई दुकान भी नही थी। और यहां से मोहान भी अभी लगभग 28 किलोमीटर दूर था। फिलहाल पुराना पंचर वाला टायर ही लगा दिया और अपने साथ लाए छोटे से कम्प्रैसर से हवा भर दी। हमने रास्ते में पडे कई गांव में पता किया की कोई पंचर लगा दे पर कोई नही मिला। फिलहाल हम हर दस किलोमीटर पर हवा भरते भरते मोहान पहुंचे। हमारा यह सफर बहुत लम्बा व थकान से भरा हुआ महसूस हुआ।

मोहान पहुंच कर दोनो टायर दुरूस्त करवाए और मोहान से आगे चलकर जिम कार्बेट पार्क के धनगढी़ गेट पर पहुँचे। यहां से लोग जिम कार्बेट पार्क में जंगल सफारी करने जाते है। लेकिन हम आए थे यहां पर बने एक संग्रहालय को देखने लेकिन अफसोस वह मरम्मत के चलते बंद था। फिर हम गार्जिया देवी के दर्शन करने के लिए गए। गार्जिया देवी मैं पहले भी दो बार आ चुका हूं। लेकिन हर बार यहां आना अच्छा ही लगता है। गिरिजा देवी(गार्जिया देवी) आसपास के क्षेत्र में बहुत विख्यात है, इनकी बडी मान्यता है। यह हिमालय पुत्री पार्वती का ही एक रूप है। कोसी नदी के बीचो बीच एक छोटी व ऊंची सी चट्टान पर इनका मन्दिर बना है। मान्यता है की यह चट्टान कभी बहती हुई यहां तक आई थी। हम सबने गार्जिया देवी के दर्शन किये व कुछ देर कोसी नदी के तट पर बैठे रहे। देवांग को तो मेने कोसी में नहला भी दिया। लगभग दोपहर के चार बज चुके थे और भूख भी लग रही थी इसलिए हम यहां से रामनगर की तरफ चल पडे। यह रास्ता पूरा जंगल से ही गुजरता है। जंगली जानवर दिखना आम बात है। हमे भी कुछ हिरण दिखलाई पडे। आगे चलकर एक रेस्टोरेंट पर खाना खाया गया। अब रात बिताने के लिए होटल देखे गए कुछ में कमरे ही नही मिले तो कुछ बहुत मंहगे थे। आखिरकार एक नया होटल (कार्बेट कम्फर्ट लॉज) या कहे की रिजॉर्ट मिल गया। थोडा मंहगा था पर बढिया था फाईव स्टॉर होटल की फिलिंग आ रही थी यहां पर हमे। शाम को कुछ हिरण होटल के बाहर ही आ गए थे। होटल के मैनेजर (±918954820106) ने बताया की एक बार तो तेंदुआ आ गया था इधर तब एक हिरण होटल में आ गया था। होटल के बाहर घना जंगल ही था इसलिए शाम को जंगली जानवर दिख ही जाते है। हमने कल सुबह जंगल सफारी के लिए एक जीप भी बुक कर दी जो हमे कल सुबह 6 बजे लेने आ जाएगी। होटल के मैनेजर ने बताया की अगर आपको जंगली जानवर देखने है तो रात को तकरीबन 10 बजे गाडी से इसी सडक पर धनगढी नाला के आसपास हो आना आपको बहुत से जानवर रोड के आसपास ही मिल जाएगे। लेकिन हाथियों से व रास्ते में पडने वाले पानी के नालो से बच कर रहना। मेरा जाना पक्का था लेकिन ललित के छोटे बेटे को तेज बुखार व उल्टियां हो गई। वैसे उसको दवाई दे दी गई लेकिन रात को हमारा सड़क नापने का प्रोग्राम कैंसल हो गया। कुछ देर बाद हमने खाना खाया और सोने के लिए अपने कमरे में चले गए।

रस्ते में पड़ा एक गांव का नाम 

देवांग रस्ते में पड़े हुए  चीड़ के फल /फूल लेता हुआ 



ये रास्ते जो मंजिलो से भी खूबसूरत है 

देवांग 



टायर बदलते हुए ललित त्यागी जी 

फोटो में इस पेड की विशालता का अनुमान नहीं हो रहा है पर ये पेड़ बहुत बड़ा था। 

इस तिराहे पर भी हमने टायर में हवा भरी 





कोसी नदी 

गर्जिया देवी व कोसी नदी 

गर्जिया देवी मंदिर ,रामनगर 

जय माँ गिरिजा देवी 



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होटल की दूसरी तरफ जंगल 



होटल जिसमे हम ठहरे थे