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मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

ओरछा यात्रा (पीताम्बरा पीठ,दतिया और झांसी का किला)

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24,dec,2016

सुबह रोज की तरह जल्दी ही उठ गए। आज हमे ओरछा पहुँचना था। ज्यादातर दोस्त ट्रैन से आ रहे थे। और ट्रैन भी मौसम (कोहरे ) के कारण समय से कुछ घंटे देरी से चल रही थी। इसलिए ज्यादातर लोग ओरछा लेट ही पहुचेंगे यह तय था। इसलिए हमने दतिया जो की रास्ते में ही पड़ रहा था। और दतिया में पीताम्बरा माता का मन्दिर भी  है। क्यों ना मंदिर देखा जाये इसलिए हमने माता के दर्शन करने का निर्णय किया। ग्वालियर से दतिया की दूरी लगभग 75 km है। हम होटल से बिना नाश्ता करे ही ग्वालियर से निकल चले। सोचा की रास्ते में किसी अच्छे से ढाबे पर कुछ खा लेंगे। क्यो समय खराब किया जाए। मै लगभग सुबह 7 बजे दतिया के लिए निकल पडा। रास्ते में एक छोटा सा मंदिर दिखा तो उस मंदिर में जाकर माथा टेक आये। झाँसी की दूरी ग्वालियर से 108 km है। एक जगह रास्ता मालूम किया और रोड पर सीधा चल पड़े। इस रास्ते पर सुबह सुबह लगभग हम ही चल रहे थे। किसी भी प्रकार का ट्रैफिक नही दिख रहा था। यह कोई नया रास्ता बन रहा था। कुछ किलोमीटर चलने के बाद यह रास्ता नेशनल हाई वे 44 पर मिल जाता है। अब हम सही चल रहे थे क्योकी हमे झाँसी की दूरी बता रहे बोर्ड दिख रहा था। कुछ किलो मीटर चलने के बाद एक ढाबा दिखा। उस पर दो कार और भी रुकी हुई थी। हम भी उसी होटल पर रुक गए। चाय और परांठा का नाश्ता किया गया। ढाबे से दिखती एक पहाड़ी पर एक मंदिर दिख रहा था। ढाबे वाले ने एक गांव का नाम बताया जो मैं अब भूल गया हू। उस गांव का ही एक मंदिर था। यह मंदिर देख कर लगान फिल्म का मंदिर याद आया। थोड़ी देर बाद हम नाश्ता कर वहाँ से चल पड़े।

रोड के दोनों और खेत दिख रहे थे। दिल्ली जैसे शहर से आकर लगता है की कोई इस वीरान जगह कैसे रहता होगा। कुछ दूर चलने के बाद रोड सिंगल हो गयी। और दतिया तक ऐसे ही रही। दूर एक महल दिखने लगा अन्दाजा हो गया था की दतिया आ चूका है। एक स्थानीय दंपंती जो की स्कूटर से जा रहे थे। मैने उन से पीताम्बरा मंदिर का रास्ता पता किया उन्होंने रास्ता बता दिया। उनको धन्यवाद कह कर हम आगे बढ़ गए। एक छोटे से तालाब को पार करते ही एक चौक पर पहुँचे। उधर ही एक महल दिखा शायद बीर सिंह पैलेस था।लकिन हम रास्ता पूछ कर आगे बढ़ गए। थोड़ी दूर चलने पर ही माता का मंदिर आ गया। यहां पर मुझे गाड़ी खड़ी करने की जगह नहीं मिली। मंदिर पर बहुत पुलिस खड़ी थी। थोड़ा आगे जाकर फिर वापिस मुड़ गया। तभी एक कार पार्किंग से बाहर निकली और मैने मौके देखकर तुरंत अपनी कार उस जगह खड़ी कर दी। पचास रुपए की पार्किंग लगी लकिन अब गाड़ी की टेंसन नहीं थी। मंदिर के बाहर बहुत सी दुकाने लगी थी इनमे से एक दुकान से फूल माला और लडडू ख़रीदे गए और चल पड़े पीताम्बरा माता के दर्शन करने के लिए। मंदिर के बाहर काफी पुलिस थी शायद कोई नेता या अफसर आने वाला था। तभी नीली बत्ती की गाड़ी से कोई परिवार निकला और मंदिर की तरफ चल पड़ा। हम भी लगभग साथ ही चल रहे थे। मंदिर में अंदर प्रवेश किया, देखा तो दर्शनो के लिए काफी लंबी लाइन लगी थी। लकिन हुआ ये की पुलिस वालो ने हमे भी उस परिवार से साथ सोच लिया और हमे भी उनके साथ पीछे की तरफ से ले जाकर माता रानी के दर्शन कराये और प्रशाद भी चढ़वा दिया।

पीताम्बरा माता के दर्शन एक खिड़की से ही करने होते है, माता की मूर्ति को स्पर्श नहीं किया जाता है और माता की मूर्ति भी दिन में तीन दफा रंग बदलती है। माता पीताम्बरा को बगलामुखी माता भी कहा जाता है। कहा जाता है की, पीताम्बरा माता की पूजा करने से सभी मसले हल हो जाते है। शत्रु पराजित हो जाते है, इसलिए 1963 में भारत चीन युद्ध के दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू जी भी यहाँ पूजा करने आये थे और चीन ने युद्ध बंद कर दिया था। यहाँ पर नेता, फ़िल्मी कलाकार भी आते है पूजा के लिए। कहते है की ये माता अदालत में चल रहे केस में भी जीत दिलवा देती है। हम मंदिर में बने अन्य मंदिर भी देखने के लिए गए। मंदिर के अंदर आप मोबाइल और कैमरा ले जा सकते है लकिन फोटो खींचना प्रतिबंधित है। इसलिए मैंने भी कोई फोटो नहीं लिया। एक मंदिर में गए वहाँ सब शांत मुद्रा में बैठे हुए थे। यह मंदिर उन स्वामी जी का था जिन्होंने 1935 में इस मंदिर को बनवाया था कहते है की पहले यहाँ शमशान हुआ करता था। फिर हम धूमावती माता के मंदिर में गए। यहाँ पर लिखा था की स्त्रियों का आना वर्जित है। लकिन मूर्ति के चारो तरफ पर्दा लगा होने के कारण मै भी इनके दर्शन नहीं कर पाया। बाद में पता चला की यह भारत में धूमावती माता का एक मात्र मंदिर है। फिर हम एक पांडवकालीन शिव मंदिर में गए। जिसे वनखंडेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। यहां पर हमने भी एक प्राचीन शिवलिंग के दर्शन किए। अब हम मंदिर परिसर से बाहर आ गए। इस मंदिर की पौराणिकता बारे में ज्यादा तो नहीं पता चल सका लकिन मन्दिर के बाहर फूल बेचने वाली एक महिला ने हमे बताया की यहाँ सभी की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। माता में बहुत शक्ति है। फिर हम वापिस कार के पास पहुँचे और चल पड़े झाँसी की ओर।
दतिया के  पीताम्बरा मंदिर के बाहर का दर्श्य। 

देवांग मंदिर के सामने। 


मंदिर के अंदर का दृश्य। 

माता पीताम्बरा (बगलामुखी माता ) दतिया ,मध्यप्रदेश 



झाँसी की कहानी 
झाँसी का किला सत्रहवीं शताब्दी में ओरछा के राजा बीर सिंह देव के शासन काल में बना। लकिन झाँसी प्रसिद्ध हुआ वीर रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की वजह से। रानी लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मनु था उनकी शादी कम उम्र में ही झाँसी के राजा गंगाधर राव से हो गया। रानी लक्ष्मीबाई को एक पुत्र भी हुआ लकिन वह बीमारी की वजह से मर गया उसके वियोग में राजा गंगाधर राव भी अस्वस्थ रहने लगे और उनका भी निधन हो गया अब राज्य की सारी जिम्मदारी रानी लक्ष्मीबाई पर आ गयी उन्होंने बहुत अच्छे से झाँसी पर शासन किया। लकिन ब्रिटिश हुकुमत ने एक बिल पास किया जिसमे ऐसे सूबे और हुकुमत को जिसमे वारिस नहीं है उनको ब्रिटिश सरकार अपने आधीन कर लेगी। रानी के कोई संतान नहीं थी इसलिए अंग्रजो ने झाँसी पर कब्ज़ा करना चाहा फिर रानी ने एक बच्चे को गोद लिया लकिन अंग्रजी सरकार ने उसे वारिस नहीं माना और झाँसी पर कब्ज़ा लेने के लिए झाँसी को चारो और से घेर लिया लकिन रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी नहीं देने की घोषणा कर दी और मरते दम तक अंग्रेजी सेना से लड़ी। 

दतिया से झाँसी की दूरी लगभग 31 km है। रास्ते में गन्ने से गुड़ बनाने वाले बहुत से कोल्हू चलते दिख रहे थे। और सड़क पर गुड़ भी बहुत बिक रहा था। में कुछ दिन पहले ही बाजार से गुड़ लाया था नहीं तो यहाँ से जरूर ले जाता। लगभग दोपहर के 11 बजे हम झाँसी के किले पर पहुँच गए। किले के ही पास एक संग्रालय बना है, किला एक ऊँचे पहाडी पर बना है। जिसे बंगरा पहाडी कहते है। किले के बाहर कार खड़ी करने के बाद हम टिकेट घर की तरफ चल पड़े। दो टिकेट (15 रूपया प्रति व्यक्ति) कर अंदर ही गए थे। तभी एक व्यक्ति मेरे पास आया और बोलने लगा की आपको पूरा किला घुमाऊंगा, वो एक गाइड था। मैने उससे पूछा की कितना पैसा लोगे वो बोला की 250 रूपये लूंगा वैसे बात 150रू में तय हो गयी। हमारे गाइड का नाम मिथुन था। मिथुन हमे पहले कड़कबिजली तोप के पास लेकर गया उसने हमे बताया की इस तोप को रानी के एक खास तोपची गुलाम गौस खां ने ही बनाया था। आज भी इस तोप में एक गोला लगा है जिसे रानी ने चलाने से मना कर दिया था। क्योकि अगर यह गोला अंग्रजी सेना पर चलता भी तो साथ में झाँसी के और घर भी तबाह हो जाते , लकिन अंग्रजी सेना ने इस किले पर कई दिन तक गोले बरसाए, जिसमे तोपची गुलाम गौस खां व् और अन्य वफादार सिपाही भी शहीद हो गए। मिथुन ने हमे यह भी बताया की इस किले के चारो ओर पहले पानी की खाई हुआ करती थी और चारो तरफ तोप तैनात थी। एक तोप जिसका नाम भवानी शंकर है उसे महिला सिपाही ही चलाती थी।

फिर हम पंच महल देखने गए, इस महल में रानी ने अपने दंतक पुत्र दामोदर राव को गोद भी लिया था, साथ में जनता की फरियाद भी रानी यही सुनती थी। फिर हम फाँसी घर देखने गए जिसे रानी ने बाद में बंद करा दिया था। यही पर कूदान नाम की जगह भी थी। जहाँ से रानी अंग्रजी सेना से चारो ओर से घिर जाने पर और गुप्त रास्तो पर पर भी अंग्रजी सेना को पाकर। जब रानी लक्ष्मीबाई को कोई रास्ता ना मिल पाया तब वह अपने दंतक पुत्र को अपनी पीठ पर बांध कर अपने घोड़े समेत किले से कूद गयी थी,
रानी लक्ष्मीबाई एक पूजा पाठ करने वाली स्त्री थी। किले के अंदर दो मंदिर है, एक शिव मंदिर और गणेश मंदिर जहां रानी लक्ष्मीबाई नियमित रूप से रोज पूजा करने जाती थी। किले में कूदान जगह से ऊपर ध्वजः रोहण जगह है जहा आज तिरंगा लगा है। थोड़ी दूर एक जगह काल कोठरी बनी है, जहा रानी अपने दुश्मनो और प्रजा के दुश्मनो को सजा के तौर पर कैद करती थी। जगह जगह लोहे की खिड़किया बनी है जिनको अंग्रजो ने रानी के बाद बनवाया था, उन्होंने वहा पर ब्रिटेन से लायी गयी गन मशीन तैनात की थी। आज भी दो ख़राब गन मशीन किले में मौजूद है। किले के बाहर एक ईमारत बनी है जिसे बारादरी कहते है। इस ईमारत में बाराह दरवाजे बने है और यह राजा गंगाधर राव ने अपने भाई के लिए बनवाई थी क्योकि वह संगीत और नाटक में रूचि रखते थे।

झाँसी के किले के पास ही एक पीले रंग का एक भवन दिख रहा था। जब मैंने मिथुन जो हमारा गाइड थे, उनसे पूछा की वो क्या है? तब मिथुन ने बताया की राजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद रानी किले में शासन चलाने के बाद सोने के लिए उस महल में चली जाती थी। फिर हमने रानी का गार्डन भी देखा जहा रानी घूमा करती थी। रानी का रसोई घर भी देखा और भी कई कमरे थे जो हमने देखे। फिर हम मिथुन को उसके तय पैसे देकर वापिस किले से बाहर आ गए। और अपनी मंजिल ओरछा की तरफ चल पड़े।

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अब कुछ फोटो देखे जाये।
झाँसी का किला प्रवेश द्वार। 



कड़क बिजली तोप 




शिव मंदिर 

गणेश मंदिर। 


गणेश मंदिर 


पंच महल का एक हिस्सा जो बंद है। 

पंच महल का एक हिस्सा जहा राजा लोगो से मिलते थे और रानी ने अपने दंतक पुत्र को यही गोद लिया था। 

दो तोप जो आवाज ही करती थी। 



ध्वज स्तम्भ 

कुदान 


तोप भवानी शंकर। 

यहाँ पर फांसी दी जाती थी लकिन रानी ने वो बंद करा दी। 

कल कोठरी 

गन मशीन अंग्रजो द्वारा लायी गयी 


गन मशीन की खिड़की 
बारादरी 


वह भवन जहा रानी पति की मौत के बाद रहती थी। 


एक गुप्त दरवाजा 


पंच महल के पास रानी का उपवन 

सचिन त्यागी 

रानी झाँसी के वफादार लोगो की समाधी स्थल 

रसोई की चिमनी 

किले से दिखता झाँसी शहर। 


23 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया यात्रा विवरण ! ओरछा महामिलन में शामिल सदस्यों में सबसे ज्यादा जगहें आपने ही घूमी । फोटो भी शानदार है । अगली पोस्ट का बेसब्री से इंतजार रहेगा ।

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  2. Hi Sachin

    बढ़िया यात्रा विवरण कर रहे हैं। अपनी गाड़ी से जाने का फायदा आपको मिल रहा है कि आप किसी बंधेबंधाये रास्ते पर चलने के लिए मोहताज नहीं और न ही बस/रेल के अनुसार ही अपने प्रोग्राम को बनाने को बाधित।
    दतिया और झाँसी की जानकारी और फोटोज सभी बढ़िया हैं।

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    1. शुक्रिया अवतार जी। अपनी सवारी का यही फायदा होता है, जहां मन करे उधर मोड लो ।

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  3. झाँसी और दतिया ऐसे रहे जैसे घर , तीन साल तक ! लेकिन तब इनका घूमना कुछ लगता ही नही था और आज बहुत खूबसूरत लग रहे हैं और बहुत परिवर्तन भी दिख रहा है ! पहले झाँसी किले में गन्दगी और झाड़ झंखाड़ का साम्राज्य था लेकिन अब व्यवस्थित और साफ़ सुथरा दिख रहा ! अच्छा लगा फिर से उन पुरानी यादों को साथ लाना !!

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  4. जानकारी से भरपूर बढ़िया पोस्ट . चित्र भी शानदार हैं .

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  5. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Nice article with awesome explanation ..... Thanks for sharing this!! :) :)

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  6. माता के मंदिर की सुन्दर जानकारी

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  7. माता के मंदिर की सुन्दर जानकारी

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  8. Kya baat hai bhai, bhai Ek Mandir bhi hai Jhansi kile Ke Neeche, Raghunath ji ka Mandir jo Raghunath Rao ne banwaya tha Uske baare mein bhi batao

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    1. ओरछा जाना था समय कम था। इसलिए नीचे वाले मंदिर शायद हनुमानजी का था उधर नही जा पाया था।

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  9. बहुत अच्छी और विस्तार से जानकारी।

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