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मंगलवार, 17 मई 2016

बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर व शुक्रताल मंदिर

एक दिन परिवार के साथ हरिद्वार जाना हुआ। माँ गंगा के शीतल जल में स्नान व माँ चंडीदेवी/ मंशादेवी के पावन दर्शन भी हुए। वेसे तो हरिद्वार आना जाना लगा ही होता है, साल में दो तीन बार गंगा स्नान का मौका मिल ही जाता है, आप जानते ही है की यहां पर बहुत से मंदिर है उनमे से एक मंदिर के बारे में बताया मेरे एक घुमक्कड दोस्त पंकज शर्मा जी ने, जो हरिद्वार के ही रहने वाले है, हरिद्वार रेलवे स्टेशन से कुछ ही मिनटो की दूरी पर यह मंदिर स्थित है। वेसे आप लोग कई बार इस मंदिर में गये होंगे पर में पहली बार ही गया। वो भी पंकज जी के कहने पर। नाम तो कई बार सुना पर जाना नही हो पाया इसलिए अब की बार यहां पर दर्शन करने का मौका नही गंवाया ओर जा पहुचां बिल्व पर्वत पर स्थित बिल्वकेश्वर मन्दिर।

बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर(हरिद्वार)

इस मंदिर के बारे में स्कन्द पुराण में भी लिखा है ,स्कन्द पुराण के अनुसार इस बिल्ब पर्वत पर माँ पार्वती ने बिल्व के वृक्ष (बेल पत्थर) के नीचे भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए तीन हजार साल तक तपस्या की थी। उसके बाद भगवान् शिव ने प्रसन्न होकर माँ पार्वती को दर्शन देकर विवाह का वरदान दिया। उसी काल से यह स्थान बिल्वकेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। स्कन्द पुराण के अनुसार यहां पर शिव का वास है ,यह तीर्थ अति पवित्र है। पाप नाशक है। पुत्रपद्र तथा धनपद्र है। बिल्बतीर्थ चतुवर्ग (धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष) फल देने वाला है बिल्वकेश्वर महादेव का जो व्यक्ति बिल्व पत्र से पूजा  अर्चना करता है उसके हर संकट दूर हो जाते है। 

हिमालय पुत्री माँ पार्वती यहाँ पर शिव पूजा के समय केवल बेलपत्र ही खाती थी, जब उन्हे पानी की प्यास लगी तब ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से गंगा की एक जल धारा को प्रकट किया। यह जल धारा आज भी बिल्वकेश्वर मंदिर से थोड़ी दूरी पर स्थित है, आज यह गौरीकुंड कहलाता है, माना गया है की इसी जलधारा का पानी माता पार्वती पिया करती थी व पूजा में उपयोग किया करती थी।

इस जलधारा के बारे में यह बात प्रचलित है की जिस कन्या के विवाह में अड़चन आती हो उस कन्या को इस जलधारा के जल में स्नान करना चाहिए फिर उस कन्या का विवाह शीघ्र ही हो जाता है।
एक अन्य बात यह भी प्रचलित है की जिस औरत के संतान नहीं हो रही है उस औरत को भी यहाँ इस जल में स्नान करना चाहिए। उसकी भी मनोकामना यहां पर अवश्य पूरी होती है।




चंडीदेवी से दिखता हरिद्वार व गंगा नदी का दृश्य 



रोपवे(ऊडनखटौला)


गंगा आरती( हर की पौड़ी)

अर्धकुम्भ की चमक

पंकज शर्मा जी और मैं (sachin )

देवांग

कुछ जरुरी सूचना

बिल्वकेश्वर मंदिर


नंदी जी 

एक अन्य शिवलिंग

गौरीकुंड को जाता रास्ता। 

गौरीकुंड को जाता रास्ता।



गौरीकुण्ड 

गौरीकुण्ड






शुक्रताल तीर्थ (मुज्जफरनगर)

शुक्रताल गंगा किनारे हिन्दुओ का एक मुख्य तीर्थ स्थल है। यह उत्तरप्रदेश के मुज्जफरनगर जिले में आता है, यह मुज्जफरनगर शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित  है। यहां पर संस्कृत महाविध्यालय है, शुक्रताल के बारे में मान्यता है की यहां पर श्री कृष्ण की विनती पर व्यास पुत्र महार्षि सुखदेव जी ने एक वटवृक्ष के नीचे बैठकर पहली बार श्रीमद भागवत महापुराण का पाठ अभिमन्यु के पुत्र और अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित को सुनाया था। अर्थात राजा परीक्षित ने अपने अंतिम दिनों में यही इस पावन भूमि पर श्रीमद भागवत महापुराण का पाठ सुना था जिसे सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। बाद में फिर यहां पर मंदिर बनाया गया। आज भी वह वटवृक्ष यहां मौजूद है, सभी श्रधालु लोग इस वटवृक्ष की पूजा व परिक्रमा करते है, कहते ही की इस वटवृक्ष के पत्ते कभी नही मुरझाते है, यह हमेशा हरे ही रहते है, वटवृक्ष के इस पेड पर तोते का जोड़ा देखा जाना भी शुभ माना जाता है। यहां पर बहुत से मन्दिर व आश्रम बने है।

शुक्रताल


प्राचीन वटवृक्ष

मंदिर

तोते का जोड़ा

वटवृक्ष का एक रूप 

शिव मन्दिर

हनुमान की मूर्ति 

में और देवांग। 

20 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया जानकारी सचिन जी :)
    आपकी लिखावट में दिन प्रतिदिन निखार आता जा रहा है।
    फ़ोटोज़ बढ़िया हैं और साथ ही खूब सारे भी!

    Thanks for sharing.

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  2. क्या फ़ोटो है निखार सुन्दर जानकारी

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  3. बहुत ही रोचक जानकारी पर ये तो बताईये बिल्वकेश्वर तक कैसे पहुंचा जाये

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    1. हरिद्वार रेलवे स्टैशन से हर की पौडी की तरफ चलते हुए, एक चौक पडेगा, शायद शिवचौक से आगे वाला, वही से बांये हाथ को रास्ता जाता है, गुरुद्वारा पार कर के, आप पैदल भी जा सकते है, नही तो आटोरिक्शा भी जाता है।

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  4. हरिद्वार गए एक अरसा हो गया है,आपके साथ बढ़िया यात्रा हो रही है

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  5. सचिन जी...
    बिल्वकेश्वर मंदिर और शुक्रताल तीर्थ (मुज्जफरनगर) के बारे में बढ़िया जानकारी | हरिद्वार कई बार गये ...पर इस मंदिर के बारे में न पता था | वैसे हरिद्वार में काफी मंदिर है ...यदि पूरा एक दिन लगा दो तो भी घूम न सको....

    फोटो अच्छे लगे हरिद्वार के

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    1. धन्यवाद रितेश जी।
      सही कहां हरिद्वार में बहुत से नए व पुराने मन्दिर है, जो एक दिन में नही देखे जा सकते है, पर कुछ तो देखे जा सकते है। ओर यह मन्दिर उस श्रेणी में ही आता है।

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  6. हरिद्वार से ऐसे कई बार निकला हूँ त्यागी जी लेकिन आज तक कभी भी वहां रुकने का , घूमने का मौका नहीं मिल पाया ! देखते हैं कब अवसर आता है , तब तक आपके ब्लॉग को ही देखकर मन बहला लेते हैं ! शुक्रताल मुज़फ्फरनगर की प्रसिद्द जगह है , उसके भी दर्शन आपने साथ में करा दिए ! मुज़फ्फरनगर से तो हमारी एक नियमित पाठिका का आमंत्रण भी है आने के लिए ! देखते हैं आपके द्वारा लिखी गयी इन दोनों खूबसूरत जगहों पर कब जा पाते हैं !! संक्षिप्त लेकिन बढ़िया वर्णन किया है त्यागी जी आपने इन जगहों का !

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    1. धन्यवाद योगी भाई। अब की बार हरिद्वार में मां गंगा की शरण में कुछ दिन बीता ही आओ।

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  7. क्या बात है सचिन भाई बहुत बढ़िया जानकारी दी आपने बिल्केश्वर महादेव के बारे में। सचिन भाई मेरी इच्छा है आप पुरे हरिद्वार के बारे में लिखें।

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    1. सुशील जी कोशिश रहेगी।
      आपका भी बहुत बहुत धन्यवाद।

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  8. Thanks for sharing it, this is really a most famous temples and very popular Hindu religion culture activities. Taj Mahal Tour By Car

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  9. सचिन भाई।

    थोड़ी सी त्रुटि है आपके लेखन में,इसीलिए आपका ये छोटा भाई, आपकी इस त्रुटि को दुरुस्त करने का दुस्साहस कर रहा है।

    दरअसल शुक्रताल ऐसी पवित्र पावन भूमि है इस पृथ्वी पट जैसे ब्रजभूमि ओर अयोध्या, लेकिन दुर्भाग्य से कांग्रेस और उसके घटक दलों के इतने लंबे साशन में भी इस पावन भूमि को वो पहचान नही मिल पाई जो मिलनी चाहिए थी।

    केवल कुछ प्रतिशत लोग ही जो शास्त्रो इर पुराणों का अध्ययन एवम श्रवण करते हैं उन्हें ही इसके बारे में जानकारी हैं।

    शुक्रताल में महऋषि शुकदेवजी ने गीता का नही श्रीमद भागवत महापुराण का पहली बार अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित पाठ सुनाया था,क्योंकि श्रीमद भागवत महापुराण मोक्षदात्री हैं, जिसके सुनने मात्र से मनुष्य के समस्त पापो का नाश हो वह मोक्ष पा लेता हैं। और राजा परीक्षित को शाप था, की एक तक्षक सर्प के डसने से उनकी मृत्यु हो जाएगी।तो अपने शाप से मुक्त होने के लिए उनके निवेदन पर।

    ओर भगवान श्री कृष्ण के आग्रह करने पर उन्होंने पहली बार इस महापुराण का पाठ कराया था।

    महर्षि शुकदेव जी महृषि वेदव्यास के पुत्र थे, ओर महऋषि शुकदेव जी 12 वर्ष तक अपनी माँ के गर्भ में रहे थे।

    ओर समस्त वेदों शास्त्रों पुराणों को उन्होंने अपनी माँ के गर्भ में रहते हुए ही,सुना था,ओर वक सब उन्हें कंठस्थ हो गए थे,
    दरअसल उनके 12 वर्ष तक गर्भ में रहने कथा निम्न प्रकार हैं।

    एक बार भगवान शिव माँ पार्वती को रक अमरकथा सुना रहे थे जिसे कोई भी जीव मनुष्य या जनवर नही सुन सकता था,वो केवल भगवान शिव और मां पार्वती के लिए थी,तो कथा सुनते हुए मां पार्वती को नींद आ गयी,ओर उन्होंने हूँगारे देने बन्द कर दिए,लेकिन भगवान शिव कथा सुनाते थे,तब वही पर बैठे एक शुक यानी तोते ने हूँगारे देना शुरु किया, ओर सारि कथा सुन ली और अमर हो गया,तब भगवान शिव ने देखा कि माँ पार्वती तो सो गई,फिर ये आवाज़ में उत्तर कोन दे था है, जैसे ही उनकी नज़र उस तोते पे पड़ी तो,उन्होंने अपना त्रिशूल उठा कर उस टोटे को फेंककर मारा,ओर वो तोता उस त्रिशूल से बचने के लिए तीनो लोकों में घूमता रहा,लेकिन कहि भी त्रिशूल से जान बचाना मुश्किल था,तब वह तोता महर्षि वेदव्यास जी के आश्रम में पहुंचा और शुक्ष्म रूप धरण कर महृषि की पत्नी के मुख से होकर उनके गर्भ धरण किया।

    ओर 12 वर्ष तक अपनी मां के पेट मे रहा,ओर सारे वेदों,शास्त्रो पुराणों का श्रवण किया।

    अमर तो हो ही गये थे,लेकिन इस जगत की माया ओर भगवान शिव के अभिशाप से बचने के लिए गर्भ से बाहर नही आ रहे थे,

    तब भगवन श्री कृष्ण ने उन्हें भरोसा दिया और उनसे आग्रह किया कि वो देवताओं और राजा परीक्षित को श्रीमद भागवत महापुराण का पाठ कराएंगे तब जाकर भगवान श्री कृष्ण के कहने पर 12 वर्ष बाद अपनी माँ के गर्भ से बहार आये, ओर उनका नाम शुकदेव पड़ा।

    तब बाद में उन्होंने राजा परीक्षित अर्जुन के पौत्र को इसी वटवृक्ष के नीचे बैठकर श्रीमद्भागवत महापुराण सुनय था।

    तब से ये वटवृक्ष भी अमर हो गए थे,5000 वर्ष की आयु हो चुकी है इस कलयुग की भी ओर इस वटवृक्ष की भी।

    लेकिन आज तक ये व्रक्ष हमेशा हरा रहता हैं।


    लेकिन दुर्भाग्य से कांग्रेस जैसे दलो के रहते हमारे सनातन धर्म के इन पावन ओर दिव्य स्थानों को उतना महत्व नही मिला।


    लेकिन अब योगी जी और मोदी जी विशेष कृपा ऐसे सभी तीरतस्थलों पर हो रही है और कुछ आप बड़े भाई जैसे लोग पहचान दिला रहे हैं, तो दुनिया को जानकारी मिल रही है।

    जय जय श्री राधे।

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  10. धन्यवाद भाई आपका आपने तो सम्पूर्ण कथा ही बता दी. आपका आभार और वह त्रुटी भी ठीक कर दी है.
    जय श्री कृष्ण

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