आपने अभी तक पढा़ की हम कुछ दोस्त सतोपंथ ट्रैकिंग के लिए, दिल्ली से बस के द्वारा बद्रीनाथ पहुचें। अब आगे.....(पिछला भाग)
12 जून 2016
सुबह आराम से ऊठे, फ्रैश होकर सभी लोग बद्रीनाथ मन्दिर की तरफ चल पडे। सुबह के 9 बज रहे थे। मै, जाटदेवता व रमेश जी गर्म पानी के कुंड में नहाने चले गए, तब तक बाकी लोग मन्दिर की तरफ चले गए। हम लोग नहाने के बाद ऊपर मन्दिर के पास बनी सीढियो तक ही पहुंचे थे की बाकी के दोस्त वापिस आते दिखे, हमको देखते ही अमित तिवारी जी कहने लगे की मन्दिर दर्शन के लिए लाईन बहुत लम्बी है, शायद चार या पांच किलोमीटर लम्बी तो है ही। क्यो ना पहले चरणपादुका व नीलकंठ पर्वत के बेसकैम्प तक हो आए। सभी की सहमति से हम चरण पादुका की तरफ चल दिए, क्योकि हम उपर जा रहे थे और वहा कुछ खाने को मिलने से रहा और सुबहे से कुछ खाया भी नहीं था इसलिए मैने व अमित तिवारी जी ने कहां की पहले नाश्ता कर लेते है, जबकी कुछ दोस्तो ने नाश्ता करने को मना कर दिया। फिर भी वह हमारे साथ एक रैस्तरा में आ गए। हमने आलू परांठा व चाय के लिए बोल दिया, बाकी दोस्तो की भी राय बदल गई ओर सबने यही नाश्ता करने का फैसला कर लिया। ग्वालियर से आये विकाश नारयण का व्रत था इसलिए विकाश ने अपने लिए केले ले लिए, चाय नाश्ते करने के बाद हम लोग बद्रीनाथ मन्दिर के पास से ही जाते हुए एक रास्ते पर चल पडे।
बद्रीनाथ की ऊंचाई 3040 मीटर है और आज हम चरणपादुका व ऊपर नीलकंठ पर्वत के बेस कैम्प तक घुम आएगे, जिससे हम यहां के मौसम के अनुकुल अपने शरीर को ढाल सके। क्योकी एक दम जब हम इतनी ऊंचाई पर आ जाते है तब हमारा शरीर की कार्य प्रणाली में एक दम बहुत बदलाव आ जाता है, जिसे शरीर बहुत कम बर्दाश्त कर पाता है, उल्टी, सर दर्द, चक्कर आना यह सब हो जाता है, इसलिए कही भी ट्रैकिंग करने से पहले, वहा पर एक दो दिन आसपास घुम लो जिससे हमारा शरीर वहा के मौसम के अनुकुल हो जाए। इसलिए अमित तिवारी जी ने सतोपंथ यात्रा से पहले चरणपादुका व नीलकंठ पर्वत तक यह आठ नौ किमी की ट्रैकिंग करने को कहा, जिससे हम लोगो को आगे परेशानी ना हो।
हम लोग मन्दिर के पास से ही जाते एक रास्ता पर चल पड़े, पहले एक आश्रम पडता है जिसे मौनी बाबा का आश्रम कहते है, मौनी बाबा के आश्रम से चढाई थोडी तीखी हो जाती है, पर हम में से किसी को कोई तकलीफ नही हो रही थी, रास्ते में एक हनुमान मन्दिर पडा, जिसे गुफा वाला मन्दिर भी कहते है, यहां पर हम सभी लोग अंदर जाकर दर्शन कर आए, यहां पर हमे एक योगी बाबा मिले जो यही पर तपस्या करते है। मन्दिर से प्रसाद लेकर हम चरण पादुका की तरफ चल पडे। जिधर हम चल रहे थे उसके दूसरी तरफ पहाडो पर बहुत से झरने गिरते दिख रहे थे, बीच मे रिशिगंगा नदी बह रही थी, और कुछ बर्फ के छोटे ग्लेशियर भी थे, जहां पर कुछ लोगो को बर्फ पर चलने व उतरने की ट्रैनिंग दी जा रही थी। अमित तिवारी जी ने हमे बताया की इन पर्वतो के पिछे ही कही उर्वशी कुंड है जहां से यह पानी झरनो के रूप में गिर रहा है। बद्रीनाथ से कुछ दूर पर ही यह जगह थी। यह बडी ही सुंदर जगह थी, एक दम स्वर्ग जैसी। यहां की ताजी हवा, झरने व पानी की आवाज ओर चारो ओर फैले छोटे छोटे फूलो के पौधे, एक अलग ही रोमांच प्रकट कर रहे थे, मन में यही था की बस कुछ देर यही बैठे रहे।
नीचे बद्रीनाथ में जहां पर बहुत लोगो की भीड मिली ऊपर हमारे व कुछ साधु लोगो के अलावा कोई नही था, कुछ ही देर बाद हम चरणपादुका पहुँच गए। चरणपादुका मे कोई मन्दिर नही है बस एक खुले में एक चट्टान पर कुछ पद्दचिन्ह बने है जिन्हे भगवान विष्णु के पदचिन्ह कहा गया है। कहते है की भगवान ने धरती पर सबसे पहले यही पर पैर रखा था। यहां पर एक योगी(तपस्वी) जो विदेशी था। वह हरी नाम की माला जप रहा था, मेरे एक साथी उनका फोटो खिंचने लगे तो उस तपस्वी ने इशारे से मना कर दिया। मुझे यह देख कर बहुत अच्छा लगा की कोई बाहरी देश या संस्कृति का व्यक्ति हमारे धर्म व संस्कृति को अपना चुका है। जबकी हम लोग अपने धर्म को लेकर ही आपस में लडते रहते है। अपने धार्मिक स्थलो को गंदा करते है। चलो छोडो यह बाते आगे चलते है
चरणपादुका पर कुछ गुफानुमा झौपडी में कुछ और भी तपस्वी रहते है जो सालभर यहां रहकर तपस्या करते है। ऐसे ही एक बाबा ने हमे खाने के लिए प्रसाद भी दिया। लकिन वो नाराज भी थे, क्योकि हम उनकी गुफा में नहीं गये थे क्योकि हम लोग तो यहाँ की सुंदरता में इतने रम गये थे की और कही पर ध्यान ही नहीं गया , फिर हम पुरे ग्रुप में भी थे आपस में हँसी मजाक भी कर रहे थे।
चरणपादुका दर्शन के बाद अमित, योगी व कमल सिंह नदी के उस पार चले गए, जबकी मैं (सचिन), संजीव त्यागी ,विकाश, जाट देवता, सुशील जी व रमेश जी इस पार ही रहे। ओर आगे की तरफ चलते रहे। सिमेंट की बनी पगंडंडी अब खत्म हो गई। रास्ते के नाम पर छोडी सी पगडंडी ही रह गयी थी उसी पर हम चल रहे थे। हम एक ऐसी जगह पहुंचे, जहां से हमे आगे एक धार पर चलना था। (धार मतलब वह जगह जहां पर दोनो तरफ ढलान होती है ) धार पर चलना कठीन होता है, क्योकी यहां पर हवा बहुत लगती है। और दोनो तरफ ढाल होने के कारण डर भी लगता है। जाट देवता ने मुझे बोला की किनारे पर मत चलना, यह जोखिम भरा हो सकता है। वैसे में बीच में ही चल रहा था और यह रास्ता इतना भी खतरनाक नही था, लकिन सावधानी हर जगह रखनी चाहिए.
यहां पर मोबाईल एप से ऊंचाई नापी तो देखा 3600 मीटर ऊंचाई थी, इसका मतलब हम बद्रीनाथ से 600 मीटर ऊपर आ चुके थे इन छ, सात किमी में। धार को पार करके एक समतल जगह आई यहां से नीलकंठ पर्वत अभी भी दो किलोमीटर कम से कम था। यहाँ पर हम थोडा आराम के लिए बैठ गए। एक लोकल व्यक्ति मिला जो अपने बैल को उपर लेकर जा रहा था। अब हमे आगे पत्थरों के बीच से जाना था, लेकिन थोडी देर बाद मौसम बिगड़ गया, बारिश और चारो तरफ धुंध की सफेद चादर सी बीछ गई, दूसरी तरफ से अमित ,योगी व कमल वापिस नीचे की और लौट गये, सुशील व विकाश ने कहा की वह नीलकंठ पर्वत के बेस कैम्प तक जाएगे। इसलिए उन्हें छोड कर हम वापिस लौट चले लेकिन बारिश की वजह से वह लोग भी आगे नही जा सके और हमारे साथ ही वापिस लौट आए, दूसरी तरफ वाले भी ग्लेशियर के पास घूम रहे थे। लगभग आधे घंटे बाद हम सब चरणपादुका पर मिल गए, बारिश भी बंद हो चुकी थी ओर मौसम भी साफ था। वहां से हम एक नए रास्ते से उतरते हुए, अपनी धर्मशाला की तरफ चले पड़े।
दोपहर के 2:20 हो रहे थे, धर्मशाला के पास ही एक अन्य धर्मशाला में कढ़ी चावल का भंडारा लगा हुआ था। यही पर सबने भंडारा खाया और कुछ दान देकर वापिस कमरे में पहुंच गए। वापिस आकर कल के लिए जरूरत के समान की लिस्ट के अनुसार समान खरीदने के लिए, अमित तिवारी व एक पार्टर बाहर बाजार चले गए। सुशील जी व अन्य लोगो ने आराम करने को बोल दिया। लेकिन मैं, जाटदेवता, कमल व विकाश माणा की तरफ चल पडे, अभी दोपहर के तीन ही बज रहे थे। एक चौक से 300 रू में माणा तक आने जाने की जीप कर ली। वैसे माणा बद्रीनाथ से मात्र तीन किमी ही दूर है। पर हमने जीप करनी ही सही समझा। जीप ने हमे माणा गांव के बाहर उतार दिया।
माणा गाँव भारत का आखिरी गाँव:- माणा गांव को भारत तिब्बत सीमा के नजदीक होने के कारण व आगे आबादी क्षेत्र ना होने के कारण भारत का आखिरी गांव कहा जाता है। सर्दियों मे माणा गांव के नागरिक भी गोपेश्वर चले जाते है लेकिन गर्मी स्टार्ट होते ही यह वापस माणा आ जाते है, यह लोग भेड की ऊन से बने गर्म कपडे, टोपी बेचते है, तथा पहाडो पर पाए जाने वाली दुर्लभ जडुबूटी बेचते है, चाय में डालने वाला मसाला भी बिकता है यहां पर। माणा गांव समंद्र की सतह से लगभग 3200 मीटर ऊंचाई पर बसा है। यहां पर देखने के लिए व्यास गुफा, गणेश गुफा, भीम पुल, भारत की आखिरी चाय की दुकान व सरस्वती नदी है।
हम लोग जीप से उतर कर एक पतले से रास्ते पर चल पडे। जगह जगह छोटे छोटे घर व उनमे बैठी औरते समान बेच रही थी, हमने भी कुछ चाय मे गिरने वाला मसाला लिया। आगे चलकर दो तरफ रास्ता चला जाता है, एक तरफ भीम पुल, सरस्वती नदी के लिए तो दूसरी तरफ व्यास गुफा व गणेश गुफा के लिए। हम लोग बांये तरफ जाते रास्ते पर चल पडे। थोडी दूर जाते है एक गुफा मे एक बाबा बैठे दिखे जो लोगो को भभूत (भस्म) दे रहे थे। थोडा सा ही चले थे की सरस्वती नदी का तेज पानी व शोर सुनकर वही सन्न खडे रह गए। सरस्वती नदी का जल बहुत तेजी से नीचे गिर रहा था। कहते है जब पांडव इस रास्ते से स्वर्ग जा रहे थे तब द्रौपदी इस जल को देख कर डर गई तब महाबली भीम ने पहाड ऊठा कर जल के ऊपर से पुल बना दिया, जिससे सभी पांडव व द्रौपदी ने सरस्वती नदी को पार किया। यह पुल आज भी मौजूद है जिसे भीम पुल या भीमसेतु कहा जाता है। हम भी इसी पुल से सरस्वती नदी को पार करते हुए, भारत की अंतिम चाय की दुकान पर पहुंचे । यहां से हमने अमुल की लस्सी लेकर पी। जिसके लिए mrp से पांच रूपया अधिक चुकाने पडे। वसुधारा जल प्रपात के लिए भी यही से रास्ता जा रहा था पर इतना समय नही था की हम वहां तक हो आए, इसलिए वहां जाना कैंसील कर दिया ।
सरस्वती नदी का जल नीचे की ओर चला जाता है ओर नीचे गहराई में जल नही दिखता कहते है यह जल अलकनंदा मे मिल जाता है, जहां यह जल मिलता है वह जगह केशवप्रयाग के नाम से जानी जाती है।
भीम पुल व सरस्वती के वेग को देखकर मन प्रसन्न हो गया। फिर हम लोग वापिस चल पडे। एक जगह ऊपर की ओर रास्ता जा रहा था, जिस पर हम लोग चल पडे। यह रास्ता सीधा व्यास गुफा तक जाता है। हम लोग व्यास गुफा देखने अंदर चले गए। अंदर बैठे एक बाबा ने व्यास गुफा के बारे में हम लोगो को बताया की यहां पर महर्षि वेद व्यास जी ने महाभारत कथा का उच्चारण किया था, द्वापर युग समाप्त होने वाला था व कलयुग आरंभ होने वाला था, इसलिए महाभारत ग्रंथ लिखा जाना आवश्यक था, इसलिए वेद व्यास जी भगवान गणेश जी के पास पहुंचे । उनसे महाभारत कथा लिखने के लिए प्रार्थना की तब गणेश जी ने कहा की मै महाभारत कथा तो लिख दुंगा पर आप बोलते रहने बीच मे क्षण भर के लिए भी रूकना नही, आप रूके तो मै वही कलम छोड दुंगा। गणेश जी को आस्वासन देकर व्यास जी ने अपनी गुफा से लगातार महाभारत कथा का उच्चारण किया और व्यास गुफा से थोडी दुर पर स्थित गणेश गुफा में गणेश जी ने महाभारत कथा या लेख को लिखा। इसलिए जो लोग बद्रीनाथ आते है वह माणा गांव जरूर आते है क्योकी ऐसी पवित्र जगह को देखे बिना कोई कैसे रह सकता है। हम लोग भी वेद व्यास गुफा को देखकर बाहर आ गए। गुफा में फोटो खिंचना मना है। बाहर आकर हम लोग नीचे की तरफ चल पडे, थोडी दूर पर ही गणेश गुफा थी जहां पर भी हम दर्शन कर आए। जब हम लोग माणा गांव के सभी दर्शनीय स्थल घुम लिए तब हम वापिस चल पडे, फिर वहां से अपनी जीप पकड कर धर्मशाला पहुचं गए।
भीम पुल व सरस्वती के वेग को देखकर मन प्रसन्न हो गया। फिर हम लोग वापिस चल पडे। एक जगह ऊपर की ओर रास्ता जा रहा था, जिस पर हम लोग चल पडे। यह रास्ता सीधा व्यास गुफा तक जाता है। हम लोग व्यास गुफा देखने अंदर चले गए। अंदर बैठे एक बाबा ने व्यास गुफा के बारे में हम लोगो को बताया की यहां पर महर्षि वेद व्यास जी ने महाभारत कथा का उच्चारण किया था, द्वापर युग समाप्त होने वाला था व कलयुग आरंभ होने वाला था, इसलिए महाभारत ग्रंथ लिखा जाना आवश्यक था, इसलिए वेद व्यास जी भगवान गणेश जी के पास पहुंचे । उनसे महाभारत कथा लिखने के लिए प्रार्थना की तब गणेश जी ने कहा की मै महाभारत कथा तो लिख दुंगा पर आप बोलते रहने बीच मे क्षण भर के लिए भी रूकना नही, आप रूके तो मै वही कलम छोड दुंगा। गणेश जी को आस्वासन देकर व्यास जी ने अपनी गुफा से लगातार महाभारत कथा का उच्चारण किया और व्यास गुफा से थोडी दुर पर स्थित गणेश गुफा में गणेश जी ने महाभारत कथा या लेख को लिखा। इसलिए जो लोग बद्रीनाथ आते है वह माणा गांव जरूर आते है क्योकी ऐसी पवित्र जगह को देखे बिना कोई कैसे रह सकता है। हम लोग भी वेद व्यास गुफा को देखकर बाहर आ गए। गुफा में फोटो खिंचना मना है। बाहर आकर हम लोग नीचे की तरफ चल पडे, थोडी दूर पर ही गणेश गुफा थी जहां पर भी हम दर्शन कर आए। जब हम लोग माणा गांव के सभी दर्शनीय स्थल घुम लिए तब हम वापिस चल पडे, फिर वहां से अपनी जीप पकड कर धर्मशाला पहुचं गए।
कल हमको सतोपंथ स्वर्गारोहिणी ट्रैक पर जाना था, जिसके लिए सब यहां तक आए, लेकिन मेरे साथ किस्मत ने अलग ही खेल खेला, जब हम चरणपादुका से लौट रहे थे। तब मेरे घर से फोन आया की कोई जरूरी काम है इसलिए तुम वापिस आ जाओ। मेरे लिए वह जरूरी काम भी करना आवश्यक था। लेकिन साथ में मेरा सपना भी था की मैं यह ट्रैक करू। जिसके लिए मैं दिल्ली से इतनी दूर आ चुका हुं। लेकिन एक काम के लिए दुसरा काम छोडना पडता है इसलिए मैने अपने मन को समझाकर अपने साथियो को बता दिया की मै आगे नही जा रहा हुं कल बद्रीनाथ से ही मै लौट जाऊंगा। थोडा दुख तो हुआ की मै नही जा पा रहा हुं, पर यही जीवन है। जीवन मे हर चीज इतनी सरल नही होती है। इसलिए माणा से आते वक्त मै जीप से उतर कर बस स्टैण्ड पहुचां और अगले दिन की सुबह हरिद्वार जाने वाली बस में टिकेट बुक करा आया।
टिकेट बुक करा कर कमरे में आया ही था की जम्मू से आए हमारे साथी रमेश जी ने मुझसे कहा की वह भी आगे सतोपंथ नही जा रहे है। उनको लग रहा था की वह सतोपंथ नहीं कर पाएंगे, मैने उनको बहुत कहा की हर किसी को ऐसा मौका नहीं मिलता। मेरी तोह मजबूरी थी की में यह ट्रेक नहीं कर पा रहा हुं। पर आप इसे कर सकते है। पर उन्होंने अपनी सेहत का हवाला देते हुए सतोपंथ ट्रेक पर जाना कैंसिल कर दिया। इसलिए उन्होने मुझ से कहा की उनकी भी एक टिकेट हरिद्वार तक की बुक करा दो। फिर मै और रमेश जी बस स्टैंड पर जाकर उसी बस मे एक और टिकेट बुक करा आए।
शाम के तरीबन 6:30 हो रहे थे। मै बद्रीनाथ जी के दर्शन करने के लिए जा रहा था, मेरे साथ रमेश जी व विकाश कुमार भी चल पडे। गर्म पानी के कुण्ड पर जाकर हाथ - मुंह धौए गए। फिर हम लोग मन्दिर की तरफ चल पडे। मन्दिर पर जाकर देखा तो बहुत लम्बी लाईन लगी थी दर्शनो के लिए। मै लाईन में लग गया, जबकी दोनो मित्र लाईन से बाहर ही खडे रहे। लाईन बहुत लम्बी थी, इसलिए मैं लाईन मे लगे एक अंकल को यह कहकर आ गया की अंकल में अभी आया। मै लाईन से निकलकर कर सीधा मन्दिर के मुख्य गेट पर पहुंचा, वहा पर कुछ पुलिस वाले मुख्य (vip) आदमियो को बिना लाईन मे लगे ही अंदर जाने दे रहे थे। मै भी उधर से अंदर जा ही रहा था लेकिन पुलिस वाले ने अंदर जाने ही नही दिया। लेकिन कुछ देर बाद मै वही से अंदर चला गया। अंदर दर्शन करने के पश्चात् मैं वापिस मन्दिर के बाहर आ गया। बाहर आकर देखा तो लाईन वही की वही खडी थी, अपने दोनो मित्रो को में वही से लेकर, मन्दिर में दोबारा चला गया, दोनो मित्र भी इतनी जल्दी दर्शनो से बहुत खुश हुए। हमने मन भर कर भगवान बद्री विशाल के दर्शन किए। कुछ देर मन्दिर मे बैठे रहे फिर दान दक्षिणा की पर्ची कटवाकर, बाहर आ गए। बाहर निकले ही थे की बाकी के सभी मित्र मिल गए। मै ओर रमेश जी वापिस धर्मशाला आ गए। धर्मशाला आकर देखा तोह कमरे की चाबी नहीं थी। शायद जिससे मैनें प्रसाद लिया था शायद चाबी वही छुट गयी थी। फिर मैं वापिस गया और प्रसाद की दुकान पर रखी चाबी ले आया। बाद में हम खाना खाकर अपने अपने बैड पर सोने के लिए चले गए।
13 जून को सुबह जल्दी उठ गया, फिर सभी से मिलकर हम दोनों बस स्टैंड को चले गये। मन बहुत उदास था। क्योकि मैने इस ट्रेक के लिया बहुत महनत की थी, लकिन किस्मत में जाना नहीं था। हम दोनों बस में आकर बैठ गए। शाम को तकरीबन 6:30 पर हम हरिद्वार उतरे। जहां से रमेश जी रात 9 बजे की ट्रैन पकड चले गए, बाकी मै कुछ देर गंगा किनारे बैठा रहा और रात को 11 बजे दिल्ली की बस में बैठ गया। जिसने मुझे सुबह गाजियाबाद मोहननगर चौराहे पर उतर गया, जहां से अॉटो पकड कर घर पहुंचा गया।
यात्रा समाप्त...........
इस यात्रा के सभी फोटो जो कैमरे में थे वो गलती से डिलीट हो गए, जो फोटो आप देख रहे है वो फोटो मेरे मित्रो ने मुझे दिए है , इसलिए में उन सभी का धन्यवाद करता हु.
इस यात्रा के सभी फोटो जो कैमरे में थे वो गलती से डिलीट हो गए, जो फोटो आप देख रहे है वो फोटो मेरे मित्रो ने मुझे दिए है , इसलिए में उन सभी का धन्यवाद करता हु.
बदरीनाथ का दर्शये |
सुशील कुमार ,सचिन त्यागी व रमेश जी |
ऊर्वशी कुण्ड से आता एक झरना |
कैप्शन जोड़ें |
हनुमान मन्दिर पर हम दोस्त (संजीव त्यागी) |
चरण पादुका चिन्ह |
रिशिगंगा नदी के उस पर जाते अमित तिवारी |
हमे अभी इसी तरफ ही चलना है |
बारिश से बचने के लिए एक यहाँ सरन ली |
बद्रीनाथ वापिस आ गये |
माणा गाँव |
माणा गाँव में गर्म कपड़े बेचती एक स्त्री |
एक शाइन बोर्ड दर्शनीय स्थलों की दूरी बताता |
लस्सी पीते हुए
|
सरस्वती नदी का प्रचण्ड वेग |
भीम पुल |
वेद व्यास गुफा |
गणेश गुफा |
गणेश गुफा पर मैं सचिन |
बहुत ही सुंदर वर्णन मित्र। कोशिश कोजिये अपने कंप्यूटर दुकान के जानकार मित्रो से शायद डिलेट फोटो वापस रकवर हो जाए
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनिल भाई!
हटाएंकोशीस की पर फोटोज नहीं मिले
बद्रीनाथ गई थी तो ये सब पता नहीं था वरना माणा गाँव जरूर जाती और सरस्वती नदी भी देखती ।बहुत अच्छा लिखा है।
जवाब देंहटाएंथैंक्स बुआ कोई नहीं अब की बार जब जाना तब माणा हो आना
हटाएंबहुत बढिया, फोटो के लिए अतिरिक्त सावधानी रखनी चाहिए, मैं एकबार भुगत चुका हूँ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ललित भाई!
हटाएंसही कहा पर आगे से यह गलती ना होगी क्योकि अब की बार से अच्छा सबक मिल गया,वो तोह कई दोस्तों ने फोटो दीदिए, अगर सोलो यात्रा होती तब शायद ही में इसको लिख पाता!
सजीव चित्रण व लेखन बधाइयाँ सचिन भाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राजेश सहरावत जी।
हटाएंसुन्दर। फिर निकल पड़ेंगे कहीं साथ में।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई। जी जरूर
हटाएंNice Post. It was sad to miss the Satopanth but this is life.
जवाब देंहटाएंThanks bhai, yes this is life
हटाएंSachin ji bahut sunder yatra varnan, umeed hai ki ap jAldi Santopanth jaenge.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रतिमा जी।
हटाएंबहुत बढ़िया फ़ोटो
जवाब देंहटाएंधन्यवाद हर्षिता जी..
हटाएंहम और आगे जाने के इच्छुक थे उस दिन नीलकंठ की तरफ लेकिन बारिश आने लगी थी और मेरे पास उससे बचने का कोई जुगाड़ नहीं था ! माणा हमेशा से ही आकर्षित करता है और भीमशिला तक अब लोग जाने लगे हैं ! फोटो बहुत ही शानदार हैं !!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद योगी जी संवाद बनाए रखे।
हटाएंउस दिन अगर मौसम ना बिगडता तो नीलकंठ पर्वत के चरण छु आते। माणा गांव के पास सरस्वती नदी के बहुत नजदीक कुछ पर्यटक चले जाते है जो सुरक्षा की लिहाज से उचित नही है।
इतनी यात्रा भी कम नहीं होती है। बहुत ही बढ़िया फोटोग्राफी और सुन्दर वर्णन किया है आपने।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संदीप सिंह जी।
हटाएंत्यागी जी...
जवाब देंहटाएंये लेख आपका बहुत रोमांचक रहा ....पढकर मजा आ गया... |
घुम्मकड मित्रो का साथ घूमने का आनंद ही कुछ अलग होता है ...|
चलो नील कंठ बेस केम्प तक न जा सके तो क्या हुआ पास तक तो हो आये.... बहुत से लोग यहाँ तक भी नही पहुच पाते है...
सतोपंथ न कर पाए इसका दुख हमे भी हुआ पर ...जिम्मेदारिय पहले है .... चलो फिर कभी सही...
चित्र अच्छे लगे पर कुछ कम रहे...
धन्यवाद रितेश जी।
हटाएंबहुत सुन्दर वर्णन.......
जवाब देंहटाएंप्रसन्नवदन चतुर्वेदी जी आपका बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंकोई बात नही अगली बार सही
जवाब देंहटाएंजी जावेद जी
हटाएंपहली बार नाम सुना। काफी। खूबसूरत तस्वीरें हैं। जामे का मन हो रहा है। नेक्स्ट वीक से प्रोग्राम है महीने में व बार दिल्लीबसे बहार घूमने का।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रोहिताश जी।
हटाएंबद्रीनाथ अभी सितम्बर 2017 मे मै भी घूमकर आया माणा तक तो गया लेकिन उससे आगे नही जा पाया इधर पादुकाचरण के दर्शन भी किये लेकिन नीलकंठ तक नही जा पाया बाहुत सुकून मिलता है वहाँ जाकर मजा आ गया आपकी लेख पढकर साधुवाद
जवाब देंहटाएंधन्यवाद देव रावत जी। जय बद्रीनाथ
हटाएंबहुत सुंदर शब्दों में वर्णन किया है उसी समय हम भी अपने परिवार के साथ बद्रीनाथ जी मे दर्शन करने गए थे और माना गाँव भी होकर आए गुप्त सरस्वती रोमांचित करती है
जवाब देंहटाएंवैसे हम दो तीन साल में एकबार बद्रीनाथ धाम में प्रभु की कृपा से पहुंच ही जाते हैं अब भी सिंतबर में प्लान तैयार है आगे भगवनक्रपा !!
धन्यवाद भाई जी आपका। बद्रीनाथ जी की सब कृपया है
जवाब देंहटाएंभले ही फोटू डिलीट हो जाये पर स्मृति पर जो फोटू अंकित रहते है वो कभी डिलीट नही होते😊बहुत बढ़िया यात्रा थी पुराने सभी लोग दिख रहे हैं😊
जवाब देंहटाएंआप ने बिल्कुल सही फरमाया बुआ जी🙏🏼
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