ओरछा यात्रा
कुछ ब्लॉगर मित्र व कुछ घुमक्कड़ मित्र जिनको मैं सिर्फ फेसबुक व व्हाट्सएप या फिर ब्लॉग के माध्यम से ही जानता था। उनसे मिलने का अवसर बना। क्योकि मध्य प्रदेश में बुंदेलों की राजधानी रही ओरछा नगरी में हम सबने मिलने का कार्यक्रम बनाया। सभी दोस्तों ने आने की रजामंदी दे दी थी। मेरा भी मन ओरछा जाने का था लकिन मेरे साथ एक नहीं ब्लकि कई दुविधा आ गयी। 22 दिसम्बर को मेरा बर्थडे है और मेरा परिवार संग जयपुर घूमने का कार्यक्रम बन हुआ था। वो तो मुझे कैंसिल करना पडेगा साथ में चाचा के लड़के के साथ 21 दिसम्बर को केदारकांठा ट्रेक भी था। ट्रैकिंग के लिए घर से मंजूरी भी मिल गयी थी, मतलब जयपुर ट्रिप आगे हो सकती थी। तो उधर 20 को ललित व वकील साहब जिनके साथ में पहले भी यात्रा पर जा चुका हूं । उन्होंने भी अयोधया व लखनऊ घूमने का प्रोग्राम बनाया हुआ था। लकिन सबको मैंने मना कर दिया, वैसे जाने का मन था लकिन सब कार्यक्रम इतने आस पास बन रहे थे, की किसी एक में ही जाना हो पायेगा। फिर ओरछा भी कैंसिल हो जाता। इसलिए मैंने भी निर्णय ले लिया था की ओरछा ही जाना है। ओरछा जाना इसलिए महत्वपूर्ण था क्योकि कई राज्यो से 40 से ऊपर घुमक्कड़ दोस्त मिल रहे थे। इस अवसर को मैं भी छोड़ना नहीं चाहता था। ओरछा में घुमक्कड़ दोस्त व आबकारी निरीक्षक मुकेश पांडेय जी ने इस कार्यक्रम को सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। और बहुत अच्छे ढंग से कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार भी की। इसलिए मैंने भी 23 दिसम्बर की सुबह दिल्ली से अपनी कार से चलने का प्रोग्राम तय कर दिया।
23 दिसम्बर 2016
तय कार्यक्रम के अनुसार मैं, अपने परिवार (पत्नी और बेटे ) संग ओरछा यात्रा के लिए सुबह 7 बजे घर से निकल पड़ा। पेट्रोल पंप पर जाकर कार की टंकी फुल करा दी गयी और भगवान का नाम लेकर यात्रा शुरू कर दी। आज मुझे ग्वालियर ही रुकना था। क्योकि मैंने कल ही GOibibo app से होटल बुक कर दिया था। जब परिवार साथ होता है, तब नयी जगह हो या देखी हुई ,पहले ही होटल बुक कर लेता हूं , होटल बुक करने से पहले उस होटल के बारे में कुछ रिव्यु पढ़ लेता हूं। जिससे होटल के बारे में थोड़ा कुछ पता चल ही जाता है।
घर से चलने के बाद मयूरविहार से होते हुए अक्षरधाम मंदिर फ्लाईओवर के नीचे से होते हुए नॉएडा की तरफ हो लिए। कुछ देर में हम जे ० पी० के नोएडा- आगरा एक्सप्रेस वे पर पहुच गए। यह हाइवे बहुत ही चौड़ा और बेहतरीन बना है। लकिन सीमेंट से बना होने के कारण टायर बहुत आवाज करते है। और अगर टायर कही से कटा हो तो नया डलवा लेना चाइये नहीं तो इस रोड पर टायर फटने की बहुत खबर आती रहती है। वैसे रोड इतना शानदार है की गाड़ी सरपट दौड़ने लगती है। कुछ ही सैकिंडो में कार हवा से बात करने लगती है। आगरा तक ऐसा ही शानदार रोड बना है। नोएडा से आगरा तक सफर के लिए आपको 415 रुपए का टोल टैक्स देना होता है। लगभग 11:30 पर हम आगरा पहुँच गए। लकिन आज शुक्रवार था और ताजमहल आज के दिन बंद रहता है इसलिए आगरा से बाहर निकल गए और ग्वालियर रोड पर चल पड़े। आगरा से ग्वालियर की दूरी 122 km है। आगरा से चलकर धौलपुर पहुचे फिर चम्बल नदी पार कर हम मध्य प्रदेश की सीमा में आ गए। बाबा देव पूरी का मंदिर दूर से दिख रहा था। इनकी यहाँ पर बहुत मान्यता है। पिछली बार जब में यहाँ से निकला था तब देवपुरी बाबा के दर्शन करने भी गया था। आज दूर से ही प्रणाम कर लिया।
आगरा से ग्वालियर तक रोड अच्छा बना है। मुरैना भी पार हो गया पहले रोड के दोनों तरफ मुरैना की रेवड़ी गज्जक की बहुत सी दुकाने हुआ करती थी लकिन आज मुझे नहीं दिखाई दी। शायद रोड चौड़ीकरण की भेंट चढ़ गयी होंगी। इधर आकर सब बड़ा खुला सा लग रहा था ,लंबे लंबे खेत दिख रहे थे जिसमे सरसों की फसल उगी हुई थी और सरसों के पीले पीले फूल एक अलग ही समां बना रहे थे। लगभग दोपहर के 1 :45 पर हम ग्वालियर शहर पहुँच गए। रेलवे स्टेशन के आस पास ही होटल था , गूगल मैप से उसकी लोकेशन देखी और गूगल बाबा ने कुछ ही मिनटों में होटल ग्रेस में पंहुचा दिया। रूम तैयार था साफ़ सुथरा लग रहा था। कुल मिलाकर यह कह सकता हू की फॅमिली के साथ यहाँ रुका जा सकता है।
कुछ देर रूम पर आराम किया और फिर लगभग 2 :30 बजे हम ग्वालियर फोर्ट की तरफ निकल पड़े। वैसे मैंने पहले भी यह किला देखा हुआ है जब मैं 2014 को यहाँ आया था। लकिन बहुत से महल नहीं देख पाया था। किले तक जाने के दो रास्ते है एक पैदल का तो दूसरे(उरवाई द्धार) से गाड़ी किले के अंदर तक चली जाती है। पहले हम मानमंदिर महल देखने के लिए गए। जिसे राजा मानसिंह तोमर ने बनवाया था। महल देखने के लिए 15 रुपए की टिकेट लगती है। दो टिकेट ले लिए गए। क्योकि बच्चो का टिकेट नहीं लगता है। इस महल के बारे में, मैं पहले लिख चुका हूं, इसलिए दिए गए लिंक पर क्लिक कर आप पढ़ सकते है। मान महल देखने के बाद हम जहांगीर महल देखने के लिए गए। यहाँ पर 10 रुपए का टिकेट था और साथ में कैमरे या मोबाइल से फोटो लेने का 25 रुपए का टिकेट अलग था। दो टिकेट और एक कैमरे का टिकेट लेने के बाद हम अंदर चले गए, अंदर देखा तो यहाँ पर कई महल बने है। चलो बारी बारी से सभी को देखा जायेगा।
पहले हम कर्णमहल में गए यह महल ज्यादा बड़ा नहीं है, पर इसकी बनावट अंदर से बहुत ही सुन्दर है। इस तीन मंजिला ईमारत में खुले खुले कमरे और जालीदार खिड़किया लगी है। यह महल काफी हवादार है। इस महल को तोमर वंश के दूसरे राजा कीर्ति सिंह ने बनवाया था। उनका एक नाम कर्ण सिंह भी था। इसलिए इस महल का नाम कर्ण महल पड़ा। इस महल के निचले तल के एक कमरे में बहुत सी चमगादड़ छत पर लटकी हुई थी।
कर्णमहल के ही सामने विक्रममहल बना है। जिसका निर्माण राजा मानसिंह के बड़े बेटे विक्रमादित्य सिंह ने करवाया था। वह बड़े शिव भक्त थे। एक बार उन्हें मुगलो ने दिल्ली बुलवाया लकिन वो दिल्ली नहीं गए।बाद में मुगलो ने ग्वालियर के किले पर कब्ज़ा कर लिया था। इस महल में एक मंदिर भी था जिसे मुगलो ने तोड़ दिया था। वैसे आज भी एक मंदिर यहाँ बना था जो शायद बाद में बना होगा।
अब हम जहांगीर महल की तरफ चल पड़े। जहांगीर महल के पास ही एक बड़ा सा कुंड बना है। जिसे जौहरकुण्ड भी कहा जाता है। यह कुंड दिखने में बड़ा सुन्दर पर्तित हो रहा था। लकिन इसकी साफ़ सफाई पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया जा रहा है क्योकि पानी में कूड़ा करकट दिख रहा था। कुंड के आस पास भी दो तीन इमारते बनी हुई थी। जिसमे एक भीम सिंह की छतरी भी थी। लकिन देवांग और पत्नी जी ने उधर जाने से मना कर दिया। अब हम जहांगीर महल की तरफ मुड़ गए। जहांगीर महल अन्य महलो की तुलना में कुछ ऊँचा है। दस बाराह सीढिया चढ़ने के बाद हम महल में पहुचे। मुगलो ने ही इस महल का निर्माण कराया था। महल के बीचो बीच एक बड़ा सा मैदान है और उसके बीच में एक पानी का कुंड भी था। महल में चारो तरफ कमरे बने है और बीच बीच में बड़े बड़े दरवाजे बने है। इस महल की वास्तुकला अन्य महलो से अलग है। कुछ देर महल में बैठे रहे। यहाँ भी दिल्ली व अन्य राज्यो की तरह इन इमारतों के हर कोने पर प्रेमी ज़ोडो का कब्ज़ा है। महल का हर कोना और हर पत्थर पर इनका नाम लिखा है। जो बेहद शर्म की बात है इन लोगो की वजह से हम अपनी इन धरोधर इमारतों को बर्बाद होते देख रहे है। कुछ देर बाद हम महल से बाहर आ गए और चल पड़े सास बहु के मंदिर की तरफ।
बाहर की तरफ चले ही थे की एक राजस्थानी कलाकार कुछ सितारा किस्म का वाघयंत्र बजा रहा था। मैंने उससे पूछा की आप क्या बजा रहे है तब उसने उसका नाम रावेनथा बताया। वहाँ से चलकर एक कैंटीन में चाय पी गयी और फिर गाड़ी लेकर सास बहु के मंदिर गए। सास बहु का प्राचीन नाम सहस्त्रबाहु मंदिर था ये भगवान विष्णु का मंदिर था लकिन मुग़ल सेना ने इस मंदिर को खंडित कर दिया। छोटी बड़ी सब मुर्तिया तोड़ डाली गयी।
यहाँ से हम तेली के मंदिर की तरफ गए यह मंदिर भी पूरी तरह से खंडित है। मंदिर के ही गार्ड ने हमे बताया की यह मंदिर भी विष्णु जी का ही था क्योकि मंदिर के ऊपरी भाग पर गरुड़ जी विराजमान है। और गरुड़ जी विष्णु जी की सवारी है इसलिए यह मंदिर भी विष्णु जी का ही था। लकिन अब इस मंदिर में कोई भी मूर्ति नहीं है और अंदर चमगादड़ो का घर बन गया है। वैसे इस मंदिर की ऊंचाई बहुत है और बाहर से सुन्दर दिखता है।
मंदिर के ही पास सिंधिया स्कूल है और गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ भी नजदीक ही है। यहाँ पर जहांगीर ने 6 वें सिख गुरु गुरु हरगोविन्द सिंह जी को कैद में रखा था। बाद में साल 1970 में यहाँ गुरुद्वारा बनाया गया। मेरी पत्नी और बेटा चल चल कर थक गए इसलिए गुरुद्वारा साहिब नहीं जा पाए और किले से बाहर आ गए। अब दिन भी छिप चुका था और दूर सूरज भी ढल रहा था। हम भी सीधा होटल पहुँचे। खाना खाया गया और सोने को चले गए।
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अब कुछ फोटो देखे जाये।
घर से चलने के बाद मयूरविहार से होते हुए अक्षरधाम मंदिर फ्लाईओवर के नीचे से होते हुए नॉएडा की तरफ हो लिए। कुछ देर में हम जे ० पी० के नोएडा- आगरा एक्सप्रेस वे पर पहुच गए। यह हाइवे बहुत ही चौड़ा और बेहतरीन बना है। लकिन सीमेंट से बना होने के कारण टायर बहुत आवाज करते है। और अगर टायर कही से कटा हो तो नया डलवा लेना चाइये नहीं तो इस रोड पर टायर फटने की बहुत खबर आती रहती है। वैसे रोड इतना शानदार है की गाड़ी सरपट दौड़ने लगती है। कुछ ही सैकिंडो में कार हवा से बात करने लगती है। आगरा तक ऐसा ही शानदार रोड बना है। नोएडा से आगरा तक सफर के लिए आपको 415 रुपए का टोल टैक्स देना होता है। लगभग 11:30 पर हम आगरा पहुँच गए। लकिन आज शुक्रवार था और ताजमहल आज के दिन बंद रहता है इसलिए आगरा से बाहर निकल गए और ग्वालियर रोड पर चल पड़े। आगरा से ग्वालियर की दूरी 122 km है। आगरा से चलकर धौलपुर पहुचे फिर चम्बल नदी पार कर हम मध्य प्रदेश की सीमा में आ गए। बाबा देव पूरी का मंदिर दूर से दिख रहा था। इनकी यहाँ पर बहुत मान्यता है। पिछली बार जब में यहाँ से निकला था तब देवपुरी बाबा के दर्शन करने भी गया था। आज दूर से ही प्रणाम कर लिया।
आगरा से ग्वालियर तक रोड अच्छा बना है। मुरैना भी पार हो गया पहले रोड के दोनों तरफ मुरैना की रेवड़ी गज्जक की बहुत सी दुकाने हुआ करती थी लकिन आज मुझे नहीं दिखाई दी। शायद रोड चौड़ीकरण की भेंट चढ़ गयी होंगी। इधर आकर सब बड़ा खुला सा लग रहा था ,लंबे लंबे खेत दिख रहे थे जिसमे सरसों की फसल उगी हुई थी और सरसों के पीले पीले फूल एक अलग ही समां बना रहे थे। लगभग दोपहर के 1 :45 पर हम ग्वालियर शहर पहुँच गए। रेलवे स्टेशन के आस पास ही होटल था , गूगल मैप से उसकी लोकेशन देखी और गूगल बाबा ने कुछ ही मिनटों में होटल ग्रेस में पंहुचा दिया। रूम तैयार था साफ़ सुथरा लग रहा था। कुल मिलाकर यह कह सकता हू की फॅमिली के साथ यहाँ रुका जा सकता है।
कुछ देर रूम पर आराम किया और फिर लगभग 2 :30 बजे हम ग्वालियर फोर्ट की तरफ निकल पड़े। वैसे मैंने पहले भी यह किला देखा हुआ है जब मैं 2014 को यहाँ आया था। लकिन बहुत से महल नहीं देख पाया था। किले तक जाने के दो रास्ते है एक पैदल का तो दूसरे(उरवाई द्धार) से गाड़ी किले के अंदर तक चली जाती है। पहले हम मानमंदिर महल देखने के लिए गए। जिसे राजा मानसिंह तोमर ने बनवाया था। महल देखने के लिए 15 रुपए की टिकेट लगती है। दो टिकेट ले लिए गए। क्योकि बच्चो का टिकेट नहीं लगता है। इस महल के बारे में, मैं पहले लिख चुका हूं, इसलिए दिए गए लिंक पर क्लिक कर आप पढ़ सकते है। मान महल देखने के बाद हम जहांगीर महल देखने के लिए गए। यहाँ पर 10 रुपए का टिकेट था और साथ में कैमरे या मोबाइल से फोटो लेने का 25 रुपए का टिकेट अलग था। दो टिकेट और एक कैमरे का टिकेट लेने के बाद हम अंदर चले गए, अंदर देखा तो यहाँ पर कई महल बने है। चलो बारी बारी से सभी को देखा जायेगा।
पहले हम कर्णमहल में गए यह महल ज्यादा बड़ा नहीं है, पर इसकी बनावट अंदर से बहुत ही सुन्दर है। इस तीन मंजिला ईमारत में खुले खुले कमरे और जालीदार खिड़किया लगी है। यह महल काफी हवादार है। इस महल को तोमर वंश के दूसरे राजा कीर्ति सिंह ने बनवाया था। उनका एक नाम कर्ण सिंह भी था। इसलिए इस महल का नाम कर्ण महल पड़ा। इस महल के निचले तल के एक कमरे में बहुत सी चमगादड़ छत पर लटकी हुई थी।
कर्णमहल के ही सामने विक्रममहल बना है। जिसका निर्माण राजा मानसिंह के बड़े बेटे विक्रमादित्य सिंह ने करवाया था। वह बड़े शिव भक्त थे। एक बार उन्हें मुगलो ने दिल्ली बुलवाया लकिन वो दिल्ली नहीं गए।बाद में मुगलो ने ग्वालियर के किले पर कब्ज़ा कर लिया था। इस महल में एक मंदिर भी था जिसे मुगलो ने तोड़ दिया था। वैसे आज भी एक मंदिर यहाँ बना था जो शायद बाद में बना होगा।
अब हम जहांगीर महल की तरफ चल पड़े। जहांगीर महल के पास ही एक बड़ा सा कुंड बना है। जिसे जौहरकुण्ड भी कहा जाता है। यह कुंड दिखने में बड़ा सुन्दर पर्तित हो रहा था। लकिन इसकी साफ़ सफाई पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया जा रहा है क्योकि पानी में कूड़ा करकट दिख रहा था। कुंड के आस पास भी दो तीन इमारते बनी हुई थी। जिसमे एक भीम सिंह की छतरी भी थी। लकिन देवांग और पत्नी जी ने उधर जाने से मना कर दिया। अब हम जहांगीर महल की तरफ मुड़ गए। जहांगीर महल अन्य महलो की तुलना में कुछ ऊँचा है। दस बाराह सीढिया चढ़ने के बाद हम महल में पहुचे। मुगलो ने ही इस महल का निर्माण कराया था। महल के बीचो बीच एक बड़ा सा मैदान है और उसके बीच में एक पानी का कुंड भी था। महल में चारो तरफ कमरे बने है और बीच बीच में बड़े बड़े दरवाजे बने है। इस महल की वास्तुकला अन्य महलो से अलग है। कुछ देर महल में बैठे रहे। यहाँ भी दिल्ली व अन्य राज्यो की तरह इन इमारतों के हर कोने पर प्रेमी ज़ोडो का कब्ज़ा है। महल का हर कोना और हर पत्थर पर इनका नाम लिखा है। जो बेहद शर्म की बात है इन लोगो की वजह से हम अपनी इन धरोधर इमारतों को बर्बाद होते देख रहे है। कुछ देर बाद हम महल से बाहर आ गए और चल पड़े सास बहु के मंदिर की तरफ।
बाहर की तरफ चले ही थे की एक राजस्थानी कलाकार कुछ सितारा किस्म का वाघयंत्र बजा रहा था। मैंने उससे पूछा की आप क्या बजा रहे है तब उसने उसका नाम रावेनथा बताया। वहाँ से चलकर एक कैंटीन में चाय पी गयी और फिर गाड़ी लेकर सास बहु के मंदिर गए। सास बहु का प्राचीन नाम सहस्त्रबाहु मंदिर था ये भगवान विष्णु का मंदिर था लकिन मुग़ल सेना ने इस मंदिर को खंडित कर दिया। छोटी बड़ी सब मुर्तिया तोड़ डाली गयी।
यहाँ से हम तेली के मंदिर की तरफ गए यह मंदिर भी पूरी तरह से खंडित है। मंदिर के ही गार्ड ने हमे बताया की यह मंदिर भी विष्णु जी का ही था क्योकि मंदिर के ऊपरी भाग पर गरुड़ जी विराजमान है। और गरुड़ जी विष्णु जी की सवारी है इसलिए यह मंदिर भी विष्णु जी का ही था। लकिन अब इस मंदिर में कोई भी मूर्ति नहीं है और अंदर चमगादड़ो का घर बन गया है। वैसे इस मंदिर की ऊंचाई बहुत है और बाहर से सुन्दर दिखता है।
मंदिर के ही पास सिंधिया स्कूल है और गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ भी नजदीक ही है। यहाँ पर जहांगीर ने 6 वें सिख गुरु गुरु हरगोविन्द सिंह जी को कैद में रखा था। बाद में साल 1970 में यहाँ गुरुद्वारा बनाया गया। मेरी पत्नी और बेटा चल चल कर थक गए इसलिए गुरुद्वारा साहिब नहीं जा पाए और किले से बाहर आ गए। अब दिन भी छिप चुका था और दूर सूरज भी ढल रहा था। हम भी सीधा होटल पहुँचे। खाना खाया गया और सोने को चले गए।
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अब कुछ फोटो देखे जाये।
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| मान सिंह महल |
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| मान मंदिर महल |
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| मान मंदिर महल के अंदर एक जगह |
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| देवांग जहांगीर महल के बाहर खड़ा हुआ है |
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| कर्ण महल ,ग्वालियर |
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| मैं सचिन त्यागी कर्ण महल पर सेल्फी लेते हुए। |
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| कर्ण महल से ग्वालियर दिखता हुआ। |
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| कर्ण महल में ऊपर बना एक हवादार जगह। |
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| कर्ण महल से दिखता हुआ विक्रम महल। |
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| एक पूरानी तोप कभी इससे भी गोले दागे गए होंगे। |
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| विक्रम महल |
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| विक्रम महल |
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| जौहर कुंड और भीम सिंह की छतरी। |
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| जहांगीर महल ,ग्वालियर |
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| जहांगीर महल के बीच में बना एक जल कुंड। |
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| एक कलाकार जो वहाँ एक वाघयंत्र बजा रहा था। |
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| सास बहू मंदिर का इतिहास। |
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| सास बहू मंदिर। |
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| देवांग |
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| सास बहू के मंदिर में मुख्य कक्ष जहाँ कभी मूर्ति हुआ करती थी अब चमगादड़ो का राज है। |
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| सास बहू मंदिर की हर मूर्ति खंडित की हुईं है। |
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| तेली का मंदिर |
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| तेली का मंदिर |
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| तेली का मंदिर |
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| तेली का मंदिर |
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| जैन तीर्थकारों की बनायीं गयी विशाल मूर्तिया। |








































