23 मार्च 2017
हम लोग कुमाऊँ रेजिमेंट संग्रहालय देखकर तकरीबन सुबह के 11 बजे रानीखेत से चल पडे। हमे आज जिम कार्बेट पार्क के नजदीक रूकना था। इसलिए रानीखेत से सोनी गांव होते हुए मोहान वाला रास्ता चुना गया। वैसे इस रास्ते पर ट्रेफिक बहुत कम है और जरूरी सुविधाओं की भी बहुत कमी है। इसका जिक्र बाद में करेंगे। बहुत पहले एक बार मै इसी रास्ते से रामनगर गया था। तब बहुत से जानवर देखने को मिले थे। हम लोग गनयाडौली पहुचें यही से सोनी के लिए रास्ता अलग हो जाता है। जल्द ही हम तारीखेत (ताडीखेत) पहुँच गए। यहां पर भी कुछ होटल बने है रूकने के लिए। यहां पर मैने एक दुकान से पानी की बोतलें खरीदी पीने के लिए। यहां से कुछ दूर चलने पर गोलू देवता के मन्दिर के लिए रास्ता अलग हो जाता है वैसे गोलू देवता का मुख्य मन्दिर अलमौडा में है। ताडीखेत में मकान दुकान बन रहे थे इसका मतलब यहां पर भी पर्यटकों को अब बढिया सुविधाएं मिलने लगेगी निकट भविष्य में । सड़क लगभग समानतर ही चल रही थी ना ज्यादा चढाई और ना ज्यादा ऊंचाई। सड़क के दोनो तरफ चीड के पेड दिख रहे थे वह गर्मियों में उनमे लगी आग की निशानी भी दिख रही थी। लगभग चीड का हर पेड नीचे से जला हुआ था। जंगल की यह आग बहुत खतरनाक होती है। वनस्पति को तो नुकसान होता ही है साथ में वायु प्रदुषण व जानवरो के लिए भी यह बेहद खतरनाक साबित होती है।
कुछ ही देर में हम सोनी गांव पहुँच गए। रानीखेत से सोनीगांव लगभग 16 km की दूरी पर है। सोनीगांव से कुछ चलने के ही बाद दाहिंने हाथ पर बीसौना के लिए रास्ता कटता है बस उसी रास्ते पर लगभग 2.5km चलने पर बिनसर महादेव मन्दिर है। इसे रानीखेत का बिनसर भी कहते है एक बिनसर अलमोडा के पास भी है। जहां पर बिनसर वन्य सेंचुरी (अभ्यारण्य) भी है। सोनी का बिनसर महादेव मन्दिर चीड, देवदार व अन्य गगनचुंबी पेडो के बीच बना है। यह समुद्रतल से लगभग 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसलिए गर्मीयों में भी यहां पर थोडी ठंड का अहसास बना रहता है। हमे दूर एक मोड से ही इस मन्दिर की भव्यता दिखाई पड रही थी। मन्दिर में घंटे - घंटी का बजाना मना है केवल आरती के समय ही घंटी बजा सकते है। वो इसलिए की यहा पर लोग शांत वातावरण में शांति से ध्यान लगाने आते है। यहां पर एक गुरूकुल भी है जहां पर बच्चे पढते भी है शायद उनकी पढाई में खलल ना पडे इसलिए भी मन्दिर में घंटी बजाना मना हो सकता है।
हमने बाहर ही जूते उतार दिए और मन्दिर की ओर चले गए। यहां पर फोटोग्राफी व विडियोग्राफी करना मना है। हम सीधे महादेव के मन्दिर मे गए। हमने यहां पर स्थापित प्राचीन शिवलिंग के दर्शन किये। यहां पर हमे कोई नही दिख रहा था। चाहता तो कुछ फोटो ले सकता था पर लिये नही। पास में कुछ मन्दिर और भी बने है। कुछ मन्दिर ऊपर के तल पर भी बने है। जिन्हे देखकर हम वापिस नीचे आ गए। नीचे एक कक्ष में धूनी जल रही थी। एक तरफ नागा बाबा मोहन राम गिरी जी का फोटो लगा हुआ था जिन्होने इस मन्दिर की पुनः स्थापना की थी व दूसरी तरफ नीम करौली बाबा का फोटो लगा हुआ था। इस कक्ष में बडी शांति थी लग रहा था जैसे इस कक्ष में कोई और भी हो। कमरे में हल्का हल्का अंधेरा था। एक ज्योति जल रही थी। थोडी देर बाद एक पंद्रह सोलह साल का एक बालक आया जो यही पर पढता था। उसने हमे खाने के लिए मुरमुरे का प्रसाद दिया। फिर हम मन्दिर से बाहर आ गए। मन्दिर का वातावरण तो दिल को आन्नदित कर ही रहा था लेकिन बाहर का वातावरण उससे भी अच्छा लग रहा था। चारो और देवदार के वक्ष फैले थे। दूर पक्षियो की आवाज आ रही थी। हवा में शीलता का अहसास हो रहा था। ऐसे वातावरण में भला कौन रहना नही चाहेगा।
यह मन्दिर कैसे प्रसिद्ध हुआ इसके पीछे एक कहानी है-- कहानी के अनुसार पहले यहां पर बहुत से मनिहार ( चूड़ी बनाने वाले) रहा करते थे। एक मनिहार की गाय दिन भर जंगल मे चरती व शाम को जब वह वापस लौटती तो उसके थनो में दूध नही होता था। ऐसा हर रोज होता एक बार मनिहार गाय के पीछे जंगल में गया। वहां उसने देखा की गाय के थनो से दूध स्वयं ही निकल रहा है और एक पत्थर पर गिर रहा है। उसने उस पत्थर को तो़ड कर फेंक दिया। फिर किसी मनिहार को स्वप्न दिखलाई दिया जिसमे उन्हे गांव छोडने को कहा। सभी मनिहार गांव को छोड कर चले गए। फिर किसी बूढे दम्पति को जो नि:संतान थे वो वही जंगल में ही रहते थे उन्हे एक दिन सपने मे एक बाबा ने आदेश दिया की पास नदी मे एक शिवलिंग पडा है उसे वहां से निकाल कर पूजा अर्चना करो और निश्चित जगह पर स्थापित करो। बूढे दम्पती ने वैसा ही किया जैसा उन्हे सपने में दिखा। उन्होने शिवलिंग को स्थापित किया बाद में उन पर भगवान की ऐसी कृपा हुई की उन्हें कुछ दिन बाद पुत्र प्राप्ती भी हुई। बाद में जूना अखाडे के नागा बाबा मोहन राम गिरी जी ने यहा पर भव्य मन्दिर बनवाया। आज यहां पर उसी शिव मन्दिर व चमत्कारी शिवलिंग के दर्शन करने काफी भक्त आते है।
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रानीखेत से थोड़ा चलते ही |
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आ गया बिनसर महादेव मंदिर |
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मंदिर का बाहरी प्रवेश द्धार |
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मंदिर परिसर |
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मंदिर का मुख्य द्वार |
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मैं सचिन त्यागी बिनसर महादेव( सोनी ) पर |
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अब आगे चलते है |
यहां से हम जिम कार्बेट पार्क की तरफ चल पडे। आज हमे वही रूकना था। कुछ दूर चले तो गाडी का टायर जिसमे हमने पंचर लगाया था वह पंचर हट गया था और हवा निकल रही थी। हमने गाडी को एक तरफ खडा कर, गाडी में रखा दूसरा (स्टपनी) टायर लगा दिया। यह रास्ता कम चलता है। एक्का दुक्का गाडी ही चलती हुई दिख रही थी। एक छोटा सा गांव आया उसके बाद एक जगह सडक टूटी हुई थी शायद कुछ दिन पहले लैंडस्लाईड हुई होगी। इस जगह को आराम से पार किया गया लेकिन एक पत्थर ने हमारा पिछला टायर जो कुछ देर पहले लगाया था वह काट दिया जिसकी वजह से टायर की हवा निकल गई। आसपास कोई दुकान भी नही थी। और यहां से मोहान भी अभी लगभग 28 किलोमीटर दूर था। फिलहाल पुराना पंचर वाला टायर ही लगा दिया और अपने साथ लाए छोटे से कम्प्रैसर से हवा भर दी। हमने रास्ते में पडे कई गांव में पता किया की कोई पंचर लगा दे पर कोई नही मिला। फिलहाल हम हर दस किलोमीटर पर हवा भरते भरते मोहान पहुंचे। हमारा यह सफर बहुत लम्बा व थकान से भरा हुआ महसूस हुआ।
मोहान पहुंच कर दोनो टायर दुरूस्त करवाए और मोहान से आगे चलकर जिम कार्बेट पार्क के धनगढी़ गेट पर पहुँचे। यहां से लोग जिम कार्बेट पार्क में जंगल सफारी करने जाते है। लेकिन हम आए थे यहां पर बने एक संग्रहालय को देखने लेकिन अफसोस वह मरम्मत के चलते बंद था। फिर हम गार्जिया देवी के दर्शन करने के लिए गए। गार्जिया देवी मैं पहले भी दो बार आ चुका हूं। लेकिन हर बार यहां आना अच्छा ही लगता है। गिरिजा देवी(गार्जिया देवी) आसपास के क्षेत्र में बहुत विख्यात है, इनकी बडी मान्यता है। यह हिमालय पुत्री पार्वती का ही एक रूप है। कोसी नदी के बीचो बीच एक छोटी व ऊंची सी चट्टान पर इनका मन्दिर बना है। मान्यता है की यह चट्टान कभी बहती हुई यहां तक आई थी। हम सबने गार्जिया देवी के दर्शन किये व कुछ देर कोसी नदी के तट पर बैठे रहे। देवांग को तो मेने कोसी में नहला भी दिया। लगभग दोपहर के चार बज चुके थे और भूख भी लग रही थी इसलिए हम यहां से रामनगर की तरफ चल पडे। यह रास्ता पूरा जंगल से ही गुजरता है। जंगली जानवर दिखना आम बात है। हमे भी कुछ हिरण दिखलाई पडे। आगे चलकर एक रेस्टोरेंट पर खाना खाया गया। अब रात बिताने के लिए होटल देखे गए कुछ में कमरे ही नही मिले तो कुछ बहुत मंहगे थे। आखिरकार एक नया होटल (कार्बेट कम्फर्ट लॉज) या कहे की रिजॉर्ट मिल गया। थोडा मंहगा था पर बढिया था फाईव स्टॉर होटल की फिलिंग आ रही थी यहां पर हमे। शाम को कुछ हिरण होटल के बाहर ही आ गए थे। होटल के मैनेजर (±918954820106) ने बताया की एक बार तो तेंदुआ आ गया था इधर तब एक हिरण होटल में आ गया था। होटल के बाहर घना जंगल ही था इसलिए शाम को जंगली जानवर दिख ही जाते है। हमने कल सुबह जंगल सफारी के लिए एक जीप भी बुक कर दी जो हमे कल सुबह 6 बजे लेने आ जाएगी। होटल के मैनेजर ने बताया की अगर आपको जंगली जानवर देखने है तो रात को तकरीबन 10 बजे गाडी से इसी सडक पर धनगढी नाला के आसपास हो आना आपको बहुत से जानवर रोड के आसपास ही मिल जाएगे। लेकिन हाथियों से व रास्ते में पडने वाले पानी के नालो से बच कर रहना। मेरा जाना पक्का था लेकिन ललित के छोटे बेटे को तेज बुखार व उल्टियां हो गई। वैसे उसको दवाई दे दी गई लेकिन रात को हमारा सड़क नापने का प्रोग्राम कैंसल हो गया। कुछ देर बाद हमने खाना खाया और सोने के लिए अपने कमरे में चले गए।
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रस्ते में पड़ा एक गांव का नाम |
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देवांग रस्ते में पड़े हुए चीड़ के फल /फूल लेता हुआ |
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ये रास्ते जो मंजिलो से भी खूबसूरत है |
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देवांग |
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टायर बदलते हुए ललित त्यागी जी |
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फोटो में इस पेड की विशालता का अनुमान नहीं हो रहा है पर ये पेड़ बहुत बड़ा था। |
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इस तिराहे पर भी हमने टायर में हवा भरी |
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कोसी नदी |
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गर्जिया देवी व कोसी नदी |
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गर्जिया देवी मंदिर ,रामनगर |
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जय माँ गिरिजा देवी |
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कैप्शन जोड़ें |
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होटल की दूसरी तरफ जंगल |
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होटल जिसमे हम ठहरे थे |
सचिन भाई, बेहतरीन फोटो और सुंदर यात्रा लेख | सोनीगाँव और रुचि ऐसे भी गाँव हैं इस तरफ |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नितिन। जी ऐसे गांव भी पडते है रास्ते में...
हटाएंगार्जिया देवी भी जाना बाकि है जबकि बिनसर महादेव के आगे से निकल गये थे पाताल भूवनेश्वर वाली यात्रा में,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संदीप भाई। आप जैसे घुमक्कड से यह जगह कैसे बची रह गई। चलो कोई नही अब की बार इधर से कोई कार्यक्रम बना डालना।
हटाएंसुन्दर वर्णन सचिन भाई.....कल सुबह मैं भी गर्जिया देवी के दर्शन के लिये गया था...बहुत सुंदर स्थान है गिर वहां से कल ही अल्मोड़ा आ गया था आज भी यहीं हूँ..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद डॉ0 साहब, बढिया है सर घुमक्कडी जिंदाबाद
हटाएंबढ़िया वर्णन सचिन जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद हितेश भाई
हटाएंबढ़िया सचिन भाई हमे भी यात्रा करा देते हो आप घर बैठे 😊😊👍
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अजय भाई, बस ऐसे ही हौसला बनाते रहे मेरा ☺
हटाएंगर्जिया देवी मंदिर बहुत पहले देखा था करीब 15 -16 साल पहले , तब शायद इस मंदिर के रास्ते में टिन की छत नहीं हुआ करती थी ! अब और भी सुन्दर लग रहा है !! बढ़िया यात्रा वर्णन पढ़ाया आपने मित्रवर सचिन त्यागी जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद योगी जी
हटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट त्यागी जी...
जवाब देंहटाएंगाड़ी पंचर होना यात्रा को ख़राब कर देता है पर ये सफर में तो चलता ही रहता है |
कार्बेट का रिसोर्ट का नाम क्या था और आपको एक कमरा कितने पड़ा
धन्यवाद आपको बिनसर महादेव और गिरिजा देवी की यात्रा करवाने के लिए
धन्यवाद रितेश जी। जी सही कहा सफर में यह सब चलता रहता है।
हटाएंइस मंदिर की विशेषता ही यही है।इसके आस पास का वातावरण।हर तरफ शांति और अलौकिकता का एहसास होता है।टैफिक तो कम है ही सुविधाएं भी इतनी नहीं पर फिर भी इस मार्ग पर सफर करने में बहुत आनंद आता है।नयनाभिराम दृश्यों से स्वागत होता है।
जवाब देंहटाएंजी रूपेश भाई वाकई यह मन्दिर व आसपास का जंगल बेहद खूबसूरत होने के साथ बडा अलौकिकता का अहसास कराता है। धन्यवाद मित्रवर 🙏
हटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट सचिन भाई,
जवाब देंहटाएंअगर रास्ते में गाड़ी ख़राब हो जाये सारा मज़ा ख़राब कर देता है, और साडी प्लानिंग पर भी उसका असर पड़ता है
धन्यवाद सिन्हा जी। हां आपने सही कहा पर वह सफर यादगार भी बन जाता है उन मुश्किलें के कारण।
जवाब देंहटाएंभीड़-भाड़ से अलग आपकी यह यात्रा बहुत ही बढ़िया रही ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गौरव भाई
हटाएंGood information. Garjiya Mandir
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