श्रावन मास के आरम्भ होते ही सभी शिवआलयों व अन्य मन्दिरो मे भक्तो का तांता लग जाता है.पुरूष हो या महिलाएं सभी पूर्णतय शिवभक्ति मे लीन होते है.
ऐसा माना गया है की श्रावन मास मे शिव के अलावा सभी देवता शयन(निंद्रा) करते है ओर सभी का काम शिव को ही करना पडता है.इसलिए यह सावन का महिना शिव(आशुतोष) की भक्ति का महिना माना गया है.शिव को जल्द प्रसन्न होने वाला भगवान माना गया है इसलिए उन्हे भोले बाबा भी कहा जाता है.भक्त शिव को प्रसन्न करने के लिए उनका जलाभिषेक करते है उन्हे धतुरा,सफेद पुष्प,बेल पत्थर अर्पण करते है जिससे शिव जल्द प्रसन्न होकर उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करे.
ऐसा माना गया है की मां पार्वती ने भी सावन के महिने मे व्रत रखकर शिव को पाया था,इसलिए सावन के महिने मे महिलाएं भी शिव भक्ति करती है चाहे व पूर्ण मास का व्रत रखे या सावन के सोमवारो का.
सावन के महिने में यात्राओ का दोर भी शुरू हो जाता है या यह कहे की शिव यात्राओ का बडा महत्व है.
कई प्रकार की यात्राएं आरम्भ हो जाती है जैसे-
1--कैलाश मानसरोवर की यात्रा,
2--आदि कैलाश व ओम पर्वत की यात्रा,
3--बाबा अमरनाथ की यात्रा,
4--कांवड़(काँवऱ) यात्रा...
कांवड़ यात्रा अन्य यात्राओ से सुगम व कम खर्चीली भी है..
कई प्रकार की यात्राएं आरम्भ हो जाती है जैसे-
1--कैलाश मानसरोवर की यात्रा,
2--आदि कैलाश व ओम पर्वत की यात्रा,
3--बाबा अमरनाथ की यात्रा,
4--कांवड़(काँवऱ) यात्रा...
कांवड़ यात्रा अन्य यात्राओ से सुगम व कम खर्चीली भी है..
काँवड़ यात्रा:-
सावन मास के शुरू होते ही कांवड़ यात्रा का भी शुभआरंम्भ हो जाता है.इस यात्रा मे शिव भक्त जिन्हे कांवड़ीयाँ भी कहा जाता है,भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हरिद्वार या गंगोत्री से गंगा जल ऊठा कर एक लम्बी पैदल यात्रा पर निकल पडते है,चाहे कितने भी कष्ट हो उनको पर वह शिव भक्ति मे लीन होकर सब सहते हुए,चलते रहते है,ओर सावन मास की शिवरात्री पर अपने गांव या शहर में पहुंच कर भगवान(शंकर) आशुतोष का जलाभिषेक करते है.
कांवड़ के भी कई रूप है:-
1*झूला कांवड़:-
यह कांवड़ झूला कांवड़ इसलिए कहलाती है क्योकी यह कांवड़ चाहे बांस से बनी हो या रस्सी के द्वारा लटकाकर,इस कांवड़ को कांवड़ीयों द्वारा विश्राम व भोजन के समय ऊपर हवा मे लटकाया या कहे झूलाया जाता है इस कांवड़ को जमीन या कही भी नीचे नही रखा जाता.पेड पर या कोई स्टेंड पर झूलायां जाता है.
2*खडी कांवड़:-
यह कांवड़ खडी कांवड़ इसलिए कहलाती है क्योकी इस पूरी यात्रा मे यह कांवड़ कन्धो पर ही रहती है अर्थात कांवड़ीये इस कांवड़ को न तो जमीन पर रख सकते है ओर न ही इसको झूला सकते है,
यदि जो कांवड़ीयाँ इस कांवड़ को लाता है उसे विश्राम या भोजन अथवा अन्य कोई भी काम करना हो तो उसे यह खडी कांवड़ किसी अन्य कांवड़ीये या किसी शिव सेवक को देनी पडती है.यह कांवड़ बडी कठीन होती है.पर शिव का आशिर्वाद से सब कठनाईयां दूर हो जाती है.
3* सुन्दर झांकीयां वाली कांवड़ यात्रा:-
इस कांवड़ मे कुछ कावडियां एक ग्रुप बना कर ट्रक,जीप,छोटे टेम्पो,ट्रेक्टर पर या अन्य वाहन पर शिव व अन्य भगवानो की बडी प्रतिमाएं लगाकर चलते है,फूलो से सजावट कर,
लाईट से सजीधझी यह झांकी कांवड बहुत सुंदर लगती है साथ मे चल रहे डी०जे० या अन्य गायन मंडली द्वारा इन झांकीयों को ओर सुन्दर बना देता है,यह बहुत आराम आराम से चलती है साथ मे अन्य कांवड़ीयाँ भी पैदल पैदल चलते रहते है इन झांकियो को देखने आसपास के गांव या शहर के लोग सड़को पर खडे हो जाते है ओर यह झांकीया ज्यादात्तर शाम को चलती है ओर दिन निकलने पर यह झाकियां रूक जाती है.
सावन मास के शुरू होते ही कांवड़ यात्रा का भी शुभआरंम्भ हो जाता है.इस यात्रा मे शिव भक्त जिन्हे कांवड़ीयाँ भी कहा जाता है,भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हरिद्वार या गंगोत्री से गंगा जल ऊठा कर एक लम्बी पैदल यात्रा पर निकल पडते है,चाहे कितने भी कष्ट हो उनको पर वह शिव भक्ति मे लीन होकर सब सहते हुए,चलते रहते है,ओर सावन मास की शिवरात्री पर अपने गांव या शहर में पहुंच कर भगवान(शंकर) आशुतोष का जलाभिषेक करते है.
कांवड़ के भी कई रूप है:-
1*झूला कांवड़:-
यह कांवड़ झूला कांवड़ इसलिए कहलाती है क्योकी यह कांवड़ चाहे बांस से बनी हो या रस्सी के द्वारा लटकाकर,इस कांवड़ को कांवड़ीयों द्वारा विश्राम व भोजन के समय ऊपर हवा मे लटकाया या कहे झूलाया जाता है इस कांवड़ को जमीन या कही भी नीचे नही रखा जाता.पेड पर या कोई स्टेंड पर झूलायां जाता है.
2*खडी कांवड़:-
यह कांवड़ खडी कांवड़ इसलिए कहलाती है क्योकी इस पूरी यात्रा मे यह कांवड़ कन्धो पर ही रहती है अर्थात कांवड़ीये इस कांवड़ को न तो जमीन पर रख सकते है ओर न ही इसको झूला सकते है,
यदि जो कांवड़ीयाँ इस कांवड़ को लाता है उसे विश्राम या भोजन अथवा अन्य कोई भी काम करना हो तो उसे यह खडी कांवड़ किसी अन्य कांवड़ीये या किसी शिव सेवक को देनी पडती है.यह कांवड़ बडी कठीन होती है.पर शिव का आशिर्वाद से सब कठनाईयां दूर हो जाती है.
3* सुन्दर झांकीयां वाली कांवड़ यात्रा:-
इस कांवड़ मे कुछ कावडियां एक ग्रुप बना कर ट्रक,जीप,छोटे टेम्पो,ट्रेक्टर पर या अन्य वाहन पर शिव व अन्य भगवानो की बडी प्रतिमाएं लगाकर चलते है,फूलो से सजावट कर,
लाईट से सजीधझी यह झांकी कांवड बहुत सुंदर लगती है साथ मे चल रहे डी०जे० या अन्य गायन मंडली द्वारा इन झांकीयों को ओर सुन्दर बना देता है,यह बहुत आराम आराम से चलती है साथ मे अन्य कांवड़ीयाँ भी पैदल पैदल चलते रहते है इन झांकियो को देखने आसपास के गांव या शहर के लोग सड़को पर खडे हो जाते है ओर यह झांकीया ज्यादात्तर शाम को चलती है ओर दिन निकलने पर यह झाकियां रूक जाती है.
4* डाक कांवड़:-
डाक कांवड़ यात्रा में ट्रक या जीप पर 15 से 20 कांवड़ीयों का ग्रुप सवार होता है,जीप या ट्रक मे बडा सा D.J लगा होता है जिस पर भोले शंकर के तेज आवाज मे गाने चल रहे होते है.कांवड़ीयो के लिए खाना पीना व आराम वही ट्रक मे ही होता है,इस डाक यात्रा मे पुरा ग्रुप इकठ्ठा होकर एक साथ हरिद्वार या गौमुख जहां से भी जल उठाए एक साथ ऊठाते है,फिर वह तय समय जैसे कोई 48 घंटे,कोई 36 या कोई 24 घन्टो मे. या कोई भीड भाड की वजह से समय भोले की इक्छा पर भी लिख देता है,डाक कांवड़ मे जल ऊठाते ही कांवड़ीयाँ जल को लेकर दौडना चालू कर देता है ओर बारी बारी जल को लेकर दौडते हुए,तय समय पर शिवरात्री पर शिवालय (शिव मन्दिर) मे एक साथ जल चढाते है,यह यात्रा भी बडी कठीन यात्रा होती है,
जल को लेकर लगातार दौडते रहना बहुत बडी बात होती है बिना तैयारी के तो कुछ पल दोडते ही सांस फूल जाती है पर शिव की महिमा से यह यात्रा पूर्ण होती है.
5* साईकल,स्कूटर व बाईक कांवड़ यात्रा:-
यह यात्रा भी कांवड़ का रूप है इसमे भी लोग अपनी सवारी से हरिद्वार या गौमुख से जल भर कर शिवरात्री पर शिव का जलाभिषेक करते है.पर आजकल यह बाईक वाली यात्रा ज्यादा लोकप्रिय हो रही है,लोग जल लेने के लिए बाईक व स्कूटर से तो जाते पर सेफ्टी के नियम व कानून की धज्जियां उडाते हुए जाते है जो अपने लिए तो खतरनाक है ही बल्की दूसरो के लिए भी खतरनाक होती है.
डाक कांवड़ यात्रा में ट्रक या जीप पर 15 से 20 कांवड़ीयों का ग्रुप सवार होता है,जीप या ट्रक मे बडा सा D.J लगा होता है जिस पर भोले शंकर के तेज आवाज मे गाने चल रहे होते है.कांवड़ीयो के लिए खाना पीना व आराम वही ट्रक मे ही होता है,इस डाक यात्रा मे पुरा ग्रुप इकठ्ठा होकर एक साथ हरिद्वार या गौमुख जहां से भी जल उठाए एक साथ ऊठाते है,फिर वह तय समय जैसे कोई 48 घंटे,कोई 36 या कोई 24 घन्टो मे. या कोई भीड भाड की वजह से समय भोले की इक्छा पर भी लिख देता है,डाक कांवड़ मे जल ऊठाते ही कांवड़ीयाँ जल को लेकर दौडना चालू कर देता है ओर बारी बारी जल को लेकर दौडते हुए,तय समय पर शिवरात्री पर शिवालय (शिव मन्दिर) मे एक साथ जल चढाते है,यह यात्रा भी बडी कठीन यात्रा होती है,
जल को लेकर लगातार दौडते रहना बहुत बडी बात होती है बिना तैयारी के तो कुछ पल दोडते ही सांस फूल जाती है पर शिव की महिमा से यह यात्रा पूर्ण होती है.
5* साईकल,स्कूटर व बाईक कांवड़ यात्रा:-
यह यात्रा भी कांवड़ का रूप है इसमे भी लोग अपनी सवारी से हरिद्वार या गौमुख से जल भर कर शिवरात्री पर शिव का जलाभिषेक करते है.पर आजकल यह बाईक वाली यात्रा ज्यादा लोकप्रिय हो रही है,लोग जल लेने के लिए बाईक व स्कूटर से तो जाते पर सेफ्टी के नियम व कानून की धज्जियां उडाते हुए जाते है जो अपने लिए तो खतरनाक है ही बल्की दूसरो के लिए भी खतरनाक होती है.
शिव को सावन के महिने में जल क्यो चढायां जाता है?
कांवड़ क्यो लाई जाती है-
*शिव को जल क्यो चढाया जाता है इस पर कई मत है,पहला की ऐसा मानना है की समुंद्र मंथन सावन के महिने मे ही हुआ था ओर जब समुंद्र मँथन के दौरान हलाहल नामक विष निकल आया जो समस्त संसार का नाश कर देता तब भगवान शिव ने ही आगे बढकर उस विष को पी लिया ओर अपने कण्ठ मे जमा कर लिया जिस कारण उनका कण्ठ नीला पड गया ओर वह नीलकण्ठ महादेव ने नाम से भी जाने गये.
विष की गर्मी के काऱण उनके मुख से राम राम की जगह बम बम की आवाज निकली चालू हो गई इसलिए सभी देवताओ ने गंगा मां का जल लेकर शिव के मस्तक पर जल डाला, जिससे शिव को शान्ति मिली.
इसलिए ही सावन के महिने मे गंगाजी के जल से शिव का जलाभिषेक किया जाता है ओर यही से कांवड यात्रा की शुरूआत हुई
कांवड़ क्यो लाई जाती है-
*शिव को जल क्यो चढाया जाता है इस पर कई मत है,पहला की ऐसा मानना है की समुंद्र मंथन सावन के महिने मे ही हुआ था ओर जब समुंद्र मँथन के दौरान हलाहल नामक विष निकल आया जो समस्त संसार का नाश कर देता तब भगवान शिव ने ही आगे बढकर उस विष को पी लिया ओर अपने कण्ठ मे जमा कर लिया जिस कारण उनका कण्ठ नीला पड गया ओर वह नीलकण्ठ महादेव ने नाम से भी जाने गये.
विष की गर्मी के काऱण उनके मुख से राम राम की जगह बम बम की आवाज निकली चालू हो गई इसलिए सभी देवताओ ने गंगा मां का जल लेकर शिव के मस्तक पर जल डाला, जिससे शिव को शान्ति मिली.
इसलिए ही सावन के महिने मे गंगाजी के जल से शिव का जलाभिषेक किया जाता है ओर यही से कांवड यात्रा की शुरूआत हुई
दूसरी यह है की श्रवण कुमार भी सावन के महिने मे ही कांवड़ बना कर अपने अंधे माता पिता को तीर्थ यात्रा पर ले गये थे ओर उन्होने शिव का जलाभिषेक भी किया था.
ओर भी कई कहानियां है जिस कारण सावन मास में शिव भक्त कावड लाकर शिव को जल चढाते है.
ओर भी कई कहानियां है जिस कारण सावन मास में शिव भक्त कावड लाकर शिव को जल चढाते है.
कांवडियों से विनती:-
सभी कांवडियें नही पर कुछ कांवडिये भोले का प्रसाद के तौर पर गांजा,भांग व अन्य नशा करते है ओर फिर लडाई झगडा करते है,इस पवित्र यात्रा की गरीमा को ठेस पहुचांते है यह गलत है इस यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार का नशा नही करना चाहिए.सादा भोजन व शुद्ध विचारो वाला जीवन व्यतित करना चाहिए,ओर नित्य नियम पूर्वक शिव की भक्ति मे लीन होना चाहिए.
ओर भगवान शिव जैसे विचार अपनाने चाहिए.अर्थात शिवमय वातावरण बनाना चाहिए, जिस प्रकार शिव अत्यंत विषैला विष को भी पी गए उसी प्रकार प्रत्यैक कावडियें को शिव की तरह अपने आप पर काबू रखना चाहिए,किसी को बूरा कहना व लडना झगडना नही चाहिए,शांत मन से शिव की आराधना करनी चाहिए.
तभी शिव की कृप्या आप पर रहेगी ओर भगवान भोले बाबा सदैव आपका कल्याण करते रहेगे.............
सभी कांवडियें नही पर कुछ कांवडिये भोले का प्रसाद के तौर पर गांजा,भांग व अन्य नशा करते है ओर फिर लडाई झगडा करते है,इस पवित्र यात्रा की गरीमा को ठेस पहुचांते है यह गलत है इस यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार का नशा नही करना चाहिए.सादा भोजन व शुद्ध विचारो वाला जीवन व्यतित करना चाहिए,ओर नित्य नियम पूर्वक शिव की भक्ति मे लीन होना चाहिए.
ओर भगवान शिव जैसे विचार अपनाने चाहिए.अर्थात शिवमय वातावरण बनाना चाहिए, जिस प्रकार शिव अत्यंत विषैला विष को भी पी गए उसी प्रकार प्रत्यैक कावडियें को शिव की तरह अपने आप पर काबू रखना चाहिए,किसी को बूरा कहना व लडना झगडना नही चाहिए,शांत मन से शिव की आराधना करनी चाहिए.
तभी शिव की कृप्या आप पर रहेगी ओर भगवान भोले बाबा सदैव आपका कल्याण करते रहेगे.............
'बोल बम' बम बम
जय शिव शम्भू
जय शिव शम्भू
यदि आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृप्या कमेंट मे भोले बाबा का जयकारा लगाएं....
अद्भुत एवं विस्तृत विवरण। मैं आपके सारे ब्लॉग पढ़ता हूँ। आपके यात्रा वृत्तांत काफी अच्छे होते हैं। इस आदत को बनाये रखिये। अच्छे हिंदी ब्लोग्गेर्स वैसे भी बहुत काम हैं।
जवाब देंहटाएंगोपाल लाल जी नमंस्कार स्वीकार कीजिए.
हटाएंकांवड़ यात्रा का विस्तृत वर्णन दिया है आपने सचिन जी ! हालाँकि इससे थोड़ी बहुत समस्या आती है लेकिन ये संस्कृति का हिस्सा हैं , अच्छा लगता है कांवड़ियों को देखकर ! लिखते रहिये
जवाब देंहटाएंयोगी जी आपने सही कहा...
हटाएंअच्छी जानकारी दी है आपने , बढि़या लिखते है अाप ।
जवाब देंहटाएंस्वाति जी धन्यवाद ब्लॉग पर समय देने के लिए..
हटाएंअगर मेरे ब्लॉग के द्वारा. आपको कुछ जानकारी. मिली तो यह मेरे लिए बहुत. सम्मान की बात है...
बढ़िया जानकारी, लिखते रहिए
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सिन्हा जी,,, जय बोलो भोलेनाथ की
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