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13,September,2015
हम सुबह 6बजे ही ऊठ गए, क्योकी आज हमने अलमोडा होते हुए, कौसानी जाना था या फिर बिनसर। लेकिन चाय के समय यह तय हुआ की हम आज ही दिल्ली वापिस जाएंगे। कल रात से ही ललित का दिल घर जाने को करने लगा, ओर वकील साहब ने तो सीधे ही घर जाने को कह दिया। पहले तो मुझे बड़ा दुख हुआ की हमारा टूर अपने मुकाम को हासिल ना कर पाया। लेकिन मैंने भी यह समझकर सब्र कर लिया, की कल मेरी वजह से भी तो यह लोग नैनीताल तक आए। लेकिन अब इतना तय हो चुका था की आज हम वापिस घर जाएंगे। ओर घर जाएंगे तो कुछ देख कर ही जाएंगे, इसलिए मैंने नैनीताल से कालाडुंगी वाला रास्ते से जाना तय किया, जिससे इन लोगों को गर्जियादेवी(गिरिजा देवी)के दर्शन करा सकूँ।
हम सुबह नहा व अन्य जरूरी कार्यों को निपटा कर होटल से निकल पड़े, आज नैनीताल में सुबह से ही पुलिस व स्थानीय लोग काफी संख्या में इकठ्ठा हुए थे, जिसका कारण यह था की यहां पर मैराथन दौड़ का आयोजन किया हुआ था। इस मैराथन दौड़ मे नैनीताल के काफी स्कूल भाग ले रहे थे। हम भी माल रोड पर दर्शक बन कर इस दौड़ का लुफ्त उठा रहे थे।
फिर हम दौड़ के प्रतियोगी को देखते देखते पार्किंग में पहुँचे, जहाँ हमारी कार खड़ी थी, पार्किंग के पास ही माता नैनादेवी का मन्दिर है, जो माता के 51 शक्ति पीठो में से एक है, यहां पर माता सती के मृत शरीर की बांयी आँख (नयन) गिरी थी। जिस कारण यहां पर झील का निर्माण भी हुआ। जो आज नैनीझील के नाम से विख्यात है, झील के किनारे ही यह सुंदर मन्दिर बना है, यहां पर गणेशजी, माता काली, हनुमान व अन्य बहुत से मन्दिर बने है।
चूँकि मैं ओर प्रवीण जी कल ही यहां पर दर्शन कर आए थे, लेकिन ललित कल दर्शन नही कर पाया था, इसलिए मैं ओर ललित मन्दिर मे दर्शन करने चले गए, प्रवीण जी ने मन्दिर जाने से मना कर दी, ओर कहने लगे की मैं गाड़ी पार्किंग मे से निकाल रहा हुं, तब तक तुम मन्दिर दर्शन कर आओ। हमने मन्दिर के बाहर बनी दुकान से प्रसाद लिया ओर नैना देवी मन्दिर चले गए। बहुत अच्छे से दर्शन हुए। दर्शन करने के बाद हम गाड़ी के पास पहुँचे ओर वहां से चल पड़े।
हम लोग बारापत्थर तिराहा से खुरपा ताल की तरफ चल पड़े, क्योकी सुबह से कुछ खाया भी नही था, इसलिए आगे चलकर चारगांव नामक जगह आई, यहां पर एक होटल वाले से चाय बनवाने के लिए बोल दिया, साथ मे कुछ खाने को भी ले लिया, यहां से चलकर हम सडीयाताल से पहले एक छोटे से झरने पर भी रूके। पहाडो पर ऐसी जगह देखते ही, अपने आप रूकने को मन कर जाता है, यहां पर कुछ समय रूककर हम सीधे खुरपाताल ही रूके, वैसे हम नीचे झील तक नही गए, हम ऊपर सड़क पर ही रूक गए, यहां पर कुछ लोग पत्थर ऊठा ऊठा कर झील की तरफ फैंक रहे थे, पर पत्थर झील तक नही पहुँच पा रहा था, जबकी झील सड़क से बहुत नजदीक दिखाई पड़ रही थी, उन्हीं लोगों में से एक ने बताया की झील इतनी नजदीक होने के बावजूद भी कोई वहां तक पत्थर नही फैंक सकता, क्योकी यह झील उसे अपने तक नही आने देती, मैंने भी एक पत्थर ऊठाया ओर झील की तरफ उछाल दिया, पत्थर की गति को देखकर वहां पर बैठे सभी कहने लगे की यह तो जरूर जाएगा, लेकिन पत्थर एकदम नीचे पेडो मे चला गया। जहाँ तक मुझे लगा की झील पास ही दिखती है पर वास्तव मे वह पास नही दूर है। इसलिए पत्थर वहां तक नही गया। खुरपाताल के नजदीक ही सड़क पर माता मनसा देवी का एक एक छोटा सा मन्दिर भी बना है,
नैनीताल से रामनगर तक का रास्ता बहुत सुंदर बना है, ज्यादा भीडभाड भी नही रहती है इस रास्ते पर, प्राकृतिक सुंदरता सड़क के दोनों ओर बनी रहती है, बार बार मन करता रहता है की यहां रूको वहां रूको, हवा इतनी शुद्ध की शरीर में अपने आप नई ऊर्जा का अनुभव होता है,
इसी रोड पर चलते हुए, जिम कार्बेट के अंतगर्त आने वाला कालाडुंगी जंगल भी पड़ता है, जहां दोनों ओर घने जंगल मिलते है, लम्बे लम्बे पेड़ , पक्षियों की आवाज व दिमक की बनाई गई बाम्बियां भी बहुत दिखती है, यहां पर भी हम थोड़ी देर रूक कर आगे चले, आगे नया गांव नाम की जगह पड़ती है, जिसे शायद छोटी हल्द्धवानी भी कहते है, यहां पर जिम कार्बेट संग्रहालय भी है, ओर थोड़ी ही दूर पर कार्बेट फॉल नाम का झरना भी है, पर फिलहाल यह बंद था, यह नवम्बर से खुल कर जूलाई मे बंद होता है। यहां से एक रास्ता रामपुर व कांशीपूर को चला जाता है, ओर एक रास्ता रामनगर, जिम कार्बेट पार्क की तरफ चला जाता है, इसी रास्ते पर कार्बेट फॉल भी पड़ता है। हम भी इसी रास्ते पर हो लिये, आगे कोसी नदी पर बना एक डैम पड़ा, जहां से एक रास्ता रामनगर चला जाता ओर दूसरा सीतावनी चला जाता है, हम रामनगर वाले रास्ते पर चल दिए, कुछ ही मिनटों मे रामनगर पहुँच गए, रामनगर से गर्जिया तक बहुत से होटल बने है, इस रोड पर बहुत से हाथी वाले भी बैठे थे जो हाथी पर बैठ कर जंगल सफारी कराते है, जो तकरीबन आपको तीन चार घंटे जंगल की सैर कराते है, एक हाथी के तकरीबन 3000रू० लेते है, ओर अधिकतम चार आदमी इतने पैसों मे हाथी पर बैठ कर जंगल सफारी का आनंद ले सकते है।
हम रामनगर से सीधे तकरीबन 12 किलोमीटर चल कर दाहिने हाथ पर गर्जिया (गिरिजादेवी) मन्दिर को जो रास्ता जाता है, उस चल पड़े। ढिकाला मार्ग से ही आपको एक बड़ा गेट बना हुआ दिख जाएगा। गर्जिया नामक जगह गिरिजा माता के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। यह मन्दिर कोसी(कौशिकी) नदी के मध्य एक छोटे से टीले (पहाड़ )पर बना है, कहते है की यह टीला पानी मे बहता बहता हुआ यहां तक आया था, गिरिजादेवी गिरीराज हिमालय की पुत्री थी, माता पार्वती को गिरिजादेवी के रूप से भी जाना जाता है।मन्दिर तक जाने के लिए कोसी पर पुल बना है, मन्दिर तक तकरीबन 90 सीढ़ियों से होकर जाना पड़ता है, इस मन्दिर पर ऊपर तक जाने व वापसी आने का रास्ता मात्र चार या पाँच फुट ही चौड़ा है, ऊपर बस गिरिजादेवी का एक छोटा सा मन्दिर ही है, इस मन्दिर की यहां पर बहुत बड़ी मान्यता है, दूर दूर से लोग यहां पर माता के दर पर माथा टेकने के लिए आते है, यहां पर कुछ भक्तों ने बताया की यहां पर मांगे जानी वाली सारी मनोकामनाएं पूरी होती है, इसलिए तो यहां पर माता के दर्शन के लिए हमेशा भक्तों की लाईन लगी रहती है।
जिस पहाड़ पर माता का मन्दिर है, उसी पहाड़ के नीचे भैरो का मन्दिर भी है। यह एक छोटी सी गुफा में स्थित है। ओर एक शिव मन्दिर भी बना है।
हम तीनों पास ही एक दुकान से प्रसाद लेकर मन्दिर की लाईन में लग गए। लाईन लम्बी थी पर इतनी बड़ी नही थी, मैं पहले भी एक बार यहां पर आ चुका हुं, तब माता के दर्शन नही हो पाए थे। इसलिए मैं दर्शन का यह मौका नही चुकना चाहता था। हम तीनों लाईन मे लगे रहे, तकरीबन एक घंटे बाद हमने माता गिरिजादेवी के दर्शन किये। ऊपर से कोसी का सुंदर दृश्य दिखाई पड़ रहा था, लेकिन जगह की कमी की वजह से हमे जल्द ही नीचे उतरना पड़ा। नीचे आकर हम तीनों कोसी के किनारे पहुँचे, कोसी का जल बहुत स्वच्छ व साफ दिख रहा था, पानी को देखकर तुरंत ही हम तीनों का इसमें नहाने का मन बन गया ओर बिना देरी करे हम कोसी के शीतल जल मे जमकर नहाए। यहां पर हमने एक गाय को नदी पार करते देखा।
नहाने के पश्चात हम गाड़ी तक पहुँचे, ओर गाड़ी लेकर रामनगर आ गए, यहां पर हमने एक मिठाई की दुकान से उत्तराखंड की प्रसिद्ध बाल मिठाई खरीदी। मुझे यह बाल मिठाई खाने में बहुत अच्छी लगती है, फिर हम काशीपुर होते हुए, मुरादाबाद पहुँचे, रास्ते मे खाना खाकर रात को तकरीबन दस बजे दिल्ली आ गए।
यात्रा समाप्त.......
अब कुछ फोटो देखे जाएँ, इस यात्रा के........
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मैराथन दौड़ |
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ललित और सचिन |
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नैनीताल में गुरुदवारा साहिब |
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नयनादेवी मन्दिर का बाहरी दवार। |
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नैनादेवी के दर्शन कर लो आप भी |
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बहुत मछलियाँ थी यहाँ पर। |
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नैनीझील |
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नैनीझील |
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चारगांव |
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चारगांव में एक दुकान जहा हमने नाश्ता किया था। |
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रास्ते में एक छोटा सा झरना भी मिला। |
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मै (सचिन त्यागी) |
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सिंचाई के लिए बनायीं गयी एक छोटी सी झील। |
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पता नहीं यह क्या था। |
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खुर्पाताल |
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खुर्पाताल में माता मनसा देवी मंदिर। |
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यह कोई फल था नाम नहीं पता। |
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सुन्दर रास्ते |
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रास्ते में ऐसी सुन्दर जगह की रुकने को अपने आप मन कर जाएं। |
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कैप्शन जोड़ें |
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इस लकड़ी में छोटे छोटे कई सारे पौधे उगे हुए थे। |
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कालाढूंगी से पहले सड़क किनारे सुनसान जंगल |
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वकील साहब चल दिए फोटो खीचने जंगल अंदर। |
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दीमक की बांबी |
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रास्ते में एक नदी पड़ी जहा पर बहुत सारे लँगूर दिखाई दिए। |
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एक तिराहा व दिशा बताता शाइन बोर्ड। |
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कॉर्बेट फॉल ( नयागांव) |
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रामपुर से गर्जिया जाते हुए एक लोहे का पुल। |
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एक ऐलिफेन्ट सफारी पॉइंट।, जहा आप कुछ मनी देकर जंगल सफारी का आनंद ले सकते है। |
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गर्जिया देवी तक जाता रास्ता। |
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कोसी नदी (गर्जिया ) |
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गिरिजा देवी मन्दिर |
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मै सचिन त्यागी गर्जिया देवी मंदिर पर। |
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मंदिर पर दर्शन के लिए लाइन लगी हुई हैं व मंदिर के निचे शिव और भैरो मन्दिर। |
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मंदिर तक खड़ी सीढ़िया और छोटा सा रास्ता। |
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ऊपर माता गिरिजादेवी के दर्शन। |
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मंदिर से लिया गया कोसी नदी का एक फोटो। |
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कोसी में स्नान |
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एक गऊ माता कोसी में |
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नदी पार करती गऊ माता। |
शानदार यात्रा ,मनमोहक चित्र |सचिन भाई, काशीपुर से मुरादाबाद वाला रास्ता अब कैसा है २०१४ में तो उबड़ खाबड़ था अब बन गया क्या ?
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रूपेश जी, वैसे हमें तो काशीपुर से मुरादाबाद तक रोड अब बढ़िया हालत मे मिला।
हटाएंहो सकता है बन गया हो,बहुत अच्छी बात है ।धन्यवाद सचिन भाई।
हटाएंOct mein jim corbett gaya tha tab garjia mandir bhi jana hua, kafi manyata hai is mandir ki aas pass ke gaon mein
जवाब देंहटाएंजी महेश जी मैं दो बार यहां पर गया, भीड़ हमेशा मिली, व कुछ लोगों ने बताया की यहां के लोगों मे इनकी बहुत मान्यता है।
हटाएंमहेश जी ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद।
Oct mein jim corbett gaya tha tab garjia mandir bhi jana hua, kafi manyata hai is mandir ki aas pass ke gaon mein
जवाब देंहटाएंphotos bahut badhiya hain.. first class log
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद जी।
हटाएंशानदार यात्रा और बहुत ही बढ़िया चित्र सचिन भाई।
जवाब देंहटाएंजय भोले की। सुशील जी पोस्ट पर आने के लिए धन्यवाद।
हटाएंबहुत बढ़िया सचिन भाई ।
जवाब देंहटाएंऔर फोटु तो गज़ब के हैं ।
कैमरा कौनसा था ?
धन्यवाद संजय भाई,भाई सोनी का साईबर सॉट डिजिटल कैमरा था,कुछ फोटो वकील साहब के कैमरे के भी है।
हटाएंसोनी साइबर शॉट अपना भी था,बहुत बढ़िया फ़ोटो आते हैं उससे।
हटाएंखुरपा ताल के बाद तो हमको कुछ नहीं दिखाया ड्रायवर ने
जवाब देंहटाएंनैनीताल की याद तजा हो गई।
बुआ जी नैनीताल से बस टूर पैकेज वाले खुर्पाताल तक ही ले जाते है, बस।
हटाएंधन्यवाद आपका बुआ जी।
ये टैक्सी वाले एक दो जगह ही दिखाते है उस पर भी एहसान सा करते है।ऊपर से जल्दबाजी, अपने वाहन का अलग मजा है चाहे दुपहिया हो या चारपहिया।
हटाएंखुरपाताल अपने पुरे शबाब पर है,नैनीताल तो जितनी बार भी जाओ उतना कम लगता है।चलिए बिनसर ना सही गर्जिया माता का मंदिर तो आपने देख ही लिया।
जवाब देंहटाएंहर्षिता जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
हटाएंजी आपने सही फरमाया, बिनसर ना सही तो कम से कम गर्जिया देवी के दर्शन तो हुए।
bahut achcha likha hai sachin ji ..ar pics bhi bahut sunder hai.mera bhi mann kar rha hai yaha jane ke liye.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रतिमा जी,
हटाएंबिल्कुल आप दो तीन दिन का समय निकाल कर यहां पर घुम कर आएं। बहुत सुंदर जगह है ये।
सचिन जी....
जवाब देंहटाएंनैनीताल हर किसी को आकर्षित करता है जगह ही ऐसी है |
आपको सदियातल जल प्रपात अंदर से देखना चाहिए था | खुरपा ताल कही से सुन्दर नजर आता है |
आपकी पोस्ट अच्छी लगी उससे अच्छी लगी आपके पोस्ट के सारी फोटो
धन्यवाद
धन्यवाद रीतेश भाई। वैसे आपने सही कहा है,नैनीताल के विषय में। वैसे सडीयाताल मैं पिछली यात्रा में जा चुका हुं, इसलिए अब की बार नही गया।
जवाब देंहटाएंमस्त....फ़ोटो वाकई शानदार हैं सचिन भाई।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद..! बीनू जी।
हटाएंबहुत खूब त्यागी जी आप लोग वास्तव में महान घुमक्कड़ है सुंदर लेख के लिए बधाइयां
जवाब देंहटाएंदर्शन जी पोस्ट पसंद करने के लिए धन्यवाद।
हटाएंNice Post! :)
जवाब देंहटाएंThanks toshi
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