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मै ओर आयुष दोनो काफी हद तक लाल किला घुम चुके थे,फिर भी यहा पर मौजूद हर चीज को देखना चाहते थे ...
संग्रहालय-हम दोनो दिवान-ऐ- आम के ठीक सामने की एक पुरानी ईमारत मे स्थित एक संग्रहालय में पहुचें,यहा पर पुराने काल की कुछ झांकियां थी,पुराने हथियार व पोशाके थी,जब अंग्रेज हमारे देश में राज करने आए वो उस समय नई तकनीकी के हथियार लाए,जिसके बल पर उन्होने यहां राज किया वो हथियार भी यहां पर आप देख सकते है,एक बात आपको बता देता हुं,जब आप लाल किले में प्रवेश होने का टिकेट ले,जबही आप संग्रहालयो का भी टिकेट ले ले नही तो आप इन्हे नही देख पाएगे,ओर हां एक टिकेट से ही आप यहां मौजूद तीनो संग्रहालय घुम सकते है.
संग्रहालय से निकल कर हम छत्ता चौक पर पहुचें,वहा से हम सीधे हाथ की तरफ जाती सडक़ पर मुड गए,अगर आप लाल किले में प्रवेश कर रहे हे तो छत्ता चौक के बाएं यह सडक़ आपको मिलेगी,हम इस सडक पर मुड गए,यहा पर पर्यटको की भीड कुछ कम थी,शायद लोगो को इस तरफ कम पता हो,पर हमे क्या हमे तो इधर भी घुमना था,यह एक पुरानी बिर्टिश कालोनी है,इंही इमारत मे मौजूद है एक संग्रहालय जिसका नाम "स्वतंत्रता संग्राम स्मारक"है,
यहां पर हमने बहुत कुछ देखा जैसे अंग्रेजो का यहा पर कैसे आना हुआ ओर उन्होने यहां पर कैसे शासन स्थापित किया,सन् 1857 की क्रांति से जूडी इतिहास की जानकारी व फोटो आपको यहां देखने को मिलेगे,यदि आप सुभाष चंद्र बोस से जूडी चीजे देखना चाहते है तो यहा पर आपको बहुत सारी बाते व चीजे देखने को मिलेगी जैसे-उनकी व उस समय के नामी लोगो के साथ फोटो,उनकी कुर्सी व टोपी,पोशाके,हस्तलिखित पत्र व अन्य बहुत सी वस्तुएं,यह देखकर व पढकर,आपको अच्छा महसूस होगा,रानी लक्ष्मी बाई की झांकि व अन्य कवि जिन्होने आजादी दिलाने मे महत्वपूर्ण काम किये,चंद्रशेखर आजाद का वह चित्र जहां पर व शहीद हुए,आपको उस काल में क्या हुआ होगा सोचने को मजबुर कर देगा,शहीद भगत सिंह अन्य शहीदो के चित्र व उनकी निशानियां आप यहा देख सकते है,
यह सब देखकर हम दोनो उसी सडक पर सीधे चलते रहे,इस सडक के आखिर मे पानी की एक बावली है,(पुराने जमाने मे पानी का स्रौत जो बहुत बडी चौडी जगह होती थी),लेकिन हम उसी सडक से दाएं तरफ मुड गए,यह सडक जाती थी सलीमगढ़ के किले के लिए,हम चले ही थे की वहां मौजूद गार्ड ने हमे रोक लिया ओर बोला की इधर कहा जा रहे हो,हमने कहां की हम सलीमगढ़ का किला देखने के लिए जा रहे है,उसने कहां की वहां कुछ नही है,कुछ टुटे फुटे खंडर ही बचे है,उन्हे क्या देखोगे,मेने कहां की उन्हे ही तो देखना है,यह कह कर हम वहां से चल दिए,अब कुछ सलीमगढ़ के बारे मे..
सलीमगढ़ दुर्ग(किला)- सलीमगढ़ किले का निर्माण शेरशाहं सूरी के पुत्र इस्लामशाहं सूरी ने 1545-54ई० मे कराया,इस्लामशाहं को सलीमशाहं के नाम से भी जाना जाता था इसलिए इस किले के नाम सलीमगढ़ पडा,बाद मे अकबर ने इसे अपने अधिकार में ले लिया,ओर अपने बफादारो को सौप दिया,बाद मे शाहजहां ने लाल किला निर्माण के समय जहांगीर द्वारा निर्मित पुल का उपयोग सलीमगढ़ किले को लाल किले से जोडने में किया,(यह पुल आज भी मौजूद है,लाल किले के पीछे वाली सडक पर).
बाद में औरंगजेब ने इस किले का प्रयोग अपने काल मे शाही कारागार के रूप मे किया.सन् 1857 की क्रांति के बाद,अंग्रेजो ने लाल किले मे सेना की छावनी बनाई ओर सलीमगढ़ किले को ढहा कर रेलवे लाईन बिछाई,ओर किले की अन्य इमारतो को ढहा कर एक कारागार का निर्माण भी किया,जिसमे आजाद हिन्द फौज के सिपाहियो को कैद किया गया....
हम दोनो एक सुनसान सडक. पर चल रहे थे,हमारे अलावा ओर कोई वहां मौजुद नही था,हम जहांगीर द्वारा निर्मित पुल को पार करते हुए,सलीमगढ़ दुर्ग के गेट पर पहुचें,यहां से हमे रेलवे लाईन पर बना एक लोहे का पुल पार करना पडा,पुल उतरते ही हम सलीमगढ़ किला परीसर मे थे,यहा पर हमने केवल एक कारागार(jail) देखी ओर एक टुटी फुटी खंडर नुमा मस्जिद,इन सब चीजो को देखकर हम वापिस आ गए..
अब हम पहुचें बावली मे,मुझे पहले यह नही पता था की लाल किले मे भी बावली है,अब पता चल ही गया है तो क्यो ना इसे भी देख लिया जाए,हम कुछ ही मिनटो मे बावली पर पहुचं गए,वहां पर गार्ड मौजुद था,उसने हमे हिदायत दी की बावली मे ज्यादा नीचे की तरफ ना जाए,हमने वहा पर कुछ फोटो खिचे व कुछ देर आराम भी किया.अब बावलीयों के बारे मे...
संग्रहालय-हम दोनो दिवान-ऐ- आम के ठीक सामने की एक पुरानी ईमारत मे स्थित एक संग्रहालय में पहुचें,यहा पर पुराने काल की कुछ झांकियां थी,पुराने हथियार व पोशाके थी,जब अंग्रेज हमारे देश में राज करने आए वो उस समय नई तकनीकी के हथियार लाए,जिसके बल पर उन्होने यहां राज किया वो हथियार भी यहां पर आप देख सकते है,एक बात आपको बता देता हुं,जब आप लाल किले में प्रवेश होने का टिकेट ले,जबही आप संग्रहालयो का भी टिकेट ले ले नही तो आप इन्हे नही देख पाएगे,ओर हां एक टिकेट से ही आप यहां मौजूद तीनो संग्रहालय घुम सकते है.
संग्रहालय से निकल कर हम छत्ता चौक पर पहुचें,वहा से हम सीधे हाथ की तरफ जाती सडक़ पर मुड गए,अगर आप लाल किले में प्रवेश कर रहे हे तो छत्ता चौक के बाएं यह सडक़ आपको मिलेगी,हम इस सडक पर मुड गए,यहा पर पर्यटको की भीड कुछ कम थी,शायद लोगो को इस तरफ कम पता हो,पर हमे क्या हमे तो इधर भी घुमना था,यह एक पुरानी बिर्टिश कालोनी है,इंही इमारत मे मौजूद है एक संग्रहालय जिसका नाम "स्वतंत्रता संग्राम स्मारक"है,
यहां पर हमने बहुत कुछ देखा जैसे अंग्रेजो का यहा पर कैसे आना हुआ ओर उन्होने यहां पर कैसे शासन स्थापित किया,सन् 1857 की क्रांति से जूडी इतिहास की जानकारी व फोटो आपको यहां देखने को मिलेगे,यदि आप सुभाष चंद्र बोस से जूडी चीजे देखना चाहते है तो यहा पर आपको बहुत सारी बाते व चीजे देखने को मिलेगी जैसे-उनकी व उस समय के नामी लोगो के साथ फोटो,उनकी कुर्सी व टोपी,पोशाके,हस्तलिखित पत्र व अन्य बहुत सी वस्तुएं,यह देखकर व पढकर,आपको अच्छा महसूस होगा,रानी लक्ष्मी बाई की झांकि व अन्य कवि जिन्होने आजादी दिलाने मे महत्वपूर्ण काम किये,चंद्रशेखर आजाद का वह चित्र जहां पर व शहीद हुए,आपको उस काल में क्या हुआ होगा सोचने को मजबुर कर देगा,शहीद भगत सिंह अन्य शहीदो के चित्र व उनकी निशानियां आप यहा देख सकते है,
यह सब देखकर हम दोनो उसी सडक पर सीधे चलते रहे,इस सडक के आखिर मे पानी की एक बावली है,(पुराने जमाने मे पानी का स्रौत जो बहुत बडी चौडी जगह होती थी),लेकिन हम उसी सडक से दाएं तरफ मुड गए,यह सडक जाती थी सलीमगढ़ के किले के लिए,हम चले ही थे की वहां मौजूद गार्ड ने हमे रोक लिया ओर बोला की इधर कहा जा रहे हो,हमने कहां की हम सलीमगढ़ का किला देखने के लिए जा रहे है,उसने कहां की वहां कुछ नही है,कुछ टुटे फुटे खंडर ही बचे है,उन्हे क्या देखोगे,मेने कहां की उन्हे ही तो देखना है,यह कह कर हम वहां से चल दिए,अब कुछ सलीमगढ़ के बारे मे..
सलीमगढ़ दुर्ग(किला)- सलीमगढ़ किले का निर्माण शेरशाहं सूरी के पुत्र इस्लामशाहं सूरी ने 1545-54ई० मे कराया,इस्लामशाहं को सलीमशाहं के नाम से भी जाना जाता था इसलिए इस किले के नाम सलीमगढ़ पडा,बाद मे अकबर ने इसे अपने अधिकार में ले लिया,ओर अपने बफादारो को सौप दिया,बाद मे शाहजहां ने लाल किला निर्माण के समय जहांगीर द्वारा निर्मित पुल का उपयोग सलीमगढ़ किले को लाल किले से जोडने में किया,(यह पुल आज भी मौजूद है,लाल किले के पीछे वाली सडक पर).
बाद में औरंगजेब ने इस किले का प्रयोग अपने काल मे शाही कारागार के रूप मे किया.सन् 1857 की क्रांति के बाद,अंग्रेजो ने लाल किले मे सेना की छावनी बनाई ओर सलीमगढ़ किले को ढहा कर रेलवे लाईन बिछाई,ओर किले की अन्य इमारतो को ढहा कर एक कारागार का निर्माण भी किया,जिसमे आजाद हिन्द फौज के सिपाहियो को कैद किया गया....
हम दोनो एक सुनसान सडक. पर चल रहे थे,हमारे अलावा ओर कोई वहां मौजुद नही था,हम जहांगीर द्वारा निर्मित पुल को पार करते हुए,सलीमगढ़ दुर्ग के गेट पर पहुचें,यहां से हमे रेलवे लाईन पर बना एक लोहे का पुल पार करना पडा,पुल उतरते ही हम सलीमगढ़ किला परीसर मे थे,यहा पर हमने केवल एक कारागार(jail) देखी ओर एक टुटी फुटी खंडर नुमा मस्जिद,इन सब चीजो को देखकर हम वापिस आ गए..
अब हम पहुचें बावली मे,मुझे पहले यह नही पता था की लाल किले मे भी बावली है,अब पता चल ही गया है तो क्यो ना इसे भी देख लिया जाए,हम कुछ ही मिनटो मे बावली पर पहुचं गए,वहां पर गार्ड मौजुद था,उसने हमे हिदायत दी की बावली मे ज्यादा नीचे की तरफ ना जाए,हमने वहा पर कुछ फोटो खिचे व कुछ देर आराम भी किया.अब बावलीयों के बारे मे...
बावली(Baoli)- बावलियां पुराने समय मे बनाई जाती थी,यह जमीन से तकरीबन तीन चार मंजिल नीचे बनी होती थी,गर्मीयो मे यहा बने कमरो मे आराम भी किया जाता था,पानी की कमी को तो यह पूरा करती ही थी,यह बावलीयां बहुत लम्बी चौडी व पत्थरो से बनी होती थी,
यह सब देखकर हम दोनो लाल किले से बाहर आकर कुछ पेट पूजा कर अपने घर की लौट चले..
अब कुछ फोटो देखे जाए...
संग्रहालय में चित्र अच्छे लगे, शिलापट्ट से बावली के बारे में पूरी जानकारी मिल गयी.... सचिन जी
जवाब देंहटाएंशैलेन्द्र राजपूत जी आपका धन्यवाद....
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