25,Jan,2016, monday
मेरी आंखे सुबहे जल्द ही खुल गई, प्यास लग रही थी इसलिए बाहर होटल वाले से कह कर ओर पानी मंगा लिया, कुछ ही देर बाद सचिन जांगडा व पंकज जी भी ऊठ गए, होटल वाले ने नहाने के लिए गर्म पानी कर दिया था, लेकिन नहाने का मन ना हुआ फिर भी जल्दी जल्दी नहा लिया। क्योकी अगले दो दिन नाहने को नहीं मिलेगा , बारी बारी से पंकज और जांगड़ा भी फ्रैश हो गए. हम तीनो नीरज के रूम पर पहुचें तो देखा जनाब अभी तक सो रहे थे, हम यह कह कर वहां से आ गए की हम तीनो रात वाले ढाबे (परमार स्वीट्स ) पर नाश्ता करने जा रहे है। नीचे होटल (ढाबे) पर आकर चाय ओर पंराठे बोल दिए, यही से पता चला की नरेश सहगल व उनके साथी ट्रैक पर सुबह ही निकल गए है, चाय नाश्ता करने के बाद हमने होटल वाले से बीस पंराठे पैक कराने को कह दिया क्योकी ऊपर पूरे ट्रैक पर कोई दुकान नही है, जो समान ले जाना होता है, वह नीचे से ही ले जाना होता है। नाश्ता करने के बाद हम तीनो ऊपर होटल की तरफ चल पडे।
जब हम होटल पहुचें तो देखा की नीरज होटल वाले (सुमन सिंह 08449238730 ) से बातचीत कर रहे है, नीरज ने मुझसे पुछा की ऊपर के लिए खच्चर कर लेते है, क्योकी समान ज्यादा है, इसके लिए मैने तुरंत हां कर दी, क्योकी हमारे बैग को छोडकर भी ट्रैकिंग का बहुत समान था, बातों बातों में पता चला की होटल वाला भी ऊपर खच्चर लेकर जाता है, उससे बातचीत की तो उससे तय हुआ की वह प्रति दिन के सात सौ रूपये लेगा। दो दिन के हिसाब से 1400 हुए और एक दिन के तीन कमरो का हुआ 1300 रूपए। कुल मिला कर 2700 रुपए उसके बने। हम उसको देने लगे तोह उसने कहा की ट्रैक से वापसी पर ले लेगा। इतना कह कर वह खच्चर लेने चला गया, हम सब ने अपनी जरूरत का सारा समान अपने अपने बैगो मे रख लिया और बाकी सारा समान कार की डिग्गी में डाल दिया, ओर ट्रैकिंग का सारा समान जैसे स्लिपिंग बैग, टैंट आदि सब खच्चर पर बंधवा दिया, खच्चर वाला यह कहकर चला गया की वह हमको ऊपर सडक पर मिलेगा, जहा से ट्रैक्किंग चालू होती है, वह ऊपर चला गया ओर हम नीचे ढाबे पर आ गए। जब तक सहयात्रियों ने नाश्ता किया तब तब मैने ओर नरेंद्र ने सारा राशन पैक करा लिया, चाय की पत्ती से लेकर चीनी तक। साथ में ढ़ाबे वाले से एक पतीली ओर ले ली, कुछ टॉफी भी ले ली गयी और आपस में बाट भी ली, एक बात यह भी है की पुरे ट्रैक पर जांगड़ा और नरेंदर की वाइफ की कॉमेडी चलती रही जिसका सभी ने पूरा लुफ्त उठाया। अब हम गाडी व बाईक लेकर ऊपर सडक की तरफ चल पडे, पूरा रोड लगभग कच्चा ही बना है, तकरीबन आधा घंटे के बाद हम ऊपर पहुचें, यहां पर नीरज ने ऊंचाई नापी तो लगभग 1600मीटर दर्शा रही थी, जबकी पंतवाडी की ऊंचाई समुद्र की सतह से 1300मीटर थी, यहां से हमे लगभग 8.5km की पैदल चढाई करनी थी, ओर 3000 मीटर तक पहुचना था। यानी की हमे 8.5km की दूरी मे 1400मीटर ओर ऊपर जाना था। वैसे आज हमे केवल नाग देवता तक ही जाना था।
गाडी व बाईक रोड पर एक तरफ लगा कर व अपना अपना बैग पीठ टांग कर हम लोग दोपहर के लगभग 11बजे ऊपर की तरफ चल पडे। यहां से गोट विलेज नामक रीजोर्ट की दूरी 2km है, हम सडक से ऊपर जाती से पगडंडी पर हो लिए, गोट विलेज का काम तेज चल रहा था, नीचे से बहुत सा समान गधो ओर खच्चरो पर आ रहा था, जिसके कारण इस रास्ते पर बहुत धुल उड रही थी, फिर हमारे कदमो से से भी धुल उड रही थी, इसलिए मै सबसे थोडी दूरी पर व पिछे चल रहा था, शुरू मे रास्ता ज्यादा चढाई का है, कुछ चलने के बाद थोडा सा सांस लेने को रूक जाते, पर चलते रहते। थोड़ा ही चले थे की जांगड़ा भाई कहने लगे की ओर नहीं चला जाता में तोह वापिस जा रहा हुँ लेकिन हम लोगो की वजह से गया नहीं और धीरे धीरे चलता रहा, तकरीबन दो किलोमीटर चलने के बाद एक पाईप मे टंकी लगी देखी तो सबने वही पर अपने अपने बैग पटक कर थोडी सांसो को आराम दिया, यहां पर सबने पानी पिया ओर अपनी अपनी बोतलो में भी भर लिया, यही पर से ही खच्चर वाले ने दो कैनो मे पानी भर कर खच्चर पर टांग दिया। नीरज ने बताया की यहां से आगे इतना साफ पानी ओर कही नही मिलने वाला है। यहाँ पर कुछ घर भी बने थे लकिन इसके बाद जंगल चालू हो जाता है, फिर कोई घर रास्ते में नहीं मिलेगा।
पानी भरकर थोड़ा सा ही चले ही थे की भंयकर चढाई का सामना करना पडा, साथ मे रास्ते पर छोटे छोटे पत्थर बिखरे पडे थे, इन पर फिसलने का डर भी था, थोडी दूर जाकर एक छोटा सा मैदान आया, जहां से रास्ता थोडा सामान्य हो गया, मतलब चढाई कम हो गई, आराम से चलते हुए हम एक छोटे से बुग्याल(घास का मैदान) पर पहुचे। सभी को चलते चलते जोरो से भूख लगने लगी थी, इसलिए यहां पर रूक कर हमने नीचे से लाए पंराठे आचार संग खाए। इस बुग्याल के बाद देवता मंदिर तक सारा रास्ता जंगल का ही है। नीरज ने बताया की यहीं पास में जगंल के अन्दर एक पानी का स्रोत है, जहां पर पीने का पानी है, परांठे खाने के बाद मै, नीरज ओर पंकज जी पानी की तलाश में चल पडे। थोडा चलने के बाद एक जगह एक छोटे से गढ्ढे मे पानी दिखा, ध्यान से देखा तो पानी हल्का हल्का बह रहा था, यह पानी रूका हुआ नही था इसका मतलब हम इसे पी सकते थे, यहां से एक बोतल पानी की भर कर हम ऊपर बुग्याल की तरफ चल पडे। बुग्याल पर जाकर तुरंत ही वहां से आगे चल पडे, अब हम ऊंचे ऊंचे पेडो के बीच बने रास्ते से गुजर रहे थे। रास्ते में दीमक लगे पेड टुटे बिखरे दिखाई दिए, जिस पर पंजो जैसे निशान भी थे, लग रहा था जैसे किसी जानवर ने इस पेड को अपने दांतो व पंजो से तोडा हो, दीमक खाने के लिए। यह देखकर हम आगे बढ चले।
कुछ दूर चले थे की हम लोगो को नरेश व उनके मित्र वापस आते हुए मिले, समय देखा तो तकरीबन शाम के चार बज रहे थे, नरेश ने बताया की वह सुबह चलकर नाग देवता वह वहा से चलकर नाग टिब्बा पहुचे। नाग टिब्बा पर थोडा समय बिताकर अब सीधे उतर रहे है, ओर अंधेरा होने से पहले ही पंतवाडी पहुचं जाएगे।
नरेश जी से मिलकर हम ऊपर की तरफ चल पडे, अचानक मुझे कुछ याद आया ओर मेनै उन्हे रूकने के लिए बोला, मुझे याद आया की हम राशन तो ले आए पर आग जलाने के लिए माचिस तो साथ लाए ही नही, शायद इनके पास मिल जाए, जब उनसे यह बताया की हमारे पास माचिस नही है तब उनके एक मित्र ने मुझे माचिस दे दी। नरेश जी को एक बार ओर शुक्रिया कर उनसे विदा ली, वैसे नरेंद्र ने बाद में बताया की रास्ते में एक मजदूर से माचिस ले ली थी।
जंगल वाला रास्ता बहुत सुंदर था, वैसे हमे कोई जानवर नही दिखाई दिया बस किसी पक्षी की आवाज सुनाई देती रहती , वैसे जंगल इतना शांत था की हमे केवल अपने पैरो तले कुचले जाने वाले सुखो पत्तियो की आवाज सुनाई दे रही थी। मै, पंकज व जागंडा भाई सबसे पिछे चल रहे थे, एक जगह हम तीनो थोडी देर सांसो को सामान्य बनाने के लिए रूके, मतलब आराम के लिए रूके, अपनी अपनी बोतलो से पानी पीया, यह जगह जंगल के बीचो बीच गहन शांति वाली थी, यहां पर इतनी शांति थी की हमे अपनी सांसो की आवाज भी बहुत तेज सुनाई दे रही थी। जब हम रूकते तो ठण्ड लगने लगती जब चलते रहते तो ठण्ड नहीं लगती बल्की गर्मी लगती।
यहां से थोडी देर बाद हम चल पडे, हमारे साथियो की आवाज सुनाई नही पड रही थी, मै भी पंकज व जांगडा से आगे हो गया, तकरीबन आधा घंटे बाद मुझे एक कमरा सा दिखलाई पडा, ओर उसके पास एक बडा सा मैदान जो चारो ओर से जंगल से घिरा था, कमरे के पास तीन टैंट लगे थे, जो शायद हम जैसे ट्रैकर ही थे, यह कमरा जंगल विभाग वालो का था, जिसमे दो कमरे बने है जो गंदे थे क्योकी इसमे खच्चर व खच्चरो के मालिक रात गुजारते है। इन कमरो से कुछ दूर हमारे साथी रूके हुए थे ओर सारा समान एक जगह रखा था, वहां पहुचते ही नीरज ने कहा की चलते चलते शरीर गर्म रहता है पसीने भी आते है इसलिए अंदर के कपडे चेंज कर लो नही तो ठंड लग सकती है। सबने इधर उधर जाकर अपने कपडे चेंज कर लिये ओर दिन छिपने से पहले उजाले में ही अपने अपने टेंट लगा लिए, अब आग जलाने के लिए लकडी लेने जाना था बस, तभी एक पेड दिखलाई दिया जो दीमक के खाने की वजह से खोखला हो चुका था, काफी मसक्कत करने के बाद वह पेड हमने तोड दिया पर ज्यादा भारी होने के कारण हम उसे ऊपर ना ला सके ओर वही उसको तोडने लगे, थोडा सा ही तोड पाए ओर वह पेड रपट कर नीचे जंगल मे गिर गया, हम बहुत हताश हो गए, क्योकी उसके लिए हमने बहुत महनत की थी, में और नीरज नीचे जाकर जंगल से ओर लकड़ी ले आए, ओर आसपास से भी हमने बहुत सारी लकडी इक्कठी कर ली। आग जला दी गई, नरेंदर व दोनों महिलायो को चाय बनाने के लिए बोल कर हम तीनो(मै, नीरज व पंकज) एक पहाडी पर बैठ गए, वहां से सूर्यास्त का बेहतरीन नजारा देखने को मिला, हम आपस मे बात कर रहे थे की मुझे नागदेवता मन्दिर के पास पेडो के बीच कुछ हलचल सी दिखाई दी, नीरज ने कैमरे से जूम कर के देखा तो हिमालयन रेड फॉक्स (लोमडी) थी वो भी दो, कुछ देर बाद वह दोनों लोमडी जंगल में चली गयी फिर जंगल से बंदरो की आवाज आने लगी।
हम तीनो बाद मे मन्दिर के पास गए, यह मंदिर नाग देवता को समर्पित है जो यहाँ के देवता है, मंदिर के पास ही एक पानी का कुण्ड है जिसमे पानी था. मंदिर के पास एक नया मंदिर और बना है. कुछ टीन सैड भी गिरे है जिनमे से कुछ टूटे फूटे है। अब कुछ अंधेरा होने लगा था इसलिए हम वहां से ही लौट आए।
जब टैंट के पास आए तो अंधेरा पूरे क्षेत्र मे फैल चुका था, चाय बनाने के लिए रखी जा चुकी थी, साथ मे रात के लिए खिचडी बननी थी उसके लिए सभी अपने अपने हिसाब से काम कर रहे थे, कोई प्याज तो कोई टमाटर काट रहा था, साथ में हंसी मजाक का दौर भी चल रहा था, जंगल मे मंगल हो रहा था, ऊपर देखा तो आसमान में तारे पूरी चमक के साथ झिलमिला रहे थे, ओर लग रहा था जैसे वो आज धरती के कुछ ज्यादा ही नजदीक
आ गए हो। तभी एक पहाडी कुत्ता हमारे पास आ गया, वह बेहद शांत लग रहा था, हमने उसे बचा परांठा व बिस्कुट दिए। फिर तो वह रात तक हमारे साथ ही रहा।
तकरीबन दो घंटे में हमारी खिचडी बन कर तैयार हुए, खिचडी के बनने मे लगे समय को देखकर बीरबल की खिचडी वाली कहानी याद आ गई, एक बार फिर चाय बना डाली, खिचडी खाने मे स्वादिष्ठ बनी थी, मैने तो दो बार खिचडी खाने के लिए ली। खिचड़ी खाने के बाद भी हम लोग आग के पास बैठे रहे. चारो तरफ घुप अँधेरा छाया हुआ था, में सोच रहा था की हम इतनी दूर केवल इस सुनसान काली रात व इस सन्नाटे को महसुस करने के आये है। यह रात आज कितनी भी लम्बी क्यों ना लगे पर बाद में यही रात हमारे जेहन बस जाएगी। इस ट्रैक पर किताबों की पढ़ी बातें वास्तविक रूप से अनुभव की जैसे एक इंसान को अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए हर कठनाई का सामना खुद करना होता है,लोग आपके साथ तोह रहगे लकिन राह पर खुद ही चलना होगा। यहाँ हम एक अंजान जगह है हर कोई काम कर रहा है सब मिलजूल कर काम कर रहे है यही संगठन है और जहां संगठन है वहां हर काम आसानी से हो जाता है।
काफी देर बाद हम सभी अपने अपने टेंटो में जाने लगे। शायद रात के दस बज रहे थे, ठंड भी लग रही थी, नीरज ने अपने बैग से एक मौसम नापने का यंत्र निकाला तो वह माइंस मे टैमप्रेचर दिखा रहा था, रात को उसे बाहर पत्थर पर ही रख दिया, और फिर सब अपने अपने टैंट में आकर लेट गए, ओर अपने अपने स्लिपिंग बैग में घुस गए, ठंड के कारण मेरे पैर सुन्न हो रहे थे फिर मैने अपने बैग से एक गरम चादर निकाल कर अपने पैरो पर लपेट ली, उसके बाद तो थोडी देर बाद मुझे पता ही नही चला की मै कब सो गया।
त्यागी जी अपनी बनायीं खिचड़ी हमेसा श्वादिस्ट होती है और फ़ोटो में निखार आ रहा है
जवाब देंहटाएंसही कहां वो भी जंगल में बनी हो तो बात ही कुछ ओर है।
हटाएंधन्यवाद गुप्ता जी।
बहुत बढ़िया त्यागी जी... यादें ताजा हो गईं...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नीरज।
हटाएंमज़ेदार वर्णन,सूंदर चित्र
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रमेश जी।
हटाएंअतिसुन्दर।
जवाब देंहटाएंपारिवारिक यात्रा का भी अपना ही मजा है।
यह खिचड़ी देख कर मुझे भी पातालकोट वाली विलक्षण खिचड़ी याद आ गई।
डा० साहब यह खिचडी भी कभी कभी अच्छी लग ही जाती है।
हटाएंशुक्रिया जनाब।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबढ़िया यात्रा सचिन भाई।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई।
हटाएंआपका लेख पढ़ते हुए ऐसा लग रहा है जैसे हम अभी भी यात्रा पर ही हैं । बहुत बढ़िया भाई।
जवाब देंहटाएंहाहाहाहा सही कहां आपने सुखविंदर पाजी।
हटाएंबहुत बढ़िया , रोमांचक ......आपके साथ नाग टिब्बा ट्रेक का मजा आ गया हमे भी | रात के टेंट में रुकने मजा शायद आप लोगो को जायदा अनुभव हो पर हमे भी अच्छा लगा.... फोटो अच्छे लगे
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रितेश गुप्ता जी।
हटाएंमजा आया ! आपको ट्रेक करके और मुझे पढ़के ! नीरज परिवार के साथ था ? नरेश जी और जांगड़ा भाई को पहिचान रहा हूँ ! वृतांत इतना सटीक है कि अगर कोई वहां जाना चाहे तो कोई परेशानी नहीं होने की ! फोटो सुन्दर और सटीक जगह के हैं !!
जवाब देंहटाएंयोगी जी सही अनुमान लगाया आपने।
हटाएंऔर यात्रा वृतांत पसंद करने के लिया शुक्रिया।
8.5 किमी में 1400 मीटर की ऊंचाई ट्रैकिंग में मायने रखती है।
जवाब देंहटाएंफोटोज अच्छे लगे।
पहाड़ी आबो-हवा संगठन की भावना को स्फूर्त करती है, वैसे भी इस ट्रैकिंग में आप एक अच्छी टीम का हिस्सा बने हुए थे। इस आनन्दमयी ट्रैकिंग के बाद आशा है हमें भविष्य में आप द्वारा ओर भी ट्रैकिंग से रूबरू करवाओगे।
शांत पहाड़ी जगह की शाम व रात्रि में तारों से भरी आभामण्डल छत का अहसास कराने के लिए शुक्रिया सोनु भाई 😊
कोठारी जी शुक्रिया।
हटाएंवैसे शुरू मे दो ओर बाद की दो को छोडकर ज्यादा चढाई नही थी, नए नए ट्रैकर मुझ जैसे समझ लो, उनके लिए अच्छी जगह है। ओर जैसा महसुस किया वोही लिखा मैने।
घुम्मकड़ी मण्डली के साथ यात्रा रोमांचकारी सिद्ध होती है, आपकी नाग टिब्बा यात्रा काफी रोमांचक है, यात्रा लेख ट्रेकिंग से भी ज्यादा रोमांचक है। एक अच्छी पोस्ट की वृद्धि के लिए आपको ढ़ेरों बधाइयाँ ...!!!
जवाब देंहटाएंशैलेंद्र जी जब घुमक्कड़ मंडली थी तब तो यह यात्रा रोमांचकारी होनी ही थी।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद भाई।
बढ़िया लेखन सचिन भाई..... सुन्दर यात्रा वृतांत ।
जवाब देंहटाएंडा० साहब शुक्रिया ।
हटाएंबढ़िया यात्रा चल रही है सचिन , पर जो चलता है पैर भी उसके ही दुखते है हम तो आराम से घर में बैठ कर पढ़ रहे है और आहें ले रहे है पर तुमने हर चीज महसूस की है और उसका अलग ही मजा है।
जवाब देंहटाएंजी बुआ जी ट्रैकिंग का एक अलग ही मजा है। धन्यवाद बुआ।
हटाएंयात्रा में हसी मजाक के पल होना चाहिए यात्रा की थकावट दूर चली जाती है यात्रा मजेदार है सचिन भाई
जवाब देंहटाएंजी लोकेंद्र जी जिन्दगी में हंसी मजाक ना हो तो वह बडी बोझिल सी लगने लगती है।ओर यात्राएं भी जिन्दगी का एक बडा महत्वपूर्ण हिस्सा होती है, यह वह पल होते है जो हमारे सबसे अच्छे होते है।
हटाएंधन्यवाद लोकेंद्र जी।
युही कट जायेगा सफ़र साथ चलने से .....
जवाब देंहटाएंजांगड़ा जी और नीरज जी जैसे मित्र साथ हो तो सफ़र आसान हो ही जाता है ।यात्रा का मजा तभी आता है जब आपका साथी अच्छा हो ।
सच में आप लोगो में जंगल में मंगल कर दिया था ।
खिचड़ी आपने तो दो प्लेट खायी पर जांगड़ा जी ने कितनी ये बताया नहीं । हा हा हा
नरेश जी आप सभी का प्लान एक साथ बना पर आपने ट्रैकिंग अलग अलग की ये बात समझ न आई ।
जय हिन्द
युही कट जायेगा सफ़र साथ चलने से .....
जवाब देंहटाएंजांगड़ा जी और नीरज जी जैसे मित्र साथ हो तो सफ़र आसान हो ही जाता है ।यात्रा का मजा तभी आता है जब आपका साथी अच्छा हो ।
सच में आप लोगो में जंगल में मंगल कर दिया था ।
खिचड़ी आपने तो दो प्लेट खायी पर जांगड़ा जी ने कितनी ये बताया नहीं । हा हा हा
नरेश जी आप सभी का प्लान एक साथ बना पर आपने ट्रैकिंग अलग अलग की ये बात समझ न आई ।
जय हिन्द
धन्यवाद किसन भाई।
हटाएंसही कहां यात्रा हो जिन्दगी हमसफर अच्छा ही होना चाहिए।
जांगडा भाई ने खिचडी पहली बार मे डबल ले ली थी। हा हा हा..
नरेश जी गए भी अलग थे ओर उनका प्रौगराम भी अलग था, उन्होने पहले ही बता दिया था इस बारे में।
क्या सुखद क्षण रहे होंगे वो। आपके बताने से ही खुद को वहाँ महसूस कर रहे हैं। इतनी दूर उस शांति ,उस ख़ूबसूरती को आत्मसात करने ही तो पहुंचे सचिन भाई। बहुत सुन्दर लेख।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रूपेश जी।
हटाएंक्या बात है सचिन भाई। यात्रा का मजा आ रहा है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शुशील जी।
हटाएंmaine ye bhag bhi padh liya maza aa gaya, thanks sachin jee, itna acha varnan karne ke liye
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सिन्हा जी। मैने तो इस यात्रा में जो देखा व महसूस किया वही लिखा। आपने दिल से पढी और महसूस किया उसके लिए धन्यवाद।
हटाएंयात्रा वृतांत आपके ओर जाट साहब के
जवाब देंहटाएंविलक्षण
पढ़ाने का शुक्रिया
धन्यवाद महेश पालीवाल जी , जब नीरज साथ होगा तो वह यात्रा अपने आप में बड़ी रोचक बन जाती है , उसकी बात ही निराली है , आते रहिये ब्लॉग पर आपका सवागत है ...
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