हम शाम के 5:30 पर रेणुका जी पहुचं गए,सबसे पहले हमने रहने के लिए कमरा ढुंढना उचित समझा,रेणुका जी में ही हिमाचल प्रदेश सरकार का एक होटल बना है जो बिल्कुल झील के सामने ही बना है,हमने गाडी वही बनी पार्किग में खडी की ओर हिमाचल पर्यटन विकास के इस होटल में पहुचं गए,कमरे के लिए पुछा तो पता चला की सब के सब कमरे पहले से ही भरे हुए है,यहां से हम मुंह लटकाकर बाहर आ गए,
झील के पास ही हमे कुछ रोशनी सी होती नजर आई,घन्टो की ध्वणि बडी मधुर लग रही थी,पूरा माहौल बडा रमणिक हो रहा था,हमने आगे चल कर देखा तो यहां पर कुछ आश्रम व मन्दिर बने है,हम एक आश्रम में पहुचें जहां पर एक बुढे बाबा बैठे थे,हमने इनसे पुछा की क्या रहने को कमरा मिल सकता है,तब वह बाबा बोले की शराब,अंडा,मीट तो नही खाते हो,..
मैने जबाव दिया की..नही जी बिल्कुल भी नही
इस पर उन्होने हमे कमरा दिखा दिया,पूरे आश्रम में हम ही थे ओर कोई नही था,कमरा देखा ठीक ठाक था पर शौचालय बहुत दूर था ओर आश्रम में हम ही थे,इसलिए मेने परिवार की सुरक्षा के खातिर वहां नही रहने का विचार कर लिया,
बाहर अब बिल्कुल अंधेरा फैल चुका था,मेरा बेटा देवांग को भूख लग रही थी,क्योकी हमने करनाल मे ही खाना खाया था,बुढे बाबा से यह कहकर बाहर आ गए की हम खाना खाने जा रहे है,अगर हम एक घन्टे में लौटकर नही आए तो समझ लेना की हम कही ओर ठहर गए है, रेणुका जी मे ओर कोई रहने का इन्तजाम नही है,इसलिए रेणुका जी से दो कि०मी० पहले एक कस्बा है ददाहु,जहां हमने पहुचं कर एक होटल जो गिरी नदी के किनारे बना हुआ था.नाम था होटल गिरी व्यु मे पहुचें ओर रहने के लिए एक कमरा ले लिया,कमरा अच्छा था ओर होटल में बहुत से पर्यटक भी ठहरे हुए थे,काफी मोलभाव करने के बाद 700 रू० मे कमरा मिल गया,कमरे में समान रख कर हम खाना खाने के लिए एक छोटे से ढाबे पर पहुचें,वहा पुछा की खाने मे क्या मिल सकता है,ढाबे वाले ने बताया की दाल ओर आलू- गोभी की सब्जी ही मिल पाएगी पर मेरा बेटा देवांग पनीर मांगने लगा,इसलिए ढाबे वाले ने बराबर वाली दुकान से पनीर मंगा कर पनीर बना दिया,खाना खाकर हमने पुछा की भाई कितने हुए तो वह बोला की जितने देने हो दे दो,मेने कहां की नही भाई आप बताओ तो उसने हिसाब लगाकर 190 रू बताए,मेने उसको 200 रू दिए ओर सीधे होटल मे आ गए......
अब कुछ रेणुका जी के बारे मे..
रेणुका जी हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर की शिवालिक पहाडियों पर बसा एक छोटा सा व एक सुन्दर जगह है,यह गिरी नदी के पास बसा हैओर गिरी नदी की दूसरी तरफ ददाहु नाम का कस्बा भी है जहा पर होटल,दुकाने आदि है,रेणुका जी में एक झील है,जो बडी पवित्र मानी जाती है,यह जगह भगवान परशुराम की जन्मस्थली भी है, ओर रेणुका जी परशुराम जी की माता का नाम था,पर इस झील का नाम रेणुका झील क्यो पडा इसके पिछे एक कहानी छुपी है.......
कभी पहले यह घनघोर जंगल हुआ करता था,यहा पर ऋषि जमदग्नि ओर उनकी पत्नी भगवती रेणुका जी का आश्रम था,उनके पुत्र राम (जो बाद मे शिव जी के फरसे के कारण परशुराम कहलाए)रहते थे,बालक राम अपनी तपस्या के लिए कही गए हुए थे,उसी दौरान जंगल में शिकार खेलने के लिए राजा सह्त्रबाहु आया,बह भूखा प्यासा था इसलिए वह जमदग्नि के आश्रम में पहुचां तब रेणुका जी ने उन्हे बहुत स्वादिष्ट कई तरह के व्यंजन दिए खाने के लिए,राजा भोजन के बाद बहुत खुश हुआ उन्होने रेणुका जी से पुछा की आप इस जंगल में इतने स्वादिष्ट भोजन कहां से लेकर आई ,तब रेणुका जी ने उन्हे कामधेनु गाय के विषय में बताया की जिस चीज की आप इक्छा करेगे यह कामधेनु गाय उन सभी इक्छाओ को पूरा करती है,तब राजा सहत्रबाहु ने अपने बल के जोर पर वह गाय अपने अधिकार में ले ली ओर ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी,ओर बल पूर्वक माता रेणुका को भी ले जाने लगा तब रेणुका जी ने अपनी लाज बचाने के लिए,राम सरोवर नामक सरोवर मे जल समाधि ले ली,
जब भगवान परशुराम बडे हुए ओर शिव से शस्त्र शिक्षा ली तो वह अपने घर पहुचें जब उन्हे राजा सहस्त्रबाहु के इस अपराध के बारे में पता चला तब उन्होनो राजा सहस्त्रबाहु व उसकी सम्पूर्ण सेना का विनाश अपने फरसे से कर दिया तब से ही वह राम से भगवान परशुराम कहलाए,
उन्होने अपने तपोबल से अपने पिता ऋषि जमदग्नि को जिन्दा कर दिया ओर अपनी मां को भी रामसरोवर से बाहर आने पर मजबूर कर दिया पर भगवती रेणुका जी ने परशुराम जी को वचन दिया की वह हर वर्ष देव प्रवोधिनी एकादशी को इस सरोवर से बाहर आया करेगी ओर सभी को दर्शन दिया करेगी ओर उनको आशिर्वाद देगी,इतना कहकर मां भगवती रेणुका जी रामसरोवर के जल मे विलिन हो गई,तब से यह सरोवर रेणुका झील कहलाने लगा,
इसलिए आज यहां पर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मेला लगने लगा,जहां पर भक्तगण मां रेणुका जी के दर्शन करने के लिए आते है....
अब कुछ चित्र भी देखे.....
झील के पास ही हमे कुछ रोशनी सी होती नजर आई,घन्टो की ध्वणि बडी मधुर लग रही थी,पूरा माहौल बडा रमणिक हो रहा था,हमने आगे चल कर देखा तो यहां पर कुछ आश्रम व मन्दिर बने है,हम एक आश्रम में पहुचें जहां पर एक बुढे बाबा बैठे थे,हमने इनसे पुछा की क्या रहने को कमरा मिल सकता है,तब वह बाबा बोले की शराब,अंडा,मीट तो नही खाते हो,..
मैने जबाव दिया की..नही जी बिल्कुल भी नही
इस पर उन्होने हमे कमरा दिखा दिया,पूरे आश्रम में हम ही थे ओर कोई नही था,कमरा देखा ठीक ठाक था पर शौचालय बहुत दूर था ओर आश्रम में हम ही थे,इसलिए मेने परिवार की सुरक्षा के खातिर वहां नही रहने का विचार कर लिया,
बाहर अब बिल्कुल अंधेरा फैल चुका था,मेरा बेटा देवांग को भूख लग रही थी,क्योकी हमने करनाल मे ही खाना खाया था,बुढे बाबा से यह कहकर बाहर आ गए की हम खाना खाने जा रहे है,अगर हम एक घन्टे में लौटकर नही आए तो समझ लेना की हम कही ओर ठहर गए है, रेणुका जी मे ओर कोई रहने का इन्तजाम नही है,इसलिए रेणुका जी से दो कि०मी० पहले एक कस्बा है ददाहु,जहां हमने पहुचं कर एक होटल जो गिरी नदी के किनारे बना हुआ था.नाम था होटल गिरी व्यु मे पहुचें ओर रहने के लिए एक कमरा ले लिया,कमरा अच्छा था ओर होटल में बहुत से पर्यटक भी ठहरे हुए थे,काफी मोलभाव करने के बाद 700 रू० मे कमरा मिल गया,कमरे में समान रख कर हम खाना खाने के लिए एक छोटे से ढाबे पर पहुचें,वहा पुछा की खाने मे क्या मिल सकता है,ढाबे वाले ने बताया की दाल ओर आलू- गोभी की सब्जी ही मिल पाएगी पर मेरा बेटा देवांग पनीर मांगने लगा,इसलिए ढाबे वाले ने बराबर वाली दुकान से पनीर मंगा कर पनीर बना दिया,खाना खाकर हमने पुछा की भाई कितने हुए तो वह बोला की जितने देने हो दे दो,मेने कहां की नही भाई आप बताओ तो उसने हिसाब लगाकर 190 रू बताए,मेने उसको 200 रू दिए ओर सीधे होटल मे आ गए......
अब कुछ रेणुका जी के बारे मे..
रेणुका जी हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर की शिवालिक पहाडियों पर बसा एक छोटा सा व एक सुन्दर जगह है,यह गिरी नदी के पास बसा हैओर गिरी नदी की दूसरी तरफ ददाहु नाम का कस्बा भी है जहा पर होटल,दुकाने आदि है,रेणुका जी में एक झील है,जो बडी पवित्र मानी जाती है,यह जगह भगवान परशुराम की जन्मस्थली भी है, ओर रेणुका जी परशुराम जी की माता का नाम था,पर इस झील का नाम रेणुका झील क्यो पडा इसके पिछे एक कहानी छुपी है.......
कभी पहले यह घनघोर जंगल हुआ करता था,यहा पर ऋषि जमदग्नि ओर उनकी पत्नी भगवती रेणुका जी का आश्रम था,उनके पुत्र राम (जो बाद मे शिव जी के फरसे के कारण परशुराम कहलाए)रहते थे,बालक राम अपनी तपस्या के लिए कही गए हुए थे,उसी दौरान जंगल में शिकार खेलने के लिए राजा सह्त्रबाहु आया,बह भूखा प्यासा था इसलिए वह जमदग्नि के आश्रम में पहुचां तब रेणुका जी ने उन्हे बहुत स्वादिष्ट कई तरह के व्यंजन दिए खाने के लिए,राजा भोजन के बाद बहुत खुश हुआ उन्होने रेणुका जी से पुछा की आप इस जंगल में इतने स्वादिष्ट भोजन कहां से लेकर आई ,तब रेणुका जी ने उन्हे कामधेनु गाय के विषय में बताया की जिस चीज की आप इक्छा करेगे यह कामधेनु गाय उन सभी इक्छाओ को पूरा करती है,तब राजा सहत्रबाहु ने अपने बल के जोर पर वह गाय अपने अधिकार में ले ली ओर ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी,ओर बल पूर्वक माता रेणुका को भी ले जाने लगा तब रेणुका जी ने अपनी लाज बचाने के लिए,राम सरोवर नामक सरोवर मे जल समाधि ले ली,
जब भगवान परशुराम बडे हुए ओर शिव से शस्त्र शिक्षा ली तो वह अपने घर पहुचें जब उन्हे राजा सहस्त्रबाहु के इस अपराध के बारे में पता चला तब उन्होनो राजा सहस्त्रबाहु व उसकी सम्पूर्ण सेना का विनाश अपने फरसे से कर दिया तब से ही वह राम से भगवान परशुराम कहलाए,
उन्होने अपने तपोबल से अपने पिता ऋषि जमदग्नि को जिन्दा कर दिया ओर अपनी मां को भी रामसरोवर से बाहर आने पर मजबूर कर दिया पर भगवती रेणुका जी ने परशुराम जी को वचन दिया की वह हर वर्ष देव प्रवोधिनी एकादशी को इस सरोवर से बाहर आया करेगी ओर सभी को दर्शन दिया करेगी ओर उनको आशिर्वाद देगी,इतना कहकर मां भगवती रेणुका जी रामसरोवर के जल मे विलिन हो गई,तब से यह सरोवर रेणुका झील कहलाने लगा,
इसलिए आज यहां पर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मेला लगने लगा,जहां पर भक्तगण मां रेणुका जी के दर्शन करने के लिए आते है....
अब कुछ चित्र भी देखे.....
रेणुका झील के बारे में जानकारी के लिए धन्यवाद....सचिन जी..!!
जवाब देंहटाएंशैलेन्द्र जी आपको मेरे ब्लॉग के माध्यम से जानकारी प्राप्त हुई यह मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण बात है...
हटाएंओर आपका भी धन्यवाद ब्लॉग पर टिप्पणी करने के लिए ...
रेणुका झील और आसपास की जगह बहुत ही सुन्दर लग रही हैं । एक बार घूमने लायक जगह है । बढ़िया वृतांत
जवाब देंहटाएंरेणुका झील और आसपास की जगह बहुत ही सुन्दर लग रही हैं । एक बार घूमने लायक जगह है । बढ़िया वृतांत
जवाब देंहटाएंयोगी जी धन्यवाद......
हटाएंहाँ...! जी यह जगह शहरी,शौर शराबे से दूर शांत व प्रकृति की सुन्दरता से भरपूर है,एक बार तो ऐसी जगह हो आना ही चाहिए..
बढि़या यात्रा वर्णन------- लिखते रहिए ।
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