04.Aug. 2015 दिन मंगलवार
सावन का महिना लग चूका है।ओर हर जगह भोलेनाथ का बोलबाला हो रहा है।कुछ लोग कांवड लाने की तैयारी मे लगे है तो कुछ ने कांवड ऊठा भी ली है। मनीष जो की मेरा दोस्त व पडौसी भी है। मैं ओर मनीष हर साल सावन के महिने मे मोटरसाइकल से हरिद्वार गंगाजल लाने के लिए जाते है। इस बार में हरिद्वार नही गया तो वह भी हरिद्वार नही गया। तब उसने मुझ से कहा की हरिद्वार तो नही गए लेकिन पुरामहादेव तो चल ही सकते है।बस फिर क्या था,सावन के शुरू होते है हम दोनों 4 अगस्त को पुरा महादेव के दर्शन करने के लिए चल पडे....
सुबह 9बजे के आसपास में(सचिन)मनीष के घर पहुँचा,जहां से उसकी बाईक ऊठाई ओर बंथला नहर के साथ साथ चलते हुए रटौल कस्बे से होते हुए, पिलाना भट्टा पहुँचे।यहां से अगर बायें चले तो बागपत पहुँच जाते है, पर हम पिलाने भट्टा से दायें मुड़ गए ओर तकरीबन तीन चार किलोमिटर चलने पर बायें ओर पुरामहादेव मन्दिर को जाते रोड पर मुड गए। हम अपने घर से लगभग सवा घंटे मे ही पुरामहादेव मन्दिर पहुँच गए। पुरामहादेव दिल्ली से लगभग 45km व मेरठ से 28km की दूरी पर स्थित है।यह एक सिद्ध पीठ है,जहां भगवान परशुराम ने शिव की अराधना की थी वह भगवान शिव ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए थे।
मेने व मनीष ने बाईक मन्दिर के नजदीक ही खड़ी कर दी। ओर पास ही फूल व प्रसाद की दुकान से प्रसाद ले लिया, हम शिव को जल चढ़ाने के लिए अपने अपने घर से गंगाजल लेकर आए ही थे, प्रसाद लेकर हम मन्दिर की तरफ चल पड़े। मन्दिर एक टिले पर स्थित है इसलिए थोड़ी सी सीढ़ियों पर चढना पड़ा।हम सीढ़ियों से होते हुए, एक गलियारे को पार करते हुए। परशुरामेश्वर महादेव मन्दिर पहुँचे।
मन्दिर कुछ बदला बदला सा लग रहा था, मन्दिर मे निर्माण कार्य चल रहा था, जब हम पहले यहां पर आए थे तब यहां पर बहुत भीड़ थी,दर्शन करना बड़ा मुश्किल हो रहा था। पर आज हम दोनों के अलावा यहां पर एक परिवार ओर था जो शिव पूजा कर रहा था। हमने भी शिव का गंगा जल से अभीषेक किया,पुष्प,दीप व धुप से शिव की पूजा की।
शिव की पूजा करने के बाद हम दोनों मन्दिर निर्माण हेतु मन्दिर समिति मे कुछ दान देकर बाहर आ गए।
महादेव(पुरामहादेव) मन्दिर:-परशुरामेश्वर मन्दिर(पुरामहादेव) की मान्यता रामेश्वर व बारह ज्योतिर्लिंग के समकक्ष ही मानी जाती है।यहां शिव अपने हर भक्त की हर मनोकामना पूर्ण करते है।
ऐसा माना गया है की काफी समय पहले यहां पर कजरी वन था।इसी वन मे जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका संग अपने आश्रम मे रहते थे।यह आश्रम हरनन्दी(आज की हिंडन नदी) के समीप ही था।
एक बार राजा सहस्त्रबाहु शिकार खेलते हुए ऋषि के आश्रम पहुचां, जहां पर रेणुका माता ने कामधेनू गाय की कृपा से राजा को राजसी व्यंजन खिलाए।जिन्हें देखकर राजा को बड़ी हैरानी हुई की इस जंगल मे इतनी जल्दी यह व्यंजन कैसे बन गए। तब रेणुका जी ने उन्हें कामधेनू गाय के बारे मे बताया।
राजा ने गाय को अपने महल मे ले जाना चाहा पर कामधेनू गाय टस से मस नही हुई।तब राजा गुस्से में आकर रेणुका माता को ही उठाकर अपने साथ हस्तिनापुर अपने महल ले गया।
जब जमदग्नि ऋषि अपने आश्रम पहुचे तब उन्हें राजा सहस्त्रबाहु के इस कुकृत्य के बारे मे पता चला तब उन्हें बड़ा क्रोध आया।उधर राजा की अनुपस्थिति मे रानी ने रेणुका को मुक्त कर दिया।क्योकी वह रेणुका की छोटी बहन थी।रेणुका वहां से चलकर आश्रम पहची ओर सारा वृतांन्त ऋषि जमदग्नि को बताया।पर ऋषि ने रेणुका जी से आश्रम छोड़ देने के लिए कहा।क्योकी तुम एक रात पराये पुरूष के यहां बिताकर आयी हो इसलिए तुम यहां आश्रम मे नही रह सकती हो।लेकिन रेणुका जी ने कहां की वह आश्रम छोड़कर कही नही जाएगी।लेकिन उन्हें उनपर विश्वास नही है तो वह अपने हाथ से उसे मार दे जिससे पति के हाथों मरने पर उसे(रेणुका)मोक्ष प्राप्त हो जाए।
ऋषि ने उनकी इक्षा पूर्ण करने के लिए अपने पुत्रों को बुलाया ओर उन्हें आदेश दिया की तुम अपनी माता का सर धड़ से अलग कर दो, पर तीन पुत्रों ने मना कर दिया तब ऋषि ने अपने चौथे पुत्र राम(परशुराम) को बुलाया ओर उसे आदेश दिया की वह अपनी माता का सर धड से अलग कर दे।तब परशुराम ने कहा की पिता की आज्ञा मेरा धर्म है।यह कहकर उन्होंने अपनी माता का सिर धड से अलग कर दिया।लेकिन बाद मे उन्हें इस कार्य का घोर पश्चाताप हुआ।
इसी पश्चाताप वश परशुराम जी ने यही( पुरा गांव)मे आकर एक टिलेे पर शिवलिंग की स्थापना की व घोर तपस्या की।इसी स्थल पर भगवान परशुराम जी की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर प्रलयंकारी भगवान आशुतोष(शिव) ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए व प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मे अपना फरसा व उनकी माता को पूर्ण जीवित कर दिया। फरसा मिलने पर ही वह परशुराम कहलाए। बाद में उन्होंने अपने फरसे से सहस्त्रबाहु व अन्य पापी क्षत्रियो को मार डाला।
पुरामहादेव गांव मे आज भी वह शिवलिंग मौजूद है जो भगवान परशुराम ने स्थापित किया था।इसके दर्शन मात्र से ही शिव की कृपा हो जाती है।यह शिवलिंग शिव व शक्ति के रूप मे परशुराम मन्दिर मे हमे साक्षात दर्शन दे रहा है। व सभी मुरादे पूरी कर रहा है........
अब यात्रा वृतांन्त पर आते है.......
पुरा महादेव मन्दिर से बाहर आकर हम दोनों ने महार्षि बाल्मीकि आश्रम व लव कुश जन्म स्थली जाने का फैसला किया।पुरामहादेव मन्दिर से लगभग 3km दूरी पर यह आश्रम है,
मेरठ बागपत रोड पर बलैनी के पुल से पहले है, एक रास्ता इस मन्दिर या आश्रम की तरफ चला जाता है।
"एक बार जब हम हरिद्वार से गंगा जल लेकर पुरा जा रहे थे तब यही मन्दिर के पास रोड पर बने एक ट्युबवैल पर हम नहाए थे।"
मैं ओर मनीष पुरा महादेव मन्दिर से मात्र थोड़ी ही देर मे यहां पहुँच गए। यह मन्दिर भी एक टिले पर स्थित है।यहां पर एक स्कूल भी चल रहा था।हम मन्दिर के बाहर बनी एक मात्र दुकान से प्रसाद व पुष्प खरीद कर मन्दिर मे चले गए।
मन्दिर मे बड़ी शांति थी हमारे अलावा कोई अन्य यहां नही था। हर तरफ छोटे बड़े मन्दिर बने हुए थे। जहां पर एक दो संन्यासी बैठ हुए थे। हम दोनों बारी बारी सभी मन्दिरो के दर्शन कर आए।
यह आश्रम महर्षि बाल्मीकि की तपोभूमी थी।यही पर राम ने राजा बनने के बाद सीता को दोबारा बनवास दिया था,तब वह यही आकर रही व लव कुश की जन्मस्थली भी यही पावन जगह है।ओर बाद मे सीता जी इसी जगह धरती मे समा गई।
यहां पर हमने एक बाबा मिले उनसे मेने यह पता करना चाहा की क्या वाकई यह वही जगह है जहां पर लव-कुश का जन्म हुआ व सीता धरती मे समाई।इस प्रश्न के उत्तर मे उन्होंने यह जवाब दिया की जैसे एक राम हमारे मन मे रहते है ओर एक रामायण मे,ऐसे ही कुछ कारणों व कुछ तथ्यों के आधार पर यह जगह लव-कुश की जन्मस्थली मानी गई है।
हम दोनों ने उन बाबा को प्रणाम किया ओर मन्दिर से बाहर आ गए।बाहर खडी बाईक ऊठा कर,वापिस घर की ओर चल पडे..................................
अब कुछ फोटो देखे जाए इस यात्रा के....
.......
मै पुरा महादेव तक तो गया था ।पर मुझे इतनी पास हो के भी लव-कुश मदिंर का नहीं पता था ।
जवाब देंहटाएंसचिन भाई!! लव-कुश मन्दिर पुरामहादेव मन्दिर से मात्र तीन चार किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित है।अब कभी उधर जाए तब अवश्य देख आना।
हटाएंBhai pura mahadev ke dardhan karvane ke liye dhanyevaad pura mahadev ke baare me suna tha aap ne to puri jaankari de di
जवाब देंहटाएंविनोद भाई धन्यवाद!
हटाएंपरशुराम जी की कथा के बारे में जानकर अच्छा लगा, यात्रा वृत्तांत तो अच्छा है ही,मुझे लव कुश जन्म स्थल के बारे में जानकारी नहीं थी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद हर्षिता जोशी जी।
जवाब देंहटाएंयात्रा वर्णन अच्छा लगा .... ब्लाग में छायाचित्र स्वंय के द्वारा खींचे लगाये जाते हैं तो यात्रा वर्णन निखार के साथ जीवन्त हो जाता है ............!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शैलेन्द्र भाई।
जवाब देंहटाएंसही कहां यात्रा वृतांन्त मे छायाचित्र बहुत बड़ी भूमिका निभाते है।ओर अगर वह अपने द्वारा खिंचे हो तो बाद तक यात्रा की अभिष्ट छाप हमारे मन,मस्तिष्क में रहती है।
nic bahut hi gyanwardhak
जवाब देंहटाएंthanks
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