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शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017

ओरछा यात्रा (चतुर्भुज मन्दिर व बेतवा नदी)

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24 dec 2016

मैं झाँसी का किला देखकर ओरछा के लिए निकल पड़ा। एक जगह गलत मुड़  गया और झाँसी की तहसील में जा पंहुचा। फिर वहां से रास्ता पूछ कर सही रास्ते पर आ गया। हुआ ये की मैंने रास्ते में खाने को फल लिए , फल वाले ने ओरछा जाने के लिए अगले चौक से सीधे रास्ते को मुड़ने को बोल दिया, मैं मुख्य चौक की जगह पहले चौक से ही मुड़ गया। चलो कोई नहीं पांच मिनट बाद ही में सही रास्ते पर आ चूका था। यहाँ से ओरछा मात्र 19 km की दूरी पर था। रास्ता सिंगल ही था। लकिन अच्छा बना था। जैसे जैसे मैं ओरछा के नजदीक जा रहा था वैसे ही मन में एक अलग किस्म की ख़ुशी का एहसास हो रहा था। क्योकि अब तक बहुत से घुमक्कड़ दोस्त ओरछा पहुच चुके होंगे। और सब एक साथ एक जगह मौजूद होंगे। मैं कुछ पल भी छोड़ना नहीं चाहता था। इसलिए अब मुझे ओरछा दूर दिख रहा था, जबकि वो कुछ ही समय की दूरी पर था। जैसे कोई बच्चा जन्मदिन पर मिले उपहार को जल्दी से खोलना व देखना चाहता है वैसे ही मैं भी ओरछा जल्दी पहुँचना चाहता था।

रोड अच्छा था और ट्रैफिक भी बिलकुल नहीं था। मेरी कार हवा को चीरते हुए आगे बढ़ी जा रही थी। थोड़ी देर बाद एक नदी पड़ी उसको पार करने के बाद ही ओरछा लिखा हुआ मिला। अब मन को अच्छा लग रहा था। थोड़ा और चलने पर दो पुराने बड़े दरवाजे दिखे जिसके नीचे से निकल कर मैं सीधा जहांगीर महल के पास बनी पर्किंग के सामने जा कर रुक गया और मुकेश पांडेय जी को फ़ोन किया की मैं एक पार्किंग में खड़ा हू। उन्होंने बोला की वो किसी को भेज रहे है आप वही पर प्रतीक्षा करे। थोड़ी देर बाद मेरे फेसबुक मित्र सूरज मिश्र व एक अन्य व्यक्ति मुझे लेने आ पहुँचे। मैंने मिश्र जी को देखते ही पहचान लिया था। उनकी भाषा मुझे बड़ी पसंद आयी। उन्होंने बताया की सभी घुमक्कड़ मित्र चतुर्भुज मन्दिर पर ही है इसलिए आप भी वही चलिए। देवांग आगे आगे मिश्र जी के साथ चल रहा था। हम पीछे पीछे चल रहे थे। कुछ ही देर बाद हम मंदिर पहुँच गए।

चतुर्भुज मंदिर चार मंजिला (तल) बना है। प्रथम तल पर एक मंदिर है, जिसमे श्री कृष्ण विराजमान है। यही पर सभी मित्र मिल गए। कुछ से मैं पहली बार मिल रहा था। सभी से मिलकर बहुत अच्छा लग रहा था। अभी दो दिन से मै अकेला ही घूम रहा था अब परिवार वाली फीलिंग मन में आ रही थी। फिर हम सभी चतुर्भुज मन्दिर की सबसे ऊपर वाली छत पर पहुँच गए। यहाँ से पूरे ओरछा का 360 डिग्री का द्रश्य दिख रहा था। राजा राम का मंदिर , जहांगीर का महल, बेतवा नदी व राजाओ की छतरिया और भी बहुत सी इमारते दिख रही थी। यहाँ पर सभी फोटो खींचने में मस्त हो गए थे। कुछ देर बाद हम सभी नीचे चल पड़े। मैं अलग सीढ़ियों से नीचे आया क्योकि मैं ये जानना चाहता था की यह सीढिया भी नीचे जाती है या नहीं। खैर निचे वाले तल से पहले हमे यह सीढिया बंद मिली और हमे काफी घूम कर वापिस पुराने या पहले वाले रास्ते से ही वापिस आना पड़ा। चतुर्भुज मंदिर के एक झरोखे से सामने दिखता जहांगीर महल बहुत सुन्दर प्रतीत हो रहा था। मैं कभी कभी पूरानी इमारतों को देख कर उस काल में जाना चाहता हू जब इन इमारतों में चहल पहल होती थी। खैर हम नीचे आ गए और होटल की तरफ चल पड़े। चतुर्भुज  मंदिर को ओरछा के राजा मधुकर शाह ने बनवाया था लकिन इस मंदिर में पहले भगवान राम की मूर्ति स्थापित होनी थी लकिन ऐसा हो ना सका और श्री कृष्ण की मूर्ति यहाँ पर स्थापित करनी पड़ी। इसकी एक कहानी है जो अगली पोस्ट में आप पढ़ेंगे।

हम एक गली से निकल कर हरदौल की बैठक पर पहुचे। हरदौल यहाँ के स्थानीय देवता है, वैसे यह ओरछा के राजा वीर सिंह जी के सबसे छोटे पुत्र थे, जिनको उन्ही के बड़े भाई जुझार सिंह ने षडयंत्र रच कर विष पिला कर मार दिया था। एक बार जब इनकी बहन अपनी पुत्री के विवाह के अवसर पर जुझार सिंह को भात का न्यौता देने आयी तब जुझार सिंह ने बहन को भात देने से मना कर दिया। क्योकि वह हरदौल की प्रिय थी। वह हरदौल की समाधी पर आकर रोने लगी तब हरदौल की आत्मा ने आकर अपनी बहन से कहा की वह भात देने आएगा तुम शादी की तैयारिया करो। और शादी के दिन हरदौल की आत्मा ने भात दिया तभी से हरदौल लोक देवता के रूप में पूजे जाने लगे।

फिर हम लोग फूलबाग से निकले वहाँ पर मैंने एक बड़ा का कटोरा देखा जिसे चन्दन का कटोरा कहते है। इसका प्रयोग युद्ध पर जाने वाले सैनिको के माथे पर तिलक लगाने के लिए ,चन्दन का लेप बनाने के लिए होता था।
यहाँ से हम मंदिर के पीछे से होते हुए, एक होटल में पंहुचे जहां पर दोपहर के खाने का कार्यक्रम रखा हुआ था। खाने में सब्जी पूरी थी, दो पूरी खाई गयी और ऊपर की मंजिल पर बने एक कमरे को रुकने के लिए आरक्षित किया और कार को पार्किंग से लाकर होटल के पीछे बने एक टीले पर खड़ी कर दी। होटल में समान रख हम सभी बेतवा नदी के किनारे पर बने एक पार्क में पहुंचे। यहाँ से बेतवा के दूसरे किनारे पर बनी राजाओं की छतरिया (समाधी स्थल ) बहुत सुन्दर लग रही थी। सभी दोस्त अपने अपने कैमरे लिए इधर उधर की फोटो उतार रहे थे। पांडेय जी ने एक पेड़ दिखया जहां पर मेंगो स्लाइस नामक कोल्डड्रिंक का विज्ञापन शूट हुआ था। जिसमे कटरीना कैफ इसी पेड़ के नीचे बैठी थी। वो पेड़ भी देखा। मैं कुछ हट कर शांति में बेतवा के किनारे पर बैठ गया। बेतवा का निर्मल जल कल कल करता बह रहा था। कुछ छोटे छोटे शंख या सिपिया बेतवा के जल में दिख रही थी। देवांग तो उनसे ही खेल रहा था। ग्रुप से कुछ नदी में बोटिंग का मजा ले रहे थे। अब शाम भी ढल चुकी थी। और दूर मंदिर से आरती की ध्वनियां भी इस शाम को और यादगार कर रही थी। मुम्बई से आने वाली दर्शन बुआ और बाकि मित्र भी आ चुके थे। सब मिलकर वापिस चल पड़े , नदी पर बने एक पतले से पुल को पार कर के सबने चाय पी और फिर राजा राम मंदिर की तरफ चल पड़े।

यात्रा अभी जारी है। .. 

पिछला भाग....  
अगला भाग..... 

अब कुछ फोटो देखे जाये>>>>कुछ फोटो मेरे मित्रो ने भी दिए है.... 


ओरछा का प्रवेश द्वार 

चतुर्भुज मन्दिर,ओरछा 




बच्चा पार्टी 

मैं और मेरा परिवार 

जहांगीर महल ,ओरछा 

कुछ वक्त ऐसे ही बैठना अच्छा लगता है। 

ओरछा का राम राजा मंदिर 

घुमक्कड़ी दिल से 

सेल्फी 

हरदौल की बैठक 

चन्दन का कटोरा 

अपना होटल 

देवांग और सूरज मिश्र जी 

ये बाबा हमेशा एक कुत्ते को गोद में लिए ही मिले। 


बेतवा नदी का एक सुन्दर किनारा 

बेतवा नदी के दूसरी और राजाओ की छतरिया (समाधी ) दिखती हुई। 


कटरीना ट्री 


क्रमश 

17 टिप्‍पणियां:

  1. Waah ki chandan ka katora, mast laga ye mujhe, orachha jane ki jitni khushi aapko rahi hogi samjh sakti hun

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    1. धन्यवाद हर्षिता जी। बस सब लोगो से मिलना था इसलिए ओरछा पहुंचने की जल्दी थी।

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  2. आभार सचिन जी, ये होटल ज्यादा कमरे एक साथ मिलने के कारण किया गया था । वैसे नीचे के कमरे ठीक-ठाक थे । अगर आपने उसी समय मुझे ये समस्या बताई होती तो व्यवस्था में सुधार किया जा सकता था । खैर फिर कभी दुबारा आइये , किसी तरह की कोई शिकायत नही होगी । अगले भाग की बेसब्री से प्रतीक्षा...

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    1. कोई बात नही मुकेश जी इतना बडा कार्यक्रम था, जानता हूं की आपने बहुत मेहनत की थी । कोई बात नही आप लोगो से मिलना ही बहुत था फिर होटल की साफ सफाई तो एक मामूली बात थी । धन्यवाद आपका मुकेश जी

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  3. Hi Sachin ji

    आपके यात्रा वृतांत की खूबी उसकी सादगी होती है। सहज भाषा में, जो जैसा पाया उसको वैसा ही अपने शब्दों में उतार देते हैं। इस वजह से आपके संस्मरण पढ़ने का एक अलग ही आनन्द है। चतुर्भुज मंदिर से तो मुकेश जी परिचित करवा चुके है पर हरदौल देवता की जानकारी अच्छी है, और मेरे लिए नई भी।
    कुछ खट्टे पर अधिक मीठे अनुभवों संग लिखी हुई आपकी यह पोस्ट निश्चित ही रोचक भी है और पठनीय भी। फ़ोटोज़ सुन्दर हैं। अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी 💐

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  4. Nice description, Sachin. We also enjoyed your company a lot. When there are so many people around you, it needs some time to develop friendships. You returned earlier than us too. But surely we will meet again.

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    1. धन्यवाद सिंघल जी। मुझे भी आप लोगो से मिलकर बहुत अच्छा लगा। जल्द मिलेंगे।

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  5. वाह सचिन भाई .फिर से ओरछा की यादें ताज़ा कर दी .

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    1. धन्यवाद नरेश भाई। अब आपके लेख का इंतजार रहेगा।

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  6. बहुत बढ़िया त्यागी जी....

    होटल के कमरे सभी तरह के थे ....कुछ अच्छे भी थे तो कुछ कम अच्छे |
    खैर कमरों की क्या ... हम लोग तो आपस में मिलने को आये थे ...
    जय राजा राम की

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    1. धन्यवाद रितेश जी। सही कहा होटल का कोई मामला नही था, हम तो दोस्तो से मिलने आए थे। लेकिन ब्लॉग पर हुई परेशानी का भी जिक्र होना आवश्यक है, जिससे पढने वाला व्यक्ति आने वाले समय के लिए सचेत रहे।

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  7. हरदौल और चतुर्भुज मंदिर के विषय में पढ़ना अच्छा लगा ! चन्दन का कटोरा ? क्या महत्व , क्या कहानी है इसकी ? फोटो एक से एक बेहतरीन !!

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    1. चंदन का कटोरे में पुराने समय में चंदन का लेप बनाया जाता था और सैनिको के माथे पर लगाया जाता था। आभार योगी भाई संवाद के लिए।

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